Saturday, May 18, 2013

धान बोने वाली औरतें - संदीप रावत की कवितायें


 


नाम - संदीप रावत             




"मौलिकता, कहन और खूबसूरत भाषा से सजी -संवरी संदीप रावत की कवितायें अलग से ध्यान आकर्षित करतीं है, फेसबुक पर 'धान बोने वाली औरतें' कविता श्रंखला पढ़कर उनकी और भी कवितायें पढने की उत्सुकता जागी, संदीप की 'प्रेमिका' ' बेकार बुजुर्ग' 'औरत और सपना' कवितायें स्त्री के संघर्ष और बुजुर्गों के प्रति संवेदना और युवा कवि की दृष्टि ने जिस ख़ूबसूरती से प्रेमिका का  भिन्न भिन्न प्राकृतिक गहनों से श्रृंगार किया है वो पढ़कर अंतर्मन एक अलग खूबसूरत दुनिया का विचरण  करने चला जाता है , युवा कवि संदीप रावत  का हार्दिक स्वागत करते हुए उनकी कुछ कवितायें आप सभी के लिए फरगुदिया पर .." 













धान बोने वाली औरतें -1

धान बोने वाली औरतें
चौमासी बरसातों में
जंगली धाराओं सी बह निकलती हैं
पहाड़ो में !



छलछलाती हुई गुज़र जाती हैं
खेतों -मेड़ो -जंगलो -बाखलियों से होकर ..
धान के खेतों में घुटनों
तक डूबी वो तैरती जाती है
हरियाने सूने खेतों को " हुड़किया " की थापों के साथ !


अपनी सलवारों -धोतियों के पायंचों
को निचोड़ती हुई
वो दौड़ती हैं यहाँ वहां बारिश में !


भीगे आँचल से छूटती हैं
ठंडी बौछारें...
चहक उठते हैं पंछी ...!
 
धान बोने वाली औरतों के लिये ही उगती है
पहाड़ो पे हरियाली ... 

घने कोहरे में बैठी रहती है ओस ...
उनके आँचल और केशों को सुखाने बड़ी दूर से आती हैं हवाएं ...
 
धान बोने वाली औरतों के भीतर फिर नयी उम्मीद उगाते हैं पहाड़ !!
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*
धान बोने वाली औरतें -2


धान बोने वाली औरतें
सांझ तलक खेतों में रहकर
लौटती हैं
बच्चे झूलते हैं कंधो पे ..ठीक कानों पर बोलते हैं
उनके गिलास से छलक उठती है चाय !!

वो गाय के लिए बनाती हैं चारा
काटती हैं सब्जी , गूंथती हैं आटा
रात घिरे चूल्हे पर
जम्हाईयों के बीच करती हैं बातें
बेसुध झपकियाँ लेती हुई
सेकती हैं " छापड़ " भर रोटियाँ ...
जली पोरों पे फिर लगाती हैं नमक !

नींद की लाल खरोंचे आँखों में लिए
वो मांझती हैं बर्तन , उठाती हैं झूठा , लीपती हैं चौका ...!

आधी रात जब रोते हैं बच्चे ...वो देर तक नहीं करातीं चुप उन्हें
या कोसती हुई मारती हैं झिड़कती देती हैं धक्के !

बडबडाता हुआ
करवट बदलता है आदमी और गाली बकता हुआ उठता है -

सबकी सुनते -करते बेहिस बेजान हो जाती हैं
धान बोने वाली औरतें ...!!
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*
धा
न  बोने वाली औरतें   -3

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इक रोज़ उँगलियों पर

गिनी जायेंगी धान बोने वाली औरतें

उस दिन टूट जायेगी इस अंधे पहाड़ की लकड़ी !

पहाड़ लड़खड़ा के गिरेगा ...पुकारेगा

मगर उसकी आवाज़ पहुंच नहीं पाएगी

दूर मेट्रो में बैठी , मॉलों में घूम रही धान बोने वाली औरतों
तक !!

 
मेड़ो पर रोपा हुआ रह जाएगा चाय का गिलास

तिमुल के पत्तों पर मर जायेंगे आलू के गुटके

और

कोई बच्चा रो रो कर लगाएगा खेतों में

धान बोने गयी मां को

ईजा ...ओ ईजाआआअ ...घर एजा ....!
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*

- प्रेमिका

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उसकी आखों से

याद आती थी उस हिमकंठी पंछी ' हिलांस ' की चहक

कि आज भी उसकी आखों को भुला नहीं पाए

कान मेरे -

घसियारों की भेष में बुरांश सी खिलती थी
जब चढ़ती थी पहाड़

जेठ की धूप में गेहूं की दो बालियों से दमकते थे रुखसार उसके

यूं चलती थी जैसे घने जंगल में कोई पगडण्डी !!

उसकी हँसी से हमेशा , बारिशों से भीगे - टपकते -सब्ज़ मंज़र का गुमां होता था

अब बारिशों में कहीं निकलो तो याद आते हैं उसकी आवाज़ के सुर !!

न जाने क्या देखा करती थी हवाओं में ...

न जाने क्या देख चुकी थी ज़मीन पर...

कि ख्व़ाब बुनते -बुनते अचानक कभी , हो जाया करती थी उदास !

कहती थी --

' हम लोग तो जन्म से ही

कमर में रस्सी बाँध के लाये ठैरे...और पैरों में इन जंगली रास्तों की झांवर ...!

उसके भीतर फड़फड़ाते पंखों की सदायें गूंजती थीं

बाहर निकलने का रास्ता तलाशते हुए ...

कि उसने पंखों के उगने तक किया था लंबा... इंतज़ार -

वो प्रेमिका होना चाहती थी,

वो भी चाहती थी प्रेमिका होना !!

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औरत और सपना
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औरतें जी लेती हैं ख़्वाबों में

और

उनकी ताबीरों में भी !!

वो खामोश जागती रहती हैं

कि

उनकी आखों पर बनी रहती है

किसी दुस्वप्न की आहट ...!!

 

भीगी पलकों पर

उलझाये आँचल...

औरतें जी जाती हैं सपनों को !
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 बेकार बुजुर्ग

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वो अब किसी काम का नहीं रहा !!
 
जीवन के
निर्जन में पसरी
स्म्रतियो की दुर्वा पर ...
बेकार बैठा ...
न जाने क्या खोदता है
क्या रोपता है ...!
 
एकांत के आईने में
अभिलाषाओं का दुखद रूप देख कर !
फूट पड़ता है मन
टूट पड़ती हैं आखें ...!
 
ठहरो !
उसके कमरे में न जाना तुम -
विषाद भरा रुदन
खरोंच देता है कानों को ...
पस पड़ने का खतरा है !!
 
तभी तो घर में कोई नही देता कान
...उसकी बातों पर !!

*********************

नाम - संदीप रावत

उम्र -२४ वर्ष
शिक्षा - बी.एस.सी ( गणित ) ( नैनीताल डी.एस.बी कैंपस )
पता - ग्राम सुरना , पोस्ट आफिस बिन्ता
जिला अल्मोड़ा , रानीखेत (उत्तराखंड )
    *    *                  **  **                 **

15 comments:

  1. कविताओं में ताजगी है और लेखन में ठहराव ...''धान बोने वाली औरतें '' में ''इजा ओ ईजाआआ घर इजा '' दिल के बहुत करीब आई ..मर्म को गहरे तक छू गई .

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  2. बहुत मार्मिक,,सच कहती कवितायें ... रचयिता को बधाई ॥

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  3. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 20/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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  4. ytharth ki pristh bhoomi pr rchi gayee sabhi rchnayen utkrisht hain.
    sabhaar shobha ji .

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  5. लाजवाब रचनाएं....
    संदीप को पढना सदा ही सुखद अनुभव रहा है....
    उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं!!
    शुक्रिया शोभा जी.

    सादर
    अनु

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  6. सुन्दर रचना
    कर दिया जागरूक सबको
    ऐसे ही बोया जाता है धान...

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  7. सभी रचनायें नवीनता लिये दिल को छूती हैं । लाजवाब ।

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  8. हौंसला अफजाई का आप सभी का दिल से आभार .....

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  9. आप सभी का दिल से आभार ...हौंसला मिला ....शोभा जी को प्रणाम उन्होंने मेरी रचनाये आप सब तक पहुचायीं !

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  10. कविता लिखी है की दिल चीरा है। सशक्त लेखन साधूवाद

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  11. कविता लिखी है की दिल चीरा है। सशक्त लेखन साधूवाद

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  12. This comment has been removed by the author.

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  13. कविता लिखी है की दिल चीरा है। सशक्त लेखन साधूवाद

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  14. कविता लिखी है की दिल चीरा है। सशक्त लेखन साधूवाद

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