डॉ सरस्वती माथुर
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अस्त होता हुआ सूरज एक अलग आभा लिए हुए होता है, अस्त होते हुए भी उम्मीदों के सूरज के उगने की प्रतीक्षा करता है , इंसान की उम्र भी एक समय पर आकर इसी अनुभव से गुजरती है , डॉ सरस्वती माथुर की कवितायें उसी अनुभव की आभा को अपने भीतर समेटे हुएं हैं, प्रस्तुत है उनकी कुछ संवेदनशील कवितायें फरगुदिया पर ...
1- एक बुजुर्ग
अकेलेपन के सूरज को
रुक कर देखता
एक बुजुर्ग
क्षण और घंटे गुजरते जाते हैं
समय की आराम कुर्सी पर
किताबों को पलटते हुए
रुक कर देखता है
एक बुजुर्ग
उस दरवाजे की ओर
जहाँ से शायद आये
उसका बेटा या बहू ,
बेटी या पोता और
हाथ में हो चश्मा
जिसकी डंडी
बदलवाने के लिए
पिछले महीने वो
जब आये थे तो
यह कह कर ले गए थे कि
कल पहुंचा देंगे
हर आहट पर
चौंकता है एक बुजुर्ग
दरवाजा तो दीखता है पर
बिना चश्मे किताब के अक्षर
देख नहीं पाता
हाँ "ओल्ड होम" की निर्धारित
समय सारिणी के बीच
समय निकाल कर
पास बैठे दूसरे बुजुर्ग का
हाथ पकड कर
उस इंतज़ार का
हिस्सा जरुर बनता है
2- उनकी मुस्कान
और अब वे अपने
अंतिम चरण में थी
,बुजुर्ग जो थीं
उन्हें मालूम था कि
यह नियति है
और वे इंतज़ार में थी
अब देर तक बगीचे में
काम करती हैं
स्कूल से लौटे
पोते पोतियाँ के जूतों से
मिटटी हटा कर खुश होती हैं
उनके धन्यवाद को पूरे दिन साथ लिए
मुड़े शरीर के साथ लंगडाते हुए
इधर- उधर घूमती हैं
याद करती हैं
तालियों की उन गूंजों को
जो समारोह में उनकी
कविताओं के बाद
देर तक बजती थीं
अपने हमउम्र दोस्तों के साथ
सत्संग में बैठ कर
भजन सुनते हुए सोचती थीं
उन दिनों को
जब घडी की सुइयां
तेज दौडती थीं
और वे उसे रोक लेना चाहती थीं
अब वे अपने कमरे की
खिड़की से दिखते
समुन्द्र को देर तक
निहारते सोचतीं थीं
कि
वक्त कहाँ बाढ़ की तरह बह गया
और यह सूरज भी
कितना कर्मठ है
रोज थक कर डूबता है
और तरोताजा होकर उगता है
यह सोचते ही
उनके पूरे शरीर में
सूरज की प्रथम
किरणों की तरह
जीने की उमंग
कसमसाने लगती है
और पूरे दिन एक
मुस्कान की तरह
उनके होंठों पर
तैरती रहतीं है !
3- पिता के ख़त
पिता तुम्हारे ख़त
खिले गुलाब से
मेरे मन आँगन में
आज भी महक रहे हैं
जब भी उदासी की बारिश में
भीगती हूँ
छतरी से तन जाते हैं
सपना देखती हूँ तो
उड़न तश्तरी बन
मेरे संगउड़ जाते हैं
जादुई चिराग से
मेरी सारी बातें
समझ जाते हैं!
पिता तुम्हारे ख़त
मेरी उर्जा का स्त्रोत हैं
संवादों का पुल हैं
कभी भी मेरी उंगली थाम
लम्बी सैर पर निकल जातें हैं !
पिता तुम्हारे ख़त
पीले पड़ कर भी
कितने उजले हैं
रातरानी से
आज भी महकते हैं
पिता तुम्हारे ख़त
अनमोल
रातरानी के फूलों से
खतों के शब्द
ठंडी काली रातों में
एक ताजा अखबार से हैं !
पिता तुम्हारे ख़त
ख़त समाचार भरें हैं
उसमे परिवार ,समाज ,देश
एक कहानी से बन गए हैं
इतिहास से रहते हैं
उनके भाव
हमेशा मेरे पास
जिन्हें
सर्दी में रजाई सा ओढ़ती हूँ
गर्मी में पंखा झलते हैं !
पिता तुम्हारे ख़त
बारिश में टपटप
वीणा तार से बजते हैं
इसके संगीत की ध्वनित तरंगें
मेरा जीवन रथ है
इसके शब्दों को पकडे
तुम सारथी से मुझे
सही राह दिखाते हो
इन्हें सहेज कर रखा है
आज भी मैंने
कह दिया है
अपने बच्चों से
कि यह
मेरी धरोहर हैं
जो आज भी मेरा
विश्वास है
कि
मेरे पिता मेरे जीवन का
सारांश हैं
बहुत खास है
पिता तुम्हारे ख़त .....
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4- श्रम का अभिमन्यु
रिश्ते मलंग
देर तक लड़ी
समय की जंग
चक्रव्यूह धन
श्रम का अभिमन्यु
राह ढूंढता
बाहर आने की
मिल गयी सुरंग
अनुभव की किताब
पढने से पहले
पढना होगा
प्राक्कथन
मन हुआ दबंग
जीवन में
जो भी पाया
मन में भरा रंग
आसमान पर मंडराती
चिड़िया मुझे
कभी कभी बहुत लुभाती है
सपनो में आकर
अपने पंख दे जाती है
मैं तब उड़ने लगती हूँ
गगनचुम्बी इमारतों पर
निरंतर शहर में
विस्तरित होते गाँवों
,खेतों ,खलिहानों पर
हवाओं की लहरों संग
बतियाते फूलों पर
आकाशी समुन्द्र की
बूंदों से अठखेलियाँ करती
आत्मस्थ होकर
उड़ते उड़ते मेरी
मनचाही उड़ान
मुझमें विशवास की
एक रौशनी भर देती है
और मैं उड़ जाती हूँ
अनंत आकाश में
धरती से दूर वहां
जिन्दगी को
गतिमान रखने को
सपने पलते हैं
और मैं उतर कर उड़ान से
एक नीड ढूँढती हूँ
जहाँ सुरक्षित रहें
जंगलों का नम हरापन
बरसाती चश्मा
ऊँचें पहाड़
गहरी ठंडी वादियाँ
पेड़ ,नदी ,समुन्द्र
और
पेड़ों पर चह्चहाते -
गीत गाते रंग- बिरंगे परिंदे
नित्य और निरंतर
गतिशील लय की
अनंतता में बस
अनंतता में !
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नाम : डॉ सरस्वती माथुर
प्राचार्य : पी .जी. कॉलेज
शिक्षा : एम.एस .सी (प्राणिशास्त्र ) पीएच .डी
,पी. जी .डिप्लोमा इन जर्नालिस्म ( गोल्ड मेडलिस्ट )
प्रकाशन
कृतियाँ :
काव्य संग्रह : एक यात्रा के बाद
मेरी अभिव्यक्तियाँ,
मोनोग्राम : राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी : मोनोग्राम हरिदेव जोशी
विज्ञान : जैवप्रोधोयोगिकी ( Biotechnology )
पुरूस्कार /सम्मान :
प्राप्त पुरस्कार / सम्मान: दिल्ली प्रेस द्वारा कहानी " बुढ़ापा "पुरुस्कृत १९७० में एवं अन्य पुरूस्कार
भारतीय साहित्य संस्थान म.प्र .द्वारा काव्य में बेस्ट कविता के लिये
Felicitation & अवार्ड given by Association ऑफ़ : डिस्ट्रिक्ट झालावाड द्वारा साहित्य में योगदान के लिये !
संपर्क:
नाम : डॉ सरस्वती माथुर
ए---२ , हवा सड़क ,सिविल लाइन ,जयपुर-६
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(4-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
ReplyDeleteसंवेदनाओं को झकझोरती कवितायें -बहुत अच्छी लगीं!
मन को छूती है....झकझोरती है्....तो कभी यर्थाथ का बोध कराती हैं ये कविताएं..बहुत ही उम्दा रचना...
ReplyDeleteसम्वेदनायें मुखरित हो उठी हैं.
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