Friday, September 28, 2012

दुष्यन्त- प्रेम का अन्य


भारत-पाक सीमा पर बसे केसरीसिंहपुर कस्बे में (श्रीगंगानगर जिले में ) 13 मई 1977 को जन्मे दुष्यन्त इतिहास में बीए ऑनर्स, एमए, यूजीसी- नेट, जेआरएफ, पीएच.डी. हैं। अपनी बुनियादी बुनावट में वे लेखक हैं तो इतिहास लिखना भी प्रिय है और कहानियां, कविताएं भी। कुछ साल पढाया भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् (दिल्ली) के फैलो रहे, पिछले कुछ सालों से पेशे से लेखक और पत्रकार हैं। फिल्म एवं टीवी इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया (FTII, Pune) में कुछ समय सिनेमा की तमीज सीखने की कोशिश की ।

हिंदी की श्रेष्ठ पत्रिकाओं- नया ज्ञानोदय, वागर्थ, कथादेश, परिकथा, पाखी, बया, वसुधा आदि में कहानियां, कविताएं और अनुवाद लगातार प्रकाशित और चर्चित हुए हैं। 
कृत्या के इंटरनेशनल कविता उत्सव (International Poetry Festival -मैसूर, 2010 और नागपुर,2011) में आमंत्रित, उनकी अनेक रचनाओं का अनुवाद कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में हुआ है। 
दो कविता संग्रह-उठै है रेतराग (2005) और प्रेम का अन्य (2011) और एक रूसी कविताओं के अनुवाद की पुस्तक-भोर अजैं मेपल बिरछ रै हाथां (2011) उनके नाम दर्ज है, इसके अलावा दर्जन भर यूरोपीय और लेटिन अमेरिकन कवियों की कविताओं का भी हिंदी अनुवाद किया है।
2011 में उन्हें कविता लेखन के लिए दुनिया के सबसे बडे ऑनलाइन संग्रह कविताकोश की ओर से पहला कविताकोश सम्मान दिया गया था,  इसी साल (2012) उन्हें कला और लेखन में योगदान के लिए पं. गोकुलचंद राव सम्मान भी दिया गया है। उनके पहले कविता संग्रह ''उठै है रेतराग'' को 2012 के लिए राजस्थानी अकादमी से प्रतिष्ठित सावर दइया अवॉर्ड मिला। 
नॉन-फिक्शन में इतिहास की किताब 'स्त्रियां : पर्दे से प्रजातंत्र तक' राजकमल प्रकाशन, दिल्ली से इसी साल (2012) आई है।
पहला कहानी संग्रह प्रतिष्ठित एवं इंटरनेशनल प्रकाशक पेंगुइन से अगले साल आ रहा है |

दुष्यन्त इन दिनों अपने पहले उपन्यास को अंतिम रूप दे रहे हैं और राजकमल प्रकाशन, दिल्ली के लिए कस्तूरबा गांधी की जीवनी लिख रहे हैं।  फरगुदिया की शुभकामनाएँ हमेशा उनके साथ हैं ।
आगे ...."प्रेम का अन्य" से कुछ रचनाएँ ... आपके लिये  । 






 









माउण्‍ट आबू से प्रेम कविताएं

__________________________


1-

एक अकेली दोपहर

स्मृति तुम्हारी

पहाड़ के निचले हिस्से में

उस पल पहाड़ से ऊंची हो जाती है

जैसे तुम्हारा गुस्सा पहाड़ होता था कभी

मेरी प्रिया
!
2-
पहाड़ की ओट में भी तुम्हारी स्मृति

साथ मेरे

पहाड़ सी उतिष्ठ और दृढ़

सचमुच तुम्हारे प्रेम सी… मेरी प्रिया!

3-
ए ऊंचे परबत सुन तो ! 

मैदान में जा

पुकार मेरी पहुंचा

हृदय मेरा फूट रहा है

तेरे सोते सा उसकी स्मृति में

एक पहाड़ सी

परेशान होती मेरी प्रिया के लिए !

सुनो मेरी प्रिया!



10 comments:

  1. अति सुन्दर!!

    सभी रचनाएँ वास्तविक जीवन से जुडी हुई ...सहज सरल पर जेहन में गहरा असर डालती हुई !! दुष्यंत जी .को ....बधाई एवं साझा करने करने का शुक्रिया शोभा !!

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  2. गहन प्रेम में डूबी हुई कवितायेँ ....कुछ तो मैंने कई बार पढ़ा , बहुत सुन्दर ....

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  3. पहली बार पढ़ी मैंने.... दुश यंतजी की प्रेम कवितायें....बहुत अच्छी लगी, कुछ अनोखी-अनूठी सी... धन्यवाद शोभा पढ़वाने के लिए

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  4. दुष्यंत जी को पहली बार पढ़ा...सारी कवितायेँ एक से बढ़कर एक हैं .. इसे साझा करने के लिए बहुत बहुत आभार शोभा दी।..

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  5. प्रेम आदि और अनंत, सुंदर कविताएँ !!

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  6. प्रेम आदि और अनंत ! सुंदर कवितायें !!

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  7. प्रेम आदि और अनंत ! सुंदर कवितायें !!

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  8. प्रेम आदि और अनंत ! सुंदर कवितायें !!

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  9. प्रेम आदि और अनंत ! सुंदर कवितायें !

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  10. प्रेम आदि और अनंत, सुंदर कविताएँ !!

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