"राजस्थान में बेटियों के जन्म पर पेड़ लगाने और उनके संरक्षण का संकल्प न सिर्फ पर्यावरण बचाये रखने के लिए नेक कार्य है, बल्कि बेटियों के सम्मान में सार्थक प्रयास है! लेखिका चंद्रकांता ने इस अनूठी परम्परा के बारे में विस्तार से लिखा है !"
बेटियों के सम्मान और रक्षाबंधन की अनूठी परम्परा।
आज हमारा 73 वाँ स्वतंत्रता दिवस है और भाई बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार भी। आज़ादी के वक़्त बहोत सी आशाएं की गयी थीं उनमें से बहोत सी आशाएँ अब तलक अधूरी हैं। लेकिन जब किसी एक आशा को फलीभूत होते हुए देखती हूँ तो इस आज़ादी को सलाम करने का मन होता है। आशाओं से भरा हुआ ऐसा ही एक गाँव है पिपलांत्री। पिपलांत्री नाम का यह गाँव राजस्थान के राजसमंद जिले से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। इस गाँव की खास बात यह है कि यहाँ किसी लड़कीं के जन्म लेने पर शगुन के तौर पर 111 पौधे लगाए जाते हैं और उन्हें जीवित रखने का संकल्प लिया जाता है । इस गांव में बेटी किसी के भी घर पैदा हो बेटी के जन्म का उत्सव पूरा गांव मनाता है ।
यहाँ किसी लड़की के जन्म पर पिपलांत्री ग्राम पंचायत उसके नाम से 18 साल के लिए ₹10,000 की धनराशि भी जमा करवाती है जिसके एवज में लड़की के माता-पिता द्वारा हर साल कुछ पौधे रोपे जाते हैं। इस तरह जब लड़की 18 वर्ष की होती है तो गांव को 180 पेड़ मिल जाते हैं और लड़की को कुछ आर्थिक सहायता।
यह परंपरा गांव के पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल ने अपनी बेटी की आकस्मिक मृत्यु होने के बाद शुरू की थी। पिपलांत्री गाँव में हर किसी व्यक्ति के नाम का एक पेड़ लगा हुआ है जिसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी भी उसी व्यक्ति पर है । यहाँ किसी की मृत्यु होने पर भी उस व्यक्ति की याद में 11 पेड़ लगाए जाते हैं। डेनमार्क ने इस परंपरा से प्रभावित होकर इस गांव के विकास की कहानी को अपने स्कूल के सिलेबस में शामिल किया है |
आज यह गाँव विश्व विख्यात है और एक निर्मल, स्वच्छ, और आदर्श ग्राम के रूप में जाना जाता है . पर्यटकों का भी इस गाँव से विशेष लगाव है उनकी आवाजाही यहाँ लगी रहती है. उदयपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर यह गाँव एक ऐसी जगह पर स्थित है जहाँ संगमरमर का खनन किया जाता है ऐसी जमीन पर हरियाली की बात सोच सकना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है . क्यूंकि जहाँ भी संगमरमर खनन किया जाता है वहां जल का स्तर काफी नीचे चला जाता है ,आस पास की खेती सूख जाती है और वन्य जीवन का ह्रास हो जाता है .लेकिन पिपलांत्री गाँव के लोगों ने सरपंच श्याम सुन्दर जी के मार्गदर्शन में इस चुनौती को सच कर दिखाया . 2005 से पहले तक यह गाँव भी बाकी गाँवों की तरह उजाड़ ही था लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे थे लेकिन श्याम सुन्दर पालीवाल के सरपंच बनने से यहाँ सब कुछ बदल गया. इसके लिये श्याम सुन्दर जी ने यहाँ के लोगों को पेड़ लगाने और उन्हें बचाने के लिये प्रोत्साहित किया, उन्होंने बरसात के पानी को जमा करने की मुहीम शुरू की और छोटे बड़े कई सौ बाँध बनाए, ताकि भूमिगत जल को रिचार्ज किया जा सके . आज यहाँ जलस्तर काफी बेहतर स्थिति में है।
पिपलांत्री गाँव की और भी कई बातें अनुकरणीय हैं। यहाँ पंचायत की
कोशिश रहती है कि सभी रोजगार स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध करवाए जाएं. यहाँ गाँव की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह बनाए हुए है जहाँ खासकर एलोवेरा और आंवला के उत्पाद बनाए और बेचे जाते हैं . इससे उन्हें रोजगार मिला है और वे आत्मनिर्भर बनी हैं। गांव में ही एलोवीरा प्रोसेसिंग प्लांट लगाया गया है। गांव की महिलाएं मिलक एलोवीरा जूस, क्रीम, साबुन,फेसवॉश आदि तैयार करती हैं जिन्हें पिपलांत्री ब्रांड के नाम से बेचा जाता हैं |
एक और दिलचस्प बात रक्षाबंधन के दिन इस गांव की महिलाएं पेड़ों को राखी बाँधती हैं और उनकी सुरक्षा का वचन देती हैं। साथियों, परम्पराओं को प्रकृति और विकास से जोड़ दिया जाए तो हम स्थानीय स्तर पर ही ग्रामीण और शहरी जनजीवन की तस्वीर बदल सकते हैं . कितना अनूठा संबंध है पिपलांत्री के लोगों का अपनी बेटियों और प्रकृति से। देश का प्रत्येक गाँव और शहर पिपलांत्री जैसा आत्मनिर्भर और बेटियों को सम्मान देने वाला हो इस रक्षाबंधन और आज़ादी पर यही शुभकामनाएं है |
--चंद्रकांता
स्वतंत्र लेखिका
email: chandrakanta.80@gmail.com
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