कुछ गुणी लोग चुपचाप भीड़ से अलग अपनी रचनात्मकता को जीते रहतें हैं, वो
किसी तरह की प्रतिस्प्रधा की दौड़ में शामिल नहीं होते लेकिन पारखी नज़रों से
ज्यादा देर दूर भी नहीं रह पाते ! लेखिका,गृहिणी,समाजसेविका विजय पुष्पम
पाठक जी ऐसे ही प्रतिभावान व्यक्तियों में से एक हैं ! साहित्यिक
पृष्ठभूमि में पली - बढ़ी साहित्यकार आदरणीय श्री विनोद शंकर मिश्रा जी की
पुत्री को लेखन विधा विरासत के रूप में मिली हैं ! गद्य और पद्य दोनों ही
विधाओं में वो सार्थक और मौलिक लेखन कर रही हैं ! लेखिका
होने के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी साहित्य पढ़ने में विशेष रूचि रखती हैं
और समय-समय पर विदेशी कवयित्रियों की कविताओं का हिंदी में अनुवाद भी करती
रहती हैं !
कथादेश व विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में विजय दीदी की रचनाएँ प्रकाशित हुई है !
बहुआयामी, विलक्षण प्रतिभा की धनी अमेरिकन लेखिका माया
एंजेलो अब हमारे बीच नहीं रही ! विजय दीदी ने उनकी कुछ कविताओं का अनुवाद
किया है ! उन्हें याद करते हुए श्रृद्धांजलि स्वरुप एक कविता के माध्यम से
उनके प्रति अपने भाव व्यक्त किये हैं ! विजय दीदी और फरगुदिया परिवार की
तरफ से महान लेखिका माया एंजेलो को भावभीनी श्रद्धांजलि !
श्रद्धांजलि
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पिंजरे में कैद पंछी गाता है चहचहाता है
और एक दिन तोड़ कर पिंजरा उड़ जाता है
सारे दुःख
सारी घुटन
सारे जख्म
छूट जाते हैं पीछे
एक काली चिड़िया
जो गाती है
शोर मचाती है
अपने ..और दूसरों के हक के लिए
जिसे पता है उसकी खूबियाँ
जो चकित नही होती
अनजान निगाहों में अपने लिए प्रशंसा भाव देखकर
जो व्यक्त कर देती ही खुद को इमानदारी के साथ
जिसे अनुभूति होती है दुसरे की पीड़ा की
एक लंबे संघर्षमय जीवन को
प्रसन्नता पूर्वक अपने तरीके से जीती हुई
विलीन हो जाती है निस्सीम आकाश में
एक लंबी उड़ान पर
फिर से अगन पांखी की तरह उग आने के लिए
खुद्द की ही राख से
नमन माया अन्गेलू ....
तुम मेरे मन में हो
मेरी सोच में हो
मेरी आत्मा में हो
कैसे मान लूं
कि तुम नहीं हो अब इस नश्वर संसार में
तुम सांस लेती रहोगी
तमाम औरतों के अंतस में
उनके संघर्षों में जीवित रहोगी तुम
उनकी अभिव्यक्ति का पर्याय बनकर ...विजय
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1-
हां ,अभी भी बढती जाती हूँ मैं
भले ही लिख दो मुझे इतिहास में सबसे नीचे
अपने कड़वे और तोड़े मरोड़े झूठ के साथ
चाहे धकेल दो मुझे कितनी भी गंदगी में
फिर भी धूल की तरह मैं बढ़ती ही जाउंगी !
मेरी जिंदादिली तुम्हे परेशां करती है
और फिर तुम घिर जाते उदासियों से
क्योंकि मेरी चाल में धमक होती है
जैसे मैंने पा लिया हो तेल का कोई कुआं ...
बस चाँद और सूरज के जैसे
ज्वार - भाटा आने की निश्चिन्तता के साथ
जैसे मेरी आशाएं मार रही हों उछाल
अभी भी बढ़ती जाती हूँ मैं !!!
तुम मुझे टूटा हुआ देखना चाहते थे
झुके सर और नीची आँखों के साथ
आत्मिक क्रंदन से कमजोर हो
आंसुओं की तरह नीचे ढलके हुए कन्धों को
मेरा अभिमान अपमानित करता है तुम्हे
बहुत खराब लगता है ना तुम्हे ...
क्योंकि मैं हँसती हूँ
जैसे पीछे घर के आँगन में
मिल गयी हो कोई सोने कि खदान ....
तुम अपने शब्दों की गोलियाँ चला सकते हो मुझपर
अपनी आँखों से ही टुकड़ा -टुकड़ा कर सकते हो मुझे
मुझे अपनी घृणा से मार सकते हो तुम
फिर भी अभी भी हवा की मानिंद बढ़ती जाती हूँ मैं !!
क्या मेरी यौनिकता विचलित करती है तुम्हे !
आश्चर्य चकित करती है तुम्हे !
कि मैं नाचती हूँ इस तरह
जैसे कि मेरी जांघों के संधि स्थल पर
मिल गया हो कोई हीरा
इतिहास की शर्म की झोपडियों के बाहर ....बढती जाती हूँ मैं
अपनी व्यापक और उत्ताल तरंगों के साथ
जो हर ज्वार -भाटे के साथ उठता गिरता है
आतंक और भय भरी रातें पीछे छोड़ उठती जाती हूँ मैं !!
उस प्रभात में जो आश्चर्यजनक रूप से शफ्फाक है उठती जाती हूँ मैं !!
साथ लिए हुए उन उपहारों को जो मिले हैं मुझे
अपने पूर्वजों से मैं हूँ गुलामों की आशा और स्वप्न ..
मैं उठती जाती हूँ !!
मैं उठती जाती हूँ !!
मैं उठती जाती हूँ !!
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2-
एक घृणा करने वाला व्यक्ति वही होता है
अनुवाद : विजय पुष्पम पाठक
कवयित्री , गृहिणी
अभिरुचियाँ ..पढना, सोशल वर्क ,लिखना, बागवानी
शिक्षा ..परास्नातक अंग्रेजी साहित्य
वर्तमान स्थान ...लखनऊ जन्म ..१ मई १९६७
कथादेश व विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई है
adbhut kawitayen...kitni sahaz bhasha....sachhe udgar.....jitni peera utni bari jeet....love u MAYA.shukriya FARGUDIYA ka...dhanywad VIJAY di ka....jinke soujany se padh paai ..
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया हौसला आफजाई के लिए🙏💐
Deleteबेहतरीन अनुवाद
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार🙏🙏💐
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