"मैं रोज उदित होती हूँ"
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एफ्रो -अमेरिकी लेखिका माया एंजेलो के जीवन पर विपिन चौधरी द्वारा लिखी किताब हाल ही में दखल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है | माया एंजेलो के संघर्षमय जीवन से जुड़े हर पहलुओं को संकलित कर विपिन ने हिंदी पाठकों को एक नायाब तोहफा दिया है |
किताब के कुछ रोचक अंश और किताब पर लिखी प्रसिद्द कवयित्री डॉ सविता सिंह जी की भूमिका आप सब फरगुदिया पर पढ़ सकतें हैं | लेखिका विपिन चौधरी को बहुत बधाई के साथ उनका पुनः स्वागत है फरगुदिया पर ...!
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एफ्रो -अमेरिकी लेखिका माया एंजेलो के जीवन पर विपिन चौधरी द्वारा लिखी किताब हाल ही में दखल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है | माया एंजेलो के संघर्षमय जीवन से जुड़े हर पहलुओं को संकलित कर विपिन ने हिंदी पाठकों को एक नायाब तोहफा दिया है |
किताब के कुछ रोचक अंश और किताब पर लिखी प्रसिद्द कवयित्री डॉ सविता सिंह जी की भूमिका आप सब फरगुदिया पर पढ़ सकतें हैं | लेखिका विपिन चौधरी को बहुत बधाई के साथ उनका पुनः स्वागत है फरगुदिया पर ...!
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माया एंजेलो के जीवन पर एकाग्र किताब ' मैं उदित होती हूँ' के तीन अलग-अलग अध्यायों के कुछ अंश
1.
बच्ची माया खुद नक्सली भेदभाव के अनुभवों से दो-चार होने के बाद बुरी तरह हिल गयी. वह यह समझने की कोशिश करती रही कि अश्वेत होना इतना कष्टदायक क्यों है. एक बार माया के दांत- दर्द के इलाज़ करने से श्वेत डाक्टर ने यह कह कर साफ़ मना कर दिया कि मैं अश्वेत लोगों का इलाज़ नहीं करता. इस घटना ने माया एंजेलो के कोमल मस्तिष्क पर बुरी तरह से प्रहार किया. इन घटनाओं से माया और भी उदास और गम्भीर होती चली गयी.
2 .
जिस घड़ी माया ने अपने गर्भधारण के भेद को अपनी माँ और सौतले पिता के सामने खोला तो उन दोनों में से किसी ने कोई हंगामा नहीं किया. बल्कि दोनों ने माया को जीवन के इस नए पड़ाव के लिए हिम्मत बंधाई। माया को उनके आश्वासन से बहुत बल मिला और उन्होंने अपने मन में ठान लिया कि इस बच्चे के जन्म के बाद का सफर वह अपने बूते ही तय करेंगी. माया एंजेलो के जीवन की यह ऐसी घटना थी जिस का असर उनकी पूरी जिंदगी पर पड़ना था. इस घटना के असर से उनका पूरा का पूरा जीवन प्रभावित हुआ भी और उनमें अपने जीवन की डोर स्वयं थामने की हिम्मत भी आती चली गयी.
3.
वर्ष १९६९ का वह दिन माया एंजेलो के जीवन में अद्भुत मोड़ ले कर आया था जब एक डिनर पार्टी में माया एंजेलो के करीबी लेखक दोस्त जेम्स बाल्डविन, कार्टूनिस्ट ‘जूल्स फेइफ्फेर’ और उनकी पत्नी, प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान ‘रेण्डम हाउस’ के मालिक रोबर्ट लूमिस एकत्रित थे. पार्टी पूरी तरह अपने लय में डूबी हुयी थी, खाना-पीना और बातचीत का दौर एक साथ चल रहा था. तब रेंडम हाउस के सर्वेसर्वा मिस्टर रोबर्ट ने माया एंजेलो के जीवन की विविधताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपनी आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित किया,माया को मिस्टर रोबर्ट का यह सुझाव बेहद पसंद आया और उन्होंने तुरंत ही इसके दूरगामी परिणामों पर ध्यान देते हुए अपनी सहज स्वीकृति दे दी. तब माया ने मन ही मन अपने भूतकाल की अनगिनत कतरनों को बारहाँ याद किया और निश्चय किया कि उन्हें अपने जीवन को कागज़ पर जरूर दर्ज़ करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी एक अश्वेत स्त्री के जीवन की विषम परिस्तिथियों को जान सके. अपने जीवन के गुजरे हुए घटनाक्रमों को वर्तमान में बटोर कर, उन्हें माया कागज़ के पन्नों पर उकेरने लगी. निसंदेह, आत्मकथा लेखन का यह काम अतीत की गहरी, काली और तकलीफ़देह गुफा में गुजरने जैसा था. लेकिन माया एक अद्भुत स्मरणशक्ति और जिजीविषा की मालकिन थी जो किसी चीज़ को एक बार ठान लेने के बाद कभी पीछे नहीं हटती थी. एकाग्रचित होकर माया ने अपनी आत्मकथा लिखी और १९६९ में माया एंजेलो की पहली आत्मकथा (आई नौ व्हाय द केज्ड बर्ड सिंग्स) प्रकाशित हुई. इस आत्मकथा के प्रकाश में आते ही माया एंजेलो की ख्याति रातों-रात न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय कोनों में भी फ़ैल गयी. इस प्रचंड ख्याति से मिले सकारात्मक उत्साह से माया को अपने आगे लेखन के प्रति आश्वस्ति मिली और उन्होंने एक के बाद एक पाँच आत्मकथाओं की लंबी श्रृंखला लिख डाली.
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विपिन चौधरी द्वारा माया एंजेलो के जीवन पर लिखीं किताब ( मैं रोज़ उदित होती हूँ ) पर प्रसिद्ध कवयित्री, स्त्रीवादी दार्शनिक, राजनैतिक विशेषज्ञ डॉ सविता सिंह क़ी भूमिका |
कम ही ऐसे दुख हैं इस संसार में जो स्त्री की पराधीनता के दुख से बड़े हों, परंतु दुख यदि एक अश्वेत स्त्री का हो तो उसका रंग और भी गाढ़ा हो जाता है। माया एंजेलो, जो एक महान अश्वेत कवयित्री के रूप में दुनिया भर में पढ़ी और सराही जाती हैं और जिनका जन्म अमेरिका के नस्ल भेदी समाज में 1924 में हुआ, उनके बारे में जानना अमेरिका में बसे अश्वेत लोगों के इतिहास के बारे में भी जानना है। जब माया एंजेलो अभी बहुत छोटी थी तभी उनके माँ और पिता में तलाक हो गया और वे अपने भाई के साथ अपनी दादी के यहाँ रहने के लिए भेज दी गई। दादी रोज़मर्रा की ज़रूरी चीजों की दुकान चलती थी, जिसमें दोनों भाई-बहन उनकी मदद करने लगे. अपनी त्वचा के काले रंग के कारण वहाँ भी स्थितियाँ दुखदाई ही रहीं खासकर छोटी माया को दादी का अपमान बेहद खलता। सात साल की उम्र में माया जब अपनी माँ से मिलने गई तब वे अपने नए प्रेमी के साथ रह रही थीं, उस वक़्त माँ के प्रेमी ने माया का बलात्कार किया। पीड़ा की असंख्य वेदना ने इस छोटी बच्ची को इतना आघात पहुंचाया की वह सालों गुमसुम रही। बाद में माया अपनी आंतरिक शक्ति और ऊर्जा का इस्तेमाल करती हुयी पढ़ाई-लिखाई में जुट गईं और शेक्सपीयर से लेकर स्पेन्सर, चार्ल्स डिकिन्स तक पढ़ डाला। साहित्य ने उनके सम्मुख एक दूसरी दुनिया का पट खोला। बाद में माया के प्रिय कवि लारेंस पॉल डेनेबर, उनकी कविताओं की दुनिया में शब्दों का नया पराग लेकर आये और कुछ ज्यादा ही विशिष्ट फूलों का खिलना संभव हो सका जिसका परिणाम था माया द्वारा दर्जन भर से ज्यादा कविता संग्रहों का लिखना । हार्लेम लेखक संघ से जुड़ी माया एंजेलो लगातार सिविल राइट्स का हिस्सा बनी रही। मार्टिन लूथर किंग और मैलकॉम एक्स के साथ जुड़ी, दुनिया भर में जहां कहीं उन्हें मौका मिला काम करने गयी। उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा घाना में भी बीता जहां वे अपने एकलौते बेटे को लेकर गयी और उसे वहीं शिक्षित करने का मन बनाया। माया एंजेलो थियेटर से लेकर न्रत्य में भी इसी गंभीरता से जुड़ी रही। उन्होनें कवितायें भी खूब लिखीं. जो सबसे महत्वपूर्ण काम उन्होनें किया वह अपनी आत्मकथा का पाँच खंडों में लेखन, ये आत्म कथाएँ जैसे माया एंजेलो के जीवन का सत्य और इतिहास हो, समय जैसे माया एंजेलो ही जिसने एक ऐसा जीवन जिया जिसमें पीड़ा, संघर्ष और कवितायें एक दूसरे में मिल गयी थी। कविता का एक जीवन अश्वेत स्त्री का परिश्रम, संताप और नक्सली भेदभाव और उस समय में जी रहे, काम कर रहे दूसरे महान अश्वेत लोगों का संघर्ष सब माया की आत्मकथाओं में जगह पाते हैं। माया एंजेलो का जीवन यह भी समझाता है कि सामान्य जीवन की कितनी भी समृद्धियाँ और स्वतंत्रतायेँ कितने ही दूसरे लोगों की दस्ताओं और खून-पसीने से उपजाई गयी हैं। विपिन चौधरी द्वारा माया एंजेलो पर लिखी गयी यह किताब “ मैं रोज़ उदित होती हूँ” बड़े ही यत्न और प्रखरता से लिखी गयी है। हिन्दी पाठकों के लिए यह पुस्तक एक अभूतपूर्व प्रस्तुति है, जिसमें माया के जीवन और उनके संघर्षों को विपिन ने एक स्त्री की निगाह से देखने और समझने की कोशिश की है। उम्मीद करती हूँ कि हिंदी के पाठकों की इसे स्वीकृति मिलेगी और माया का जीवन उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा.
- सविता सिंह
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बीसवीं सदी की सबसे प्रभावशाली अफ्रीकी -अमेरिकी व्यक्तित्वों में से एक माया एंजेलो, ने अपने जीवन और लेखन से सम्पूर्ण संसार पर एक छाप छोड़ी. 1969 में प्रकाशित माया एंजेलो की पहली आत्मकथा, आई क्नो व्हाई दा केडङ बर्ड सिंग्स ' अश्वेत समाज के किये यह एक जरुरी किताब आंकी गयी और नामचीन लोगों द्वारा इसकी ताक़ीदगी की गयी कि सभी जागरूक लोग इसे पढ़ें और खासकर युवतियों को तो इस पुस्तक को अवश्य ही पढ़ना चाहिए. 1970 में रैंडम हाउस से प्रकाशित माया एंजेलो द्वारा लिखित इस प्रथम आत्मकथा संग्रह को राष्ट्रीय अवार्ड से नवाज़ा गया. द न्यूयॉर्क टाइम्स, पेपरबैक नॉन फिक्शन लिस्ट में माया एंजेलो की आत्मकथा लगातार दो साल तक बेस्ट सेलर लिस्ट में शामिल की गयी. यह किताब दरअसल किसी रोमांटिक शिल्प की कारीगरी नहीं था, यह एक स्त्री का जीवन-दर्शन था जो माया एंजेलो ने स्वयं जीया था उस वक़्त जब अश्वेत लोगों के लिए उन्नति के सभी दरवाज़े, खिड़कियां और रोशनदान बंद थे.
उसी अश्वेत समाज में से निकलकर माया एंजेलो अमेरिका के बौद्धिक समाज में एक नयी तरह की नायिका के रूप में अस्तित्व में आयी जो अपने निजी जीवन को सार्वजनिक करने का हौंसला रखती थी, जिसने अपने अश्वेत और एक स्त्री होने का दर्द एक साथ सहा. माया एंजेलो के इस प्रथम आत्मकथा संग्रहकी ऑडियो बुक, ई-बुक के द्वारा पूरे विश्व में पढ़ी जा रही है. माया एंजेलो की आत्मकथाओ का संसार की कई भाषाओँ में अनुवाद उपलब्ध है. दुनिया भर ने माया की जीवन-गाथा को उनकी आत्मकथाओं द्वारा जाना। माया एंजेलो के जीवन में कई सूत्र छिपें हैं जिसमे स्त्री- जीवन की सफल- कहानियां दर्ज हैं. माया एंजेलो अपने जीवन की सभी गलतियों को स्वीकारती है उन्हें अपने बगल में बैठे पुरुष पर नहीं धकेल देती. स्त्री सशक्तिकरण का सटीक मुहावरा माया एंजेलो के यहाँ फलित होता दिखता है.
माया एंजेलो ने अपने जीवन में कई व्यवसाय अपनाये और जम कर काम किया अपने जीवन के सभी गुण -दोष को शालीनता से स्वीकार किया.
लेखन के अलावा, फिल्मों, गीत संगीत, थिएटर में माया एंजेलो ने खूब काम किया और इन सभी अभिव्यक्तियों में शामिल होने के परिणामस्वरूप वे हरफनमौला व्यक्तित्व बन कर दुनिया ने सामने आयी. उनके व्यक्तित्व के तमाम पक्षों को लेकर और उनसे जमे तामाम पहलू इस किताब में समेटने की कोशिश की गयी है , साथ ही उनके सामाजिक, पारिवारिक और राजनैतिक सम्बन्ध, उनके द्वारा की गयी देश-विदेश की यात्राएं और उनके जीवन को घना करने वाले अनेकों प्रसंगों को शामिल करने की कोशिश के परिणाम स्वरुप माया एंजेलो की यह किताब लिखनेकी कोशिश की गयी है. माया एंजेलो की पाक - विद्या की एक विहंगम झलक से पाठकों को रुबरु करवाने की कोशिश करते हुए एक अध्याय शामिल किया है. कविताओं के लिए अलग अध्याय के साथ माया के बाल लेखन पर भी कुछ लिखने का प्रयास किया गया है, कुल मिला कर एक जीवन में कई जीवन को एक साथ जीने वाली प्रसिद्ध लेखिका को समझने के क्रम में यह किताब अस्तित्व में आयी है.
माया एंजे लो को पढ़ते हुए उन से सम्बंधित कई चीजें सामने आयी. उन पर काम करने के दौरान सबसे बड़ी चुनौती तो यही थी कि माया एंजेलो का जीवन और उनकी लिखी आत्मकथाऑ के बीच दोहराव न हो और यह किताब एक स्त्री की पीड़ा रुदन न बन कर रह जाए बल्कि जिस तरह बुलंदी से माया ने पीड़ा को बुनते हुए अपनी उँगलियाँ मजबूत की उसी तरह एक सशक्त पुस्तक हिंदी पाठकों के लिए तैयार हो सके.
आशा है जो पाठक माया एंजेलो के जीवन के पहलुओं से रुबरु हो चुके हैं वे इसे दुबारा पढ़ कर लाभान्वित होंगे और नए पाठक सम्भवतः माया एंजेलो के जीवन से गुजरते हुए उस समय के वातावरण और स्त्री के जीवन की दास्तान से परिचित होंगे.
हिंदी के अलावा दूसरी हिंदीतर भाषाओँ में स्त्री आत्मकथा लेखन काफी पहले से परिपक्व था. पर स्त्री का जीवन तमाम आधुनिकता के बावजूद कुछ कदम ही आगे बढ़ सका था.
1876 में बंगाली स्त्री सरबाशी घोष द्वारा लिखी गयी जीवनी "बर्ड्स इन अ केज' से लेकर 1968 में माया एंजेलो की आत्मकथा से लेकर आज तक स्त्री के लिए कमोबेश स्तिथियाँ काफी जटिल रही हैं और समय के साथ और जटिल होती जा रही हैं. सामाजिक सरंचना के बदलाव में टूट फूट हो रही है उसका खामियाजा स्त्री को ही भुगतना पड़ रहा है. एक अश्वेत स्त्री के तौर पर जब माया अपने संघर्षों को लिखती हैं तो वह अपने साथ उन तमाम स्त्रियों की दास्तान के कुछ अशं अपनी आत्मकथा में अन्यास ही ले आती हैं जो उनके समय में अपने जीवन की दुविधाओं से साक्षात्कार कर रही थी. माया एंजेलो का पूरा जीवन ही दरअसल एक दस्तावेज़ है |
धन्यवाद शोभा जी। इस किताब को हासिल करने के लिए मुझसे 8375072473 पर संपर्क किया जा सकता है।
ReplyDeleteज्योति वैष्णव, गुजरात यूनिवर्सिटी अहमदाबाद।
Deleteमैं "मैं रोज़ उदित होती हूं" बुक ऑनलाइन मंगवा सकती हु???
शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteSunny Nehra
ReplyDeleteSunny Nehra
True News India
ReplyDeletehelps people those in
Thook Jihad is Real Please be aware of Spit Jihad
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