Wednesday, September 04, 2013

पूनम शुक्ला की कवितायें - कल पी०टी० एम० है

पूनम शुक्ला---------------











1- कल पी० टी० एम० है
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सज रही है क्लास
कल पी० टी० एम० है
जल्दी लगाओ चार्ट
कल पी० टी० एम० है ।

कोने का कचरा साफ करो
जल्दी में हूँ माफ करो
लगाओ फ्लावर पॉट्स
कल पी० टी० एम० है
कल सब बन आना  हॉट्स
कल पी० टी० एम० है ।

कल चेहरे पर हो स्माइल
बच्चों की रखना प्रोफाइल
पेरेन्ट्स को लगाना ऑयल
उनके सिग्नेचर करना फाइल
कल पी० टी० एम० है ।

चाहे बच्चा हो दुष्ट शैतान
न करना उसका फरमान
कहना अभी है थोड़ा नादान
कल होगा अपने देश की शान
कल पी० टी० एम० है ।

इसका नम्बर आया जीरो
पर ये बन सकता है कीरो
दिखता है चिकना हीरो
फिर टेन्सन क्या है वीरों ?

ये है अपना प्यारा जौनी
क्लास में सबको मारे कोहनी
इसकी सूरत थोड़ी रोनी
पर ये बन सकता है धोनी

हमारा स्कूल है सबमें बेस्ट
यहाँ हमको नहीं मिलता रेस्ट
बच्चे चाहे हो जितने वेस्ट
लेना हमको टेस्ट पे टेस्ट

स्टोरी का सही है जीस्ट
कि कल हो सकता है फीस्ट
कल पी०टी० एम० है ।


2- और तृप्त हो जाऊँगी
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कभी- कभी
झूठा इल्जाम 
लगा दिया जाता है मुझपर
जो मैंने कभी
किया ही नहीं होता
नम हो जाती हैं आँखें
ठहर जाती हैं
मेरी उड़ती पाँखें
बहने लगती है
आँसुओं की धार
शिथिल हो जाती है
साँसों की आर- ज़ार
पर क्या ऐसा होना चाहिए ?
अमृत जल है मेरे भीतर
सँजो रखा है उसे मैंने
तृप्त करता है वो मुझे
अबकी लगाने दो झूठा इल्जाम
समा जाऊँगी अपने ही सरोवर में
सराबोर हो जाऊँगी,
अपने अमृत जल से
और तृप्त हो जाऊँगी ।



3- एक तीता : एक मीठा
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जोर की घरघराहट है
आसमान में,
अभी- अभी निकला है एक प्लेन ।
कल्पना चावला भी तो गई थी
आसमान में,
ऊँचाइयों को छूने
हिमालय पर चढ़ चुकी हैं बेटियाँ
पर अभी भी है फर्क
गाँवों में,
बेटों और बेटियों में ।

तीन दिन पहले
चचेरी भौजाई ने
जनी थी बेटी
छाया है मातम वहाँ
आज गाय ने जनी है बछिया
खुशी छाई है यहाँ 

बछिया ?
पर वह भी तो है बेटी !

इतना स्वार्थ लोलुप है इंसान
हर जगह जोड़ता है
बस घाटा नफा
यहाँ तक कि अपने बच्चों में भी !

अपने ही खून की बूँद
अपने ही जिगर का टुकड़ा
एक तीता,एक मीठा ।


4- पहचानो
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क्या आँसुओं से लिपटी
उस आवाज़ को 
सुन सके हो तुम,
नारी के आँसुओं की आवाज़
जिनमें ममता भी छिपी है
और आदर्श भी
जिनमें विनम्रता है असीम
और सहज कोमलता भी ।

तुमने सुनी है
प्यार,ममता और
विनम्रता की आवाज़
लेकिन क्या
गए हो कभी
उस आवाज की
गहराइयों में
जिसकी जड़े हैं
बड़ी कठोर,
जो बनी हैं बज्र से
आग से
जिनमें प्यार भी है
और आफताब भी
जिनमें आशीर्वाद भी है
और अभिशाप भी ।

वह आग,वह आफताब
कर सकती है
तुम्हारा विध्वंश
वह अभिशाप गिरा सकता है
तुम्हें कटे वृक्ष की तरह,
वह शक्ति कर सकती है
तुम्हारा सर्वनाश ।

इसीलिए कहती हूँ 
कि पहचानो,
आँसुओं से लिपटी
उस आवाज़ को पहचानो
और उसका हास्य न बना कर
नतमस्तक हो जाओ ।


5- वक्त की किस्मत मिटी है
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फिर  कहीं 
औरत झुकी है
फिर कहीं
इज्जत लुटी है
आज दो हैं
कल चार होंगे
रोज ही 
औरत पिटी है ।
क्यों चली है
ऐसी आँधी ?
वक्त की
किस्मत मिटी है ।

डरता समय है
कि कहीं
कुछ ऐसा पल
आ न जाए
आदमी हो 
बिल्कुल अकेला
औरतें कह दें 
बाय- बाय ।

6-  मैं नहीं हारूँगी
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सच बोल कर हर बार
क्यों हार जाती हूँ मैं ?
मैं जकड़ नहीं पाती खुद को
झूठ के आवरण में
महसूस होता है
कैसा बँधा- बँधा सा
जैसे अंडे के भीतर 
एक पक्षी का बच्चा
छटपटाता हो 
चंद साँसों की खातिर
जैसे डुबो दिया गया हो
चेहरा किसी बाल्टी में ।

मैं तो फूलों सा खिलना चाहती हूँ
मैं तो नदी सा बहना चाहती हूँ
मैं तो पक्षी सा उड़ना चाहती हूँ
इसलिए झूठ नहीं बोल पाती
पर मेरे आस पास के लोग
उसका फायदा उठाते हैं
मुझे तरह- तरह से हराते हैं
क्या मैं हार जाती हूँ ?

एक कैमरा लगा हुआ है
सबकी तस्वीर लेता हुआ
वो मुझे हारने नहीं देगा
मुझे पता है
मैं नहीं हारूँगी ।







नाम - पूनम शुक्ला
जन्म - ज्येष्ठ पूर्णिमा ,२०२९ विक्रमी । 
26 जून 1972
जन्म स्थान - बलिया , उत्तर प्रदेश ,


शिक्षा - बी ० एस ० सी० आनर्स ( जीव विज्ञान ), एम ० एस ० सी ० - कम्प्यूटर साइन्स ,एम० सी ० ए ० । चार वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान की ,अब स्वतंत्र लेखन मे संलग्न ।
कविता संग्रह " सूरज के बीज " अनुभव प्रकाशन , गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित ,विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर कविताओं का प्रकाशन ।
पता - 50 डी ,अपना इन्कलेव ,रेलवे रोड,गुड़गाँव - 122001
मोबाइल - 9818423425

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