Friday, April 19, 2013

मुझे परदे बहुत पसंद हैं - कुँवर रविन्द्र



कुँवर रविन्द्र   



" कुँवर  रविन्द्र "      जी की अद्भुत चित्रकारी से सुसज्जित  धर्मयुग, हंस, कथादेश, कल के लिए, नवभारत टाईम्स के साथ देश की व्यावसायिक - अव्यवसायिक पत्र-पत्रिकाओं व प्रतिष्ठित साहित्यिक पुस्तकों के मुख्यपृष्ठों पर अब तक 17000 ( सत्रह हज़ार ) रेखाचित्र व आवरण छायाचित्र प्रकाशित हो चुकें हैं, चित्रकारी के साथ साथ रविन्द्र जी सुन्दर  मौलिक  कविताएँ  भी  लिखतें हैं, रंगों .. शब्दों और भावों  के  अद्भुत संगम  के साथ प्रस्तुत है कुँवर रविन्द्र जी की कुछ  कवितायेँ  फरगुदिया पर  आपके लिए .. "














1-




चलो छत पर 

गमलों में रोप दें 

पीले गुलाब

शहर में 

धूप कुछ कम हो गयी है ...
.. ..














2-
मुझे परदे बहुत पसंद हैं
मुझे ....

परदे बहुत पसंद हैं
कम से कम

मेरी औकात


मेरी असलियत तो छुपा लेते हैं
मुझे ....

परदे बहुत पसंद हैं
सच दिखाना हो

तो झूठ 
पर परदा

और झूठ छुपाना हो


तो सच पर परदा
मुझे ....

परदे बहुत पसंद हैं


क्योंकि यही तो
हमारे तुम्हारे बीच है 

~ ~ ~ ~ 





3- 




आदमी में सब कुछ है

सिर्फ 

आदमियत नहीं है
और चिड़िया !

सिर्फ चिड़िया है 
उसमें और कुछ भी नहीं है
आदमी
 चिड़िया बनना चाहता है
चिड़िया 
आदमी नहीं बनना चाहती
चिड़िया आदमी से कहती है 
तुम आदमी हो आदमी बने रहो
 आदमी मुस्कुरा देता है
 चिड़िया नहीं जानती
 कि आदमी क्यों मुस्कुरा रहा है
 क्योकि वह चिड़िया है 
वह नहीं जानती 
कि आदमी 
अवसर की तलाश में है 
अवसर मिलते ही 
नोच डालेगा 
उसके सारे पंख 
और भून कर 
खा जायेगा 
क्योकि आदमी में 
गिद्ध है , बाज़ है 
कौआ और उल्लू भी है 
है नहीं तो सिर्फ 
आदमियत नहीं है 

*****




4-


मैंने खिड़कियाँ खोल दी हैं 

खोल दिए रौशनदानों के पट 

सारा घर रौशनी से भर गया

सुवासित हो गया तुम्हारी सुगंध से
दरवाजे भी खोल देता हूँ 
खिडकियों से जो दिख रहा है 
जंगल,पहाड़ ,नदियों का दृश्य 
शायद आ जाये भीतर 
सजा लेना चाहता हूँ
अपना पूरा घर
मै दरवाजों खिडकियों पर

परदे नहीं लटकता
 ~ ~ ~ 



5- 

सबकुछ वैसा का वैसा





मेरे घर में सब कुछ सहेजा हुआ है अब तक

खिडकियों में तुम्हारी शक्ल

दरवाज़ों पर पांव 

आँगन में खिलखिलाहट 

कमरों में तुम्हारी गंध 

बिस्तरों पर तुम्हारी छुअन
अब तक चिपकी हुई है 
दीवारों पर तुम्हारी मुस्कुराहट 
सब कुछ वैसा का वैसा
आले में हिदायतें 
आलमारियों में ढेर सारी यादें 
करीने से जमी हुई हैं 
कैलेण्डर पर बीते दिनों का हिसाब 
सबकुछ वैसा का वैसा
पर हाँ कहीं तस्वीर नहीं हैं
**************






कुँवर रविन्द्र
चित्रकार, कवि
जन्म : 15  जून 1957
सम्मान सृजन सम्मान, मध्यप्रदेश -1995
कला रत्न : बिहार -1997
सम्प्रति : छतीसगढ़ विधानसभा सचिवालय में कार्यरत

संपर्क : एफ-6, पी.डब्लू.डी कालोनी, [सूर्या अपार्टमेंट के सामने ] कटोरा तालाब,
रायपुर (छत्तीसगढ़) ४९२००१
: 0771 - 4268614
ई-मेल
:
k.ravindrasingh@yahoo.com
ब्लॉग
:
kunwarravindra.blogspot.com


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