Friday, August 15, 2014 को shobha mishra द्वारा प्रकाशित5 comments
" जब नहीं छिड़ी होती जंग सरहदों पर
तब भी तो जूझते रहते हो तुम
लड़ते रहते हो अनेको जंग भीतर और बाहर
जब पड़ रही होती है बाहर भयानक बर्फ
सीने में धधकता सा रहता है कुछ
और रेत के बवंडरों में मन में उमड़ घुमड़
बरसता सा रहता है कुछ
जाने कैसे निभाते हो...
Wednesday, August 06, 2014 को shobha mishra द्वारा प्रकाशित1 comment
बुद्ध और नदी::-----------------------
जंगल बुद्ध को पुकार रहे थे
आओ कि बचा लो हमें
जंगल औरत होकर चिल्ला रहे थे
और पहले से भी ज्यादा काली पड़ गई थी उनकी देह
'देखो, चितगोंग में मैं गिरा और टूट गया अपने ही बामियान...