Saturday, October 05, 2013

एक औरत: तीन बटा चार - पुस्तक समीक्षा

 
    
एक औरत: तीन बटा चार - पुस्तक समीक्षा
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             बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कहानी संग्रह "एक औरत: तीन बटा चार " चौदह कहानियों में सिमटी स्त्री जीवन से जुडी त्रासदी, वेदना का एक महाकाव्य है! कहानीकार सुधा अरोड़ा जी लेखिका होने के साथ-साथ समाज- सेविका भी है, लेखिका ने अपने लेखन  में स्त्री- परामर्श से जुड़े अनुभवों के आधार पर यथार्थ रूप को कहानियों में रूपांतरित किया है ! उच्चवर्ग, मध्यमवर्ग और निम्नवर्ग की महिलाऐं घर-गृहस्थी में  लगभग एक ही तरह की पीड़ा अपने भीतर दबाएँ एक लम्बी उम्र बिता देतीं हैं या उससे निवारण के रूप में खुद को हमेशा के लिए मौन रखने का दुखद रास्ता अपना लेतीं हैं !

  संग्रह के आरंभ में वरिष्ठ कथाकार-चिंतक मुद्राराक्षस जी का 'वागर्थ' में प्रकाशित आलेख का अंश है जिसमें उन्होंने  संग्रह की बेहद मार्मिक कहानी "अन्नपूर्णा मंडल  की आखिरी चिट्ठी "का विश्लेषण करते हुए उसके मार्मिक अंश को उभारा  है ! आलेख में मुद्राराक्षस कहानी का विश्लेषण करते हुए लिखतें हैं कि "सुधा अरोड़ा की वह स्त्री जो स्त्री भी है और केंचुओं का गुच्छा भी ! इस वास्तु सत्य को लेखिका विश्वनीयता देने में सफल हुई है ! पुरुष समुदाय के लिए मत्स्य कन्या , आधी कन्या ,, आधी मछली , खासी विश्वसनीय रही है , पर वह पुरुष की कृति है !"

संग्रह की पहली कहानी "एक औरत: तीन बटा चार" किसी भी वर्ग की त्रासदी झेलती स्त्री की गाथा है, घर की चार दीवारी में किस्तों में 
बटी  अपने बच्चों में घर के  कोने-कोने से लिपटी खुद के वजूद से बेखबर है, घर से बाहर है तो भी उसका उसका एक हिस्सा घर में ही रह जाता है ! जीवन भर घर को संभालती, बच्चों की देखभाल करती अंततः छड़ी बनने में ही अपने जीवन की सार्थकता समझती है !

  
"अन्नपूर्णा मंडल की आखिरी चिट्ठी " संग्रह की सबसे सशक्त और मार्मिक कहानी है, अपने पिता को लिखे गए एक ख़त में कहानी की नायिका दो बच्चियों की माँ अन्नपूर्णा ने अपनी विवशता लिखने के बाद मृत्यु को किस तरह अपना लिया इसको लेखिका ने बेहद संवेदनशील भाव में लिखा है , कहानी पढ़ते-पढ़ते कभी अवसाद की सी स्थिति आ जाती है तो कभी- कभी मन भावुक हो उठता है ! ख़त में नायिका ने अपनी बेटियों का जिक्र करते हुए लिखा है-
"जब ये घुटनों  घिसटती हैं, मुझे केंचुएं रेंगते दिखाई देतें हैं और जब बाहर सड़क पर मैदान के पास गीली मिट्टी में केंचुओं को सरकते देखती हूँ तो उनमें इन दोनों की शक्ल दिखाई देती है ! मुझे डर लगता है, कहीं मेरे पति घर में घुसते ही इन पर चप्पलों की चटाख- चटाख बौछार न कर दें या मेरी सास इन पर केतली का खुलता हुआ पानी न डाल दे ! मैं जानतीं हूँ , ये मेरा वहम है,पर यह लाइलाज है और मैं इस वहम का बोझ नहीं उठा सकती !"
" इन दोनों के रूप में तुम्हारी बेटी तुम्हें सूद सहित वापस लौटा रहीं हूँ ! इनमें तुम मुझे देख पाओगे शायद ! "
" बाबा! तुम कहते थे न - आत्माएं कभी नहीं मरती ! इस विराट व्योम में, शुन्य में , वे तैरती रहतीं हैं - परम शांत होकर ! मैं उस शांति को छू लेना चाहती हूँ ! मैं थक गयीं हूँ,बाबा !हर शारीर के थकने की अपनी सीमा होती है ! मैं जल्दी थक गयी , इसमें दोष तो मेरा ही है ! तुम दोनों मुझे माफ़ कर सको तो कर देना !" पूरी कहानी पितृसत्तात्मक समाज में त्रासद झेल रही एक मजबूर स्त्री की विरह गाथा है लेकिन कहानी की ये आखिरी पंक्तियाँ पढ़ते-पढ़ते आँखें नाम हो जातीं हैं !

संग्रह में "रहोगी तुम वही", "सत्ता संवाद", "करवाचौथी औरत","नमक" कहानियाँ वैवाहिक जीवन में उलझी स्त्री की विवशता का व्याख्यान है ! विवाहउपरांत स्त्री अपना वजूद भूलकर पति के इशारों पर एक यांत्रिक रोबोट की तरह जीवन व्यतीत करती है, इसी का साक्षात् वर्रण है "रहोगी तुम वही" शीर्षक कहानी में ! दो खण्डों में विभाजित कहानी में पति कैसे हर परिस्थिति में पत्नी को अपने इशारे पर 
नचाना चाहता है ! उदाहरनार्थ दोनों भाग की कहानी का अंश प्रस्तुत है- 

(एक) "सारा दिन घर-घुसरी क्यों बनी रहती हो, खुली हवा में थोड़ा बाहर निकलो ! ढंग के कपड़े पहनो ! बाल संवारने का भी वक़्त नहीं मिलता तुम्हें तो बाल छोटे करवा लो , सूरत भी कुछ सुधर जाएगी ! पास-पड़ोस की अच्छी समझदार औरतों में उठा-बैठा करो !"

(दो) " यह तुमने बल इतने छोटे क्यों करवा लिए हैं ? मुझसे पूछा तक नहीं ! तुम्हें क्या लगता है छोटे बालों में बहुत खूबसूरत दिखाती हो? यू लुक होरिबल ! तुम्हारी उम्र में ज्यादा नहीं तो दस साल और जुड़ जातें हैं ! चेहरे पर सूट करे या न करे, फैशन जरुर करो !"

   इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए "सत्ता संवाद " कहानी में वैवाहिक जीवन में उलझी - उबी स्त्री की झुंझलाहट का वर्णन है ! "करवाचौथी औरत " कहानी में समाज द्वारा रुढ़िवादी परम्पराओं में उलझाई गयी स्त्री से ज्यादा किस तरह एक जानवर का ख़याल रखा जाता है , उसका वर्र्ण है ! निर्जला करवाचौथ व्रत  रखी हुई सविता ने उस दिन अपनी फ्लोपी नाम की पालतू कुतिया को नोन्वेज खाने को नहीं दिया तो किस तरह उसके पति और बच्चों के मन में कुतिया के प्रति दया भाव उमड़ा इन पंक्तियों से अंदाज़ा लगाया जा सकता है _
   
" छोटी ने खाना देखा तो नाक-भौ सिकोड़े - मुम्म ! आप इसे घास-फूस खाने को क्यों देते हो ? हाउ कैन शी इट दिस राटन फ़ूड ?" फिर फ्लोपी को गोद में लेकर पुचकारा -" ओह माय डार्लिंग, यू र सो हंग्री ! व्हाट अ पिटी !"

"नमक" कहानी में भी वही सिलसिला, पति का हर तरह से ख़याल रखने वाली स्त्री की खाने में नमक कम होने जैसी एक छोटी सी गलती के लिए उसे पहले पति अपमानित करता  है फिर उसके मायके वालों से इसकी शिकायत करता है, मायके वाले भी जमाई जी का पक्ष लेते हुए अपनी बेटी को ही सलीके से रहने  और अपने पति का ध्यान रखने की नसीहत देतें हैं !

"ताराबाई चाल : कमरा नंबर एक सौ पैंतीस ", " डेजर्ट फोबिया उर्फ़ समुद्र में रेगिस्तान", " डर ", " तीसरी बेटी के नाम - ये ठंडे, सूखे , बेजान शब्द ", बड़ी हत्या, छोटी हत्या ", सुरक्षा का पाठ", डी" दहलीज़ पर संवाद", "पीले  पत्ते" कहानियों में हर उम्र, हर वर्ग की स्त्री की विवशता को लेखिका ने बहुत ही मार्मिक  ढंग से प्रस्तुत किया है!

 कहानी "बड़ी हत्या, छोटी हत्या" में पित्रसत्ता के जहरीले मकड़जाल में उलझे समाज के खौफनाक चेहरे को दिखाया गया है, भ्रूण हत्या जैसे घृणित कृत्य को आज भी हमारे समाज में बेख़ौफ़ अंजाम दिया जा रहा है ! "डर" कहानी का छोटा सा अंश प्रस्तुत है-

"सास ने दबी लेकिन तीखी आवाज़ में कहा - "सुण्यो कोनी ? ज्जा इब "!
दाई ने मायूसी दिखाई - भोर से दो को साफ़ कर आई ! ये तिज्जी है , पाप लागसी !"

सास की आँख में अंगारे कौंधे -
"जैसा बोला,कर ! बीस बरस पाल पोस के आधा घर बाँध के देवेंगें , फिर भी सासरे दांण- दहेज़ में सौ नुक्स निकालेंगें और आधा टिन मिट्टी का तेल डाल के फूंक आयेंगें ! उस मोट्ठे जंजाल से यो छोट्तो गुनाह भलो !"

बोधि-पर्व द्वारा प्रकाशित सुधा अरोड़ा जी का यह कहानी संग्रह आधुनिक समाज में स्त्री की मौजूदा स्थिति का बखूबी 
मूल्यांकन करता है ! स्त्री-विमर्श के हर पहलुओं को समेटे इस संग्रह को पढ़कर रुढ़िवादी समाज की आँखें खोलना , उनके असली चेहरे से परिचित होना जरुरी है !
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शोभा मिश्रा
लेखिका, ब्लॉगर 
गृहिणी 



   समीक्षित पुस्तक- एक औरत : तीन बटा चार , मूल्य: १० रुपये , बोधि प्रकाशन , जयपुर , दूरभाष : ०१४१-२५०३९८९,०९८२९०-१८०८७ , इ-मेल :bodhipustakparv@gmail.com

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