Thursday, April 25, 2019

डर- सपना सिंह





डर
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"हम खूब दावे कर लें कि स्त्रियों के प्रति सदियों से स्थापित सोच में बदलाव आया है .. फिर क्यों आज भी जन्म से ही एक अंजाना डर उनके जीवन का हिस्सा बन जाता है... और उस डर को वे पीढ़ी दर पीढ़ी प्रत्यारोपित करती जा रहीं हैं.
कहानीकार सपना सिंह की कहानी 'डर' सामजिक परिवेश में स्त्रियों के प्रति उस विचारधारा को उजागर करती है जो हर क्षण उनमें डर की पौध को खाद-पानी देकर सींच रही है!"





  लड़की के साथ गैग रेप। भीगा तैलिया आंगन में फैलाते हुये उसके कानों में टी.वी. पर आती आवाज टकराई लॉबी में रखा टी.वी. लगातार अमंत्रित करता है ब्रकेंग न्‍यूज किचन की ओर जाते उसकी निगाह टी.वी. पर पड़ती है न्‍यूज रीडर लगातार पूरे एक्‍साइटमेनट के साथ बोल रहा है एम.बी.ए. की छात्रा पढ़कर लौटते वक्‍त कार में लिफट ले लेना आफत न्‍यौतना ही तो है।

“सुमि, कहां खोई हो... मेरे मोजे कहां हैं...? कितनी बार कहा, जूतों के साथ ही रक्‍खा करो...’’ पतिदेव का कर्कश स्‍वर कानों से टकराया... वह आंटा माड़ना छोड़ मोजे ढूढ़ने लपकी। हर बार इसी सब के लिये झाड़ पाती है, मोजे, जूते, रूमाल, मोबाइल। यही तीन कमरों का घर... वही दो एक मेज... वही अलमारियां...फिर भी वहीं सब चीजों के लिये कच-कच उसका बड़बड़ाना एक बार शुरू होता है तो जल्‍दी खत्‍म होने पर नहीं आता.... मेरी चट्टी बनियाइन... सही जगह पर क्‍यों नहीं रखती? अब वह तो अपने हिसाब से सही जगह पर ही रखती है, पर उसकी सही जगह अक्‍सर पतिदेव के लिये गलत ही होती है अब तो, इसी बात पर मूड़ ऑफ। ये मर्द और इनका मूड़... इनकी बड़-बड़ से क्‍या हमारा मूड़ नहीं बिगड़ता? पर जतायें किसे...? चुप रहो तो कहेंगे घर पर रहना बेकार बोलों तो सुनेंगे ही नहीं.... जैसे उनसे नहीं दीवार से कह रहे हो.... थोड़ा तेज बोलों तो, कहेंगे.... चिल्‍लाती क्‍यों रहती हो हर वक्‍त... ब्‍लप्रेशर बढ़ जायेगा... गिर पडो़सी किसी दिन भट्ट से...।

“मम्‍मी .... चोटी करो...।” बेटी कंघा लेकर खड़ी है।

’’करती हूँ... पहले दूध खत्‍म करो।‘’

‘पहले चोटी करो... वही तुनकता उददण्‍ड’’ स्‍वर... जो उसे भीतर तक खदबदा डालता है, उसने उस स्‍वर को नजर अंदाज किया और दूध में बोर्न्‍विटा मिलाने लगी।

‘’मम्‍मी... जल्‍दी करो... ऑटो आ जायेगा ....।‘’

बेटी बेसब्र हो रही है मुंह से निकलते ही बात पूरी हो जानी चाहिये... वह भुनभुनाते हुये बेटी के बाल बनाने लगी।

’कस के करो-....’

’तुम ठीक से... सीधे खड़ी रहो...।‘’ उसने बेटी को डपटा....

’ढीला कर रही हो...’ बेटी तुनकी और अपने बाल छुड़ाकर शीशे के सामने खड़ी हो खुद से चोटी बनाने लगी।

जब मेरा किया पसंद नही आता तो... खुद ही किया करो... अब से मत आना मेरे पास कहते हुये कुछ याद आ गया बहुत पहले का कोई दृश्‍य... इतनी बड़ी लड़की अपनी मां से भी लम्‍बी... मां से अपनी दो चूटिया गुथवाती... इसी तरह मां को टोकती झुझंलाती...। क्‍या दुनियां में किसी लड़की को अपनी मां की गुथी चोटी पंसद नहीं आती...?

पतिदेव का स्‍पेशल कमेंट है... तुम मां- बेटी की पटती नहीं....।

’मम्‍मी। पिन लगा दो...’ वो स्‍कूल का दुप्‍पट्टा लिये खडी़ है... अब इसमें भी झिक-पिक । इस वर्ष आठवी से ही सलवार कुर्ता चल गया है... तर्क है लड़के सीढि़यों के नीचे खड़े हो, झाकते हैं स्‍कर्ट खतरनाक है... निचली क्‍लास की स्‍कर्ट भी डिवाइडर टाइप की हो गई है। कुछ भी देख पाने पर पूरा अंकुश। उसकी आंखे बेटे के मासूम चेहरे पर अटक जाती है, ये चेहरे... कैसे शैतान चेहरों में तब्‍दील हो जाते हैं।

उसे याद आता है... वेा चचेरा भाई, उससे 6-7 साल छोटा, वह पूरी तरह बड़ी और बो बड़े होने की प्रक्रिया से गुजरता हुआ। इस दोपहर नॉवल पढ़ते-पढ़ते वह नींद में जा पहुंची थी... गले में सरसराहट... उनींदी आंखो में कौंध सा गया चेहरा... जैसा किसी रहस्‍य लोक में घुसने की चोरी करते पकड़ा गया हो उसने किसी को बताया नहीं... पर दिनों तक अपने उस भाई से नजरे चुराती रही थी।

टी.वी. पर विज्ञापन चल रहा है किसी सैनेटरी पैड का ... हवा की तरह हल्‍की फुल्‍की लड़की... कुछ ज्‍यादा फुदक रही हैं पीरियड्स में उतना घूमना फिरना? पर उसे तो दुनिया की सेाच बदलती है न... जैसे, सिर्फ स्‍त्राव ही परेशानी का सबब हो जिससे बेतरीन पैड बैड लगाकर छुटकारा पाया जा सके.... उन दिनों की खिन्‍नता, दर्द असुविधा.... ये सब... इनका क्‍या करे....? अब बाजार में ये, ये चीज भी मौजूद है.... जिसका इस्‍तेमाल तुम्‍हें पूरी स्‍वच्‍छता देगा।

‘मम्‍मी ये क्‍यो है’ बेटे की सहज जिज्ञासा।‘

’ये-ये लड़कियों का ड्रायपर है...’ पांच साढ़े साल पांच साल के बच्‍चे को और क्‍या बताये ? जैसे तुम छोटे थे तो पहनते थे न वैसे ये बड़ी लड़कियों का...।

’दीदी का भी’

’हां...।‘’



‘दीदी... क्‍या शू शू करती हैं...’ इतने में दीदी ने एक चपत उसके सिर में लगाई, मम्मी की ओर रोष से देखते हुये। भूनभूनाई.... मम्‍मी... कुछ भी बताती रहती हो’ बड़ी होती बेटी उससे सं‍बंधित हर बात में सकुचाई रहती है, पैड छुपाकर लाया करो ऐसे क्‍यों लाती हो... पापा से क्‍यों मगाती हो।

वो भी तो थी इस उम्र में ऐसी ही.... कपड़ा फाडने हुये लगता अदृश्‍य हो जाये, कपड़े की चिडर्र किसी कानों तक न पहुंचे और फिर गंदे कपड़े को अखबार में लपेटकर बाउंडरी के उस पार उछालना...ऐसे कि वह इधर न गिरकर उस पार पानी भरे प्‍लॅाट में गिरे... और ये सब होते बीतते कोई देख न ले... आंगन में चारपाई पर लेटे धूप सेंकते पापा या फिर वहीं चटाई पर बैठ स्‍वेटर बुनती मां... या फिर छोटे भाई बहन या बगिया की घांस निकालता चपरासी, वो छोटे छोटे पल कितने भारी होकर गुजरते थे, अब ये पैड बैड होने से कितनी सहूलियत हो गई है तब कहां मिलते थे छोटे कस्‍बों शहरों में...।

नयी पत्रिका आई है, फुरसत में वह इन हल्‍की फल्‍की पत्रिकाओं को पढ़ना पंसद करती है सबकुछ तो होता हो इनमें ड्रांइंग रूम से लेकर बेडरूम तक में एक औरत को कैसे होना रहना चाहिये खुद से लेकर घर और आस पड़ोस सब सुन्‍दर साफ और व्‍यवस्थित,सबसे पहले सवाल-जवाब के कॉलम पढ़ती है वो विशेषज्ञों द्वारा दिये... गये जवाब... कितने बदल गये हैं... आजकल के सवाल पहले जहां इन कॉलमों में पति द्वारा उत्‍पीड़न बचपन में हुये यौन उत्‍पीड़न से उपजे अपराध बोध विवाह पूर्व प्रेम प्रसंग को लेकर उपजा अर्न्‍तद्द ... आदि से संबंधित सवाल होते थे... वहीं अब सवाल चौकाते हैं ज्‍यादातर सवाल रिलेशनशिप से जुडे़ होते हैं, एम.बी.ए. की छात्रा का सवाल है-

अपने ब्‍वायफ्रेण्‍ड के सांथ उसके सेक्‍सुअती रिलेशन है... क्‍या ये गलत है? दूसरी सवाल है- क्‍या शादी से पहले अपने पार्टनर के सांथ सेक्‍स एंजॉय करना गलत है? पर जब मेरी उम्र की लड़कियां शादी करके सेक्‍स एंजॉय कर रही है तो मैं क्‍यों नहीं...।

ऐसे सवाल और उनके वैसे ही जवाब इंगित करते हैं वक्‍त बहुत तेजी से बदला है... अब सेक्‍स टैबू नहीं रहा... शायद छोटे शहरों कस्‍बों में अब भी हो... पर बड़े शहरों में सेक्‍स पिज्‍जा बर्गर की तरह तेजी से नयी पीढ़ी द्वारा स्‍वीकार्य हो रहा है शायद प्रेम या रिलेशनशिप की अनिवार्यता भी पीछे छूट जाये... एक भूख जिसे पूरा किया जाना... जरूरी हो! कहीं पढ़ा था, अमेरिका, यूरोप में सेक्‍स अनुभव लेने की औसत उम्र सोल‍ह वर्ष है ऐसे आंकड़े सर्वे आजकल प्रतिष्ठित पत्रिकायें खूब करती हैं... उनके रिजल्‍ट भी चौकानें वाले होते हैं। यह सब पढ़-सुन देख डरती है वो...।

डर तो और भी बहुत सारे है... बचपन से आज तक ये डर साथ-साथ रहा है हर वक्‍त हर कहीं... बहुत बचपन की घटनायें... वर्षों डराती रहीं... जाने कौन था वो... जो रात के अंधेरे में 6-7 साल की बच्‍ची की पीठ पर अपने शरीर की रगड़ देता अब तक डरावनी यादों की तरह सिहरा देती है।

पापा के ऑफिस के सभी लोग मेला देखने जा रहे हैं वो भाई बहन भी कालोनी के अन्‍य बच्‍चो की तरह जीप में ठूंस लिये जाते हैं भाई आगे पापा की गोद में वी पीछे छोटे कर्मचारी चपरासियों के साथ कुछ और बच्‍चे भी वह किसी की गोद में थी, सारी राह कुछ चुभता सा.. नीचे की ओर... दर्द चुभन से बेहाल...वह उठना चाहती पर बुरी तरह ठंसी जीप लौटते में वह जिदिया गई थी... आगे... बैठेगी... पापा के पास.... भाई को पीछे जाना पडा़ था...। क्‍या उसे भी वैसे ही कुछ चुभा होगा?

और ये आज कल की लड़कियां... जानबूझकर जोखिम मोल लेती किसी से भी लिफ्ट ले लेना... ब्‍वायफ्रेड से अकेले में मिलना... शार्टकट के चक्‍कर में सुनसान रास्‍ते जाना... ये सब आफत को न्‍यौता देना ही तो है, अखबार चैनल सनसनी बरदात सारे दिन ब्रेकिंग न्‍यूज... आरूषिद्व रूचिका शिवानी... डर ...डर... डर।

ढेरों घटनायें... देर तक सोचती है वो, कैसे, क्‍या करने पे बचा जा सकता था.. किसने किया होगा... आरूषि का कत्‍ल? क्‍यों किया होगा रूचिका ने आत्‍महत्‍या...? और वह हाई प्रोफाइल पत्रकार शिवानी भटनागर! कितने अनुतंरित सवाल।

एक लड़की का जन्‍म लिया है तो उम्र भर सिर्फ ‘बचने’ की सोचो अपने आपको सुरक्षित रखने की जुगत इतनी बड़ी बन जाती है... कि बाकी हर संभावना इसके आगे बौनी।

““मम्‍मी ! मैं जा रही हूँ ... देर हो रही है... ” बेटी का स्‍वर झुझलाया हुआ.... मतलब इरा अभी नहीं आई थोड़ी दूर पर रहने वाले मौसेरे भाई की बेटी की क्‍लास में है दोनों सांथ ट्यूशन जाती हैं सुविधा भी सुरक्षा भी एक से भले दो...। पर उसे दो मिनट भी देर हुई नहीं कि, इनका झुझलाना शुरू।

“मम्‍मी... फोन करो मामी को इरा चली का नहीं...”

“आती होगी....।”

“कल से ... मैं .... नहीं रूकूगी ... उसकी वजह से हमेशा लेट होते है...। “पीछे बैठना पड़ता है... जगह नहीं मिलती....।” बेटी की आवाज तल्‍ख है।मम्‍मी की ये सब बाते उसकी समझ में नही आतीं। इसके साथ आओ.... अकेले मत जाओ... सुनसान रास्‍ते से मत जाओ...। लेकिन, क्‍या वो चाहती है ये सब करना कहना.... कितनी मन्‍नतो से मांगी थी बेटी, पर बेटी की मां बनते ही कैसे तो एक डर भी भीतर पैदा हो गया। ना ये सामान्‍य मात़त्‍व का डर नही था जो अपने बच्‍चे की सुरक्षा को लेकर हरदम सचेत रहता है वह गि‍र न जाये... कोई चोट न... लगा बैठे.... कुछ नुकसान न कर ले अपना.... इन सब डरो के साथ-साथ एक और अदृश्‍य सा डर जो प्रत्‍यक्षत: कहीं नहीं दिखता था... पर था... और दिन व दिन बेटी के बढ़ने के साथ ही वह भी बढ़ रहा था डगमग चलते पाव कब का स्थिर , मजबूत चाल चलने लगे, गिरने पड़ने चोट खाने का कोई भय नहीं, फिर भी, आंखो के दायरे से बाहर नहीं जाने देना चाहती वो उसे। कब मुक्‍त होगी वह इन डरो से। क्‍या कभी ये दुनियां वैसी होगी जहां कोई लड़की अपनी पूरी उम्र बगैर डरे जी पाये, ईश्‍वर ने सृ‍ष्टि रचते हुये ये जो इतने सारे तरह तरह के जीव जन्‍तु बनाये... उन सब में उसके जैसा बिल्‍कुल उसका दूसरा कम उसका पूरक उसी की नस्‍ल का...। क्‍या एक के बिना दूसरे का अस्तित्‍व संभव है...? फिर, क्‍यों और कैसे एक की सत्‍ता दिन व दिन और और मजबूत होती गयी और दूसरा सिर्फ दास नुमा भूमिका भूमिका में उतरता गया, कैसी बिडंबना है- डर भी उसी से है और डर भगाने के लिये सहारा भी उसी का है। औरताना जिंदगी के उम्र का कोई पड़ाव इस... डर से अछूता बचा है क्‍या ? छोटी बच्चियों से लेकर दादी, नानी की उम्र तक की औरत तभी एक सलामत जब तक सामने पड़ने वाले पुरूष के भीतर का पिशाच जाग न जाये ... और पिशाच को जगने न देने के लिये तमाम एहतियात... न ऐसे न रहो...ये न पहनो...यों न बैठो... न चलो... यूं न देखो .... बंदिशे, सलोहं सहूलियतें समझाइशें...।

वह उतान पड़ी है कमरे में, स्‍कूल बैग, ड्रेस, बोतल जूता मोजा सब बिखरे पड़े हैं कितनी बार कमरे को व्‍यस्थित रखने को कह चुकी है... पर वह सुनती नहीं... ज्‍यादा बोलने पर झुंझला जाती है। पतिदेव का कहना है तुम कुछ सिखाती नहीं। अब वो न सुने उसके कहे को तो? यूं भी स्‍कूल से थके यादें आये बच्‍चों पर कड़कडाना उसे अच्‍छा नहीं लगता। दो बजे तक उसकी अपनी बैटरी भी डिस्‍चार्ज हो चुकी होती है जैसे-तैसे बच्‍चों का खाना परोस उसे खुद भी बिस्‍तर ही दीखता है।

देखो, कैसी तो बेहोश सी सो रही है। सोचते हुये... वह इधर उधर बिखरी चीजों को समेटने लगी हैं उसकी आहट ने बेफिक्र सोई बेटी को शायद नींद में ही झिझोड दिया है... फैले पैर को सिकोड़ करवट ले उनीदी आंखे खोलती हैं बेटी का यों पैर सिकोड़ना... पता नहीं क्‍यों उसे भीतर तक मथ देता है आहटें, बेटियों को ही पैर सिकोड़ना पर क्‍यों मजबूर कर देती हैं...?

“कोई नहीं... मैं हॅू...।” वह आश्‍वस्‍त सी करती कहती हैं... और फिर चीजों समेटने में जुट जाती हैं... उफ ये टयूशन वाला बैग... कल से चेन खुली है इसकी... सोचते हुये बैग उठाती है... खुली चेन को बंद करते भीतर कुछ चमकता है... ये क्‍या है...? अरे, ये यहां.... इसके बैग में.. कितने दिनों से वह इसे किचन में ढूढ़ रही थी... पर, इसे इसने बैग में क्‍यों रक्‍खा है...? हाथ में पकड़ने फल काटने के चाकू पर उसकी नजरें जम सी गई हैं.... उसे चक्‍कर सा महसूस होता है... जाने कब, कैसे उसके भीतर का डर उसकी बेटी के भीतर प्रत्‍यारोपित हो गया... कब कैसे...?

---सपना सिंह

परिचय


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नाम - सपना सिंह

जन्‍म तिथि - 21जून 1969] गोरखपुर] उत्‍तर प्रदेश

शिक्षा - एम.ए. (इतिहास, हिन्‍दी) बी.एड.

प्रकाशित कृतियॉ - धर्मयुद्ध] साप्‍त’हिक हिन्‍दुस्‍तान के किशोर कालमों सें लेखन की शुरूआत, पहली कहानी 1993 के सिम्‍बर हंस में प्रकाशित... लम्‍बे गैप के बाद पुन: लेखन की शुरूआत, अबतक-‘’हंस-कथादेश’’, परिकथा,कथाक्रम, सखी(जागरण), समर लोक संबोधन (प्रेमकथा विशेषांक), हमारा भारत, निकट, अर्यसदेंश, युगवंशिका, माटी, इन्‍द्रपस्‍थ भारती, गम्‍भीर समाचार, कथा यूके ‘पुरवाई’ , इत्‍यादि में दो दर्जन से अधिक कहानियॉं प्रकाशित।
आकशवाणी से कहानियों का निरतंर प्रसारण।
प्रतिलिपि, सत्‍याग्रह, शब्‍दाकंन, हस्‍ताक्षर, पहलीबार, नॉटनाल वेब पत्रिकाओं में कहानियां।
उपन्‍यास - तपते जेठ में गुलमोहर जैसा।
कहानी संग्रह़ - उम्र जितना लम्‍बा प्‍यार , चाकर राखो जी

सपना सिंह
द्वारा प्रो. संजय सिंह परिहार
म.नं. 10/1456, आलाप के बगल में,
अरूण नगर रीवा (म.प्र.)

मो.न्ं. 09425833407


Sunday, April 07, 2019

"..क्योंकि हमें डर कर नहीं डट कर जीना है" - फ़रगुदिया डायरी



"बीजारोपण के पश्चात मिट्टी से अँखुआते पौधे को देखने में जो सुख है ठीक वैसा ही सुख इनके हाथों में कलम थमाकर इनके लिखे को पढ़ने में हैं!
अपनी प्रतिभा से अनभिज्ञ ये बस लिखती गयीं! इनकी भाषा शैली का कच्चापन, कोमलता विचार रूप में सीधे हृदय को स्पर्श करता है!
एक लंबे अंतराल के बाद पुन: प्रस्तुत है फरगुदिया की नई डायरी।"











1- आप सब अपने बारे में कुछ बताइये.

2- लड़कियों का आत्मनिर्भर होना ज़रूरी क्यों है?
3- अपनी रुचियों के बारे में बताइये.

4- छेड़खानी और यौन हिंसा रोकने के लिए पारिवारिक और कानूनी तौर पर क्या प्रयास होना चाहिए?

5- भविष्य की योजनाओं के बारे में बताइये.


मेरा नाम सीमा है। मैंने दिल्ली की एक संस्था में रहकर बारहवीं तक शिक्षा प्राप्त की। 18 की आयु के बाद उसी संस्था स्थित आफ्टर केअर होम में शिफ़्ट कर दिया गया। वहां रहते हुए मैंने ग्रेजुएशन किया और साथ में सिलाई, ब्यूटीशियन, आर्ट एंड क्राफ्ट, इंग्लिश स्पीकिंग का कोर्स किया। वहां आफ्टर केअर होम के बच्चों के कपड़े सिलती थी। मैं दिल्ली महिला आयोग में जॉब करती हूँ।
मैं आत्मनिर्भर हूँ। बहुत खुश और संतुष्ट हूँ। मुझे अपनी जरूरतों के लिए किसी के आगे हाथ नही फैलाना पड़ता। मैं आर्थिक रूप से दूसरों की मदद कर सकती हूँ और किया भी है। दिल्ली महिला आयोग में काम करते हुए मैंने बहुत कुछ सीखा।समाज में सम्मान से जीने और लड़कों से कंधा मिलाकर चलने के लिए एक लड़की का आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है। एक लड़की का आत्मनिर्भर होना इसलिए भी जरूरी है ताकि उसे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। एक लड़की का आत्मनिर्भर होना इसलिए भी जरूरी है ताकि शादी के बाद उसे अपनी जरूरतों के लिए अपने पति पर डिपेंड न रहना पड़े। आत्मनिर्भर लड़की पर समाज और परिवार द्वारा किसी भी तरह का अत्याचार नहीं हो सकता।
आत्मनिर्भर शिक्षित लड़कियां महिलाओं पर हो रहे अत्याचार भी रोक सकतीं हैं.. जैसे महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल हैं। वो महिलाओं के हित के लिए बहुत कुछ कर रहीं हैं।
आत्मनिर्भर लड़की अपने सारे निर्णय खुद ले सकती है। अपने सारे सपने पूरे कर सकती है। अकेली बाहर घूमने जा सकती है। मुझे अपने आप पर गर्व है कि मैं आत्मनिर्भर हूँ।
छेड़खानी और यौन हिंसा रोकने के लिए बसों में, स्कूलों और उसके आस पास सी सी टीवी कैमरे होने चाहिए | और पुलिस द्वारा सुरक्षा व्यवस्था दी जानी  चाहिए | परिवार में बच्चों को  इन अपराधों के प्रति सजग रखने  लिए उनसे बातचीत करनी चाहिए |
भविष्य की योजनाओं के बारे में अभी ज्यादा कुछ सोचा नहीं | सोशल वर्क की जॉब जारी रखते हुए समाज के लिए ख़ासतौर पर महिलाओं के लिए कुछ सार्थक करना चाहूंगी |

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जय श्री कृष्णा!
मेरा नाम कंचन है | मैं दिल्ली की एक संस्था में पली -बढ़ी और पढ़ी हूं। मैं दिल्ली में रहती हूं | मैंने शिक्षा सिर्फ दसवीं तक ही प्राप्त की है |  क्योंकि
जब मैंने दसवीं कक्षा पास की थी तभी मैंने शादी कर ली थी | इसीलिए मेरी आगे की पढ़ाई नहीं हो पाई। मैंने संस्था अपनी मर्जी से छोड़ा था क्योंकि वहां पर बहुत सारे नियम बदल दिए गए थे, जिससे वहां पर बच्चों को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। होस्टल छोड़ने के बाद मेरे पति ने मेरा साथ दिया |  किराए पर कमरा दिलवाया और एक दो महीने बाद मेरी नौकरी लगवा दी |
 22-3 -2015 को हमने हॉस्टल को जानकारी देते हुए शादी कर ली | शादी के बाद हम दोनों हॉस्टल भी गए सब से मिलने |  सभी मैडम से मिलकर सब का आशीर्वाद लिया |  सब बहुत खुश हुए मेरा यह फैसला देख कर |  शादी के बाद मैं बहुत खुश हूं | जब मेरी शादी हुई थी तब मेरे परिवार में मेरे मम्मी-पापा देवर और मेरे पति थे। ऐसा नहीं है कि मेरे पति या मेरे परिवार वालों ने मुझे पढ़ाई नहीं करने दिया | दरअसल बात यह थी कि मैं गर्भवती भी जल्दी हो गई थी | इसीलिए मेरा मन नहीं किया आगे पढ़ाई करने का |  मेरी बेटी का नाम प्रयांशी है | अब वह दो साल की हो चुकी है | मेरा पूरा परिवार आज भी मुझसे उतना ही प्यार करता है जितना कि चार  साल पहले करता था |  सब मेरी बहुत इज्जत करते हैं और मैं सब की बहुत इज्जत करती हूं | मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हमारे परिवार में हमेशा ऐसे ही प्यार बना रहे | मेरी दिल से यही दुआ है कि जैसे मुझे अच्छा पति और अच्छा परिवार मिला दुनिया की हर लड़की को ऐसे ही अच्छा पति और ऐसे ही अच्छा परिवार मिले।

 मेरी रूचि एक्टिंग में थी पर शादी के बाद और आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण मेरे सारे शौक खत्म हो गए। लेकिन मैं अपनी बेटी को एक बहुत बड़ी हीरोइन जरूर बनाऊंगी | अगर वह नहीं बनना चाहेगी तो जिस भी फील्ड में वह जाना चाहेगी, मैं उसे जरूर आगे बढ़ने के लिए उसकी मदद करूंगी |  अब मेरा शौक यही है कि मैं अपनी बेटी को बहुत ज्यादा पढाऊँ |

 यौन शोषण से कैसे बचे - इसके लिए बस हम कोशिश कर सकते हैं | रोकना, यह कहना तो मुश्किल है कि इसको रोका जा सकता है। क्योंकि कहीं - कहीं पर अपने ही घर में.. अपने ही परिवार से कुछ बच्चे लड़की हो या लड़का सुरक्षित नहीं है, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि इसे रोका जा सकता है! हां, हम बस कोशिश कर सकते हैं |  इसीलिए हमें अपने बच्चों को समझाना चाहिए | उनसे प्यार से बात करनी चाहिए | ना कि उन्हें डरा कर रखे |  उनके मन में अपने लिए इतना डर पैदा कर दें  कि उनके साथ कुछ भी गलत हो और वह हमसे बताने में शर्माये या घबराए या किसी प्रकार का उनके मन में हमारे लिए हिचकिचाहट हो कि - मम्मी- पापा को  मैं बताता हूं या बताती हूं तो वह मुझे गलत समझेंगे और मेरा साथ नहीं देंगी या देगें | पहले तो अपने बच्चों से इतनी अच्छी तरह से मिले-जुलें.. उनसे अपनी हर बात खुलकर करें ताकि बच्चे भी आपको अपनी सारी बातें खुलकर बता सकें |  उन्हें प्यार से समझाएं ..उनके दोस्त बने.. उनको हर अच्छे बुरे इंसान का पहचान करना सिखाएं.. उन्हें हर वक्त डांटे नहीं ..तभी बच्चे भी आपको अपने मन की सारी बातें बता पाएंगे कि उनके साथ किस ने क्या गलत किया है। अगर आपके परिवार वाले आपको मना करते हैं कि- नहीं यह बात बाहर नहीं जानी चाहिए.. घर की बात घर में रहने दे ..तो आप इस बात को  बिल्कुल नकार दें कि- नहीं, मैं नहीं गलत सह सकता या सह सकती | जैसे कि घर में बड़े होते हैं सास-ससुर या दादा -दादी वह मना करते हैं कि घर की बदनामी होगी | तो आप उन्हें मना करिए और  समझाइए कि नहीं हमारे साथ गलत हुआ है जिस ने गलत किया है वह गलत है ..हम गलत नहीं है | और आप पुलिस से इस मामले में मदद मांगें.. उनसे कहिए हमारे साथ गलत हुआ है.. आप हमारी कंप्लेन  लिखें |  अगर पुलिस आपको डराती है या फिर आप को धमकी देती है तो आप उन्हें अपनी पूरी बात बताएं और बोले हमारे साथ गलत हुआ है । आप बार-बार जाइए और बोलिए उनसे कि -यह आपका काम है ..आप हमारे मदद के लिए हैं |  आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप हमारी मदद करिए | आपको सरकार पैसा देती है.. आपको इसलिए नौकरी पर रखा गया है कि आप हमारी मदद करें ना कि यहां पर कुर्सी पर बैठे -बैठे मुफ्त की  रोटियां तोड़े | आप उनसे भी मत डरिए और डटकर सामना करिए क्योंकि हमें डर कर नहीं डट कर जीना है! इसे ही जिंदगी का नियम बना लीजिये। 
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मैं भविष्य में अपनी बेटी को बहुत ज्यादा पढ़ाना चाहती हूं। उसे बहुत ज्यादा ऊंचाइयों पर देखना चाहती हूं। मेरा यही सपना है कि मेरी बेटी को पूरी दुनिया जाने | इसके लिए मैं अपनी जी- जान लगा दूंगी| और उसे भविष्य में यही सीख शिक्षा दूंगी कि -बेटा हमेशा अपनों से बड़ों का सम्मान करना ..सबकी इज्जत करना और हो सके तो ज्यादा से ज्यादा लोगों की खासतौर पर मजबूर लोगों की मदद करना | क्योंकि लोगों की दुआएं और मजबूर लोगों की दुआएं तो बहुत काम आती हैं। लोगों से बस आदर सम्मान ही पाना.. ना कि किसी से अपने लिए बुराई पाना| हां जाने- अनजाने में अगर तुम से कोई गलती हो जाती है तो उसके लिए पछतावा भी करना और भगवान से माफी भी मांगना, कि - हां मैंने यह गलती की है | अपनी गलती हमेशा मानना तभी आप आगे बढ़ पाओगी। गलत को गलत और सही को सही हमेशा कहना | कुछ भी हो किसी से डरने की जरूरत नहीं है |  जो गलत है वह गलत है.. जो सही है वह सही है .. इस बात पर तुम हमेशा डटे रहना | वह काम कभी मत करना जिससे किसी का दिल दुखे या जिससे किसी का नुकसान हो | आप कितनी भी ऊंचाइयों पर पहुँचो  पर अपने अंदर घमंड कभी भी मत आने देना | क्योंकि घमंड सिर्फ कुछ दिन के ही होते हैं ..क्योंकि इंसान को सिर्फ इंसान ही समझ सकता है और साथ दे सकता है ना कि उसकी दौलत, शोहरत और नाम | यह भविष्य में मैं अपनी बेटी को सिखाना चाहूंगी।

--कंचन

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मेरा नाम पूजा है |  मैंने बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई की है |  अब मैं अपनीछोटी -सी फैमिली के साथ रहती हूं |  इसमें मेरी मां और मेरा भाई साथ रहते हैं | दो बहनों की शादी हो गई है | मैं लाइफ में बहुत कुछ करना चाहती हूं जिससे मेरा भविष्य बन सके | मुझे ड्राइंग और आर्ट एंड क्राफ्ट डेकोरेशन करना बहुत अच्छा लगता है |
लड़कियों का आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है |  क्योंकि जब तक एक लड़की किसी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर रहेगी तो उसे दुख तकलीफ के अलावा कुछ नहीं मिलेगा | इसलिए खुद के लिए .. अपने सपनों के लिए ...अपने आने वाली जिंदगी के लिए .. ताकि उसके परिवार को कोई दुख परेशानी ना हो |
  
मेरी रुचियाँ तो बहुत सारी हैं |  मुझे ड्राइंग करना,, आर्ट .. गाने गाना, सुनना और देखना बहुत पसंद है |  कहानियां पढ़ना और घूमना तो बहुत बहुत ज्यादा पसंद है | मुझे गोलगप्पे बहुत पसंद है और मुझे बर्फ वाली जगह घूमना भी बहुत पसंद है | मुझे फूलों वाले गार्डन भी बहुत ब्यूटीफुल लगते हैं | मुझे बेबी भी पसंद है | और सबसे ज्यादा तो मुझे हर मोमेंट में फोटो खींचना बहुत बहुत बहुत ज्यादा पसंद है | मुझे फ्रेंड्स बनाना भी बेहद पसंद है वह भी अच्छे वाले जो हर वक्त साथ दें | लव यू माय स्वीट फ्रेंड !

अगर कोई भी व्यक्ति किसी लड़की से जबरदस्ती छेड़खानी, यौन हिंसा करता है या करने की कोशिश करता है तो उस लड़की को अपने घर में.. अपनी मां या किसी सच्चे दोस्त को यह बात बतानी चाहिए, जिससे उस व्यक्ति को रोका जा सके | अगर वह व्यक्ति तब भी ना माने तो उस लड़की को पुलिस पानी में जाकर शिकायत करनी चाहिए ताकि उस लड़की को छेड़खानी और यौन हिंसा से बचाया जा सके | पर एक बात और.. हर लड़की को इतना स्ट्रांग होना चाहिए कि वह हर मुश्किल घड़ी का सामना कर सके |  लड़की को मानसिक व शारीरिक दोनों ही तरह से मजबूत बनना पड़ेगा | बचपन से मजबूत होना चाहिए और हर परिवार को अपने घर की लड़कियों को कराटे की क्लास भी लगवानी चाहिए जिससे वह अपना बचाव आसानी से कर सके अकेले होने पर |
मैं सबसे पहले अपने पैरों पर खुद अपने दम पर खड़ी होना चाहती हूं | उसके लिए मैं जॉब करना चाहती हूं ताकि आगे भविष्य में मुझे कोई परेशानी ना हो |  और ना ही मुझ से जुड़े लोगों को किसी प्रकार की तकलीफ हो | मैं अपने भविष्य को खुलकर और खुशी से जीना चाहती हूं अपने परिवार के साथ | और जब भविष्य में मेरी शादी हो जाएगी तो मैं उनको किसी भी चीज से निराश नहीं करूंगी.. उनके साथ रहूंगी ..जो प्यार मुझे बचपन से आज तक नहीं मिल पाया शायद वह मुझे मेरे दूसरे परिवार में मिल जाए | मैंअपना खुद का घर दिल्ली में चाहती हूं और उसमें एक छोटी- सी.. प्यारी -सी एक फैमिली बसाना चाहती हूं | भविष्य में छोटे से परिवार के साथ मैं आगे की जिंदगी बहुत सुंदर बनाना चाहती हूं | अपने गुजरे हुए कल के साथ मैं अपना भविष्य नहीं गुजार सकती, जैसे मैंने गुजारी है अपनी जिंदगी | बचपन से आज तक वह सब मैं नहीं चाहती हूं | आज भी कभी -कभी मेरी जिंदगी के कुछ पल अगर मैं याद करती हूं तो आंखों में आंसू आते हैं | मैं कोशिश करूंगी बीते हुए पल को भुलाने की; जो मुझे सिर्फ दुख के अलावा कुछ और नहीं देते | अगर मुझे अपना भविष्य बनाना है तो बीते हुए पल को भुलाना पड़ेगा ताकि मैं अपना भविष्य बना सकूं | मेरा भविष्य मुझे पर निर्भर करता है किसी और पर नहीं |
-- पूजा
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मेरा नाम ज्योति है | 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है | मेरी शादी हो चुकी है |  मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं | मैं जॉब करना चाहती हूँ | मैं
अपनी लाइफ में बहुत खुश हूं।
महिलाओं को आत्मनिर्भर होना चाहिए | हमारे भारत में रुढ़िवादी विचारधारा की वजह से औरतों को घर से बाहर काम करने की इजाजत नहीं दी जाती थी.. जिस वजह से वह ना ही कुछ बोल पाती थीं  और ना ही कुछ कर पाती थीं | इसी वजह से महिलाएं अपनी इच्छा को भी मार देती थीं | अब महिलाओं को बहुत से अधिकार दिए गए हैं जिस वजह से वह अपने पैरों पर खड़े होने का हौसला रखती है | महिलाएं आत्मनिर्भर नहीं होंगी तो वह अपने बच्चों का भविष्य नहीं बना पाएंगी | महिलायें अपने पैरों पर खड़ी होंगी तो  वह किसी पर बोझ नहीं रहेंगी |  
मैं टीचर बनना चाहती थी |  मेरी रुचि इसी में थी कि मैं टीचर बनू | और शौक तो बहुत सारी चीजों में था. जैसे- डांस, ड्राइंग, ब्यूटी पार्लर, फैशन डिजाइनर.. इत्यादि |  बस यही है कि कुछ प्रॉब्लम के वजह से मैं पीछे रह गई | घर आई.. घर आकर मुझसे  आगे पढ़ाई नहीं हो पाई | शौक  अभी भी बहुत सारे हैं ..कुछ कर लेती हूँ  और कुछ रह जाते हैं।

मैं अपने भविष्य में सिर्फ खुश रहना चाहती हूं | अपना भविष्य खुशी से गुजारना चाहती हूं | अपने बच्चों को वह शिक्षा देना चाहती हूं जो शिक्षा मैंने नहीं पाई | उन्हें अच्छे गुण देना चाहती हूँ और समझदार बनाना चाहती हूं ...चाहे बेटा हो या बेटी | एक ही समान उन्हें प्यार व शिक्षा देना चाहती हूं ..उन्हें अपने पैरों पर खड़ा हुआ देखना चाहते हूँ |
छेड़खानी और यौन हिंसा कौन कैसे दूर कर सकते हैं..
= हमें हमेशा छोटे बच्चों को यौन हिंसा व छेड़छाड़ के बारे में जानकारी देनी चाहिए।
= हमें उन्हें बताना चाहिए कि बैड टच गुड टच मैं क्या अंतर होता है।
= अगर कुछ ऐसा होता है तो उन्हें फौरन अपने आसपास के लोगों को बता देना चाहिए या स्कूल में हो तो स्कूल में टीचर को बता देना चाहिए | घर पर जो सबसे बड़े सदस्य हैं उन्हें बता देना चाहिए।
* पारिवारिक रूप= परिवार वालों को अपने बच्चों के साथ घुल मिलकर रहना चाहिए जिससे उन्हें किसी बात को बोलने में डर ना लगे या शर्म ना लगे।
= परिवार वालों को भी छेड़छाड़ व यौन हिंसा के बारे में अपने बच्चों से चर्चा कर लेनी चाहिए व उन्हें समझाना चाहिए।
= अपने बच्चों को ज्यादा डरा कर ना रखें | अगर डरा कर रखेंगे तो वह अपनी मन की बात बता नहीं पाएंगे।
= छेड़खानी रोकने के लिए school college के आसपास पुलिस होनी चाहिए।
= अगर सड़क पर चलते वक्त या ट्रैवल करते वक्त ऐसी कोई घटना होती है तो फौरन पुलिस को कंप्लेन  करना चाहिए।
= छेड़खानी और यौन हिंसा बहुत ही ज्यादा बुरी बात है | ऐसा करने वाले लोगों को .. जो खासतौर पर बच्चों के साथ करते हैं.. छोटी गर्ल्स के साथ ..उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए और देनी चाहिए।

-- ज्योति
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मेरा नाम पूनम है | मेरा पूरा बचपन एक संस्था में  गुजरा |  18 साल की

होने के बाद मैं संस्था  से बाहर आ गई और मैंने शादी कर ली अपनी मर्जी से |  मैं ऐसी लड़की हूं जिसके पैरंट्स नहीं है | अब मुझे ऐसी फैमिली मिली है जो मुझे बहुत प्यार करती है .. मुझे  समझती है | और मेरी एक प्यारी -सी बेटी भी है, जिसका नाम अवनी है | मैं बहुत खुश रहती हूं अपनी फैमिली के पास।
महिलाओं को आत्मनिर्भर होना चाहिए | हर औरत आत्मनिर्भर होगी तभी  देश आगे बढ़ेगा | किसी- किसी के परिवार में ऐसा होता है कि ज्यादातर बेटी की मां चुप रह जाती हैं अपने घर की रक्षा करने के लिए | अपने बच्चों का साथ कभी कभी नहीं देती हैं |  तो मैं यह चाहती हूं कि वह मां अपनी बेटी का सपोर्ट करें | वह चुप ना रहे | अगर कुछ बुरा हो रहा है तो वह उसी समय फैसला करें वह अपनी आवाज को दबाये नहीं |  चाहे पति हो या परिवार.. वह किसी से डरे नहीं |  अपनी इच्छाओं को जाहिर करें | औरत एक ऐसी आत्मशक्ति है जो एक घर को भी ..  बच्चों को भी और पूरे परिवार को संभालती है | सभी जिम्मेदारियां वही संभालती है ..चाहे भले ही उस पर कोई संकट आ रहा हो |
मेरा सपना था कि मैं डॉक्टर बनू मगर मेरी पढ़ाई की वजह से मैं वह पूरा नहीं कर पाई | मुझे डांस और खेलकूद बहुत पसंद था |
छेड़खानी और यौन हिंसा को हम कैसे दूर कर सकते हैं..
अगर हमें  कुछ गलत लगता है या दिखता है तो हमें उसी टाइम एक्शन लेना चाहिए व अपने परिवार में और आसपास के लोगों को खबर कर देनी चाहिए |  जिससे वह व्यक्ति उसी समय या तो अपनी गलती को सुधार ले या उसे सजा दी जाए।
घर परिवार वालों को इस बारे में अपने छोटे बड़े सब को बता देना चाहिए | उन्हें इस बारे में समझाना चाहिए कि कुछ लोग गंदी सोच के भी होते हैं.. जिनसे सावधान रहना जरुरी है | खासतौर पर छोटी  बच्चियों को इस बारे में समझा दें  कि वह संभल कर रहें | अगर उनके साथ ऐसी कोई घटना होती है तो उन्हें तुरंत ही स्कूल में टीचर को बता देना चाहिए वअपने घर में मम्मी -पापा को शेयर करनी चाहिए।
ऐसे में कोई -कोई बच्चा डर जाता है | उन्हें लगता है कि हमें मां-बाप मारेंगे | उन्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए | उन्हें इस बारे में अच्छे से समझाएं कि डरना बिल्कुल भी नहीं है।
कानूनी रूप से हम पुलिस की मदद ले सकते हैं। स्कूलों में कॉलेजों में पुलिस की सिक्योरिटी होनी चाहिए।
कभी-कभी पुलिस भी ऐसे केस को मायने नहीं देती | पुलिस की सहायता से उस व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए जो ऐसी घटिया हरकत करें व किसी से करवाएं।
मैं  भविष्य में अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलाना चाहती हूँ | इंटेलिजेंट लड़की बनाना चाहती हूं | वह जो बनना चाहेगी  मैं उसका सपना पूरा करुँगी |  मैं कभी भी अपनी बेटी की इच्छाओं को नहीं दबाउंगी | कभी भी अपने बच्चों में भेदभाव नहीं करूंगी |  मैं अपनी बेटी से बहुत प्यार करती हूं व अपने परिवार को भी बहुत प्यार करती हूं | I love my family
-- पूनम
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मेरा नाम मोना है।मेरी उम्र 25 साल है। और मैंने graduation
complete कर ली है। और उसके साथ -साथ मैं एक  N.G.O में as a volunteer work कर रही हूँ। मैं दिल्ली की एक संस्था में रहा करती थी। और मैंने अपने basic education निर्मल छाया से ही प्राप्त की हैं।

मैं भविष्य में कुछ नया करना चाहती हूं। मैं एक सोशल वर्कर बनना चाहती हूं। तथा स्ट्रीट बच्चों के साथ काम करने की इच्छा है। क्योंकि होमलेस बच्चों को मैंने बहुत करीब से देखा है ..कि वो बच्चे कैसे रहते हैं। भीख मांगकर खाना खाते है। और स्ट्रीट में ही रात भर ज़िन्दगी गुजरते है।

मेरी हमेशा से इच्छा थी कि मैं एक डांसर बनूं। किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।फिर मेरा इंटेस्ट ज्यादा अर्ट&क्राफ्ट में रहा। मैंने  तिलक नगर से कमर्शियल आर्ट का कोर्स किया। अब मैं स्कूल और एनजीओ में जॉब कर रही हूं। मुझे डांस करना बहुत पसंद है।

एक लड़की का आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है ..
आत्मनिर्भर लड़कियां :- पहले लड़कियों को पेट के अंदर ही मरवा दिया जाता था | पहले लड़कों को ज्यादा अहमियत दिया जाता था | उस समय लड़का ही सब कुछ माना जाता था और यह भी माना जाता था कि लड़का ही घर चला सकता है  | लड़कियां तो सिर्फ घर के  काम करने के लिए ही बनी हैं | पहले लड़कों को ज्यादा से ज्यादा भोजन परोसा जाता था, लड़कियों को कम | ऐसा माना जाता था कि लड़के मेहनत करते हैं और लड़कियां घर में आराम करती हैं | पर अब ऐसा कुछ नहीं है.. अब दोनों ही बराबर माने जाते हैं |
आज के युग में लड़कियों के पैदा होने पर खुशियां मनाई जाती है | कहा जाता है कि घर में लक्ष्मी पैदा हुई है | लड़कियों के जन्म पर पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी  जाती है | और लड़कियों की पढ़ाई का ख्याल भी रखा जाता है | आज के युग की लड़कियां लड़कों से कंधे मिलाकर चल रही हैं |  आजकल की लड़कियां किसी भी काम में कम नहीं है, चाहे वह खेल हो.., पढ़ाई लिखाई हो ,ट्रेन चलाना हो, या फिर एरोप्लेन चलाना हो, चांद पर जाना , आई ए एस  की पढ़ाई करना ,सीए की पढ़ाई करना , या प्रधानमंत्री बनना,  टीचर बनना हो, आदि सभी कामों में लड़कियां परफेक्ट है |  आज के युग की लड़कियां अगर पढ़ी लिखी हो तो वह अपना घर बहुत आसानी से चलाना जानती है | घर के साथ साथ ऑफिस भी संभालना बहुत अच्छे से जानती है |  किसी भी घर की एक भी लड़की पढ़ाई लिखाई कर ले तो उस घर की आने वाली पीढ़ी शिक्षित होगी| आज के युग की लड़कियां दिमाग से लड़कों से काफी ज्यादा समझदार हैं |  आज के युग की लड़कियां अगर कहीं भी कोई भी अत्याचार होते हुए देखती है तो वह उस मुद्दे के खिलाफ आवाज जरूर उठाती है | जैसे उदाहरण के तौर पर स्वाति मालीवाल मैम | आज के युग की लड़की अपने खर्चे के साथ- साथ अपने परिवार का खर्चा भी उठा सकती हैं | अगर लड़की आत्मनिर्भर है तो वह कुछ कुछ भी कर सकती है.. सारी कठिनाईयों का सामना कर सकती हैं अपने दम पर |


प्रस्तुति: शोभा मिश्रा 

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