Saturday, June 06, 2015

प्रकृति मेरे माता पिता के समान है - प्रगति मिश्रा





















   अपने जीवन के १८ साल मैं इस दुनिया में बिता चुकी हूँ. स्कूल में हर साल ५ जून को कोई न कोई कार्यक्रम हुआ करता था जिससे हम सब प्रकृति की तरफ अपनी जिम्मेदारियों के प्रति  जागरूक होते थे. स्कूल में चार्ट, पोस्टर, भाषण , नाटक  के माध्यम से हमे समझाया जाता था कि हर साल हम अपने पर्यावरण को किस तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. इस्तेमाल कहना ठीक नहीं होगा, हम हर वर्ष अपने पर्यावरण को पहले से भी ज्यादा नुक्सान पहुंचाते हैं और फिर एक दिन उसे सुधारने की बातें करते हैं. स्कूल में कितना आसान लगता था इन सब विषयों के बारे में चर्चा करना लेकिन अब समझ आता है कि टीचर्स क्या कहा करती थी - जो तुमने १२ साल एक स्कूल में सीखा, वो यहाँ सीखना बहुत आसान है लेकिन तुम सब असल ज़िन्दगी में  अपनी विद्या  का कितना इस्तेमाल करोगे, वही बताएगा कि तुम सबने अपने विद्यालय से क्या सीखा. आज मैं कॉलेज में पढ़ती हूँ. और सच कहूँ तो हर कोई अपने भविष्य की बात करता है - कहाँ जॉब करेंगे, किस पैकेज में जायेंगे, और मैं भी कहीं न कहीं इन्ही बातों के बारे में सोचती हूँ. पर अगर  अकेले में अपने आप से हम सब पूछें तो एक सवाल मन  में आता है - जिस भविष्य की हम कल्पना कर रहे हैं वो तो तभी सुन्दर होगा जब हमारे आस - पास का पर्यावरण सुन्दर होगा. ज़ाहिर सी बात है इंसान की ज़रुरते कभी पूरी नहीं होती हैं. उसे कितना भी मिले, हमेशा उससे ज्यादा की ही चाह रहती है. आज से कुछ साल बाद हम में से अधिकतर लोगों के पास शायद पैसे की कमी नहीं होगी लेकिन जब हमें दूषित वातावरण में सांस लेने में बहुत तकलीफ होगी  तब  हम  साफ़ - सुथरा  पर्यावरण   बहुत याद करेंगे लेकिन  तब यह समझने में बहुत देर हो चुकी होगी कि पैसे से  सब कुछ नहीं खरीदा जा  सकता है. 





हम सब कारण जानते हैं कि हमारा पर्यावरण ऐसा क्यूँ होता जा रहा है. आपकी वजह से, मेरी वजह से यानी हम सबकी वजह से. हमे पता है कि हमारी कुछ आदतों को सुधारने से ही हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित कर सकते हैं. उसे बर्बाद होने से बचा सकते हैं. लेकिन कोई पहला कदम नहीं उठाना चाहता. दिमाग में एक तरह की धारणा है न - जब आज तक कुछ नहीं हुआ तो शायद आज से ४०-५० सालों में भी नहीं होगा और उससे ज्यादा तो हमारी ज़िन्दगी होगी भी नहीं, तो क्यूँ सोचें हम पर्यावरण के बारे में?

पांचवी क्लास में वैल्यू एजुकेशन की किताब में एक टॉपिक पढ़ा था: SUSTAINABLE DEVELPOMENT, मुझे इसके  पीछे की वजह नहीं मालूम, पर जब भी कोई मुझसे कहता है कि हम पर्यावरण के बारे में क्यूँ सोचे तो मैं ये विषय समझाने लगती हूँ. इस सस्टेनेबल डेवलपमेंट के अनुसार हमे पर्यावरण को बचाना है क्यूंकि ये प्रकृति हमे आने वाली पीढ़ी से उधार मिली है और हमे इसे उन्हें सही सलामत सौंपना है. और जब हम उन्हें प्रकृति सौपेंगे तो इस बात का ध्यान रखना है कि हम उन्हें वैसा ही पर्यावरण दे जैसा हमसे हमारे बड़ों ने उधार पर लिया था.


The actual line quoted by native American Chief Seattle was : “ We have not inherited this earth from our ancestors, we have borrowed it from our children.”

    हम २१वी सदी के लोगों में निस्वार्थ भावना का अभाव है. हमे लोगो को सही बात समझाने के लिए भी कहीं न कहीं विश्वास दिलाना पड़ता है कि इसमें आप की ही भलाई है और SUSTAINABLE DEVELOPMENT के अनुसार ये गलत भी नहीं है. आज के दिन अनेक लोग इस बात को कलम या भाषण के द्वारा ज़रूर दूसरों तक पहुचाएंगे कि - प्रकृति ने हमे बहुत कुछ दिया है. मैं कहती हूँ, प्रकृति मेरे माता पिता के समान है. जिस तरह आज से कुछ वर्ष बाद मैं अपने माता - पिता का दिया कुछ भी नहीं लौटा पाऊँगी उसी तरह प्रकृति ने मुझे १८ साल तक  ऐसा वातावरण दिया जिसके कारण मैं स्वस्थ  हूँ, सुखी हूँ. लोग अपना पर्यावरण दूषित न करे, आस पास सफाई रखें, अपने वाहनों का कम इस्तेमाल कर उन वाहनों का अधिक उपयोग करें जिससे प्रकृति को ज्यादा  नुक्सान न हो. अब यहाँ सिर्फ प्रकृति को चोट न पहुंचाने के आलावा भी एक विषय है जिसके बारे में लिखना मैं जरुरी  समझती हूँ. हम प्रकृति को दो चीजे ही दे सकते हैं: पहला, उन्हें कम से कम नुक्सान पहुंचाना. दूसरा, जो भी हमे प्रदान किया जा रहा है हम उसे सही तरीके से इस्तेमाल करे यानी उसे बरबाद न करे. कहा जाता है कि जब तक इंसान को उसके ‘कम्फर्ट जोन’ से न निकला जाये तब तक वो आसानी से मिल रही सुविधाओं का मोल नहीं समझता. लेकिन हम सब क्यों इंतज़ार करे कि प्रकृति हमसे यह सुविधाएं छीन ले?  हम आज से, अभी से ये संकल्प लेते है कि प्रकृति से जुडी हर चीज़ हमारी ज़िम्मेदारी है और ये हमारा दायित्व बनता है कि हम आगे आयें और इन्हें बचाएं. अगर हम सभी गौर करें तो पायेंगें कि प्रकृति को इतना नुक्सान पहुँचाने के बाद भी वो कभी हमे कुछ भी देने से इनकार नहीं करती. परन्तु इसका मतलब ये नहीं है कि आज से कुछ वर्ष बाद भी वो आपकी हर ज़रूरत इसी प्रकार पूरी करती रहेंगी. हम सबकी माँ प्रकृति अपने उस चरण पर हैं जहाँ हमारे कारण वो बहुत बीमार हैं, और हमे ज़िम्मेदार संतानों की तरह उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना है. और इस बार अपने लिए नहीं, अपनी माँ के लिए.....


---- प्रगति मिश्रा

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