tag:blogger.com,1999:blog-81708127560913802862024-02-22T21:38:01.287+05:30फरगुदिया "साहित्य और सरोकार का समन्वय"
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.comBlogger225125tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-24575145880934337722019-08-22T09:01:00.002+05:302019-08-22T09:18:55.009+05:30बारिश के अक्षर - प्रियम्बरा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIpd4zJyUtzDG5iaAl_c4Al1z_fjwAxRC8jGAgHk8dEEubZDtS4R1PbnC6BFZe5eAnEcMCboyzbj2rAkCEjQx4m87edmk8odjJuzJon-WRvZWuBhBNhhwG9g4hlDUdApA9EaZSVwTaSmU/s1600/984076_10208217834058883_7717207543437623634_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="281" data-original-width="290" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIpd4zJyUtzDG5iaAl_c4Al1z_fjwAxRC8jGAgHk8dEEubZDtS4R1PbnC6BFZe5eAnEcMCboyzbj2rAkCEjQx4m87edmk8odjJuzJon-WRvZWuBhBNhhwG9g4hlDUdApA9EaZSVwTaSmU/s1600/984076_10208217834058883_7717207543437623634_n.jpg" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><br /><br />कहानीकार प्रियम्बरा बक्सी लोकसभा टीवी में प्रोडक्शन असिस्टेंट के पद पर कार्यरत हैं | इनके लेख और कहानियाँ विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों और ई पत्रिका में प्रकाशित होती रहती हैं | "बारिश के अक्षर" कहानी हिंदी अकादिमी की प्रतिष्ठित पत्रिका इन्द्रप्रस्थ भारती में प्रकाशित हुयी है | संकोच और धैर्य की धीमी आँच पर पकती अनकहे प्रेम की मीठी कहानी आप सब भी पढ़िए |<br />================================<br /><br /><br /><br /><br /> बारिश के अक्षर<br />------------------<br /><br /><br /> एक कबूतर जिसने अभी-अभी उड़ना सीखा था, ज़मीन पर गिर पड़ा था। सुबह की बारिश में उसके छोटे-छोटे पंख भीग कर आपस में चिपक गए थे। बारिश के बाद छिटकी, थोड़ी तीखी-थोड़ी मीठी धूप के आकर्षण में बंधा ठुमकता हुआ वह धूप की तरफ चला जा रहा था। तभी एक कुत्ते की नज़र उस पर पड़ी। भूख से बिलबिलाता कुत्ता उस पर तेज़ी से झपटा। नन्हा कबूतर खुद का बचाव करता हुआ कभी पत्थर, कभी ईंट के पीछे दुबकने लगा.... किन्तु कुत्ते के पंजे से बचना आसान नहीं था। कुत्ते ने अपने तीखे पंजों से उसके पंख घायल कर दिए। पंख से खून रिस रहा था। नन्हें पैरों में चोट लग गयी थी। फिर भी उस कबूतर का संघर्ष जारी था। वह खुद को घसीटते हुए भागने की कोशिश कर रहा था और कुत्ता उसे दबोचने को तैयार था। कबूतर खुद को घसीटते हुए सूखी हुई नाली के अंदर दुबक गया। कुत्ते का मुंह उस नाली के मुहाने से बड़ा था। वह घात लगाकर वहीं खड़ा हो गया और भौंकने लगा। मैं उस नन्हे कबूतर के संघर्ष को काफी देर से चुपचाप देख रहा था। आखिरकार मुझसे नहीं रहा गया। मैंने कुत्ते को भगाया और उस परिंदे को बचा लिया। अनचाहे ही ये ख्याल आया कि सरस्वती होती तो इस परिंदे के साथ क्या करती? अपने आँचल में छिपा लेती। अपने हाथों से दाना खिलाती। पास में बैठा कर पानी पिलाती। इतना स्नेह देती कि यह परिंदा कभी उसे छोड़कर जा ही नहीं पाता। उसी का हो जाता, जैसे मैं हो गया, जैसे माँ हो गयी थी...जैसे वह नीलकंठ हो गया था जिसके टूटे घोसले की उसने अपने हाथों से मरम्मत की थी ...जैसे बूढ़े बाबा हो गए। जैसे वह कबूतर हो गया था, जिसे उसने बिलौटे से बचाया था। बिलौटे के पंजे से कबूतर घायल हो गया था। उसके ज़ख्म देखकर वह बेचैन हो उठी थी। उसकी बड़ी बड़ी आंखों से आंसू टपक पड़े थे। शाम तक जब वह कबूतर फुदकने लगा, तब जाकर सरस्वती को चैन पड़ा। फिर तो जब भी दरवाज़ा खुला मिलता वह कमरे में आकर गुटरगूँ करने लगता। सरस्वती उससे बातें भी करती। <br />एक सम्मोहन शक्ति थी उसमें, जो मिलता उसका हो जाता। गोल चेहरा, बड़ी-बड़ी आंखें, घुटनों तक लंबी काली घनी केशराशि जिनकी अक्सर वह वेणी बना लेती। मेरी बहुत इच्छा होती कि उन्हें आज़ाद कर दूं, पर कभी इतनी हिम्मत नही हो सकी कि उन्हें छू भी सकूं। उसका चौड़ा ललाट उसपर छोटी सी लाल बिंदी। कानों में सोने की छोटी-छोटी बालियां, जब वह बातें करती तो वे बालियां भी उसकी हाँ में हाँ मिलाती। उसके चेहरे पर बच्चों सी मासूमियत थी। रंग थोड़ा दबा हुआ था किंतु उसके व्यक्तित्व में एक अजीब सी कशिश थी। उसे देखने के बाद आँखे कहीं और टिकती ही नहीं थी। उसके चेहरे की मुस्कान के लिए मैं कुछ भी कर सकता था। मोटी-मोटी आंखें जब सजल होती तो ऐसा लगता जैसे मेरे अंदर कुछ पिघल रहा हो, उसका ताप अंदर से मुझे जला डालता। मेरी ज़िंदगी में उसकी अहमियत इतनी ज्यादा हो गयी थी कि बिना उससे चर्चा किये मैं कोई कार्य नहीं कर सकता था। आह! अब ये यादें ही तो मेरे जीने की प्रेरणा है। मेरी एक गलती ने उसे हमेशा के लिए मुझसे दूर कर दिया।<br /><br />मेरी माँ और पिता का मेरे बचपन में ही तलाक़ हो गया था। मैं माँ के पास ही रहा। मुझे सारी सशक्त स्त्रियाँ माँ जैसी ही लगती और उनकी ऒर मेरा झुकाव स्वतः हो जाता। ऐसी स्त्रियों के पास लगभग सभी समस्याओं का हल हुआ करता। वे संघर्ष की सीढ़ियां दनदनाते हुए चढ़तीं...हर बन्द दरवाज़े को ऐसे खोलतीं जैसे उसकी चाबी पहले से ही उनके पास मौजूद हो। आड़े दिनों में भी उनके चेहरे पर एक शिकन तक नही होता। उन्हें किसी के साथ या सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ती और मुझे उनसे सहायता लेने में कोई हिचक नही होती थी। मैं पुरुषों पर उतना भरोसा नहीं कर पाता था जितना स्त्रियों पर।<br /><br />हाँ...सरस्वती, मेरी पसंद की स्त्रियों से बिलकुल अलग थी। घबराई हुई, संघर्ष से तुरंत हार मान लेने वाली। बात-बात पर आंसू बहाने लगती। इसके बावजूद जाने कैसे हमारे बीच एक मजबूत रिश्ता बन गया था। वह बेआसरा… खुदकुशी करने चली थी। ठीक तभी मैं उसके और मौत के बीच आ गया। अजनबी होने के बाद भी उस दिन मैंने उसे बहुत डांटा-फटकारा-समझाया था। पेशे से वकील था। उस दिन अपने सारे अनुभव-तर्क मैंने उसे समझाने में लगा दिये- “देखो आत्महत्या तुम्हारे रचनात्मक पक्ष पर तुम्हारे ध्वंसात्मक पक्ष की जीत है। उससे बचो, क्यों ध्वंसात्मकता को रचनात्मकता पर हावी होने देना चाहती हैं।” उसने सवालिया निगाह से मुझे देखा। मैंने सफाई दी “ये मैं नहीं कहता बल्कि मनोविश्लेषक कार्ल मेनिंजर कहते हैं। यह भी एक पक्ष है कि जब इंसान दूसरों को कष्ट देना चाहता है तब आत्महत्या की कोशिश करता है। फ्रायड इसे आक्रामक वृत्ति का रूप मानते हैं । आखिर तुम यह करके किसे दुःख देना चाह रही हो? कुछ तो बताओ । ” वह अभी भी खामोश थी जैसे किसी शॉक में हो । <br />“अगर रहने की समस्या है तो तुम मेरे यहाँ रह सकती हो। मेरी माँ ने भी जीवन में बहुत कष्ट सहे पर कभी जीवन समाप्त करने का नहीं सोची। ऐसा करके तुम उसका अपमान कर रही, जिसने तुम्हें इस जीवन में आने का सौभाग्य दिया।” “मेरे ज़िन्दा रहने की कोई वजह नहीं। मेरे वजूद पर...मेरी स्त्रीयत्व पर सवाल उठाए गए। न ससुराल मेरा न मायके मेरा,कहाँ जाऊं? आपके घर चलूं पर किस हक़ से? मुझे मर जाने दीजिए। नहीं जीना...इस नर्क से छुटकारा चाहिए बस।” “देखो अभी तुम भावनात्मक रूप से कमज़ोर हो इसलिए समझ नहीं पा रही कि क्या सही है और क्या गलत ! हमें जो जीवन मिला है उसका कोई न कोई औचित्य है। मृत्यु अवश्यम्भावी है। उसे नियत समय पर आने दो। अपने हिस्से का सुकर्म तो कर लो। क्या पता किसी को तुम्हारी ज़रूरत हो। बचपन में मैंने अकेले अपनी माँ को सब संभालते हुए देखा है, दुनिया की परवाह मुझे रत्ती भर भी नहीं। घर चलो।” मेरे इस “घर चलो” में जाने कैसा अपनापनभरा आदेश था, वह बिना कुछ कहे मेरे साथ चल पड़ी। <br />सरस्वती को आत्महत्या से बचाने के बाद मैं नाकाबिल इंसान खुद को मालिक समझ बैठा था। भूल गया था कि हम सब वही करते हैं जो ‘समय’ करवाता है। उसने मेरे पास सरस्वती भेजी और मैंने उसका नियंत्रण अपने हाथ मे होने का भ्रम पाल लिया। उसे नियंत्रित करने लगा। उसका स्नेह सिर्फ मुझ पर बरसे इस प्रयास में हमेशा जुटा रहता। काश ! उस दिन मैंने सही को सही कहा होता। काश! मैंने उसे रोक लिया होता तो आज मैं दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति होता। <br />जीवन में मेरी मुलाक़ात अनेक ऐसी स्त्रियों से हुई जो तमाम उम्र धूप निगलती रही और बदले में धूप उगला भी करती थी। मुझे ऐसी ही स्त्रियां पसंद भी थीं। दरअसल मजबूत और कभी कभी तल्ख़ होते रवैये से उनके सशक्त होने का एहसास होता था, और यही गुण मुझे अक्सर उनके करीब ले जाता, पर सरस्वती उनसे एकदम अलग थी।<br />सरस्वती के पति ने बांझ कह कर उसे घर से निकाला था। डॉक्टर के कहने पर उसने सारी जांच करवाई जिससे पता चला कि वह माँ बन सकती है पर पति और ससुराल वाले कुछ भी सुनने को तैयार नही थे। उन्हे तो किसी तरह से इससे छुटकारा चाहिए था, जिससे ज़्यादा दहेज़ के साथ लड़के का दूसरा ब्याह रचाया जा सके। तलाक़ से पहले ही उसे घर से निकाल दिया गया। मायके में पनाह तो मिली, लेकिन पहले जैसी इज़्ज़त नहीं थी। माता-पिता की उपेक्षा और भाभी की जली-कटी बातों से तंग आकर उसने मौत का रास्ता चुना था। उस दिन गलती से मैं उसके और मौत के बीच आ गया। यूँ कह सकते हैं कि ‘जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोई’। उसे ज़िंदा रहना था, शायद इसलिए ईश्वर ने मुझे वहाँ भेज दिया था। <br />घर में मेरे अलावा माँ थी जो हर मामले में मेरी आदर्श थी। पिता से तलाक़ के बाद हर छोटी-बड़ी ज़रूरतों का ख्याल उन्होंने रखा था। सरस्वती के बारे में मैंने माँ को सबकुछ बताया। उन्होंने हृदय से उसका स्वागत किया। अब हमारे परिवार के तीन सदस्य थे। मैं, माँ और सरस्वती। वह घर के काम में हाथ बंटा दिया करती, लेकिन किसी अनजान घर में सहज होना उसके लिए, जिसने अपने घर में सिर्फ नफरत झेला हो, आसान नहीं था। वह हमेशा अपने आप में उलझी कुछ न कुछ सोचती रहती। वक़्त का रूखापन जैसे उसके स्वभाव में आ गया था। चेहरा भावशून्य रहता। संवेदना का एक सैचुरेटेड पॉइंट होता है…उस पॉइंट पर पहुंचकर मन प्रतिक्रिया शून्य हो जाता है। वह भी शायद उसी पॉइंट पर पहुँच चुकी थी। कभी किसी बात पर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं देती थी। उसकी इस प्रतिक्रिया शून्यता पर कभी-कभी खीझ भी आती। उसे व्यस्त रखने के लिए मैंने पास के ही ऑफिस में उसे एक छोटी सी नौकरी दिला दी । <br />खाली वक़्त में उसका ज़्यादातर समय प्रकृति के बीच बीतता। उसके हिस्से की धूप अक्सर बादलों में बदल जाती जो यदा-कदा बारिश बन उसकी आंखों से बरसती रहती। मेरी और उसकी बातचीत भी कभी-कभी ही हो पाती, पर मेरी नज़र तो जैसे उसके इर्द-गिर्द ही टंगी रहती। कानून की मोटी-मोटी किताबों से ज़्यादा दिलचस्प मुझे वह लगने लगी थी। उसके आने से घर में रौनक आ गई थी। घर की हर चीज़ जैसे जी उठी थी। ऐसा लग रहा था जैसे निर्जीव का सजीव में परिवर्तन हो गया हो। माँ उससे खूब बातें करती, लेकिन उसके जवाब हाँ…हूँ से आगे बढे हों ऐसा मुझे याद नहीं। <br />उस रोज़ सुबह से ही तेज़ बारिश हो रही थी। सरस्वती फुहारों में खोई हुई थी। तभी उसकी नज़र शहतूत की ओर गई। बारिश की वजह से नीलकंठ का घोसला शहतूत के पेड़ से गिर पड़ा था और चूज़ा ज़मीन पर पड़ा काँप रहा था। सरस्वती ने उसे उठा कर अपने आँचल में रख लिया और हल्के हाथों से उसे सहलाने लगी। हथेली की ऊष्मा से चूज़े का काँपना कम हुआ। उसका ध्यान गिर कर टूट चुके घोंसले की ओर गया। उसकी आँखें नम हो आईं। आँखों में तैर आई नमी को पोंछते हुए उसने चूज़े को हौले से रुई पर रख दिया और घोंसले की मरम्मत में जुट गयी। मैं बरामदे में खड़ा खामोशी से ये सब देख रहा था। उस बारिश में मेरे अंदर भी कुछ बीज अंकुरित होने लगे थे । घोसले की मरम्मत के क्रम में वह पूरी तरह भीग चुकी थी। माँ उसे समझा रही थी “बिटिया ठंड लग जाएगी, सर्दी-जुकाम-बुखार हो जाएगा। बारिश रुकने के बाद कर लेना।” “अभी आयी माँ” कह कर वह घोसले की मरमत में तल्लीन हो जा रही थी। मैं उसकी तल्लीनता पर मुग्ध हुआ जा रहा था। अपनी चोर निगाहों से उस क्षण मैं उसे पूरी तरह छू लेना चाह रहा था। मेरी नज़र उसके बदन पर पानी की बूंदों के संग फिसल रही थी। मन शायराना हो रहा था। <br />हवा और तेज़ बारिश से उसके केश बार बार बिखर जा रहे थे और वह उन्हें लपेट कर जूड़ा बना ले रही थी। मैं बड़बड़ा रहा था “ये स्त्रियां कभी पुरुष के दिलों को समझ नहीं सकतीं। ओह सरस्वती, काश! आज तुम मेरी नज़र पढ़ पाती।” बारिश अपने चरम पर थी। तभी दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी। सरस्वती ने दरवाज़ा खोला। मैं भी उसके पीछे लपका। दरवाज़े पर एक बूढ़ा अपने शरीर को बमुश्किल सम्हालता उकड़ूँ बैठा था। बारिश में भीग कर उसके कपड़े शरीर से चिपक गए थे, जिससे पूरा शरीर कंकाल नज़र आ रहा था। उसके बालों से, कान के पास से, नाक के ऊपर से पानी की तेज़ धार बह रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोसी राह भूलकर उस बूढ़े शरीर में समा गई हो या फिर उसे भी अपनी बाढ़ की जद में ले ली हो। भादो की बरसात थमने का नाम नहीं ले रही थी। वह कभी बरसात की बूँदों से प्यास बुझाने की कोशिश करता तो कभी थूक घोंट कर गला तर करने की कोशिश करता, लेकिन थूक हलक में अटक जा रही थी। बूढ़े की बेचारगी देख सरस्वती के कदम सहारा देने के लिए आगे बढ़ गए। बूढ़ा सकुचा रहा था, लेकिन उसके शरीर में इतनी भी ताक़त नहीं बची थी कि वह एक कदम आगे भी बढ़ा सके। सरस्वती उसे सहारा देकर घर के अंदर ले आयी। कोसी बूढ़े की आँखों में सिमट आयी थी। तेज़ बारिश में उसके बेटे और बहु ने उसके ही घर से निकाल दिया था। जब उसके पैर जवाब देने लगे तब उसने इस घर का दरवाज़ा खटखटाया। बूढ़े के आँसू रुक नहीं रहे थे और सरस्वती दिलोजान से उसकी तिमारदारी में जुटी हुई थी। साथ-साथ बूढ़े को आश्वासन भी देती जा रही थी- “बाबा मुश्किलें भी उन्हीं के हिस्से आती हैं जो संघर्ष करने का हौसला रखते हैं, बस ये हौसला ना टूटे।” मां भी बाहर आ चुकी थी। उनहोंने तुलसी की पत्तियों और गोलमिर्च डाल कर चाय बनाई थी। उन्होंने सबको चाय देते हुए सरस्वती को लाड़ के साथ डाँट पिलाई “अपना ख्याल नहीं रखोगी तो दूसरों का ख्याल कैसे रख पाओगी? इतनी भीगी हो। जाओ कपड़े बदलो और चाय पियो।” बूढ़ा अब भी कांप रहा था। उस दिन सरस्वती के अंदर बहुत कुछ बदल रहा था। उसका अवसाद बारिश के पानी मे धुल रहा था, और उसे हम भी महसूस कर रहे थे। जाने क्यों मुझे यह बदलाव पसन्द नहीं आ रहा था। मुझे उसी हारी हुई सरस्वती की आदत हो चली थी। मैं नहीं चाहता था वह भी मेरी पसंद की स्त्रियों में शामिल हो जाए। उसका मुझ पर निर्भर रहना मुझे सुकून देता था, आत्ममुग्ध बनाता था… सर्वशक्तिमान होने का एहसास करवाता था। <br />मैंने मां से कहा “ऐसे किसी को घर के अंदर ले आना उचित है क्या? वह कौन है, कहाँ से आया है किसे पता? सरस्वती भी हर किसी पर भरोसा कर लेती है।” “ तू भी तो एक दिन सरसवती को लेकर आया था। नहीं लेकर आता तो उस दिन एक जान चली जाती। भरोसा जान से बढ़कर नहीं होता बेटा। देख ज़रा बूढ़े की हालत...अगर तेरे घर के दरवाजे पर मर जाता तो पाप किसके सिर आता?” “सो तो है माँ पर..!” कुछ और बोलने से पहले ही माँ ने डपट कर कहा “सरस्वती अपनी जगह बिल्कुल सही है, तुम गलत हो। तुम्हें तो खुश होना चाहिये कि कभी अपनी जान देने पर अमादा वह आज किसी की जान बचा रही है। तुम्हें यह बात पच क्यों नहीं रही? कहीं उसे किसी और का ख्याल रखते देख तुम्हें ईर्ष्या तो नहीं हो रही? सच-सच बता बेटा तेरी रग-रग को पहचानती हूँ। जब वह घोसले की मरम्मत कर रही थी, तब तू जिस तरह से उसे देख रहा था….बेटा तेरी माँ हूँ सच बता तू इससे शादी करेगा?” उस समय मैं सकपका गया था। मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं अपने दिल की बात माँ के सामने स्वीकार कर सकूं। मैंने पलट कर कहा- “कैसी बात करती हो माँ वह कमअक्ल मेरे लायक भी है क्या…” तभी सरस्वती वहां आ गई। मैंने कहा “ये देखो जाने किसे उठा ले आयी है घर में और उसे अकेला छोड़ यहां आ गयी।” उसने कुछ नहीं बोला। मैने उसके हर काम में कमियां निकालनी शुरू कर दी। शुरू में उसे यह यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब मैं कर रहा हूँ। वह फटी आंखों से मेरे चेहरे की ओर देख रही थी जैसे मेरे चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही हो। मैंने चेहरा घुमा लिया और कहा- “इस बूढ़े जैसे लोग ही घरों में डकैती को अंजाम देते हैं।” वह भाग कर मेरे पास आई और फुसफुसाते हुए बोली “कैसी बात करते हैं? कितने वृद्ध और बेचारे हैं। क्या उन्हें देखकर कहीं से भी वे अपराधी दिख रहे हैं क्या?” मैंने उसके हर काम में छोटी-छोटी गलतियां निकाल कर उसपर चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। मैं चाहता था कि वह मुझसे कुछ कहे, पर मेरी हर कोशिश नाकाम हो रही थी। जिन आंखों में मैं सिर्फ अपने लिए फिक्र देखना चाहता था वहां आज किसी और के लिए फिक्र थी। मैं चाहता था कि मेरे बीमार पड़ने पर ऐसी बदहवासी हो जो अभी उस बूढ़े के लिए दिख रही थी। सरस्वती किसी और के लिये इतनी फिक्रमंद कैसे हो सकती थी? गुस्से में मैंने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया। उस दिन मैंने भी उसे बाँझ कहा और उसके घर से निकाले जाने का दोषी उसके चरित्र को ठहराया। मैं उसकी प्रतिक्रिया देखना चाहता था पर उसने पलट कर कोई जवाब नहीं दिया। उस बूढ़े ने मेरी बातें सुन लीं और उसका प्रतिकार किया- “बेटे ये तो साक्षात् देवी है। इसके लिए ये कैसी बातें कर रहे तुम? इसने आज मेरी जान बचाई है। इसे गाली देकर तुम ईश्वर को गाली दे रहे।” एक बूढ़ा जो अभी थोड़ी देर पहले ज़िंदा रहने की जद्दोजहद में था वह मेरे ही घर में मुझे गलत ठहरा रहा है अब यह मेरे बर्दाश्त से बाहर हो गया था। मैंने आव देखा न ताव और चिल्लाना शुरू कर दिया -“तुम होते कौन हो समझाने वाले? इस औरत ने तुम्हारा दिमाग खराब कर दिया है। तुम दोनों निकल जाओ मेरे घर से अभी के अभी।” माँ और सरस्वती अवाक मेरा चेहरा देख रही थीं। बूढ़ा फिर से रोने लगा था। दोनों औरतें उसे चुप करा रही थी। रात घिर आयी थी। बरसात की वह रात बहुत डरावनी थी। अंदर की जलन जब शांत हुई तब गलती का एहसास हुआ। मैं उठकर सरस्वती के कमरे की तरफ गया, पर हिम्मत नहीं हुई कि उससे माफी मांग सकूं, मैं दबे पांव वापिस आ गया। बाहर वाले कमरे में बूढ़े बाबा भी सो चुके थे। माँ रोज़ की तरफ सुबह के नाश्ते के लिए सब्जी छाँट कर अलग रख रही थी। मैं अपने कमरे में आ कर सो गया।<br /><br />दूसरे दिन सुबह बारिश थम चुकी थी। नरम सी बदरकट्टू धूप फैली थी। मैं सरस्वती के कमरे में गया। वहाँ मेज पर एक चिट्ठी पड़ी थी।<br /><br />“..मेरे विचारों की कोमलता पर<br />अक्सर हावी हो जाते हैं<br />तुम्हारे अनगढ़ विचार<br />तुम्हारी संगत में मन सूफी सा हो गया<br />पर तुम रहे औघड़ के औघड़<br />कहाँ सोच पाती कुछ अलग से तुम्हारे लिए<br />अक्सर सैकड़ों तितलियाँ<br />मेरे इर्द गिर्द पंख फैलाए बे-परवाह उड़ती हैं<br />इन्हें छोड़ जाते हो अक्सर मेरे आस पास रंग भरने को<br />दूर मुस्कुराते फूलों की सुगंध पहुँच हीं आती है मुझ तक,<br />तय है इसमें भी हाथ तुम्हारा ही है,<br />ये तुम ही तो हो जो ले आते हो इन्हें मेरे करीब।<br />ये पंक्तियाँ कभी लिखी थी आपके लिए। क्या सम्बोधन दूँ समझ नहीं पा रही। आपने मुझे बचाकर उस रोज एक नया जीवन दिया था। बहुत मुश्किल था मेरे लिए हर जगह से दुत्कारे जाने के बाद ज़िंदा रह पाना। आपने अपने घर में पनाह दी, एक परिवार दिया। मुझे फिर से माँ मिल गयी। आप सभी के स्नेह ने मुझे फिर से जीना सीखा दिया। मैं अवसाद से बाहर आने लगी थी। लेकिन सच है कि चाँद दूर से जितना सुन्दर लगता है, वास्तव में वह उतना ही बदसूरत है। वहाँ गड्ढे और पत्थर के सिवाय और है क्या? मैं अपनी सच्चाई कैसे भूल सकती थी। अब मुझे अन्धकार में ही रहने दीजिए… <br />एक शाम थी जो गुज़र गई<br />एक रात है जो ठहर गई<br />अब इसी रात में जीना है। माँ से झूठ कह देना कि मैं अपने घर चली गयी।<br /><br />सरस्वती ”<br /><br />तेज़ हवा थी चिट्ठी मेरे हाथ से छूट कर उड़ती हुयी शहतूत के दरख़्त के पास जा गिरी। उस क्षण मैं खुद से नज़रें नहीं मिला पा रहा था। मैं सरस्वती से माफ़ी माँगना चाहता था, लेकिन वह उस बूढ़े के साथ जा चुकी थी। मुझे कभी खुद पर, तो कभी सरस्वती पर, तो कभी उस बूढ़े पर गुस्सा आ रहा था। आत्मग्लानि के बोझ से मैं दबा जा रहा था। मुझे इस बोझ से मुक्ति चाहिए थी। पुलिस स्टेशन, अखबार, सोशल मीडिया सबके द्वारा उसे ढूँढा लेकिन वह नहीं मिली। आज भी वह बोझ मुझे चैन से जीने नहीं देता। शहतूत की पत्तियों से छनकर आती हुई उसके हिस्से की धूप आज भी मेरे आंगन में उसका इंतज़ार कर रही है। आज उस कबूतर को देखकर ऐसा लगा जैसे वह सरस्वती ही है जो मुझसे छिपने के लिए वेश बदल ली है। <br />------<br /></span><br />
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">प्रियम्बरा</span></div>
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">प्रोडक्शन असिस्टेंट, लोक सभा टीवी </span></div>
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">एफ बी-116, संसदीय अभिलेखागार भवन </span></div>
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">मोबाइल नंबर - 9718237164 </span></div>
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">ई मेल - </span><a href="mailto:priyambara11@gmail.com" style="color: #1155cc; text-decoration-line: none;" target="_blank"><span style="background-color: transparent; font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">priyambara11@gmail.com</span></a></div>
<span style="font-size: large;"><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /></span>
<br />
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">वर्तमान पता</span></div>
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 1.38545; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">A-75/14, Old No -20,</span></div>
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 1.38545; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">तृतीय तल, गली नंबर -3 </span></div>
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 1.38545; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">गुरुनानकपुरा, लक्ष्मीनगर </span></div>
<span style="font-size: large;"></span><br />
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 1.38545; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial"; font-size: 14pt; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">नयी दिल्ली- 110092</span></div>
</div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-74913841299319481002019-08-15T18:28:00.001+05:302019-08-15T18:52:20.672+05:30बेटियों के सम्मान और रक्षाबंधन की अनूठी परम्परा - चंद्रकांता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjM1IgkAWEpsnA_1XR2jXre3C2anTAwjWCTrh3AoWbyfq8cEUE8NZI-EQY66m9lFXpFg8abI0TtzMi24jVeK1d54vcXlPLFkSGgkQVH_qWR-VkVi-UlabnvK9LCgYhZVCQaK9bdkctGwz0/s1600/68251141_2927308404008221_5165287881039675392_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="416" data-original-width="700" height="237" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjM1IgkAWEpsnA_1XR2jXre3C2anTAwjWCTrh3AoWbyfq8cEUE8NZI-EQY66m9lFXpFg8abI0TtzMi24jVeK1d54vcXlPLFkSGgkQVH_qWR-VkVi-UlabnvK9LCgYhZVCQaK9bdkctGwz0/s400/68251141_2927308404008221_5165287881039675392_n.jpg" width="400" /></a></div>
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<b><span style="font-family: "trebuchet ms" , sans-serif;"><span style="background-color: white;"><br /><br /><br />"</span><span style="background-color: white; color: #1c1e21;">राजस्थान में बेटियों के जन्म पर पेड़ लगाने और उनके संरक्षण का संकल्प न सिर्फ पर्यावरण बचाये रखने के लिए नेक कार्य है, बल्कि बेटियों के सम्मान में सार्थक प्रयास है! लेखिका चंद्रकांता ने इस अनूठी परम्परा के बारे में विस्तार से लिखा है !" </span></span></b><br />
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<span style="font-size: large;">बेटियों के सम्मान और रक्षाबंधन की अनूठी परम्परा।</span><br />
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<span style="font-size: large;">आज हमारा 73 वाँ स्वतंत्रता दिवस है और भाई बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार भी। आज़ादी के वक़्त बहोत सी आशाएं की गयी थीं उनमें से बहोत सी आशाएँ अब तलक अधूरी हैं। लेकिन जब किसी एक आशा को फलीभूत होते हुए देखती हूँ तो इस आज़ादी को सलाम करने का मन होता है। आशाओं से भरा हुआ ऐसा ही एक गाँव है पिपलांत्री। पिपलांत्री नाम का यह गाँव राजस्थान के राजसमंद जिले से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। इस गाँव की खास बात यह है कि यहाँ किसी लड़कीं के जन्म लेने पर शगुन के तौर पर 111 पौधे लगाए जाते हैं और उन्हें जीवित रखने का संकल्प लिया जाता है । इस गांव में बेटी किसी के भी घर पैदा हो बेटी के जन्म का उत्सव पूरा गांव मनाता है । </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">यहाँ किसी लड़की के जन्म पर पिपलांत्री ग्राम पंचायत उसके नाम से 18 साल के लिए ₹10,000 की धनराशि भी जमा करवाती है जिसके एवज में लड़की के माता-पिता द्वारा हर साल कुछ पौधे रोपे जाते हैं। इस तरह जब लड़की 18 वर्ष की होती है तो गांव को 180 पेड़ मिल जाते हैं और लड़की को कुछ आर्थिक सहायता। </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; font-size: x-large; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9WfoQtSr55GEpyK6SgTJR4CMKO89vFqN0pcbUQBAW5rRrK1w8tCQWRD7RbgxZzqVGbnHF8B2gqHn8mvRdCQWRo6Di6ecwKLES8oo_56BrlJd8DtN_rCDk-6Yu6Ycx3bYGnF7Oz9MWMgI/s1600/68239401_2927308454008216_8446943444110147584_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="448" data-original-width="684" height="209" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9WfoQtSr55GEpyK6SgTJR4CMKO89vFqN0pcbUQBAW5rRrK1w8tCQWRD7RbgxZzqVGbnHF8B2gqHn8mvRdCQWRo6Di6ecwKLES8oo_56BrlJd8DtN_rCDk-6Yu6Ycx3bYGnF7Oz9MWMgI/s320/68239401_2927308454008216_8446943444110147584_n.jpg" width="320" /></a></div>
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<span style="font-size: large;">यह परंपरा गांव के पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल ने अपनी बेटी की आकस्मिक मृत्यु होने के बाद शुरू की थी। पिपलांत्री गाँव में हर किसी व्यक्ति के नाम का एक पेड़ लगा हुआ है जिसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी भी उसी व्यक्ति पर है । यहाँ किसी की मृत्यु होने पर भी उस व्यक्ति की याद में 11 पेड़ लगाए जाते हैं। डेनमार्क ने इस परंपरा से प्रभावित होकर इस गांव के विकास की कहानी को अपने स्कूल के सिलेबस में शामिल किया है |</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">आज यह गाँव विश्व विख्यात है और एक निर्मल, स्वच्छ, और आदर्श ग्राम के रूप में जाना जाता है . पर्यटकों का भी इस गाँव से विशेष लगाव है उनकी आवाजाही यहाँ लगी रहती है. उदयपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर यह गाँव एक ऐसी जगह पर स्थित है जहाँ संगमरमर का खनन किया जाता है ऐसी जमीन पर हरियाली की बात सोच सकना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है . क्यूंकि जहाँ भी संगमरमर खनन किया जाता है वहां जल का स्तर काफी नीचे चला जाता है ,आस पास की खेती सूख जाती है और वन्य जीवन का ह्रास हो जाता है .लेकिन पिपलांत्री गाँव के लोगों ने सरपंच श्याम सुन्दर जी के मार्गदर्शन में इस चुनौती को सच कर दिखाया . 2005 से पहले तक यह गाँव भी बाकी गाँवों की तरह उजाड़ ही था लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे थे लेकिन श्याम सुन्दर पालीवाल के सरपंच बनने से यहाँ सब कुछ बदल गया. इसके लिये श्याम सुन्दर जी ने यहाँ के लोगों को पेड़ लगाने और उन्हें बचाने के लिये प्रोत्साहित किया, उन्होंने बरसात के पानी को जमा करने की मुहीम शुरू की और छोटे बड़े कई सौ बाँध बनाए, ताकि भूमिगत जल को रिचार्ज किया जा सके . आज यहाँ जलस्तर काफी बेहतर स्थिति में है।</span><br />
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<br />
<span style="font-size: large;">पिपलांत्री गाँव की और भी कई बातें अनुकरणीय हैं। यहाँ पंचायत की </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiS4Y_YADJbYnWqt8tDSsVahrHq8bQ5-Ow-CmpRNCwXCd5SotY_ZRWl3MJez3zTrQh96QdsKSoG1sjVR5PmQVYyE_UxHk3XupYUOThp3Y4HauRb5-CjhGZkysgZH5KjezuXtx0GqmdeNLg/s1600/69235654_2927308544008207_5483168198847102976_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="389" data-original-width="546" height="227" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiS4Y_YADJbYnWqt8tDSsVahrHq8bQ5-Ow-CmpRNCwXCd5SotY_ZRWl3MJez3zTrQh96QdsKSoG1sjVR5PmQVYyE_UxHk3XupYUOThp3Y4HauRb5-CjhGZkysgZH5KjezuXtx0GqmdeNLg/s320/69235654_2927308544008207_5483168198847102976_n.jpg" width="320" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;">कोशिश रहती है कि सभी रोजगार स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध करवाए जाएं. यहाँ गाँव की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह बनाए हुए है जहाँ खासकर एलोवेरा और आंवला के उत्पाद बनाए और बेचे जाते हैं . इससे उन्हें रोजगार मिला है और वे आत्मनिर्भर बनी हैं। गांव में ही एलोवीरा प्रोसेसिंग प्लांट लगाया गया है। गांव की महिलाएं मिलक एलोवीरा जूस, क्रीम, साबुन,फेसवॉश आदि तैयार करती हैं जिन्हें पिपलांत्री ब्रांड के नाम से बेचा जाता हैं |</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">एक और दिलचस्प बात रक्षाबंधन के दिन इस गांव की महिलाएं पेड़ों को राखी बाँधती हैं और उनकी सुरक्षा का वचन देती हैं। साथियों, परम्पराओं को प्रकृति और विकास से जोड़ दिया जाए तो हम स्थानीय स्तर पर ही ग्रामीण और शहरी जनजीवन की तस्वीर बदल सकते हैं . कितना अनूठा संबंध है पिपलांत्री के लोगों का अपनी बेटियों और प्रकृति से। देश का प्रत्येक गाँव और शहर पिपलांत्री जैसा आत्मनिर्भर और बेटियों को सम्मान देने वाला हो इस रक्षाबंधन और आज़ादी पर यही शुभकामनाएं है |</span><br />
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<span style="font-size: large;">--चंद्रकांता<br /><br />स्वतंत्र लेखिका<br />email: chandrakanta.80@gmail.com</span><br />
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<div class="separator" style="clear: both; font-size: x-large; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiA6-6cq8uPqjKDminkOf5i9E9dJP4DrPr39nitRg6sHIgFq4GaU61aKOmi6T_QhE9IUEUl4OUfoVM74i2VErKPRTGwUc2kJI_fyVR6FnFU8TGSZsbEhp2wbOiBUDCbh7vUBy-0Q4I6Aaw/s1600/68612814_2407643299271149_5306441418581999616_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="947" data-original-width="956" height="197" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiA6-6cq8uPqjKDminkOf5i9E9dJP4DrPr39nitRg6sHIgFq4GaU61aKOmi6T_QhE9IUEUl4OUfoVM74i2VErKPRTGwUc2kJI_fyVR6FnFU8TGSZsbEhp2wbOiBUDCbh7vUBy-0Q4I6Aaw/s200/68612814_2407643299271149_5306441418581999616_n.jpg" width="200" /></a></div>
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shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-79420071390776066532019-05-27T20:45:00.001+05:302019-05-27T20:45:16.932+05:30टीस महिला दिवस की - मीना पाठक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBgnVTagnY5opu4Vboh8kjzuXBsMfMS8kPpBn0dH7RfJdhvSnBy89OuVnCRBdH3cNVjsvlXLOoUCbkNwRjcJQZmHBbchQ9ucMqb_JeZv7mpZbythPe27Ch7ozd2ExPojwA4HhwkKpUJsk/s1600/61060511_1519674778163770_7637367466301063168_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="518" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBgnVTagnY5opu4Vboh8kjzuXBsMfMS8kPpBn0dH7RfJdhvSnBy89OuVnCRBdH3cNVjsvlXLOoUCbkNwRjcJQZmHBbchQ9ucMqb_JeZv7mpZbythPe27Ch7ozd2ExPojwA4HhwkKpUJsk/s320/61060511_1519674778163770_7637367466301063168_n.jpg" width="245" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><br /><br />टीस महिला दिवस की<br />---------------------------<br /><br /></span><span style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;">"हिंदी अकादमी द्वारा प्रकाशित इंद्रप्रस्थ भारती के मई अंक में मीना (दीदी) पाठक की कहानी "टीस महिला दिवस की" प्रकाशित हुई है। आज मीना दीदी का जन्मदिन भी है।"</span><br style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;" /><span style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;">खूब </span><span class="_ezo" id="u_fetchstream_4_1" style="background-color: white; color: #f1765e; cursor: pointer; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; font-weight: 600;">बधाई</span><span style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;"> दीदी को</span><span class="_5mfr" style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin: 0px 1px;"><span class="_6qdm" style="background-image: url("https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/te3/1/16/1f490.png"); background-repeat: no-repeat; background-size: contain; color: transparent; display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 16px; height: 16px; text-shadow: none; vertical-align: text-bottom; width: 16px;">💐</span></span><span style="font-size: large;"><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /> <br /> “का भाग ले के जन्मे रहे महतारी की कोख से..नैहर में ढेर नाही त कुछ कम भी नाही था..बाबू कउनों चीज की कमी नाहीं होवे देत रहे..बड़ा देख सुन कर अपने से अच्छे घर में बियाहे रहे कि उनकी बबुनिया रानी बन कर रहेगी..बाकिर हमरे करम फूटल रहा..त ऊ का करें..खेती-पाती..घर-दुआर..जनावर..सबेकुछ रहा..बाकी भाइन में बटवारा के बाद जऊन खेती-पाती हिस्से आयी..मंगरुआ के बापू धीरे-धीरे सब बेच खाए..अब तो बस गुजर-बसर भर को ही जमीन बची है..गाय-गोरू के नाम पर दुइ ठो बैल..का से का हो गयी जिनगी !” <br />सोचते-सोचते उसकी आँख भर आयी, अपनी सूती साड़ी की खूँट से आँसू पोंछ कर वह जल्दी-जल्दी खुरपी चलाने लगी |<br /> बुधिया खेत की मेड़ पर बैठी खुरपी से हरी-हरी घास खोदते हुए मन ही मन अपने भाग्य को कोसती जा रही थी | तभी अचानक उसके पीछे से आवाज आयी --<br /> “अरी बुधिया..! आज इतनी धूप में ?”<br /> उसने घूम कर देखा, गाँव के सरकारी स्कूल की मास्टरनी जी थीं | उसने खुरपी छोड़ कर दोनो हाथ जोड़ दिए | उनके हाथ में फूलों का गुच्छा और चमचम करती कोई चीज थी जिसे देख कर वह पूछ बैठी – “ई का है मास्टरनी जी ? अऊर ई इत्ता सारा फूल !”<br /> उसकी जिज्ञासा शांत करते हुए मास्टरनी जी मुस्कुरा कर बोलीं- “महिला दिवस पर मुझे सम्मानित किया गया है..कल छुट्टी है..इस लिए आज ही हेडमास्टर जी ने सभी अध्यापिकाओं के साथ मेरा भी सम्मान किया है |” <br /> दोपहर में स्कूल की छुट्टी कर के रोज इस मेड़ से मास्टरनी जी चल कर अपने गाँव जाती थीं और अक्सर बुधिया से उनकी मुलाकात हो जाती थी| फिर थोड़ी गप-शप, थोड़ा हँसी-मज़ाक कर वह आगे बढ़ जातीं थीं और इन सब से बुधिया का मन भी हल्का हो जाता था | आज भी वही हुआ, स्कूल से लौटते हुए मास्टरनी जी को बुधिया घास छीलती दिख गयी और वह उसकी ओर बढ़ आयी थीं |<br /><br /> “अच्छा !” बुधिया की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं, महिला दिवस क्या होता है उसे कुछ समझ नहीं आया | मास्टरनी जी उसे अचकचा कर अपनी ओर देखते देख कर बोलीं -<br /> “हाँ...महिला दिवस के दिन महिलाओं को उनके अच्छे कार्यों के लिए सम्मानित किया जाता है |”<br /> “तो का सबही मेहरारून के सम्मान होत है ? हम जइसन का भी ?” आँखें झपकाती हुई पूछ बैठी बुधिया |<br /> “हाँ बुधिया..इसी लिए यह दिवस मनाया जाता है ताकि सभी लोग, सभी स्त्रियों का सम्मान करें |”<br /> “अच्छा..! ई बात है !” बुधिया ने कह तो दिया पर उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि स्त्रियों के सम्मान के लिए भी कोई दिन तय है | फिर मन ही मन सोचती है कि मास्टरनी जी कह रहीं हैं तो सही ही होगा |<br /> “अब तू बता..अपने पति को क्यों नही भेजती इस काम के लिए ?..जब देखती हूँ तू ही घास काटते हुए दिखाई देती है |” मास्टरनी जी उसे स्नेह से डपटते हुए बोलीं |<br /> “हुंह ! ..दुई बैल बचे हैं दुआर पर..उसके भरोसे छोड़ देई त भूखे मरि जइहें मास्टरनी जी..ऊ कहीं पी के पड़ल होई !” पति का नाम सुनते ही गुस्से से उबल पड़ती है बुधिया |<br /> “कल महिला दिवस है..अपने पति को भेजना घास लेने..तुम मत आना..!” मास्टरनी जी हँस कर बोलीं | <br /><br />“अच्छा !” आश्चर्यचकित हो कर मास्टरनी जी की ओर देखा बुधिया ने |<br /> “अरे ! कल का दिन तुम्हारा है..तुम्हें जो अच्छा लगे वह करना अपनी पसन्द से..समझी..!” कहते हुए मास्टरनी जी आगे बढ़ गयीं |<br /><br /> उनके जाने के बाद बुधिया सोचने लगी ‘तो का हम बिहान अपने मर्जी से सब करब ?..जऊन मन करे तऊन !”<br /> बुधिया को लगा महिला दिवस कोई त्योहार है, जैसे दशहरा, दीपावली, होली आदि पर इससे पहले तो उसने इस त्योहार के बारे में कभी नहीं सुना था | <br /> “अरे ! अब तो पता चल गया ना |” बुधिया मन ही मन खुश हो गई..चलो कम से कम एक दिन तो अपनी मर्जी से..अपने मन मुताबिक़ कुछ कर सकती है ..यही बहुत है..भागे भूत की लंगोटी ही सही..जिन्दगी का एक दिन तो खुशी से बीते...उसकी खुरपी तेज हो गयी |<br /> बुधिया का मन बल्लियों उछलने लगा..उसे लग रहा था कितनी जल्दी आज का दिन बीते और कल का दिन आये..महिला दिवस मनाने की खुशी में वह बाकी सब भूल गयी | <br /> जल्दी-जल्दी लायी हुई घास झाड़ कर उससे मिट्टी निकालने के बाद बुधिया ने गड़ासे से उसके छोटे-छोटे टुकड़े काट लिए फिर कुछ बैलों के आगे नाँद में डाल दिया और कुछ सुबह के लिए रख लिया | <br /> *<br /> आज तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं है, खुशी के कारण वह खेलावन की दी हुयी सारी तकलीफें इस समय भूल गई है इसी लिए उसे कोसना छोड़ अपना मन पसन्द गीत -<br /> ‘पान खाए सइयां हमारो..<br /> साँवली सूरतियाँ होठ लालो लाल..<br /> हाय-हाय मलमल का कूरता’... <br /> तन्मयता से गुनगुनाते हुए बगीचे से जो सूखे पत्ते बीन कर लायी थी उसके साथ कुछ उपले जला कर रात की रोटी पकने के बाद खुशी-खुशी खेलावन को बुला कर खाना परोसने लगी |<br /> “आज कुछु पा गयी का..जो इतना खुश है..हरदम जहर-माहुर उगलत तोर मुंह नाहीं खियाता है..अऊर आज त सइयां के पान खिया रही..!” खेलावन उसे गुनगुनाता देख कर तंज कसता है | <br /> बुधिया बिना कुछ जवाब दिए थाली उसके आगे रख कर लोटा में गगरी से पानी उझीलने लगी, होठों से अब भी गीत के बोल फूट रहे थे | तभी खेलावन के चिल्लाने से चौंक गयी वह |<br /> “ई रोज-रोज घास-पात !..तू ही खा..नाही खाना मुझे !” खेलावन थाली सरका कर उठ गया पीढ़े से |<br /> बुधिया की सारी ख़ुशी पिघल कर बह गयी | चेहरे पर मुस्कुराहट की जगह गुस्से की लकीरें खिंच आयीं, होठ गीत गुनगुनाना भूल गए | कुछ देर जलती निगाहों से खेलावन को देखने के बाद वहीं लोटा पटक कर बरस पड़ी - <br /> “अरे !..त काहे नाहीं बजार से तरकारी भाजी खरीद लाता है..घर में नाहीं दाने आम्मा चली भुनाने...औकात दो कौड़ी की नाहीं औ खाये का भाजी तरकारी चाहीं..अरे !..खाए पिए का सऊक है त जा..काम कर...खेत में पसीना बहा..कहीं मजूरी कर...दुई पैसा घर ला...तब ई रुआब दिखा...सब तो बेच कर पी गया..मेरा खून भी तो नाही छोड़ा तूने देह में...नहीं तो वही पिला देती तुझे... आत्मा जुड़ा जाती तेरी..जिनगी में कउनो सुख नाही जाने..खाये पीये और सोवे के लिए हम ई के मेहरारू..ओकरे बाद जनावर से भी गये गुजरे...!” <br /><br />खेलावन खिसिया कर पैर पटकते हुए बाहर चला गया | बुधिया अपने भाग्य को कोसते हुए अपना गुस्सा बर्तनों पर निकालने लगी | आज का दिन अच्छा ही था उसका जो इतनी तीखी बातें सुन कर भी खेलावन ने हाथ नहीं उठाया था उस पर | वह तो पहले ही बेचन तमोली के साथ पी-खा कर आया था, वो तो बुधिया को दिखाने के लिए खाने चला गया था | कहाँ वो मुर्गा और दारु ! कहाँ ये सूखी साग-रोटी !<br /> वह खटिया पर फ़ैल कर खर्राटे भरने लगा | बुधिया भी झंखती-पटकती अपनी खटिया पर ढिमिला गयी |<br /> *<br /> अगले दिन भोर में ही झाड़ू-बुहारू के बाद दुआर पर पानी छिछ्कार कर फिर पिछले दिन की बची हुई कटी घास बैलों को डाल दिया बुधिया ने | इन्हीं बैलों के कारण कुछ पैदावार हो जाती थी | जो थोड़े से खेत बचे थे, इन बैलों के सहारे ही जोते-बोये जाते थे | खेती के थोड़े बहुत काम के अलावा खेलावन कुछ नहीं करता था | बुधिया ही सब करती, जब उसका जी जलता तो खेलावन को जी भर के उल्टा-सीधा बोलती तब खेलावन उस पर हाथ छोड़ देता | बुधिया रो-धो कर फिर काम में लग जाती, यही उसका जीवन था |<br /> *<br /> खेलावन अभी तक सो रहा था, वह रात की बात भूल गई थी | कल की बात भूल कर आगे बढ़ जाना ही रोज का काम था उसका | खेलावन को जगा कर वह भीतर चली गयी | खेलावन खटिया उठा कर खड़ी करने के बाद कुएँ की ओर बढ़ गया | भीतर बुधिया हड़ियाँ-पतुकी में कुछ ढूंढ़ने लगी, एक पुरानी पतुकी में थोड़ा गुड़ और हड़ियाँ की पेंदी में थोड़ा सा चावल मिल गया उसे | वह चूल्हा जला कर रसिआव बनाने बैठ गयी कि तभी खेलावन आ गया | बुधिया अपने आँचल के खूँटे से एक मुड़ा-तुड़ा दस रु० का नोट निकाल कर खेलावन को देते हुए बोली – “बजारे से कउनो नीक तियना-तरकारी ले आओ..अऊर सुनो !..आज हम दुभिया लेबे नहीं जायेब..आज तोहके जाये का है |”<br /> खेलावन नोट पकड़ते हुए अकड़ गया - “काहे..? आज केहू आ रहा है का..जो नहीं जायेगी दुभिया के खातिर या आज कौनो तीज त्यौहार है ?”<br /> “अरे ! आजु मेहरारू लोग का दिन है ना !” वह उसे कुछ बताना नही चाहती थी फिर भी ना चाहते हुए भी उसके मुँह से निकल गया | खेलावन से किसी उपहार की उम्मीद तो थी नहीं उसे कम से कम इसी बहाने एक दिन का आराम पा जायेगी काम से, थोड़ा साँस ले लेगी राहत की| उसके लिए इतना ही बहुत था | <br /> खेलावन की कामचोरी..शराब पीने की आदत और मार-पिटाई से वह आज़िज रहती थी..उसके जाते ही वह चूल्हे पर चढ़ा हुआ रसिआव चलाने लगी..चूल्हे में सूखे पत्तों के जलने की चट्ट-चट्ट की आवाज सुन कर बुधिया को लगता है कि वह भी तो जीवन भर इन्हीं पत्तों की तरह जलती रही है...खेलावन के पीने की आदत ने उसे कहीं का नहीं रखा | <br /> उसे याद आता है कि कैसे उसका पाँच साल का बेटा मंगरू काली खाँसी से खाँसते-खाँसते परलोक सिधार गया था..पर पीने के आगे खेलावन ने बच्चे की जरा भी सुध नहीं ली..जितनी बार भी रुपया ले कर घर से गया..दारू पी आया और कह दिया कि बैद्य जी कहे हैं..आदी, तुलसी, पीपर अउर काली मरिच का काढ़ा पिलाओ बच्चे को... वह काढ़ा पिलाती रही..पर एक दिन मंगरू की खाँसी और मंगरू..दोनों शान्त हो गये..| सोचते-सोचते उसकी आँखों से आँसुओं की धारा छलक पड़ती है, मंगरू को याद कर के उसका कलेजा फटने लगा | वह खेलावन के लिए क्रोध और नफ़रत से भर उठी | मन में सोचने लगी कि वह कैसे रह रही है इस जानवर के साथ ?..फिर सोचती है कि आखिर जाय तो जाये कहाँ ?..बस किसी तरह जिन्दगी कट रही उसके साथ |<br /> *<br /> अचानक कुछ जलने की महक से उसकी सोच को झटका लगा..वह चौंक पड़ी..चूल्हे पर चढ़ा हुआ रसिआव फफा-फफा कर जल गया था..तसली से धुँआ उठ रहा था..जल्दी से तसली उतारने में उसकी उंगलियाँ जल गयीं..उसने बिना सपटा के ही तसली उतार लिया था..उँगली के साथ उसका अंतर्मन भी जलने लगा..वह वहीँ बैठ कर सिसक पड़ी..कुछ उँगलियों की जलन और उससे भी ज्यादा अन्तर के तपन की पीड़ा !..भरभरा कर उसकी आँखों से बह निकला |<br /> वह चूल्हे की तरफ देखती है..कुछ उपलों की राख में अब भी आग बचा था.. पत्ते जल कर ख़ाक हो गये थे..पर कुछ पत्तों ने जलने के बाद भी अपना आकार नही खोया था |<br /> दिन चढ़ने लगा..बुधिया ने आलू कुचल कर उसे अपनी उंगलियों पर थोप लिया..जिससे उँगलियों की जलन में कुछ आराम मिला.. पर अपनी आत्मा पर वह क्या छापे..कौन सा मरहम लगाए कि वहाँ भी थोड़ी रहत मिले !<br /> * <br /> बुधिया खेलावन की राह देखते-देखते थक गई..कल की बची हुई घास उसने बैलों को डाल दिया..अब उसे शाम के चारे की चिंता होने लगी..खेलावन अभी तक नही आया था..खरामे-खरामे दुपहरिया भी खिसकने लगी थी | बुधिया सब भूल गई, बैलों के चारे की फिकर में उसकी भूख प्यास सब मर गई |<br /> उसने खाँची-खुरपी और बोरी उठायी, घर के दरवाजे पर साँकल चढ़ा कर चल दी बगीचे की ओर | पहले गिरे हुए सूखे पत्ते बटोर कर बोरी में भरा फिर उसे वहीं एक पेड़ के सहारे रख कर वह एक ओर बैठ कर हरी मुलायम दूब इकठ्ठा करने लगी | उसे अब ना उंगलियों में जलन महसूस हो रही थी ना ही सुबह की तरह मन में कोई उत्साह ही रह गया था, वह यंत्रवत अपने काम में लग गयी | आज स्कूल बंद था | मास्टरनी जी शायद आज भी महिला दिवस मना रही थी | शाम होने को थी | उसकी खाँची भर गई, उसने इधर-उधर देखा तभी उसे बाजार जाता हुआ भगेलू का लड़का दिखाई दिया |<br /> “रे रमेसरा !..तनी ई खांची हमरी मुड़िया पर धरा दे रे !”<br /> रमेसरा दौड़ता हुआ आया और उसकी खाँची उसके सिर पर रखवा कर चला गया | बुधिया एक हाथ से सिर पर खांची को संभाले और दूसरे हाथ से पत्ते वाली बोरी उठये कर घर की ओर चल दी | मन ही मन फिर से अपने भाग्य को कोसने लगी- “हमरे भाग में एको दिन चैन-सकून का नाहीं लिखा बरम्हा ने !” उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था पेट में आँतें मरोड़ रही थीं, भूख कुलबुला रही थी | वह तेजी से घर की ओर बढ़ गयी |<br /> <br /> घर पहुँच कर फिर से वही सब काम, घास झाड़ना, छाँटी काटना, बैलों को चारा-पानी देना फिर चूल्हे के आगे बैठ कर रसोई के लिए सोचना कि क्या बनाऊँ क्या ना बनाऊँ | वह उठी और एक लोटा पानी हरहरा कर पी गई फिर घर के बाहर आ कर बैठ कर खेलावन की राह देखने लगी | उसने सोच लिया था कि आज उसे भी भूखा रखेगी, कुछ नहीं बनाएगी खाने को |<br /> अन्धेरा होने लगा था थोड़ी देर बाद खेलावन झोला लटकाए आता दिखाई दिया | उसने सोचा कि आज जी भर के सुनाएगी, चाहे जो हो | खेलावन के नजदीक आते ही एक जोर की भभक लगी उसे, वह समझ गई कि आज भी पी कर आया है वह | <br /> गुस्से में बिफर पड़ी बुधिया ..”आजो पी आया !..एक दिन बिना पिए नहीं रह सकता...तरकारी के खातिर रुपया दिए रही तोहका..वोहू पी के आ गया..पेट है कि नाँद..कब्बो भरता ही नाही..हमार तो करम फूटा रहा कि तोहरा जईसन मरद मिला...ए से नीक त बाबू हमका कौनो नदी-नाले मे बहा दिए होत..त ई बीपत त ना भोगे के पड़त..तोहरे जइसन पियक्कड़ आ कामचोर मरद हमरे भाग में लिखल रहे |” गुस्से में बुधिया ने खाली झोला खेलावन के हाथ से झटक कर खींच लिया | नशे की हालत में भी खेलावन का पुरुषत्व जाग गया, उसने लपक कर भीतर जाती हुई बुधिया का झोंटा पकड़ लिया और उसे गाली देते घसीटता हुआ आँगन में ले आया..<br /> “रुक ससुरी, आज तोर दिन है ना..एही से ढेर मुँह चला रही है..कल्हिये से ढ़ेर फड़फड़ा रही है..जऊन मुंह में आ रहा तऊन बक रही है..चल आजु तोर पखिया कतर के मेहरारून के दिन मना देत हयीं हम..ढेर दिन हो गयील..खाए भर का नाहीं मिलल ..आजु देत हईं तोके खाए भर के !” <br /> बुधिया चीख रही थी “छोड़ दे रे...कौनो दिन मेहरारून के नाही होत..छोड़ दे...छोड़ दे ...जनावर..छोड़ दहिजार के पूत..मुतपियना..रे अभगवा..! छोड़ मुझे !” <br /> *<br /> दो-तीन दिन बीत गये थे मास्टरनी जी को बुधिया नहीं मिली थी | उनके मन में शंका हो रही थी कि उन्होंने तो उस दिन यूँ ही मजाक में कह दिया था बुधिया से, कहीं उसने उस बात को गम्भीरता से तो नहीं ले लिया ? वह जानती थीं खेलावन को, वह एक नम्बर का गँवार और शराबी था इस लिए उनके मन में शंका घर कर गई | उन्होंने सोचा कि कल स्कूल की छुट्टी के बाद वह बुधिया की खोज-खबर लेने उसके घर जायेंगीं |<br /> *<br /> अगले दिन कुण्डी बुधिया के घर की कुंडी खटकाने पर रुखिया ने दरवाजा खोला | खबर लगते ही वह ससुराल से भागी-भागी माँ को देखने चली आई थी | <br /> “अरे ! तू कब आई ?” उसे देखते ही बोलीं मास्टरनी जी |<br /> “माई को देखने आई थी |” <br /> “का हुआ उसे ?” मन ही मन डरते हुए पूछा उन्होंने |<br /> <br /> बिना कुछ जवाब दिए वह उन्हें भीतर बुधिया की खटिया के पास ले गयी | मास्टरनी जी की आवाज सुन कर बुधिया ने कराहते हुए अपनी आँखें खोली | सामने मास्टरनी जी को देख कर सिसक पड़ी |<br /> मास्टरनी जी उसकी दशा देख कर घबरा गयीं | बिखरे बाल..आँखों के नीचे काला...सूजे हुए होठ...गालों पर छपे उँगलियों के निशान देख कर वह सब समझ गयीं कि क्या हुआ है | उनकी शंका सही निकली | पूछने पर बुधिया ने सब बताया और अपने शरीर पर लगा कपड़ों में छुपा हुआ घाव भी दिखाया, उसके पूरे शरीर पर जगह-जगह काले निशान पड़े थे, खेलावन ने उसे जानवर की तरह पीटा था | दवा के लिए पूछने पर रुखिया ने बताया की ‘माई कुछो खा-पी नहीं रही है |’ मास्टरनी जी ने आज व्यस्तता के कारण अपना नाश्ता नहीं खाया था उन्होंने बुधिया को प्यार से समझा बुझा कर अपना नाश्ता खिलाया और कहा-<br /> “इसी हालत में चल मेरे साथ..अभी |” <br /> “कहाँ ?” चौंक कर बोली बुधिया |<br /> “ग्राम-प्रधान या पुलिस के पास..खेलावन की शिकायत करने..मैं भी चलती हूँ तेरे साथ..दो दिन में ना सुधर जाए तो कहना |” गुस्से से तमतमाते हुए बोलीं मास्टरनी जी |<br /> पर हर बार की तरह इस बार भी बुधिया तैयार नहीं हुयी | फिर आने को कह कर बाहर निकल आयीं | वो कई बार समझा चुकी थीं बुधिया को कि वह खेलावन के खिलाफ़ कोई कदम उठाये; पर वह नहीं सुनती थी, कहती थी कि “का होगा इससे मास्टरनी जी?..पुलिस के डंडे की चोट पर हरदी हमही का छापे के पड़ी |” उसका जवाब सुन कर वह चुप रह जातीं | हर बार मार खा कर रो-धो कर बैठ जाती थी पर इस बार बुधिया की इस हालत की जिम्मेदार वह स्वयं को मान रही थीं | उनका ये छोटा सा मजाक हमेशा उनके हृदय को टीसता रहेगा | वह मन ही मन व्यथित थीं कि अपनी गलती का पाश्चाताप कैसे करें ?<br /> अचानक उन्होंने मन ही मन कुछ निर्णय किया और उसके घर से निकल कर आगे बढ़ गयीं | <br /> *<br /> अगले दिन सुबह-सुबह ही पुलिस के साथ ग्राम प्रधान खेलावन के घर पहुँच गये | पुलीस दरोगा को देख कर गाँव के लोग खेलावन के दरवाजे एकत्र होने लगे | सभी फुसफुसा रहे थे कि ‘पुलीस क्यों आई है ?’ कहीं खेलावन पीने के साथ चोरी भी तो नहीं करने लगा !’ <br /> प्रधान की कड़कती आवाज सुन कर खेलावन बाहर आया | प्रधान के साथ पुलिस और गाँव वालों की भीड़ देख कर उसके होश उड़ गये | वह हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया तभी दारोगा साहब बोले - “तेरा नाम ही खेलावन है ?”<br /> उनके सामने हाथ जोड़ता हुआ बोला, “हाँ साहेब पर हमने तो कुच्छो नहीं किया है |”<br /> दारोगा ने उसका कालर पकड़ते हुए घसीटा और जोर का एक थप्पड़ उसके चेहरे पर रसीद कर दिया | खेलावन के आँखों के सामने तारे छिटकने लगे वह घिघियाता हुआ बोला, “साहेब !..हमरा कुसूर तो बताव |”<br /> “ससुर का नाती !..मेहरारू से बकयिती दिखा रहा..चल अब दिखा बकयिती..हमहूँ त देखें..तू केतना बड़ा बकैत है...घर की औरत पर हाथ उठाता है!” बड़बड़ते हुए दारोगा ने आठ दस लात और घूसों से उसकी पिटाई कर दी |<br /> शोर सुन कर रुखिया के सहारे बुधिया भी बाहर आ गई और खेलावन को पिटते देख अपना सारा दर्द भूल कर वह दरोगा से हाथ जोड़ कर खेलावन को छोड़ने के लिए गिड़गिड़ाने लगी |<br /> दरोगा के कहने पर खेलावन को पूरे गाँव के सामने बुधिया से क्षमा माँगनी पड़ी | बुधिया की विनती पर दारोगा ने उसे इस शर्त पर छोड़ा कि वह आगे से बुधिया पर कभी हाथ नहीं उठाएगा और एक कागज़ पर लिखवा कर उस पर खेलावन के अंगूठे का निशान भी ले लिया | <br /> धीरे-धीरे दोनों की जिंदगी पटरी पर आ गई, खेलावन ने फिर कभी बुधिया पर हाथ नहीं उठाया और मेहनत से खेती करने लगा |<br /> *<br /> खेलावन को उसके किये की सजा मिल गई और वह सुधर भी गया, बुधिया के दिन बहुर गये | अब वह घर के काम के साथ-साथ मास्टरनी जी से पढ़ना-लिखना भी सीख रही थी, पर अब भी ना जाने कितने खेलावन हमारे समाज के कोने-कोने में छुपे बैठे हैं, जरुरत है मास्टरनी जी की तरह उन सभी के चेहरे से नकाब उतारने की और खेलावन जैसे व्यक्तिओं को उसके किये की सजा दिलाने की | पड़ोस के घर से आती सिसकियों की आवाज सुनकर भी नजरअंदाज करने से खेलावन जैसे अहंकारी पुरुष अपनी पत्नियों से हिंसा करते रहेंगे|<br /> <br /> <br /><br />--मीना पाठक<br /><br /><br /><br />. <br /> 'अंतर्मन ' ब्लॉग का सफल संचालन , <br /> प्रकाशित कृति – (साझा संग्रह)-‘अपना-अपना आसमा’, ‘सारांश समय का’, ‘जीवन्त हस्ताक्षर-2’, ‘काव्य सुगंध भाग-2’, ‘सहोदरी सोपान-2’, ‘जीवन्त हस्ताक्षर-3’ ‘लघुकथा अनवरत’ और ‘जीवंत हस्ताक्षर -4’ <br /> ‘लमही’, हिन्दुस्तान, जागरण, ‘कथाक्रम’ विश्वगाथा, भाषा-भारती, ‘निकट’, उत्तर प्रदेश सरकार की पत्रिका ‘उत्तर-प्रदेश’ व भारत सरकार की पत्रिका ‘इन्द्रप्रस्थ भारती’, ‘समहुत’ आदि अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ व कविताएँ प्रकाशित, विभिन्न ई -पत्रिकाओं और ब्लॉग पर नियमित रचनाएँ प्रकाशित होतीं रहती हैं .<br /> सम्मान - शोभना वेलफेयर सोसायटी द्वारा-शोभना ब्लॉग रत्न सम्मान 2012, माण्डवी प्रकाशन द्वारा 2014 में ‘साहित्यगरिमा’, अनुराधा प्रकाशन से ‘विशिष्ट हिन्दी सेवी’ सम्मान तथा ‘विश्व हिन्दी संस्थान कल्चरल आर्गेनाइजेशन कनाडा द्वारा उपन्यास ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ में रचना धर्मिता के लिए सम्मान 2015 प्राप्त हुआ और कहानी ‘शापित’ 92.7 big fm द्वारा सम्मानित हुई ..<br /> <br /> ई - मेल आईडी-- <a href="mailto:meenadhardwivedi1967@gmail.com">meenadhardwivedi1967@gmail.com</a><br /> फोन-0 9838944718<br /><br /> <br /> <br /> <br /> <br /> <br /> <br /><br /><br /> <br /> <br /> <br /> <br /> <br /> <br /> <br /> <br /> <br /> <br /> <br /> </span><br /> </div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-34115228104196917782019-05-04T11:34:00.004+05:302019-05-04T11:34:58.940+05:30मित्रो मरजानी : कुछ खतरे, कुछ दुश्वारियां - रोहिणी अग्रवाल <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6tzbnl1fcFA6Gi9CpQI5n3905iPQtMkYPScsDaUeL9JQcphKnMRqzFe0c1YCor-rvEfOg7J9jZ2yFOuLBfjhBMKzWwIlcldkCY39n6CmWGrb_pLVaft12BVK0TnYgHqedy8nYDngx0ds/s1600/1979631_762323963801429_2011370468_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="749" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6tzbnl1fcFA6Gi9CpQI5n3905iPQtMkYPScsDaUeL9JQcphKnMRqzFe0c1YCor-rvEfOg7J9jZ2yFOuLBfjhBMKzWwIlcldkCY39n6CmWGrb_pLVaft12BVK0TnYgHqedy8nYDngx0ds/s320/1979631_762323963801429_2011370468_n.jpg" width="249" /></a></div>
<br /><br /><span style="background-color: #f1c232; font-size: x-large;">मित्रो मरजानी : कुछ खतरे, कुछ दुश्वारियां </span><br /><br /> <br /><span style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;"><b>हंस के अप्रैल अंक में वरिष्ठ लेखिका, आलोचक रोहिणी अग्रवाल जी का प्रकाशित लेख "मित्रो मरजानी: कुछ खतरे, कुछ दुश्वारियाँ" फ़रगुदिया पाठकों के लिए. </b></span><br /><span style="font-size: large;"><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />“मैं पानी में भीग-भीग कर अपनी आत्मा तक फैले हुए सूखे को </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> नहला देना चाहती हूं. </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> मैं थार हूं, सब्जा नहीं। </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> ताल के एेन बीचो-बीच पाल वाली नौका डगमगाती सी किनारे की </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> ओर तिरती सरकती है। </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> मैं आँखें चुराए रहती हूं और ताल के उस एर वाली राह को </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> दिल ही दिल में घेर लेती हूं। </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> अनजाने ही अपने से शर्त बांध ली है कि पूरे ताल के साथ दौड़ूंगी </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> चाहे अंधड़ हो। तूफान हो। जो कुछ भी हो। </span><br /><br /><span style="font-size: large;">……………… </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> कहीं पहुंचने का फैसला ही कर लिया तो पहुंचने की जल्दी क्या ! </span><br /><br /><span style="font-size: large;">…………… </span><br /><br /><span style="font-size: large;">इस क्षण , इस शाम मैं अपने होने में अपने काया और आत्मा से </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> अपने बिल्कुल करीब हूं । </span><br /><br /><span style="font-size: large;">अपने साथ हूं।” (सोबती एक सोहबत, पृष्ठ 383) </span><br /><br /> <br /><br /> <br /><br /><span style="font-size: large;"> लगभग तीस वर्ष के अंतराल के बाद ‘मित्रो मरजानी‘ से दुबारा मुखातिब हुई हूं। किताब खोलते ही स्मृतियों में पैठा कोई पुराना पाठ लहलहाने लगा है। नॉस्टैल्जिया ने मुझे चौतरफा घेर लिया है , लेकिन भीतर बैठी नि:संग आलोचकीय आंख न किसी किस्म के झांसे में आती है, न धूप-धूल से बचने की आड़ में कोई चश्मा पहनना मंजूर करती है। बस, चेता रही है कि तेल देखो, तेल की धार देखो क्योंकि समय के बदलाव के साथ पुरानी पगडंडियों की महक, बनत और मकसद बहुत बदल जाया करते हैं । </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> ‘हरदम उपदेश‘! </span><br /><br /><span style="font-size: large;">मैं होंठ बिचका कर पुस्तक में डूब गई हूं। बोली-ठिठेली के मीठे आरोह -अवरोह के बीच मैं नृत्य-लय-तान की उच्छ्ल लहरों के हवाले करने हेतु अपने काया को ढीला छोड़ना चाहती हूं, लेकिन देखती हूं कि मित्रो के चारों ओर रचा गया सम्मोहन धूल-गर्द की परतों के साथ धुंधला गया है। हाथ बढ़ाकर साफ करने को होती हूं कि वह भुरभुरा कर नीचे गिर जाता है।अब मेरे सामने खड़ी है एक स्त्री - कभी अपनी गुंजलकों में डूबती, कभी लहरों की सवारी कर जमीन से ऊपर अपना ठांव बनाने की जुगत करती; खोई हुई भी, और अपने को बचाने के लिए किसी भी ताकत से टकरा जाने को तैयार भी। इस स्त्री में न ‘संगरूरवाली लाली बाई‘ की मदमाती यौनिक अदाएं हैं, न ‘बसरे की हूर‘ का इलाही सौंदर्य।अपने समय के सभी शहसवारों की तरह मैं भी तो उसके इसी रूप पर कुर्बान हुई थी न! मर्द होती तो शायद लोभी भंवरे-से मुंह मारने के परंपरागत संस्कार की वजह से मैं मित्रों की दीवानी ही बनी रहती, लेकिन मैं तो हूं अपने युग की ठोकर-थपेड़ों से रची मामूली स्त्री! तब मन में छुपे तहखानों में उतरकर इन अदाओं में वर्जनाओं से मुक्ति का वर्चुअल सुख पा रही थी। ऐसा सुख जो मित्रो के कंटीले तेवरों से बूंद-बूंद टपक कर मेरे अस्तित्व की देह पर लगे तमाम कील-कांटों को बीन कर मुझे ‘मनुष्य‘ होने की गरिमा देता रहा है। लेकिन अब….? अब लगता है जैसे खिलंदड़ी मित्रो की आब को किसी ने निचोड़ लिया है। क्रांति के गीत गाने वाली वह जांबाज योद्धा अब मुझे अपने संरक्षक की गोद में दुबकी कोई ‘चिड़िया‘ दिखाई पड़ती है। क्या सुहागवंती सरीखी? न, सुहागवंती भारतीय परिवारों में जिस स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है, वह मां और बांदी की तरह पति की देखभाल करने में ही इतनी रीत जाती है कि चिड़िया या इंसान बनकर अपने जिंदा होने की पुलक को महसूस ही नहीं कर पाती। </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> सुहागवंती पातिव्रत्य के तेज से रचा गया एक आभासी चरित्र है जो मिथ्या महामंडनों और प्रवचनाओं को ही सांस के आरोह-अवरोह की तरह भीतर- बाहर कर जिंदा होने के एहसास से अपने को पुचकारता चलता है । पितृसत्तात्मक व्यवस्था को अपने सुख, स्वास्थ्य और सुविधाओं के लिए ऐसी ही जिंदा मशीनों की दरकार रहती है। </span><br /><br /><span style="font-size: large;">मैं बेहद आशान्वित हो मित्रो की ओर टक लगा कर देख रही हूं।प्रत्याशा से पोर-पोर धड़क रहा है कि सुहागवंती का विलोम बनकर वह पितृसत्तात्मक व्यवस्था के षड्यंत्रकारी नकाब को उलट देगी। ऐसे ही कोई विद्रोही चरित्र का खिताब नहीं पाता। लेकिन देखती हूं, उसके चेहरे -मोहरे और उम्र के जाने-चीन्हे रेशों- रंगो को पर धकेल कर ‘ऐ लड़की‘ की बूढ़ी अम्मू आ विराजी है।कैसे भूल सकती हूं पुस्तक के अंतिम पृष्ठ में उकेरी गई मित्रो की दो मुद्राएं जो स्थिति की तात्कालिक प्रतिक्रिया भर नहीं रहतीं, मित्रो का व्यक्तित्व और उपलब्धि बनकर उसे कूल-किनारा देने में सक्षम होती हैं। पहली मुद्रा भवानी सरीखी है। कलपती मां की भूखी प्यासी डाकिन-सी आंखों में उगते सौतिया डाह को देखते ही अपने ‘बगलोल‘ पति (या अस्तित्व की जमीन?) को बचाने के लिए दिग्-दिगंत में गूंजती भीषण टंकार - “तू सिद्ध भैरों की चेली, अब अपनी खाली कड़ाही में मेरी और मेरे खसम की मछली तलेगी? सो न होगा बीबो, कहे देती हूं।” दूसरी मुद्रा में पूरी कायनात को अभयदान देती दृढ़ता और नेह की प्रगाढ़ता घुली-मिली है - “सैंया के हाथ दाबे, पांव दाबे, हथेली होठों से लगा झूठ-मूठ की थू कर बोली, कहीं मेरे साहब जी को नजर न लग जाए इस मित्रो मरजानी की।” </span><br /><br /><span style="font-size: large;">प्रेम और वात्सल्य, समर्पण और एकात्म के बीच मित्रों ने कुछ यूं गूंथ लिया है अपने को कि वह उस पूरे पैटर्न में कहीं अलग से नजर नहीं आती। सुनाई पड़ती हैं तो बूढ़ी अम्मू की असंबद्ध टिप्पणियां ...नसीहतें.. और निष्कर्षों में ढली बड़बड़ाहटें, जो ऊपरी तौर पर असंबद्ध भले ही हों, भीतर ही भीतर एक भरे-पूरे जीवन के निचोड़ के जरिए संबंध, समाज और व्यवस्था के शास्त्र को उकेरती हैं। जैसे “सृष्टि का हर नर सूरज से शक्ति खींचता है ।उसी की कृपा से अपने तपोबल को जगाता-गर्माता है ...और नारी ...उसकी इष्ट है पृथ्वी। वह पाराशक्ति बनी पुरुष के आगे पीछे व्याप्त हो जाती है ।समेट लेती है उसे घेरे में”। या “ नर जिस जल में स्नान करता है, नारी उसी को धारण कर हरियाती है।वह रात के टुकड़े कर डालता है और यह इसे पिरो कर गले में डाल लेती है। बच्चा बनाया कि गले में मणका डाल लिया। मां को इसी का वरदान है। उसी के एकांत सरोवर से निथर कर आत्मा देह में प्रवेश करती है तो बच्चा घटित होता है … इस तरह मां करती है मृत्यु को पराजित।” या “ घर का यह खेल बराबरी का नहीं, ऊपर-नीचे का है। घर का स्वामी कमाई से परिवार के लिए सुविधाएं जुटाता है। साथ ही अपनी ताकत कमाता-बनाता है।इसी प्रभुताई के आगे गिरवी पड़ी रहती है बच्चों की मां।” और “ मर्द का दबदबा बना रहना ही चाहिए। उसका स्थान नीचे नहीं, ऊपर है।” </span><br /><br /><span style="font-size: large;">बरजती हूं खुद को ही कि मित्रो से सीधे मुठभेड़ न कर क्यों मैं अम्मू की आड़ लेना चाहती हूं। क्या इसलिए कि मित्रो के तेज-ताप को सहने की ताकत नहीं मेरे भीतर? ( हालांकि यह सवाल अपने तईं बेहद महत्वपूर्ण है कि मित्रो के तेज-ताप के रंग-रेशे आखिर हैं क्या? इस सवाल की पड़ताल थोड़ी देर बाद।) या इसलिए कि उस स्फटिक सी पारदर्शी स्त्री में मुझे झोल ही झोल नजर आने लगे हैं। इतने कि नद नदिया सी खुली-डुली वह दरियाई नार मुझे भूलभुलैया लगने लगी है। मित्रो जानती है कि दैहिक आनंद का बेलगाम दरिया डिप्टी की ओर बहता है। वहां न पहरे है, न अंकुश। छक कर पीने की छूट मानो चप्पे-चप्पे पर अमृत-घट छलके पड़े हों। “फिर कौन तो भड़ुवा तेरा खसम और किसकी तू तरीमत।” वर्जनाओं के अंकुश न हों तो पतंग की तरह सरसरा कर आसमान छू ले मित्रो। लेकिन डिप्टी की ओर जाने वाली पगडंडी आसमान का भ्रम देकर जिस अंधेरी खोह में खुलती है, वहां खड़ी है बालो- उसकी अपनी मां - ठंडी भट्टी सरीखी अकेली, कामनाओं में सुलगती, अकारण उमड़ पज़ते सौतिया डाह में फुंककी, मसान से सूने घर में अपनी ही सांस की आवाज से सिहरती। मित्रो की त्रासदी यह है कि अपने को जानने और पाने की धुन को उसने एक जिद की तरह चुना जरूर है,लेकिन यह समझने का जतन नहीं किया कि ख्वाहिशों के समानांतर विद्रूप वास्तविकताओं का बेतरतीब उलझा जाल बिछाती व्यवस्थाओं का चरित्र न इकहरा है और न इतना ठोस एवं मूर्त कि शिनाख्त कर उसकी गर्दन पर तलवार धर दी जाए। खिड़की से दीखते आसमान को मित्रो पूरी दुनिया माने बैठी है और अपने भोले उछाह को युद्ध जीतने की धारदार रणनीतियां। उससने अपने वजूद को देह के पार जाना ही नहीं; और देह को गूंथ लिया है यौनिक आनंद के साथ। यानी प्रतिपक्षी है वर्जनाओं का भरा-पूरा संसार। बस, इतना सा ही है दुनियावी ज्ञान मित्रो का,और उतनी ही बौनी ख्वाहिशों का ‘लंबा सफर‘ उसकी मंज़िल। एक दबंग आत्मविश्वास और ढीठ लापरवाही के माथा ऊंचा कर वह मुकाम जीतने इस राह पर आगे-आगे बढ़ती जा रही है। रास्ते में आने वाली बाधाओं के साथ दो-दो हाथ करने को उसने अपनी जुबान और देह में कांटे उगा लिए हैं, लेकिन इस ‘सच‘‘ से वाकिफ नहीं कि बाधाएं राह किनारे घनी छाया देते मायावी पेड़ों की छलनाओं की तरह भी सामने आ विराजती हैं; और वर्जनायें चाहनाओं की रेशमी चादर ओढ़ सीधे दिल में उतरती चलती हैं। वह जान ही नहीं पाती कि जिस भूलभुलैया में पैर उलझा कर वह फंस गई है, वह ससुराल का भरा पूरा आंगन बनकर जब-तब उसके सामने स्वर्ण-मृग दौड़ा देती है, जहां बूढ़े सास- ससुर को अपने मजबूत हाथों से संभालते तीन- तीन बांके सजीले जवान बेटे हैं; सास को महारानी का खिताब देती उसकी चाकरी में जुटी इन सजीले जवानों की सुघड़-सलोनी बहूटियां हैं; और मौत पर जिंदगी के हस्ताक्षर कर परिवार को हरा-भरा रखती शिशु की चहकती किलकारियां हैं।चहुं ओर बिखरे ऐश्वर्य के बीच खड़ा व्यक्ति अपने वैभव के मोल को नहीं जानता। समझता है तब जब दिशाहारा नंगी ठोस जमीन पर अकेले खड़े होने की नौबत आ जाए। जीवन से भरे गृहस्थी के इन फलदार पेड़ों के बरक्स मित्रो अपनी मां को बिल्कुल नए रूप में देखती है - ठंडी भट्टी सरीखी अकेली , और उसके चारों और मसान सा सूना भांस- भांय करता घर। मित्रो सन्नाटे की भीतरी अनुगूंजों से बुना गया मननशील चरित्र नहीं है कि मौन को चिंतन, और चिंतन को दर्शन बनाकर अपने को किसी वैचारिक औदात्य तक ले जाए। वह हकीकतों की नहीं, ख्वाहिशों की पोटली है। क्रिया नहीं, प्रतिक्रिया उसकी परिचालक शक्ति है। इसलिए शब्द, भंगिमा, नाटकीयता और चप्पल चंचलता उसका व्यक्तित्व रचते हैं। </span><br /><br /> <br /><br /><span style="font-size: large;">स्थिति के संज्ञान का संवेदनशील बिंदु मित्रो के विश्लेषण और चयन के विकल्पों से गुजर कर निर्णय तक पहुंचने की धीरता और गंभीरता नहीं देता, भय की सृष्टि करता है। रास्ता चुनने की स्वतंत्रता रास्ता बनाने की मननशील सक्रियता से अनिवार्यत: जुड़ी होती है। मित्रो का स्वभावगत उतावलापन उसे हमेशा एक अति से दूसरी अति की ओर धकेलता चलता है। वह नहीं जानती कि अनुभव, चिंतन और अंत: प्रकृति के घालमेल से एक खास शक्ल अख्तियार करने के बाद ही बेहतर विकल्प भीतर से उगते हैं। उसकी चेतना सतह का अतिक्रमण न कर पाने को अभिशप्त है। अतः उपलब्ध विकल्पों में से किसी एक का चयन उसकी नियति है। मां या सास? मसान या जिंदगी? मित्रो में जीने की जितनी हौंस है,उतना ही मौत से खौफ भी। ‘तिन पहाड़‘ की जया की तरह जो अवांछनीय स्थिति के दबाव में उस लम्हे के परे जिंदगी को महसूस ही नहीं कर पाती, और तिस्ता के उफनते वेग में छलांग लगाकर मुक्ति की चाह में मौत का वरण कर लेती है। इसलिए जिस मिट्टी के बुत में कोई हरकत न होने का आरोप लगाकर मित्रो उसकी मां से किसी वैद्य-हकीम को दिखा लाने का तंज कसा करती थी, वही ‘मिट्टी का बुत‘ उसकी डूबती नैया का खेवनहार बन जाता है। तब क्यों नहीं अम्मू के निष्कर्ष को मैं उसके युवा रूप मित्रो का निजी अनुभव कहूं कि “परिवारों के बच्चे बड़े-बूढ़ों को नया करते रहते हैं।” </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> बेशक लेखिका मित्रो के फैसले को लेकर संतुष्ट है, लेकिन मेरे लिए उसका पूरा आचरण और पारिवारिक-सामाजिक पृष्ठभूमि गले न उतरने वाला कौर बन जाती है।‘सोबती एक सोहबत‘ पुस्तक में कृष्णा सोबती ने पीठ ठोंकने के अंदाज में मित्रो की घर- वापसी को सूझबूझ का कदम बताया है - “अपनी जुर्रत और औकात के बल पर यात्रा करते हुए मित्रो ने लेखक के बिना पूछे ही बाहर के खेमे से चौखट की ओर मुंह कर लिया। अपने तन- मन के ताप -संताप ,जलन-प्यास को फलांग खुद की लीक को लांघ जाना मित्रो के निकट परिवार के प्रतीति थी, उसकी वापसी नहीं।” </span><br /><br /><span style="font-size: large;">परिवार के प्रति एक रोमान मिश्रित मेह कृष्णा सोबती के यहां पृष्ठ दर पृष्ठ दिखाई पड़ता है। परिवार जे पितृसत्तात्मक व्यवस्था की मजबूत संस्था है। परिवार , जहां संस्कार के नाम पर स्टीरियोटाइप्स को बिना प्रश्नांकित किए इपनीवलैंगिक पहचान पर चस्पां करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। परिवार, कुटम्मस करतेपति की बर्बरता से थरथपा कर जख्मों पर हल्दी का लेप लगाती पत्नी पातिव्रत्य की नई मिसाल बनती है। सेचती हूं, मां के निर्जन भविष्य की तस्वीर में अपने बुढ़ापे की वीभत्स सूरत देख जब परित्राण के लिए मित्रो ने सरदारी की छाती में मुंह छुपाया होगा, तब क्या उसे अकारण धौल-धप्पा करते सरदारी की उग्र छवि याद नहीं आई होगी? हिंसा शोषण और अपमान के जिन जख्मों को मन और संवेदना पर बना देती है , उन्हें पूरना इतना सरल भी नहीं होता। तो क्या ‘परिवार की प्रतीति‘ स्त्री-मन से जख्मी होने की याद ही छीन लेती है? या उसे स्त्री से शुतुरमुर्ग बन जाने का प्रशिक्षण देती है? कृष्णा सोबती की पूर्ववर्ती उर्दू लेखिका रशीद जहां की छोटी सी कहानी ‘दिल्ली की सैर‘ तो ऐसी किसी शुतुरमुर्ग स्त्री की बात नहीं करती; बल्कि अपमान को प्रतिकार की नैतिक ताकत बनाकर पूरी व्यवस्था की नकाब पलटने को तैयार हो जाती है। फिर, सुभद्राकुमारी चौहान की कहानियां - दांपत्य संबंधों से बाहर पुरुष मित्र के साथ जुड़े हार्दिक संबंध को अकुंठ भाव से उसी प्रखरता और शुचिता के साथ जीने की वैचारिक दृढ़ता से रची कहानियां - क्या मित्रों के यू टर्न को आवेश, विचारहीनता और विघटन का रूप नहीं देतीं? </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> अब मैं जांच की जद में लेखिका को भी ले आती हूं। कोई सवाल पूछूं कि ‘सोबती एक सोहबत‘ में संकलित लेख ‘तब तक कुछ मालूम नहीं था‘ में वे तफसील से ‘मित्रो मरजानी‘ की रचना-प्रक्रिया पर बात करना शुरु कर देती हैं। “वह (मित्रो) किस तस्वीर का नेगेटिव थी या उस नेगेटिव से कौन सी तस्वीर उभरेगी, तब तक कुछ मालूम नहीं था।” मैं उनकी साफगोई से बेहद प्रभावित हूं और आकर्ण सुनती हूं दो स्त्रियों के दो किस्से। पहली स्त्री शरबती या मिश्रीबाई है - मजदूर है जो ठेकेदार के साथ हास-परिहास करते हुए अपनी और उसकी दोनों की काम-पिपासा को हवा देती चलती है। दूसरी स्त्री नपुंसक पति की काम चेष्टाओं से त्रस्त एक उद्दीप्त- अतृप्त पत्नी है जिसके सामने रोने-झींकने और गरिया कर चुप हो जाने के अतिरिक्त निष्कृति के अन्य कोई विकल्प खुले नहीं हैं। जाहिर है मित्रो को इन दो स्त्रियों का कोलाज बनाने की खींचतान में लेखिका भूल गई स्त्री री उद्दाम यौनिकता की बात कहते-कहते पितृसत्तात्मक व्यवस्था के नैतिकता के दोहरे मानदंडों को कटघरे में खींच लाना चाहती हैं, या विवाह संस्था के शिकंजे में फंसी स्त्री की पीड़ा, दैहिक- मानसिक अत्याचार और तिल-तिल घुटने की यंत्रणा को साक्षात् करना चाहती हैं। कहानी में शिनाख्त की नोक पर टंगी पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं है।अलबत्ता सावधान हो उसी लेख में लेखिका अपनी शिनाख्त को ‘तन-मन‘ (भोग-मुक्ति / प्रवृत्ति निवृत्ति यानी थोड़ा बहुत ‘चित्रलेखा‘ उपन्यास वाला मामला) के सवाल पर केंद्रित कर डालती हैं। उनके सामने सवाल की शक्ल में तफ्तीश के दो पहलू हैं। एक, तन बड़ा कि मन? कहने को मन और पाने को तन। इसी अगियारी नोक पर दुनिया स्थित है।”और दूसरा, “होगी तो इस आदिम मांग की कितनी बिसात होगी? औकात कितनी होगी उस छलकती-धड़कती चाहत की जो पाप और पुण्य से बड़ी है और उसके दावों से बाहर है।”(सोबती एक सोहबत, पृ० 387) </span><br /><br /> <br /><br /><span style="font-size: large;">मैं समझ नहीं पाई कि यदि मित्रो की रचना के मूल में पारिवारिक मर्यादा के भीतर रहती स्त्री की दैहिक प्यास की थाह लेने की आकांक्षा है तो क्यों नहीं लेखिका ने औसत भारतीय परिवार की सामान्य स्त्री को अपनी नायिका बनाया? एक ऐसी स्त्री को जिसकी दमित आकांक्षाओं के शास्त्र में औसत पाठक/ स्त्री को अपने तलघर की झलक मिल पाती? या जो अपने उत्तापऔर अनुताप के बीच एक नई गढ़त लेने की जुगत में हदबंदिसों और नाकेबंदिसों से लहूलुहान होती भी दिखती और अपनी आजादी का जश्न मनाने के नव उल्लास से भी उमगती। कृष्णा सोबती मित्रो के रूप में जिस चरित्र को गढ़ती हैं, वह अपनी स्वत:स्फूर्तता, गतिमयता और ग्लैमर के बावजूद स्त्री का प्रतिरूप नहीं बन पाता। चेतना और समानता के तमाम दावों के बावजूद 21वीं सदी में आकर भी मेरी शंकाएं ज्यों की त्यों है कि ‘कसबन‘ ( नगरवधू /वेश्या) की पुत्री का कुलीन परिवार से संबंध-नाता कैसे जुड़ा? मित्रो की सास धनवंती के बार-बार के पछतावे को आधार मानकर इस निष्कर्ष पर पहुंचू कि अपनी भलमनसाहत में वह परिवार ‘ठगा‘ गया, तो भी सवाल अपनी जगह बरकरार है कि आज जब ‘भले‘ परिवार ही प्रेम-विवाह के अपराध में खाप पंचायतों की शह पाकर बेटी-दामाद का कत्ल कर डालते हैं , तब ‘ठग- विद्या‘ के इस्तेमाल से घर में घुसने वाली और ‘मिरासनों सी करतूतों ‘ के कारण बिरादरी में नाक कटाने वाली स्त्री के प्रति इतनी नरमी और सह्यता आखिर क्यों? कौन नहीं जानता कि हर दौर के खांटी वैष्णव भारतीय परिवारों का चरित्र खासा हिंसक और बर्बर रहा है, जो पहले घर में शोषण-मर्दन की तालीम में महारत हासिल करता है, और फिर बाहर उसे परवान चढ़ाने जाता है । </span><br /><br /><span style="font-size: large;">पितृसत्तात्मक व्यवस्था स्त्री को न मनुष्य के रूप में देख पाई है, न लैंगिक पहचान आरोपित कर उस पहचान की समग्रता में। वह स्त्री को ‘देह‘ के साथ साथ ‘इज्जत‘ के खांचे में भी ढालती है। देह हेना स्त्री होने की पहली शर्त है, लेकिन साथ ही शर्त यह भी है कि देह-सुख का अहसास स्त्री स्वयं न ले, बल्कि देहातीत हो देह पर हो रहे क्रिया व्यापार (रति) को निर्विकार ढंग से देखती-सहती रहे।इसलिए ‘इज्जतदार‘ स्त्री रो परिवारों की चौखट में बांधकर कामधेनु की तरह दुहा जाता है। यहां देह शारीरिक श्रम बनकर पुरुष को भौतिक- लौकिक सुख पहुंचाने के लिए खटती रहती है, और यौनिक आनंद बनकर अपने को इस्तेमाल होता देखती रहती है।यौनिक आनंद पुरुष के लिए है, गर्भाधान-प्रजनन और बच्चे के पालन-पोषण का दायित्व स्त्री का।अलबत्का बच्चा बड़ा हो जाए तो पिता का वारिस बनकर पिता के पाले में। परिवार की चौखट के बाहर भी पुरूष ने स्त्री को देह बनाकर अपने लिए आरक्षित रख छोड़ा है।वहां वह समाज के नैतिक स्वास्थ्य के लिए बनाई गई ‘गंदी नाली‘ है जिसे बतर्ज कुलवधू ‘नगरवधू‘ की संज्ञा दे कर गौरवान्वित करने का मिथ्या बोध दिया जाता है। लेकिन देह के जरिए अपनी आजीविका स्वयं कमाती यह स्त्री पुरुष की तरह स्वतंत्र, स्वायत्त, मानवीय इकाई का बिंब नहीं रचती, बल्कि कमाई से लेकर दैहिक आनंद तक पुरुष के अधीन बनी रहती है। देह व्यापार में पूंजी स्त्री का शरीर है, लेकिन उस पर मालिकाना हक पुरुष तंत्र का है जो इंफ्रास्ट्रक्चर, प्रबंधन और संरक्षण तक अनेक रूपों में फैला हुआ है। कुलवधू की तरह वेश्या के लिए भी रतिक्रिया आनंद का स्रोत नहीं,ग्राहक के रूप में आए पुरुष को अपनी कामार्त आहों-कराहों के साथ ‘रिझाने‘ का यांत्रिक क्रिया-व्यापार है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने स्त्री के लिए देह को अभिशाप की तरह रचा है। वह देह को ऐन्द्रिकता (सेंसुअसनेस) से परे देखने और जानने का विवेक स्त्री (और पुरुष को भी) नहीं देना चाहती, जबकि वास्तविकता यह है कि देह मात्र एक दृश्यमान आधार है जो बुद्धि, चेतना, संवेदना और विवेक के जरिए ही अपना एक सुनिश्चित व्यक्तित्व ग्रहण करती है। स्त्री के लिए ये सभी नियामतें वर्जित मानी गई हैं। संवेदना को जरूर एक पुड़िया में भरकर प्रसाद की तरह उसकी ओर बढ़ा दिया जाता है। संवेदना में वैचारिक औदात्य के तालमेल के कारण जहां करुणा, सहानुभूति, प्रेम, त्याग, समर्पण जैसी मनोवृत्तियां रूप बदल कर समूची सृष्टि को अंकवार करने वाले बृहद जीवन मूल्य बन जाती हैं, वहीं विचारशून्यता न केवल संवेदना को कोरी भावुकता में तब्दील कर देती है, बल्कि आत्मदया और आत्मपीड़न के प्रशिक्षण के जरिए आंसू और करुणा को अंधमोह, अंधविश्वास, बचकानी जिद और डाह में विघटित कर देती है। यही वजह है कि बकौल कृष्णा सोबती स्त्रियां पहले अपनी करुण स्थिति से पुरुष के मन में हिंसा पकाती हैं, और फिर उसकी हिंसा का शिकार हो अपनी दयनीय स्थिति को मजबूत करती है।चूंकि लेखन रचनाकार की वैचारिक प्रतिबद्धता का अक्स हुआ करता है और अपने से बाहर निकल कर समाज को एक नई गढ़त देने की व्यग्रता को कमोबेश महसूसता-उकेरता है , इसलिए मित्रो की पारिवारिक पृष्ठभूमि के चयन और गठन में लेखिका की निजी अंतर्दृष्टि के हस्तक्षेप को अस्वीकारा नहीं जा सकता। बेशक वे कहती रहें कि “किसी भी यथार्थ और आदर्श की अतिशयोक्ति या आग्रह मित्रो को असामाजिक बना देने को काफी थे। मित्रो के आगे बुलबुलाते खतरे और दूरदराज की सुरक्षा को किसी भी मूल्य पर एक दूसरे से बदला नहीं जा सकता था”, लेकिन यह तय है कि पूरी रचना में मित्रो एक कन्विंसिंग और रियल चरित्र के रूप में दिखाई नहीं देती। कृष्णा सोबती बेहद सजग चौकस रचनाकार हैं। अपने पात्रों के नैन नक्श, वेशभूषा, बोली-बानी से लेकर घटनाओं के चयन और ब्यौरों तक में एक सुचिंतित सधाव साफ दिखाई पड़ता है। ‘तिन पहाड़‘ में अपने आप में खोई और जिंदगी से अस्त-व्यस्त जया को जब-जब भी वे होटल के डाइनिंग रूम या कलिंगपोंग की वादियों में या फिर किसी अन्य सार्वजनिक स्थल पर प्रस्तुत करती हैं, जया की अपने को ‘पा‘ लेने की उद्विग्नता पाठक तक तैरकर नहीं आती। सबसे पहले उसकी नजर टिकती है जया के परिधान - साड़ी,शॉल,ज्वेलरी - पर, उसकी भंगिमा पर । भाषा का जादू तो खैर उनकी हर रचना में पात्र और परिवेश के अनुरूप अपनी छटा बदलता रहा है। कृष्णा सोबती रे पात्र पाठक के भीतर उतरने की बजाय अपनी पहली प्रतिक्रिया में उसे ‘चौंका‘ देना चाहते हैं। और यह तय है कि हार्दिकता की अपेक्षा विस्मय की जमीन से उगा हुआ रिश्ता विस्मय को प्रगाढ़तर करते हुए एक समानांतर दूरी बनाए रखता है क्योंकि विस्मय प्रगाढ़ परिचय में तब्दील हो जाने पर अपने ही जगाए हुए जादू को बचा नहीं पाता। कृष्णा सोबती की नजर में ‘परिवार‘ का स्थान बहुत ऊंचा है। रचनावदर रचना उनकी नायिका अपनी जिंदगी के अभिशाप को धोकर इसी परिवार संस्था में प्रविष्ट होने की आकांक्षी रही है। परिवार की चौखट के भीतर मजबूती से कदम गड़ा कर बैठी कुटुंबप्यारी (दिलो दानिश) और सुहागवंती (मित्रो मरजानी) जैसी स्त्रियों में उनकी दिलचस्पी नहीं है। न ही वे उनके आंसू पोॉछने या आंसुओं को आग में तब्दील करने के इरादे से उन तक पहुंचती है। उनकी नजर खींचती है परिवार की चौहद्दी से बाहर खड़ी स्त्री, वह चाहे रत्ती (सूरजमुखी अंधेरे के) हो, महकबानो (दिलोदानिश) हो या मन्नो (बादलों के घेरे)। चूंकि परिवार की चौहद्दी से बाहर होकर परिवार में घुल-मिल जाने की हसरत उनकी स्त्री का कुल परिचय है, इसलिए परिवार को आलोचनात्मक नजर से देखने की बजाए वे उसकी रोमानी छवि के इर्द-गिर्द अपनी छावनी बना डालना चाहती हैं।लेखिका भारतीय परिवारों की रवायतों को भी जानती हैं, और उसके ‘सर्वभक्षी‘ स्वरूप को भी। ठेकेदार से परिहास कर अपनी काम-ग्रंथियों को संतुष्ट करने वाली मजदूर स्त्री कुलीन परिवारों के आंगन में नहीं मिलती। कुलीन स्त्री योनिकता-प्रकरण पर अपनी समवयस्काओं के आगे खुलेगी भी तो भाषा भंगिमा और कहन पर सात-सात पर्दे चढ़ाकर, संकेतों में, सुहागवंती की तरह।दाहिर है इसलिए बड़े-बड़े ‘तैराकों‘ को डुबोने की ताब रखने वाली ‘चढ़ी नदिया‘ सरीखी स्त्री को रचने के लिए उन्हें ऐसी पृष्ठभूमि की दरकार थी जहां नैतिक वर्जनाओं के अभाव में ‘खुलापन‘ बेशर्मी की हदों को छूने में भी परहेज न करे। </span><br /><br /><span style="font-size: large;">बात को दूर तक खींचते चलें तो अपनी ही बात पर घोर अविश्वास करते हुए कह सकते हैं कि वेश्यापुत्री मित्रो को कुलवधू बनाकर कृष्णा सोबती ने एक तीर से दो शिकार किए हैं। स्त्री की यौनिक स्वतंत्रता की मांग के साथ साथ ‘वेश्योद्धार‘जैसे मुद्दे को अपनी रचना का केंद्रीय विषय बनाना। स्वतंत्रता से पूर्व समाज सुधार आंदोलन की रचनात्मक पुकारों के अधीन प्रेमचंद, सुभद्रा कुमारी चौहान, उग्र आदि अनेकानेक रचनाकारों ने वेश्याओं की स्थिति और उनकी सामाजिक इंक्लूजिवनेस को लेकर अपने-अपने स्तर पर विचार किया है। लेकिन तमाम वैचारिक औदार्य के बावजूद न वे अपने कुलीन संस्कारों से मुक्त हो पाए हैं, न समाज में (परिवार की कौन कहे) उन्हें किसी सम्मानजनक स्थान देने की पैरवी कर पाए हैं। यहां तक कि मिर्जा हादी रुसवा की बेहतरीन कथा-कृति ‘उमराव जान अदा’ भी अपनी नायिका के वजूद को करुणा और प्रेम के संकरे रास्ते से बाहर निकलने की इजाजत नहीं देती। तब कुप्रिन के ‘यामा द पिट’ जैसे घनघोर यथार्थवादी उपन्यास के तीखे दबंग खस्ताहाल चरित्रों और व्यवस्थाजन्य कुचक्रों को उकेरने की बात कौन कहे। कृष्णा सोबती का प्रिय शगल बेशक अपनी नायिकाओं को रोमान की गली में घुमाने का रहा हो, लेकिन ‘गुलाबजल गंडेरियां‘ और ‘आजादी शम्मोजान की‘ जैसी वेश्या-केंद्रित कहानियां रचते हुए वे रोमान को बरज कर तीखी-पैनी नजर के साथ उनके अंतर्मन में घुसने की चेष्टा करती हैं। तब वहां न उनका ऐश्वर्य है, न शानो शौकत; न भरी महफिल को बांकी चितवन से नचा डालने की बचकानी हरकतें हैं, न अपने को ‘इलाही ताकत‘ मानने के भरम, जो बालो- मित्रो संवाद में उनके विगत ऐश्वर्य की कथा कहते हैं। सेक्स भी वहां उबकाई का पर्याय है, चटखारे ले कर चाटने की वस्तु नहीं। ऐसे में मित्रों को ‘कसबन‘ की बेटी के रूप में कथा में उतारने की वजह एक ही हो सकती है कि परिवार की मर्यादा और शुचिता को बचाने की अतिरिक्त सजगता और मोहपरकता के कारण कृष्णा सोबती पारिवारिक स्त्री को इतने कुत्सित रूप में प्रस्तुत नहीं करना चाहती थीं।बोल्ड रचनाकार के रूप में जाने जाने वाली लेखिका की इस प्राथमिकता को मैं साहसहीनता की संज्ञा नहीं दूंगी, हालांकि साथ साथ इस तथ्य को भी रेखांकित करना चाहूंगी कि इस्मत चुगताई ‘मित्रो मरजानी‘ की रचना से पूर्व ‘लिहाफ‘ जैसी कहानी में स्त्री की दमित यौनेच्छाओं की तीव्रता को न केवल खुले तौर पर स्वीकारती हैं, बल्कि सेक्स में पैसिव पार्टनर मानी जाने वाली स्त्री को लैस्बियन संबंध की परस्पर सक्रियता में प्रस्तुत कर पितृसत्तात्मक व्यवस्था के नैतिक शिकंजों को दूर फेंक आती हैं। कृष्णा सोबती के पास अद्भुत मैनरिज्म है, उखाड़ पछाड़ का खेल बुनती भाषाई कलाबाजियां है, लेकिन परिवार संस्था पर आंच न आने देने की फिक्र में वे अपने ही कदमों को नैतिकता के पाले की ओर खींचती चलती हैं। रचना और रचनाकार के अन्योन्याश्रित संबंध को लेकर वे लिखती भी हैं कि “रचना के गठन में निहित रचनाकार का अपना निज का एकांत है, चिंतन है। उसका चिंतन उसकी सोच है जो गहरे में उसकी मानसिकता की जड़ों से उभरी है। वही उसके परिवेश और मूल्यों से जुड़ी है। उनमें रची-बसी है।” (सोबती एक सोहबत, पृ० 396) </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> मित्रो मरजानी के सारे पात्र स्टीरियोटाइप्स से परिचालित हैं। दो-दो ब्याह करके औरत को सिधाने वाला बनवारी, पति के चरण धो-धो कर पीती उसकी आदर्श पत्नी सुहागवंती, रोबीले गले में हुक्म की थाप भरकर घर के मालिक होने का सुख भोगता गुरुदास, मां और पत्नी की भूमिका में टहलन के संग-संग मालकिन के गरूर में इतराती धनवंती, और तिरिया चरित्तर रचाकर अपने स्त्रीत्व को रणनीतियों में विघटित करती फूलांवंती - सब तो जाने-पहचाने चरित्र हैं। अलग है मित्रो, लेकिन अलग कहां! वह भी तो वेश्या (कुराह पड़ी स्त्री) के स्टीरियोटाइप से भिन्न नहीं। भाषा और तेवर ठीक वही जो फिल्मों में अच्छी बनाम बुरी औरत के बिंब को उघाड़ने के लिए प्रयुक्त किए जाते रहे हैं ।सरदारी के लिए मित्रो के संबोधन की एक बानगी हाजिर है - बेली सैयां, दिलबर सैयां, हुकम, महरम, चन्न जी। और भाषा में भाषा में नंगई को छूता ‘खुलापन’- “ सात नदियों की तारू, तवे सी काली मेरी मां, और मैं गोरी-चिट्टी उसकी कोख पड़ी। कहते हैं, इलाके के बड़भागी तहसीलदार की मुहांदरा है मित्रो।” या “मेरी इस देह में इतनी प्यास है, इतनी प्यार कि मछली सी तड़पती हूं।” रीतिकालीन नायिका सरीखा मित्रो का है कामार्त्त चीत्कार पाठक को गुदगुदाता है। जाहिर है इस गुदगुदी में सरदारी के बरक्स अपने पुंसत्व की पुख्तगी का आश्वासन भी है और घर में मित्रो नहीं, सुहागवंती-सी बीवी होने का संतोष भी।पूरी कथा जाने क्यों मुझे शेक्सपियर के नाटक ‘द टेमिंग ऑफ द श्रू‘ (रचनाकाल 1590 ई०) की आउटलाइन्स पर लिखी भासती है जहां बिगड़ैल औरत को ‘राह‘ पर लाने के कुचक्रों में पुरुष की श्रेष्ठता का डंका अपने आप बजने लगता है। मजबूत और उत्च्छृंखल स्त्री को सिधा कर समर्पिता बनाने का सुख कौन पुरुष नहीं पाना चाहता? दरअसल आज की ही तरह साठ के दशक में कथा-चरित्र ही नहीं, स्त्री कथाकार भी अपनी लैंगिक पहचान में रच-बस कर ही पाठक के दिल-दिमाग में रजिस्टर होते रहे हैं। इसलिए ‘यारों के यार‘ हो या ‘मित्रो मरजानी‘, दोनों रचनाएं एक बड़े पाठक वर्ग का ध्यान इसलिये खींचती है कि स्त्री रचनाकार की कलम से फूल की तरह झरती गालियां सुनना और एक स्त्री द्वारा अपनी सेक्सुएलिटी को सेलेबल प्रोडक्ट की तरह हाथ में लिए घूमना उन्हें चौंकाता और पुलकाता है। दूसरे, मनोरंजन अपनी जगह ठीक है, लेकिन वहह सिरफिरी तत्ती मित्रो सरीखी स्त्री यदि लेखक की शह पाकर अपने समय का रोल मॉडल बनते हुए घर-घर अपने क्लोन पैदा करने के अभियान पर निकल पड़े तो पूरा समाज एक निगूढ़ सांकेतिक चुप्पी के साथ उस पर टूट पड़ता है। ठीक वैसे जैसे तीखे-तुर्श तेवरों में स्त्री का उद्बोधन करने वाली पुस्तक ‘सीमंतनी उपदेश‘ प्रकाशन के कुछ ही समय बाद अंडरग्राउंड कर दी गई। मित्रो जीवित है क्योंकि वह भवानी की तरह अपनी शक्ति के मद में इतराती स्त्री के पुन: पतिव्रता बन जाने की कहानी है। और मजेदार बात यह है कि कथा में यह वरण स्वयं उसका अपना ऐच्छिक वरण है। </span><br /><br /><span style="font-size: large;">मित्रो की विडंबना यह है कि ‘मैं तो चंद्र खिलौना लैहों‘ के तिरिया हठ को वह पालती जरूर है, लेकिन बाल-बुद्धि के कारण थाली के पानी में डोलते चांद के अक्स को अपना अभीष्ट समझ मुदित हो जाती है। वह अपनी सारी ताकत मां की बुरी नीयत को भांपनेवऔर उस से दो-दो हाथ करने में लगा देती है, तनिक रुक कर अपनी ही उस टिप्पणी पर विचार नहीं करती कि “जिंद जान का यह कैसा व्यापार? अपने लड़के बीज डालें तो पुण्य। दूजे डालें तो कुकर्म।”लेकिन फिर भी तमाम खामियों के बावजूद मित्रों को खारिज करना आसान नहीं। वह ध्यान ही नहीं खींचती, चेतना पर चुंबक की तरह चिपक भी जाती है। इसलिए कि सुहागवंती जैसी स्त्रियां जहां अपने आसपास के माहौल और भीतर उठते सवालों-आकांक्षाओं से बेखबर रहकर अपने को शून्य में विघटित करते-करते पहाड़ सी जिंदगी एक लीक पर चल कर गुजार लेती हैं, वही मित्रो बाखबर भी है और अपना हक पा लेने के लिए मुस्तैद भी। नैतिकता के दोहरे मानदंड और ‘अवैध‘ संतान जैसे अवधारणाएं स्त्री को नैतिक-आत्मिक रूप से नि:शेष करने हेतु गढ़ी गई संरचनाएं हैं, अन्यथा कौन नहीं जानता कि नियोग जैसे परंपराएं और पुत्रेष्टि यज्ञ जैसे संस्कार ‘अवैध‘ और ‘अनीति‘ को पूरे तंत्र-शास्त्र-व्यवस्था की ताकत के साथ ‘वैध‘ करने के तरीके हैं। कृष्णा सोबती चाहतीं तो फूलांवंती के कपटपूर्ण आचरण को चिंदी-चिंदी उड़ाने के लिए मित्रो की नेकनीयती को बड़ी लकीर की तरह खींचकर ही संतुष्ट न होतीं, बल्कि उसके निर्भीक-दबंग तेवरों को वैचारिक आलोड़न और दिशा देकर उसे पितृसत्तात्मक व्यवस्था का पुनरीक्षण करने को प्रेरित करतीं। घरेलू हिंसा, पुरुष की श्रेष्ठता, अदृश्य एवं अनुत्पादक कर दिए गए स्त्री-श्रम का दोहन और अवमूल्यन, परावलंबन की अपमानभरी पीड़ा,मैरिटल रेप, और इन्द्रियविहीन होकर जीने की यंत्रणा - ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें वह अपनी ‘आजादी‘ के लिए नहीं, ‘मुक्ति‘ के लिए एक-एक कर उठा सकती थी। मित्रो अपने प्रथम दर्शन के साथ ही एक उम्मीद की तरह पाठक के सामने सतरंगी इंद्रधनुष का आकार लेती है, लेकिन अंतिम परिणति में सांप की केंचुल बनकर वह पाठक के भीतर एक निरूपाय खीझ ही जगा पाती है। ठीक कहती हैं कृष्णा सोबती कि “आप की आजादी पर अंकुश वह नहीं जिसकी अपेक्षा दूसरे आपसे करते हैं। वे हैं जो लचीलेपन में आप में और एक बड़ी दुनिया से तादात्म्य कायम करने की सामर्थ आपको देते हैं।नतीजा, आप जिंदगी से बहुत कुछ बटोरने की हसरतें नहीं पाले रहते और न ही अपने को बलि का बकरा समझते चलते हैं। ठीक इसके उल्टे समझौतापरस्ती में गर्क भी नहीं हो जाते हैं। आप व्यक्ति की हैसियत से अपने और दूसरों के अधिकार जांचते हैं। न आप घेराव में रहना चाहते हैं,न किसी का घेराव करना चाहते हैं। आप स्वयं अपनी सामर्थ्य और सीमा से जूझना चाहते हैं। अपने ही बल पर कुछ पा लेना चाहते हैं। ……. आपकी आजादी पर अंकुश वे नहीं जिसकी अपेक्षा दूसरे आपसे करते हैं। वे हैं जो आपके अपने विवेक और आप की स्वतंत्रता को परिभाषित करते हैं, आप की विवशताओं को नहीं।”( सोबती एक सोहबत, पृ० ४०१) अपनी धारणाओं (कनविक्शंस) को सिद्धांत-कथन के तौर पर कहना जितना आसान है, कथा में पिरो कर उसे कलात्मक उत्कर्ष देना उतना ही कठिन। यह मित्रो और उसकी प्रणेता दोनों की कमजोरी है कि मित्रो अपने समय की साजिशों को बेनकाब करने का हौसला, संयम, विचार और अंतर्दृष्टि अर्जित नहीं कर पाती। अलबत्ता अपनी ‘घर वापसी‘ के साथ यथास्थितिवादियों के लिए सुकून का सरंजाम तो जुटा ही लेती है जो सास धनवंती की तरह आठों पहर यही दुआ करते हैं कि “इस नक्कछिकनी के जी में भी कोई ऐसा मंत्र फूंक कि बहू बन पुरखों के कुल-कबीले की इज्जत-पत तो रख ले।” </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> मुझे लगता है मित्रो को लेकर मैं कुछ ज्यादा ही बेरहम हो गई हूं। शायद इसलिए कि जहां कमजोर से टकराने की बजाय उसकी सलामती का ख्याल उसके गुण और दोषों को एक ही रंगत में ढाल देता है, वहीं दमदार को पछाड़ने के लिए खोज-खोज कर दुर्बलताएं निकाली जाती हैं। अंतिम मूल्यांकन में मित्रो की पारिवारिक पृष्ठभूमि को ज्यादा तूल नहीं देना चाहती, लेकिन परिवार संस्था की समीक्षा किए बिना परिवार संस्था में सुरक्षा का अंधमोहवश उसे मेरी नजर में अपरिपक्व स्त्री बना देता है। जानती हूं, कोई पलट कर मुझसे यही सवाल पूछ ले कि ‘परिवार संस्था का विकल्प क्या है आपके पास”, तो मैं निरुत्तर उसे ही एकटक देखती रहूंगी। सिंगल मदरहुड से लेकर लिव इन रिलेशनशिप तक के लंबे सफर में स्त्री आज तक न विवाह संस्था का कोई माकूल विकल्प खोज पाई है, न विवाह को अनावश्यक मान खारिज कर सकी है। इसलिए झुंझलाहट भी होती है कि अपने अतिनाटकीय लटकों-झटकों और ‘कंजरियों‘- सी वेशभूषा के चौंकाऊपन से किनारा कर यदि मित्रो और उसकी रचयिता ने सेक्सुअलिटी के प्रदर्शन-आमंत्रण की बजाय इसी स्त्री-सेक्सुएलिटीव का दमन करने वाली पितृसत्तात्मक व्यवस्था की बनावट को समझा होता, और सौ-सौ कौरव जनने की मुराद में सरदारी को रिझाने की बजाए उसे संवेदनशील बनाने का उपक्रम किया होता तो मित्रो ‘मरजानी‘ जैसे लाड भरे विशेषण के साथ बहुतों के दिल में बेशक न उतरती, लेकिन स्त्री-योद्धाओं की फौज का एक यादगार सिपहसालार जरूर बन जाती। </span><br /><br /><span style="font-size: large;">कृष्णा सोबती का समूचा लेखन चिंतन की बजाय उच्छ्वास की नोक पर टिका हुआ है। प्रबंधात्मकता और ब्यौरों का निर्वाह उनके वश की बात नहीं। यहां तक कि ‘जिंदगीनामा‘ जैसी पृथुल रचना में भी समय के संजीदा सवालों से टकराने की गंभीरता नहीं, स्मृतियों में उमड़ पड़ते छोटे-छोटे काल-खंडों, चरित्रों, घटनाओं,हूकों और मीठी जुगालियों को एक चटकीले तैल- चित्र में टांक देने की मुस्तैदी है। हां, एक खूबी जरूर है उनके लेखन में कि वे अवसाद को नहीं, उल्लास को अपनी कहन की टेक बनाती हैं। इसलिए धूप के चटकीले रंगों में नहाया कथा-परिवेश ताजगी के साथ-साथ ऊर्जा और आलोक भी देता चलता है। आँसू, करुणा, आत्मदया, आत्म-पीड़न, त्याग - साहित्य के प्रचलित मुहावरों से परहेज कर कृष्णा सोबती अपनी नायिकाओं को पहाड़ी झरने सा रूप देती हैं। </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> मित्रों की कथा-यात्रा को लेखिका जिस मोड़ पर ले जाकर छोड़ देती हैं, मैं वहीं से उल्टे पैरों नहीं लौट पाती, बल्कि उसके साथ रफ्ता-रफ्ता चलते हुए उसकी जिंदगी में दाखिल हो जाना चाहती हूं। देखती हूं, उस कठकरेज औरत में अपने फैसलों पर टिके रहने की कुव्वत जरूरत से ज्यादा है, और पर फैला कर उड़ जाने की चाहत में पैर सिकोड़ कर सोने का लचीलापन धीरे-धीरे उसने अर्जित कर लिया है। दरअसल यही वह बिंदु है जहां अपनी प्रतिक्रिया को भाषा की गुलेल पर तानकर दूसरे पर फेंकने की जगह उसने उसे हौले से भीतरी तहखाने में समेट लेने का हुनर सीख लिया है। अनकही प्रतिक्रिया घुटन बनकर जब मन के आकाश पर घुमड़ती है तो स्थितियों के रेशे-रेशे को उलट-पलट कर उसकी बनावट की जांच कर लेना चाहती है। परिवार हमेशा अपने को या दूसरों को कठघरे में खड़ा करने की जगह नहीं है। इसलिए आरोप-प्रत्यारोप के अनंत सिलसिले आत्मान्वेषण की कवायद में ढल जाया करते हैं। मैं पूछना चाहती हूं मित्रो से कि घर लौटने के निर्णय ने भले ही परिवार के रिसते जख्मों पर मरहम लगाई होगी, लेकिन शुकराना पेश करने के एवज में उसने (पति और परिवार ने) अपने अक्खड़-हिंसक तेवरों पर क्या लगाम लगाई होगी? “इसे ज़िद चढ़ी है तो तू ही आंख नीची कर ले बेटी। मर्द-मालिक का सामना हम बेचारियों को क्या सोहे!” सास की यह सीख कोई अनहोनी नहीं, परंपरासम्मत स्त्री सुबोधिनी है। सुन सुनकर क्या जी नहीं जलता होगा? तत्ती मित्रो नहीं, अम्मू में कायांतरित हो गई मित्रो मेरे इस सवाल का जवाब देती है - आंखों में मीठी-तीती स्मृतियों का कोलाज पिरो कर - “ गृहस्थी में पांव रख कर स्त्री का जो मंथन-मर्दन होता है, वह भूचाल के झटकों से कम नहीं होता। औरत सहन कर लेती है क्योंकि उसे सहन करना पड़ता है।” साथ ही एक लंबी सांस छोड़ और उतने ही लंबे अंतराल के बाद वह यह कहना भी नहीं भूलती कि “जो मन में सोचें और कर पाएं, वहीं सर्वोत्तम प्रसाद है।” न, गृहस्थ में लय हो जाने का मतलब अपने को बिसरा-बिखरा देना नहीं है, अपनी हस्ती को मजबूती से थामे रखना है - “ मैं मां जरूर हूं, पर अलग हूं। मैं मैं हूं। मैं तुम नहीं, और तुम मैं नहीं।” ठीक मित्रो से बांके तेवर और अपनी पसंद-नापसंद के इजहार का ठीक वही तुर्श अंदाज! मैं ‘मित्रो मरजानी‘ के अविभाज्य अंश की तरह ‘ऐ लड़की‘ के पाठ को इसमें जोड़कर ही मित्रो की मुकम्मल तस्वीर तैयार करना चाहती हूं। तब एक लंबी उम्र तक कदम दर कदम चली उस दरियाई नार में मुझे बरसाती उफान नहीं दीख पड़ता; दिखाई पड़ती है समुद्र की गहराई। जिंदगी की तरह परिवार की इबारत भी पल-पल अपना रूप बदलती चलती है। इसलिए न उसका इकहरा पाठ संभव है, न किसी एक कोण पर खड़े होकर निकाले गए निष्कर्ष को अंतिम फैसला मानने की जिद।मैं अम्मू के एक कथन को मनन की आधारभूमि के रूप में उठा ले आती हूं कि “निधि चुक जाए तो शक्ति का भंडार नि:शेष। बुढ़ापा इसे ही तो कहते हैं।” सोचती हूं, बालो के बुढ़ापे में अपने बुढ़ापे की सूरत देख क्या मित्रो इसलिए सिहर गई थी कि जिस देह को वह अपनी निधि - इलाही ताकत - मानती है, वह सेमल के फूल की तरह चार दिन का खेल है। लेकिन यह निधि पति का साया-संरक्षण भी तो नहीं है न! महादेवी वर्मा तो ‘हिंदू स्त्री का पत्नीत्व‘ में इस तथाकथित निधि को गरियाते हुए इसे स्त्री के लिए बेहद अपमानजनक बताती हैं। मित्रो की घर वापसी बेशक ‘मित्रो मरजानी‘ के कलेवर में पितृसत्तात्मक व्यवस्था को मजबूत करती योजना के रूप में उभरती हो, ‘ऐ लड़की‘ की अम्मूवमें ढलकर वह पितृसत्तात्मक व्यवस्था की शिनाख्त की जमीन मुहैया कराती है। तो क्या यह निधि स्त्री की अपनी मानवीय अस्मिता है? निर्णय लेने की स्वतंत्रता, आर्थिक आत्मनिर्भरता, तार्किकता, विवेकशीलता और गत्यात्मकता की दीप्ति से देदीप्यमान स्त्री अस्मिता? </span><br /><br /><span style="font-size: large;"> बेशक मुक्ति न देह की है, न संबंधों से है। मुक्ति देह और संबंधों की जकड़बंदी करने वाली सोच से है जो देह में स्थित दिमाग और हृदय के सानुपातिक सक्रिय गठजोड़ के बिना संभव नहीं। </span><br /><br /> <br /><br /><span style="font-size: large;">- रोहिणी अग्रवाल<br /><br /></span><div style="background-color: white; font-family: Mangal, "Arial Unicode MS", Utsaah, CDAC-GISTYogesh, Tahoma, Verdana, Arial, Helvetica, "Bitstream Vera Sans", sans-serif; font-size: 14px;">
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प्रोफेसर, हिंदी विभाग, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा<br />फ़ोन नंबर: 9416053847</div>
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rohini1959@gamil.com</div>
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shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-82744756945335082022019-04-25T09:22:00.001+05:302019-05-03T09:26:59.737+05:30डर- सपना सिंह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBEfsJDQ3eBjZGNYSkBQxYrgneKsK4xqx4_eZuebVRIeKJzEnP-uHBrbooPEy_MiEBBNqT8F-buJ63n3MUcPBoDNChxTS6I8IlXApJSsjhLHF8z5aNLQOWKt3zqh7i_I9gtKQLfKhc09w/s1600/57277808_1404043413071848_331987442833817600_n.jpg" style="font-size: x-large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBEfsJDQ3eBjZGNYSkBQxYrgneKsK4xqx4_eZuebVRIeKJzEnP-uHBrbooPEy_MiEBBNqT8F-buJ63n3MUcPBoDNChxTS6I8IlXApJSsjhLHF8z5aNLQOWKt3zqh7i_I9gtKQLfKhc09w/s320/57277808_1404043413071848_331987442833817600_n.jpg" /></a><br />
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<span style="font-size: x-large;">डर</span><span style="font-size: large;"> <br />-------<br /><br /><br /><br /><b style="background-color: #ffe599;">"हम खूब दावे कर लें कि स्त्रियों के प्रति सदियों से स्थापित सोच में बदलाव आया है .. फिर क्यों आज भी जन्म से ही एक अंजाना डर उनके जीवन का हिस्सा बन जाता है... और उस डर को वे पीढ़ी दर पीढ़ी प्रत्यारोपित करती जा रहीं हैं.<br />कहानीकार सपना सिंह की कहानी 'डर' सामजिक परिवेश में स्त्रियों के प्रति उस विचारधारा को उजागर करती है जो हर क्षण उनमें डर की पौध को खाद-पानी देकर सींच रही है!"</b><br /><br /><br /><br /><br /> लड़की के साथ गैग रेप। भीगा तैलिया आंगन में फैलाते हुये उसके कानों में टी.वी. पर आती आवाज टकराई लॉबी में रखा टी.वी. लगातार अमंत्रित करता है ब्रकेंग न्यूज किचन की ओर जाते उसकी निगाह टी.वी. पर पड़ती है न्यूज रीडर लगातार पूरे एक्साइटमेनट के साथ बोल रहा है एम.बी.ए. की छात्रा पढ़कर लौटते वक्त कार में लिफट ले लेना आफत न्यौतना ही तो है। <br /><br /> “सुमि, कहां खोई हो... मेरे मोजे कहां हैं...? कितनी बार कहा, जूतों के साथ ही रक्खा करो...’’ पतिदेव का कर्कश स्वर कानों से टकराया... वह आंटा माड़ना छोड़ मोजे ढूढ़ने लपकी। हर बार इसी सब के लिये झाड़ पाती है, मोजे, जूते, रूमाल, मोबाइल। यही तीन कमरों का घर... वही दो एक मेज... वही अलमारियां...फिर भी वहीं सब चीजों के लिये कच-कच उसका बड़बड़ाना एक बार शुरू होता है तो जल्दी खत्म होने पर नहीं आता.... मेरी चट्टी बनियाइन... सही जगह पर क्यों नहीं रखती? अब वह तो अपने हिसाब से सही जगह पर ही रखती है, पर उसकी सही जगह अक्सर पतिदेव के लिये गलत ही होती है अब तो, इसी बात पर मूड़ ऑफ। ये मर्द और इनका मूड़... इनकी बड़-बड़ से क्या हमारा मूड़ नहीं बिगड़ता? पर जतायें किसे...? चुप रहो तो कहेंगे घर पर रहना बेकार बोलों तो सुनेंगे ही नहीं.... जैसे उनसे नहीं दीवार से कह रहे हो.... थोड़ा तेज बोलों तो, कहेंगे.... चिल्लाती क्यों रहती हो हर वक्त... ब्लप्रेशर बढ़ जायेगा... गिर पडो़सी किसी दिन भट्ट से...। <br /><br /> “मम्मी .... चोटी करो...।” बेटी कंघा लेकर खड़ी है। <br /><br />’’करती हूँ... पहले दूध खत्म करो।‘’ <br /><br /> ‘पहले चोटी करो... वही तुनकता उददण्ड’’ स्वर... जो उसे भीतर तक खदबदा डालता है, उसने उस स्वर को नजर अंदाज किया और दूध में बोर्न्विटा मिलाने लगी। <br /><br /> ‘’मम्मी... जल्दी करो... ऑटो आ जायेगा ....।‘’ <br /><br />बेटी बेसब्र हो रही है मुंह से निकलते ही बात पूरी हो जानी चाहिये... वह भुनभुनाते हुये बेटी के बाल बनाने लगी। <br /><br />’कस के करो-....’ <br /><br />’तुम ठीक से... सीधे खड़ी रहो...।‘’ उसने बेटी को डपटा.... <br /><br />’ढीला कर रही हो...’ बेटी तुनकी और अपने बाल छुड़ाकर शीशे के सामने खड़ी हो खुद से चोटी बनाने लगी। <br /><br />जब मेरा किया पसंद नही आता तो... खुद ही किया करो... अब से मत आना मेरे पास कहते हुये कुछ याद आ गया बहुत पहले का कोई दृश्य... इतनी बड़ी लड़की अपनी मां से भी लम्बी... मां से अपनी दो चूटिया गुथवाती... इसी तरह मां को टोकती झुझंलाती...। क्या दुनियां में किसी लड़की को अपनी मां की गुथी चोटी पंसद नहीं आती...? <br /><br /> पतिदेव का स्पेशल कमेंट है... तुम मां- बेटी की पटती नहीं....। <br /><br />’मम्मी। पिन लगा दो...’ वो स्कूल का दुप्पट्टा लिये खडी़ है... अब इसमें भी झिक-पिक । इस वर्ष आठवी से ही सलवार कुर्ता चल गया है... तर्क है लड़के सीढि़यों के नीचे खड़े हो, झाकते हैं स्कर्ट खतरनाक है... निचली क्लास की स्कर्ट भी डिवाइडर टाइप की हो गई है। कुछ भी देख पाने पर पूरा अंकुश। उसकी आंखे बेटे के मासूम चेहरे पर अटक जाती है, ये चेहरे... कैसे शैतान चेहरों में तब्दील हो जाते हैं। <br /><br /> उसे याद आता है... वेा चचेरा भाई, उससे 6-7 साल छोटा, वह पूरी तरह बड़ी और बो बड़े होने की प्रक्रिया से गुजरता हुआ। इस दोपहर नॉवल पढ़ते-पढ़ते वह नींद में जा पहुंची थी... गले में सरसराहट... उनींदी आंखो में कौंध सा गया चेहरा... जैसा किसी रहस्य लोक में घुसने की चोरी करते पकड़ा गया हो उसने किसी को बताया नहीं... पर दिनों तक अपने उस भाई से नजरे चुराती रही थी। <br /><br /> टी.वी. पर विज्ञापन चल रहा है किसी सैनेटरी पैड का ... हवा की तरह हल्की फुल्की लड़की... कुछ ज्यादा फुदक रही हैं पीरियड्स में उतना घूमना फिरना? पर उसे तो दुनिया की सेाच बदलती है न... जैसे, सिर्फ स्त्राव ही परेशानी का सबब हो जिससे बेतरीन पैड बैड लगाकर छुटकारा पाया जा सके.... उन दिनों की खिन्नता, दर्द असुविधा.... ये सब... इनका क्या करे....? अब बाजार में ये, ये चीज भी मौजूद है.... जिसका इस्तेमाल तुम्हें पूरी स्वच्छता देगा। <br /><br /> ‘मम्मी ये क्यो है’ बेटे की सहज जिज्ञासा।‘ <br /><br />’ये-ये लड़कियों का ड्रायपर है...’ पांच साढ़े साल पांच साल के बच्चे को और क्या बताये ? जैसे तुम छोटे थे तो पहनते थे न वैसे ये बड़ी लड़कियों का...। <br /><br />’दीदी का भी’ <br /><br />’हां...।‘’ <br /><br /> <br /><br /> ‘दीदी... क्या शू शू करती हैं...’ इतने में दीदी ने एक चपत उसके सिर में लगाई, मम्मी की ओर रोष से देखते हुये। भूनभूनाई.... मम्मी... कुछ भी बताती रहती हो’ बड़ी होती बेटी उससे संबंधित हर बात में सकुचाई रहती है, पैड छुपाकर लाया करो ऐसे क्यों लाती हो... पापा से क्यों मगाती हो। <br /><br /> वो भी तो थी इस उम्र में ऐसी ही.... कपड़ा फाडने हुये लगता अदृश्य हो जाये, कपड़े की चिडर्र किसी कानों तक न पहुंचे और फिर गंदे कपड़े को अखबार में लपेटकर बाउंडरी के उस पार उछालना...ऐसे कि वह इधर न गिरकर उस पार पानी भरे प्लॅाट में गिरे... और ये सब होते बीतते कोई देख न ले... आंगन में चारपाई पर लेटे धूप सेंकते पापा या फिर वहीं चटाई पर बैठ स्वेटर बुनती मां... या फिर छोटे भाई बहन या बगिया की घांस निकालता चपरासी, वो छोटे छोटे पल कितने भारी होकर गुजरते थे, अब ये पैड बैड होने से कितनी सहूलियत हो गई है तब कहां मिलते थे छोटे कस्बों शहरों में...। <br /><br /> नयी पत्रिका आई है, फुरसत में वह इन हल्की फल्की पत्रिकाओं को पढ़ना पंसद करती है सबकुछ तो होता हो इनमें ड्रांइंग रूम से लेकर बेडरूम तक में एक औरत को कैसे होना रहना चाहिये खुद से लेकर घर और आस पड़ोस सब सुन्दर साफ और व्यवस्थित,सबसे पहले सवाल-जवाब के कॉलम पढ़ती है वो विशेषज्ञों द्वारा दिये... गये जवाब... कितने बदल गये हैं... आजकल के सवाल पहले जहां इन कॉलमों में पति द्वारा उत्पीड़न बचपन में हुये यौन उत्पीड़न से उपजे अपराध बोध विवाह पूर्व प्रेम प्रसंग को लेकर उपजा अर्न्तद्द ... आदि से संबंधित सवाल होते थे... वहीं अब सवाल चौकाते हैं ज्यादातर सवाल रिलेशनशिप से जुडे़ होते हैं, एम.बी.ए. की छात्रा का सवाल है- <br /><br /> अपने ब्वायफ्रेण्ड के सांथ उसके सेक्सुअती रिलेशन है... क्या ये गलत है? दूसरी सवाल है- क्या शादी से पहले अपने पार्टनर के सांथ सेक्स एंजॉय करना गलत है? पर जब मेरी उम्र की लड़कियां शादी करके सेक्स एंजॉय कर रही है तो मैं क्यों नहीं...। <br /><br /> ऐसे सवाल और उनके वैसे ही जवाब इंगित करते हैं वक्त बहुत तेजी से बदला है... अब सेक्स टैबू नहीं रहा... शायद छोटे शहरों कस्बों में अब भी हो... पर बड़े शहरों में सेक्स पिज्जा बर्गर की तरह तेजी से नयी पीढ़ी द्वारा स्वीकार्य हो रहा है शायद प्रेम या रिलेशनशिप की अनिवार्यता भी पीछे छूट जाये... एक भूख जिसे पूरा किया जाना... जरूरी हो! कहीं पढ़ा था, अमेरिका, यूरोप में सेक्स अनुभव लेने की औसत उम्र सोलह वर्ष है ऐसे आंकड़े सर्वे आजकल प्रतिष्ठित पत्रिकायें खूब करती हैं... उनके रिजल्ट भी चौकानें वाले होते हैं। यह सब पढ़-सुन देख डरती है वो...। <br /><br /> डर तो और भी बहुत सारे है... बचपन से आज तक ये डर साथ-साथ रहा है हर वक्त हर कहीं... बहुत बचपन की घटनायें... वर्षों डराती रहीं... जाने कौन था वो... जो रात के अंधेरे में 6-7 साल की बच्ची की पीठ पर अपने शरीर की रगड़ देता अब तक डरावनी यादों की तरह सिहरा देती है। <br /><br /> पापा के ऑफिस के सभी लोग मेला देखने जा रहे हैं वो भाई बहन भी कालोनी के अन्य बच्चो की तरह जीप में ठूंस लिये जाते हैं भाई आगे पापा की गोद में वी पीछे छोटे कर्मचारी चपरासियों के साथ कुछ और बच्चे भी वह किसी की गोद में थी, सारी राह कुछ चुभता सा.. नीचे की ओर... दर्द चुभन से बेहाल...वह उठना चाहती पर बुरी तरह ठंसी जीप लौटते में वह जिदिया गई थी... आगे... बैठेगी... पापा के पास.... भाई को पीछे जाना पडा़ था...। क्या उसे भी वैसे ही कुछ चुभा होगा? <br /><br />और ये आज कल की लड़कियां... जानबूझकर जोखिम मोल लेती किसी से भी लिफ्ट ले लेना... ब्वायफ्रेड से अकेले में मिलना... शार्टकट के चक्कर में सुनसान रास्ते जाना... ये सब आफत को न्यौता देना ही तो है, अखबार चैनल सनसनी बरदात सारे दिन ब्रेकिंग न्यूज... आरूषिद्व रूचिका शिवानी... डर ...डर... डर। <br /><br /> ढेरों घटनायें... देर तक सोचती है वो, कैसे, क्या करने पे बचा जा सकता था.. किसने किया होगा... आरूषि का कत्ल? क्यों किया होगा रूचिका ने आत्महत्या...? और वह हाई प्रोफाइल पत्रकार शिवानी भटनागर! कितने अनुतंरित सवाल। <br /><br /> एक लड़की का जन्म लिया है तो उम्र भर सिर्फ ‘बचने’ की सोचो अपने आपको सुरक्षित रखने की जुगत इतनी बड़ी बन जाती है... कि बाकी हर संभावना इसके आगे बौनी। <br /><br />““मम्मी ! मैं जा रही हूँ ... देर हो रही है... ” बेटी का स्वर झुझलाया हुआ.... मतलब इरा अभी नहीं आई थोड़ी दूर पर रहने वाले मौसेरे भाई की बेटी की क्लास में है दोनों सांथ ट्यूशन जाती हैं सुविधा भी सुरक्षा भी एक से भले दो...। पर उसे दो मिनट भी देर हुई नहीं कि, इनका झुझलाना शुरू। <br /><br /> “मम्मी... फोन करो मामी को इरा चली का नहीं...” <br /><br /> “आती होगी....।” <br /><br />“कल से ... मैं .... नहीं रूकूगी ... उसकी वजह से हमेशा लेट होते है...। “पीछे बैठना पड़ता है... जगह नहीं मिलती....।” बेटी की आवाज तल्ख है।मम्मी की ये सब बाते उसकी समझ में नही आतीं। इसके साथ आओ.... अकेले मत जाओ... सुनसान रास्ते से मत जाओ...। लेकिन, क्या वो चाहती है ये सब करना कहना.... कितनी मन्नतो से मांगी थी बेटी, पर बेटी की मां बनते ही कैसे तो एक डर भी भीतर पैदा हो गया। ना ये सामान्य मात़त्व का डर नही था जो अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर हरदम सचेत रहता है वह गिर न जाये... कोई चोट न... लगा बैठे.... कुछ नुकसान न कर ले अपना.... इन सब डरो के साथ-साथ एक और अदृश्य सा डर जो प्रत्यक्षत: कहीं नहीं दिखता था... पर था... और दिन व दिन बेटी के बढ़ने के साथ ही वह भी बढ़ रहा था डगमग चलते पाव कब का स्थिर , मजबूत चाल चलने लगे, गिरने पड़ने चोट खाने का कोई भय नहीं, फिर भी, आंखो के दायरे से बाहर नहीं जाने देना चाहती वो उसे। कब मुक्त होगी वह इन डरो से। क्या कभी ये दुनियां वैसी होगी जहां कोई लड़की अपनी पूरी उम्र बगैर डरे जी पाये, ईश्वर ने सृष्टि रचते हुये ये जो इतने सारे तरह तरह के जीव जन्तु बनाये... उन सब में उसके जैसा बिल्कुल उसका दूसरा कम उसका पूरक उसी की नस्ल का...। क्या एक के बिना दूसरे का अस्तित्व संभव है...? फिर, क्यों और कैसे एक की सत्ता दिन व दिन और और मजबूत होती गयी और दूसरा सिर्फ दास नुमा भूमिका भूमिका में उतरता गया, कैसी बिडंबना है- डर भी उसी से है और डर भगाने के लिये सहारा भी उसी का है। औरताना जिंदगी के उम्र का कोई पड़ाव इस... डर से अछूता बचा है क्या ? छोटी बच्चियों से लेकर दादी, नानी की उम्र तक की औरत तभी एक सलामत जब तक सामने पड़ने वाले पुरूष के भीतर का पिशाच जाग न जाये ... और पिशाच को जगने न देने के लिये तमाम एहतियात... न ऐसे न रहो...ये न पहनो...यों न बैठो... न चलो... यूं न देखो .... बंदिशे, सलोहं सहूलियतें समझाइशें...। <br /><br /> वह उतान पड़ी है कमरे में, स्कूल बैग, ड्रेस, बोतल जूता मोजा सब बिखरे पड़े हैं कितनी बार कमरे को व्यस्थित रखने को कह चुकी है... पर वह सुनती नहीं... ज्यादा बोलने पर झुंझला जाती है। पतिदेव का कहना है तुम कुछ सिखाती नहीं। अब वो न सुने उसके कहे को तो? यूं भी स्कूल से थके यादें आये बच्चों पर कड़कडाना उसे अच्छा नहीं लगता। दो बजे तक उसकी अपनी बैटरी भी डिस्चार्ज हो चुकी होती है जैसे-तैसे बच्चों का खाना परोस उसे खुद भी बिस्तर ही दीखता है। <br /><br /> देखो, कैसी तो बेहोश सी सो रही है। सोचते हुये... वह इधर उधर बिखरी चीजों को समेटने लगी हैं उसकी आहट ने बेफिक्र सोई बेटी को शायद नींद में ही झिझोड दिया है... फैले पैर को सिकोड़ करवट ले उनीदी आंखे खोलती हैं बेटी का यों पैर सिकोड़ना... पता नहीं क्यों उसे भीतर तक मथ देता है आहटें, बेटियों को ही पैर सिकोड़ना पर क्यों मजबूर कर देती हैं...? <br /><br /> “कोई नहीं... मैं हॅू...।” वह आश्वस्त सी करती कहती हैं... और फिर चीजों समेटने में जुट जाती हैं... उफ ये टयूशन वाला बैग... कल से चेन खुली है इसकी... सोचते हुये बैग उठाती है... खुली चेन को बंद करते भीतर कुछ चमकता है... ये क्या है...? अरे, ये यहां.... इसके बैग में.. कितने दिनों से वह इसे किचन में ढूढ़ रही थी... पर, इसे इसने बैग में क्यों रक्खा है...? हाथ में पकड़ने फल काटने के चाकू पर उसकी नजरें जम सी गई हैं.... उसे चक्कर सा महसूस होता है... जाने कब, कैसे उसके भीतर का डर उसकी बेटी के भीतर प्रत्यारोपित हो गया... कब कैसे...? <br /><br />---सपना सिंह </span><br />
<div align="center" class="MsoSubtitle" style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><u><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 23.0pt;">परिचय<o:p></o:p></span></u></span></div>
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<div align="center" class="MsoSubtitle" style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><u><span style="font-size: 23.0pt;"><o:p></o:p></span></u></span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
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<div class="MsoSubtitle">
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<span style="font-size: large;">
</span><span style="font-size: x-small;"><br /><br /><br />नाम - सपना सिंह <br /><br />जन्म तिथि - 21जून 1969] गोरखपुर] उत्तर प्रदेश <br /><br />शिक्षा - एम.ए. (इतिहास, हिन्दी) बी.एड. <br /><br />प्रकाशित कृतियॉ - धर्मयुद्ध] साप्त’हिक हिन्दुस्तान के किशोर कालमों सें लेखन की शुरूआत, पहली कहानी 1993 के सिम्बर हंस में प्रकाशित... लम्बे गैप के बाद पुन: लेखन की शुरूआत, अबतक-‘’हंस-कथादेश’’, परिकथा,कथाक्रम, सखी(जागरण), समर लोक संबोधन (प्रेमकथा विशेषांक), हमारा भारत, निकट, अर्यसदेंश, युगवंशिका, माटी, इन्द्रपस्थ भारती, गम्भीर समाचार, कथा यूके ‘पुरवाई’ , इत्यादि में दो दर्जन से अधिक कहानियॉं प्रकाशित। <br />आकशवाणी से कहानियों का निरतंर प्रसारण। <br />प्रतिलिपि, सत्याग्रह, शब्दाकंन, हस्ताक्षर, पहलीबार, नॉटनाल वेब पत्रिकाओं में कहानियां। <br />उपन्यास - तपते जेठ में गुलमोहर जैसा। <br />कहानी संग्रह़ - उम्र जितना लम्बा प्यार , चाकर राखो जी <br /><br />सपना सिंह <br />द्वारा प्रो. संजय सिंह परिहार <br />म.नं. 10/1456, आलाप के बगल में, <br />अरूण नगर रीवा (म.प्र.) <br /><br />मो.न्ं. 09425833407</span><span style="font-size: large;">
</span><br />
<div class="MsoNormal">
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shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-78017147896829124982019-04-07T10:47:00.000+05:302019-04-07T16:08:29.366+05:30"..क्योंकि हमें डर कर नहीं डट कर जीना है" - फ़रगुदिया डायरी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaDMqCUvnrT66tn8vl9NI_u_39PIhoUd_TOzTkx3qxutrgb9_AoyohgITeSFqFWAKLT8HHnT7voHFeLWfyM2iVjFo2dpZxMxMOwz9-tIpMlwuCzgJCJnAcGltPJ9878yoMnKiYMexhkiA/s1600/53295593_2548912608514471_410718977963065344_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="960" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaDMqCUvnrT66tn8vl9NI_u_39PIhoUd_TOzTkx3qxutrgb9_AoyohgITeSFqFWAKLT8HHnT7voHFeLWfyM2iVjFo2dpZxMxMOwz9-tIpMlwuCzgJCJnAcGltPJ9878yoMnKiYMexhkiA/s320/53295593_2548912608514471_410718977963065344_n.jpg" width="320" /></span></a></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: medium;"><b>"<span style="font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">बीजारोपण के पश्चात मिट्टी से अँखुआते पौधे को देखने में जो सुख है ठीक वैसा ही सुख इनके हाथों में कलम थमाकर इनके लिखे को पढ़ने में हैं!</span><br style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif;" /><span style="font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">अपनी प्रतिभा से अनभिज्ञ ये बस लिखती गयीं! इनकी भाषा शैली का कच्चापन, कोमलता विचार रूप में सीधे हृदय को स्पर्श करता है!</span><br style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif;" /><span style="font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">एक लंबे अंतराल के बाद पुन: प्रस्तुत है फरगुदिया की नई डायरी।"</span></b></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
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<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">1-<b> आप सब अपने बारे में कुछ बताइये.</b></span><br />
<h4 style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">2- लड़कियों का आत्मनिर्भर होना ज़रूरी क्यों है?</span><span style="font-size: large;"><br />3- अपनी रुचियों के बारे में बताइये.</span><span style="font-size: large;"><br />4- छेड़खानी और यौन हिंसा रोकने के लिए पारिवारिक और कानूनी तौर पर क्या प्रयास होना चाहिए?</span><span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit; font-size: large;"><br />5- भविष्य की योजनाओं के बारे में बताइये.<br /></span></h4>
</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZ6hf8xNN8s5Ll4eE9UlWeDplQ-KkOvtBEglaFEhF29yuQnPk_xQKW46DphpSV0Qp5-5geAfitEntfeElaJ0sTNmoJzSNSvyQ-P77QrrRLZ7_NRJdZ60bucaqFAti04Qnw2GmK2Y6f2ic/s1600/54256476_2548913035181095_680369956952473600_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="720" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZ6hf8xNN8s5Ll4eE9UlWeDplQ-KkOvtBEglaFEhF29yuQnPk_xQKW46DphpSV0Qp5-5geAfitEntfeElaJ0sTNmoJzSNSvyQ-P77QrrRLZ7_NRJdZ60bucaqFAti04Qnw2GmK2Y6f2ic/s200/54256476_2548913035181095_680369956952473600_n.jpg" width="150" /></a></div>
<span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit; font-size: large;"><br /><span style="font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">मेरा नाम सीमा है। मैंने दिल्ली की एक संस्था में रहकर बारहवीं तक शिक्षा प्राप्त की। 18 की आयु के बाद उसी संस्था स्थित आफ्टर केअर होम में शिफ़्ट कर दिया गया। वहां रहते हुए मैंने ग्रेजुएशन किया और साथ में सिलाई, ब्यूटीशियन, आर्ट एंड क्राफ्ट, इंग्लिश स्पीकिंग का कोर्स किया। वहां आफ्टर केअर होम के बच्चों के कपड़े सिलती थी। मैं दिल्ली महिला आयोग में जॉब करती हूँ।</span><br style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif;" /><span style="font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">मैं आत्मनिर्भर हूँ। बहुत खुश और संतुष्ट हूँ। मुझे अपनी जरूरतों के लिए किसी के आगे हाथ नही फैलाना पड़ता। मैं आर्थिक रूप से दूसरों की मदद कर सकती हूँ और किया भी है। </span><span style="font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">दिल्ली महिला आयोग में काम करते हुए मैंने बहुत कुछ सीखा।</span><span style="font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">समाज में सम्मान से जीने और लड़कों से कंधा मिलाकर चलने के लिए एक लड़की का आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है। एक लड़की का आत्मनिर्भर होना इसलिए भी जरूरी है ताकि उसे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। एक लड़की का आत्मनिर्भर होना इसलिए भी जरूरी है ताकि शादी के बाद उसे अपनी जरूरतों के लिए अपने पति पर डिपेंड न रहना पड़े। आत्मनिर्भर लड़की पर समाज और परिवार द्वारा किसी भी तरह का अत्याचार नहीं हो सकता।</span><br style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif;" /><span style="font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">आत्मनिर्भर शिक्षित लड़कियां महिलाओं पर हो रहे अत्याचार भी रोक सकतीं हैं.. जैसे महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल हैं। वो महिलाओं के हित के लिए बहुत कुछ कर रहीं हैं।</span><br style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif;" /><span style="font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">आत्मनिर्भर लड़की अपने सारे निर्णय खुद ले सकती है। अपने सारे सपने पूरे कर सकती है। अकेली बाहर घूमने जा सकती है। मुझे अपने आप पर गर्व है कि मैं आत्मनिर्भर हूँ।<br />छेड़खानी और यौन हिंसा रोकने के लिए बसों में, स्कूलों और उसके आस पास सी सी टीवी कैमरे होने चाहिए | और पुलिस द्वारा सुरक्षा व्यवस्था दी जानी चाहिए | परिवार में बच्चों को इन अपराधों के प्रति सजग रखने लिए उनसे बातचीत करनी चाहिए |<br />भविष्य की योजनाओं के बारे में अभी ज्यादा कुछ सोचा नहीं | सोशल वर्क की जॉब जारी रखते हुए समाज के लिए ख़ासतौर पर महिलाओं के लिए कुछ सार्थक करना चाहूंगी |<br /><br />*****</span></span></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-size: large;">जय श्री कृष्णा! </span><br />
<span style="font-size: large;">मेरा नाम कंचन है | मैं दिल्ली की एक संस्था में पली -बढ़ी और पढ़ी हूं। मैं दिल्ली में रहती हूं | मैंने शिक्षा सिर्फ दसवीं तक ही प्राप्त की है | क्योंकि</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg05GKIpSHh-Kq1wy8vauubzUtd4j2QFk16azk10j3IYKBUYIOVOlySQOAU0O3pPib-M1_gsvj1_oAYGpyXzLiVCwlfQnnvR4r7bQwj4Gf_PC9c2_vi2VlTIrB-WAExTDGYJPy3Jj324AI/s1600/53609542_2548913088514423_4106590425534431232_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="480" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg05GKIpSHh-Kq1wy8vauubzUtd4j2QFk16azk10j3IYKBUYIOVOlySQOAU0O3pPib-M1_gsvj1_oAYGpyXzLiVCwlfQnnvR4r7bQwj4Gf_PC9c2_vi2VlTIrB-WAExTDGYJPy3Jj324AI/s320/53609542_2548913088514423_4106590425534431232_n.jpg" width="160" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;"> जब मैंने दसवीं कक्षा पास की थी तभी मैंने शादी कर ली थी | इसीलिए मेरी आगे की पढ़ाई नहीं हो पाई। मैंने संस्था अपनी मर्जी से छोड़ा था क्योंकि वहां पर बहुत सारे नियम बदल दिए गए थे, जिससे वहां पर बच्चों को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। होस्टल छोड़ने के बाद मेरे पति ने मेरा साथ दिया | किराए पर कमरा दिलवाया और एक दो महीने बाद मेरी नौकरी लगवा दी |</span><br />
<span style="font-size: large;"> 22-3 -2015 को हमने हॉस्टल को जानकारी देते हुए शादी कर ली | शादी के बाद हम दोनों हॉस्टल भी गए सब से मिलने | सभी मैडम से मिलकर सब का आशीर्वाद लिया | सब बहुत खुश हुए मेरा यह फैसला देख कर | शादी के बाद मैं बहुत खुश हूं | जब मेरी शादी हुई थी तब मेरे परिवार में मेरे मम्मी-पापा देवर और मेरे पति थे। ऐसा नहीं है कि मेरे पति या मेरे परिवार वालों ने मुझे पढ़ाई नहीं करने दिया | दरअसल बात यह थी कि मैं गर्भवती भी जल्दी हो गई थी | इसीलिए मेरा मन नहीं किया आगे पढ़ाई करने का | मेरी बेटी का नाम प्रयांशी है | अब वह दो साल की हो चुकी है | मेरा पूरा परिवार आज भी मुझसे उतना ही प्यार करता है जितना कि चार साल पहले करता था | सब मेरी बहुत इज्जत करते हैं और मैं सब की बहुत इज्जत करती हूं | मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हमारे परिवार में हमेशा ऐसे ही प्यार बना रहे | मेरी दिल से यही दुआ है कि जैसे मुझे अच्छा पति और अच्छा परिवार मिला दुनिया की हर लड़की को ऐसे ही अच्छा पति और ऐसे ही अच्छा परिवार मिले।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;"> मेरी रूचि एक्टिंग में थी पर शादी के बाद और आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण मेरे सारे शौक खत्म हो गए। लेकिन मैं अपनी बेटी को एक बहुत बड़ी हीरोइन जरूर बनाऊंगी | अगर वह नहीं बनना चाहेगी तो जिस भी फील्ड में वह जाना चाहेगी, मैं उसे जरूर आगे बढ़ने के लिए उसकी मदद करूंगी | अब मेरा शौक यही है कि मैं अपनी बेटी को बहुत ज्यादा पढाऊँ |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> यौन शोषण से कैसे बचे - इसके लिए बस हम कोशिश कर सकते हैं | रोकना, यह कहना तो मुश्किल है कि इसको रोका जा सकता है। क्योंकि कहीं - कहीं पर अपने ही घर में.. अपने ही परिवार से कुछ बच्चे लड़की हो या लड़का सुरक्षित नहीं है, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि इसे रोका जा सकता है! हां, हम बस कोशिश कर सकते हैं | इसीलिए हमें अपने बच्चों को समझाना चाहिए | उनसे प्यार से बात करनी चाहिए | ना कि उन्हें डरा कर रखे | उनके मन में अपने लिए इतना डर पैदा कर दें कि उनके साथ कुछ भी गलत हो और वह हमसे बताने में शर्माये या घबराए या किसी प्रकार का उनके मन में हमारे लिए हिचकिचाहट हो कि - मम्मी- पापा को मैं बताता हूं या बताती हूं तो वह मुझे गलत समझेंगे और मेरा साथ नहीं देंगी या देगें | पहले तो अपने बच्चों से इतनी अच्छी तरह से मिले-जुलें.. उनसे अपनी हर बात खुलकर करें ताकि बच्चे भी आपको अपनी सारी बातें खुलकर बता सकें | उन्हें प्यार से समझाएं ..उनके दोस्त बने.. उनको हर अच्छे बुरे इंसान का पहचान करना सिखाएं.. उन्हें हर वक्त डांटे नहीं ..तभी बच्चे भी आपको अपने मन की सारी बातें बता पाएंगे कि उनके साथ किस ने क्या गलत किया है। अगर आपके परिवार वाले आपको मना करते हैं कि- नहीं यह बात बाहर नहीं जानी चाहिए.. घर की बात घर में रहने दे ..तो आप इस बात को बिल्कुल नकार दें कि- नहीं, मैं नहीं गलत सह सकता या सह सकती | जैसे कि घर में बड़े होते हैं सास-ससुर या दादा -दादी वह मना करते हैं कि घर की बदनामी होगी | तो आप उन्हें मना करिए और समझाइए कि नहीं हमारे साथ गलत हुआ है जिस ने गलत किया है वह गलत है ..हम गलत नहीं है | और आप पुलिस से इस मामले में मदद मांगें.. उनसे कहिए हमारे साथ गलत हुआ है.. आप हमारी कंप्लेन लिखें | अगर पुलिस आपको डराती है या फिर आप को धमकी देती है तो आप उन्हें अपनी पूरी बात बताएं और बोले हमारे साथ गलत हुआ है । आप बार-बार जाइए और बोलिए उनसे कि -यह आपका काम है ..आप हमारे मदद के लिए हैं | आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप हमारी मदद करिए | आपको सरकार पैसा देती है.. आपको इसलिए नौकरी पर रखा गया है कि आप हमारी मदद करें ना कि यहां पर कुर्सी पर बैठे -बैठे मुफ्त की रोटियां तोड़े | आप उनसे भी मत डरिए और डटकर सामना करिए क्योंकि हमें डर कर नहीं डट कर जीना है! इसे ही जिंदगी का नियम बना लीजिये। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">---</span></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">मैं भविष्य में अपनी बेटी को बहुत ज्यादा पढ़ाना चाहती हूं। उसे बहुत ज्यादा ऊंचाइयों पर देखना चाहती हूं। मेरा यही सपना है कि मेरी बेटी को पूरी दुनिया जाने | इसके लिए मैं अपनी जी- जान लगा दूंगी| और उसे भविष्य में यही सीख शिक्षा दूंगी कि -बेटा हमेशा अपनों से बड़ों का सम्मान करना ..सबकी इज्जत करना और हो सके तो ज्यादा से ज्यादा लोगों की खासतौर पर मजबूर लोगों की मदद करना | क्योंकि लोगों की दुआएं और मजबूर लोगों की दुआएं तो बहुत काम आती हैं। लोगों से बस आदर सम्मान ही पाना.. ना कि किसी से अपने लिए बुराई पाना| हां जाने- अनजाने में अगर तुम से कोई गलती हो जाती है तो उसके लिए पछतावा भी करना और भगवान से माफी भी मांगना, कि - हां मैंने यह गलती की है | अपनी गलती हमेशा मानना तभी आप आगे बढ़ पाओगी। गलत को गलत और सही को सही हमेशा कहना | कुछ भी हो किसी से डरने की जरूरत नहीं है | जो गलत है वह गलत है.. जो सही है वह सही है .. इस बात पर तुम हमेशा डटे रहना | वह काम कभी मत करना जिससे किसी का दिल दुखे या जिससे किसी का नुकसान हो | आप कितनी भी ऊंचाइयों पर पहुँचो पर अपने अंदर घमंड कभी भी मत आने देना | क्योंकि घमंड सिर्फ कुछ दिन के ही होते हैं ..क्योंकि इंसान को सिर्फ इंसान ही समझ सकता है और साथ दे सकता है ना कि उसकी दौलत, शोहरत और नाम | यह भविष्य में मैं अपनी बेटी को सिखाना चाहूंगी।<br /><br />--कंचन<br /><br />*******</span></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-top: 6px;">
<div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-bottom: 6px;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1-sC_6OdGEkun4-94p1Rq28Ikw3r7KfOl4Ls2duC-cRj-qzudm5o57C_9E5qTD6cYhwYffOsMkp2K3jG3k3aA9_rpLAIjFjiNzo-aKceIwRCRfX3bv9ggTC1GT5yes0l4cxINXZySIvo/s1600/53176204_2548912778514454_7387920911120203776_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="717" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1-sC_6OdGEkun4-94p1Rq28Ikw3r7KfOl4Ls2duC-cRj-qzudm5o57C_9E5qTD6cYhwYffOsMkp2K3jG3k3aA9_rpLAIjFjiNzo-aKceIwRCRfX3bv9ggTC1GT5yes0l4cxINXZySIvo/s200/53176204_2548912778514454_7387920911120203776_n.jpg" width="149" /></a><span style="font-size: large;">मेरा नाम पूजा है | मैंने बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई की है | अब मैं अपनी</span><span style="font-size: large;">छोटी -सी फैमिली के साथ रहती हूं | इसमें मेरी मां और मेरा भाई साथ रहते हैं | दो बहनों की शादी हो गई है | मैं लाइफ में बहुत कुछ करना चाहती हूं जिससे मेरा भविष्य बन सके | मुझे ड्राइंग और आर्ट एंड क्राफ्ट डेकोरेशन करना बहुत अच्छा लगता है |</span></div>
<div style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">लड़कियों का आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है | क्योंकि जब तक एक लड़की किसी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर रहेगी तो उसे दुख तकलीफ के अलावा कुछ नहीं मिलेगा | इसलिए खुद के लिए .. अपने सपनों के लिए ...अपने आने वाली जिंदगी के लिए .. ताकि उसके परिवार को कोई दुख परेशानी ना हो |</span><br />
<span style="font-size: large;"> </span></div>
<div style="font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">मेरी रुचियाँ तो बहुत सारी हैं | मुझे ड्राइंग करना,, आर्ट .. गाने गाना, सुनना और देखना बहुत पसंद है | कहानियां पढ़ना और घूमना तो बहुत बहुत ज्यादा पसंद है | मुझे गोलगप्पे बहुत पसंद है और मुझे बर्फ वाली जगह घूमना भी बहुत पसंद है | मुझे फूलों वाले गार्डन भी बहुत ब्यूटीफुल लगते हैं | मुझे बेबी भी पसंद है | और सबसे ज्यादा तो मुझे हर मोमेंट में फोटो खींचना बहुत बहुत बहुत ज्यादा पसंद है | मुझे फ्रेंड्स बनाना भी बेहद पसंद है वह भी अच्छे वाले जो हर वक्त साथ दें | लव यू माय स्वीट फ्रेंड !</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">अगर कोई भी व्यक्ति किसी लड़की से जबरदस्ती छेड़खानी, यौन हिंसा करता है या करने की कोशिश करता है तो उस लड़की को अपने घर में.. अपनी मां या किसी सच्चे दोस्त को यह बात बतानी चाहिए, जिससे उस व्यक्ति को रोका जा सके | अगर वह व्यक्ति तब भी ना माने तो उस लड़की को पुलिस पानी में जाकर शिकायत करनी चाहिए ताकि उस लड़की को छेड़खानी और यौन हिंसा से बचाया जा सके | पर एक बात और.. हर लड़की को इतना स्ट्रांग होना चाहिए कि वह हर मुश्किल घड़ी का सामना कर सके | लड़की को मानसिक व शारीरिक दोनों ही तरह से मजबूत बनना पड़ेगा | बचपन से मजबूत होना चाहिए और हर परिवार को अपने घर की लड़कियों को कराटे की क्लास भी लगवानी चाहिए जिससे वह अपना बचाव आसानी से कर सके अकेले होने पर |</span><br />
<span style="font-size: large;">मैं सबसे पहले अपने पैरों पर खुद अपने दम पर खड़ी होना चाहती हूं | उसके लिए मैं जॉब करना चाहती हूं ताकि आगे भविष्य में मुझे कोई परेशानी ना हो | और ना ही मुझ से जुड़े लोगों को किसी प्रकार की तकलीफ हो | मैं अपने भविष्य को खुलकर और खुशी से जीना चाहती हूं अपने परिवार के साथ | और जब भविष्य में मेरी शादी हो जाएगी तो मैं उनको किसी भी चीज से निराश नहीं करूंगी.. उनके साथ रहूंगी ..जो प्यार मुझे बचपन से आज तक नहीं मिल पाया शायद वह मुझे मेरे दूसरे परिवार में मिल जाए | मैंअपना खुद का घर दिल्ली में चाहती हूं और उसमें एक छोटी- सी.. प्यारी -सी एक फैमिली बसाना चाहती हूं | भविष्य में छोटे से परिवार के साथ मैं आगे की जिंदगी बहुत सुंदर बनाना चाहती हूं | अपने गुजरे हुए कल के साथ मैं अपना भविष्य नहीं गुजार सकती, जैसे मैंने गुजारी है अपनी जिंदगी | बचपन से आज तक वह सब मैं नहीं चाहती हूं | आज भी कभी -कभी मेरी जिंदगी के कुछ पल अगर मैं याद करती हूं तो आंखों में आंसू आते हैं | मैं कोशिश करूंगी बीते हुए पल को भुलाने की; जो मुझे सिर्फ दुख के अलावा कुछ और नहीं देते | अगर मुझे अपना भविष्य बनाना है तो बीते हुए पल को भुलाना पड़ेगा ताकि मैं अपना भविष्य बना सकूं | मेरा भविष्य मुझे पर निर्भर करता है किसी और पर नहीं |</span><br />
<span style="font-size: large;">-- पूजा<br />********</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-size: large;"><span style="font-size: small;">मेरा नाम ज्योति है</span><span style="font-size: medium;"> </span>| 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है | मेरी शादी हो चुकी है | मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं | मैं जॉब करना चाहती हूँ | मैं </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQ-EpVbZWjXfm07VB8u4FNyMQjxzjrgaZMkqt5byTant67gMmDYnkAeG7UNTFE_CA2qZFSbnX120AJgSRZKrCQh-gX3MFs8nydpNWmZRBLIIWNLoToz6LTsgNyLO9LbnkIuTzXgOps2j8/s1600/53435227_2548912958514436_4592702421892857856_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="638" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQ-EpVbZWjXfm07VB8u4FNyMQjxzjrgaZMkqt5byTant67gMmDYnkAeG7UNTFE_CA2qZFSbnX120AJgSRZKrCQh-gX3MFs8nydpNWmZRBLIIWNLoToz6LTsgNyLO9LbnkIuTzXgOps2j8/s200/53435227_2548912958514436_4592702421892857856_n.jpg" width="132" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;">अपनी लाइफ में बहुत खुश हूं।</span><br />
<span style="font-size: large;">महिलाओं को आत्मनिर्भर होना चाहिए | हमारे भारत में रुढ़िवादी विचारधारा की वजह से औरतों को घर से बाहर काम करने की इजाजत नहीं दी जाती थी.. जिस वजह से वह ना ही कुछ बोल पाती थीं और ना ही कुछ कर पाती थीं | इसी वजह से महिलाएं अपनी इच्छा को भी मार देती थीं | अब महिलाओं को बहुत से अधिकार दिए गए हैं जिस वजह से वह अपने पैरों पर खड़े होने का हौसला रखती है | महिलाएं आत्मनिर्भर नहीं होंगी तो वह अपने बच्चों का भविष्य नहीं बना पाएंगी | महिलायें अपने पैरों पर खड़ी होंगी तो वह किसी पर बोझ नहीं रहेंगी | </span><br />
<span style="font-size: large;">मैं टीचर बनना चाहती थी | मेरी रुचि इसी में थी कि मैं टीचर बनू | और शौक तो बहुत सारी चीजों में था. जैसे- डांस, ड्राइंग, ब्यूटी पार्लर, फैशन डिजाइनर.. इत्यादि | बस यही है कि कुछ प्रॉब्लम के वजह से मैं पीछे रह गई | घर आई.. घर आकर मुझसे आगे पढ़ाई नहीं हो पाई | शौक अभी भी बहुत सारे हैं ..कुछ कर लेती हूँ और कुछ रह जाते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br />मैं अपने भविष्य में सिर्फ खुश रहना चाहती हूं | अपना भविष्य खुशी से गुजारना चाहती हूं | अपने बच्चों को वह शिक्षा देना चाहती हूं जो शिक्षा मैंने नहीं पाई | उन्हें अच्छे गुण देना चाहती हूँ और समझदार बनाना चाहती हूं ...चाहे बेटा हो या बेटी | एक ही समान उन्हें प्यार व शिक्षा देना चाहती हूं ..उन्हें अपने पैरों पर खड़ा हुआ देखना चाहते हूँ |</span></div>
<div style="display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">छेड़खानी और यौन हिंसा कौन कैसे दूर कर सकते हैं..<br />
= हमें हमेशा छोटे बच्चों को यौन हिंसा व छेड़छाड़ के बारे में जानकारी देनी चाहिए।<br />
= हमें उन्हें बताना चाहिए कि बैड टच गुड टच मैं क्या अंतर होता है।<br />
= अगर कुछ ऐसा होता है तो उन्हें फौरन अपने आसपास के लोगों को बता देना चाहिए या स्कूल में हो तो स्कूल में टीचर को बता देना चाहिए | घर पर जो सबसे बड़े सदस्य हैं उन्हें बता देना चाहिए।<br />
* पारिवारिक रूप= परिवार वालों को अपने बच्चों के साथ घुल मिलकर रहना चाहिए जिससे उन्हें किसी बात को बोलने में डर ना लगे या शर्म ना लगे।<br />
= परिवार वालों को भी छेड़छाड़ व यौन हिंसा के बारे में अपने बच्चों से चर्चा कर लेनी चाहिए व उन्हें समझाना चाहिए।<br />
= अपने बच्चों को ज्यादा डरा कर ना रखें | अगर डरा कर रखेंगे तो वह अपनी मन की बात बता नहीं पाएंगे।<br />
= छेड़खानी रोकने के लिए school college के आसपास पुलिस होनी चाहिए।<br />
= अगर सड़क पर चलते वक्त या ट्रैवल करते वक्त ऐसी कोई घटना होती है तो फौरन पुलिस को कंप्लेन करना चाहिए।<br />
= छेड़खानी और यौन हिंसा बहुत ही ज्यादा बुरी बात है | ऐसा करने वाले लोगों को .. जो खासतौर पर बच्चों के साथ करते हैं.. छोटी गर्ल्स के साथ ..उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए और देनी चाहिए।<br />
<br />
-- ज्योति<br />*********<br />
<br />
<br />
</span></div>
<div class="_1dwg _1w_m _q7o" style="font-family: inherit; padding: 12px 12px 0px;">
<div style="font-family: inherit;">
<div class="_5pbx userContent _3ds9 _3576" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_6" style="border-bottom: none; font-family: inherit; line-height: 1.38; margin-top: 6px; padding-bottom: 12px;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-size: large;"><br />मेरा नाम पूनम है | मेरा पूरा बचपन एक संस्था में गुजरा | 18 साल की</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRvbVC9TJHa9z4SuHltvYHkyyFM8WGOYSkQsAHN8J6_EZON5iDMcJ8yilUVHWfnOdRf_kq1z76nNGEYt0FQHx2WIQSS6U7afiFOvJYdLzYPE2c600V3nZnwG1g9fPXmjsB1xaKMlDineE/s1600/57010225_2609803539092044_5759776114322964480_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="234" data-original-width="236" height="198" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRvbVC9TJHa9z4SuHltvYHkyyFM8WGOYSkQsAHN8J6_EZON5iDMcJ8yilUVHWfnOdRf_kq1z76nNGEYt0FQHx2WIQSS6U7afiFOvJYdLzYPE2c600V3nZnwG1g9fPXmjsB1xaKMlDineE/s200/57010225_2609803539092044_5759776114322964480_n.jpg" width="200" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;"> होने के बाद मैं संस्था से बाहर आ गई और मैंने शादी कर ली अपनी </span><span style="font-family: inherit; font-size: large;">मर्जी से | मैं ऐसी लड़की हूं जिसके पैरंट्स नहीं है | अब मुझे ऐसी फैमिली मिली है जो मुझे बहुत प्यार करती है .. मुझे समझती है | और मेरी एक प्यारी -सी बेटी भी है, जिसका नाम अवनी है | मैं बहुत खुश रहती हूं अपनी फैमिली के पास।</span></div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">महिलाओं को आत्मनिर्भर होना चाहिए | हर औरत आत्मनिर्भर होगी तभी देश आगे बढ़ेगा | किसी- किसी के परिवार में ऐसा होता है कि ज्यादातर बेटी की मां चुप रह जाती हैं अपने घर की रक्षा करने के लिए | अपने बच्चों का साथ कभी कभी नहीं देती हैं | तो मैं यह चाहती हूं कि वह मां अपनी बेटी का सपोर्ट करें | वह चुप ना रहे | अगर कुछ बुरा हो रहा है तो वह उसी समय फैसला करें वह अपनी आवाज को दबाये नहीं | चाहे पति हो या परिवार.. वह किसी से डरे नहीं | अपनी इच्छाओं को जाहिर करें | औरत एक ऐसी आत्मशक्ति है जो एक घर को भी .. बच्चों को भी और पूरे परिवार को संभालती है | सभी जिम्मेदारियां वही संभालती है ..चाहे भले ही उस पर कोई संकट आ रहा हो |</span></div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">मेरा सपना था कि मैं डॉक्टर बनू मगर मेरी पढ़ाई की वजह से मैं वह पूरा नहीं कर पाई | मुझे डांस और खेलकूद बहुत पसंद था |</span></div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">छेड़खानी और यौन हिंसा को हम कैसे दूर कर सकते हैं..</span><br />
<span style="font-size: large;">अगर हमें कुछ गलत लगता है या दिखता है तो हमें उसी टाइम एक्शन लेना चाहिए व अपने परिवार में और आसपास के लोगों को खबर कर देनी चाहिए | जिससे वह व्यक्ति उसी समय या तो अपनी गलती को सुधार ले या उसे सजा दी जाए।</span><br />
<span style="font-size: large;">घर परिवार वालों को इस बारे में अपने छोटे बड़े सब को बता देना चाहिए | उन्हें इस बारे में समझाना चाहिए कि कुछ लोग गंदी सोच के भी होते हैं.. जिनसे सावधान रहना जरुरी है | खासतौर पर छोटी बच्चियों को इस बारे में समझा दें कि वह संभल कर रहें | अगर उनके साथ ऐसी कोई घटना होती है तो उन्हें तुरंत ही स्कूल में टीचर को बता देना चाहिए वअपने घर में मम्मी -पापा को शेयर करनी चाहिए।</span><br />
<span style="font-size: large;">ऐसे में कोई -कोई बच्चा डर जाता है | उन्हें लगता है कि हमें मां-बाप मारेंगे | उन्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए | उन्हें इस बारे में अच्छे से समझाएं कि डरना बिल्कुल भी नहीं है।</span><br />
<span style="font-size: large;">कानूनी रूप से हम पुलिस की मदद ले सकते हैं। स्कूलों में कॉलेजों में पुलिस की सिक्योरिटी होनी चाहिए।</span><br />
<span style="font-size: large;">कभी-कभी पुलिस भी ऐसे केस को मायने नहीं देती | पुलिस की सहायता से उस व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए जो ऐसी घटिया हरकत करें व किसी से करवाएं।</span></div>
<div style="display: inline; font-family: inherit; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">मैं भविष्य में अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलाना चाहती हूँ | इंटेलिजेंट लड़की बनाना चाहती हूं | वह जो बनना चाहेगी मैं उसका सपना पूरा करुँगी | मैं कभी भी अपनी बेटी की इच्छाओं को नहीं दबाउंगी | कभी भी अपने बच्चों में भेदभाव नहीं करूंगी | मैं अपनी बेटी से बहुत प्यार करती हूं व अपने परिवार को भी बहुत प्यार करती हूं | I love my family<br />
-- पूनम<br />*******<br />
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<div style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-size: large;">मेरा नाम मोना है।मेरी उम्र 25 साल है। और मैंने graduation </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9B2fylrLKaee5BgcfL_8LHd1B4H91vXablEE7scIroZNSD_nYI-d34iVtA_R8Whhx4r19erjaut0MfQdELkc7lR2BhujHWROpUQVbUO8kxrBtNNoObiwf_UA2bedEwcU9HuNb4uYwuJU/s1600/53761295_2548912658514466_7151360451828252672_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="811" data-original-width="642" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9B2fylrLKaee5BgcfL_8LHd1B4H91vXablEE7scIroZNSD_nYI-d34iVtA_R8Whhx4r19erjaut0MfQdELkc7lR2BhujHWROpUQVbUO8kxrBtNNoObiwf_UA2bedEwcU9HuNb4uYwuJU/s200/53761295_2548912658514466_7151360451828252672_n.jpg" width="158" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;">complete कर ली है। और उसके साथ -साथ मैं एक N.G.O में as a volunteer work कर रही हूँ। मैं दिल्ली की एक संस्था में रहा करती थी। और मैंने अपने basic education निर्मल छाया से ही प्राप्त की हैं।</span></div>
<span style="font-size: large;">
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<div style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">मैं भविष्य में कुछ नया करना चाहती हूं। मैं एक सोशल वर्कर बनना चाहती हूं। तथा स्ट्रीट बच्चों के साथ काम करने की इच्छा है। क्योंकि होमलेस बच्चों को मैंने बहुत करीब से देखा है ..कि वो बच्चे कैसे रहते हैं। भीख मांगकर खाना खाते है। और स्ट्रीट में ही रात भर ज़िन्दगी गुजरते है।</span></div>
<span style="font-size: large;">
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<div style="display: inline; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; margin-top: 6px;">
<span style="font-size: large;">मेरी हमेशा से इच्छा थी कि मैं एक डांसर बनूं। किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।फिर मेरा इंटेस्ट ज्यादा अर्ट&क्राफ्ट में रहा। मैंने तिलक नगर से कमर्शियल आर्ट का कोर्स किया। अब मैं स्कूल और एनजीओ में जॉब कर रही हूं। मुझे डांस करना बहुत पसंद है।</span></div>
<span style="font-size: large;">
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<div style="font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-size: large;">एक लड़की का आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है ..</span><br />
<span style="font-size: large;">आत्मनिर्भर लड़कियां :- पहले लड़कियों को पेट के अंदर ही मरवा दिया जाता था | पहले लड़कों को ज्यादा अहमियत दिया जाता था | उस समय लड़का ही सब कुछ माना जाता था और यह भी माना जाता था कि लड़का ही घर चला सकता है | लड़कियां तो सिर्फ घर के काम करने के लिए ही बनी हैं | पहले लड़कों<span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit;"> को ज्यादा से ज्यादा भोजन परोसा जाता था, लड़कियों को कम | ऐसा माना जाता था कि लड़के मेहनत करते हैं और लड़कियां घर में आराम करती हैं | पर अब ऐसा कुछ नहीं है.. अब दोनों ही बराबर माने जाते हैं |</span></span></div>
<span style="font-size: large;">
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<div class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-size: large;">आज के युग में लड़कियों के पैदा होने पर खुशियां मनाई जाती है | कहा जाता है कि घर में लक्ष्मी पैदा हुई है | लड़कियों के जन्म पर पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी जाती है | और लड़कियों की पढ़ाई का ख्याल भी रखा जाता है | आज के युग की लड़कियां लड़कों से कंधे मिलाकर चल रही हैं | आजकल की लड़कियां किसी भी काम में कम नहीं है, चाहे वह खेल हो.., पढ़ाई लिखाई हो ,ट्रेन चलाना हो, या फिर एरोप्लेन चलाना हो, चांद पर जाना , आई ए एस की पढ़ाई करना ,सीए की पढ़ाई करना , या प्रधानमंत्री बनना, टीचर बनना हो, आदि सभी कामों में लड़कियां परफेक्ट है | आज के युग की लड़कियां अगर पढ़ी लिखी हो तो वह अपना घर बहुत आसानी से चलाना जानती है | घर के साथ साथ ऑफिस भी संभालना बहुत अच्छे से जानती है | किसी भी घर की एक भी लड़की पढ़ाई लिखाई कर ले तो उस घर की आने वाली पीढ़ी शिक्षित होगी| आज के युग की लड़कियां दिमाग से लड़कों से काफी ज्यादा समझदार हैं | आज के युग की लड़कियां अगर कहीं भी कोई भी अत्याचार होते हुए देखती है तो वह उस मुद्दे के खिलाफ आवाज जरूर उठाती है | जैसे उदाहरण के तौर पर स्वाति मालीवाल मैम | आज के युग की लड़की अपने खर्चे के साथ- साथ अपने परिवार का खर्चा भी उठा सकती हैं | अगर लड़की आत्मनिर्भर है तो वह कुछ कुछ भी कर सकती है.. सारी कठिनाईयों का सामना कर सकती हैं अपने दम पर |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">प्रस्तुति: शोभा मिश्रा </span></div>
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<div class="_1dnh" style="border-top: 1px solid rgb(218, 221, 225); display: flex; font-family: inherit; margin: 0px 12px; min-height: 32px; padding: 4px 0px;">
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shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-81861270421022797512019-03-09T09:41:00.000+05:302019-03-09T10:41:54.820+05:30हमारी साहित्यिक यात्रा- आत्मकथ्य <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhk08tv86Jz5pgk6D_imS6Br1e8NckgISgKAzLQEBbrvTXgNPm8Owo6mZDlwgiAkcG2eFpDRd8ZYeZKER0irt1-ouGXVqJnej0y_y6ES-eyZK94caNrizo3Jy4cT0MKWS-lqPm7HHqHgfc/s1600/53334452_2550003571738708_1747270967496802304_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="960" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhk08tv86Jz5pgk6D_imS6Br1e8NckgISgKAzLQEBbrvTXgNPm8Owo6mZDlwgiAkcG2eFpDRd8ZYeZKER0irt1-ouGXVqJnej0y_y6ES-eyZK94caNrizo3Jy4cT0MKWS-lqPm7HHqHgfc/s400/53334452_2550003571738708_1747270967496802304_n.jpg" width="400" /></a></div>
<span style="font-size: medium;"><span style="color: #1d2129;"><br /><span style="background-color: #f4cccc; font-family: "trebuchet ms" , sans-serif; font-size: large;"><span style="font-size: 14px;">"उनके लिए कलम का साथ ख़ुद की आवाज़ सुनना है तो उनके लिए लिखना आस-पास की अच्छी- बुरी तमाम परिस्थितियों पर आवाज़ उठाना भी है. सामाजिक-पारिवारिक और स्वयं पर स्वयं ही लगाई गई उन बंदिशों से बाहर निकलने का माध्यम है जिनमें सदियों की घुटन है.. समाज में सुधार लाने का अपने स्तर पर तठस्थ प्रयास है.निर्भीक हो तमाम मुश्किलों को पार कर स्वयं को देखना ,छूना और महसूस करना है.उनके लिए लिखना स्वयं को प्रेम करना है.</span><br style="font-size: 14px;" /><span style="font-size: 14px;">अपनी साहित्यिक यात्रा का वर्णन करते हुए लेखन में रुचि रखने वाली स्त्रियों को निर्भीक होकर लिखने की सलाह दे रहीं हैं साहित्य जगत की कुछ स्थापित लेखिकाएं."</span></span><br /><br /><br /><span style="background-color: white; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: x-large;">मेरी </span><span style="font-size: large;">यात्रा एक छोटे से शहर बस्ती से शुरू हो कर दिल्ली तक पहुँचती है। बस्ती और बनारस मेरे दिल मे हमेशा बसे रहने वाले शहर हैं। दिल्ली शहर का आकार बड़ा है, संस्थान और सुविधाएं बड़ी हैं, पर उसी के साथ आपका संघर्ष भी बड़ा हो जाता है। छोटे शहरों के मुकाबले में यह संघर्ष बड़ा भी होता है और कई स्तरों पर भी होता है। यहाँ कुछ पाने की जद्दोजहद से ज्यादा अपनी जड़ों को बचाने की कोशिश होती है। जो भी बड़ा रचनाकार अपनी जड़ों से जुड़ा रहा है, वह दिल्ली में हो कर भी बड़ी रचनाशीलता की तरफ गया है। जैसे के</span></span></span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: large;">दारनाथ सिंह ताउम्र अपने शहर बलिया को नहीं भूले।<br />दूसरी बात यह भी है कि दिल्ली हमें बड़ी सोच के साथ जोड़ती है, यह उसका सकारात्मक पक्ष है। वैश्वीकरण का बड़ा नजरिया यहाँ आ कर हमें मिलता है। हालांकि मेरे नए उपन्यास 'अस्थि फूल' में पहली बार दिल्ली उपस्थित हुआ है। अन्ना हज़ारे आंदोलन का प्रसंग उसमें आता है।</span></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKMXjP0Zufd-jTE2bSbZ8RAKkSXYM3OHYrRuC8efe54-uozPud58pJDL64S4pdcNkRZKqzPMTmEgOR_leEpLAFqFQ5fuPRrcsuIjqfVs2OsQK0pisztVUB13hZTYrauUC5BVZL9Z-1Huo/s1600/53245790_2550005228405209_5087622605901398016_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="720" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKMXjP0Zufd-jTE2bSbZ8RAKkSXYM3OHYrRuC8efe54-uozPud58pJDL64S4pdcNkRZKqzPMTmEgOR_leEpLAFqFQ5fuPRrcsuIjqfVs2OsQK0pisztVUB13hZTYrauUC5BVZL9Z-1Huo/s200/53245790_2550005228405209_5087622605901398016_n.jpg" width="200" /></a></span></span></div>
<span style="font-size: large;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><br />बाहरी तौर पर ऐसा लग सकता है कि दिल्ली ने अपने रहने वालों को मज़बूत बना दिया है पर भीतर की टूटन तो वही लोग जानते हैं जो रोज यहाँ जीवन के लिए जूझते हैं, मजदूर, आदिवासी, अल्पसंख्यक भी इसी दिल्ली का हिस्सा हैं, क्या इन्हें देखे बिना बात पूरी हो सकती है? एक बड़ा सवाल यह भी है कि बुजुर्ग और अशक्त लोगों के लिए दिल्ली में कितनी जगह बची रह गई है? महानगर कहीं न कहीं अपने रहने वालों को अकेला भी बनाता है। या फिर हम निर्भया कांड को भूल सकते हैं? जिस दिल्ली में आज भी माता पिता जरा अंधेरा होने पर, अपनी बेटियों के घर लौटने को ले कर चिंतित हो जाते हैं, यह दिल्ली , जो स्त्रियों के लिए आज भी सुरक्षित नहीं है, यह किस तरह स्त्री को सशक्त बनाने में अपनी भूमिका निभाएगी?आज हम देश की एक ऐसी राजधानी की कल्पना जरूर करना चाहेंगे जो लड़कियों, औरतों और नन्हीं बच्चियों के लिए एक महफूज जगह हो।<br /><br />- अल्पना मिश्र</span></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /> </span><span style="font-size: x-large;">जिस</span><span style="font-size: large;"> गाँव में मैं पैदा वहाँ वहाँ और आस-पास के सभी गाँवों में लड़कियों की जन्म कुंडली </span><span style="font-size: large;">नहीं बनती थी। पंडितजी जन्मतिथि लिखने और कुडली बनाने सिर्फ बेटा पैदा होने पर आते </span><span style="font-size: large;">थे । इसलिये मुझे ठीक-ठीक अपना जन्मदिन नहीं मालूम है। उस समय आस-पास के गाँवों </span><span style="font-size: large;">में कहावत कही जाती थी कि बड़ी खुशी की बात यह होती है कि ‘बिन ब्याहे बेटी मरे’, </span><span style="font-size: large;">यानी जवान लड़की बिन ब्याहे मर जाये। ऐसे पितृसत्तावादी सोच वाले समाज में </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitYbw_JGvJGgR5ePdf4z_C6l20UX8ewTdD_gIxP3EPP5RLVDDK5C-QOUGY3-MZTNeveXbHpyFEceDusuLefEk_nkdB9vOov-SXWpt5L3Q2SIWs29UuYGXnYB-EUjqxzwG90T2dfIRx8Eg/s1600/53703482_2550004625071936_7364758607759409152_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="902" data-original-width="651" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitYbw_JGvJGgR5ePdf4z_C6l20UX8ewTdD_gIxP3EPP5RLVDDK5C-QOUGY3-MZTNeveXbHpyFEceDusuLefEk_nkdB9vOov-SXWpt5L3Q2SIWs29UuYGXnYB-EUjqxzwG90T2dfIRx8Eg/s200/53703482_2550004625071936_7364758607759409152_n.jpg" width="143" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;">लड़कियाँ </span><span style="font-size: large;">जिस तरह से अपनी जगह बना रही हैं, वह कमाल की बात है। मेरी पढ़ाई में जितनी मेहनत </span><span style="font-size: large;">मैंने की, मेरी माँ ने भी उतनी ही मेहनत की। जिस समय मैं प्लासी की लड़ाई समझ रही </span><span style="font-size: large;">होती थी उस समय वह मेरे पिता से लड़ रही होती थी कि मुझे अगली क्लास भी पढ़ लेने </span><span style="font-size: large;">दिया जाये। शादी के बाद, मैं नौकरी और घर के काम में हर समय व्यस्त रहती थी। सब </span><span style="font-size: large;">कुछ ठीक चल रहा था फिर भी मेरे चेहरे से उदासी जाती नहीं थी । यह देख कर मेरे पति </span><span style="font-size: large;">ने मुझे लिखने की सलाह दी। गोपाल दास नीरज और अदम गोंडवी साहब मेरे ससुर के </span><span style="font-size: large;">अच्छे परिचितों में से थे । ससुराल में कादंबिनी, नवनीत इत्यादि पत्रिकाएँ नियमित आती थीं।</span><br />
<span style="font-size: large;">शुरुआती असफल कविताओं के बाद मैंने एक कहानी लिखी और वह हंस में छप गयी। </span><span style="font-size: large;">राजेन्द्र यादव का प्रशंसा का फोन आ गया, फिर क्या पूछना, सिलसिला चल पड़ा। जब मैं </span><span style="font-size: large;">घर की चहारीवारी से बाहर लेखन की दुनिया में निकली तो यह देख कर बहुत दुख हुआ </span><span style="font-size: large;">कि स्त्रियों को लेकर पढ़े-लिखे लोग भी सहज नहीं हैं। इस पढ़े -लिखे समाज में भी स्त्री </span><span style="font-size: large;">को दोयम दर्जे की प्रतिभा समझा जाता है । फिर मेरा एक और संघर्ष शुरू हुआ। स्त्री, जीवन </span><span style="font-size: large;">की रचनाकार होती है। उसे जीवन की बेहतर समझ होती है। इस कारण वह द्वेष और ईर्ष्या </span><span style="font-size: large;">का अनायास शिकार बनती हैं । अपनी पहचान कायम करने के साथ उसे इन प्रवृतियों से भी </span><span style="font-size: large;">बराबर लड़ाई जारी रखनी चाहिए। अकेले पड़ जाने का खतरा उठा कर भी स्त्री को वही </span><span style="font-size: large;">कहना और करना चाहिए जो वह ठीक समझती है । आज चुनौतियाँ जरुर हैं किन्तु निराशा </span><span style="font-size: large;">नहीं है। समाज विवश होकर हमारी प्रतिभा को जगह दे रहा है |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">-किरण सिंह </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
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<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: x-large;">दिल्ली </span><span style="font-size: large;">का इतिहास इतना सघन है , इतना भिन्न है जैसे एक परत पर दूसरी परत , हिन्दू मुगल अंग्रेज़ सब अपनी छाप और संस्कृति छोड़ते गए , यहाँ निकलिए तो मॉन्यूमेंट्स सब तरफ , आंख बंद करें तो मुगल कालीन दिल्ली , अंग्रेजों की दिल्ली , हेमू की दिल्ली , क्या खूबसूरत गली कूचों के नाम , सराय काले खान , कोटला फ़िरोज़शाह, नेब सराय ....कुतुब के पास से निकलते हमेशा एहसास हुआ कि एक समय घोड़े की टापें गूंजती होगीं । तो ऐसे शहर की हवा में कुछ तो ऐसा हो जो मेरे लेखक को हवा पानी खुराक देता है |</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjUuRJXl3ok4V6j06dzpACn6D1h985-R0vRmhyphenhyphenMPRCTBO1whhR8sYHE5Q-WqKmqWyseVnqmWf_SuDljdLO2ywOT097JstL8QrhQHp_Q1tbJ1HOpV2W_GpNjQIGc7K0lrj77aa74k_HQZ4/s1600/53460658_2550004388405293_1837084609171423232_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="719" data-original-width="720" height="199" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjUuRJXl3ok4V6j06dzpACn6D1h985-R0vRmhyphenhyphenMPRCTBO1whhR8sYHE5Q-WqKmqWyseVnqmWf_SuDljdLO2ywOT097JstL8QrhQHp_Q1tbJ1HOpV2W_GpNjQIGc7K0lrj77aa74k_HQZ4/s200/53460658_2550004388405293_1837084609171423232_n.jpg" width="200" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;">सशक्त होती हूँ तभी लिख पाती हूँ , तमाम भय को दरकिनार करके। लिखना बाज़ादफ़ा खुद से गुफ़्तगू करना है , खुद का सामना करना होता है। आप शनै शनै अपने को और बेहतर समझने लगते हैं , सम्वेदना से भरने लगते हैं , अपने आप को शक्ति देते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">अपने उपन्यास बारिशगर में उन औरतों की कहानी है जो जीवन के कठिन सफर में खुद को तलाशती कोमल और मजबूत साथ साथ होती हैं , मोहब्बत से भरपूर , जीवन से लबरेज़ | </span><br />
<span style="font-size: large;">शहर और समय , घर और भूगोल , इन्ही के गिर्द एक दुनिया धड़कती है , स्त्रियों की दुनिया जो इतनी कोमल हैं पर उतनी ही दिलेर भी |<br />-प्रत्यक्षा</span><span style="font-size: large;"><br /><br /><br /> </span><span style="font-size: x-large;">बचपन </span><span style="font-size: large;">किताबों से या यूँ कहें कहानियों से मेरा परिचय मेरे नाना ने करवाया ,पिता से साहित्यिक रूचि मिली ,पढना मेरे लिये सांस लेने जैसा था ,परंतु पढाई पूरी न कर सकी , पापा को अचानक हार्टअटैक हुआ ,और किताबों की जगह मेरे हाथ में गृहस्थी की डोर थमा दी गई ,नए घर में एकदम विपरीत माहौल , जहाँ उपन्यास और पत्रिका पढने का रिवाज़ ही न था , यहाँ तक कि पत्रिका पास में बरामद होने पर न जाने कितने व्यंग बाण झेलने पड़ते मुझे , अब इधर उधर से हाथ लगी या छुपा कर खरीदी किताबें मेरी आलमारी में तालाबंद रहती ,जिन्हें सब से छुपा कर पढते हुये मेरा दम </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxgFh9S-LxQ0vS5tw4LXmEKcRdgV35c437QMB8-qSNPCGeKmfncl7sdZZexUXU2HE6FaPHDiLHj-BWoa9Hl00yaheyBPExl4t2Cgit4FAD6B7uyXdr5bwu5uKsntW149UjXkux-CHFmrA/s1600/53485363_2550004485071950_596055526979141632_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="405" data-original-width="720" height="112" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxgFh9S-LxQ0vS5tw4LXmEKcRdgV35c437QMB8-qSNPCGeKmfncl7sdZZexUXU2HE6FaPHDiLHj-BWoa9Hl00yaheyBPExl4t2Cgit4FAD6B7uyXdr5bwu5uKsntW149UjXkux-CHFmrA/s200/53485363_2550004485071950_596055526979141632_n.jpg" width="200" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;">घुटता लेकिन उस समय विरोध करने की न उम्र थी न साहस ऐसे में मेरी कलम ही मेरे एकांत की साथी बनी ,पहरों बतियाती अपनी कलम से और डायरी के पन्ने काले होते जाते और वो डायरी भी कैद हो जाती आलमारी के लाकर में ,इन डायरियों में बंद थी कुछ अपनी अपनों की और अपने इर्दगिर्द की आवाज़े जो उनके गले में घुट के रह गई थी , उनकी बेचैनीयां बयान करती और फिर किसी दिन डर कर उन डायरियों का अग्निसंस्कार अपने ही हाथों कर देती ,कहीं कोई पढ़ न ले ,आखिर दबी घुटी आवाज़ एक दिन चीख बन कर निकलती ही है ,इन्ही पाबंदियों ने मुझे लिखने को प्रेरित किया , पर मेरी कलम कभी पक्षपाती नहीं रही संवेदना के स्तर पर स्त्री मन का दर्द स्त्री होने के नाते सहजता से खुद में महसूस करती हूँ तो समाज के दुसरे पहलुओं पर भी कुछ कहने का प्रयास करने भी करती हूँ , कुछ सत्य घटनायें जिसने मुझे झकझोर दिया वो पीड़ा वो दर्द और बेचारगी आज भी जब सोचती हूँ मेरा रोम रोम सिहर उठता है !मै लिखने का प्रयास करती हूँ इन सब पर ,शायेद मेरी कहानियों या लेखों का अंश मात्र भी प्रभाव कही किसी पर पड़े तो मेरा लेखन सार्थक हो ,औरत होने के नाते दर्द को पीना और दर्द को जीना खुदबखुद मुझमे आ गया है ,इससे मन पढने और कुछ गढ़ने में आसानी होती है , पीड़ा और मन की छटपटाहट से घबरा कर हाथ कलम की ओर बढ़ते है ,अपनी अभिव्यक्ति को उकेर कर सुकून की सांस लेते है , जब अभिव्यक्ति की आज़ादी मिली तो कलम से अच्छा साथी कौन हो सकता है और अपनी इस साथी के माध्यम से मै यदि किसी के भावों को शब्दों में ढाल सकूं किसी की दबी कुचली आवाज़ को पन्नो पर उकेर कर समाज तक पहुंचा सकूँ तो मेरा सौभाग्य होगा --- <br />मै लिखती नहीं हूँ मै तो खुद से बातें करती हूँ कभी अपनी कभी अपनों की तो कभी अपने आसपास के लोगों की। अग्निगर्भा की प्रेणना भी मेरे इर्दगिर्द ही घूम रही थी जिसे शब्दों में ढाल कर आप सबके सामने रखा ,एक बात और कहना चाहूंगी आज हम स्त्रियों को कहीं गुहार लगाने की जरूरत नहीं ,स्त्री शक्ति यदि एक हो कर एक दूसरे का संबल बने तो कोई खतरा ही नहीं हमारे अस्तित्व को शिशुओं को जन्म देना उन्हें पाल पोसकर बड़ा करना,यह सौभाग्य स्त्री को मिला है । बस जरूरत है उसे स्वयं को पहचानने की ,अपनी माँ की एक बात मुझे हमेशा याद रहती है जो उन्होंने अपनी चौदह ,पन्द्रह साल की बेटी की विदा के समय भरे गले से उसके कान में कहा था बेटा तुम सबका सम्मान करना पर अपने सम्मान से कभी समझौता नहीं करना , ये बात एक माँ ने नहीं एक स्त्री ने दूसरी नासमझ स्त्री को समझाई थी और उसने पल्लू में गाँठ बाँध ली अपनी माँ की यह बात , और सबसे कहती भी है . स्त्री जन्मदात्री है सृष्टि का सृजन करती है वह पूरे मनोयोग से संतान का पालन पोषण कर एक स्वस्थ समाज का निर्माण करती है - जो सम्पूर्ण सृष्टि की जननी हो वह कमजोर कहाँ बस --<br />हम स्त्रियों को खुद बनाना है अपना बाँध एकजुट हो कर ,<br />सहेजना है एकदूसरे का सम्मान -<br />तभी तो स्त्री की उर्जा से जगमगायेगा पूरा समाज -<br />बस तनिक एकजुट हो जाओ ---<br />अपना सम्मान करना सीख लो<br />--------दिव्या शुक्ला ---</span><span style="font-size: medium;"><br /><br /><br /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: x-large;">कन्या</span><span style="font-size: large;"> होना और वह भी दूसरी कन्या का घर में पैदा होने का मतलब होता है,माँ का जीवन तानों से बिंध जाना |मुझे याद आता है माँ का प्रसव पीड़ा से पीला पड़ा चेहरा और मेरे सहमें हुए चेहरे पर ख़ुद को लड़की के रूप में पहचानने पर रंग का साँवला पड़ जाना | कानों को अब भी सुनाई देता है रिश्तेदारों द्वारा बोला गया,पिघलते शीशे सा स्वर "दूसरी लड़की हुई है रिक्शा वापस ले लो"....इन सच्चाइयों से रूबरू होती हुई जब हाथ में कलम आई तो सबसे पहला शब्द लिखा था "दूसरी" </span></span><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: large;">दूसरी मतलब ही होता है पहला न होना...दूसरी </span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: large;">मतलब ही होता है आप हमेशा प्राथमिकता </span></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgP60wajbi8j2lqLJj04VkrjW-Fs-Gc_vb41uz_M0Va0mwUAgMF3M8cK1Qy9A603P6BTgZtVwEhOE4TFG-MuydbOu4Z64Rr_fdNfuaDQSVuL2ciy3UPZhWr4XDwyIz0T_-RNSRT7cf5Qj4/s1600/54463098_2550005138405218_7551502179471720448_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="275" data-original-width="275" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgP60wajbi8j2lqLJj04VkrjW-Fs-Gc_vb41uz_M0Va0mwUAgMF3M8cK1Qy9A603P6BTgZtVwEhOE4TFG-MuydbOu4Z64Rr_fdNfuaDQSVuL2ciy3UPZhWr4XDwyIz0T_-RNSRT7cf5Qj4/s200/54463098_2550005138405218_7551502179471720448_n.jpg" width="200" /></a></span></span></div>
<span style="font-size: medium;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: large;">
में दूसरे नम्बर पर होंगे| यहीं से शुरू हुआ प्रथम बनने की चाह..खुद को स्थापित करने साबित करने की चाह..मन के नन्हें कोने में शब्द लताएँ फैलने लगी|चुपके से सबकी नज़र बचा कर एक कहानी आकाशवाणी को भेज दी|वहाँ से स्वीकृति भी आ गयी| प्रसारण की तिथि नज़दीक आ रही थी और मैं घर में डर के कारण किसी को बता नहीं पाई.सुबह से ही मेरा नाम प्रसारित हो रहा था लेकिन मैं हिम्मत नहीं जुटा पाई| इस तरह पहली रचना मेरे झिझक की भेंट चढ़ गयी| कुछ दिन बाद घर में जब पापा को पता चला तब उन्होंने हौसला दिया|उसके बाद लिखना शुरू तो हो गया पुरस्कार स्वरूप पति भी उसी माध्यम से मिले लेकिन फिर लेखन घर के कामकाज,बच्चों की परवरिश के नीचे कहीं दब गया |<br />जीवन के उस मोड़ पर जब ज़िम्मेदारियों ने अपनी रूचि के लिए थोड़ी गुंजाइश छोड़ी तब फिर से लेखन की तरफ झुक गयी|अनुभवों का एक संसार तैयार हुआ जो कुछ पत्र पत्रिकाओं में छपा और फिर कविता संग्रह का रूप दे दिया |<br />साहित्य के संसार में अभी अपना अस्तित्व बूंद के बराबर भी नहीं है लेकिन इसका कोई अफ़सोस नहीं है क्यूंकि मेरा लेखन कहीं पहुँचने के लिए नहीं है| मैं स्वयं की संतुष्टि के लिए ही लिखती हूँ |</span><br /><span style="font-size: large;">- निरुपमा सिंह</span><br /><br /><br /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: x-large;">बचपन</span><span style="font-size: large;"> जिस परिवेश में बीता, वहाँ पढ़ने लिखने की मनाही नहीं थी। मुझे याद है जब पापा ने मुझे दो बाल कथा संग्रह ला कर दिया था और कहा था, "इसमें बहुत अच्छी कहानियां है, पढ़ो ।"</span></span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: large;">शायद पढ़ने की ललक वहीं से बढ़ी थी। लिखने का बीज भी जाने-अनजाने पापा ने ही मेरे मन के धरातल में कहीं ना कहीं उसी समय बो दिया था। मैंने पढ़ना शुरू किया, वह दोनों किताबें पढ़ी । उसमें ढेर सारी बच्चों की कहानियां थीं। उनमें से कुछ कहानियां तो मुझे आज भी याद हैं । उसके बाद प्रेमचंद, धर्मवीरभारती, </span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: large;">प्रेम बाजपेई, रानो और गुलशन नंदा को खूब पढ़ा। पापा का साथ बहुत जल्दी छूट गया और जल्दी ही छोटी उम्र में विवाह भी हो गया। विवाह के बाद मेरे सामने एक नई दुनिया थी, जहां पितृसत्ता की मजबूत बेड़ियाँ थीं। कई बार ऐसा हुआ कि मन की बातें मैंने कागज पर उतारी और सब से छुपा कर रखा, फिर कुछ दिनों बाद खुद ही फाड़ कर फेंक भी दिया। ऐसा कई बार हुआ | बच्चों के जन्म के बाद धीरे- धीरे व्यस्तता बढ़ती गई और सारी ऊर्जा बच्चों के लालन-पालन और घर-गृहस्थी में खर्च होने लगी। एक लंबे अंतराल के बाद जब एफबी पर अकाउंट बनाया और दोबारा लिखना शुरू किया और मित्रों की प्रशंसा </span></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJC2miCBWZpbI-N5Hf3pSvUrPKSZpglcr1FHgEC3Tn_HsY42ki0JDRNDP-R3SryULW339GbxjQI951RLuqrCIxc-rMPDX8-DBAbeRxG6M0n8vxHLf0Z7qBWFdwLdw0tAF3IsVT9nw9R2Y/s1600/53781547_2550005051738560_6493111715343892480_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="683" data-original-width="671" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJC2miCBWZpbI-N5Hf3pSvUrPKSZpglcr1FHgEC3Tn_HsY42ki0JDRNDP-R3SryULW339GbxjQI951RLuqrCIxc-rMPDX8-DBAbeRxG6M0n8vxHLf0Z7qBWFdwLdw0tAF3IsVT9nw9R2Y/s200/53781547_2550005051738560_6493111715343892480_n.jpg" width="196" /></a></span></span></div>
<span style="font-size: large;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">
मिली, उससे हौसला बढ़ा और मेरे अंतर में दबा लेखन का बीज फ़िर अंकुरित हो गया। पर मेरे लिए सब कुछ इतना आसान नहीं था।<br />जब तक स्त्री घर-परिवार के लिए अपना जीवन खर्चती रहती है..तब तक तो सब ठीक रहता है..जैसे ही वह अपने बारे में अपनी खुशी से कुछ करने की सोचती है..भूचाल आ जाता है..सैकड़ों प्रश्न खड़े कर दिए जाते हैं..मेरे साथ भी ऐसा हुआ.. न जाने कितने बंधन और व्यवधान सामने आए..परन्तु इन सब से जूझते हुए मेरा लेखन आगे बढ़ता रहा । <br />अनेक लेख, कवितायेँ, लघु कथाएं अखबारों, पत्रिकाओं में छपती रहीं | 2015 में मेरी लम्बी कहानी 'घुरिया' लमही में छपी..उसके बाद बहुत सारी साहित्यिक पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित हुईं | उन सभी कहानियों का संग्रह "घुरिया" पिछले दिनों पुस्तक मेले में प्रकाशित हुआ |<br />कुल मिलाकर कोई भी क्षेत्र हो स्त्री को खुद ही अपना रास्ता बनाना होता है..हालांकि समय बहुत बदल रहा है फिर भी स्त्रियों के लिए घर हो या बाहर उन्हें पितृसत्ता के विरुद्ध कुछ करने की पूर्णरूप से आजादी नहीं है..पर वह कर रही हैं..घर और बाहर दोनों जगह अपनी छाप छोड़ रही हैं..लेखन हो या कोई और क्षेत्र..हर जगह वह अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवा रहीं हैं। </span><br />- मीना पाठक<br /><br /><br /><br />प्रस्तुति; शोभा मिश्रा </span><br />
<br /></div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-38547959244718754432019-03-08T10:45:00.002+05:302019-03-08T11:18:38.668+05:30स्त्री मुक्ति के नए आयाम -अनामिका <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4_BlxQJeQnBAqs5eUf6Nfo54GX1dlSeuPZ4gFMBEk07XBpoCUIkRTGdTuJDStwxrocXGH_BGYMecQZydKUl3jkZtSPe57Ax0xkEIkussT4XV_BOi8Br8-qROXAegLPcfnjP7bGUTyrCA/s1600/1467891887.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="684" data-original-width="960" height="285" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4_BlxQJeQnBAqs5eUf6Nfo54GX1dlSeuPZ4gFMBEk07XBpoCUIkRTGdTuJDStwxrocXGH_BGYMecQZydKUl3jkZtSPe57Ax0xkEIkussT4XV_BOi8Br8-qROXAegLPcfnjP7bGUTyrCA/s400/1467891887.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: left;">
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<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">"अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सुप्रसिद्ध कवयित्री अनामिका जी का पठनीय लेख !"</span><br />
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<span style="background-color: #d0e0e3;"><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace; font-size: x-large;">स्त्री मुक्ति के नए आयाम<br />-------------------</span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace; font-size: x-large;"></span></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<span style="font-size: large;">
</span><br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">स्त्री-मुक्ति के नए आयामों पर बात करते हुए मुझे सबसे पहले याद आती है मीरा की प्रेम बेल-'<span style="background-color: #fce5cd; font-family: "helvetica neue" , "arial" , "helvetica" , sans-serif;">अंसुअन जल सींच-सींच प्रेम बेल बोई, अब तो बेल फैल गई, आनंद फल होई"।</span><br /><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">यह बेल जो फैली है कंटीली चाहरदीवारियों के पार, उसे मैं स्त्री-विमर्श की</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">प्रेम-बेल की तरह पढ़ना चाहूंगी। स्त्री विमर्श की यह प्रेम-बेल न सिर्फ मध्य</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">एशियाई, दक्षिण एशियाई, लातिन अमेरिकी, अफ्रीकी खेतों तक फैली है, बल्कि पारिवारिकता, यौनिकता, श्रम, संसाधन -वितरण, विस्थापन, युद्ध, आतंक,नव-उपनिवेशन, धर्मेत्तर पर गंभीर, विश्लेषणात्मक और समाधान मूलक समवेत चिंतन के कई नए शक्तिपीठ इसमें कायम किए हैं। प्रेम-बेल यह इस तरह से है कि इसने हमेशा सबको छांह देने की सोची। कभी अपने 'स्व" का घेरा सीमित नहीं रखा, खासकर पिछली सदी ने सातवें दशक के बाद से जब रैडिकल स्त्रीवादी अश्वेत आंदोलन से जुड़ीं। उसके पहले के वर्षों में भी अब यह उपनिवेशवादी पश्चिम की समृद्ध महिलाओं का अधिकार -सजग आंदोलन था-इसके दोनों संकाय-लिबरल संकाय और मार्क्सवादी संकाय अपने समय में वृहत्तर प्रश्नों से लगातार जुड़े रहे। युद्ध और वर्ग-उन्मूलन के प्रश्न से! भारत तक आते-आते वर्ग-उन्मूलन का प्रश्न जादि, उन्मूलन के वृहत्तर पक्ष से जुड़ा। खासकर उन स्त्रियों ने यहां जो स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ी थीं! ध्यान से उस समय का स्त्री लेखन पढ़ने बैठें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि स्वतंत्र देश की कल्पना एक खुशदिल संयुक्त परिवार के रूप में उन्होंने की थी जहां दिल से दिल तक राह जाती</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">है और ज्यादातर विवाद आपसी बातचीत से सुलझा लिए जाते हैं- कम से कम अपने यूटोपियाई स्वरूप में।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">नवें दशक के बाद जब अचानक सभी भाषाओं में स्त्री-लेखन और स्त्री चिंतन का सैलाब-सा उमड़ा या कहिए स्त्री आंदोलन परवान चढ़ा, ज्यादातर देशों में लोग घबरा से गए। स्वाभाविक थी यह घबराहट। आज जिस कुर्सी पर हम धम्म से बैठ जाते हैं या जिसको जब चाहे लात से, हाथ से इधर - उधर धकिया देते हैं, कल वह कुर्सी उठकर हमसे कहे कि भाई मेरा पंखुड़ा उखड़ गया है, प्लीज ऐसे न पेश आओ तो हम भी घबरा जाएंगे। पूरे स्त्री-विमर्श का सार आखिर तो एक पंक्ति में यही बनेगा कि स्त्री-पुरुष में भेड़-भेड़िया, शिकार-शिकारी वाला रिश्ता न रहे-दोस्ताना रिश्ता हो! दोनों की मानवीय गरिमा की रक्षा हो-संसाधन और अवसर दोनों को बराबर मिलें, स्त्री को ही, मानव मात्र को!</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">नया स्त्रीवाद यह मानता है कि हर वर्ग, हर वर्ण, हर नस्ल, हर सम्प्रदाय की</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">स्त्रियों की अपनी विशिष्ट समस्याएं भी हैं, पर कुछ दुख हैं जो अमीर-गरीब,</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">गोरी-काली, हिन्दू-मुस्लिम, दलित-गैरदलित, शहराती-देाहाती-सब स्त्रियों का साझा हैं! सब तरह की स्त्रियों की देह उनके बहुविध शोषण की साइज लंबी है स्त्री देह से जुड़े अपराधों की फेहरिस्त-भावहीन, यांत्रिक संभोग और बलात्कार, भ्रूणहत्या और साफ-सुथरे प्रसव की व्यवस्था का अभाव, पोर्नोग्राफी, एड्समीत देशों में बच्चियों का निर्यात, मार-पीट, या कमोडिफिकेशन, गाली-गलौज, दहेज-दहन, डायन-दहन, सती, वैश्यावृत्ति देह से जुड़े ये दुख और फिर एक और साझा दुख ये कि किए-दिए, लिखे-पढ़े को, उनकी घोर मेहनत के उत्पादों को लगातार खारिज किए जाना या</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">उसको कमतर करके आंकना सिर्फ इसलिए कि इसका शिल्प अलग है और भाषा भी! जो 'मेरा" या 'मेरे जैसा" नहीं, वह घृणा और हिकारत के लायक है-यह धारणा फासीवाद का चरम है!</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">पहले स्त्रियां तन-मन से सेवा करती थीं अपने पूरे घर की, अब की स्त्रियां</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">तन-मन-धन से घर-बाहर दोनों संवारती हैं। पितृसत्ता से भी स्त्री मुक्ति प्रजातांत्रिक संवाद ही चाहती है, कोई सिरफुडौवल नहीं चाहती! सहज मानवीय विवेक से वह यह समझती है कि प्रतिशोध् किसी भी समस्या का समाधान एक दमन चक्र का जवाब दूसरा दमनचक्र होता रहा तब तो सभ्यता बैक गियर में चलती-चलती सीधी पाषाण-युग तक पहुंच जाएगी।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">स्त्री-आंदोलन दुनिया का एकमात्र आंदोलन है 'इंग्लैंड के ग्लोरियस आंदोलन" के सिवाय जिसने कभी एक बूंद खून नहीं बहाया, पूर्णत: अहिंसात्मक रही, साम-दाम के बाद दण्ड भी आजमाया और दण्ड स्वरूप भी डंडे नहीं भांजे!</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">पुरुष का मानसिक-आत्मिक-भाषिक परिष्कार ही इसका मुख्य प्रयोजन है और इस दिशा में इसने जो संघर्ष किए हैं-मनोवैज्ञानिक युद्ध के रूप में ही। और अभी भी आस नहीं तोड़ी कि कुल मिलाकर विमर्श जो कहता है, उसका सारांश यह कि नई स्त्री वह है जो प्यार करती है, प्रतिबद्ध रहती है, जिम्मेदारियां उठाती है और सबको मिलाकर चलती है। स्त्री-पुरुष, नाचना-गाना, खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना-सबसे प्रेम करती है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">संघर्ष से प्रेम करती है, पशुओं से, पेड़ से, पहाड़ से, दुश्मन से और प्रेम करती है खुद से भी। तब ही तो वह चाहती है कि लज्जा, धीरज, सहिष्णुता, ममता, त्याग आदि सब सद्गुण सिर्फ स्त्री-धन न रहें, दूसरे संसाधनों की तरह वे भी बराबर बंटें। बेचारे पुरुषों की भी झोली भर जाए सब सद्गुणों से और घृणा की राजनीति से वे बाज आएं।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">-अनामिका </span></div>
<br />
<blockquote style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" type="cite">
<div dir="ltr">
</div>
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shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-25144832492128264082019-02-13T12:39:00.002+05:302019-02-13T12:46:06.891+05:30शिकार - प्रत्यक्षा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSoWAXFUx8MoGyUTylerP1cmB0uP1kSr_YiN22qPX0qYJhJMOHBBPsxYKhLnOAdXijqUrkfCTcccEge5Z153Sda0bf6rmI3KD_fUZNQkpwRtJeoTCO-B5cJl_J2QCAsg87V5bOo_hJ41k/s1600/50902177_10156621787215342_8549854524129411072_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="959" data-original-width="960" height="319" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSoWAXFUx8MoGyUTylerP1cmB0uP1kSr_YiN22qPX0qYJhJMOHBBPsxYKhLnOAdXijqUrkfCTcccEge5Z153Sda0bf6rmI3KD_fUZNQkpwRtJeoTCO-B5cJl_J2QCAsg87V5bOo_hJ41k/s320/50902177_10156621787215342_8549854524129411072_n.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="color: black; font-size: 10.0pt;"> </span><span lang="HI" style="color: black; font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span lang="HI" style="color: black; font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 18.0pt;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span style="font-size: large;"><br /><br /><br /><br /><br /><span style="background-color: yellow; color: #1d2129; font-size: 14px;"><span style="font-family: "verdana" , sans-serif;">"हमारी कल्पनाएँ,हमारे स्वप्न ,हमारा प्रेम ,हमारी सोच और हमारा जीवन सब कभी न कभी वास्तविक धरातल ढूँढते ही हैं । प्रत्यक्षा की कहानी "शिकार" ऐसे ही प्रेम को धरातल पर रखकर परखती है। कहानी आप सभी के लिए।"</span></span><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />शिकार <br />----------<br /><br />उनके बदन से खमीर उठते आटे की महक आती थी । खासकर पेट का वो हिस्सा जो ब्लाउज़ और साडी के बीच आता है । खूब गूँधे हुये नर्म मुलायम मैदे की लोई । सामने दस्तरखान बिछा था । बाकरखानी रोटी के साथ गोश्त का शोरबा । कटोरियों में मीठे चावल , फिरनी । रोटी को शोरबे में डुबो डुबो कर खा रहा था । बीच बीच में उनकी ओर नज़र उठाकर देख लेता । वो चुप बैठीं मुझे खाते देख रही थीं । नज़र बार बार चेहरे से फिसल जाती थी नीचे उनके अनावृत पेट पर । लेस लगा सफेद साडी का पल्ला खिसक गया था । मुझे ये पता चल गया था कि थोडी सी बडी उम्र की औरतें , मतलब तीस पैंतीस के ऊपर , अपने शरीर से लापरवाह हो जाती हैं । कम उम्र लडकियाँ , कुँवारी लडकियाँ अपने शरीर के प्रति सजग रहती हैं । दिखाना भी हो तो एक चौकन्नी सजगता रोम रोम से फूटती है , आओ देखो । छुपाना हो तो दस लपेटे में छुपा के रखा ,फिर भी कहीं दिखाने लायक आभास छोडता हुआ जैसे एक धीमा उच्छावास । पर तीस पैंतीस की स्त्रियाँ , पल्लू ढलक जाये , छाती का उभार दिखता हो , पीठ का मोहक भराव लपटें मारे , पेट ,कमर का हिस्सा दो बच्चों के जन्म के फैलाव को अपनी पूरी संपूर्णता में जग जाहिर करे । आह ! ये तीस पैंतीस की औरतें । <br /><br />मैं खाता जा रहा था , उनकी ओर देखता जा रहा था । उनकी आँखों में कल रात के काजल की अँधियारी परछाईं थी । उनको देखकर हमेशा ऐसा लगता कि अभी सुबह सुबह तैयार हो कर उन्होंने काजल नहीं लगाया । रात का कोई जादू उनकी आँखों से सुबह सवेरे बोलता था । उनकी आँखें ऐसी कोई सुन्दर नहीं थी । पर मुझे बहुत सुन्दर लगती थीं । छोटी छोटी तिरछी आँखें , काली चमकीली आँखें , घनी बरौनियोँ से ढँकी आँखें । कोई गहरा रहस्य अचानक जैसे थम गया हो , पानी पर तरंग एकदम शांत होने के पल भर पहले , घने जंगलों के बीच छोटा सा तालाब जिसपर पेडों का प्रतिबिम्ब ,हरी काली आभा छोडता हुआ । <br /><br />मैं खाता जा रहा था , उनकी ओर देखता जा रहा था । उनके नाक के हीरे का लौंग लश्कारा मार रहा था । वैसे मारना नहीं चाहिये था क्योंकि वो एकदम शांत बैठी हुई थीं । पर मैं हिल रहा था । मेरी आँखों में हीरे की लपट थी | उनके हाथ गोद में निस्पन्द पडे थे । गुलाबी हथेलियों वाले गुदाज़ हाथ । कमल के फूल जैसे हाथ । इन्हीं हाथों से उन्होंने गोश्त पकाया होगा । पेट भर चला था । उन्होंने बिना कुछ बोले फिरनी का कटोरा मेरी ओर सरकाया । पल्लू अब एहतियातन कँधों पर से लपेट कर कमर में खोंस लिया । मेरी बहकती नज़र उन्होंने देख ली थी क्या । मैं सतर सावधान बैठ गया था । <br /><br />…………………………………………………………………………………………………………………………….. <br /><br /> <br /><br />उस दिन गया तो बडी गहमागहमी । पिछवाडे के कमरे में रफीक के साथ बैठा । अब्बू के अकाउंटस देखने थे । बगल के सहन से बडी रौनकें । देग पर कुछ खदबदाता पक रहा था । भाप का गुबार उठ रहा था । खाने की खुशबू , मसाले भुने जाने की खुशबू । बरतनों रकाबियों की खटर पटर । कढाई में छोलनी चलाये जाने का संगीत । पतले कटे प्याज़ का ढेर । रफिया ,बडी व्यस्त , इधर उधर । खदीमा ,दुपट्टा सर पर लपेटे बुडबुडाती सिलबट्टे पर मसाला पीस रही थी । और इनसब के बीच वो बैठी थीं मोढे पर । दुपट्टा लपेट रखा था सर पर । एक बाल तक दिखता न था । चेहरा तमतम गुलाबी । चूल्हे की आँच से । <br /><br /> <br /><br />-आयें , धूप में आ जायें । रफीक ने कगज़ों का पुलिन्दा उठाते हुये कहा था । <br /><br />कुर्सी खींच ली गई थी बाहर । एक गोल मेज़ बीच में लगा दी गई । सफेद लेस के मेजपोश से उसे ढक दिया गया । चाय आयी , बडे गिलासों में । वही दूध मसाले का काढा । ज़ोहर के नमाज़ का वक्त हो गया था । अज़ान की आवाज़ आ रही थी । रफीक के अब्बू उठ गये थे । कमरे में जानमाज़ बिछाकर घुटने मोड नमाज़ पढने लग गये । मैंने कुर्सी मोड ली सहन की ओर । लाल मिर्च तेल में भूनी जा रही थी । फिर इसे पीसा जायेगा । एक अलग कढाई में प्याज़ की बिरयानी तली जा रही थी । <br /><br />-रफिया हाथ जल्दी चला <br /><br />-खदीमा , तशतरी ला , एक चमचा भी <br /><br />उनकी आवाज़ ठहरी हुई थी । खदीमा बुडबुदाती हुई मसाला पीसना छोड , उटंग सलवार के पायँचे समेटते बावर्ची खाने में घुस गई । <br /><br />-बगेरी खायेंगे ? बस पक ही चला <br /><br />बचपन में बगेरीवाला आता था । चिपटे गोलाकार टोकरियों में बगेरी , चाहा , तीतर , बटेर । दर्जन के हिसाब से खरीदा जाता । टोकरी के फाँक से चिडियों की आवाज़ आती । <br /><br />-बचवा उधर चले जाव ,कहकर वो हाथ डालता ज़रा सा ढक्क्न खिसका कर । एक एक करके शामत आती चिडियों की । गर्दन मरोड कर एक तरफ ढेर बनाता जाता । फिर पानी से भरे बर्तन की पुकार होती । पानी में डुबाकर उनके पर नोचे जाते । मैं भाग जाता । प्रण करता कि अब आगे कभी बगेरी ,चाहा नहीं खाउँगा । फिर लटपट मसालेदार पकता और मैं दो के बजाय चार रोटी खा लेता । फिर बगेरी वाले का आना छूट गया और मेरा खाने न खाने का द्वंद । <br /><br />आज इतने दिन बाद । गरम मसाले की खुशबू अब तेज़ हो गई थी । तेज़पत्ता , दालचीनी , लौंग , बडी इलायची की पोटली चावल के देग में डाली जा रही थी । भूने लाल मिर्च की झाँस से खाँसी उठ आई । <br /><br />तश्तरी में मसाले में लिपटा बगेरी , तेल छूटा हुआ । मैंने उनकी आँखों में ढीठ नज़रे डाले हुये एक बार में <br /><br />गप्प से मुँह में डाल लिया । मसाली के तेज़ स्वाद से आँखों में आँसू भर आये पर उन्हें बदस्तूर देखता रहा । उनका चेहरा लाल हो गया । कुछ शर्म , कुछ नाराज़गी ,कुछ रौब । कुल मिलाकर एक अजीब सा भाव चेहरे पर आया , गुज़र गया । एक पल को असमंजस में ठिठकी फिर पलट कर बावर्ची खाने में <br /> <br /> <br /><br />मैं क्रमश : ढीठ होता जा रहा था ।बेबाक होता जा रहा था । एक बरजोरी का सा भाव । वो अब हिचकने लगी थीं मेरे सामने आने में । पर अबतक मैं उनके घर का हिस्सा बन चुका था । मेरी पहुँच उनके जनानखाने तक हो गई थी । अम्मी , मतलब बडी बेगम मुझे अंदर बुलवा लेतीं । सरौते से सुपारी की कतलियाँ काटती रहतीं , तरह तरह के लच्छे । पानदान खुला रहता । उनके बाल मेंहदी से रंगे रहते और उनके झक्क गोरे चेहरे पर उम्र ने मकडजाल बनाना शुरु कर दिया था । <br /><br />-माहरुख बेटा ,कल जो सेवैइयाँ बनाई थीं , खिलाओ इसको <br /><br />मैं खाता उनकी आँखों में आँख डाले । वो एक जालफँसी चिडिया सी बँधी आँखों से देखती । कभी होंठ खोलतीं कि अब शायद अम्मी को मना कर देंगी ,फिर होंठ भींच लेतीं । मैं भी खासा शातिर हो गया था इस मामले में । चेहरे पर एक मासूम भोलापन रहता । सिर्फ आँखें अपनी बात कहतीं । बेचैन आँखें जो फिरती थीं , उनके होठों पर , उनके छाती पर , गोद में पडे उनके हाथों पर । एक लपट निकलती थी जो मुझे जला रही थी धीमे धीमे । वो अब मेरे सामने सतर्क चौकन्नी हो गई थी । लपेट लपूट कर रखतीं खुद को । मेरे सामने उनके हाथ बारबार अपने दुपट्टे को , अपने आँचल को संभालते । कभी बाल , समेटे हुये बाल को दोबारा समेटतीं , कभी चेहरा पोंछती । गरज़ ये कि मेरे सामने वो अब अस्थिर होने लगी थीं । गुस्से की जगह अब एक शर्म भरी बेचैनी ने ले लिया था । उनके खाविंद ,अशरफ ,बाहर थे । साल छ महीने में आते । मैंने शिकार अच्छा चुना था । पर मेरे साथ पूरे इंसाफ के साथ अगर कहा जाये तो ये कि शिकार पहले मैं ही हुआ था । शिकार उनको बनाना तो बाद में हुआ था । पूर्वनियोजित षडयंत्र था । पूरी तौर पर षडयंत्र । अब मैं मौके की तलाश में था । <br /><br />शुरुआत फकत ऐसे हुई थी कि मैं सिर्फ उनको देखता । पर जैसे ही निगाह मिलती मैं घबडाकर नज़र फेर लेता । उनके चेहरे पर एक छोटी मुस्कान । मुँह फेर हँस पडतीं । फिर मेरी निगाह ढीठ होने लगीं । देखता तो नज़र मिला के । अब वो घबडाने लगीं थीं । वो जितना घबडातीं मैं उतना ही ढीठ होता जाता । पर मेरे लिये ये सिर्फ खेल था , महज़ एक खेल । एक आकर्षण दुर्निवार पर अंत में सिर्फ एक खेल । <br /> <br /><br />एक खुशबूदार दलदल में खुद को डुबा देने का तीव्र इच्छा लहक जाती । मेरी बेचैनी उन तक पहुँचने लगी थी । मेरी मौजूदगी में वो हडबडाई रहतीं । उँगलियाँ चेहरे , बाल , आँचल पर बेचैन घूमतीं , समेटती , सँवारती , बिखेरती काँपती लरज़ती उँगलियाँ । चेहरे पर सर्दी के बावज़ूद एक नमी आ जाती । मेरे चेहरे पर शिकार को फँसा लेने की आश्वस्तता पसरने लगती । <br /><br />आखिरकार ये मौका आ ही गया । उस दिन मैं रफीक के कमरे था । वो घुसी थीं कपडों का ढेर हाथ में । साँझ का झुटपुटा था । कमरे में अँधेरा था । बिजली अभी गई थी और रफीक गये थे रौशनी का इंतज़ाम करने । उनके साये का आभास हुआ था । फिर मीठी दालचीनी की सी महक और मैंने पीछे से उस खुशबू को भर लिया । अँधेरे को समेट लिया ,भर लिया आँखों में , होंठों में ,सीने में । एक धूँआ उठा ,ठोस पर तरल ,जंगली लतर , बेले का फूल उफ्फ मेरी जान ! पर एक तडप फिसल गई और उसके बाद जो हुआ वो अप्रत्याशित ! एक ज़ोरदार तमाचा चेहरे को टेढा कर गया । <br /><br />मेरा अंदाज़ा इतना गलत कैसे । शिकार मरते मरते आक्रमण कैसे कर गया । मैं चोरों की तरह निकल भागा था उस दिन । फिर कई दिन गायब रहा । एकाधबार रफीक से मिलने के बावज़ूद बहाना बना गया । <br /><br />................................................................................................................................ <br /><br /> <br /><br />ट्रेन में बैठे बैठे यही सब सोचता रहा । खिडकी की सलाखों से भागते गाँव , खेत हरे के हरे , अधनंगे बच्चे भागते ट्रेन को देखकर कुछ दूर तक साथ साथ दौडते , देसी मुर्गी अपने चूज़ों के साथ गाँव घरों के सामने चौंक कर कुडक कूँ करतीं , तालाब में पगुराती भैंसे , एक कतार से बत्तखों का झुंड क्वैक क्वैक करता , ताड के पेड कतार के कतार , रहट से पानी पटाता किसान , सब भागते रहे , निमिष मात्र को आँखों के आगे आते फिर ओझल हो जाते । मैं गर्दन सलाखों से सटाये चेहरा टेढा किये अंतिम क्षण तक उस दृश्य को पकडने की असफल कोशिश करता रहा । एक गाँव आता ,छूट जाता , फिर दूसरा ,फिर दूसरा । खेत के खेत , मैदान का मैदान, छोटे कस्बे , रेलवे क्रॉसिंग पर इंतज़ार करते साईकिल सवार , ट्रैक़्टर पर परिवार । मैं सुन्न बैठा रहा । बीच बीच में कुलहड वाली चाय सुडकता रहा । खोवे की लाई , रेत पर भूना हुआ मूँगफली , चनाज़ोर वाला । लोग खरीदते रहे ,खाते रहे , टूँगते रहे । ट्रेन का फर्श मूँगफली के छिलकों से , खाली ठोंगों से अट गया । जूता पॉलिश वाला जूता चमकाता रहा । सूरदास गाना सुनाकर अपनी अल्मूनियम की थाली बजाता रहा । इन सब के बीच मैं निर्विकार सुन्न बैठा रहा । हिलता रहा , झपकता रहा । मेरा सर खिडकी की सलाखों से नींद में टकराता रहा । उठा तो एक गूमड ,कान के ऊपर टीस मार रहा था । झटक कर ख्यालों को परे हटाया । गुस्सा , खीज , झुँझलाहट , शर्मिन्दगी और हार ,बस हार । <br /><br /> <br /><br />इसबार गौना था । उसे लाना था । घर पर पीली धोती का अंबार , आंगन में सूखते पापड , बडी , अचार । रिश्तेदारों की भीड । पंडाल घेर कर बैठने का स्थान । छत पर हलवाई का जमावडा । खौलती कढाई में छनती पूडियाँ , इमरती , तले हुये परवल की मसालेदार तरकारी , उबले आलू मटर की रसेदार सब्ज़ी , दही में बुन्दिया । हवन , पूजा , मंत्रोच्चार । गहमागहमी , भागदौड । खेलते बच्चे , सजती औरतें । आलता लगे पाँव , बिछिया, नथ । सूप में चावल , नारियल , रोली हल्दी । पंडित , नाई, बीच बिचैव्वा । <br /><br />मैं सब भूल गया । सब । <br /><br />उसकी छूईमूई छवि सिर्फ याद रही । उसका लाल गोटेदार चादर मेरे पीले चादर से बँधा । गठरी सी मेरे पीछे सूप पर पैर रख कर घर में प्रवेश करती वो । पान के पत्ते से उसका स्वागत । अक्षत रोली हल्दी दही । फिर हम दो , सिर्फ हम दो । <br /><br />साँकल बन्द की । पीली गठरी बिस्तर पर । कमरे में हल्दी की महक , चंदन की महक । मेरी हथेलियाँ पसीज रही थीं । चेहरा ऊपर किया । बेतरतीब पर बडी चमकीली घनी भौंहे और उसके नीचे बन्द पलकों पर गहरी घनी बरौनियाँ । नाक की थरथराती नथ के नीचे भरे होंठ । आह ! <br /><br />पतली सुकुमार कलाईयों पर ढेर सारी धानी पीली चूडियाँ ,फिसल कर कुहनी तक आ गई थीं । जैसे किसी और की पहन ली हो । दो दो , सवा दो ,दो आना दो , चूडियों के नाप । कौन से तेरे नाप । मैंने थाहना चाहा पर वो चिहुँक गई । गले की हड्डी ठमक गई एकबार । बीच का गड्ढा ,सुबुक सा एक पल को काँप गया ,धडक गया । मैंने गठरी समेट ली । मेरी बाँहें किसी अनचिन्हे आवेग से थरथरा रही थीं । ज्यादा न भींच दूँ इसका संयम भारी पड रहा था । कच्चे दूध की गमक , बारिश पहली ,मिट्टी पर । छोटे छोटे चहबच्चे में पानी टप टप टपकता , फिर मूसलाधार । दूब का हरापन ,कचाईन हराईन फिर मीठा ,फिर मीठा । <br /><br />हाथों पर अचानक कुछ गडा । देखा । आँचल में बँधा खोंईंचा जो किसी शरारती नटखट ननद के इंतज़ार में था । पर हमारे यहाँ कौन । फिर नहीं तो किसी जेठानी , देवरानी का अधिकार । पर बडके भैया ऐसे ही रह गये । ब्याह ही नहीं किया । क्यों नहीं किया कौन जाने । ऐसे लंबे हट्टे कट्ठे । फिर फुसफुसाहट कि कोई नुक्स । पर जो भी हो , घर में अम्मा के सिवा कौन खोलने वाला खोंईचा । <br /><br />तब मैं ही बन्धु मैं ही सखा । मेरी उँगलियाँ अचानक मोटी हो गईं । पहली गाँठ मुश्किल से खुली । फिर खुली तो खुलती गई । चावल . दूब , हल्दी का टुकडा , तुडा मुडा पचास का नोट और एक रुपये का सिक्का , सब बिखर गया हरहरा कर । <br /><br />सुबह चाँपाकल पर नहाते महुये की मीठी खुशबू आती रही । शहद टपकता रहा गाढा । इसबार लौटा तो दूसरे हाल में । <br /><br />पर उनके यहाँ जाना बदस्तूर चलता रहा । ये दूसरी शुरुआत एक अजब वाकया था । रफीक लगभग घेर घार कर मुझे ले गया घर । रफीक से मेरी दोस्ती पुरानी थी । दोस्ती भी ऐसी कि खूब मान मनौव्वल । कभी पैसे माँगे तो ऐसे हक , अधिकार से माँगे कि दिया और खुद फिर कहीं से उधारी की । मना अगर कर दिया तो जिद्द पर अड गये, दोगे कैसे नहीं । हमें ज़रूरत है तो फिर तुम्हीं से लेंगे । हमें कुछ नहीं सुनना । बात की तो शुरु लडाई से हुई । रुठ गये । फिर खुद कहा कि भई अब मना भी लो । खाने पर बुलाया ,वो भी सुबह सवेरे नाश्ते पर और टरका दिया पावरोटी ऑमलेट पर । जाओ फिर कभी फुरसत से बिरयानी कबाब खिलायेंगे । <br /><br />उम्र हो गई थी पर ऐसी भी नहीं पर लडाई बच्चों वाली । अम्मी , अशरफ भाई , घर के सब , मतलब खदीमा , रफिया , बच्चे हमें देख देख हँसे , ये लोग ऐसे लडते हैं । औरतें गीली गीली । ऐसी दोस्ती । इकतीस दिसंबर को रात पीते रहे दोनों । सुकून से बैठे सुनते रहे एकदूसरे को। तू मेरा भाई , मेरा यार । दसियों बार दोहराया , दोनों ने। पीकर याराना गाढा होता है । पर यहाँ तो वैसे भी था । हम हँसते रहे चुपके चुपके । बाद में मिलकर खूब ब्लैकमेल किया , उस रात क्या क्या बोले । हम ज़रूर खूब उल्लुपना किये होंगे , दोनों झेंपें । <br /><br /> <br /><br /> हर मुद्दे पर हमारे बीच खूब गर्मागरम बहस । कोई फर्क नहीं हमारे बीच । हम बेखबर , हम गाफिल । चाय और पकौडियों पर बहस चलती रहे देर रात तक । कौन किसके पक्ष में बोल रहा है इससे कोई सरोकार नहीं । हम दो खेमे में ज़रूर थे अपनी तार्किकता पर मुग्ध , जुनून से हमारे शब्द जलते थे । हम वक्त रहते इस गुट से उस गुट में अदलाबदली करते थे ,शब्दों और भावनाओं पर सवारी करते और अंत में थककर चूर हो जाते । देर रात लौटते । <br /><br />फिर इस दोस्ती को दरकिनार कर मैं उनकी ओर बिलावजह क्यों खिंचा । जैसे एक साँप सम्मोहित करता है वैसे ही उनकी छोटी छोटी चमकीली आँखों से मैं खिंचा । खैर , जो हुआ अच्छा हुआ । बहुत अच्छा हुआ ।बस एक गडबड ये हुई कि उनके सामने आने में मैं असहज हो जाता । कोशिश करता कि बाहर से ही लौट जाऊँ ।अगर कभी वो आ जातीं तो मैं तुरत उठ जाता । वो झन्नाटेदार तमाचा याद आ जाता । मेरी हथेलियाँ खुदबखुद चेहरे को सहला जातीं । न , उस दिन कुछ न हुआ , बहुत अच्छा हुआ । मैं दलदल में धँसने से बच गया । मैं रफीक से मिलते रहने के लिये बच गया । मैं उस महुये और हल्दी के कच्चे सुगंध के लिये बच गया । <br /><br />पर इधर गौर किया उनकी आँखें मुझे ताकतीं । क्या वो किसी माफी के इंतज़ार में थीं । उनके चेहरे पर सचमुच एक इंतज़ार फैला रहता । आँखें ज़रा सा ज्यादा खुलीं , कहो ,कहो न कुछ । मैं क्या बोलता । शर्मिन्दगी तारी हो जाती । एक पीली गठरी याद आती । दूब का कचाईन हराईन मीठापन याद आ जाता । <br /><br />इंतज़ार धडकता था ,डब डब । ज़रदे और कीमा में , शामी और रेशमी कबाब में , मसालेदार सुपारी में , इत्र फुलेल में , आँगन में , सहन में , तार पर फैले सूखते कलफ लगे कपडों में , पायँचे वाले शलवार में , लेसदार दुपट्टे में , चूडी वाले पजामे में , चूडियों में ,चिडियों में , कबूतर और परिन्दों में । और एक दिन मेरे गर्दन पर कान के पीछे उस इंतज़ार ने अपने होंठ रख दिये , गर्म नर्म । एक दाग , जला हुआ आग । और एकदम अचक्के से चील ने झपट्टा मारा । मैं अंदर गुडुप । हाथ पैर छटपटा गये । साँस बेकाबू । मैं फँस गया था । शिकारी खुद अपने जाल में फँस गया था । <br /><br />शहद के अंदर का गाढा रस मेरी शिराओं में बहने लगा था । मीठा , लसलसा और मैं उसमें डूबता चला जा रहा था ।एक भंवर था और मैं बहता तिनका । खुश्बू की एक भारी चादर तिरी थी जहाँ दम घुटता न घुटता था , जहाँ बहाव के जोर के आगे मेरे पैर टिकते न टिकते थे । मैं सबकुछ भूल रहा था ,सबकुछ । <br /><br /> <br /><br />साल बीत गये इसबात को । कई कई साल । शहर छूट गया , दोस्त छूट गये । शरीर के रंग बेरंग हो गये । मन अब बावरा नहीं होता , किसी भी चीज़ से नहीं होता । घर गृहस्थी के जंजाल , बच्चों की चिल्ल पों की खटराग , जीवन अब ऐसे ही चलता है । उस दिन लेकिन एक अजूबा देखा अपने शहर मोहल्ले में । कहाँ का भूला भटका गाँव गँवई का आदमी । कंधे पर बहंगी लटकाये , चमरौंधे जूते , मटमैले कपडे ,चेहरा धूल पसीने का साक्षात विज्ञापन बना हुआ । पता नहीं बहंगी में था क्या । कोई माल असबाब या क्या पता कोई जादू का पिटारा । अजब भौंचक निगाहों से इधर उधर ताकते चला था । मैं भी ठिठक कर खडा रह गया था । मेरे चेहरे पर कोई मुस्कुराहट होगी , जरूर होगी क्योंकि एक बार उससे निगाह मिली थी तो उसके चेहरे पर भी कोई जवाबी मुस्कान का झेंप भरा पैरोडी सा कुछ क्षण भर को शायद कौंध गया था । फिर पल भर में कहीं भीड भरी गलियों में बिला गया । एक साँस पहले तक मेरी निगाह के हद में था और अगले साँस लेने तक गायब ।मैंने तेज़ साँस भरी थी , और यकीन मानिये उस साँस में सिर्फ साँस ही नहीं आई , साथ में एक तेज़ भभका दालचीनी लौंग इलायची के खुशबू में लिपटा बगेरी के मसालेदार कौर का भी आया । कौन यकीन करेगा लेकिन सचमुच मेरी जीभ पर वही स्वाद पल भर को नोक से होकर पूरे मुँह में भर गया । और उस स्वाद के साथ ही मेरे गर्दन पर कान के पीछी इंतज़ार का गर्म नर्म दाग , एक जला हुआ आग लहक गया ।आज तक मुझे नहीं पता कि शिकार किसने किसका किया । </span><span style="font-family: "mangal" , serif;"><br /><br />--प्रत्यक्षा<br />pratyaksha@gmail.com</span></div>
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साभार: अन्यथा पत्रिका </div>
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shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-52630579394117269232019-02-01T10:33:00.001+05:302019-02-02T10:09:18.983+05:30नागरिक मूल्य अभिव्यक्ति को गतिशील करते हैं - कृष्णा सोबती <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBNSUXwlFJJRUnkLUwu-_lkY1MmmeZGBFhEeQyhMWViARtLUjmUxmPxmv3UdBR1YK5d5K5uA-eigcQaHlaT54tVn1qPGvEqDH4JgjL2d6iEBrgmLYCJqeavJIva3TsMHhzLB82JcdkZl8/s1600/PicsArt_02-07-05.37.30.png" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="206" data-original-width="198" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBNSUXwlFJJRUnkLUwu-_lkY1MmmeZGBFhEeQyhMWViARtLUjmUxmPxmv3UdBR1YK5d5K5uA-eigcQaHlaT54tVn1qPGvEqDH4JgjL2d6iEBrgmLYCJqeavJIva3TsMHhzLB82JcdkZl8/s320/PicsArt_02-07-05.37.30.png" width="307" /></a></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><span style="color: black; line-height: 115%;"><span lang="HI" style="background: rgb(234 , 153 , 153); font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">नागरिक मूल्य अभिव्यक्ति को गतिशील
करते हैं</span><span style="background-color: #ea9999; font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial;"> </span>- <span lang="HI">कृष्णा सोबती</span> </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">----------------------------------------</span><br /><br /><span style="font-family: "trebuchet ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><b>"वर्ष 2017 के 53वें ज्ञानपीठ सम्मान समारोह से प्राप्त स्मारिका में कृष्णा सोबती जी का अभूतपूर्व वक्तव्य है. अपने वक्तव्य में उन्होंने ज्ञानपीठ सम्मान से सम्बंधित, लेखन के राजनीतिक -सांस्कृतिक पहलुओं से सम्बंधित एवं साहित्य में स्त्री -पक्ष<br />से सम्बंधित बहुत महत्वपूर्ण बातें कही हैं. उन महत्वपूर्ण बातों को पाठकों के लिए, भावी लेखक पीढ़ी के लिए सहेज लेने का मन हुआ.<br />(वक्तव्य की पीडीऍफ़, वर्ड फाइल उपलब्ध नहीं थी. कुछ मित्रों के सहयोग से सात पेज का वक्तव्य टाइप हो पाना संभव हुआ. उन सभी मित्रों का हार्दिक आभार!)"</b></span><span style="line-height: 115%;">-शोभा मिश्रा</span></span></span><span style="font-size: large;"><br /><br />माननीय राष्ट्रपति जी, ज्ञानपीठ न्यास के माननीय सदस्य एवं आदरणीय मित्रों, सबसे पहले मैं भारतीय ज्ञानपीठ के प्रति अपना आभार व्यक्त करती हूँ कि इस बार उसने अपने सुप्रतिष्ठित सम्मान के लिए मुझे चुना है। मैं कृतज्ञ हूँ। मुझ नागरिक – लेखक को यह सम्मान लोकतंत्र के सर्वोच्च प्रहरी राष्ट्रपति जी के हाथो दिए जाने का सौभाग्य मिल रहा है। इस सम्मान को पूरी विनमता से स्वीकार करते हुए मैं यह कहना चाहती हूँ कि मैं 93 वरस की हो रही हूँ: मेरा सुझाव है कि यह सम्मान भारतीय भाषाओं में अतिवरिष्ठ लेखको को दिए जाने की परिपाटी को बदलकर उन लेखकों को दिया जाना चाहिए जो अपेक्षाकृत युवतर हैं पर जिनकी उपलब्धियां ऐसे सम्मान की पात्र हैं। <br /> <br /> मैं एक नागरिक – लेखक हूँ और इस अवसर पर कुछ भारतीय लोकतंत्र और सहित्य के रिश्तों पर कहना चाहती हूँ । आप अगर पिछले सात दशकों पर नजर डालें तो संपूर्ण भारतीय भाषा-परिवार के लेखकों ने अपनी बौद्धिक संभावनाओं को आत्मविश्वास और कुशलता से उकेरा है और अपनी रचनात्मक उपलब्धियों से भारतीय मनीषा के संचित सत्रों से जोड़ा है। बौद्धिक सम्पदा और कार्यशाला को प्रमाणित नहीं कर रहे – साहित्य स्वयं अपना प्रमाण होता है। सुखद है, यह सोचना कि भारतीय लेखकों ने जिम्मेदारी से समाज में होते परिवर्तनों पर निर्मम मगर निर्मल निगाह डाली है। आस-पास की स्थितियों को जांचा-पड़ताला है, ऊपरी खोल की तहों तले पसरे दोहरेपन को उघाडा है। उसे राष्ट्र के वृत्तान्त और संवाद को जिस पाठ की बन्दिश में बांधा है, वह घना है। पुख़्ता है। ईमानदार है। अन्तर्दृष्टियों की भेदती नुकीली तलाश का विवरण है। <br /> <br /> तंज के तान-बाने में उस व्यावसायिक पैंतरे का जो भ्रष्टाचार के सहारे सफलता के चरम पर पहुँच चुका है। सत्ता का पितृपक्ष, इसे हम जो भी पुकारें अब इससे विलग नहीं हैं। भारतीय लेखक के निकट यह चिन्ता का विषय है। हम लेखक कितनी भी छोटी-बड़ी या साधारण प्रतिभा के धनी हों, इतना तो जानते हैं कि हमारा आचार-विचार और सामाजिक व्यवहार व्यक्तित्व का विस्तार जो भी हो, हमारी चेष्टाएं, हमारी व्यक्तित्व चिंताओं और सरोकारों का अतिक्रिमण कर उस ओर प्रवाहित होती है जहाँ साधारणता का ठेठ सुरक्षित होता है। व्यक्ति के अन्तरंग से उभरकर समाज और देशकाल की गूंथ में जज्ब होता रहता है। अपनी शाब्दिक और आत्मिक ऊर्जा में यही प्राणवान तत्व साहिंत्य का सरोकार कहलाता है। जिस विचार को अपने पाठ के लय-ताल में बुनते हैं, वह जीवन अमरत्व है जो अपनी नश्वरता को अनश्वरता में बदलता हैं विचार, रंग-रूप, स्मृति, अक्स, भावनाएं, स्थितियां, अपसी संबंध , दूर-पास के मुखड़े जान-अनजाने-पहचाने पात्र, दिल और दिमाग में गूंथे हुए, कागज पर उभरते हुए कभी आमने-सामने, कभी समानान्तर पटरियों पर दौड़ते, कभी एक-दूसरे को आर-पार काटते हुए। लेखकीय व्यक्तित्व और उसके शैली परिधान को क्षण भर के लिए भूल जाएं तो यह है उनके पिछवाड़े का अवचेतन जो अपनी शर्तों पर उघड़ता है। और सहस्त्र-सहस्त्र रंग-रूपों में खुलता है, खिलता है और रूपायित होता है। आपकी इज्जत से इतना और जोड़ दूं कि सर्जक की आँख पाना और हाथ में कलम अपना मानवीय जन्म का अलौकिक पुरस्कार है, पिछले जन्म का पुण्य है। इन शब्दों का उच्चारण करते हुए मै अपने कवियों को गहरे भाव से देख रहीं हूँ। महसूस कर रही हूँ। वे ही हैं – वे ही तो इस कथन के निकटतम हैं। उनके मुकाबले में हम गद्य-लेखक अपनी औकात जानते हैं। <br /> <br /> लेखक होना जितना सहज दिखता है, वह उतना आसान है नहीं। लेखक एक बड़ी दुनिया को अपने में समेटे रहता है। अपनी एक सीमित इकाई में एक छोटी अन्तरंग दुनिया को बड़ी के पक्ष में खड़ा करता है। अपने होने के बावजूद अपने से एक ऐसी तालीम जगाता है जो उसे एक बड़ा परिप्रेक्ष्य देती है। उसे अपने से बाहर फैले संसार के यथार्थ से जोड़ती है। उसके फैले संसार के यथार्थ से भी जोड़ती है। उसके बाहर निज के आत्मिक एकान्त और बाहर के शोर को एक कर देती है। उसके बाहर निज के आत्मिक एकान्त और बाहर के शोर को एक कर देती है। उसे समय और काल से जोड़ देती है। किसी के दबाव में नहीं – स्वेच्छा से। लेखक जो भी है, अपने चाहने से है। अपने करने से है। अपनी समस्याओं, सिद्धांतों और विश्वासों से है। जिसकी चौखट से लेखक जागृत होता है – उसका रचाव- रसाव दोनों उसके लेखन में जज्ब होते चले जाते हैं। हवाएं हल्की-तीखी, सर्द-गर्म जो लेखक ने अपने बचपन में जानी होंगी, महसूस की होंगी, वह अन्दर सोचा भी ली होगी। हर इनसान का बच्चा इस मौसमों के बीच से गुजरता है। वह सुबहें जो शहर-कस्बे-गांव-नगर-महानगर कहीं भी धूप-छांह में लहराई होंगी, यह यकीनन उसके वजूद में घुली होंगी। हर दिन घुलनशील रहा है। बचपन का नटखटपन, बालिग हाने के पहले की शरारतें अमिट अंकन से सजीव हो स्मृति के तलघर में पड़ी होंगी। वही कतरा-कतरा, बूंद-बूंद लेखक के पाठ में घुल-मिल जाती हैं। एक हो जाती हैं। इनसे जुड़ी वह डोरें, वह ताना-बाना बहुत दूर तक अपने को खींचे लिए चलता है। फिर न जाने कहां से मुखड़ा दिखाती हैं लेखक की संभवनाएं अपनी पूरी क्षमता और सीमाओं के साथ। साहित्य के चिरन्तन द्वार पर खड़ा नौसिखिया लेखक प्रतिभा के सर्जन को कैसे निहारता है, समकालीनों को सराहता है, नकारता है, नई-पुरानी सोच को कैसे अपनी अनर्दृष्टियों में उतारता, ढालता है – यह सभी कुछ लेखक से लेखक के संबंधों को मर्यादित करता है। संयमित करता है। यह सब कुछ हर लेखक के साथ घटित होता है। कभी-कभार नहीं, बार-बार, हर बार, जब लेखक नई कृति के रूप में पुराना होता है। वह पुराना पड़ता नहीं। <br /> <br /> एक अच्छी कृति की गूंथ और उसकी सघनता लेखक को एक नया-सा रुआब देती है। पर यह होता है – कृतिसार की संज्ञा में नहीं, प्रकाशित कृति के हलके में। प्रकाशित हो जाने के बाद कृति का अपना अस्तित्व होता है। अपना ही व्यक्तित्व भी। <br /> <br /> लेखक ने उसे आकार दिया है। विचार दिया है। अर्थ और मर्म भी। उसका वजूद लेखक से अलग है, किंतु लेखक की आत्मा से जुड़ा है। दिलचस्प है लेखक और उसके लेखन के ऐन बीचोबीच फैली दूरियां और नजदीकियां। एक अपने बाहर को भरपूर जीता है, दूसरा अपने अन्दर के एकान्त को गहनता से खींचता है। बाहर की गरमाहट को अन्दर खींचता है और अन्दर की नमी को अपने संवेदन में सोख लेताहै। <br /> <br /> इस प्रक्रिया की साख एकतरफा नहीं। रचना दोनों अपने-अपने सीमान्तों से, विपरीत दिशाओं से केन्द्र बिन्दु की ओर बढ़ते हैं जहाँ रचना की पहली आहट, पहला स्वर धड़कता है और लेखक आधा रह जाता है। यह लेखक के एकाधिकार को कम करता है पर उसके विश्वास को गहराता है। रचना को आश्वस्त करता है, और उस दूरी से जो रचना और लिखी जाने वाली रचना को नहीं झाँकता, वह न विरोध, इन सब में से छनती हुई अनुभव की प्रतीति और गति ही लेखक का लेखकीय संकल्प है। उसे वह दो स्तरों पर उदृभासित करता है। रचना की वैचारिक भाषा और उसे अंकित और गतिमान करने वाली अक्षर-शब्द, पंक्ति-व्याकरण और वर्तनी के नियमों की गूँथ, स्वर-ताल में बंधी भाषा। <br /> <br /> दोस्तो, भाषा इस लोक की जीवन्तता का रोमांस है। विचार की उत्तेजना, प्रखरता, गहराई, एकान्त की बेआहट को, प्यार और न प्यार के द्वन्द्व को, घर-परिवार को, शेर और जंगल के मौन को, मन की खिड़की से टकराते तनावों के पंखों से, फड़फड़ाहट की छुअन से, हास और उल्लास से, भला क्या है जो भाषा अंकित नहीं कर सकती। भाषा में निहित है प्रकृति और समस्त संसार का संवेदन। ऐसा कुछ भी नहीं जिसे शब्द व्यक्त न कर सकें। वे अपने होने के अधिकार से चाल को विराम देते हैं, तेज रफ्तार को थाम लेते हैं। प्रवाह को बींध देते हैं, चीर देते हैं। जीवन और मरण को शब्दों की सत्ता से माप लेते हैं। <br /> <br /> एक कार्यशील लेखक की ओर से इतना तो कहा ही जा सकता है कि भाषा के ही मुखड़े से मौसमों-ऋतुओं के पंखों पर उड़ते समय को हम थाम लेना चाहते हैं, शब्दों और अर्थों की सोहबत में उसे दुबारा जिन्दा करना चाहते हैं एक क्षण, एक लम्हें में एक तस्वीर, छवि, भाव को बांध लेना हैं एक पंक्ति में। विस्मयकारी है विचार तो इसका विस्तार और इसकी गहराई और एक शब्द से एक बूंद को पकड़नेवाली सामर्थ्य भाषा की। <br /> <br /> अपनी भारतीय भाषाओं के विशाल परिवार को देखें तो हर भारतीय भाषा अपनी निजता को अनेक रूपों और शैलियों में प्रस्तुत करती है। हमारी भारतीय विविधता का लोकतन्त्र जनमानस में स्थित है। अनेक भाषायी मुखड़े अपनी विविधता में उस केंद्रीय इकाई को प्रस्तुत और तरंगित करते हैं जिसे हम भारतीयता के नाम से पुकारते हैं। यही राष्ट्रीय संवेदन-संस्कार भारतीय आत्मा के चैतन्य में धड़कता है। हमारी देशी भाषाएं अपनी साहित्यिक अभिव्यक्ति से किन्हीं भी दूसरी भाषाओं से कम नहीं। समूचा भारतीय व्यावसायिक वर्चस्व की सामर्थ्य भी देगा। <br /> <br /> शर्त इतनी ही कि नए समय की सोच को जज्ब करनेवाली खिड़कियां खुली हों। हम किसी भी तुलना में अपने को कम समझें और न ज्यादा। हम लेखक-गण इस बात को भलि-भांति जानते हैं कि देखने और सोचने में कुछ भी अतिरिक्त हो, अतिश्योक्ति हो तो 'विचार' स्थितियों और मानवीय संवेदन के अर्थ बदल जाते हैं। संदर्भ बदल जाते हैं, मुद्राएँ बदल जाती हैंऔर बदल जातें हैं - महत्वपूर्ण निर्णय | यह बात कितनी खरी उतरती है हमारे भाव और प्यार मुहब्बत को लेकर। इसीलिए भाषायी संदर्भ में निर्णायक हो उठता है कि हम भाषायी तेवर को, शब्दों के वजन को, माप को, शब्दों के घरानों को कैसे चीन्हते-जानते-पहचानते हैं, उनके अर्थों को अपने अनुभव में और कैसे साहित्यिक और भाषायी समझ से विचार को सही मुखड़े और मुद्रा में प्रस्तुत करते हैं। लिखित भाषा, भाषायी संस्कार, शैली-अलंकार उसकी गरिमा को सुदृढ़ करते हैं और वाचन-परम्परा में बोलियों की लचक, भाषा के कोलाहल संवाद को समृद्ध करती है। 'लोकमानस' बोलियों की प्राणवान धाराओं को सूखने नहीं देता। उस मीन को नए-नए प्रयोगों से बरकरार रखता है जो उसके पर्यावरण से जुड़ी हैं। <br /> <br /> आज साहित्य की भाषायी सम्पन्न्ता में, उसकी तेजस्विता में ढूंढें तो पाएँगे कि भाषा के वैचारिक अर्थ विज्ञापन की भाषा में घुल-मिल रहे हैं, यह प्रक्रिया छोटी नहीं। इतनी बढ़ी कि नई भूमंडली व्यावसायिकता को प्रभावित और प्रमाणित करने की भी क्षमता रखती है। यह आज की भाषा का नया संप्रेषणीय व्याकरण है। जिसकी शैली और चयन उपभोक्ता बाजार की देन है। इसकी साधन-संपन्नता इतनी कि समाज की गंभीर तात्तविकता तक को समेटने की सामर्थ्य रखती है। साहित्य और कलाओं को अपने धन्धे में जज्ब करने की ताकत भी। इसके साथ-साथ यह पेचीदा बाजार नागरिकता लखके के अंदर और बाहर के चिन्तन और विचार तक को तय करने लगी है। संस्कृति के नाम पर व्यावहारिक रिश्तों के अंतर्विरोध भी हस्तक्षेप करते हैं, कर सकते है। न दिखती गुप्त शक्तियों एक खास तरह के मौन संवेदन से निरन्तर बौद्धिक और सांस्कृतिक जाति की बौद्धिक स्वतंत्रता के आड़े आती है। <br /> <br /> वैचारिक स्तर पर यदि लोकतंत्र के सैद्धांतिक और व्यावहारिक नागरिक मूल्य उसकी अभिव्यक्ति को गतिशील करते है, आत्मविश्वास देते है तो दूसरी ओर लेखकीय क्षमताओं को सीमित भी करते हैं। सत्ता-संस्थान, संगठन और लेखकों के बीच जो तनाव बना रहता है, वह जितना ऊपर दिखती है, उतना ही सतह के नीचे भी पसरा रहता है। हकीकत यह भी कि लेखक के संबंध परस्पर की श्रेणी में नहीं आते क्योंकि होते नहीं हैं। इसीलिए लेखक को स्वायत्तता का प्रश्न परेशान करता रहता है। क्या लेखक के संवेदन और अस्मिता में कोई तालमेल है? क्या उसके बाहृा जगत और आन्तरिक में कोई दूरी नहीं व्यापती, क्या अन्दर से बाहर और बाहर से अन्दर प्रवेश करने का एक ही प्रवेश द्वार है? क्या लेखक तनावों और तुष्टियों का गुणात्मक गठन कर सकता है? लेखकों के वैचारिक वर्ग के राजनीतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत विश्वासों और कार्यकारी कलापों से उपजे प्रभावी तत्व पड़ताल की अपेक्षा रखते हैं। संस्थान और संगठन तन्त्र से लैस अपनी कार्य-संहिता से पेचीदा और पोशीदा अंकुशों को सहज सरल बनाकर जब संचारित करते हैं, तो कुछ घटित होता है। दबावी चौखटे में कोई भी क्रम और क्रमांक तय करने के लिए राजनीतिक, सांस्कृतिक पक्ष एक-दूसरे में घुल-मिल जाते हैं। यही दुधारु शक्ति उन्हें साहित्यिक संस्कारों की पहरेदारी पर लगा देती है। दोस्तो! साहितय कभी नियंत्रित नहीं होता, क्योंकि किया नहीं जा सकता। लेखक का समूचा अस्तित्व उसकी खबरदारी में है। 'विचार' की तथाकथित सांस्कृतिक मुद्रा राजनीति के इस महीन बुने जाल को फैलाती है और इसे अपनी सूझ-बूझ से अंकित और सुरक्षित करती है। कार्यवाही संबंधों की यही घनिष्टता और जटिलता लेखक को एक ऐसे मुकाम पर ला खड़ा करती है। जहाँ लेखक गौण है। लेखक मध्यस्थता करते दिखता है उन सिद्धांतों की जो पहले ही खारिज किए जा चुके हैं। इससे बड़ा खतरा लेखक वर्ग को और क्या होगा? इसी के चलते हम सिकुड़कर अपने अन्तरंग में स्थित होने लगते हैं। एकान्त में स्थित होने लगते हैं, एकान्त की गरिमा में अपने को नए सिरे से पहचानने लगते हैं। यह पलायन का दर्शन पुराना है। गरिमा देने के लिए इस नीम चिन्तन को हम गहन चिन्तन के नाम से भी पुकारने लगते हैं। नई परिस्थितियों के उभरते क्या हमारे रचनात्मक मिथक बदल जाते हैं? क्या सामाजिक, सांस्कृतिक परिवर्तनों के साथ सर्जनात्मकता के आकार भी बदले हैं? क्या पुरानी परम्परा और नई मर्यादा में समन्वय उभरे हैं? लेखकगण मजमे के रूप में देखे जाते हैं, क्यों? वे विचारशील नागरिक हैं। उसकी सोच में कुछ तो अतिरिक्त है, विशेष है, विशिष्ट है। फिर क्यों संशय और संदेह के गतिरोध! हम क्यों न इतना याद रखे कि उनके पास असहमति का अधिकार बराबर बना रहता है! हम क्यों न अपने सामाजिक विवेक से साथ-साथ उस अनिवार्यता को भी स्वीकार करें जो प्रबुद्धों के निकट उनकी मर्यादा है। <br /> <br /> आपकी इजाजत हो तो एक छोटे मगर गंभीर मसले को छू लें! राजीनतिक संस्कृति का पर्यावरण जो भी हो, शब्द.संस्कृति को अपने मानसिक जलवायु की सुरक्षा करना होगी। सियासी राजनीतिक दलों और खेमों में हेर-फेर, उठा-पटक, ऊँच-नीच, जो भी होता रहे, लेखक को अपनी कलम धो-पोंछकर पन्नों पर पाठ की प्रतिष्ठ करना होगी। शब्द-संस्कृति की सुरक्षा करनी होगी। आस-पास के दल और उसके भँवर-जाल शब्दों और पंक्तियों को बरगला न दें। लेखक की साधाराण, छोटी-सी दिखने वाली हस्ती जो अपने मे न जाने किती संज्ञाएँ छिपाएं रहती हैं वह किस-किस से आक्रान्त नहीं ? मगर क्यों? <br /> <br /> क्या लेखक इस घेरेबन्दी में 'साधन-संपन्नता सहयोग' के चलते, सक्रियता में जमकर अपने रचनात्मक वैभव को बचा सकता है? <br /> <br /> खतरा यह भी है लेखक अपनी टकसाल में से क्या वही निकालेगा जो राजनीति के एजेंडा और इलेक्ट्रॉनिक भोंपू उलग रहे हैं। <br /> <br /> यह राजनीति के खिलाफ नहीं, लेखकों के हक़ में कहा जा रहा है। उपभोक्तावाद के इस स्वर्णिम युग में जहाँ साधु-संयासी, ज्योतिषी, तांत्रिक, डॉक्टर, इंजीनियर, वकीली मैनेजर बनकर अपने मन्त्र-तन्त्र और कार्यशीलता को प्रवाहित करते हैं, वहाँ लेखका को पुचकारने के लिए, उसे उसके स्थान पर रखने के लिए कुछ ऐसा क्यों किया जाता है कि हमारी प्राचीन आचार-संहिता के अनुरूप लेखक बेचारा बनकर वहीं टिका रहे जहाँ वह पुराने वक्तों में था! तुलना में आज साहित्य अपने सांस्क्ृतिक और सामाजिक रूप में एक बहुत बड़ा व्यावसायिक उद्योग भी है। इसे क्या हम याद रखना पसन्द करेंगे? <br /> <br /> एक ऐसा बौद्धिक उद्योग जो 'सत्य' की उपभोक्तावादी राजनीति से घिरा है। हम न भूलें कि संस्कृति भी एक विशाल सांस्कृतिक धन्धा है। इसमें वह सब कुछ है जो किसी भी धन्धे में मौजूद होता है। <br /> <br /> हम सभी जानते है कि लगभग सारी राजनीतिक, उसके बैनर कुछ भी हो, 'सत्य' के नाम पर चलाई-बनाई जाती है। इसका व्यापार किया जाता है। राजीनति की भाषा में सच्चाइयों की कभी कमी नहीं। लोक का सत्य, व्यवस्था का सत्य, आंकड़ों का सत्य, झूठ की मुखलफत का सत्य, झूठ के पसीजने का सत्य और उच्च सत्य से फूटते अर्ध-सत्य। <br /> <br /> इन छोटे-बड़ो 'सत्यों' की सूची में से उभरकर आता है – इतिहास का 'सत्य'। इतिहास की दस्तावेजी प्रमाणिकता से छेड़छाड़ किए बिना भी लेखक-साहित्यकार सीधे जन-साधारण तक पहुँचता है और लगभग 'जन' मन की खोज में ढूँढ लाता है जो इतिहास नहीं है और इतिहास है भी। <br /> <br /> साहित्य की सीमाओं में इतिहास की प्रामाणिकता और पौराणिकता दोनों एक-दूसरे के विरोध में एक-दूसरे का अतिक्रमण करने की कोशित करते हैं। इतिहास से छेड़छोड़ करने की कोशिश को हम लेखकगण शक की नजर से देखते हैं। इतिहास सिर्फ वह नहीं जो हुकूमतों के प्रमाणों और दस्तावेजों के साथ व्यवस्था के खातों में दर्ज है। इतिहास वह भी है जो लोक-मानस की भागीरथी के साथ-साथ बहता है, बनता है, पनपता है और जन-मानस के सांस्कृतिक पुख्तापन में जिन्दा रहता है। <br /> <br /> मनमानी दृष्टि का प्रचार और प्रसार, पवित्रता का आग्रह क्या सचमुच अतीत को, इतिहास को बदल सकता है। हमने इसका हश्र देखा है- विभाजन। क्योंकि इतिहास एक अपना तर्क होता है। अपने तर्क को उस पर लागू करना मनचाहे नतीजे उगाहने के प्रयत्न किसी भी पुरानी दुखदाई स्मृति को पोंछ नहीं सकते। इन चेष्टाओं में हम इतिहास में जितनी किस्सागोई का सम्मिश्रण करते हैं- यह जानना भी कम जरूरी नहीं। आजकल अपने गौरणमय इतिहास की प्रशस्तियां जरा ज्यादा ही मुखर है। <br /> <br /> अपने देश के इतिहास के लंबे गलियारों में से स्तवंत्रता प्राप्ति तक पहुँचते न पहुँचते हमने न जाने कितने अंधियारे पार किये. राष्ट्र ने पचास वर्षों में 'सत्य ही सत्य' है के मतदान-शोर को अपने लोकतांत्रिक मिजाज़ में सोखकर ऐसा रसायन तैयार किया है कि इधर देखें तो गंगा मैया, उधर देखें तो जमुना जी। अपने-अपने रंगों में दोनों साफ इतनी शफ्फा कि उनके निर्मल जल में भ्रष्टाचार की परछाइयाँ तक न दीख सकें। मुखड़ों और मुखौंटों की राजनीति नोट और वोट के पवित्र नात से बंध गई। कभी वोट की कीमत एक कम्बल थी, धोती थी, बोतल थी, झुग्गी थी, खोखा था, फिर लाइसेंस था, आवास था, प्लॉट था, दुकान थी, ठेका था, फैक्ट्री थी, पेट्रोल पम्प था, होटल था, दाखिला था, सन्दूकची और बन्दूकची के इस जमाने में, आज की बात करें तो मुख्य रूप से शिक्षित और निरक्षर बंट गए हैं। उच्च और नीच सीढियाँ बंटी हैं। शक्तिशाली, शक्तिवान और कमजोर-दलित आदिवासी पहले से कहीं जयादा तीखी बांट से बंटे हैं। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के नाते जो एक-दूसरे के नजदीक थे, वह अब एक-दूसरे के पक्ष के खिलाफ बंटे हैं। वही विरोध अध्यात्म का संकीर्ण आख्यान बार-बार। <br /> <br /> हमें सवधान होना होगा। साहितय में भी इसकी बांट शुरू है। हिंदू लेखन, मुस्लिम लेखन, हिन्दुत्व लेखन, महिला लेखन, ब्राह्ण लेखन, ठाकुर लेखन और न जाने कितने-किनते कुल गोत्रों के लेखन। <br /> <br /> कुछ तो हम भी सीखें! राजीनतिक दलों की नीतियों, कूटनीतियों से अलग अपने में तालीम जगाएं इस बड़े राष्ट्र भारत की भारतीयता को जीने की। राजनीतिक स्तर पर भारतीय नागरिक मतदान पेटी से आगे बढ़कर अपने को नागरिक के खाँचे में स्थिर कर रहा है.<br /><br />रचनात्मक साहित्य का श्रेष्ठ चुनने और उसे अंकित करने के निष्काम मगर व्यावसायिक आयाम किसी से छिपे नहीं। आलोचना अपने साहित्यिक मूल्यों के सन्दर्भ में से किसी लेखकीय अभिव्यक्ति को असाधारण और 'विशेष' विशेषण से प्रतिष्ठित करती है, किसे सिर्फ शिल्प के नाम पर खारिज करती है. यह प्रक्रिया सिर्फ दिलचस्प ही नहीं, खुले रहस्यों को भी चमत्कृत करती है। फिर भी कहना होगा कि कुछ बचता है तो अच्छे लेखन को सहज रूप से सत्कारता-स्वीकारता है-आलोचक और पाठक। अब वह राजनीतिक मुदृों को समझने की तालीम रखता है। क्या गलत है, क्या सही, क्या होना चाहिए, क्या नहीं होना चाहिए। हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों का वह जनता-जनार्दन द्वारा स्वीकार है। अब वह नागरिक धर्म के नाम पर उलझाए गए साम्प्रदायिक झगड़ों को आर्थिक सम्भावनाओं के सम्मुख रखकर देखने लगा है। नागरिक अधिकारों की ओर उन्मुख है वह जिन्होंने इसे अर्जित किया है। दलों की अंधाधुंध मनमानी पर नागरिक-संस्कृति अंकुश लगाने की स्थिति की ओर बढ़ रही है। मतदाता राजनीतिक दलों से उनके पारदर्शी होने की माँग कर रहा है.<br />नागरिक अब शासन-तंत्र और व्यवस्था में फर्क करता है। न्यायपालिका ने, साधरण-जन में अपने राष्ट्र के प्रति आस्था और विश्वास जगाया है। मानसिक आतंकवाद के तहत फैलायी जानेवाली बर्बर हिंसात्मक निरंकुशता और शोषण का विरोध हमारे मूल अधिकरों से जुड़ा है। आज नागरिक की एक ऐसी सरकार चाहिए जो सामाजिक विभिन्नताओं और राजनीतिक विषमताओं को अबूर कर बढ़े राष्ट्र का वजूद सुदृढ़ करे। राजनीतिक दलों के आपसी विरोध-गतिरोध को अलग रख राष्ट्रीय अस्मिता के मानदंड कायम कर सकें। <br /> <br /> स्थितियों, मुदृों और बेहतर जिन्दगी को पढ़ने की यह भाषा न सिर्फ नगरों, महानगरों के रहनेवालों के पास होनी चाहिए। देश के दूर दराज के गाँव -कस्बे भी इस भाषा द्वारा अपना-अपना भविष्य देखने के अधिकारी हैं.<br /><br />साफ़ हो यह बात कि स्त्री -पुरुष इस धरती पर जीवन की अटूट धारा को सुरक्षित रखनेवाले हैं। एक-दूसरे के निकटतम हैं। साथ-साथ पलते हैं, एक साथ घर बनाते हैं, बच्चे को जन्म देते हैं, परिवार बनाते हैं, इस दुनिया को खूबसूरत बनाकर जाते हैं। लोक की धड़कती ऊर्जा को जीवन्तता से कायम करते हैं। इन दो मानवीय किस्मों - स्त्री और पुरुष के बीच पनपता रोष, विरोध, हिंसा जीवन के यथार्थ को बनने वाले सपने को खंडित करते हैं। उसकी गरमाहट को ठंडा करते हैं। </span><span style="font-size: large;"><br />पितृपक्ष को स्त्रीपक्ष की नई भाषा, नया संस्कार सीखना होगा। आत्मसात् करना होगा क्योंकि परिवार की निर्णायक शक्ति की बांट स्त्री तक अगर नहीं पहुँच सकी तो पहुँचने वाली है। उसे हमारा संविधान वही अधिकार देता है जो आपको प्राप्त है। शिक्षा, कानून और स्त्री की आर्थिक स्वतंत्रता उसे पुरुष की बराबरी के लिए उकसाती है। उसने अपने लोक और अनुभव के बल पर यह प्रमाणित किया है कि वह कार्यकारी क्षमता में पुरुष से कम नहीं। नारी-अस्मिता और स्त्री-मुक्ति से जुड़े आन्दोलनों को भारतीय परिवेश में समझना जरूरी है। देवी और दुर्गा का दर्जा देकर हमने उसका मनोविज्ञान बदल दिया है। उसकी मानसिकता, देह-भाषा, आत्मविश्वास, सब पितृसत्ता द्वारा संचालित रहे हैं। वह अपनी कर्ता नहीं थी, वह दूसरों की कारक रही। दूसरों के लिए-दूसरों के निमित्त। उसे इस चौखटे के तथाकथित सांस्कृतिक चंगुल से निकलना होगा। एक व्यक्ति की हैसियत से समाज में अपने को स्थापित करना होगा। खुद की निगाह से देखना होगा अपने को, अपने को प्रमाणित करने के लिए ऐसा करना न मात्र विद्रोह है और न पितृसत्तात्मक पर प्रहार। इसका इतिहास बहुत पुराना है, उतना ही जितना स्त्री-ऊर्जा और उसकी संभावनाओं की मुटृठी में जकड़ने का व्यवस्था-विधान। आदर्शों और महिमामंडित ममता की ऊँचाइयों में स्थापित कर उसकी गरिमा और उसका गुणगान काफी न होगा।<br /></span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="line-height: 115%;">सिर्फ परिवार-कुटुम्ब के पोषण और संचालन की भावनात्मक क्रियाएँ ही अब स्त्री की उपलब्धि नहीं। उसके होने का कथ्य और जैविक प्रभाव समाज की व्यवस्था से सरककर उसके व्यक्तित्व में केन्द्रित हो रहा है। ग्रामीण संसार की वह निरक्षर महिलाएं भी- जो कुछ भी कमा सकती हैं- अपनी 'बेगार' भाव-मेहनत के बदले अपने में बदलाव महसूस करती हैं। यह पूरी प्रक्रिया उसकी अस्मिता का बिन्दु है। वक्त कितना भी लगे, पुराना स्त्री-धर्म अपने स्वभाव के क्रान्तिकारी परिवर्तन से गुजर रहा है। मात्र सेक्स और हाथ की मजदूरी की भूमिका में से उभरती स्त्री-छवि अपने को बदलने के लिए कटिबद्ध है। वह पुरानी सांस्कृतिक मान्यताओं और वैचारिक पुरुष परम्पराओं को चुनौती दे रही है। ऐसे में दोनों- स्त्री और पुरुष की जांच एक-दूसरे करी पड़ताल के बिना अधूरी होगी। नईनई परिस्थितियों में नया शास्त्र-विवेचन जरूरी होगा। स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के निकटतम हैं। घनिष्ठ हैं, मित्र हैं, पूरक हैं। स्वामी और दास नहीं। किसी के भी तनाव को, रोष को, विरोध को हमें किसी एक में नहीं देखना होगा। किसी एक को नहीं देखना होगा। नीचे-ऊपर से नहीं, आमने-सामने से बराबरी का संवाद करना होगा। इसी पृष्ठभूमि से नत्थी है वह निरक्षर, अशिक्षित वर्ग भी जो हमारी जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग है, जो लिखित को न पढ सके। जब नागरिक की आँखें अक्षर न पहचान सके, पंक्ति को न चीन्ह सकें तो बेचारगी, झुंझुलाहट, हिंसा, घृणा और खौलती आक्रामकता! हमें हमारे राष्ट्र को साक्षर करना होगा। यह हम पढ़े-लिखों का बयान नहीं, निरक्षरों की ओर से पैगाम है। इसी से बावस्ता हैं हम लेखकों की संभावनाएं और राष्ट्र के अच्छे भविष्य की कामनाएं। हमारे जीवन में दूर तक घर करती टैक्नोलाजी की शताब्दी में हम उन्हें निरक्षर क्यों छोड़ दें। </span><br /> <br /><span style="line-height: 115%;"> एक देश में जन्मने के रिश्ते बहुत गहरे होते हैं। जो हमारे हिस्से में है और दूसरों के पास नहीं, इसे सुलझााने के भी रास्ते बहुत होते हैं। शिक्षित नागरिकों पर यह जिम्मेदारी है। </span><br /> <br /><span style="line-height: 115%;"> औकात में एक छोटी सकी कलम। नाम से सिर्फ एक लेखक। इससे अलग कोई दूसरी पहचान मेरे पास है ही नहीं। मैंने इस लेखकीय संज्ञा को, साधारणता की असाधारणता को खुद अपने अहद में जिया है. लगभग अपनी शर्तों पर. बेझिझक कह सकती हूँ कि लेखक के वजूद और व्यक्तित्व में अगर कुछ भी संचित है तो वह साधारणता का ही विशेष है.</span><br /><span style="line-height: 115%;"> साधारण में अपनी ही लचक है. वह लेखक के निकट किसी भी अन्य गुणात्मकता से सहस्र गुना महत्वपूर्ण है. अपने को लेकर रचनाकार के सम्बन्ध कभी भी सरसरी नहीं होते. रागात्मक सम्बन्धों की हद से भी गहरे और दूर तक उसके दिल-दिमाग और देह से गुँथे होते हैं. यह गहरी गुँथ किसी भी छोटे-बड़े लेखक के निकट मूल्यवान है. सच तो यह है कि यही उसका सरमाया है.मूलधन है. यही लेखक के पाठ में प्रवाहित होता है.</span><br /><span style="line-height: 115%;"> प्राचीन,प्रौढ़,नए और युवा बच्चे – एक ही देश, एक ही समय का जीते हैं. जिए हुए की अपनी पवित्रता होती है. अपना स्थापत्य भी. जो पुराना हो चुका है वह कम पुराने के सामने खडा है. आधा पुराना और आधा नया, नए के सामने खडा है. बिलकुल नया है जो वह अपने से आगे के नए को देख रहा है. किसी भी देश का वृतांत देश की जनता बनाती है और जनता के चैतन्य को बुद्धजीवी बिरादरी अंकित करती है. अपने हवाले से इतना कह सकती हूँ कि लिखना मात्र लिखना नहीं. लिखना और जीना, दो नहीं, एक है. एक ही. सुनने में लग रहा होगा, लेकिन इतना सहज है नहीं. लेखक के अन्तरंग में, अवचेतन में न जाने किस-किस के वितरण – वृतांत-वाक्यांश भरे पड़े हैं. कहीं से एक हलकी-सी आहट, मौन-सी खटखटाहट, शिराओं में कोई भूली- बिसरी झनझनाहट- और आप चौकस हो उठते हैं. चौकन्ने. क्या कोई परिचित-अपरिचित आँख से भला क्या देखा. क्या पावन पन्ने के सतह ! क्या स्मृति का प्रतिबिम्ब ! जो भी है, जहाँ से है लेखक को उसे लिखकर ही प्रमाणित करना होता है. आखिर इन मानवीय संवेदनों को प्रस्तुति में ही उद्घाटित होना होता है.</span></span><span style="font-size: large;"><span style="color: black; line-height: 115%;"><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; line-height: 115%;"><br />रचना लेखक के हाथ का खिलौन नहीं। वह उसके आध्यात्मिक पर्यावरण का, उसकी आत्मिक संरचना का परिष्कार है। सच तो यह भी है कि जिस लिपि में, भाषा में लेखक स्वयं को जीता है-अपने आसपास को शब्दों की बन्दिश में बांधता है, वही उसके पाठ में प्रवाहित भी होता है। साहित्य की समग्रता में।</span></span></span><br />
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;">लेखक के निकट लेखन भी मौसम है।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;">हर कृति एक नया मौसम- एक नई यात्रा।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;">हर कृति के साथ आप पुराने पड़ जाते हैं और नए हो उठते हैं। उससे जुड़ा रहता है स्वभाव का निर्वकार। प्रतिस्पर्धा के इस मौसम में भी मैं अदबी दौड़ में न किसी को पछाड़ने की फिक्र में न किसी से पिछड़ने के आतंक में। यह तालीम साहित्य ही लेखक को देता है। आप दूसरे के नाम से अपनी हाजिरी नहीं लगा सकते। ऐसे में इरादा सिर्फ इतना ही कि जितनी माशा-रत्ती, माशा-तोला, जो भी प्रतिभा परिश्रम आपके हिस्से में आए हैं, उसकी देख-रेख जतन से करें और भरसक कोशिश रहे कि उस पर आंच न आने पाए। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;">अपने भावबोध की, पाँव तले जमीन पर खुद्दारी से डटे रहो। लेखक के लिए यह मुश्किल समय है। उलझे हुए-पेचीदा इन समयों को लेखक अंकित करेंगे- अपने में कोई एक दूसरा-तीसरा जगा कर! होते हैं, छिपे रहते हैं लेखक के एक में तीन! शर्त एक ही कि पांव तले की जमीन से उखड़ो नहीं। पांव के जूते न पैर के माप से बड़े हों और न छोटे हों। कुछ ऐसे कि बिना किसी चिन्ता और परेशानी के आत्मविश्वास, आत्मबल से उभरते उदात्त और उसकी प्रेरणाओं को मुखरित करें- अपनी छोटी सी लेखक की हस्ती को बरकरार रखते हुए। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;">सिर उठाकर चलो कि हम स्वतंत्र देश के लेखक हैं। प्रबुद्ध हैं। लेखक की गरिमा उसके लेखन में है, मात्र संगठनों, संस्थानों और मंचों में नहीं।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;"><span style="color: black; line-height: 115%;"></span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span><br />
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: start;">
<span style="font-size: large;">इस महादेश का साहित्य और साहित्यकार अपने विचार में नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता। 'लोक' की प्रतिष्ठा में हमारा राष्ट्र लोकतन्त्र है और हम लेखकगण लोकतन्त्र में विश्वास रखते हैं। </span></div>
</div>
<br /></div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-2352330165358598002017-09-03T14:08:00.000+05:302017-09-09T06:21:48.387+05:30अग्निगर्भा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgg85e8ktPELxMU9aDcZDvmDADafz8JKC6Hl00I7KG7ddgdU1rgH6gQfnvVkOBGBdhIaj2Tjj2BYcjhRBbvKhyphenhyphenBCKLB9cDSqPReQRu5eAMfrsElCsqoy2POnltsadV0YJbLPIB2-_M1Vik/s1600/582512_481772191870612_1305185883_n.jpg" style="font-size: x-large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgg85e8ktPELxMU9aDcZDvmDADafz8JKC6Hl00I7KG7ddgdU1rgH6gQfnvVkOBGBdhIaj2Tjj2BYcjhRBbvKhyphenhyphenBCKLB9cDSqPReQRu5eAMfrsElCsqoy2POnltsadV0YJbLPIB2-_M1Vik/s320/582512_481772191870612_1305185883_n.jpg" /></a> <br />
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<b style="background-color: #fce5cd;">"<span style="color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">इस बार रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार के लिए निकट पत्रिका में प्रकाशित </span><a class="profileLink" data-hovercard-prefer-more-content-show="1" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100001135067914&extragetparams=%7B%22fref%22%3A%22mentions%22%7D" href="https://www.facebook.com/divyashukla.online?fref=mentions" style="color: #365899; cursor: pointer; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; text-decoration-line: none;">Divya Shukla</a><span style="color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">दिव्या दीदी की कहानी 'अग्निगर्भा ' का चयन किया गया है। स्त्री मन को सहजता से परखती, पुरुष के खोखले अहंकार पर चोट करती सशक्त कहानी लिखने और रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार के लिए ढेरों बधाइयाँ और </span><span class="_ezo" id="u_fetchstream_2_b" style="color: #f1765e; cursor: pointer; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">शुभकामनाएं</span><span style="color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"> दीदी को!</span></b><br />
<span style="background-color: #fce5cd; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"><b>अग्निगर्भा कहानी फरगुदिया पाठकों के लिए..!"</b></span><span style="font-size: x-large;"><br /><br />अग्निगर्भा<br />-------------</span><br />
<span style="font-size: large;">ठाकुर केदारनारायण सिंह की तिमंजिला कोठी में जश्न मनाया जा रहा है |</span><br />
<span style="font-size: large;">देर रात तक ढोल टनकती रहती ,जुग जुग जिए रे ललनवा ,के अंगनवा के भाग जागे ,</span><br />
<span style="font-size: large;">जच्चा बच्चा ,सोहर नटका सब चलता ,बेसुरी हो या सुरीली सभी बहुएँ गाने को उतावली थी |</span><br />
<span style="font-size: large;">आखिर बड़ी बहू की गोद जो भरी थी , गाँव की पुरनिया औरतें कहती ऐ भला सुने रहीं अब देखयु लिहिन पथरे पै दूब जामि आई है |</span><br />
<span style="font-size: large;">केदारनरायण जी के दो बेटे है बड़ा बेटा रूद्र प्रताप सिंह ,उनसे आठ बरस छोटा महेंद्र प्रताप | बीस बरस पूरा होते ही रुद्रा के ब्याह के लिए ठकुराइन काकी लड़की छांटने बेराने लगी ,हर शादी ब्याह में आई बिरादरी की सुंदर लड़की देखते ही उसका सिजरा निकलवा लेती | और गुपचुप तरीके से कुल खानदान ,कन्या का चालचलन सब कुछ पता करवाती ,उसके बाद कुंडली भी मिलवाती | पंडित जी को मोटी दक्षिणा दे कर सबसे पहले यही पूछती कन्या की कुंडली में पुत्रयोग है या नहीं बल्कि कई सुंदर सुशील लडकियां तो बस इसी कारण ठुकरा दी गई क्यों की उनकी कुंडली में कन्या का योग प्रबल था और ठकुराइन काकी कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती थी |</span><br />
<span style="font-size: large;">उनको पोता खिलाने की बड़ी लालसा थी ,ठाकुर कक्का भी अपनी मूंछ के नीचे मुस्कराते रहते | अपने वंश के कुलदीपक की कल्पना में खिल जाते " कहते तुम सही कह रही हो अब बस रुद्रा का ब्याह हो ही जाना चाहिए , घर में कोई कमी तो है नहीं ऊँची दुमंजिला हवेली शान से सर उठाये खड़ी है ,सैकड़ों बीघा खेती है बड़ी उपजाऊ जमीन है ,आखिर अब हमारी वंश बेल को बढाने वाला तो आना ही चाहिए वरना किसके लिए यह सब बनाया है क्यों ठकुराइन ? “--”सच कह रहें हैं आप फिर वंश बेल भी तो कुंवर कन्हाई से ही बढ़ेगी " |</span><br />
<span style="font-size: large;">........सच में कोई कमी नहीं थी कोठी की सबसे ऊँची छत पर खड़े हो कर देखने पर जहाँ तक निगाह जाए सारी जमीने इन्ही की है ,महुआ जामुन के ढेरों पेड़ , केवल दशहरी आम के बाग़ ही हर फसल पर लाखों में बिक जाते | उस पर देसी आम के भी ढेरो पेड़ भी थे | काका ,काकी ने कभी देसी आम नहीं बेचा , यह हमेशा परजा और गाँव के बच्चो के खाने के ही लिए छोड़ दिया जाता |</span><br />
<span style="font-size: large;">पकी सींकर के लिए अक्सर ही बच्चो में सर फुटौवल होती ही रहती |</span><br />
<span style="font-size: large;">हालंकि रुद्रा भईया हमेशा कहते " इन्हें भी बेंच दीजिये बाबू जी चार पैसे क्या काटते है आप लोगों को ,एतना दया धर्म की कवनव जरूरत नाही " ...पर कक्का डपट देते बेटे को .... " अपने राज में करना ई चिरकुटई जब तक हम दुइनव परानी जिन्दा है ऐसन चली " बड़ा करेजा था काका काकी का , सारा गाँव अपना कुनबा ,चाहे बड़े घर के हो या छोट जाति के काकी कबहू कमी नहीं की व्योहार में |</span><br />
<span style="font-size: large;">आखिर बडके भईया की शादी तय हो गई | रूद्र प्रताप को सब गाँव घर में बडके भईया पुकारते है काकी ने तो कभी उनका नाम नहीं लिया , वो कहती " जेठ बेटवा कय नाम नाही लीन जात " |</span><br />
<span style="font-size: large;">उनकी बड़ी साध थी पतोहू उतारने की ,आखिर वो दिन आ ही गया जब चंदा बहू उतरी बड़े आंगन में | दुलहिन नाम से ही नहीं रूप से भी चन्द्रमा थी | अंजोर हो गई केदारनारायण सिंह की कोठी | काकी के तो पाँव ही नहीं पड़ते जमीन , में बिहंस बिहंस पड़ती ,इतवार मंगल नजर उतरवाती चंदा बहु की | पल पल मुंह निहारती ... " कुछ खा लेव दुलहिन ...मुंह झुराय गय... देखा त कैसयन गुलाब के फूल अस लाल लाल ओठ मुरझाय गय |</span><br />
<span style="font-size: large;">" अब बिचारी कितना खाती ,चंदा बहू बहुत गुणवंती रही ,मुंह अंधियारे भोरे ही उठ के स्नान कर लेती ,सास ,ससुर के पाँव आंचल से सात बार धर के माथे लगाती ,अंगना के कोने में बने मन्दिर की झाड पोंछ कर दिया जला देती | उनकी पायल की रुनझुन से घर आंगन गुनगुना उठता | धीरे धीरे काकी के सारे काम समझ लिया उन्होंने |</span><br />
<span style="font-size: large;">ठाकुर खानदान की एक पुरानी बखरी गाँव के दुसरे छोर पर थी | इस बखरी को केदार कक्का के परबाबा यादवेन्द्र सिंह ने बनवाया था इसे सब बब्बा की बखरी कहते थे | एक जमाने में बड़ी रौनक होती थी यहाँ | अब तो गाँव में छोटे या बड़े किसी भी घर में बेटी का ब्याह होता तो बारात का जनवासा यही दिया जाता |</span><br />
<span style="font-size: large;">बाकी समय गाँव भर के खलिहर लड़के यही पर जमावड़ा लगाते ,आजकल तो उन्ही के साथ रुद्रा भईया भी बैठकी करने लगे थे |बियाह के बाद से तो उनका ज्यादा समय घर से बाहर ही गुजरता |</span><br />
<span style="font-size: large;">शुरू शरू में तो सब को लगा माँ बाप का लिहाज़ है जभी लड़का दिन दोपहर अपने कमरे में नहीं जाता |</span><br />
<span style="font-size: large;">,गाँव के बूढ पुरनिया तो नए ब्याहे लड़कों को सुना कर तीखे शब्द बाण छोड़ते ... " आजकल के लौड़े लपाड़ों को लिहाज़ ही नहीं सरम लिहाज घोर घार के पी गए सब ,घरघुस्सू होई जात है मेहरारू के मुंह देखत मान .......अरे रुद्रा बेटवा से तनी सीख ले , कितना लिहाज़ है महतारी बाप ,नात बात सबय के ........ मजाल है कबहू दुलहिन के साथ बाहर दिखाय पड़े ...........अरे ऊ घर के अंगना में भी नहीं सबके सामने बोलत बतियात नहीं दीखते बडकी दुलहिन से " |..</span><br />
<span style="font-size: large;">नाते रिश्ते गाँव घर की नई नवेली दुल्हिनो को चंदा बहू का उदाहरन दिया जाता , जरा देर से आँख खुली नहीं कि दिन भर तीर चलाने का मौका मिल गया सास को |</span><br />
<span style="font-size: large;">पड़ोस वाली तिवराइन चाची तो अक्सर ही अपनी सिर्फ पांच महीने पुरानी बहू को जिस दिन भी उठने तनिक भी देर हो जाती यह श्लोक दिन कई कई बार सुनाती ..... " अरे सीख लो कछु चंदा बहू से ... तुमसे बडवार घरे की बिटिया ..... जैसन नाम वैसन रूप ....भोर होते ही सास के पाँव पर मस्तक नवाती है ...एक तुम दरिद्र की बिटिया ...... चार चिंदी और नान नान झाबा मा बतासा लाई .......और गुमान इतना ....सूरज देउता खोपड़ी पर चढ़ आये अभी महारानी की आँख नाही खुली .....अरे ऊ तो मर्द जात है ओकर कैसन बराबरी ....रात भर ठिल्ल्बाज़ी करिहै मेहरारू , मन्सेधू --अउर दिन चढ़े तक किवाड़ बंद ,लाज सरम सब बेंच खाएँ है --- ऊ का कहत है की --- तू पिया सुंदर ,मै सुकुवार /दूनो जने सोई ,होय भिनसार -- एनका बस चले तो दोपहरिया तक भतार का लई के सोवत परी रहें " |</span><br />
<span style="font-size: large;">दिन ,महीना साल बीतते देर नहीं लगती ,साल भर तो ठकुराइन काकी चंदा बहू पान फूल की तरह फेरती सहेजती रही , चिड़िया चुनमुन की तरह चुगाती ,अपने साथ ही खिलाती ,फल काट कर कमरे में रख आती कहती -- " लरिका है सरमात है हमरे सामने --जब देह संभरी तब्य तो हमरी गोद में कुंवर कन्हाई देई --अबय कमजोर है " रूद्र बाबू को कभी घोसती रहती तो कभी बहुत दुलार से कहती " दुलहिन को ले जाओ भईया घुमा लाओ बैजू से बोल कर गाडी निकलवा लो दुलहिन को सहर घुमाय ले आओ ,बाजार से ओकरी पसंद से जवन चाहे देवाय दो ,तनी गहना गुरिया गढ़वाय देव पहिरे ओढ़य की इहे त उमिर है "</span><br />
<span style="font-size: large;">नवा सनीमा लगा है देख न आओ तुम दोनों " ....गाँव से लगे कसबे में सिनेमा हाल है .....सभी नई उमर के जोड़े कभी इजाजत ले कर तो अक्सर छुप पर पिक्चर देखने जाते , बहाना होता मन खराब है तबियत ठीक नहीं है डाक्टर से दवाई ले आये ..... आते समय दुकान से विटामिन और दर्द की गोलियां ले आते .....चोरी का गुड कितना मीठा होता है यह उन के चेहरे पर दिख जाता |</span><br />
<span style="font-size: large;">पर रूद्रप्रताप नहीं गए तो नहीं गये -- इतनी सुंदर सुघर पत्नी ......और कोई होता तो दिन दोपहर इर्दगिर्द भंवरे की तरह मंडराता रहता .....नई नई शादी का यह प्रेम हर पल पाने की यह लालसा स्वाभाविक होती है |</span><br />
<span style="font-size: large;">चंदा बहू की आँखे दरवाज़े की ओर ही लगी रहती हर पल बाट जोहती लेकिन वो क्या कहती किसी से --उनके दिन द्वार पर टकटकी लगाये और रातें करवट बदलते गुजरती है |</span><br />
<span style="font-size: large;">पहली बिदाई में जब मायके गई तो ,सभी सखी सहेलियों ने घेर लिया | भौजाइयों ने भी चुहल करनी शुरू कर दी | सभी उसे खोद खोद कर मिलन यामिनी की एक एक बात पूंछ रही थी -- वो मुस्करा भर दी , माँ ,चाची की अनुभवी आँखों ने कुछ ताड़ जरुर लिया ,शक तो बड़ी भाभी को भी हुआ पर सब को उसने बहला दिया | आश्वस्त हो गए सब ,महीने भर रह कर वापस आ गई |</span><br />
<span style="font-size: large;">सास बहु में प्रेम ही कुछ ऐसा था ,काकी का मन ही नहीं लग रहा था घर की दुल्हनियां बिना ,पर रुद्रा ने एक बार भी न पूछा | माह बीत गया कोई चिट्ठी न संदेस | अब तो गाँव के डाक घर में टेलीफोन भी था , और डाकघर घर के एक कमरे में ही खुला था |</span><br />
<span style="font-size: large;">चंदा के बाबू जी ब्लाकप्रमुख और दबंग ठाकुर थे इलाके के ,सो फोन सेवा उधर भी थी ,पर इससे क्या जब चाह ही न हो | ....हाँ सास बहू जरुर बतिया लेती और ठाकुर कक्का भी अपनी रानी बहु का हाल लेते रहे ....अपने मायके में ससुराल का भरम बना , अपनी सखी सहेलियों से झूठे सच्चे किस्से सुना कर उन्हें संतुष्ट कर वापस अपनी ससुराल लौट आई रुद्रा बहू |</span><br />
<span style="font-size: large;">जैसे जैसे समय बीता ठकुराइन की अकुलाहट बढ़ने लगी --अब ठाकुर केदारनारायण भी पत्नी से हंसी मजाक में कह जाते " अरे कब दावत करवा रही हो ---अबकी बड़का ब्रह्मभोज अलग से करेंगे चाहे जितने लोग आवें ---देवी मैया को बलि दे कर बिरादरी के खाने -पीने का भी इंतजाम रहेगा ..........आपको याद है ठकुराइन रुद्रा के जन्म पर कितना जोर दार नाच गाना हुआ था .....</span><br />
<span style="font-size: large;">अब उसके बेटे के जन्म पर उससे बढ़ कर ही होना चाहिए ... "अपना बस कहाँ -- देवी मैया कृपा करे जल्दी ई दिन देखय को मिले " .....काकी बीमार रहने लगी थी .....मन्दिर मन्दिर माथा टेकती --पीर फकीर कुछ नहीं बाकी रहा ......कोई पंडित महात्मा सुनती दौड़ जाती बहुरिया को ले कर ........दान दक्षिणा ,व्रत नेम धरम सब कुछ कर डाला |</span><br />
<span style="font-size: large;">..</span><br />
<span style="font-size: large;">इधर रुद्रा ठाकुर का जमावड़ा बाबा की बखरी में दिन दिन भर लगा रहता | वही देर रात तक टेपरिकार्डर बजता गाना सुना जाता भांग घोटी जाती .....दूध घी की कोई कमी तो थी नहीं , मुगदर भांजते और कटोरा भर बादाम और घी पी जाते , उस पर खालिस दूध सीधे थन से निकाला हुआ लोटा भर के डकार लेते | कसरती शरीर ,उघार देह पर मछलियाँ मचलती दिखती ,ऐसी देह बनाई थी रुद्र ठाकुर ने |</span><br />
<span style="font-size: large;">रात पहर भर बीत जाती तब जाते सोने और भोरे ही फिर यही मजलिस में हाज़िरी लग जाती | कभी अगर चंदा बहू मनुहार भी करती "आज तनिक जल्दी आ जाव --दोपहरिया में घर पर खाना खाय लेव " तो आँखे तरेर देते और बेचारी चुप हो जाती , चंदा बहू तो जैसे धरती मईया से सहन शक्ति आशीष में मांग लाई थी |</span><br />
<span style="font-size: large;">न तो उनकी चादर कभी मैली हुई न ही भोरे भिनसारे कभी बाल धो कर उन्होंने सास का पाँव छुआ ....वह तो उठते ही सीधे पहले अपनी अम्मा के पाँव पर मस्तक नवाती फिर गुसलखाने में जाती ,काकी ने यह बात बड़ी बारीकी से गौर किया .... " दुलहिन वैसी ही कोरी लागे जैसे बिदा करा के लाई थी ".......कई दिन सोचती बिचारती रही ,बड़े ठाकुर केदार बाबू से सलाह मशविरा किया बहुत देर तक बैठक बंद कर के बात हुई |</span><br />
<span style="font-size: large;">फिर निर्णय हुआ शहर ले जा कर बहू को डाक्टरनी को दिखाया जाय ,ई बैद हकीम के बस का नहीं | धीरे धीरे पांच बरस बीत गए ,हम दूनो प्राणी तो अब भगवान भरोसे ही है ..........शहर की डाक्टर ने चंदा को देखा ......खून की जांच करवाई .... " कमजोर तो हो ही गई है दुलहिन काकी बोली " .. डाक्टर से कुछ पूछना चाह रही थी पर वो उन्हें दुसरे केबिन में ले गई और जब काकी वहां से निकली तो उनका मुख सफ़ेद था | बहू ने कहा ......... "अम्मा क्या हुआ तबियत खराब है क्या?...</span><br />
<span style="font-size: large;">डाक्टर हमारी अम्मा को देखिये इनके हाथ पाँव क्यों ठंडे हो रहे है ? " ---" कुछ नहीं हुआ सब ठीक है आप इन्हें ग्लूकोस दीजिये ..और अपने पति से कहिये वह अपनी जांच करवा लें .... यह विटामिन की गोलियां लेती रहें सब ठीक है आप में " |</span><br />
<span style="font-size: large;">गाँव लौटते समय काकी रास्ते भर सोचती रही ,महेंद्र के बाबू जी को का बतायेंगे , बड़ी आस पाले है गोद में पोता खिलाने की ,अब ललक तो उनको भी तो है पर क्या करें , बियाह के पांच बरस हो गए कोई महीना ऐसा नहीं गया जब दुलहिन चार दिन रसोई से फुरसत न की हो अचार खटाई से दूर रहती उन दिनों बाल धोने के दिन कभी आगे पीछे न होते काकी लाख मनौती मानती तब भी हर महीने निराश हो जाती |</span><br />
<span style="font-size: large;">अब तो काकी ने चमत्कार की आस पाल रखी थी ,पर आज डाक्टरनी की बात से मानो बज्रपात होई गया , वो अकेले ही बडबडा रही थी " ई का देवी देउता है ,चार किताब पढ़ के केहू के भाग लिख देइहैं " सोचते बिचारते अपने आप को समझाते रास्ता कब पार हो गया पता ही नहीं चला |</span><br />
<span style="font-size: large;">घर पहुँचते ही देखा केदार बाबू बाहर ही बरामदे में बेचैन हो कर चहलकदमी कर रहे है |</span><br />
<span style="font-size: large;">गाड़ी रुकते ही खुशखबरी सुनने की आस लिए काकी की ओर देखा और बोले ---" रुद्रा की अम्मा बड़ी डाक्टरनी ने जांच किया क्या बताया ? " ---</span><br />
<span style="font-size: large;">काकी उनका मुंह निहारती रह गई | बालकों जैसी चमक थी उनकी आँखों में जैसे कह रहे हो कब आएगा नन्हा खिलौना हमारे आंगन में | .... " अरे सांस तो लेने दें बताउंगी सब बताउंगी --पर फुरसत से " ----</span><br />
<span style="font-size: large;">" अरे मलकिन हमहूँ को बताव तो कब बाबा कहे वाला आई ,वैसे तो अबहूँ हमार ठकुराइन गवने की दुलहिन लागत है और हम बांका जवान ,सुनो अगर तुम चाहो तो तीन चार बेटवा अबहूँ पैदा कर लें ".----</span><br />
<span style="font-size: large;">---" ह्त्त बहुत बेसरम होई गए आप तो बहू आय गई पर साध नहीं गई , भजन कीर्तन की बेला है अब तो ".....</span><br />
<span style="font-size: large;">.. " तो तुमहीं करो भजन कीर्तन फिर न हमको दोस न देना ......अरे घर में भूखा रखोगी तो बाहर खायेंगे ही ..........फिर तुनतुनाना मत ,अरे मनुष्य है कवनो देवता नहीं इससे तो देवता भी नहीं बच पाये ........तुम ही थी जो हम जैसे छुट्टा सांड को नाथ ली ........गवने की पहली ही रात न जाने कौन सा मन्तर फूंका कि ऊ बेला और ये आज का दिन तुम्हरे आंचल में पड़े है ये केदार बाबू " ----</span><br />
<span style="font-size: large;">कह कर धीरे से काकी को टीहुनिया दिया और ठठा कर हंस पड़े | लाज से लाल हो गया ठकुराइन का मुख मन ही मन तो निहाल हुईं पर आँख तरेर कर चंदा बहू की ओर इशारा किया ...... "अब चुप भी रहो तुम " ......." अच्छा तो बताओ क्या बोली डाक्टरनी ? "......" अरे कुछ नहीं सब ठीक है बस जब देवी मैया की इक्छा होगी तो दुलहिन की गोद भर जायेगी ........सुनो एक बात कहें महेंद्र के बाबू " ..... " हां बोलो न "</span><br />
<span style="font-size: large;">........... " अपना छोटका की भी तो बियाह की उमिर हो गई है ---- अब उसके लिए अच्छे खानदान की लड़की देखे आप ........ इधर रामा नाऊ से जिकिर भर करे उधर अपने आप बात फैल जायेगी ...और देखवार आने लगेंगे " ........महेंद्र ने इसी साल बारहवी का इम्तहान दिया था |</span><br />
<span style="font-size: large;">...पढने में तेज़ था ........... " अब सत्रह बरस का हो गया है लड़की देखते देखते साल बीत ही जाएगा ...तब तक अट्टारह साल का भी हो जाएगा ,,, इसी गर्मी में शादी ठान लेते है " काकी ने पति से कहा .... यह बात छेड़ कर पहली बार कुछ छुपाया उन्होंने डाक्टरनी की आधी बात ही बोली वह ---</span><br />
<span style="font-size: large;">युधिष्ठिर की भाँती ......अश्वथामा हतो ,,,नरो वा कुंजरो .....जैसा कुछ बोल कर टाल गई |</span><br />
<span style="font-size: large;">पति से जीवन भर झूठ नहीं बोली अब सच कह कर कैसे ठेस लगायें ... खुद पी गई हलाहल और रोक लिया कंठ में नीलकंठ की भांति |</span><br />
<span style="font-size: large;">" बहू से भी कुछ नहीं कहा बस इतना की बड़का भईया आपन जांच करवा ले तो .....तो मन शांत हो जाय " .... " अरे सब ठीक होई .....डाक्टर के चोंचले है पैसे के लिए " काकी बोलती जा रही थी --</span><br />
<span style="font-size: large;">"हूँ " कह कर रह गई चंदा ---काकी ने अब अपनी आस महेंद्र पर टीका दी |</span><br />
<span style="font-size: large;">तेज़ी से लड़की देखने का सिलसिला चल पड़ा ---- "बडकी दुलहिन के मायके से ही अगर छोटके के लिए लड़की मिल जाती तो बहुत अच्छा रहता " ---पर चंदा बहू के कोई बहन थी नहीं नाते रिश्ते में भी सब बियाही बरी थी |</span><br />
<span style="font-size: large;">आखिर दो साल बीतते बीतते महेंद्र बाबू घोड़ी चढ़ ही गये ....पर ब्याह से एक पहले शर्त रख दी " लड़की तो भौजी ही पसंद करेंगी " |</span><br />
<span style="font-size: large;">अब भौजी के लाडले देवर जो थे माँ जैसा सम्मान भी देते और दोस्त जैसा मान भी |</span><br />
<span style="font-size: large;">.जिद ठान बैठे " जिसको भाभी हाँ करेंगी हम उसी से ब्याह करेंगे "..... सास के साथ चंदा भी देवरानी देखने जाती और आखिर में चुन कर हीरा लाई अपने लाडले देवर के लिए |</span><br />
<span style="font-size: large;">---लड़की की फोटो भी मांग लाई उसकी माँ से ....महेंद्र बबुआ को दिखा कर छुपा लेती ........."अब दिखा भी दो भौजी देखे तो कौन हुस्न परी छांटी हो तुम .....</span><br />
<span style="font-size: large;">कोई भी हो तुम्हारा देवर बीस ही रहेगा " ..........</span><br />
<span style="font-size: large;">. " अब बबुआ अब तक तुम थे अब से हम देवरानी की तरफ ही रहेंगे " .......</span><br />
<span style="font-size: large;">."अच्छा पहला बदल ली बड़ी खराब हो भौजी और हमको अकेला छोड़ दिया " .....</span><br />
<span style="font-size: large;">.मुंह बिसूर कर झुट्टे ही बैठ गए महेंद्र बाबू | भौजाई का मन पानी हो गया तस्वीर थमा दी तुरत ही देवर को ----</span><br />
<span style="font-size: large;">बहुत सुंदर कन्या थी मोहनी | देवरानी जेठानी का जोड़ बराबर था | बड़े चाव से शादी की तैयारी में लग गई चंदा ,आखिर बड़ी बहू थी सारी ज़िम्मेदारी अब उन्ही की थी | काकी उन्हें बताती जाती वो निपटाती जाती | रोज़ रात को गाँव की औरते बडके आंगन में जुटती बन्ना गाया जाता ,नाच होता चंदा बहू का कंठ बहुत सुरीला था कोयल सी कूकती | नाचती तो ऐसे जैसे पाँव में बिजली लगी हो | घूँघट को तर्जनी और मध्यमा ऊँगली में दबा कर गोल घूमती तो पतली कमर लचक जाती ...और एक ओर झुक झुक जाती मानो फल से लदा पेड़ झुक जाए | ऐसी देहयष्टि की स्वामिनी पूरे दस गाँवों तक नहीं थी | बारात सजी केदार काका लांगदार धोती और प्योर सिल्क के कुरते में सजे अपनी रोआबदार मूंछो पर ताव दे रहे थे आखिर समधी थे ,रूद्र प्रताप भी बहुत प्रसन्न मन से बारात का इंतजाम देख रहे थे ,कन्या पक्ष की शानदार आवभगत से मुदित थे सभी परिजन .|.</span><br />
<span style="font-size: large;">.विवाह की रस्म पूरी हुई और महेंद्र बबुआ दुलहिन बिदा करा लाये |</span><br />
<span style="font-size: large;">काकी ने अपने छोटके की दुलहिन उतारी | परछन ,कोहबर आदि की रस्म पूरी कर दुलहिन को उसके कमरे में बैठा दिया गया | काकी ने कहा ...... " अब मुंह दिखाई बाद में होगी तनी बहुरिया पीठ टिका ले थक गई होगी ....रात भर ब्याह हुआ उसका भी जागरण ---फिर बिदाई की पीड़ा और रास्ते की थकान भी तो है " ---तभी पीछे से गाँव की भौजाई बोल पड़ी ..... " आज रात का भी तो जागरण है न काकी "........ " चुप बेसरम " ..कह कर काकी हंस दी |</span><br />
<span style="font-size: large;">महेंद्र बाबू सजे धजे बहाने बहाने से कमरे का चक्कर लगा रहे थे | ...... तनिक एक झलक दिख जाए ......पर कैसे देख पाते इतना आसान थोड़ी था दुलहिन की झलक पाना .... हाथ भर घूँघट में छुपी थी मोहनी की मोहनी सूरत | " इंतज़ार करो बबुआ रात का ...उससे पहले मुलाकात न होगी " ....चंदा भौजी ने मुस्करा कर कहा |</span><br />
<span style="font-size: large;">मुंह दिखाई हुई | चाँद का टुकड़ा थी मोहनी दोनों बहुएँ एक से बढ़ कर एक थी | काकी के भाग्य को सभी ने सराहा | शादी ब्याह का धूम धडाका खतम हुआ |</span><br />
<span style="font-size: large;">जीवन पुरानी पटरी पर लौट आया | बडकी दुलहिन अभी देवरानी को काम में हाथ नहीं लगाने देती ,बाकी का काम काज तो करने को तमाम लोग थे , पर रसोई अपने हाथ से बनाती चंदा बहू |</span><br />
<span style="font-size: large;">कई बार मोहनी ने कहा भी ..... " जिज्जी अब हमको भी बताइए कुछ करने को बैठे बैठे ऊब होती है " ... " नहीं अभी नहीं अभी कुछ दिन हँस खेल लो फिर तो ई खटराग करना ही है " |</span><br />
<span style="font-size: large;">छह महीने तक काकी के लाख कहने पर भी चंदा ने मोहनी से कोई काम नहीं करवाया |</span><br />
<span style="font-size: large;">बहुत दुलारती अपने देवरानी को |</span><br />
<span style="font-size: large;">फिर धीरे धीरे मोहनी भी सब सीखती गई बड़ा मेलजोल था दोनों में मिलजुल कर काम निपटाती , जब दोनों बहुएँ सास के पांव दाबती तो काकी मन ही मन भगवान को प्रणाम करती , घर भर गया था उनका |</span><br />
<span style="font-size: large;">साल बीतते बीतते मोहनी बहू ने खुशखबरी भी सुना दी |</span><br />
<span style="font-size: large;">मारे ख़ुशी के काकी का कंठ भर आया ..केदार बाबू ने जब सुना वो बाबा बनने वाले है ..कुछ देर चुप रहे फिर दोनों हाथ आकाश की ओर उठा इशारा किया सब उपरवाले की महिमा है आँखे नम थी ख़ुशी से ..चंदा बहू तो देवरानी को हाथ में पानी का गिलास भी थमाती | डाक्टर को दिखाने ले गई .....माँ बच्चा दोनों ठीक है कह कर डाक्टर चंदा से बोली .. "क्या हुआ आपके पति ने अपना टेस्ट करवाया ,आजकल मेडिकल साइंस बहुत आगे है बहुत से तरीके है दवाएं है --आपकी गोद भर सकती है --हां एक बात आपसे पूछना है --आपके और आपके पति में कोई मनमुटाव तो नहीं है ? " ............. " अरे नहीं डाक्टर दीदी " ........कह कर वह चुप हो गई |</span><br />
<span style="font-size: large;">छोटकी दुलहिन का सतवासा पूजा गया | खूब गाना बजाना हुआ | बड़ी धूमधाम से मोहनी की गोद भरी गई |</span><br />
<span style="font-size: large;">चंदा सबके सत्कार में लगी रही सब अच्छे से सम्पन्न हो गया | समय पूरा होने पर सुंदर स्वस्थ बेटा हुआ | हफ़्तों बधाई बजी ,मिठाई बाटी गई ,गरीब गुरबा में दान पुन्य हुआ |</span><br />
<span style="font-size: large;">अब कभी कभी बडकी बहू जिंदगी के खालीपन को सोचने लगी ,सोचती कैसे कहूँ इनसे -एक बार डाक्टर को दिखा कर जांच करा लो --हफ्ता भर बाद आज रूद्र बाबू बब्बा की बखरी से घर आये थे खाना खा कर कुछ देर बाप भाई से बतियाये फिर सोने के लिए कमरा में आ गए , बड़ी हिम्मत जुटा कर चंदा ने कहा ... ...."आपसे एक बात कहनी थी " ........." कहो क्या कहना है " ..बड़े मनुहार से पति की बांह थाम कर धीमे से बोली ....."आप अपनी जांच करवा लीजिये ...हम डाक्टरनी को दिखाए थे उन्होंने ही कहा है " इतना सुनते ही भडक गए रूद्र बाबू , जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो ..." बड़ी निर्लज्ज हो तुम तनिक शरम नहीं आई ऐसी बात बोलते हुए ....हम क्यों जांच कराये अच्छा भला स्वस्थ शरीर है .....कमी तुम्हारे अंदर है ......बंजर जमीन हो तुम ....तुम्हारा तो मुंह देखने को भी मन नहीं करता " .......अवाक् रह गई चंदा क्या कमी है मुझमे ......" क्यों नहीं देखते हमारी ओर -क्या आप किसी और से प्रेम करते है .........बोलिए तो ? ".........." सोने दोगी या अभी उठ कर चला जाऊं ? " .......मुंह में आंचल ठूस कर रात भर कलप कलप कर रोई ......सुबह मोहनी जेठानी की लाल गुडहल सी आँखे देख कर समझ गई ..........काकी तो डबडबाई आँखे पोछ कर रह गई | उस दिन के गए रूद्र घर पन्द्रह दिन तक नहीं आये |</span><br />
<span style="font-size: large;">जब अपना कोई बस न हो सब उपरवाले पर छोड़ देना चाहिए |</span><br />
<span style="font-size: large;">चंदा को अपने पिता की बात बार बार याद आई आज .......उसने निर्णय लिया अब इस बारे में पति से कुछ नहीं कहेगी समय के हवाले कर दिया सब .....बार बार अपने स्त्रीत्व का अपमान सहन नहीं होता ,कोई जन्म का पाप ही होगा जो सब कुछ देके भी अधूरा रखा देवी माँ ने | कभी कभी देवर ,देवरानी की प्यार भरी छेड़ छाड़ , इस उमर में बाबू जी का अम्मा की बीमारी में बेचैन होना ,कभी कभी उसके मन में भी मीठी चाह जागती पर -----</span><br />
<span style="font-size: large;">जांव जेंवार नाते रिश्ते में सभी रूद्र और चंदा की जोड़ी को राम ,सीता की जोड़ी कहते ,बात भी सही है --- लम्बे चौड़े रूद्र प्रताप कसरती बदन झूमते चलते ,जिधर से निकलते क्वारी लडकियाँ तो छोडो ,बहुएँ भी घुंघट की आड़ से एक नजर झाँक ही लेती | और चंदा बहू वो जैसा नाम वैसा रूप गुणवंती सुशील बहू ,काकी काका के पुन्य कर्मो का फल ही तो है |</span><br />
<span style="font-size: large;">चंदा के मुख से कभी पति के लिये आह नहीं निकली | वो कमरे में ही आँख के आंसू तकिये में छुपा कर बाहर आती | अब कुछ कुछ काकी की तबियत भी ढीली रहने लगी | अब कोई चाह बाकी नहीं रही ,भगवान् ने कुवर कन्हाई भी खेलाने को दे दिए | पोते को बाबा दादी कुंवर कन्हाई ही बुलाते |</span><br />
<span style="font-size: large;">एक दिन काकी ने केदार बाबू से कहा ...... " सुनिए अब सब सुख देख लिए चार धाम की यात्रा पर ले चलिए अब सारी मान मनौती पूरी कर ले" | -</span><br />
<span style="font-size: large;">--" अभी कहाँ रुद्रा की अम्मा अभी तो रूद्र प्रताप की संतान का मुख भी देखना है ....चाहे उपरवाला एक बिटिया ही दै दे "..... "कह तो आप सही रहे है अब उपरवाला जो चाहेगा वो करेगा" |</span><br />
<span style="font-size: large;">काकी जानती थी यह असंभव है |</span><br />
<span style="font-size: large;">...सब कुछ चंदा बहू के हाथ सौंप समझा बुझा के सारा इंतजाम कर के दोनों यात्रा पर निकलने की तैयारी में लग गए |</span><br />
<span style="font-size: large;">घर के बाहर के काम के लिए भोला पंडित के बेटे को सहेज़ दिया , भोला पंडित तो अब रहे नहीं पर परिवार का मेलजोल बहुत है | पंडिताइन को केदार बाबू भाभी पुकारते | एक ही बेटा है उनका शिवेंद्र पाण्डेय --पन्द्रह बरस का था जब भोला पंडित सिधार गए |</span><br />
<span style="font-size: large;">उनकी बड़ी इक्छा थी ,,बेटे को पढ़ा लिखा कर सरकारी नौकरी में लगा दे , पुरोहिती करवाना नहीं चाहते थे सो बेटे की पढ़ाई लिखाई पर विशेष ध्यान देते |</span><br />
<span style="font-size: large;">और वह पढ़ाई में तेज़ भी बहुत था पहले नम्बर से पास होता ,दसवी में था तभी पिता का साया उठ गया पर |</span><br />
<span style="font-size: large;">पंडिताइन ने पति की इक्च्छा पूरी करने में कोर कसर नहीं छोड़ी |</span><br />
<span style="font-size: large;">आखिरकार शिवेंद्र पाण्डेय सरकारी नौकरी में आ ही गए | पास के शहर में नियुक्ति हुई वहीँ परिवार ले कर रहते ,महीने दो महीने में एक चक्कर घर का भी लगा जाते माँ के पास |</span><br />
<span style="font-size: large;">जब भी गाँव आते तो काका से मिलने हवेली जरुर जाते |</span><br />
<span style="font-size: large;">दूसरा घर था यह उनका | पिता के बाद काकी काका ने ही तो बहुत सहारा दिया माँ बेटे को ,जिसे दोनों निभाते भी थे , उस समय हालांकि रूपया पैसा अन्न पानी अगर खुला हाथ नहीं था तो भी माँ बेटे के लिए बहुत था ,फिर पंडिताइन सुघर थी हाथ दबा कर खर्च चलाती रही और समय पार हो गया |</span><br />
<span style="font-size: large;">काका ने शिवेंद्र के शहर में रहने का इन्तिज़ाम कर दिया और बीच बीच में हाल खबर ले ही आते या मंगवा लेते तो पंडिताइन भी निशचिंत रहती | .</span><br />
<span style="font-size: large;">..ऐसा था दोनों घर का हार व्योहार --अब जाते समय केदार बाबू ....ने सहेज़ दिया पंडिताइन भाभी को ......" रुद्रा को तो भौजी तुम देख ही रही हो बस पैसे से मतलब है घर से नहीं वह पुरनकी बखरिया में लफंगों की बरात बटोर के मठाधीशी करने में लगा है सुना है प्रमुखी लड़ने की तैय्यारी में है |</span><br />
<span style="font-size: large;">गाँव भर के बहेतू लौंडे लफाड़े और दिमाग चढ़ाए है उसका |</span><br />
<span style="font-size: large;">ख़ैर उसकी कोई बात नहीं --बस भौजी दुलहिन का ख्याल रखियेगा " -- पास खड़े शिवेंद्र को सहेजा--- " बेटा तुम दो चार दस दिन में चक्कर लगा लेना हिसाब किताब देख लिया करना ,अपनी बडकी भौजी से पूछते रहना दवा दारु के लिए " |---पंडिताइन बोल पड़ी " अरे भईया हम है परेशान न हो जाओ तुम दोनों पहली बार निकरे हो खूब घूम फिर के आना ....शिवेंद्र देख लेगा बीच बीच में छुट्टी ले कर .....पहली बार तो कवनव काम कहे हो तुम चिंता बिलकुल न करो हम सब संभार लेंगे " |</span><br />
<span style="font-size: large;">कम से कम महीना भर के लिए जा रहे थे उससे ऊपर भी हो सकता था | केदार बाबू का विचार था इस बार ठकुराइन को खूब घुमाएंगे जिंदगी भर ओरहन देती रही हमको अबकी सब शिकायत दूर कर देंगे सोच के बैठे थे रिश्तेदारी में भी हो आयेंगे बार बार कहाँ जाना हो पाता है |</span><br />
<span style="font-size: large;">चारधाम की यात्रा का तो छोटके बेटा महेंद्र प्रताप ने पक्का इंतजाम करवा दिया था |</span><br />
<span style="font-size: large;">टिकट की सारी बुकिंग से लेकर ठहरने तक ताकि माँ बाप को कोई परेशानी न हो |</span><br />
<span style="font-size: large;">दोनों बहुओं ने नाश्ता पानी साथ के लिए बाँध दिया था |--</span><br />
<span style="font-size: large;">-काकी ने महेंद्र और दोनों बहुओं को समझाया ...... "घर दुआर पर ध्यान देना वैसे पंडिताइन चाची है ही उनका बहुत सहारा है ऊ तो रहबे करिहै वरना बड़का भईया का कौन ठिकाना आवे न आवे -- ऊ तौ बब्बा की बखरी पर अड्डाबाजी मा लाग रहत है , अब एक अउर नवा नवा चस्का लाग है इलेक्शन का</span><br />
<span style="font-size: large;">बौराय गय है --देवी मईया सद्बुद्धि दें अउर का कही हम " | फिर दोनों बहुओं से बोली</span><br />
<span style="font-size: large;">,तुम सब तनिकौ चिंता न करना पंडिताइन का बेटवा है न ऊ सब बाहर के काम काज देखिहयं "</span><br />
<span style="font-size: large;">काका जानते थे छोटा बेटा महेंद्र प्रताप हिसाब में अभी कच्चा है इसीलिए यह जिम्मेदारी शिवेंद्र को सौंप दी थी |</span><br />
<span style="font-size: large;">--सब तरफ से निशचिंत हो कर केदार बाबू पत्नी को लेकर तीरथ पर निकल पड़े |</span><br />
<span style="font-size: large;">पंडिताइन चाची नियम से शाम सवेरे चक्कर लगाती हाल खबर लेती ..कभी कभी दोपहरिया को यही महेंद्र बाबू के कुंवर कन्हाई को खिलाते दुलारते सो भी जाती |</span><br />
<span style="font-size: large;">चंदा बहू और मोहनी चाची को सास बराबर सम्मान करती ,खाने पीने से लेकर लिहाज़ करने तक | शिवेंद्र भो दो चार दिन में आ कर हिसाब किताब भी देख जाते , आते ही आवाज़ लगाते -- "बडकी भौजी चाय नहीं पिलाएँगी "....मुंह लगे देवर थे चंदा बहू के , शहर वापस लौटेते समय कोठी जाकर कागज़ पत्र देखा और बोले ....... " भौजी आज जा रहा हूँ अगले हफ्ते फिर चक्कर लगाऊंगा ---कुछ मंगवाना हो तो बता दो छोटकी दुलहिन से भी पूंछ लो उन्हें कुछ मंगवाना तो नहीं ?" .</span><br />
<span style="font-size: large;">...नहीं शिवेद्र बाबू कुछ नही मंगवाना फिर महेंद्र बाबू है न "</span><br />
<span style="font-size: large;">शिवेंद्र पाण्डेय नौकरी पर वापस चले गए |</span><br />
<span style="font-size: large;">रूद्र प्रताप यही पुराने घर पर बड़का बरगद के तरे जमावड़ा लगाये राजनीत बूकते रहते |</span><br />
<span style="font-size: large;">रूपया पैसा की तो कोई कमी है नहीं , बस खान पान का दौर तो चलता ही आजकल तीन पत्ती भी का भी नया शौक पाल लिया था |</span><br />
<span style="font-size: large;">दोस्त अहबाब चुहल भी करते .. " रुद्रा भौजी बाट जोह रही होंगी जाओ नहीं तो खबर लेंगी " ..</span><br />
<span style="font-size: large;">. "अरे हमारे यहाँ औरते जबान नहीं खोलती तो खबर क्या लेंगी ..मर्द है भाई कोई मेहरा नहीं की हरदम जोरू का पेटीकोट पछारें " ....</span><br />
<span style="font-size: large;">.एक जोर का ठहाका गूंजता और फिर सब मस्त हो जाते लंतरानी हांकने और सुनने में |</span><br />
<span style="font-size: large;">महतारी बाप थे नहीं इसलिए रूद्र और भी आजाद थे हवेली से कोई मतलब नहीं जब कुछ चाहिए होता तो किसी को दौड़ा कर मंगवा लेते --कभी झूठे मुंह भी चंदा का हाल नहीं लिया |</span><br />
<span style="font-size: large;">ठाकुर काका और काकी को गए दस बारह दिन तो हो ही गये थे ,बीच में शिवेंद्र भी चक्कर लगा गए और सारी व्यवस्था एकदम फिट चल रही थी |</span><br />
<span style="font-size: large;">अचानक सुबह सुबह मोहनी के मायके से फोन आया बाबू जी की हालत ठीक नहीं जो मुंह देखना हो तो फौरन आ जाओ --</span><br />
<span style="font-size: large;">-" जल्दी ले कर जाओ महेंद्र बबुआ -नाही तो छोटकी दुलहिन रो रो कर प्राण दे देगी "....</span><br />
<span style="font-size: large;">आनन फानन में समान बंधा और गाडी निकाल कर महेंद्र प्रताप बेटे और मोहनी को लेकर ससुराल चले गए |....</span><br />
<span style="font-size: large;">यहाँ चंदा अकेली रह गई इतने बड़े घर में ,दिन तो आराम से कट जाता ,काम तो कुछ नहीं पर देखना तो पड़ता ही है ,मजूर धतूर का खाना पीना ,गाय गोरु की भी सुध लेती ही | , पर रात पहाड़ हो जाती |</span><br />
<span style="font-size: large;">पंडिताइन चाची सुबह ही आ जाती बीच बीच में अपना घर भी झाँक आती और अंधियारे खा पी कर बस सोने जाती |</span><br />
<span style="font-size: large;">वह चोरी चकोरी के डर से रात को घर अकेला नहीं छोडती ,चंदा बहू उनसे कही भी</span><br />
<span style="font-size: large;">" चाची यही सो जाएँ"......तब वह बड़े संकोच से बोली .... " दुलहिन दुई चार गहना गुरिया गाड़े है घर माँ कवनो खोद लई जाई तो का करब ---पतोहू सेवा न करी हारी बिमारी " ....चंदा बहू जोर हंसी ..... "गहना के लालच मा सेवा करिहे शिवेंद्र बबुआ की दुलहिन ? अरे नाही चाची ऐसा न सोचे " |</span><br />
<span style="font-size: large;">.लेकिन पंडिताइन घर पर ही सोने जाती और भोरे भोरे नहा धो कर माला जपते हुए आ जाती और</span><br />
<span style="font-size: large;">यहाँ चंदा बहू उनकी चाय तैयार रखती |</span><br />
<span style="font-size: large;">आजकल तो रात भर चंदा जागती इस अकेलेपन में जीवन का खालीपन उसे बार बार कचोटता |</span><br />
<span style="font-size: large;">रूद्र के बारे में अनगिनत ख्याल आते पति है उसका पर क्या ऐसा होता है पति ?</span><br />
<span style="font-size: large;">खुद से ही पूछती इतनी बड़ी कोठी में अकेली छोड़ कर वहां पड़ा है ,कई बार कहलवाया भी फिर भी कोई ध्यान नहीं दिया .|</span><br />
<span style="font-size: large;">...शीशे के सामने श्रृंगार कर खुद को निहारती ...ऐसी कोई कमी तो नहीं फिर क्यों ऐसा |</span><br />
<span style="font-size: large;">--अपने पेट पर हाथ फेरती मानो उसके अंदर उसकी अजन्मी संतान हो --दोनों आँखों से आंसू बहते रहते |</span><br />
<span style="font-size: large;">इस अकेलेपन में बहुत कुछ गुना चंदा ने ...उसे कभी सास ने तो कभी कुछ नहीं कहा ,पर गाँव और नाते रिश्ते की बड़ी बूढी औरते तरस खाती .... "परमात्मा इतना रूप गुन दिए लेकिन का फायदा बडकी दुलहिन को तो बाँझ बंजर कर दिये .... एक बिटिया दे देते तो कोख पवित्तर हो जाती "</span><br />
<span style="font-size: large;">....बाँझ बंजर शब्द तीर की तरह लगते और नासूर की तरह पीड़ा देते ...अनसुना कर मुस्कराती रहती चंदा और अकेले में आंसू पोंछ लेती ---सांय सांय करती कोठी के बंद कमरे में आज चीख चीख के रोई ..</span><br />
<span style="font-size: large;">.." क्या कसूर था हमारा भगवान ".... रोते रोते न जाने कब आँख लग गई उसकी , सुबह उठी तो सूरज चढ़ आया था चाची दरवाज़ा पीट रही थी .... " दुलहिन उठो आज बहुत देर तक सोई जियरा तो ठीक है न ? ".|</span><br />
<span style="font-size: large;">...."ठीक है चाची अरे बड़ी देर हो गई आँख लग गई आज " ....</span><br />
<span style="font-size: large;">चाची ने माथे पर हाथ रखा धधक रहा था आँखे लाल भभूका थी ...</span><br />
<span style="font-size: large;">. " ऐ दुलहिन चला डाक्टर का देखाय लेया " ...</span><br />
<span style="font-size: large;">." नाहीं चाची ठीक होई जाई बस सर में दर्द है गोली रखी है अभी ले लेंगे " .......</span><br />
<span style="font-size: large;">....दुसरे दिन शिवेंद्र पाण्डेय भी शहर से आ गये |</span><br />
<span style="font-size: large;">जब दो दिन तक बुखार नहीं उतरा तो चंदा बहू को डाक्टर के पास दिखाने भी ले गए |</span><br />
<span style="font-size: large;">हालाँकि जाने से पहले वह रूद्र प्रताप के पास भी गये और उनसे कहा ....... "रूद्र -भाभी की तबियत ठीक नहीं उन्हें डाक्टर के पास ले जाओ और रात को घर पर ही सोने आ जाया करो " ...</span><br />
<span style="font-size: large;">." अरे तुम दिखा लाओ शिवेंद्र ! तुम्हारी भी तो भौजी है फिर हम आजकल यहाँ बहुत जरुरी काम में फंसे है | घंटा भर को भी नहीं निकल सकते इलेक्शन आ रहे है प्रमुखी के फिर खेत बाग़ भी हमही देखते है |-तुम तो घर के ही हो फिर चाची भी तो है ही चंदा की देखभाल को " |</span><br />
<span style="font-size: large;">-रुद्रा और शिवेंद्र समौरी थे बचपन के साथी भाई की तरह प्रेम था |</span><br />
<span style="font-size: large;">चंदा को देख कर डाक्टर ने दवा लिख दिया और कहा "कमजोरी है --खानपान का ध्यान रखे बुखार नापते रहे और नोट कर लें --तेज़ होने पर माथा पर ठंडी पंट्टी जरुर रखे ....बुखार तीन दिन में उतर जाएगा " ....</span><br />
<span style="font-size: large;">.." चलो आराम करो दुलहिन हम है गरम हल्दी वाला दूध बना लाई तनी चाची बोली " |</span><br />
<span style="font-size: large;">शिवेंद्र दवा दे कर बाकी काम निपटाने चला गया |</span><br />
<span style="font-size: large;">दोनों माँ बेटे बहुत ख्याल रखते पर मौसमी बुखार था, आजकल फैला भी था फिर कई रात से चंदा का मन उलझ रहा था |</span><br />
<span style="font-size: large;">सास ससुर थे घर में देवर का छोटा बच्चा था तो मन बंटा रहता ,ह्रदय के घाव पर पपड़ी पड़ी रहती ,पर इस बार बीमारी और अकेलेपन में पति की उपेक्षा ने नासूर को कुरेद दिया |</span><br />
<span style="font-size: large;">जब मन पर बोझ हो तो कोई दवा भी असर नहीं करती | गोली के असर से बुखार उतर जाता फिर तेज़ हो जाता |</span><br />
<span style="font-size: large;">आज चाची यही बडकी दुलहिन के पास ही रुक गई बेटे को घर सोने भेज दिया | भोर चार बजे शिवेंद्र आ गये तो वह घर नहाने धोने चली गई ,चंदा को तेज़ बुखार चढ़ा था शिवेंद्र ठंडी पट्टी रखने लगे काफी देर बाद गोली और पट्टी के असर से बुखार उतरा | .....</span><br />
<span style="font-size: large;">. "अब कैसा लग रहा है भौजी ? ".....कह कर माथे पर हाथ रखा ,और कलाई थाम कर नाडी देखने लगे | -</span><br />
<span style="font-size: large;">-पुरुष का प्रथम स्नेहिल स्पर्श चंदा के लिए यह अनजानी सुखद अनुभूति थी ,न जाने क्यों आँख बरस पड़ी | ....</span><br />
<span style="font-size: large;">." अरे क्यों रो रही है अभी तबियत ठीक नहीं है कह कर आंसू पोंछ दिए " .....</span><br />
<span style="font-size: large;">पर कहाँ थमी आंसुओं की धार | ये बरसों से जमी पीड़ा थी जो बह रही थी |</span><br />
<span style="font-size: large;">न जाने कब शिवेंद्र ने उन्हें खुद में समेट लिया और वह उनके वक्ष से लग गई लता की भांति ,पता ही नहीं चला कब तूफ़ान आ कर गुजर गया |</span><br />
<span style="font-size: large;">अचानक होश आया तो शिवेंद्र झटके से उठ गये ..........</span><br />
<span style="font-size: large;">....." नाराज हो ? अपराध हुआ मुझसे " ........कह कर निगाह झुका ली .....</span><br />
<span style="font-size: large;">....... "कैसा अपराध शिवेंद्र बाबू हमे कोई अपराध बोध नहीं सम्पूर्ण हुए आज ...आज ही तो स्त्री होने का भान हुआ तुमसे कैसी नाराज़गी तुमने ही तो हमे स्त्रीत्व का मान दिया है .....अब मै अधूरी नहीं हूँ |</span><br />
<span style="font-size: large;">---सुनो !शिवेंद्र --लोग -सच ही कहते है आग और फूस साथ नहीं रखना चाहिए ,एक भी चिंगारी फूस पर पड़ी तो धधक उठती है अग्नि ............. अब यहाँ पता नहीं कौन आग था कौन फूस , जो भी हो पर इस अग्नि में आज मेरा अधूरापन बीते बरसों की पीड़ा सब भस्म हो गई .....हमने कोई पाप नहीं किया " |</span><br />
<span style="font-size: large;">--शिवेंद्र ने बड़े स्नेह से चंदा के माथे पर अधर रख दिए ........" चलता हूँ अब अम्मा आ रही होगी " ....कह कर मुस्करा दिया |</span><br />
<span style="font-size: large;">लाज से झुक गई चंदा की पलकें आज जाना नई दुल्हन के मुख पर लाली क्यों बिखरती है | आँखे मूंद कर लेट गई चंदा | .</span><br />
<span style="font-size: large;">.. "सो रही हो दुलहिन अब कैसी तबियत है ".....चाची की आवाज़ सुनकर उठ बैठी .....</span><br />
<span style="font-size: large;">.." अरे लेटी रहो दुलहिन हम चाय बनवा लाते है तुम मुंह हाथ धो लो फिर दवाई खानी है "...</span><br />
<span style="font-size: large;">. एक दो दिन में चंदा बहू एकदम ठीक हो गई |</span><br />
<span style="font-size: large;">सब राजकाज पहले की तरह चलने लगा |</span><br />
<span style="font-size: large;">अब बीच में मौका देख दिन दोपहर शिवेंद्र चंदा के कमरे में पहुँच जाते -</span><br />
<span style="font-size: large;">- हफ्ता दस दिन ऐसे ही बीत गया अब शिवेंद्र की छुट्टियाँ भी ख़तम हो गई--उन्हें वापस जाना था |</span><br />
<span style="font-size: large;">जाने से पहले एक बार चंदा से मिलना चाहते थे |</span><br />
<span style="font-size: large;">शाम को अम्मा जब घर गई तो किसी काम की ओट में कोठी पर आ गए ......</span><br />
<span style="font-size: large;">... "चंदा भौजी ! कुछ कहोगी नहीं ? कल हम जा रहे है " .</span><br />
<span style="font-size: large;">..." हां जानती हूँ शिवेंद्र ! और यह भी जानती हूँ की अब शायेद कभी मिलना न हो पर जितना समय हमारे हिस्से का था वह हमें मिल गया बस इतना बहुत है बाकी का जीवन बिताने को--.हो सके तो भूल जाना " |</span><br />
<span style="font-size: large;">...."क्या तुम भूल सकोगी ? --सुनो आखिरी बार कुछ मांगू दोगी ? "......</span><br />
<span style="font-size: large;">...." अपना सर्वस्व तो दे दिया तुम्हे --अब और क्या चाहिए " .....</span><br />
<span style="font-size: large;">.. " विदा का अंतिम चुम्बन " ---पल भर को दो जोड़ी अधर पल्लव छू भर गए |</span><br />
<span style="font-size: large;">--और शिवेंद्र चले गये पलट कर नहीं देखा ! डर था अगर पलट कर देखा तो दो आँखे उन्हें जाने नहीं देंगी |</span><br />
<span style="font-size: large;">कुछ ही दिन बाद मोहनी और महेंद्र बबुआ वापस आ गए उसके पिता की हालत अब सुधर गई थी | कुंवर कन्हाई के आने से घर भर गया पांच छह दिन बाद बड़े ठाकुर और ठकुराइन भी यात्रा से वापस आ गए |</span><br />
<span style="font-size: large;">अब पूरा घर भर गया था ,रूद्र प्रताप माता पिता का पाँव छूने भर को आये और बस घंटे दो घंटे रह कर वापस चले गये | काकी लाख रोकती रही पर उन्हें तो राजनीत का भूत सवार था |</span><br />
<span style="font-size: large;">सारे गाँव में प्रसाद बांटा गया |</span><br />
<span style="font-size: large;">बड़े ठाकुर ठकुराइन बहुत प्रसन्न थे |ठकुराइन काकी तो यात्रा के किस्से सुनाते नहीं थकती थी | कुछ दिन तक घर में गाँव भर की औरतें बहुएँ जुटती और काकी से यात्रा वृतांत सुनती |</span><br />
<span style="font-size: large;">दो महीने बीत गए |</span><br />
<span style="font-size: large;">अचानक एक दिन काकी ने गौर किया बडकी दुलहिन का चेहरा पीला पड़ गया है ....." तनी इन्हा आओ दुलहिन " ... चंदा को आवाज़ दी | पास आने पर बोली "काहे कमजोर हो गई तबियत ठीक नहीं है क्या ,खाये पिये में सदा से लापरवाह है ई दुलहिन ,देखो तो कैसन मुख पीला पड़ गया है " ...</span><br />
<span style="font-size: large;">.." अम्मा हम ठीक है "... कह कर चंदा बहू वहां से हट आई | पर कितने दिन छुपता |</span><br />
<span style="font-size: large;">जैसे जैसे दिन चढ़ते गये चेहरा चमकता गया एक नूर सा उतर आया चंदा के मुख पर |</span><br />
<span style="font-size: large;">अभी पता नहीं चलता था कुछ पर ,अक्सर कुछ न कुछ ऐसा हो ही जाता की काकी को कुछ खटक सा जाता |</span><br />
<span style="font-size: large;">एक दिन दोनों देवरानी ,जेठानी खाना खाने बैठी थी , चंदा बहू ने जैसे मुख में कौर रखा की पूरा उलट दिया --मोहनी जल्दी से पानी ले कर मुंह धुलाने लगी ." चलो तुम कमरे में लेट जाओ जिज्जी तुम्हारी तबियत ठीक नहीं " .............कमरे ले कर आ गई चंदा आँख मूंद कर लेट गई |</span><br />
<span style="font-size: large;">मोहनी बालों में तेल डालने बैठ गई सर दबाते हुये बोली ........" जिज्जी एक बात पूछूं ? " ....</span><br />
<span style="font-size: large;">"हां बोलो न "......."ये किसका है ".....आँख से इशारा किया पेट की तरफ | .</span><br />
<span style="font-size: large;">..." हमारा है सिर्फ हमारा मोहनी ".....कह कर मुस्करा दी | बड़े प्रेम से पेट पर हाथ फेरने लगी |</span><br />
<span style="font-size: large;">पूरा चेहरा मातृत्व की आभा से दिपदिपा उठा | मोहनी ने उठ कर जेठानी को लिपटा लिया |</span><br />
<span style="font-size: large;">"अब तुम आराम करो जिज्जी सब काम हम संभाल लेंगे और --तुम्हे भी हमे ही संभालना है न .......कुछ भी हो हम तुम्हारे साथ है " ....अब तो काकी को भी शंका नहीं रही पर उन्होंने कभी पूछा नहीं |</span><br />
<span style="font-size: large;">लेकिन ये बात छुपती कहाँ है ....नाउन कहारिन धोबिन सभी तो ताड़ गई और बात पूरे गाँव में फैल गई |</span><br />
<span style="font-size: large;">फुसफुसाहट शुरू हो गई ! लोग इसे केदार बाबू और उनकी पत्नी के तीर्थ का फल कहते ,पांच महीना बीत गया छठा चल रहा था ,अब तो पेट भी पता चलने लगा |</span><br />
<span style="font-size: large;">काकी ने बहू से कभी कुछ नहीं पूछा ,अलबत्ता खाने पीने का ध्यान रखती |</span><br />
<span style="font-size: large;">खबर गाँव की बूढ़ पुरनिया तक भी पहुँच गई वो कहती "कुच्छो होई सकत है दस बारह बरस बाद देखा तौ पथरे पर दूब जामी है बडकी दुलहिन कै कोरा भरि देहन परमात्मा ".|</span><br />
<span style="font-size: large;">--रूद्र प्रताप को भी बधाई मिलनी लगी --आस पास जुटे लड़के आ कर कहने लगे -रुद्रा भईया ! अब तो दावत देई का परी आप बाप बनने वाले है |</span><br />
<span style="font-size: large;">क्रोध में करिया नाग सा फनफनाते रूद्र प्रताप दन्न से अपने घर पहुँच गए और अंदर घुसते ही लगे चिघाड़ने ......" कहाँ है साली-- रंडी ---....अब पूछो न अम्मा अपनी चहेती दुलहिन से .....कहाँ मुंह काला करा के आई है...ई हरामजादी ....--छिनाल पेट फुलाए घूम रही है ..कुतिया साली बाहर निकल आज गला टीप देंगे ...काट डालेंगे इसकी बोटी बोटी ...इस पतुरिया को कभी हाथ तक नहीं लगाया और हम बाप भी बन गए .वाह ..बोल -किसका है यह पाप बोल सबके सामने "--</span><br />
<span style="font-size: large;">मारे क्रोध के धुआंधार गालियाँ निकल रही थी साथ ही मुंह से फेचकुर भी छूट रहा था |</span><br />
<span style="font-size: large;">उधर सामने वाले अपने कमरे में चंदा बड़ी सयंत बैठी थी | ---.रूद्र प्रताप चीख रहे थे ठकुराइन को मानो काठ मार गया था ---केदार बाबू बैठक में सन्न मारे बैठे थे |</span><br />
<span style="font-size: large;">--अचानक तिमंजिली कोठी की बड़की दुलहिन चंदा कुमारी निकल आई अपने कमरे से और दरवाजे के पास आकर खडी हो गई ..</span><br />
<span style="font-size: large;">.." काहे चीख चिल्ला रहे है आप का पूछना है ?तनिक धीरे भी पूंछ सकते है " ..</span><br />
<span style="font-size: large;">....इतना सुन कर तो आग लग गई रूद्र बाबू को एडी से लेकर चुनाई तक सुलग गए ..</span><br />
<span style="font-size: large;">...." देख अम्मा बेशर्मी इस रंडी की "......" हाँ अब बता किसके साथ किया ये कुकर्म "</span><br />
<span style="font-size: large;">.." मेरा है रूद्र प्रताप ,यह बच्चा सिर्फ मेरा है --यह पाप नहीं है .....तुम्हारे मुंह से बाँझ बंजर सुनते रहे कभी कहा नहीं ---आज सुन लो --- धरती कभी बंजर नहीं होती / बीज नपुंसक होता है /वरना रेगिस्तान और उसर में भी खर पतवार तो उग ही आते है " .|</span><br />
<span style="font-size: large;">.रूद्र -दात किटकिटा कर हसुआ ले कर दौड़े चंदा की ओर --</span><br />
<span style="font-size: large;">"दबा दें गला आज बध ही डालें इसको किस्सा ही ख़तम हो जाए हमेशा के लिए |</span><br />
<span style="font-size: large;">खोद के गाड़ देंगें इसे इसके पाप के साथ ही फुरसत मिलेगी कलंक से "....तभी छोटकी दुलहिन उनके सामने खड़ी हो गई ......" नहीं दादा उधर न जाओ " ........"अरे मोहनी मत रोको आने दो इन्हें --तनिक हमारी आँख में आँख मिला कर ई वेद मन्त्र तो उच्चार दें " चंदा बोली -- ...." ई बबूल का ठूंठ है छोटी न पाती न पल्लव बस काँटा ही काँटा "----</span><br />
<span style="font-size: large;">"सुनो ई तो कबहू हमार कलाई भी जोर से नहीं थामे ----ई कछु नहीं कर सकते इतनी हिम्मत नाही तोहरे जेठ में छोटी दुलहिन "--- "आज इनकी ताकत का तनिक सुख हमहूँ लई लें "</span><br />
<span style="font-size: large;">" सुनो रुको मत रूद्र प्रताप आगे बढ़ो हम खड़े है यही " .....मानो चंदा नहीं चंडी खड़ी हो ...</span><br />
<span style="font-size: large;">.काकी आगे बढ़ कर चंदा के पास पहुँच गई और अपनी बडकी दुलहिन को अंकवार में समेट लिया | एक तेज़ आवाज़ गूंजी --</span><br />
<span style="font-size: large;">.." हाथ मत लगाना बडके " ... .| माँ की आवाज़ सुन --</span><br />
<span style="font-size: large;">बस अवाक् से रह गए रुद्रप्रताप ......" अम्मा "....बस इतना ही बोल फूटे --</span><br />
<span style="font-size: large;">--चंदा की आँखों की ताब नहीं झेल सके और जहाँ से आये थे वही वापस लौट गए --</span><br />
<span style="font-size: large;">काकी ने एक महीने बाद बडकी दुलहिन का सतवासा पूजने का न्योता गाँव भर में भेजा --आज उसी की तैयारी में गाँव भर की औरते लगी है ,आखिर बाँझ बंजर में कोपल जो फूटी है -----</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">--- दिव्या शुक्ला<br /><br /><br />परिचय:<br /><br /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">दिव्या शुक्ला </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">जन्म- 31 -5 - 1962 को प्रतापगढ़ के राजनीतिक परिवार में </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">निवास लखनऊ में </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">रूचि -कवितायेँ एव कहानियां लिखना </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">कथादेश , जनसत्ता , चौथी दुनिया ,निकट , अभिनव इमरोज ,अभिनव मीमांसा ,जनसंदेश आदि पत्र पत्रिकाओं में कहानियाँ एवं कवितायेँ प्रकाशित हुई </span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"><br />सम्पर्क - दिव्या शुक्ला<br />B1/24 विनय खंड विधायकपुरम<br />--गोमतीनगर लखनऊ<br />pincode - 226010<br />लैंड मार्क -लाल बहादुर शास्त्री पार्क के सामने<br />Email - divyashukla.online@gmail.com<br />-----फोन नम्बर--09554048856</span></span><br />
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</div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-41160030884444684122017-03-09T07:33:00.000+05:302017-03-09T10:06:43.171+05:30राजनीति में महिलाओं की भागीदारी कम क्यों है ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeSZVzZceGfkiY8N3aVnzG_InAy07SJCXvXrNfz3AMd2rL9Sn5oACJW5plh15m2eig8tPs6vvb3DhUOkW-nhWJVseyq3VJXsajsQJtlVUP9ifWn3LCbM5oF-wgefSZvBhoblBEtEw-tes/s1600/17200914_1386305354775208_6627713288814948746_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeSZVzZceGfkiY8N3aVnzG_InAy07SJCXvXrNfz3AMd2rL9Sn5oACJW5plh15m2eig8tPs6vvb3DhUOkW-nhWJVseyq3VJXsajsQJtlVUP9ifWn3LCbM5oF-wgefSZvBhoblBEtEw-tes/s400/17200914_1386305354775208_6627713288814948746_n.jpg" width="400" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: medium;"><b style="background-color: #fce5cd;"><br /><br /><br />"राजनीति में महिलाओं की भागीदारी कम क्यों है ?" <br /> इस प्रश्न पर कुछ सम्मानित वरिष्ठ, युवा लेखिकाओं, महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं के विचार आज फरगुदिया पर पढ़िए !<br />आदरणीय सरला महेश्वरी जी, सुधा दीदी, वंदना शर्मा दीदी, कविता वाचक्नवी दीदी, मीना दीदी, किरन दीदी, विजय पुष्पम दीदी, उषा राय जी ... <br />प्रिय आभा बोधि जी, नाइस हसन जी, प्रत्यक्षा जी, आराधना सिंह, डॉ विभावरी, चंद्रकांता सहयोग के लिए आप सभी का बहुत आभार!!</b><br /><br /><span style="font-size: large;"> </span></span>
<span style="font-size: large;"><br />राजनीति में महिलाओं की भागीदारी<br />-------------------------------------------<br /><br /><br /><br />"राजनीति में महिलाओं की भागीदारी का प्रश्न सीधे तौर पर नीति-निर्णायक निकायों में महिलाओं की भूमिका से जुड़ा हुआ है। इसमें महिलाओं की चिंताजनक स्थिति नीतियों को तय करने में उनकी भागीदारी की अनुपस्थिति का संकेत देती है । यह सत्ता में महिलाओं की भागीदारी से जुड़ा पहलू है ।<br />अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर महिला प्रश्न पर चली आ रही बहस और आंदोलनों का अपना एक लम्बा इतिहास रहा है।<br />महिलाओं में राजनीतिक शक्ति न्यस्त हो, यह कोई सिर्फ भारतीय मामला </span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8cmaPaEDasmG6kCPoW66jwg9eNT9-T8NFYYdPvKhLKrnGemT2mHQYfe8T0bpFkj4JhoTQDW8fbVtKNpaJfd0j11V4u2CL2OIGX9CMS_JvipZsUWk9uZHE447kPrSH5eZBeaZUb3efEOU/s1600/17191233_1384694574936286_2793449278356258805_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8cmaPaEDasmG6kCPoW66jwg9eNT9-T8NFYYdPvKhLKrnGemT2mHQYfe8T0bpFkj4JhoTQDW8fbVtKNpaJfd0j11V4u2CL2OIGX9CMS_JvipZsUWk9uZHE447kPrSH5eZBeaZUb3efEOU/s200/17191233_1384694574936286_2793449278356258805_n.jpg" width="133" /></a></span></div>
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नहीं है।इसका विरोध करने वाले इसे सवर्णों के द्वारा सब कुछ हथिया लेने की एक साजिश कहते हैं । लेकिन वास्तविकता में यह लंबे काल से दुनिया के जनतांत्रिक प्रशासनिक निकायों की एक साझा चिंता का विषय रहा है।इस पूरे इतिहास से हम सभी परिचित हैं।<br />हमारे देश में भी महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण का प्रश्न अचानक ही नहीं उत्पन्न हुआ है।1974 में महिलाओं की स्थिति के संबंध में तैयार की गयी रिपोर्ट में एक पूरा अध्याय ही महिलाओं की राजनीतिक स्थिति के बारे में था। और इसमें विशेष तौर पर इस बात का उल्लेख किया गया था कि महिलाओं की ख़राब स्थिति के लिये उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति के साथ ही उनकी राजनीतिक स्थिति भी ज़िम्मेदार है और इससे उबरने के लिये विधायक निकायों में आरक्षण के बारे में कहा गया था कि असमानता के वर्तमान ढ़ाचे को तोड़ने के लिये इस प्रकार का संक्रमणकालीन क़दम लिंग की समानता तथा जनतांत्रिक प्रतिनिधित्व के सवाल की दृष्टि से कोई पश्चगामी क़दम नहीं होगा, बल्कि यह वर्तमान व्यवस्था की तुलना में कहीं ज़्यादा बेहतर ढ़ंग से समानता और जनतंत्र के दूरगामी लक्ष्यों की सेवा कर सकेगा।<br />1974 की स्टेटेस रिपोर्ट, 1988 की राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना की संस्तुतियाँ और फिर 1995 में राष्ट्रीय महिला कन्वेंशन के प्रस्ताव में विधानसभा और संसद में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत आरक्षण की माँग को इसी रूप में देखा जाना चाहिये।<br />लेकिन चिंता की बात है कि आज तक महिला आरक्षण बिल अधर में लटका हुआ है।कभी ओबीसी के नाम पर तो कभी महिलाओं की योग्यता का सवाल उठाकर, कभी इसे प्रोक्सी पोलिटिक्स, यानी वाइव्ज ब्रिगेड के ख़तरे के रूप में, तो कभी घर-परिवार के टूटने के नाम पर लटकाया जा रहा है।<br />हमारे पितृसतात्मक समाज में राजनीतिक पार्टियाँ भी पुरुष-प्रधान समाज के स्थापित मूल्यों को प्रतिबिम्बित करती हैं जिसे सामाजिक-आर्थिक ढ़ाचे में बिना कोई ढांचागत परिवर्तन किये बदलना मुश्किल है।<br />पूरे विश्व में विधायिकाओं में सिर्फ 10.5 प्रतिशत महिलाएँ हैं और मंत्री पद पर सिर्फ 6.1 प्रतिशत महिलाएँ हैं। हमारे देश की स्थिति तो हमारे पड़ौसी देशों से भी बदतर है।<br />इस बात को समझते हुए भी कि सिर्फ आरक्षण ही सारी समस्याओं का हल नहीं है, मैं इस बात को कहना चाहूँगी कि सामान्य तौर पर वंचित और उत्पीड़ित महिला समाज में जितनी भी राजनीतिक जागृति पैदा होगी, उससे पूरे समाज के जनतांत्रिक रूपान्तरण की प्रक्रिया को ही बल मिलेगा।"<br /><br />--सरला माहेश्वरी<br />पूर्व सांसद,राज्य सभा<br />लेखिका, अनुवादक<br /><br /><br /><br /><br />"भारत बहुलतावादी देश है। भारतीय समाज बहुरंगी है। यहाँ बहुत तरह की विचारधाराएं हैं , मत वैभिन्य हैं - वामपंथ है, दक्षिण पंथ है, मार्क्सवाद है, समाजवाद है लेकिन एक सत्ता ऐसी है जिसे लेकर बहुत छोटे से तबके को छोड़ कर सब एकजुट हो जाते हैं ! वह है - पितृसत्ता। पुरुष वर्चस्व और सामंती अवधारणा। समाज के हर क्षेत्र में पितृसत्ता की रुग्ण जड़ें इतनी गहरी धंसी हुई हैं कि उसपर कोई नए फूल, कोमल पत्ते अंकुर निकलने की गुंजाइश नहीं रह गई है ! फिर भी उन जड़ों को सींचने में देश का एक बड़ा तबका जुटा है ! ऐसी स्थिति में स्त्रियों की भागीदारी कहाँ तक हो पाएगी। <br />समाज के किसी भी क्षेत्र में किसी भी तबके की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक व्यवस्था में वह प्रावधान होना चाहिए जो उस तबके को सहभागी बनाने में मदद करे। <br />हमारे देश में स्त्रियों को लेकर एक दुविधा बनी रहती है कि इनको कितनी आजादी दी जाए, जो पितृसत्ता के खिलाफ न जाती हो। थोड़े बहुत बदलाव को छोड़कर निर्णय लेने का अधिकार आज भी पितृसत्ता के हाथों में महफूज है, जो बड़े करीने से अपना खेल कर रहा है और जिबह होने वाली महिलाएं जान भी नहीं पाती कि उनके पर कतरे जा चुके हैं। जो जान-समझ पाती हैं, उन पर करारा प्रहार होता है। जो असहमति में मुंह खोलती हैं, उन पर चरित्रहीनता का फतवा जारी कर दिया जाता है ! <br />धार्मिक संहिताएं सदियों से स्त्री को नियंत्रण और पाबंदियों में रहने का आदेश देती हैं और आज भी उसी लीक पर देश का नियन्ता वर्ग चल रहा है ।</span><br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_5nEU0mUJH6iJR36-75o_FAixq_AZ9GaAS2GLtBdUvqswISxb3SfnynsKNihYHIVJN-4HUdBMN_OkI3qI_yuNZcDlAa2mGQfvKDDhg7KRoYZdvqK1Y4Iv3cv82A3xCOpAmRAxPqHoLpw/s1600/16939559_1384695128269564_3720011331283469378_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="184" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_5nEU0mUJH6iJR36-75o_FAixq_AZ9GaAS2GLtBdUvqswISxb3SfnynsKNihYHIVJN-4HUdBMN_OkI3qI_yuNZcDlAa2mGQfvKDDhg7KRoYZdvqK1Y4Iv3cv82A3xCOpAmRAxPqHoLpw/s200/16939559_1384695128269564_3720011331283469378_n.jpg" width="200" /></span></a></div>
<span style="font-size: large;"><br />राजनीति में सहभागिता का पाठ समभाव के बिना पूरा नही हो सकता । हमारे देश में घर से लेकर, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, खेत-खलिहान और दफ्तरों तक में महिलाओं को कमतरी का अहसास कराया जाता है। स्त्रियों की सीमा रेखा आज भी घर परिवार की देहरी बना दी जाती है। <br />राजनीति में महिलाओं का प्रतिशत कम होना सिर्फ भारत की समस्या नहीं है ! पूरे विश्व में इसे देखा जा रहा है। पिछले दिनों अमेरिका में लेडी क्लिंटन अगर चुनाव जीत जातीं तो अमेरिका की पहली महिला प्रेसिडेंट होने का इतिहास रचतीं। <br />राजनीति के लंबे इतिहास में महिला नेत्री उँगलियों पर गिनी जा सकती हैं। इंदिरा गांधी से लेकर सुचेता कृपलानी, भंडारनायक से लेकर मार्गरेट अल्वा तक अधिकांश ने सत्ता में जाकर भी महिलाओं की बेहतरी के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। महिलाओं के हक़ में किसी भी बड़े फैसले को पारित होने में दशकों लग गए। कारण यह भी है कि उनकी आवाज़ सुनी ही नहीं गई, चाहे वह सुभाषिनी अली हों या वृंदा करात। परिवार के तहत आईं नेत्रियों ने सत्ता में ओहदा तो लिया पर पर्याप्त हस्तक्षेप नहीं किया। महिलाएं जब तक वर्ग, जाति और धर्म की फांस से बाहर नहीं निकलती तब तक राजनीति तो क्या घर में भी उनकी सहभागिता सार्थक और सम्मानजनक नही हो सकती है। धर्म का ध्वज वाहक बने रहने से पितृसत्ता ही मजबूत होती है। पितृसत्ता और स्त्री चेतना या स्त्री अस्मिता एक दूसरे के विलोम होते हैं।<br />पर यह भी बहुत बड़ा सच है कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा की मारी महिलाऐं, देश के सामने कोई बड़ा आदर्श प्रस्तुत कर पाने में अक्षम रही हैं। सच तो यह है कि आजादी के इतने सालों बाद भी शुद्ध रूप से महिला अधिकारों के लिए पूरे देश की महिलाएं कभी एक मंच पर नही आ पाईं । आरक्षण बिल लंबे अरसे से इस या उस कारण से पारित नहीं किया जा रहा है। <br />पर हाँ, इरोम शर्मीला का राजनीति में उतरना और युवा वर्ग का बेख़ौफ़ होकर अपनी बात कहना हममें एक उम्मीद जगाता है ! वह सुबह कभी तो आएगी ......"<br /><br />--सुधा अरोड़ा <br />लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता<br /><br /><br /><br /><br /><br />"इस मामले में एशियन देशों का हाल काफी बुरा है ! भारत में 'महिलाओं की राजनीति' में भागीदारी का प्रतिशत विश्व में 98 नम्बर पर है ! क्या ये आश्चर्य की बात नही कि युगांडा जैसा देश नम्बर एक पर है ? यह बात अलग है कि इंदिरा,सोनिया, जयललिता मायावती, ममता बनर्जी और महबूबा मुफ्ती आज के दौर की वे महिलाएं थीं या हैं जो अपनी अपनी पार्टी की प्रधान तक बनी ! बहुत सी महिलाएं है ऎसी जो राजनीति में अपनी छाप छोड़ गई पर आधी आबादी की हिसेदारी पर बात की जाए तो लगता है अब समय आ गया है कि जिस तरह से संविधान संशोधन द्वारा पंचायतों में हमारी हिस्सेदारी सुनिश्चित की गई उसी प्रकार हरेक दल को अब इस दिशा में विचार करना चाहिए कि देवगौड़ा सरकार द्वारा लाया गया महिला आरक्षण बिल लोक सभा में भी पारित किया जाए ! क्यों कि पुरुषों ने पॉलटिक्स को अपना ऐसा अखाड़ा बना डाला है जहां या तो स्त्रियाँ ऊँचे पदों तक आ नही पातीं या उनके खानदान की स्त्रियों के सिवाय ऊँचे पद पर किसी सामान्य स्त्री को टिकने ही नही दिया जाता अथवा उनके द्वारा 'नियुक्त' स्त्री मात्र स्टार प्रचारक मार्का शोपीस या कठपुतली बना कर रख दी जाती है ! अजब विरासत छाप राजनीति का दौर है यह !</span><br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiN8hxfZQTKkk5d18i0VsHeSNhn75qUzorTkpUgd3ApfhntPWP-OMUU8LR2GRecEe7dQZKBvvM1NXbHdkEEeIDW0ox8ij-rJPw5gwOK8TeOM4rQMxmL_no82apo31NWMFUyG25kajSfLZo/s1600/17103754_1383667645038979_6840673795726868791_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiN8hxfZQTKkk5d18i0VsHeSNhn75qUzorTkpUgd3ApfhntPWP-OMUU8LR2GRecEe7dQZKBvvM1NXbHdkEEeIDW0ox8ij-rJPw5gwOK8TeOM4rQMxmL_no82apo31NWMFUyG25kajSfLZo/s200/17103754_1383667645038979_6840673795726868791_n.jpg" width="200" /></span></a></div>
<span style="font-size: large;"><br />जिस दिन भारतीय समाज की आखिरी स्त्री भी राष्ट्रीय राजनीति में अपना प्रतिनिधित्व,नितांत अपने दम पर कर पाएगी, उसी दिन इस मसले पर यह देश 98 के दयनीय पायदान से ऊपर कहीं आ पायेगा ! <br />अब हाथ कंगन को आरसी क्या , हमारे उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी का आँकड़ा ही जरा देख लीजिए 17 वीं विधान् सभा की 403 में से 98 सीटें आधी आबादी को दी गई हैं मतलब 25 प्रतिशत से भी कम <img src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v7/f7f/1/16/1f60a.png" />😊 और इनमे भी इन दलों का हाल ये है कि अपनी अपनी बहुओं बेटियोंं में कितनी ही सीटें बाँट दी गई ! Bjp ने 370 में से सर्वाधिक 46 सीटें महिलाओं को दीं हैं , तो कॉंग्रेस की 105 सीटों में से मात्र 5 महिलाओं को मिलीं और सपा ने 299 में से सिर्फ 29 महिलाओं को टिकिट दिए हैं और बसपा जिसकी मुखिया एक महिला ही है वहाँ टिकिट बंटवारे में महिलाओं की सबसे बड़ी उपेक्षा की गई यहाँ हाल ये कि 400 सीटों पर सिर्फ 21 महिला प्रत्याशी हैं तो भाई ये तो सच्चाई है इस् सदी में भारतीय राजनैतिक परिपेक्ष्य में महिला हिस्सेदारी का ! <br /> इसलिए स्वाभाविक है हमारा ये लगना कि 20 साल की अपनी यात्रा में जो महिला आरक्षण बिल राज्यसभा से आगे नही जा पाया है उसे अब आगे बढ़ाया जाए क्यों कि अधिकार माँगने से मिल नही रहा है दोस्तों <img src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v7/f7f/1/16/1f60a.png" />😊 ये सोच पाना असम्भव न् हो तो कठिनतर अवश्य हो चला है कि कोई स्त्री नितांत अपने दम पर उठे टिके और बढ़ती चले और राष्ट्रीय राजनीति में भी ऊंचाइयों तक पहुँचे , बिना किसी बड़ी आर्थिक बैकग्राउंड के, बड़े घरानों या पारिवारिक पृष्ठभूमि के या अन्य प्रकार की बैसाखियों के और तमाम राजनैतिक दुश्चक्रों,कलंक कथाओं,उठा पटक, बाधाओं को पार करती हुई अपनी सामर्थ्य ,चाह और देश के प्रति अपनी अभिलाषाओं स्वप्नों को साकार कर सके ! क्यों कि राजनीति का सबसे बड़ा उद्देश्य देश समाज की सेवा ही तो है ! पर अफ़सोस प्रायः उनके ये उद्देश्य क्षरित होते हैं प्रधानी से लेकर मंत्री पद तक जाते जाते उनकी ये यात्रा कठपुतली से सत्ता तक की रह जाती हैं और "सत्ता कभी स्त्रीलिंग नहीं होती " <img src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v7/f7f/1/16/1f60a.png" />😊 प्रायः स्त्री होने का जरूरी दायित्व कहीं पीछे छूट ही जाता है इसलिए मैं उन महिलाओं के प्रति बेहद आदर सम्मान बल्कि श्रद्धा से भरी हूँ जिन्होंने दूर दराज के उपेक्षित इलाकों , स्त्रियों , दलितों और आदिवासियों के प्रति अपने सेवा संकल्प को किसी राजनैतिक दलदल में न् धंसने दिया , न् झुकने दिया , वे न् कठपुतली बनी और न् अपनी ही महत्वाकांक्षाओं की बलि चढ़ीं ! इसके विपरीत उन्हें अपने वे पवित्र ध्येय हमेशा स्मरण रहे जिनके कारण वे इस क्षेत्र में उतरीं थीं !<br /><br />---वंदना शर्मा<br />कवयित्री<br /><br /><br /><br /><br />"राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सामाजिक संरचना पर काफ़ी कुछ निर्भर करती है । मार्था नसबौम जैसा कहती हैं कि-स्त्रियों के राजनीतिक भागीदारी की क्षमता में एक महत्वपूर्ण अवरोध हिंसा का ख़तरा है ।<br />पित्रसत्तात्मक समाज अनेक तरीक़ों से स्त्रियों को दबाता कुचलता है । घरेलू हिंसा , यौन शोषण , साक्षरता दर का कम होना , इन सब कारणों ने भी स्त्रियों के आर्थिक और राजनीतिक अवसरों पर अपना प्रभाव डाला है । </span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoGkyHRGMDFN-SEumNZsvgr4biNFnvwnqSkhV6SE3WSszPF8yZAN6qnev_iDWrNyhavflUUXcaGsidIrcz1XHiT4bYkQVKWVogKYSetS6rmnN8tixAexNg23gjOmEz6JDqaQ-fpiLyleg/s1600/17200888_1384694554936288_2758084996785230581_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoGkyHRGMDFN-SEumNZsvgr4biNFnvwnqSkhV6SE3WSszPF8yZAN6qnev_iDWrNyhavflUUXcaGsidIrcz1XHiT4bYkQVKWVogKYSetS6rmnN8tixAexNg23gjOmEz6JDqaQ-fpiLyleg/s200/17200888_1384694554936288_2758084996785230581_n.jpg" width="169" /></a></span></div>
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स्त्रियों की सामाजिक और राजनीतिक स्तरों में सक्रिय भागीदारी की क्षमताओं को कम किया है ।<br /><br />स्त्री सशक्तिकरण के पहल के बावजूद अब भी संसद में स्त्रियों की भागीदारी सिर्फ़ बारह प्रतिशत है । पंचायतों में भी स्त्रियाँ proxy नेता , मुखिया ही हैं । फिर भी नियमों का विसरण और व्यापन ही सामाजिक जड़ता को तोड़ने का काम करेगा । स्त्रियाँ जितनी आत्म निर्भर होंगी , जितना स्वाभिमान और साहस से भरीपूरी होंगी उतना ही सार्वजनिक स्पेस को क्लेम् करेंगी , राजनीतिक और सामाजिक दायरों पर अपना दावा पुख़्ता करेंगी |"<br /><br />--प्रत्यक्षा सिन्हा<br />लेखिका </span><br />
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<span style="font-size: large;"><br /><br /><br />"शिक्षा ,खेलकूद ,चिकित्सा ,इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी,फ़िल्में ,बैंकिंग ,व्यापार ,अंतरिक्ष , सेना और यहाँ तक की अंडर वर्ल्ड में भी महिलाएं पुरुष के कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रही हैं ,यहाँ तक कि युद्ध रिपोर्टिंग जैसे साहस भरे कामो को अंजाम दे रही हैं और अपना आप मनवा रही हैं ।राजनीति जैसे क्षेत्र में उनकी आम दरफ्त कम क्यों है यह एक शोध का विषय हो सकता है ।सफाई कर्मी से लेकर देश के सर्वोच्च पद तक स्त्री ने पूरी निष्ठा और ज़िम्मेदारी से भागीदारी की है लेकिन फिर भी राजनीति में पूर्ण कालिक सक्रिय महिलाएं उंगलियों पर गिनी जा सकती हैं । देश की आधी आबादी के सक्षम होने के बावजूद राजनीति में उनकी भागीदारी दाल में नमक के बराबर ही है ।<br />राजनीति में महिलाओं की भागीदारी मात्र कागज़ों और बहसों तक सीमित रह जाती है ।महिला आरक्षण विधेयक आज तक लागू नही हो पाया ,नही तो जैसे अन्य क्षेत्रों में स्त्रियां अपनी सक्षम भागीदारी सुनिश्चित कर रही हैं वैसे ही राजनीति में भी कर पातीं।यदि कोई सीट महिला के लिए आरक्षित नही घोषित की गयी हो तो सामान्य सीट अमूमन किसी पुरुष उम्मीदवार को ही दी जाती है ।गांव पंचायत जैसे छोटे चुनावों में भी यदि महिला सीट है तो प्रधान महिला भी जनरल मीटिंग्स में नही जाती है या नही जाने दिया जाता है ।उसका पति ही या ससुर ही प्रधान कहा जाता है ।जबकि महिला प्रधान जहाँ कहीं थोडा दबंग होती हैं उस क्षेत्र का विकास अनुपात में कहीं </span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgX6IhjCdkuRyuYYdvTqlSIe_-N4T77Ja0bwUPbPBJCpuBUfLqilJemKcgw4gHXQ3Db7f8lMjAFVspMBW69U_rQq-vGP_PmEqZaABEAWqagyYi0hoI2w3Ba2OTDzxpmufw2ZqzlrdYzPZQ/s1600/75586_1384694558269621_2923324954421180492_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgX6IhjCdkuRyuYYdvTqlSIe_-N4T77Ja0bwUPbPBJCpuBUfLqilJemKcgw4gHXQ3Db7f8lMjAFVspMBW69U_rQq-vGP_PmEqZaABEAWqagyYi0hoI2w3Ba2OTDzxpmufw2ZqzlrdYzPZQ/s200/75586_1384694558269621_2923324954421180492_n.jpg" width="200" /></a></span></div>
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अधिक हुआ होता है ।<br />हकीकत यही है कि आधी आबादी अभी तक अपनी मूलभूत आवश्यकताएं ही नही पूरी कर पा रही है तो पूर्णकालिक राजनीति कैसे कर पायेगी ! ये अलग बात है कि इंदिरा गांधी जैसी महिला देश की प्रधानमंत्री रही लेकिन उसके पीछे उनकी सलाहियत कम और नेहरू परिवार से होने का आभामण्डल अधिक प्रभावी था ।ऐसे ही नज़्म हेपतुल्ला ,तारकेश्वरी सिन्हा ,मोहसिना किदवई ,या शीला दीक्षित भी अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि की वजह से आगे आ पायीं ।अन्य महिलाएं जो किसी प्रदेश में मंत्री या मुख्यमंत्री या किसी अच्छे पोर्टफोलियो में रहीं ,उनके पीछे भी परिवार या किसी न किसी समर्थ व्यक्तित्व का हाथ रहा ।</span><br />
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हालाँकि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर अच्छी खासी तादाद महिला प्रतिनिधिओ की है फिर भी ज़िम्मेदार पदों पर कुछ ही महिलाएं हैं ।साथ ही राजनीति में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी न होने में ,इस क्षेत्र में बढ़ता प्रदूषण भी है ।यदि कोई दबंग लड़की या महिला यहाँ आना भी चाहती है तो परिवार वाले असुरक्षा और पीठ पीछे होती आलोचना और भद्दी बातों को देखते हुए जाने की अनुमति नही देते ।यदि विरोध करके किसी तरह आ भी जाये तो राजनीति के खुर्राट भेड़िये साबुत निगल लेने को तैयार बैठे मिलते हैं ।स्त्रियोचित संकोच ,आर्थिक पराधीनता ,चुनाव में होने वाले अंधाधुंध खर्चे भी यहाँ आने से पहले बार -बार सोचने को विवश करते हैं ।<br />समय की मांग यही है कि अधिकाधिक महिलाएं राजनीति में आएं और महिला विषयक कानूनों को पारित करने में अपना योगदान दें ,तभी आधी आबादी का दर्द कुछ कम होगा ।"<br /><br />विजय पुष्पम् <br />सी 35 ,एच .ए.एल.टाउनशिप<br />फैज़ाबाद रोड 226016<br />(09415516679)<br /><br /><br /><br /><br />ऐसी मुश्किल में लगन और अलख की काम आएगा <br />-------------------------------------------------------<br /><br />"प्रकृति प्रदत संरचना को विस्तार देने वाली स्त्री को ही पीछे ढकेलने की राजनीति दुखद है। सोचनीय और निंदनीय यह भी है कि संसार कितनी तेज गति से आगे बढ़ रहा है। लेकिन इस संसार में, इस समाज में स्त्री अभी भी पुरूष के साथ या बराबरी की जगह पाने के लिए भागती हुई , खीसटती हुई तड़प रही है। तरस रही है। इस तरह राजनीति में महिलाओं की भागीदारी कम होने का सबसे महत्वपूर्ण कारण “बंदिश” हैं। बंदिशों की साजिशें हैं। पित्रसत्ततात्मक समाज महिलाओं को अपनी मिल्कियत समझता आया है। और लाख हजार कोशिशों के बावजूद वह महिला को अपनी जरुरत की सामग्री समझता रहेगा। अफसोस की उसमें भी साथ देंगी रहेगी औंरतें! </span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj767ryjHoz6XZ1U3gIROljZulWdreHb1V5AqyYFGsg9bZGx1rzqA-jRhkIXvMyRxTUm4JQgKIMAm8rXOtX5Exz53YOTsGF38SHJG1gxNCPhf2RZJgLOUdLf8o3MgfkYWt0AYFYWZAZFoI/s1600/17191386_1384791371593273_6337765527643609031_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="196" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj767ryjHoz6XZ1U3gIROljZulWdreHb1V5AqyYFGsg9bZGx1rzqA-jRhkIXvMyRxTUm4JQgKIMAm8rXOtX5Exz53YOTsGF38SHJG1gxNCPhf2RZJgLOUdLf8o3MgfkYWt0AYFYWZAZFoI/s200/17191386_1384791371593273_6337765527643609031_n.jpg" width="200" /></a></span></div>
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पुरुष ने ऐसा जाल बुना, जहाँ औरत ही औरत का विरोध करने के षड्यंत्र में भागीदारी लेती रहेगी। समाज के बुरी नजरों की दुहाई देते हुए, उसे डरा –धमका कर पीछे ढकेलता रहेगा समाज। इसे समझने के लिए कहीं दूरी जाने और सोचने की जरुरत नहीं। अपने घर-परिवार, अड़ोस-पड़ोस से वाकिफ होना ही काफी है। जिस समाज में बेटियों को देर रात बाहर रहने के अंजाम से डराया जाता है, उस समाज में राजीनीति में भागीदारी बहुत दूर की कौड़ी है । और तो और पिता, भाई, पति अक्सर उन महिलाओं को लांक्षित करते पाए जाते हैं, जिन महिलाओं ने अपनी मेहनत और लगन से समाज में अपनी जगह बनाई हों। तो कुल मिला कर स्त्री कुछ करे तो लांक्षन,और न करे तो कुढ़ मगज। <br /><br /> स्त्री को हमेशा मर्यादा की दुहाई देकर बरगलाया गया। ताकि समय बीतता रहे और दुनिया से अंजान स्त्री चूल्हें-चौके तक समीति रह, पुरूष की सेवा में तल्लीन रहे। पुरुष, दरअसल स्त्री प्रतिद्वंदी से भय खा कर ऐसा करता है। उसे इस बात को इतना घोट कर पिला दिया जाता है कि वह यदि स्त्री से हार गया तो वह पुरूष कैसा ? मर्दानगी की दुहाई में पुरूष जितना आगे बढ़ने और बढ़ाने की कोशिश में मन नहीं लगाता, उतना वह फेल ने हो, या प्रतिद्वंदी स्त्री से पीछे न रह जाए..इस बात को ज्यादा तवज्जो देता है? ऐसे समीकरण वाले समाज में स्त्री को मर्यादा की दहाई देना पुरुष के लिए सबसे सरल रास्ता है। और मर्यादा के नाम पर बौराई स्त्री –एक अच्छी बेटी, एक अच्छी बहन, एक अच्छी पत्नी और अंत में एक अच्छी माँ बन कर अपने जीवन की संपूर्णता पर इतरा उठती है। वह स्त्री एक वास्विक संपूर्णता का अनुभव करती है। इसमें भी कोई दो राय नहीं। अपने जीवन और अपने कर्तव्य से फारीग । <br /><br /> यानि की वस्तु(स्त्री) को तंत्र के संचालन योग्य कैसे समझा जा सकता है! यह पुरूष प्रधान समाज, अपनी षड्यंत्री तरकीबों को तब तक अमल में लाता रहेगा, जब तक स्वय स्त्रियाँ जागेंगी नहीं! मान मरजाद को धता बता कर, खुद के लिए बेकल हो कर घर से बाहर भागेंगी नहीं। भागने का अर्थ स्पष्ट करना जरुरी नहीं। वह सवाल में निहित व संकलित है खुद। ऐसी स्थिति में स्त्री के लगन और अलख ही काम आएँगे...."<br /><br />--आभा बोधिसत्व <br />9820198233 <br />apnaaghar@gmail.com</span>
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<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> <o:p></o:p></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /><br /><br />"आज आजादी के इतने वर्षों बाद भी भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है, इसका क्या कारण है ? ये सोचने का विषय है | आज देश में चारों ओर विकास की बयार बह रही है | विकास की इस बहती बयार ने भी महिलाओं को विशेष प्रभावित नहीं किया है | आज भी आधी आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा अपनी मूलभूत सुविधाओं से दूर है | आवश्यकता है उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ने की, उनके लिए स्वस्थ माहौल मुहैया करवाने की ताकि वे घरों से बाहर निकल कर समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकें| पर दुर्भाग्य इस बात का है कि इसके लिए जमीनी स्तर पर कोई प्रयास नहीं हो रहें हैं | घर हो या बाहर, दफ्तर हो या राजनीतिक क्षेत्र हर स्थान पर उनका शोषण होता है और वह अपनी बात खुल कर किसी से कह नहीं पातीं | उनके लिए हमारे पितृ सत्तात्मक समाज ने अनेकों लक्ष्मण रेखाएँ खींच रखी हैं, ढ़ेरों बंदिशे और बाधाएं खड़ी कर रखी हैं ताकि वो उन्हीं में उलझी रहें और उनके बाहरी क्षेत्र में दखल ना दे सकें जिससे पुरुषों का वर्चस्व बना रहे, और अगर कोई महिला इन तमाम बंदिशों और दायरों को पार कर बाहर निकल अपना आस्तित्व साबित करने का प्रयास करती भी है तो हमारे पुरुष वर्चास्व समाज में उन्हें चरित्रहीन साबित करने की होड़ लग जाती है, ताकि उन लांछनों से </span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2qHBVG0tfnmhrXDPRwfGR0VOaf7TZlzbSz7YcHbiNVmihyphenhyphenCJYsGOw4GbTfA0846Mc9oHMi94Lp88CgprtPEIXNGOnwoxQIasVTEr6StdJwHUW8n1iI1kNpudU9nfjBw1055pPQRyAjB4/s1600/14390864_870988066371808_3011544644261066434_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2qHBVG0tfnmhrXDPRwfGR0VOaf7TZlzbSz7YcHbiNVmihyphenhyphenCJYsGOw4GbTfA0846Mc9oHMi94Lp88CgprtPEIXNGOnwoxQIasVTEr6StdJwHUW8n1iI1kNpudU9nfjBw1055pPQRyAjB4/s200/14390864_870988066371808_3011544644261066434_n.jpg" width="200" /></a></span></div>
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शर्मशार होकर वे अपने बढ़ते हुए कदम वापस खींच लें | हालाकि कई महिलाओं ने पुरुषों द्वारा खींची गयी लक्ष्मण रेखा को पार कर समाज में अपनी उपस्थिति मजबूती से दर्ज कराई है पर इनकी गिनती बहुत कम है | आज भी देश में महिलाओं के लिए समुचित शिक्षा व्यवस्था नहीं है | महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ी है फिर भी वह पुरुषों की साक्षरता दर से कम है | <br />भारतीय परिवारों की तरह भारतीय राजनीति में भी पुरुषों का दबदबा रहा है और वही राज करते आये हैं बावजूद इसके इंदिरा गाँधी ने पन्द्रह वर्षों तक प्रधानमंत्री के पद पर आसीन रहीं |<br />आज जरूरत है देश की आधी आबादी को मुख्य धारा से जोड़ने की | जरूरत है उनके प्रति अपना नजरिया बदलने की | अगर इन्हें अवसर मिले तो वह बहुत कुछ कर सकती हैं | महिलाएं एक समय में एक से अधिक विषयों पर सोच सकती हैं, एक साथ एक से अधिक कार्य कर सकती हैं जब कि पुरुष एक समय में एक ही कार्य करता है वो भी तब, जब उसकी पत्नी उसको उसके कार्य क्षेत्र के लिए पूरी तरह तैयार कर के भेजती है | <br /> कुल मिला कर महिलाओं के साथ बहुत भेदभाव किया जाता है | उसकी स्थिति में आज भी कोई बहुत विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है । हर स्थान पर पुरुषों का दबदबा है घर, दफ्तर हो या राजीनीति ! कहीं भी महिलाओं के लिए स्थितियां सामान्य नहीं हैं । <br /> महिला आरक्षण बिल के अनुसार संसद और राज्य की विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था है परन्तु वास्तविकता इससे अलग है । <br />और अंत में राजनितिक पार्टियाँ महिलाओं को एक बड़ा वोटबैंक तो मानती हैं पर प्रत्याशी के रूप में उन्हें टिकट देने से हिचकिचाती हैं । यही सब कारण हैं कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी कम है ।"<br /><br />--मीना पाठक</span><span style="font-size: large;"><br /><br /><br /><br /><br />"प्रथम तो राजनीति एक सार्वजनिक क्षेत्र है, और मध्ययुगीन परम्परा से सार्वजनिक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी सीमित रही है। यद्यपि 20 के दशक के उत्तरार्द्ध में यह बढ़नी प्रारम्भ हुई किन्तु वह केवल कला और सौन्दर्य के क्षेत्र में, या स्पष्ट कह लें तो फिल्मों में और तत्पश्चात् सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में अर्थात् नर्सिंग एवम् अध्यापन में। <br />दूसरा कारण यह कि राजनीति मुख्यतः अनीति की शरणस्थली रहती आई है, जहाँ अपराध और कपट को या तो संरक्षण और प्रश्रय मिलता आया है अथवा उस से संघर्ष और जय-पराजय। स्त्रियों की प्रकृति से यह सार्वजनिक समेकित द्वन्द्व मेल नहीं खाता।</span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfNlM81mlObJ6jJp6EQDVhCZgyOPE3Rdy_DMlFqPYUmETECV2qqgVBe02p_v2_AwO-iT87g851gS0xi_iH35MKhUcKpqztQBFG2j5XEtZ5eQZtOsbDPpRbfjzc4t1g3RFeWqlNJW767MY/s1600/17190658_1386320228107054_8731066299419057157_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfNlM81mlObJ6jJp6EQDVhCZgyOPE3Rdy_DMlFqPYUmETECV2qqgVBe02p_v2_AwO-iT87g851gS0xi_iH35MKhUcKpqztQBFG2j5XEtZ5eQZtOsbDPpRbfjzc4t1g3RFeWqlNJW767MY/s200/17190658_1386320228107054_8731066299419057157_n.jpg" width="150" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;"><br />तीसरे, समाज में कार्यों का विभाजन इस प्रकार का रहता आया है कि स्त्री परिवार और गृहस्थी की धुरी होती है, वह परिवार और सन्तान से सम्बन्धित दायित्वों से इतना अवकाश और छूट नहीं पाती कि वह निरपेक्ष भाव से ऐसे किसी अवसर /अध्यवसाय को समय दे सके। <br />चौथा, कई अर्थों में यह 'महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं' भी माना/कहा जा सकता है। जिन परिवारों की पद-प्रतिष्ठा और सुरक्षाकवच-सा स्त्रियों को मिला उन परिवारों की स्त्रियाँ मुख्यतः राजनीति में आईं भी।<br /><br />पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में स्त्री का स्थान बनाना भी स्वयम् में चुनौती है। तभी तो संसद में आरक्षण का प्रस्ताव तक पुरुष वर्चस्ववादी दलों ने लाने नहीं दिया। राजनीति में अपराधीकरण कम हो तो धीरे-धीरे यह अनुपात बढ़ेगा, या स्त्रियाँ अपराध की अभ्यस्त हो जाएँ तब भी बढ़ेगा। स्त्री-वर्चस्व बढ़ने ओर्र राजनीति के मानवीय पक्ष की अपेक्षा तब की जा सकेगी।"<br /><br />- कविता वाचक्नवी</span><span style="font-size: large;"><br />लेखिका </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /><br /><br /><br />"मेरे ख़याल से सामान्यतः हमारा समाज स्त्रियों में राजनीतिक समझदारी के विकास के अवसर ही उपलब्ध नहीं होने देता. इसके बावजूद यदि किसी महिला का रुझान सक्रिय राजनीति में हो गया तो घोषित रूप से अतिरिक्त समय और श्रम की माँग करने वाले इस क्षेत्र में आने पर महिला के समाज द्वारा उसके लिए निर्धारित भूमिकाओं से समझौता एक अनिवार्य शर्त बन कर उभरता है, लिहाज़ा महिलाओं के राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय होने की </span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgH_5j0tRiLBtKzjsImNEw4G5JvDfI-qNUgUSrXx2vwMeDfsu_DN2YNG_ZZLxCPN5yj3s9akr3b-NRcgVp2WEC1xGt5isFNnIU69gIWo0c4o0btNY01qvW3yCBRuujD5sp6tAZXNw8clSQ/s1600/17191367_1384694648269612_5931301715604779759_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgH_5j0tRiLBtKzjsImNEw4G5JvDfI-qNUgUSrXx2vwMeDfsu_DN2YNG_ZZLxCPN5yj3s9akr3b-NRcgVp2WEC1xGt5isFNnIU69gIWo0c4o0btNY01qvW3yCBRuujD5sp6tAZXNw8clSQ/s200/17191367_1384694648269612_5931301715604779759_n.jpg" width="190" /></a></span></div>
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राह पुरुषों की तुलना में आसान नहीं रह जाती. <br /><br />कह सकते हैं कि महिला के राजनीति में सक्रिय होने के लिए प्रबल इच्छा शक्ति के साथ-साथ धारा के विपरीत चल पाने का जज़्बा बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाता है जिसके अभाव में अपनी सामाजिक, जैविक और पारंपरिक भूमिकाओं से बंधी महिलायें सामान्यतः इस क्षेत्र को प्रोफेशन के तौर पर नहीं अपना पातीं! एक ऐसे समाज में जहाँ टीचर, नर्स, डॉक्टर जैसे चंद प्रोफेशंस को महिलाओं के लिए मुफ़ीद माना जाता हो अगर कोई महिला राजनीति को अपना कार्यक्षेत्र बना भी ले तो ज़्यादातर मामलों में समाज उसे आत्मनिर्भर तरीके से काम कर पाने की सलाहियत नहीं दे पाता. देश की ग्राम पंचायतों में महिला आरक्षित सीटों पर निर्वाचित महिलाओं की जिम्मेदारियां और काम-काज का निर्वहन उस महिला के पिता, पति, भाई या बेटे द्वारा किया जाना बहुत आम है. इन हालात के बावजूद आज हमारे देश की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में कार्यरत जुझारू महिला नेताओं का होना इस बात का संकेत है कि यदि अवसर मिलें तो महिलायें बेहतर राजनीतिज्ञ साबित हो सकती हैं. महिलाओं की शख्सियत में इस आत्मविश्वास के विकास में निःसंदेह उनकी उच्च शिक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता की अहम भूमिका है. "<br /><br />--डॉ विभावरी <br /><br /> <br /><br /><br />"मुख्यधारा कि तरह राजनीति में भी महिलाओं कि उपस्थिति मिसिंग है .पॉलिसी मेकिंग और डिसीजन मेकिंग राजनीति के दो प्रमुख बिंदु हैं लेकिन महिलाओं का सामाजिकरण या वैचारिक कंडिशनिंग इस तरह से होने ही नहीं दी जाती वे राजनीति में भागीदारी का सोचें.राजनीति में स्वप्रेरित महिलायें कम हैं जहाँ हैं वहां भी या तो परिवारवाद का प्रभाव है या उन पर राजनीतिक उम्मीदवारी थोप दी गयी है. यह एक बड़ा कारण है कि स्थानीय निकायों में एक तिहाई आरक्षण के बावजूद महिलाओं कि राजनितिक उपस्थिति प्रभावी नहीं हो पायी है.</span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFG3WYADTRhuxgOhc6blk_ocNTUdxk-ZjRZrZRuTT4x8L84264bk2g6_vyrSmz6eUJ6eFbojdgB5MfNj3x4QEw45yWziMbcTXcW0FMwZMsSQauby2oizXdaUC34ubrWSrV-AqyyqsTi7Y/s1600/17201091_1384694701602940_3390419649276273289_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFG3WYADTRhuxgOhc6blk_ocNTUdxk-ZjRZrZRuTT4x8L84264bk2g6_vyrSmz6eUJ6eFbojdgB5MfNj3x4QEw45yWziMbcTXcW0FMwZMsSQauby2oizXdaUC34ubrWSrV-AqyyqsTi7Y/s200/17201091_1384694701602940_3390419649276273289_n.jpg" width="173" /></a></span></div>
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यह बात किसी से छिपी नहीं है की महिलाओं में नेतृत्व के गुण कूट कूट कर भरे हैं फिर भी उस नेतृत्व का दायरा उसकी होममेकर की भूमिका तक सीमित कर दिया जाता है.बाकी राजनीति का अपराधीकरण जैसे जुमले केवल महिलाओं को डराने के लिए हैं . जब महिलायें एक अपराधी समाज का सामना कर सकती हैं तो राजनीति का क्यूँ नहीं ?<br />जागरूक महिलायें खुद को राजनितिक भागीदारी के लिए तैयार करें तो कोई ठोस परिवर्तन हो .और उनकी यह भागीदारी निश्चित ही विकृत हो चुकी वर्तमान राजनीति से इतर एक स्वस्थ राजनितिक परिवेश का निर्माण करेगी."<br /><br />--चंद्रकांता<br />लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता<br /><br /><br /><br /><br />"हमारे घरों में लड़कियों को सहेली के घर जाने तक के लिए झूठ बोलना पड़ता है,फोन पर बात करने,घर पर आने-जाने के हर पल का हिसाब देना होता है। खुल के बोली गई बातों पर घर के ही तिलमिलाए लोगों के फ्रस्ट्रेशन से जूझना होता है। हमारी शक्तियां हमारी संवेदनशीलता की वज़ह से इन छोटी-छोटी व्यर्थ की लड़ाइयों में इतनी ख़र्च हो जाती है कि हमारी उड़ानों की ऊँचाई,उनकी परिधि नि:संदेह घटती जाती है।लंबी,ऊँची </span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcYPJGrOnE06O6ORXvcORbLA3Y2W42iajeWw3ldLeNHJs7sDib86_-V2ksrMef1rf-Pdz2agjsdMkPc4f-owShHI6CTpZ6Nr2gRlOXYvEPQMZbzZubeOHHuoBajIjRwIQpJQP4qxJ8F4s/s1600/17098644_1384694661602944_363516557026227601_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcYPJGrOnE06O6ORXvcORbLA3Y2W42iajeWw3ldLeNHJs7sDib86_-V2ksrMef1rf-Pdz2agjsdMkPc4f-owShHI6CTpZ6Nr2gRlOXYvEPQMZbzZubeOHHuoBajIjRwIQpJQP4qxJ8F4s/s200/17098644_1384694661602944_363516557026227601_n.jpg" width="200" /></a></span></div>
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उड़ान भरने की हमारी महत्वकांक्षा को हमारे चरित्र से यूं गूँथ दिया जाता है कि अपनी महत्वकांक्षाओं को हम ख़ुद किसी संगीन गुनाह की तरह देखने लगते हैं। राजनीति ही क्यूं खेती,सेना,ड्राइवरी,व्यापार बहुत सी जगहों पर आधी आबादी आधी तो दूर एक चौथाई उपस्थिति भी दर्ज़ नहीं कर पाती। <br />सुषमा स्वराज,मायावती,स्मृति इरानी जैसी और कुछ महिलाओं को अपवाद स्वरूप छोड़ दिया जाए तो बाकी महिलाएं चाहे वह गाँव की प्रधान हों,विधायक,सांसद हों उनके सरपरस्त उनके पति या परिवार का कोई सदस्य होता है और राजनीति में होकर भी उनका कोई निर्णय नहीं होता। उनका राजनीतिक अस्तित्व केवल नाम का होकर रह जाता है।"<br /><br />--आराधना सिंह<br />कवयित्री </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /><br /><br /><br />"हमें राजनीति में वैसे ही उतरना चाहिए जैसे इरोम शर्मिला उतरी हैं। सोलह वर्षो तक अनशन पर बैठी रही इरोम ने जब राजनीति में उतरने का फैसला लिया तब उनके परिवार के सदस्य भी इस निर्णय से खुश नहीं हुए। देवी की छवि में रुढ़ होती जा रही लौह महिला का सामान्य जन में घुल-मिल कर काम करने के प्रति मणिपुर की जनता का एक हिस्सा सहज नहीं हो पा रहा था। जब लौह महिला के राजनीति में आने आने का स्वागत और विरोध हो रहा है तो हम तो सामान्य स्त्रियाँ हैं। हमारी राजनीति की राह और कठिन होगी। लोकतंत्र के इस सबसे बड़े उत्सव में क्या हम निर्णय को प्रभावित कर सकने की भूमिका में हैं? उम्मीदवार के रूप टिकट देना तो दूर की बात है, चुनावी घोषणा पत्रों में स्त्रियों को आकर्षित करने वाली घोषणाएँ गायब रहती हैं। </span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWF1c1k0gfRdMgyv5RJHdVnqefzToDIq-0E0olMzJkB2PblwA9zfTu7MQlFir6yg0mVzZOwGiFu3YdQmkIDd8wBK3BU6D9esM3qxpdcL4GNlaEoi7Z-Y0U6LB720SM1TFWtDeLzHhYo_w/s1600/17201204_1384694578269619_4094367103391296770_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWF1c1k0gfRdMgyv5RJHdVnqefzToDIq-0E0olMzJkB2PblwA9zfTu7MQlFir6yg0mVzZOwGiFu3YdQmkIDd8wBK3BU6D9esM3qxpdcL4GNlaEoi7Z-Y0U6LB720SM1TFWtDeLzHhYo_w/s200/17201204_1384694578269619_4094367103391296770_n.jpg" width="175" /></a></span></div>
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<br />पिछले चुनावों में एक महिला उम्मीदवार (अपनी समझ से योग्य उम्मीदवार) के पक्ष में घर-घर वोट माँगने के दौरान आमतौर पर यह बात सुनने को मिली-‘‘ये (पति) जहाँ कहते हैं, हम वहीं वोट दे देते हैं।’’स्त्रियों में राजीतिक चेतना का अभाव दिखाई दे रहा है। राजनीति हमारे जीवन को प्रभावित करती है। यह एक मुख्य वजह है कि हम समाज में निर्णायक भूमिका में नहीं उतर पा रही हैं। बहन जी’ हों या ‘दीदी’ ये भी जब सत्ता में आती हैं तो हमें भूल जाती हैं क्योंकि आधी आबादी ‘चुनाव जिताऊ फैक्टर’ नहीं है। जनसत्ता समाचार पत्र की 6 मार्च की रिपोर्ट के मुताबिक मणिपुर में दो चरणों में होने वाले चुनावों में कुल दस महिला उम्मीदवार हैं। उत्तर प्रदेश में 344, पंजाब में 81, उत्तराखंड में 56, और गोवा में 18 महिलाएँ मैदान में हैं। इसमें भी कई महिला उम्मीदवार ऐसी भी हैं, जैसे मड़ियाहूँ सीट से माफिया डान मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह मैदान में हैं। उस पर भाई लोगों की टिप्पणी है-‘‘सब जानत हैं कि भइया जी लड़ रहे हैं। भाभी का नामे भर है।’’ पंचायत चुनावों में स्थिति बेहतर है। वहाँ महिलाएँ विजयी होकर बहुत काम कर रही हैं। भले एक नया शब्द ‘प्रधान-पति’ भी चलन में आया हो। राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण होना चाहिए। महिलाओं को अपने विरुद्ध हो रही राजनीति को समझना होगा, जिसकी शुरुआत परिवार से होती है और जो राष्ट्रीय स्तर तक पसरी है। <br /><br /><br />...किरण सिंह<br /><br />लेखिका <br />3/226, विश्वास खण्ड, गोमती नगर<br /><br />फोनः 09415800397</span><br />
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<span style="font-size: large;"><br />"भारत में महिला राष्ट्रपति प्रधान मंत्री यहाँ तक कि राजनीतिक दल की अध्यक्ष बनती है लेकिन यह परेशान करने वाली बात है कि राजनीति में महिलाओं की कुल भागीदारी महज़ 10.86 प्रतिशत ही क्यों है ? पंद्रहवीं लोक सभा इसलिये महत्व रखती है कि इसमें महिलाओं का प्रतिशत पहली लोकसभा से लेकर चौदहवीं लोक सभा तक सबसे ज्यादा है । एक अनुमान </span><br />
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheXn226WmO8-nmhJMPjtymtjQEwoV40rKqs63Sv9O8AGYch45Tgt78CxgUaveT2cWkZq4ZYSu9wc7ym7sP7aUpcZxjQq02hl86wXg2JxIrLt9nGKfVFcHEXILsvfsZApfXnW3rU-90jtc/s1600/17097418_1386323374773406_3637241245451490160_o.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheXn226WmO8-nmhJMPjtymtjQEwoV40rKqs63Sv9O8AGYch45Tgt78CxgUaveT2cWkZq4ZYSu9wc7ym7sP7aUpcZxjQq02hl86wXg2JxIrLt9nGKfVFcHEXILsvfsZApfXnW3rU-90jtc/s200/17097418_1386323374773406_3637241245451490160_o.jpg" width="112" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;">के मुताबिक यदि महिला आरक्षण बिल पास हो जाता तो 543 सदस्यों वाली लोक सभा में महिला सांसदों की संख्या 61से बढ़कर 181के करीब हो जाती । मेरा मानना है कि न सिर्फ़ भारत में बल्कि वैश्विक पटल पर भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है ।आजादी के बाद हमने कई समस्याओं पर मिशन की तरह काम किया और लक्ष्य को प्राप्त किया ।अत : हमें इस दिशा में भी सोचना और काम करना चहिये ।"<br /><br />---उषा राय<br />लेखिका</span><span style="font-size: large;"><br /><br /><br /><br />" सियासत में औरतों की मौजूदगी कम होना काबिले फ़िक्र है। 2014 में हम 188 मुल्कों मे 117 वां नंबर रखते थे पर 1 फरवरी 2016 तक के आंकलन के हिसाब से अब 191 देशों में हमारा नंबर 144 वां हो गया है। </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_M4-sHwHYm-zNUxIsh2BN_1sOSoAKwf81vmkmRS58z-GMMQ-8gerXy-BFoWjX7GC04dXy-X02khrT1olXmjMODZWct52p0dVh6QzmRU6f_kgifjnh4NHlHC-q4XVS3w0tpeL78BfO8lI/s1600/17197757_1418473474889895_202444730_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_M4-sHwHYm-zNUxIsh2BN_1sOSoAKwf81vmkmRS58z-GMMQ-8gerXy-BFoWjX7GC04dXy-X02khrT1olXmjMODZWct52p0dVh6QzmRU6f_kgifjnh4NHlHC-q4XVS3w0tpeL78BfO8lI/s200/17197757_1418473474889895_202444730_n.jpg" width="156" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;">
हिंदुस्तानी समाज में औरतों की कोई आज़ाद आवाज़ अभी भी नहीँ बन पाई है। राजनीति में महिलाओं का आना किसी निश्चित प्रक्रिया के तहत नहीँ हो पा रहा है । कुछ नेताओं की पत्नियाँ बेटियाँ मजबूरी में आ गई कुछ को किसी नेता की मौत के बाद जगह मिली। कुछ गलैमर के कारण आई। <br />कुल मिलाकर वंशवाद और वोट पॉलिटिक्स को ही बढ़ावा मिला है। उनका हिस्सा लोकसभा और राज्य सभा में सुनिशचित होना बहुत ज़रूरी है। ऐसा समाज को अधिक मानवीय और बराबरी पर आधारित होने के लिए निहायत ज़रूरी है।"</span><span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><span lang="EN-IN" style="font-family: "kruti dev 010"; font-size: 16.0pt; line-height: 107%;"><o:p> ------</o:p></span><span style="text-align: left;">नाइस हसन<br />लेखिका, महिला अधिकार कार्यकर्ता<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />प्रस्तुति: किरन सिंह<br /> शोभा मिश्रा</span></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
</div>
<span style="font-size: large;">
<br />
</span><br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
<br />
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; margin-bottom: 6px;">
</div>
</div>
</div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-41160786344667448302017-03-08T08:33:00.000+05:302017-03-08T08:33:25.763+05:30चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई...!! - स्वाती<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-Nb8U27rVBA4zctTmnNnT7kkTYWwy8aQdKT3ca59GMG7ONKaSyIa7LKfEZy_-kx6woR3y5rXHDYf67zC4q6-h4gG79FW5GSmj5K4ScWO1y_c1b1Wq7wIE2_7cnKFn_idzj2VYKzU7I1E/s1600/17021359_1641157422579761_1698706804328867229_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-Nb8U27rVBA4zctTmnNnT7kkTYWwy8aQdKT3ca59GMG7ONKaSyIa7LKfEZy_-kx6woR3y5rXHDYf67zC4q6-h4gG79FW5GSmj5K4ScWO1y_c1b1Wq7wIE2_7cnKFn_idzj2VYKzU7I1E/s320/17021359_1641157422579761_1698706804328867229_n.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<br />
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<b><i><u><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; font-size: 15pt;">चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई...!!</span></u></i></b><b><i><u><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 15.0pt;"><br /><br /><br /><o:p></o:p></span></u></i></b></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<b><i><u><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 15.0pt;"><o:p></o:p></span></u></i></b></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<br /></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 13pt;"><br /></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 13pt;"><br /></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 13pt;"><br /></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 13pt;"><br /></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 13pt;">पढ़ा गया हमको</span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span style="font-size: 13pt;">
<span lang="HI">जैसे पढ़ा जाता है काग़ज</span> <br />
<span lang="HI">बच्चों की फटी कॉपियों का</span> <br />
‘<span lang="HI">चनाजोरगरम</span>’ <span lang="HI">के लिफ़ाफ़े के बनने से पहले!</span><br />
<span lang="HI">देखा गया हमको</span> <br />
<span lang="HI">जैसे कि कुफ्त हो उनींदे</span> <br />
<span lang="HI">देखी जाती है कलाई घड़ी</span> <br />
<span lang="HI">अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद</span> !<o:p></o:p></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<br /></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 13pt;">सुना गया हमको </span><span style="font-size: 13pt;"><br />
<span lang="HI">यों ही उड़ते मन से</span> <br />
<span lang="HI">जैसे सुने जाते हैं फ़िल्मी गाने</span> <br />
<span lang="HI"><br /></span></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span style="font-size: 13pt;"><span lang="HI"><br /></span></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span style="font-size: 13pt;"><span lang="HI">सस्ते कैसेटों पर</span> <br />
<span lang="HI">ठसाठस्स ठुंसी हुई बस में</span> !</span><span style="font-size: 1pt;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<br /></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-size: 13pt;"><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">भोगा गया हमको</span></span><span style="font-size: 13pt;"><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> <br />
<span lang="HI">बहुत दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह</span> <br />
<span lang="HI">एक दिन हमने कहा</span>– <br />
<span lang="HI">हम भी इंसान हैं</span> <br />
<span lang="HI">हमें क़ायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर</span> <br />
<span lang="HI">जैसे पढ़ा होगा बी.ए. के बाद</span> <br />
<span lang="HI">नौकरी का पहला विज्ञापन।</span></span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div align="right" class="MsoListParagraph" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; mso-add-space: auto; mso-list: l0 level1 lfo1; text-align: right; text-indent: -.25in;">
<!--[if !supportLists]--><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">-<span style="font-family: "times new roman"; font-size: 7pt; font-stretch: normal; line-height: normal;"> </span></span><!--[endif]--><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">अनामिका</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;"> आज महिला
दिवस है</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">,
<span lang="HI">इसके इतिहास में न जाते हुए भी हम जानते हैं कि एक औरत होने के नाते
इस समाज में हमें रोज़ किन किन चीज़ों से जूझना पड़ता है। यदि हम हमारे लिए बनाए गए
तौर</span>-<span lang="HI">तरीकों से बाहर निकलना चाहते हैं</span>, <span lang="HI">तो
वह कितना संभव हो पाता है और कैसे</span>... <span lang="HI">आज के दिन को आधी आबादी
का दिवस कहूँ या कि आधी दुनिया के लिए प्रतीकात्मक उत्सव तय नहीं कर पाती। उत्सव
कहने को इसलिए भी संगत पाती हूँ क्योंकि इसमें पुरुषों की भी सहभागिता रही है।
मकसद पुरुषों से नहीं वरन गैरबराबरी की मानसिकता से लड़ना और जीतना है। आज के दिन
कौन सी बात की जानी चाहिए</span>, <span lang="HI">नहीं जानती</span>, <span lang="HI">क्योंकि ये बातें तो रोज़ की जानी चाहिए और तब तक की जानी चाहिए जब तक
व्यवहार के धरातल पर सभी इस बराबरी को जीने न लगें</span>.. <span lang="HI">इन
बातों को क्या कहा जाना चाहिए</span>, <span lang="HI">यह भी नहीं जानती। अनुभवों को
शब्दों के ज़रिए लिखित रूप से दर्ज करना क्यों ज़रूरी है शायद इसलिए कि ये ज्यादा
लोगों तक पहुँच सके</span>.. <span lang="HI">हो सकता है इन शब्दों से बहुतों को
ऐतराज़ हो</span>, <span lang="HI">हो सकता है कुछ लोग कहें कि ऐसा तो होता ही नहीं</span>,
<span lang="HI">पर हमें अपने अनुभवों को साझा करते रहना है क्योंकि ऐसा करके ही हम
समस्याओं को उजागर कर पाएंगे और हमें समस्याओं को अनदेखा नहीं करना है और न ही
किसी भी तरह के ग्लोरिफिकेशन में जीना है। हमें उन ग्लोरिफिकेशंस की निर्मिति को
भी समझना है</span>, <span lang="HI">बार</span>-<span lang="HI">बार उसका हवाला देने
वालों की मानसिकता को भी समझना है</span>..<span lang="HI"> मुझे नहीं पता कि मैं जो
कुछ भी कह रही हूँ या कि कहने जा रही हूँ</span>, <span lang="HI">वह किसी पाठ की
शक्ल ले भी पाएगा कि नहीं। यह भी नहीं जानती इसे पढ़ने वाले इसे किस तरह से लेंगे</span>,
<span lang="HI">क्योंकि ये कुछ अनुभव हैं</span>, <span lang="HI">कुछ जिए हुए अनुभव,
कुछ देखे हुए अनुभव बस्स</span>...<span lang="HI">ये अनुभव अपने प्रस्तुत किए जाने
की गढ़ावट में बेहद कच्चे हैं पर इन्हें कहना ज़रूरी है</span>... <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">तुम लड़की
हो न</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">,
<span lang="HI">तुम्हारा तो हो ही जाएगा.., तुम लड़की हो न</span>, <span lang="HI">तुम्हारे
लिखे को तो ले ही लिया जाएगा...</span>, <span lang="HI">तुम लड़की हो न</span>, <span lang="HI">तुम्हारी तो तारीफ़ की ही जाएगी</span>... <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">ये जो </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">'<span lang="HI">तुम लड़की हो</span>' <span lang="HI">से जोड़कर कुछ बातें ऊपर कही गई हैं</span>,
<span lang="HI">ये और इस क्रम में और भी कई बातें लड़कियों की छोटी बड़ी उपलब्धियों
को डीमीन करने के लिए बार</span>-<span lang="HI">बार कही जाती हैं। मुझे नहीं पता
कि ऐसा कहने वाले ऐसा कहकर हमारे बढ़ते कदम रोकना चाहते हैं या कुछ और... इसे कहने
वालों के लिए इसमे कुछ भी गलत नहीं है। वे कभी भी तनिक ठहर कर नहीं सोचते कि जो
उन्होंने बड़ी सहजता से कह दिया है उसका असर उतना हल्का नहीं होता</span>... <span lang="HI">यह उनकी मानसिकता को दर्शाता है</span>, <span lang="HI">पर यह मानसिकता
बनती कैसे है</span>.. <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">इन दिनों
देश में एक अलग हवा चल रही है</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">.. <span lang="HI">एक खास किस्म का डिस्कोर्स हर
डिस्कोर्स को दबाने की कोशिश कर रहा है</span>... <span lang="HI">मैं जब औरतों की
बात करना चाहती हूँ तो मैं एक नागरिक की बात करना चाहती हूँ और जब नागरिक की बात
करेंगे तो देश की बात भी करेंगे</span>, <span lang="HI">समाज की भी बात करेंगे,
उसके निर्माण की प्रक्रिया पर भी बात करेंगे</span>... <span lang="HI">हम हर उस
प्रक्रिया की बात करेंगे, उस पर सवाल
उठाएंगे जिसके ज़रिए एक पूरे इंसान को उसके लिंग</span>/ <span lang="HI">जाति</span>/
<span lang="HI">धर्म जैसी उसकी परिवेशगत पहचान में रिड्यूस कर दिया जाता है</span>...<span lang="HI">हम उस सामाजिक कंडिशनिंग की बात भी हर बार करेंगे जिसके सहारे बड़ी कुशलता
से सामान्य मानवीय व्यवहार/ संवेदनाओं को भी स्त्रियोचित/ पुरुषोचित के खेमे में बाँट
दिया जाता है। समाज के भीतर सीमित कर दी गई सुंदरता की परिभाषा भी इस गैर-बराबरी
को गाढ़ा करने में, स्त्रियों की भूमिका को एक फ्रेम में समेट देने में योग देती
है। </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">बहुत सारी
समस्याएँ हैं जो गडमड हो रही हैं पर मुझे कहना है। कुछ अजीब सा दोहरापन है इस समाज
में। इस समाज ने कुछ 'मोरैलिटी' तय कर रखी है औरतों के लिए और उसकी चिंता पुरुष
खूब करते हैं अपने घर की औरतों के लिए पर इस घेरे से बाहर की लड़कियों को वे एक </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">'<span lang="HI">देह</span>' <span lang="HI">में एक </span>'<span lang="HI">ऑब्जेक्ट</span>'
<span lang="HI">में रिड्यूस कर देते हैं। यहाँ ऐसा कहते हुए मैं इस बात को स्पष्ट
कर देना चाहती हूँ, जब ये पुरुष उस मोरैलिटी के दबाव में अपने घर की स्त्रियों के
'सम्मान' की चिंता करते दीखते हैं तो ऐसा नहीं है कि वे उन्हें पूरे इंसान का
दर्ज़ा देने को तैयार होते हैं। मैं यों तो इस पूरी मानसिकता को</span>, <span lang="HI">इस पूरी दिमागी व्यवस्था को खारिज करती हूँ पर सोचती हूँ कि उन्हें यह
अधिकार दिया किसने</span>, <span lang="HI">उनकी इस मानसिकता को बनाया किसने</span>,
<span lang="HI">क्या पेरेंटिंग और समाजीकरण की इसमे भूमिका नहीं है</span>..? <span lang="HI">लड़कियों को जहां इस समाज और इसके भीतर के परिवार ने सहज और सच्चे व्यवहार
व भावनाओं को भी गलत बता नियंत्रित करने की कोशिश की</span>, <span lang="HI">वहीं
लड़कों को क्यों नहीं सिखाया गया कि उनका हर वह व्यवहार गलत है</span>, <span lang="HI">जिसके ज़रिए वो किसी को कंट्रोल करना चाहते हैं</span>, <span lang="HI">वो </span>'<span lang="HI">किसी</span>' <span lang="HI">कुछ भी हो सकता है</span>, <span lang="HI">व्यक्ति</span>,
<span lang="HI">व्यक्ति की भावनाएं</span>, <span lang="HI">स्थितियां कुछ भी</span>...
<span lang="HI">आज खबरों में लड़कियाँ सुर्ख़ियों में हैं क्योंकि वे विरोध कर रही
हैं</span>, <span lang="HI">पर ये बोलती लड़कियां इस समाज को हमेशा चुभती रही हैं</span>,
<span lang="HI">क्योंकि यह उनकी सीमित भूमिका</span>, <span lang="HI">जिसे इस समाज
ने तय किया था</span>, <span lang="HI">से अलग व्यवहार है। यह उस 'स्त्रैणता (</span>femininity)<span lang="HI">' अलग व्यवहार है, जिसका निर्धारण उसी मानसिकता ने किया है जो स्त्रियों
को बड़ी चालाकी से सेकंड क्लास सिटिजन बना देती है। </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">आज़ादी इन
दिनों देश का एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">, <span lang="HI">मैं इस नारे की
पृष्ठभूमि में न जाते हुए अपने परिचय और परिचय से बाहर के उन लोगों से जो लिबरल
होने का दावा करते हैं</span>, <span lang="HI">जिनमे से कइयों ने मेरी आइडेंटिटी पर,
मेरी नैशनलिटी पर कई दफे सवाल उठाए हैं, बस यह कहना चाहती हूँ कि लिबरल कह भर देने
से कोइ लिबरल नहीं हो जाता। हमें हर रोज़ उन सब विषमताओं से लड़ना पड़ता है जिसे
कंडिशनिंग के ज़रिए एक लम्बे समय से हमारे भीतर कुछ यों भरा गया है कि वे हमारे
व्यक्तित्व का हिस्सा बन गए हैं। </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">इन दिनों
देशप्रेम का भी उबाल चल रहा है। प्रेम यकीननन एक खूबसूरत भावना है। देश से प्रेम
अच्छी चीज़ है पर राष्ट्र्वाद पर चल रही बहसों के इस दौर ताज्जुब के साथ दुःख इस बात का है कि इस तरह की
हवा देने वाले और इससे होने वाली नकारात्मकताओं का समर्थन करने वाली मानसिकता वाले
एक स्त्री को उसी पैटर्न में देखते हैं</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">, <span lang="HI">जिसे किताब के
पन्नों में तो महिमामंडित किया जाता है पर जीवन में उसे एक अदद इंसान भी नहीं माना
जाता</span>... <span lang="HI">जब आप किसी की भावनाओं के साथ खेलते हैं</span>, <span lang="HI">खेलना शायद अच्छा शब्द नहीं है यहाँ</span>, <span lang="HI">बड़ी आसानी से
उसे अपनी सहूलियत के हिसाब से ट्रीट करते हैं</span>, <span lang="HI">जब आप समाज के
एक तबके को अपने बराबर की जगह पाने से वंचित करते हैं</span>, <span lang="HI">तो आप
किस प्रेम की बात करते हैं</span>, <span lang="HI">जब आपके लिए शब्द महज़ एक औज़ार
होते हैं</span>, <span lang="HI">जब आप किसी के भरोसे को उसकी बेवकूफी बताते हैं</span>,
<span lang="HI">जब आप जीने के लिए ज़रूरी सामान्य मानवीय संवेदनाओं की कद्र नहीं कर
पाते तो आप किस प्रेम और बराबरी की बात करते हैं</span>..<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">जिस समय को
हम आज जी रहे हैं</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">,
<span lang="HI">वह कल इतिहास में कैद होगा। इस तरह हम एक इतिहास को बनते देख रहे
हैं। जब एक लड़की को रेप की धमकी दी जाती है या कि जब एक स्त्री के साथ गलत व्यवहार
किया जाता है और उसके विरोध के प्रतिउत्तर में एक दूसरी स्थिति ला दी जाती है</span>,
<span lang="HI">क्या अच्छा न हो कि गलत को गलत कहा जाए</span>..<span lang="HI">इतना
मुश्किल क्यों हो जाता है साथ मिलकर गलत को गलत कह पाना, वहाँ 'किंतु', 'परंतु' की
जगह कैसे बना ली जाती है। आने वाली पीढ़ी यह सीखे कि हर इंसान अपनी परिवेशगत पहचान
से ऊपर और पहले एक पूरा इंसान है</span>.. <span lang="HI">क्योंकि हमारी पीढी ने तो
यह नहीं सीखा है, वह सिर्फ स्त्री को देवी बनाने का श्लोकोच्चार करती है</span>, <span lang="HI">व्यवहार के स्तर पर इसे सीखा जाना बाकी है </span>.. <span lang="HI">आज हो
रही हर तरह की हिंसा वाचिक</span>/ <span lang="HI">शारीरिक</span>/ <span lang="HI">मानसिक
इस बात को पुष्ट करती है</span>... <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">हमारे
माननीय नेतागणों के बयान हमारे विज्ञापन</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">/ <span lang="HI">सिनेमा इस बात को
लगातार पुष्ट करते हैं कि उनकी नज़र में लड़कियों की ज़िन्दगी का अंतिम लक्ष्य क्या
हो</span>, <span lang="HI">उसका पालन नहीं करती लड़कियां रौंद दी जाएँगी</span>, <span lang="HI">और घटनाएं भुला दी जाएँगी। सुरक्षा का हवाला दे कर यह मानसिकता बार बार
स्त्रियों को अपने पंख फैलाने से रोकती है, इस मानसिकता द्वारा रची गई भूमिका से
बाहर अपने लिए नई जगह गढ़ने से रोकती है। 'अच्छी लड़की' का झुनझुना थमा, 'देवी-पूजन'
की परंपरा का हवाला देकर उसे एक अदद इंसान बनने से रोकने का काम यह मानसिकता लंबे
समय से करती आ रही है। ज़रूरी है कि हम उन मानसिकता को समझें, उस मानसिकता को
खाद-पानी देने वाली कंडिशनिंग को समझें जिसकी आड़ में लगातार गैर-बराबरी को पोसा
जाता है। </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">इसलिए आवाज़
उठाते रहिए, सवाल करते रहिए बराबरी की माँग करते रहिए अपने अपने स्तरों पर क्योंकि
बिना माँगे कुछ नहीं मिलता। बराबरी की हमारी यह लड़ाई काफी पुरानी है और हम इसमें
बहुत आगे आए हैं। हालाँकि अभी हमें लम्बा सफर तय करना है, आर्थिक निर्भरता कम हो
रही है, भावनात्मक निर्भरता जिसके सहारे हमें कमज़ोर किया जाता है, उससे भी हमें
स्वतंत्र होना होगा। हमें गैर-बराबरी को सेलिब्रेट करने वाली मान्यताओं पर भी सवाल
करना होगा। हमारे साथ-साथ बराबरी की इच्छा रखने वाले सभी लोगों को</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;">, <span lang="HI">अपने देश को सुन्दर बनाने की कामना रखने वाले सभी लोगों को एकजुट होना
होगा ताकि सभी के लिए समानता व सम्मान के साथ जीने के स्वप्न को सच बनाया जा सके। </span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt; line-height: 115%;">आखिर में, आलोकधन्वा की एक कविता
पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले लोगों के लिए:<br /><br /><br /><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 6.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt; line-height: 115%;">तुम्हारे
उस टैंक जैसे बन्द और मजबूत<o:p></o:p></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; font-size: 13pt;">घर
से बाहर</span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; font-size: 13pt;">लड़कियाँ
काफी बदल चुकी हैं</span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; font-size: 13pt;">मैं
तुम्हें यह इज़ाज़त नहीं दूँगा</span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; font-size: 13pt;">कि
तुम उसकी संभावना की भी तस्करी करो...!!</span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<br />
<br />
<b><br /></b>
<div style="text-align: left;">
<b>--- स्वाती</b></div>
<div style="text-align: left;">
<b>शोधार्थी , कवयित्री<br />दिल्ली विश्विद्यालय - हिंदी विभाग </b></div>
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt; line-height: 115%;"><br /></span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
</div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-67800077931793742552017-02-14T12:55:00.011+05:302021-11-15T23:00:01.969+05:30 दाम्पत्यः प्रेम या पहेली - मन्नू जी से बातचीत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeFv5-L_IPwM6a_WZ3f8uFQb4jzqnba8PnCv774dZh3xD0TQFRmt48EdvYpD3rtSZWY-Y7RFmSVDk-Mqbd1522rxHK1kZ8Mt7vQ-e2FPm9kkVUcyYBKHEKgP2-s1dcu80oBEZl53r1nu8/s1600/10473138_485979348199990_954559716317518567_n.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeFv5-L_IPwM6a_WZ3f8uFQb4jzqnba8PnCv774dZh3xD0TQFRmt48EdvYpD3rtSZWY-Y7RFmSVDk-Mqbd1522rxHK1kZ8Mt7vQ-e2FPm9kkVUcyYBKHEKgP2-s1dcu80oBEZl53r1nu8/s320/10473138_485979348199990_954559716317518567_n.jpg" width="236" /></span></a></div>
<span style="font-size: large;"><br />
<span style="background-color: #fff2cc;"><br />दाम्पत्यः प्रेम या पहेली -मन्नू जी से बातचीत </span><br />
<br />
<br />हिंदी साहित्य जिनकी लेखिनी से समृद्ध है; हम सबकी प्रिय लेखिका आदरणीय मन्नू भंडारी जी की सशक्त लेखिनी से भला कौन प्रभावित नहीं होगा ! मेरा सौभाग्य है की मैं उनसे कई बार मिली और जितनी बार मिली;उनके लेखकीय अनुभवों से जुडी ढेर सारी सुखद स्मृतियां लेकर लौटी | बहुत दिनों से मन था कि एक बार फिर उनसे मिलूं | इस बार वैलेंटाइन डे के लिए राजेंद्र जी और उनके प्रेम से भरी कुछ सुखद स्मृतियाँ सहेजकर ब्लॉग पर सभी से साझा करने का मन हुआ| जबकि उनसे इस विषय पर बात करना मेरे लिए बहुत कठिन था| मैंने उन्हें फोन किया और मिलने के लिए समय माँगा | उन्होंने कहा, “आ जाओ! कल ही मैं टिंकू(रचना जी) के यहां से लौटी हूं!”<br />
<br />
मैं तुरंत घर से निकल पड़ी! ग्रीन पार्क मेट्रो स्टेशन से बाहर आकर ऑटो करने लगी तो एक फ्लावर शॉप देखकर रुक गयी | रजनीगंधा फूल तो मिला नहीं, मैंने गुलाबों का एक छोटा सा बुके ही बनवा लिया अपनी प्रिय लेखिका के लिए | गुलाबों का बुके बनता देख रजनीगंधा फिल्म की नायिका विद्या सिन्हा की याद आई | फूलों को गालों से सटाये सौम्य हंसी बंद आँखों वाला चेहरा किसे याद नहीं होगा | फूल भेंट करने की अब मेरी भी आदत नहीं रही लेकिन अचानक न जाने किन भावों ने प्रेरित किया की अपनी प्रिय मन्नू जी को फूल भेंट करूँ| यह तो बाद में पता चला कि उस दिन रोज़ डे था! सुखद आश्चर्य हुआ! उनके घर से वापस आकर मैंने फ़ेसबुक पर छोटी सी पोस्ट भी लिखी| खैर .. मन्नू जी से हुई बेहद आत्मीय बातचीत आप सभी से साझा कर रही हूँ ..<br />
<br />
घर पहुँची तो मन्नू जी नेबोलाइज़र पर थीं| कुछ देर बाद उन्होंने आवाज लगाई - यहीं आ जाओ! पास पहुँचकर मैंने उन्हें बुके और मिठाई थमाते हुए प्रणाम किया!<br />
<br />
“अरे वाह! ये मेरे लिए हैं ..!” कहकर कुछ देर तक फूलों को निहारती रहीं! उन्हें देखकर मुझे पुनः उनकी कहानी “यही सच है” पर बनी फिल्म रजनीगंधा की नायिका याद आ गयी| आँखें बंद करके रजनीगंधा के फूलों को गालों से लगाकर कैसे प्रेम से लबालब भरी दिखती थीं| <br />
<br />
उन्होंने गीता (घरेलू सहायिका) को बुलाकर कहा -“इन्हें डाइनिंग टेबल पर सजा दो!” उसके बाद मिठाई वाले पैकेट की ओर इशारा करके बोलीं -“ये क्या है..?”<br />
</span><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4TGA-KNyLfJ6atEo8ifM8CqddyqNgD-dCvZEon41klB5UZblCJUM7qZp7fAgGIdhaii_GNz0ckB2cDhsTrkRvlvpq-RUyxw50e5sMaUv44vVzozd26hifi6p_QJlOGhPcKzS-QXKBJfA/s1600/378374_605099072852273_1882533526_n.jpg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4TGA-KNyLfJ6atEo8ifM8CqddyqNgD-dCvZEon41klB5UZblCJUM7qZp7fAgGIdhaii_GNz0ckB2cDhsTrkRvlvpq-RUyxw50e5sMaUv44vVzozd26hifi6p_QJlOGhPcKzS-QXKBJfA/s320/378374_605099072852273_1882533526_n.jpg" width="240" /></span></a></div>
<span style="font-size: large;"><br />
“मिठाई है आपके लिये!”<br />
<br />
“अरे ये सब मत किया करो!”<br />
<br />
“कुछ नहीं .. बस मन किया! मुझे अच्छा लगता है!” न जाने क्या-क्या चल रहा था मन में लेकिन मैं इतना ही कह पाई! उन्होंने मिठाई का डिब्बा भी गीता के हाथ में थमा दिया |<br />
<br />
“अच्छा .. तुम अपनी सुनाओ.. क्या हाल हैं ..? तुम्हारा काम कैसा चल रहा है ? .... देखो मैं भूल रहीं हूँ .. तुम कुछ अच्छा सा काम कर रही थीं .. जरा बताओ क्या काम था वो ..?” उनसे मेरी चैथी या पांचवी मुलाकात थी | इस बार लगभग एक साल के बाद हम मिले | वे बातों-बातों में बार बार दोहरातीं हैं कि उन्हें कुछ याद नहीं रहता | अपनी कम होती याददाश्त से सबसे ज़्यादा परेशानी उन्हें खुद होती है | पर मैं हैरान थी कि पूरी तरह नहीं पर कुछ याद था जो मुझसे जुड़ा था! मैंने उन्हें फरगुदिया ब्लॉग और झुग्गी-बस्ती की बच्चियों की डायरी के बारे में याद दिलाया |<br />
<br />
- “अरे हाँ.. हाँ! याद आया .. देखो दिमाग को क्या हो जाता है .. भूल ही गई थी.... बहुत अच्छा काम है .. करती रहना इसे !” वे कुछ याद करती बोलीं ! मैं उनसे कहना चाहती थी कि ब्लॉग और डायरी लेखन के लिए अभी पूरा समय नहीं निकाल पा रहीं हूं लेकिन कहा नहीं! क्योंकि उसके बाद अपनी व्यस्तता और उसके कारण बताने पड़ते और वे बहुत मुश्किल से मेरी बात सुन पा रही थीं!<br />
<br />
न जाने कितना कुछ भरा हुआ था उनके मन में! एक बात शुरू करतीं.. उसे अधूरा छोड़कर दूसरी बात याद आने पर बताने लगतीं!<br />
<br />
“तुम्हारा काम बहुत अच्छा है... इसे करती रहना..!” अचानक मौसम की बात करने लगीं -“अच्छा यहाँ तीन चार दिन पहले सर्दी काफी कम हो गई थी ... टिंकू के यहाँ तो सर्दी कम थी .. वहाँ खूब अच्छे से नहा लेते थे लेकिन यहाँ तो ठंडक है.. आज सबेरे भी ठंड लग रही थी!”<br />
<br />
“कल काफी कोहरा हो गया था अचानक और आज भी तेज हवा चलने लगी..! मैंने उनकी बात आगे बढ़ाते हुए कहा!”<br />
<br />
आज अच्छी लग रहीं थीं मन्नू जी | उनके चेहरे की लगातार मुस्कराहट देखकर मुझे खुशी हो रही थी लेकिन मन्नू जी मुझे कुछ कमजोर लगीं! मैंने पूछ भी लिया, “ आप कुछ दुबली दिख रहीं हैं !”<br /><br /> हँसती हुई बोलीं - “अरे .. काहे का दुबलापन! खाती हूँ ... सोती हूँ .. मोटी होती जा रहीं हूँ!” <br />
<br />
हम दोनों एक साथ हँसने लगीं |<br />
<br />
“अच्छा .. तुमको सर्दी-वर्दी नहीं लग रही है ?” मेरे स्वेटर न पहनने की तरफ उनका ध्यान गया था|<br />
मैं हँस पड़ी, “नहीं .. ज्यादा नहीं लग रही है .. मेट्रो की भीड़ में तो गर्मी लग रही थी!’<br />
<br />
कुछ देर यूँ ही बातों का सिलसिला चलता रहा| मैं बस हाँ...हूँ...जी...करती हुई उनकी बातें सुनती जा रही थी | मैं उनसे वेलेंटाइन डे के बारे में बात शुरू करना चाह रही थी लेकिन शुरुआत कैसे करूँ, नहीं समझ पा रही थी | डर भी रही थी क्योकि मन्नू जी के पास राजेंद्र जी से जुडी बहुत कड़वी यादें ही हैं | जब भी कभी राजेंद्र जी का जिक्र आया है, वे उनके जीवन में लगातार बनी रही दूसरी महिलाओं से उनके संबंधों का ज़िक्र करके क्षोभ और बेचैनी से भर जातीं हैं! लेकिन न जाने क्यों मैं उत्सुक हो रही थी ये जानने के लिए कि कुछ तो ऐसे मधुर क्षण होंगें जिन्हें याद करके मन्नू जी राजेंद्र जी के प्रति प्रेम से भर जातीं होंगीं ! डरते-डरते मैंने वेलेंटाइन-डे की बात की और कहा- “अच्छा बताइए! वैलेंटाइन-डे पर आपके बारे में कुछ लिख सकती हूं ?”<br />
<br />
मेरी बात सुनते ही तपाक से बोलीं - “तुम मनाती हो वैलेंटाइन-डे ..?”<br />
</span><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5z-33jqh0zltENMDdZibczwdLKMjJb40cdyUIE32pqVLxpz9keLvX2qBu9o9K8kb0JR1oFGdU2gL1zeWoYAlLBtIxhrXJax6HK0-v8b-aMuf4qLEFF4o29T_MVGFaERW70ricT_kHkm8/s1600/1044202_333175923480334_776677012_n.jpg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5z-33jqh0zltENMDdZibczwdLKMjJb40cdyUIE32pqVLxpz9keLvX2qBu9o9K8kb0JR1oFGdU2gL1zeWoYAlLBtIxhrXJax6HK0-v8b-aMuf4qLEFF4o29T_MVGFaERW70ricT_kHkm8/s320/1044202_333175923480334_776677012_n.jpg" width="320" /></span></a></div>
<span style="font-size: large;"><br />
<br />
मैं सहम गयी! एक क्षण को यूँ लगा कहीं नाराज़ तो नहीं हो गयीं ! मैंने डरते-डरते कहा ,“मैं मनाती नहीं .. लेकिन अपने ब्लॉग - फरगुदिया पर आजकल के प्रेम से हटकर कुछ अलग नया पोस्ट करना चाहती हूँ!” <br />
<br />
मन्नूजी कुछ बुझी हुई सी कहने लगीं- ‘‘ मैं क्या बताऊं बेटा, मेरे शरीर में अब कुछ बचा नहीं है.. सुनाई नहीं देता है.. दिखाई नहीं देता है.. ये जो मेरा भेजा है वो बिलकुल निचुड़कर खत्म हो गया है ... लिख तो मैं कुछ सकती नहीं...! (कुछ देर की चुप्पी के बाद) .. एक दिन मैं रात में अच्छी भली सोई.. खाया-पिया, बातें की, पढ़ा- लिखा.. साढ़े ग्यारह बजे सोई.. सुबह उठी तो देखा मुझे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा.. अब मैं बहुत परेशान! मैं आँखें फाड़कर इधर-उधर देख रहीं हूँ और कह रहीं हूँ .. अरे!! मुझे कुछ दिख नहीं रहा, दिख नही रहा.. मैंने घबराकर टिंकू को फोन किया, “टिंकू मैं उठी तो मुझे कुछ नहीं दिख रहा..! वो भी परेशान ! उसने कहा तुरंत ड्राइवर के साथ आप अपने आँख के डॉ के पास जाओ ! उस दिन ड्राइवर को आना ही नहीं था लेकिन उसे बुलवाकर गयी.. उन्होंने अच्छी तरह से चेक किया और कहा-आपको कोई प्रॉब्लम नहीं है ..आँख बहुत अच्छी हालत में है लेकिन सर्कुलेशन ऑफ ब्लड रुक जाए तो दिखाई देना बंद हो जाता है! अब मैंने कहा..मैं क्या करूँ ..?? उन्होंने कहा - इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है! अपने आप ही धीरे धीरे रोशनी लौट आएगी! (याद करते हुए कहती हैं ) लगभग सात आठ महीने हो गए शायद...अब थोड़ा थोड़ा दिखना शुरू हो गया है.. (मुझे छूकर) अब ये मुझे दिख रहा है कि तुमने पिंक कलर का कुछ पहन रखा है .. पर मैं तुम्हारा फेस नहीं पहचान सकती.. चेहरा मुझे नहीं दिखाई दे रहा.. एक शरीर है मेरे आगे.. ये दिख रहा है.. रंग भी दिख रहा है.. थोड़े दिनों बाद शायद और दिखाई देने लगे..! मेरे सारे शरीर के अंग बेकार हो गए .. अब मैं क्या करूँ ...कुछ समझ नहीं आता है.. मेरे पास कोई आएगा तो मैं उसे क्या दे सकती हूँ..!”<br />
<br />
एक लेखक के जीवन से लिखना पढना ही छूट जाए उससे अधिक पीड़ा क्या होगी ! मन्नूजी को अचानक इस तरह दिखाई न देने से उनपर क्या प्रभाव पड़ा होगा.. उनकी मनःस्थिति समझ सकती हूँ! लेकिन उनके साथ कुछ समय बिता लेने भर से कितनी प्रेरणा मिलती है .. उसे व्यक्त नहीं कर सकती! उनसे बस इतना ही कह पाती हूँ ,“आपके साथ समय बिताने भर से बहुत प्रेरणा मिलती है!”<br />
<br />
’’हाँ! आओ, बैठो.. बल्कि टिंकू तो यही कहती है-आपकी बीमारी का इलाज ही यही है-आपके साथ कोई रहे... आपसे बातें करें... आपका मन बहलाये..! तो आओ.. रोज आओ.. जो भी मेरे घर आता है अपना घर समझकर आता है और मैं भी उनका स्वागत घर के सदस्य की तरह ही करती हूँ!”<br />
<br />
डरते-डरते उनसे कहती हूँ, “.मैं बताऊँ ... मैं आपके और राजेंद्र जी के लगभग पैंतीस साल बिताये साथ और अलग होने के बाद के जीवन के कुछ अच्छे प्रेम भरे अनुभवों को अपने ब्लॉग पर लिखना चाहती हूँ , अगर आप चाहें तो कुछ साझा करें ..!” <br />
<br />
उन्होंने मेरी बात ध्यान से सुनी | फिर कुछ सोचते हुए बोलीं, “देखो .. मैं राजेंद्र जी के साथ पैतीस या तैतीस साल रही लेकिन मैं ये कह सकूँ... कि उसमें उनके साथ कुछ अच्छे दिन रहे;ऐसा कुछ था नहीं (कुछ देर की चुप्पी) ..दिन तो लगभग सभी तकलीफदेह थे .. बस एक अच्छाई ये थी उनमें कि वे मुझे लिखने के लिए बहुत प्रोत्साहित करते थे .. कहते थे, तुम लिखो .. बस तुम लिखो ..देखो तुम्हारा लिखा हुआ कितना सराहा जाता है ... बस मेरा लिखा पढ़कर आगे और लिखने के लिए बहुत प्रोत्साहित करते थे ..यह उनकी खास आदत थी !” <br />
राजेंद्र जी की बात बीच में ही छोड़कर कहतीं हैं ,.”..और सच कहूँ शोभा .. मैं अगर जिन्दा रही .. अभी की बीमारी छोड़ दो, वह तो एज रिलेटेड है ..पर उसके पहले जो मैंने अपने आपको संभाले रखा .. वो सिर्फ लेखन की वजह से ... अपने लेखन की वजह से ही मैं जिन्दा रही ... किस्मत अच्छी थी कि मेरा लिखा सभी को क्लिक करता था .. मेरे लिखे दोनों नाटक बहुत सराहे गए !”<br />
<br />
कहते हुए उनकी आँखों में कुछ चमक दिखी! सच ही तो है! घोर पीड़ा भरे उन दिनों में वे लिखकर ही तो अपना दर्द बाँट पाती होंगी! मैं उनकी आँखों में राजेंद्र जी के प्रति प्रेम ढूंढ रही थी लेकिन उनका जिक्र करते हुए वे दुःख और क्षोभ से भर गयीं!<br />
<br />
मैं फिर कोशिश करती हूँ कहीं किसी बात का जिक्र करते हुए शायद मन्नू जी के प्रति राजेंद्र जी के प्रेम की झलक दिख जाए! मैं पूछती हूँ - “तो आपका लिखा पढ़कर खूब प्रोत्साहित करते थे राजेंद्र जी ?”<br />
<br />
“बहुत ..बहुत करते थे! कुछ कुछ रचनाओं के लिए तो बहुत करते थे .. कोई लड़की अपनी कहानी लेकर हंस के ऑफिस गयी थी तो उसने मुझे बताया कि उन्होंने कहा - देखो कहानी कैसे लिखी जाती है मन्नू से जाकर सीखो ... उस लड़की ने मुझे बताया .. ये नहीं बताते थे .. तो मुझे अच्छा लगता था कि चलो कम से कम मेरे लेखन की तो ये इतनी तारीफ करतें हैं .. ये मेरी रचनाओं के प्रशंसक थे! ..लेकिन एक स्टेज के बाद तो संबंधों के मायने भी बदल जातें हैं ... प्रेम व्रेम कोई मायने नहीं रखता .!” राजेंद्र जी द्वारा अपने लेखन की प्रशंसा का जिक्र करते हुए आत्मविश्वास से भरी मन्नू जी प्रेम की बात तक आते आते खिन्न हो जाती हैं! <br />
</span><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6ezhoj8MbimAH6hvdINThw_FXqj5up7zrUrR0NhM3LQQryG9ooRzO4n8qUQ58FiLeq12hANUW7SbgIqFYCpOkvmhR1lqxnFkHkv1PgP0RFmn2P-Tj5GvMG2piPEkgObxU-BSgnSAdv34/s1600/16684112_957478447716742_5216905468135700690_n+%25281%2529.jpg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6ezhoj8MbimAH6hvdINThw_FXqj5up7zrUrR0NhM3LQQryG9ooRzO4n8qUQ58FiLeq12hANUW7SbgIqFYCpOkvmhR1lqxnFkHkv1PgP0RFmn2P-Tj5GvMG2piPEkgObxU-BSgnSAdv34/s320/16684112_957478447716742_5216905468135700690_n+%25281%2529.jpg" width="283" /></span></a></div>
<span style="font-size: large;"><br />
<br />
मैं उनकी बात पूरी होने से पहले कहती हूँ, “प्रेम ..मैं आजकल के आधुनिक प्रेम की बात नहीं कर रहीं हूँ ; जिसमें ज्यादातर स्वार्थ भरा होता है! मैं एक सम्मानजनक प्रेम के भाव की बात कर रही हूँ! आपसे अलग होने के बाद तो उन्हें आपकी ज़रूरत या अहमियत महसूस हुई होगी कभी ... फोन पर या...”<br />
<br />
मुझे बीच में टोकते हुए कहतीं हैं,‘‘वो अलग होना ही नहीं चाहतें थे .. अलग होना बिलकुल नहीं चाहते थे ... मैंने ही उन्हें आग्रह कर अलग किया! क्योंकि उन्होंने आपसी संबंधों का जो दायरा बना लिया था कि घर की और आर्थिक जिम्मेदारियां मैं संभालूं ... वे किसी भी तरह की कोई जिम्मेदारियां नहीं लेगें .. बस घर में बने रहेंगें ... घर नहीं छोड़ेगें ... घर की सुविधाएं और कहाँ मिलतीं! लेकिन कौन व्यक्ति होगा जो इतना सहेगा ..?” <br />
<br />
(कुछ और भी कहना चाहतीं हैं लेकिन मैं बीच में ही टोककर कहती हूँ ) ”हम सभी जानते हैं ये सब बातें .. जो कमियाँ थीं वो तो थीं ही ..अपनी आत्मकथा में आपने लिखा भी है लेकिन मैं चाहतीं हूँ कि आज आप उनकी कुछ अच्छी-अच्छी बातें साझा करें.!”<br />
<br />वह फिर अपनी पहले कही बात दोहराती हैं - “बस, उनका सारा लगाव मुझे लेखन के लिए प्रोत्साहित करने तक था .. बल्कि मुझसे कहते थे कि तुम्हें आसानी से नाम मिल गया है लेखन में इसलिए तुम बहुत लापरवाह हो गई हो .. तुम और मेहनत करके और अच्छा लिखने की कोशिश करो .. पर एक पत्नी की अपनी इच्छाएं, ज़रूरतें होती हैं... आप बीमार पड़े हैं और कोई हाल भी न पूछे.. अपने दोस्तों के साथ फ़ोन पर ठहाके लगाता रहे तो आपको कैसा लगेगा.!” <br />
<br />
"जी, मैं समझ सकती हूँ! बीमार पत्नियां अपने पति की उपेक्षा से कैसे घुटकर रह जाती हैं! बहुत सारे बंधन उन्हे जकड़े रहते हैं! वे अपना मुंह भी नहीं खोल पातीं!" कुछ समझ नहीं आता क्या कहूँ उनसे ! जो मन में आया कहती गयी !<br />
<br /> मेरी तरफ से एक और कोशिश..मुस्कुराकर मैं पूछती हूं, “किसी खास दिन से जुड़ी ऐसी घटना जिसमें आपके प्रति उनका प्रेम झलका हो..जैसे- शादी की सालगिरह के अवसर पर... आपके जन्मदिन के अवसर पर ..?”<br />
<br />
मेरी बात पूरी होने से पहले कहतीं हैं,‘‘जन्मदिन तो मेरा वो याद ही नहीं रखते थे.. मुझे एक बार बहुत तकलीफ भी हुई .. मेरी एक फ्रेंड थी ..मेरे जन्मदिन के बहाने उनसे मिलने आई और वो तो घर पर ही नहीं थे... मुझे बहुत तकलीफ़ हुई! अरे.. कुछ न करते पर कम से कम अपनी उपस्थिति तो दर्ज़ करते..!’’<br />
<br />
“अलग होने के बाद भी जन्मदिन याद नहीं रखते थे..?” मैं फिर पूछती हूँ!<br />
<br />
“बस, यही बहुत बड़ा फ़र्क आया ! साथ रहते जिस पति ने कभी जन्मदिन याद नहीं रखा, अलग होने के बाद बराबर फोन करते ... फूलों का बुके भेजते.. साल दर साल.. बल्कि उसके बाद उन्होंने मुझसे अपने सम्बन्ध बहुत अच्छे बना लिए थे..कोशिश करते थे कि मैं उन्हें वापस बुला लूँ.... लेकिन वह संभव नहीं था.. बहुत झेल लिया था मैंने लगातार पैंतीस साल..!”<br />
<br />
उनकी बात पूरी होने से पहले फिर प्रश्न करती हूँ ,‘‘ उन्होंने कभी आपसे कहा नहीं कि मुझे बुला लो.. मैं आना चाहता हूँ..?’’ <br />
<br />
“नहीं..ये कहा तो नहीं लेकिन कोशिश बहुत की ! जन्मदिन जो कभी याद नहीं रखते थे ! अब हर साल जन्मदिन और शादी की सालगिरह पर फूल भेजने लगे.. मैं सब महसूस करती थी..अच्छा भी लगता था और टीस भी उठती थी..! (कुछ देर की चुप्पी.. फिर कहतीं हैं )सौभाग्य से ये घर मेरा.. एक एक तिनका.. एक एक पाई मेरी.. खरीदने से लेकर बनाने तक सब कुछ मेरा था ...सबकुछ लगाकर मैंने ये घर बनाया था.. तो मैं कह सकती थी न कि आप मुझे अब मुक्त करिये... मैं ऐसा कह सकती थी तो कहा .. अगर ये घर उनका होता तो मैं कैसे कहती? बहुत सी पत्नियां इसीलिए कुछ भी नहीं कह पातीं...मरते दम तक सहती चली जाती हैं!” <br />
<br />
पिछली किसी मुलाकात में उन्हीं की कही बात याद करती हूँ ,‘हिन्दुस्तान के परिवार औरत के कन्धों पर टिकें हैं!’ सच ही तो है.. भारतीय समाज की स्त्रियों का सच भी तो यही है! चारदीवारी में अपनों द्वारा ही मानसिक-शारीरिक प्रताड़ना सहती हुई वे भीतर ही भीतर टूटती रहतीं हैं! फिर भी परिवार को बचाने के लिए अपने आपको मजबूत रखने का भरसक प्रयत्न करतीं हैं!<br />
आगे वही सब बातें दोहराती हैं जो उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है- वासु चटर्जी जी, गिरीश अस्थाना का अचानक उनके घर आना और राजेंद्र जी को घर आने देने का अनुरोध करना.. और दृढ़ता से मन्नू जी का उन्हें मना करना.. और भी बहुत सारी बातें .!<br />
</span><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKNZoznltk1ondvkbaBmNxdb9lFh1Nactj710sJihuiUSm_POyxWhwoAIJk21eQySWOsV5JmTXxEm4pNLmr35mR0FOaRqvSyeVYIiwMQ1iXs3BOU2E996h4lY1RsyFJTK6hGLfGtQNOoQ/s1600/16603022_953611384770115_5820714902144206171_n.jpg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKNZoznltk1ondvkbaBmNxdb9lFh1Nactj710sJihuiUSm_POyxWhwoAIJk21eQySWOsV5JmTXxEm4pNLmr35mR0FOaRqvSyeVYIiwMQ1iXs3BOU2E996h4lY1RsyFJTK6hGLfGtQNOoQ/s320/16603022_953611384770115_5820714902144206171_n.jpg" width="320" /></span></a></div>
<span style="font-size: large;"><br />
बातों बातों में फिर मीता का जिक्र करके खिन्न होने लगतीं हैं! मैं उन्हें आग्रहपूर्वक समझाने की कोशिश करती हूँ! कुछ नकारात्मक याद न करके राजेंद्र जी और स्वयं से जुडी कुछ सकारात्मक, प्रेम भरी यादें साझा करने को कहतीं हूँ!<br />
<br />
मैं फिर पूछतीं हूँ , “अलग होने के बाद तो आपकी कमीं महसूस हुई होगी..?”<br />
<br />
“अलग होने के बाद तो ये आ गई थी न.. मैत्रेयी! वो इनके बहुत निकट हो गई थी... इनके पास कोई सपोर्ट था नहीं..मैत्रेयी इनके लिए घर का सामान खरीदकर देने लगी.. इनकी भौतिक जरूरतों को पूरा करने लगी .!”<br />
<br />
घुमा फिराकर प्रश्न पूछकर मैं दोनों के बीच प्रेम ढूंढना चाहती थी लेकिन राजेंद्र जी के संबंधों को लेकर वे हर बार कड़वाहट से भर उठतीं ... मैं उन्हें समझाते हुए कहती हूँ, “घर परिवार से अलग हुए पुरुष के जीवन में बहुत सारी स्त्रियां आ सकतीं हैं लेकिन पत्नी का तो अलग स्थान रहता ही है न ? दूसरी स्त्रियों के साथ रहे उनके संबंधों को हम भटकाव कह सकतें हैं ..जीवन की ऐसी कुछ चीज़ें उथली होती हैं.. लेकिन कुछ ऐसा भी तो होगा आप दोनों के बीच जो अदृश्य और स्थिर रहा होगा... कहीं न कहीं उनके मन में आपके प्रति कुछ तो अपनत्व और प्रेम रहा होगा ही !" <br /><br />प्रतिउत्तर में कहती हैं, “मन में जरूर था उनके... इसमें कोई संदेह नहीं! कभी-कभी कहते भी थे कि मैं जानता हूँ तुमने बहुत बर्दाश्त किया है मेरे साथ .. लेकिन मेरी अपनी कुछ मजबूरियां हैं..!”<br />
<br />
मैं खुश हो गयी उनकी बात सुनकर | कुछ तो ऐसा महसूस किया मैंने जिसमें प्रेम की झलक थी! मैंने उत्सुकता से कहा, “चलिए स्वीकार तो करते थे न..!”<br />
<br />
“स्वीकार तो करते थे.. बहुत करते थे .. ऐसी बात नहीं कि स्वीकार नहीं किया.. कभी कभी नहीं भी करते थे .. कभी कभी कहते थे – ए! तुम तो जिद लेकर बैठ जाती हो .. अरे क्या है इसमें अगर कुछ अलग है मेरे जीवन में ? ...लेकिन भीतर ही भीतर महसूस भी करते थे कि कोई भी औरत अपने पति के जीवन में दूसरी औरत बर्दाश्त नहीं करेगी..!”<br />
</span><div>
<span style="font-size: large;"><br />
“कभी गिफ्ट दिया उन्होंने आपको ?” मैं प्रश्न करती हूँ!<br />
<br />
“हाँ, दिया था ... इनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा ठीक तो थी नहीं जो मुझे महंगा गिफ्ट देते... लेकिन एक बार दोस्तों के सामने इन्होंने मंगलसूत्र दिया था... मैं बहुत खुश हुई थी... गिफ्ट के लिए नहीं ..उनके दिल में आये मेरे प्रति प्रेम भरे भाव के लिए..ऐसा नहीं है कि चाहते नहीं थे ... मन में बहुत कुछ रखते थे लेकिन व्यक्त नहीं करते थे..!”<br />
<br />
“अच्छा, कैसे महसूस किया आपने कि वो आपको चाहते थे .. कोई घटना बताइये ?” मैंने ये सोचकर प्रश्न किया कि शायद वे किसी प्यारी-सी याद का जिक्र करें!<br />
<br />
“पता चल जाता था.. बातों से..व्यवहार से ..!” मैंने ऐसा महसूस किया मानो कुछ और भी कहना चाहती हैं लेकिन नहीं कहतीं! <br />
<br />
कुछ रुककर सोचकर इस बार वे स्वयं ही मेरे पहले प्रश्न के उत्तर में कहने लगतीं हैं, “शोभा, जो सम्बन्ध खत्म हो गया...जब था तब काफी दुखद था..अब नहीं हैं ...तो कैसे कहूँ कि प्रेम था ...कोई प्रेम नहीं था उनके दिल में मेरे लिए ... मत बात करो इस प्रसंग पर ..!” खिन्न होकर वे कहतीं हैं ! <br />
<br />
मैं भी प्रेम की बातें न करने की हामी भरती हूँ! रचना जी के बारे में बताने लगतीं हैं! वे हंस को किस तरह संभालती हैं! मैं भी “आपका बंटी” उपन्यास का जिक्र करके भावुक हो जातीं हूँ! कैसे पहली बार पढ़ते समय खूब रोई थी-उसका जिक्र करती हूँ! इसी तरह लंच करते हुए कुछ साहित्यिक और कुछ दूसरी बातें होती रहीं! <br />
<br />
विदा लेने से पहले एक बार फिर मैं सुधा दीदी की कही बात का जिक्र करते हुए पूछती हूँ , “आपने कभी सुधा दीदी से कहा होगा कि अलग होने के बाद राजेंद्र जी आपका इतना ध्यान रखने लगे थे कि उनके उस आपके प्रति बदले व्यवहार को देखकर आपने उनसे कहा था - "मुझे ये पता होता कि अलग होने के बाद ये मेरा इतना ध्यान रखने लगेंगें .. मेरे बारे में इतना सोचने लगेंगें तो मैं पहले ही इनको अलग कर देती !”<br />
<br />
हंसकर मेरी इस बात से सहमत होतीं हैं | उत्साहित होकर कहतीं हैं , “ये सही बात है! मैंने कहा था कि ऐसा मालूम होता कि अलग होने के बाद ऐसे स्नेह जताएंगें तो मैं पहले ही अलग हो जाती ..!”<br />
</span><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjB_WtQCSH8hyJAdpfbvuo203K2MQsQLdimjB7qf03TnUp5-QtmPvRE_GeHNMBxGQfcXn-EsJ3TxWZ2d9hbr-y7QIvsfZykPsza9SCvp0fCofjdoO-6qkilYlO6Q-HoYyykyRY99W2ztQk/s1600/10336843_485978668200058_6116276629480724047_n.jpg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjB_WtQCSH8hyJAdpfbvuo203K2MQsQLdimjB7qf03TnUp5-QtmPvRE_GeHNMBxGQfcXn-EsJ3TxWZ2d9hbr-y7QIvsfZykPsza9SCvp0fCofjdoO-6qkilYlO6Q-HoYyykyRY99W2ztQk/s320/10336843_485978668200058_6116276629480724047_n.jpg" width="320" /></span></a></div>
<span style="font-size: large;"><br />
कुछ देर तक फिर राजेंद्र जी की ही बातें हम करतें हैं | कुछ नकारात्मक.. कुछ सकारात्मक | मैं उनसे पूछती हूँ कि आजकी बातचीत में आप दोनों के जीवन के कुछ सुखद पहलू छनकर आयें हैं उन्हें मैं ब्लॉग पर साझा करुँगी | हँसते हुए फिर वही सब दोहरातीं हैं | लापरवाही से कहतीं हैं , “अरे क्या प्रेम-व्रेम ....बहुत कुछ तो मुझे याद भी नहीं है...खैर तुम्हें इसमें कुछ प्यार नजर आता है तो लिख दो ..तुम्हें प्रेम-दिवस के लिए कुछ मैटर चाहिए लेकिन मैं बताऊँ तुम्हें शोभा ..जो कुछ मैंने झेला ..सहा.. उसके मुकाबले ये दो-एक छुट-पुट प्रेम भरी बातें कुछ मायने नहीं रखतीं.. !”<br />
<br />
सचमुच दाम्पत्य में प्रेम और उपेक्षा बहुत उलझी हुई पहेली है! एक पत्नी ताउम्र इसके मकड़जाल में उलझकर रह जाती है जो न सहते बनता है, न कहते! <br />
<br />
मैत्रेयी जी का जिक्र मन्नू जी ने ही छेड़ दिया था! न जाने क्यों मैं भी मैत्रेयी जी की नयी किताब का जिक्र शुरू कर देती हूँ! वे ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहतीं हैं, “सुना है मैंने लेकिन अब मैं इन सब बातों पर ध्यान नहीं देना चाहती .. जब से ये ब्लड सर्कुलेशन वाली समस्या हुई तब से मैं तो सारी दुनिया से कट गयी ... बस ! धीरे धीरे अब थोड़ा बहुत दिखने लगा है !”<br />
<br />
मैं आश्वासन देती हूँ उन्हें भी उनके साथ अपने आपको भी कि वह जल्दी ही पूरी तरह से स्वस्थ हो जायेंगी | ठीक से देखने लगेंगी | लेकिन निराश होकर कहती हैं,“नहीं! अब ये ठीक नहीं होगा... डॉ कहते हैं ... बी हैप्पी.. खूब खुश रहिए.. एक्टिव रहिये... लोगों से मिलिए जुलिये ...! .हालात तो कुछ ऐसे हैं कि मैं कुछ कर ही नही सकती.. फिर भी मैं कोशिश करके थोड़ा बहुत टहल लेतीं हूँ..!”<br />
<br />
अंततः मैं मन ही मन इश्वर से उनके पूरी तरह स्वस्थ होने की प्रार्थना करती हूँ | उनका हाथ थामकर कुछ क्षणों के लिए उनके पास ठहरकर उनसे विदा लेतीं हूँ | बेडरूम से बाहर निकलने लगतीं हूँ तो पीछे से उनकी आवाज सुनाई देती है – “गीता ने वो फूल सजा दिए हैं न ..?”<br />
<br />
“जी! ये रहे मेरे सामने ..!” मैं डाइनिंग टेबल पर सजे गुलदस्ते की तरफ इशारा करती हूँ और उनका सौम्य, शालीन मुस्कुराता चेहरा मेरे भीतर ठहर जाता है..<br />
<br />
उनका दांपत्य जीवन प्रेम था या पहेली ...उन्हीं अनसुलझी कड़ियों में उलझकर रह गयी मैं! पति का प्रेम स्त्री का संबल होता है..अभिमान होता है.. पति का दूसरी स्त्रियों से बंटा प्रेम भला कैसे कोई स्त्री स्वीकार कर सकती है! <br />
हाँ.. पत्नी के कर्तव्यों को निभाते हुए मन्नूजी का प्रेम निस्वार्थ,एकनिष्ट और समर्पित प्रेम की परिभाषा है मेरे लिए! आजकल के स्वार्थी और सिर्फ भौतिक सुखों की चाह रखने वाले प्रेम से बिलकुल अलग ..<br />
<br />
प्रस्तुति;शोभा मिश्रा</span></div>
</div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-55468134401502998512017-02-13T18:25:00.000+05:302017-02-13T20:26:53.797+05:30पावन संकल्पों से संकल्पित होकर- सोनरूपा विशाल <div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaTA_M7zZRU0ferG3lnKHvEf6-1MqOYiMaJRUmMpacyNBNQP7P5dkniOnhtXpdGQe5FMVETmK092b2cL3hyphenhyphenTt8ym1kdO9anqSplP6E-12B6GL6Oc_RavzWAT3EZW-UIejb1881Z2Rub6c/s1600/16729268_956562657808321_44772021816989803_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaTA_M7zZRU0ferG3lnKHvEf6-1MqOYiMaJRUmMpacyNBNQP7P5dkniOnhtXpdGQe5FMVETmK092b2cL3hyphenhyphenTt8ym1kdO9anqSplP6E-12B6GL6Oc_RavzWAT3EZW-UIejb1881Z2Rub6c/s320/16729268_956562657808321_44772021816989803_n.jpg" width="220" /></a> </div>
<span style="color: #0000ee;"><u><br />पावन संकल्पों से संकल्पित होकर- सोनरूपा विशाल </u></span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><b style="background-color: #fce5cd;"><br /></b></span>लेखिका सोनरूपा विशाल से जब भी किसी ख़ास अवसर पर लिखने के लिए कहतीं हूँ वे हमेशा मेरी उम्मीदों पर खरी उतरतीं हैं! विवाह उपरांत भी कैसे उनके सहचर के प्रेम में कोई बदलाव नहीं आया .. उनकी रुचियों को कैसे अपने प्रेम से सींचा .. उसे बहुत खूबसूरती से इस संस्मरण के माध्यम से साझा किया है..<br />
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px;">
!!संस्मरण!!</div>
<br />
मैं जब हँसती हूँ<br />
तुम कहते हो<br />
आह.. चाँदनी सी बिखर गई है!<br />
मेरी अँगड़ाई<br />
तुम्हारे लिए<br />
नदिया की बलखाती लहर है!<br />
मेरा श्रृंगार जैसे बसंत!<br />
मेरी ख़ुशबू हरसिंगार का बगीचा!<br />
लटें बादल!<br />
आँखें डल झील के सजीले शिकारे!<br />
उँगलियाँ मुरलियाँ!<br />
बाँहें गगन!<br />
साँसे पवन!<br />
चाल हिरनी सी!<br />
मेरी नींद जैसे साँझ!<br />
मेरा आँचल जैसे सागर!<br />
प्रेम में तुम मुझमें सृष्टि रच रहे होते हो!<br />
और<br />
ये तुम्हारे प्रेम की शिद्दत है<br />
जिस कारन मुझे ख़ुद में वो सब नज़र आता है<br />
जो तुम्हें मुझमें नज़र आता है !<br />
मैं मुस्कुराती हूँ कभी<br />
कभी बन्द कर लेती हूँ आँखें<br />
कभी एक टक तुम्हें देखती हूँ!<br />
फिर अचानक<br />
तुम्हें अपनी बाहों में गह कर<br />
कहती हूँ कि<br />
जो रची है तुमने <br />
वो सृष्टि अब तुम्हारी हुई!<span style="background-color: #fce5cd;"><br /></span>
<br />
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
!!मेरे इन हाथों में तुम गर अपना हाथ नहीं देते,मुझमें कितना प्यार है मैं इससे अनजानी रह जाती!!</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
ये फरवरी के गुलाबी मौसम की दोपहर थी,तारीख़ 13, जो अब हमें हमारी एंगेजमेंट की तारीख़ के रूप में ज़्यादा याद रहती है ! इस रस्म में हम दोनों के सिर्फ परिवारीजन ही शामिल हुए थे !<br />
उसी शाम जब पापा रोज़ की तरह क्लब जाने के लिए घर से बाहर निकले, उन्हें सामने एक व्यक्ति और उसके हाथ में बड़ा सा पैकेट जिसे बरेली से कुरियर किया गया था..दिखाई दिया ! ' ये क्या है' पापा ने पैकेट उलट पलटकर फिर कुरियर रिसीव किया और उसे अंदर आकर खोलने लगे ! मैं समझ गयी थी कि ये ज़रूर विशाल ने भेजा है ! अगले दिन वैलेंटाइन डे भी था ! मुझे घबराहट हो रही थी कि न जाने पापा क्या कहेंगे! मैं बहुत झिझक और डर रही थी! इससे पहले भी विशाल मेरे जन्मदिन पर अचानक रात में आकर मम्मी के हाथ में केक दे कर चलते बने थे और मम्मी अवाक रह गयी थीं !<br />
लेकिन कुरियर देख कर पापा ने कुछ नहीं कहा बस उसको थोड़ा सा ही खोल कर छोड़ दिया! जिसे हम सब ने बाद में खोला उस पैकेट में बड़ा सा टेडी बेयर, चॉकलेट्स,ग्रीटिंग और रोमेंटिक मेसेज के साथ एक ख़ूबसूरत सी फोटो थी!</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1nT8-Y_bcvhCnBcVXzZPziA0itXBgQZlVa3BRzXyIx0XZ6PG-lwDulzl2e01jp0p2R2TmIUj3l1w5qciEQYEKjngJT_gQnFN3NUpya0FUup87xXe5wPz9IrCWCUGFbH-lvBr-_H4PBfM/s1600/16730540_956564171141503_4647960403444192425_n+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="232" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1nT8-Y_bcvhCnBcVXzZPziA0itXBgQZlVa3BRzXyIx0XZ6PG-lwDulzl2e01jp0p2R2TmIUj3l1w5qciEQYEKjngJT_gQnFN3NUpya0FUup87xXe5wPz9IrCWCUGFbH-lvBr-_H4PBfM/s320/16730540_956564171141503_4647960403444192425_n+%25281%2529.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
उस वक़्त मोबाइल के यूज़र्स कम ही लोग थे ! विशाल के पास मोबाइल था लेकिन मेरे पास नहीं और लेंड लाइन फोन भी घर के बीचों बीच लगा था नहीं तो विशाल से बोलती कि 'क्या ज़रूरत थी ये सब भेजने की ! वो तो अच्छा हुआ कि आज एंगेजमेंट हो गयी तब आया ये कुरियर, नहीं तो न जाने मम्मी पापा कितना नाराज़ होते!'</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
ख़ैर एंगेजमेंट और शादी में कुछ ही दिनों का फ़र्क था! दोनों परिवार शादी की तैयारियों में व्यस्त थे! एक दिन सुबह-सुबह नहा धो कर मैं अपने लंबे बाल सुखाने धूप में बैठी ही थी कि कॉल बेल बजी,देखा तो दो लोग दरवाज़े पर थे !<br />
उस वक़्त जिन्होंने भी उन्हें रिसीव किया उन्होंने आकर बोला कि दो कैमरामेन हैं विशाल जी ने उन्हें भेजा है! मम्मी ने उन्हें अंदर लेकर आने को कहा! मम्मी के पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें मेरे कुछ फोटोज़ लेने हैं, मम्मी ने इजाज़त दे दी ! शादी की तैयारियों के दौरान शायद एक दो बार से ज़्यादा विशाल से मेरी बात नहीं हुई थी ,जो मुझे विशाल क्या कर रहे हैं इस तरह का कुछ पता चलता! उस दिन मैंने कई तरह की ड्रेसेज़ में फोटोज़ खिंचवाए!</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7AmjUCP019RtrA1Hm5kK_Wp_DZ4qL5WNg6DNs2UB5lPePvERmDY9tfqkClktwmWXUeiGPVDkxsV7guXzCamcdxcrpn4ZYVYetP2JX1BYGVeChYQzxuSJse0xrSL_oQ3FTPTBLuVO5yZE/s1600/16640735_956562671141653_707543976534633615_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7AmjUCP019RtrA1Hm5kK_Wp_DZ4qL5WNg6DNs2UB5lPePvERmDY9tfqkClktwmWXUeiGPVDkxsV7guXzCamcdxcrpn4ZYVYetP2JX1BYGVeChYQzxuSJse0xrSL_oQ3FTPTBLuVO5yZE/s320/16640735_956562671141653_707543976534633615_n.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
दिन जल्दी-जल्दी बीत रहे थे ! अब शादी कर के मैं ससुराल आ गयी थी!<br />
रस्मों रिवाज़ पूरे करके जैसे ही मैं अपने कमरे में आयी तो सबसे पहले मेरी निगाह दीवार पर लगी मेरी बड़ी सी तस्वीर पर पड़ी ! देखते ही मैंने मन ही मन सोचा 'वाओ मैं और इतनी सुंदर'! यक़ीन नहीं हुआ उस वक़्त ! काले रंग के शरारे में, काली बिंदी लगाये हुए और खुले बालों में मेरा ये फोटो मुझसे पहले मेरे यहाँ होने का एहसास करवा रहा था!<br />
पूरे कमरे में मेरी पसंद का असर दिखाई दे रहा था ! नये घर में ऐसा ख़ुशनुमा अनुभव मुझे नई जिंदगी के प्रति आशान्वित कर रहा था!</div>
अब एक और नई मुस्कुराहट मेरा इंतज़ार कर रही थी !<br />
<br />
कमरे में दो अलमारियों में से एक अब मेरे लिए दे दी गयी थी जिसे खोलते ही मुझे उसमें एक पेपर रखा हुआ मिला जिस पर नीरज जी का लिखा हुआ मेरा बहुत पसंदीदा गीत था !<br />
<div style="color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<b style="background-color: #f4cccc;"><br /></b></div>
<div style="color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<b style="background-color: #fce5cd;">'फूलों के रंग से दिल की कलम से तुझको लिखी रोज़ पाती,<br />कैसे बताऊँ किस किस तरह से हर पल मुझे तू सताती<br />तेरे ही सपने लेकर के सोया<br />तेरी ही यादों में जागा.....!</b></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मैंने उसे वैसे का वैसा ही रख दिया! इस वक़्त कमरे में मैं अकेली थी तो जम के कमरे का मुआयना कर रही थी! अब मैंने बेड से लगी हुई दराज़ खोली ....अरे यहाँ भी वही गीत लिखा हुआ पर्चा! म्यूज़िक प्लेयर ऑन किया तो उसमें भी यही गीत बज उठा ! मैं अचरज में थी कि ये क्या माजरा है ! इतने में मेरी ननद आ गईं मैंने उनसे इस बारे में पूछा तो वो ख़ूब हँसने लगीं बोलीं 'जब भैया का हमसफ़र इतना सुरीला है तो उसे इम्प्रेस करने के लिए कुछ तो गाना वाना गाएंगे न! भाभी ये गाना भैया आपको सुनाने के लिए याद कर रहे थे,शादी की व्यस्तताओं में याद नहीं कर पा रहे थे तो जगह-जगह लिख कर रख लिया और याद करते रहे!<br />
मुझे हँसी आ गयी! वो दिन है और आज का दिन है विशाल से जब भी कोई गाना सुनाने को कहती हूँ तो यही गाना सुनाते हैं और मैं दोबारा उन्हीं पलों को जी लेती हूँ !</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
ऐसे अनगिन पल हमारे पास हैं जिसने हमारे प्रेम को आकाश सा विस्तार और चाँद तारों सी रौशनी दी है !<br />
----<br />
<div style="font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
न जाने कितनी ग़ज़लों,गीतों में पिरोया है मैंने अपने प्रेम को !अपनी कैफ़ियत तो बयां करने की फ़न ईश्वर ने मुझे दिया है लेकिन अक्सर जब विशाल को अपने अहसासात कहने के लिए शब्द नहीं मिलते तो मेरे इसी फ़न से वो थोड़ी-थोड़ी जलन महसूस करते हैं ! मैं मुस्कुरा देती हूँ और कहती हूँ</div>
<div style="font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
'भले ही न हों तुम्हारे पास शायराना लफ़्ज़, न हों तुम पर प्रेम में पगे हुए शब्दों का ख़ज़ाना लेकिन तुमने एक संवेदनशील,भावुक पत्नी को कभी बिखरने नहीं दिया है तुम मुझे इतना समझते हो कि जब मैं कुछ लिखने की प्रक्रिया में होती<span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit;"> हूँ ,तुम बहुत ज़रूरी होने पर भी मेरे ख़्यालात की दुनिया में दस्तक नहीं देते!मेरी हर उपलब्धि जैसे तुम्हारी उपलब्धि है ,ऐसी बहुत सी बारीक बातों से मैंने जाना है ये तुम्हारा समर्पण है मेरे प्रति!</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
जीवन में आयी हर परिस्तिथि, हर ज़िम्मेदारी निबाहने में तुम मुझे सक्षम पाते हो, ये तुम्हारा विश्वास है मेरे प्रति!</div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मेरी कई रुचियों की पौध तुम्हारे साथ और समर्थन से लहलहा उठी हैं ! मेरे आकाश,निजता,विस्तार को तुमने सदा सम्मान दिया है! ऐसी कई भागीदारियाँ जतलाती हैं कि ये तुम्हारा आदर है मेरे व्यक्तित्व के प्रति!</div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मैंने तुम्हें 'तुम' रहने दिया है और तुमने मुझे 'मैं'!हमारी ये समझदारी हमारे 'हम' होने में बहुत अहम है !</div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
समर्पण,विश्वास,आदर,सम्मान जैसे रंगों से मिलकर प्रेम की तस्वीर बनती है!'</div>
</div>
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<div class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
</div>
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsa6To0nu3eFTfgsO3R-tn-0Pbl5Ma37Tg5-CKLKsDtJxIC7NONNnF_1xDovTIXSO_nciQ2TcjxnqdEbSnP60vvU1kXg0nKIFjLIK4JFF5VLbnbl-21WyPLN0zsjS4tJHHMQEnokY3QuU/s1600/16708666_956565697808017_2836215141277122316_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsa6To0nu3eFTfgsO3R-tn-0Pbl5Ma37Tg5-CKLKsDtJxIC7NONNnF_1xDovTIXSO_nciQ2TcjxnqdEbSnP60vvU1kXg0nKIFjLIK4JFF5VLbnbl-21WyPLN0zsjS4tJHHMQEnokY3QuU/s320/16708666_956565697808017_2836215141277122316_n.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<br />
मैं एक गीत अपने प्रेम को समर्पित करते हुए संस्मरणों की असीम श्रृंखला के इस अंश को पूर्ण कर रही हूँ!<br />
<br />
<br />
!! गीत !!<br />
<br />
रेशम रेशम ख़्वाब सजाना आया है<br />
प्यार तुम्हारा जब अन्तर में छाया है<br />
<br />
दुनियादारी में अब कोई सार नहीं<br />
मन ये बातें सुनने को तैयार नहीं<br />
<br />
प्रेम का हर पल सचमुच कितना अद्भुत है<br />
मेरा ही मुझ पर कोई अधिकार नहीं<br />
<br />
प्यार है ये कोई या कोई माया है<br />
प्यार तुम्हारा...............................!<br />
<br />
पावन संकल्पों से संकल्पित होकर<br />
ख़ुश रहती हूँ तुमसे अनुबंधित होकर<br />
<br />
तुमको अपने मन में अंकित करके मैं<br />
और तुम्हारे मन में मैं अंकित होकर<br />
<br />
गुमनामों में अपना नाम लिखाया है<br />
प्यार तुम्हारा................................!<br />
<br />
मरुथल से इक झील हुए हम तुम मिलकर<br />
उजियारी कंदील हुए हम तुम मिलकर<br />
<br />
एक लहर पानी में ज्यों घुल जाती है<br />
ऐसे ही तब्दील हुए हम तुम मिलकर<br />
<br />
हर शय ने हम पर अमृत बरसाया है!<br />
प्यार तुम्हारा...............................!<br />
<div style="color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica neue", helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-top: 6px;">
<div style="background-color: white;">
<br /></div>
<div style="background-color: white;">
-- सोनरूपा विशाल </div>
</div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-39429352889673930672017-02-13T09:42:00.000+05:302017-02-13T18:57:14.883+05:30मुझमें रही न हूं - रोहिणी अग्रवाल <br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiK9ZZjUOGRxwU7ZHxZsot9o8kDE5hfQSTfsnJFPjO9zvo-sh9yyVMzuC75Cx-R9WPE_bUnxzaJebG966t_gKFDi8izxfI6OorWUvwXyFpBbfMa4ZVZAdjO9lCHcZwXEu0WV4cdS6uYX-U/s1600/1979631_762323963801429_2011370468_n.jpg"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiK9ZZjUOGRxwU7ZHxZsot9o8kDE5hfQSTfsnJFPjO9zvo-sh9yyVMzuC75Cx-R9WPE_bUnxzaJebG966t_gKFDi8izxfI6OorWUvwXyFpBbfMa4ZVZAdjO9lCHcZwXEu0WV4cdS6uYX-U/s320/1979631_762323963801429_2011370468_n.jpg" /></a><br />
<br />
<br />
<br />
<b style="background-color: #f4cccc;">हिंदी की प्रेम कहानियाँ - जिनमें प्रेम के रूप में सिर्फ समर्पण, त्याग और गूढ़ आस्था का चित्रण है, उस स्थापित प्रेम के स्वरुप की आलोचनात्मक शिनाख्त करता रोहिणी अग्रवाल जी का सारगर्भित लेख ..</b><br />
<br />
<br />
<span style="background-color: #ffe599; font-size: large;">तूं तूं करता तूं भया, मुझमें रही न हूं</span><br />
<span style="background-color: #ffe599; font-size: large;"><br />---------------------------------------------</span><br />
<br />
<br />
प्रेम से भी ज्यादा मनोहारी है प्रेम की कल्पना। किसी अतींद्रीय लोक में ले चलती जहां न सामाजिक दबाव और वर्जनाएं हैं, न लोभ-मद-मत्सर। है तो प्रेम करने और पाने की अकुंठ स्वतंत्रता! इतनी कि प्रियजन एकाकार होकर अपने अलग.अलग अस्मिता ही भूल जाएं। मानो प्रेम और कुछ नहीं, आत्मविस्मृति के जरिए आत्म विस्तार की सर्जनात्मकता का आह्लाद है।<br />
<br />
अमूमन हर साहित्यानुरागी अपने पाठक-जीवन के प्रारंभिक चरण में प्रेम कहानियों के रस से सराबोर जरूर हुआ है। खुली आंखों और पन्नों पर कसे हाथ में किसी अदृश्य तूलिका के साथ वह हृदय की भीतरी गहराइयों में उतर कर कब अपने सपनों और कल्पनाओं को प्रेम की तरल रंगत में डुबोने लगता है, पता ही नहीं चलता। प्रेम उसे मुक्त करता है और उसकी अदना सी हैसियत को सृष्टि का विस्तार और गहराई का आधार देने लगता है। लैला-मजनू, शीरी-फरहाद, राधा-कृष्ण, रोमियो-जूलियट, युसूफ-जुलेखा की कितनी ही कहानियां मुझे अपने सम्मोहन में बांधने लगी हैं। समर्पण, त्याग, विरह की मीठी यादें और मिलन की उदग्र आशा - लगता है इन मनोवृत्तियों और मनोकांक्षाओं के बीच चहलकदमी करती कोई भाव हिलोर है प्रेम। 'लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल' वाली स्थिति जिसे आध्यात्मिक संदर्भों का बाना पहनाकर कोई रहस्यवाद का नाम देना चाहिए तो भले ही दे ले, लेकिन है तो वह नारसिस जैसी आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा।<br />
<br />
मैं रुक जाती हूं। एक ही सांस में दो परस्पर विरोधी बातें! बरजती हूं खुद को कि प्रेम का अर्थ रोमानी हो जाना नहीं है, सामाजिक संदर्भों में प्रेम के स्वरूप और तत्वों की आलोचनात्मक शिनाख्त करना भी है। विश्व की तमाम प्रेम कहानियों के साथ हिंदी की प्रेम कहानियां दबे पांव मेरी स्मृति में चली आई हैं। 'अरे, यह क्या''ए मैं चौंक जाती हूंए ''प्रेम कहानियों में प्रेम ही नहीं!'' देखती हूं, 'उसने कहा था' में प्रेम की स्मृतियों को जगा कर इमोशनल ब्लैकमेलिंग करती सूबेदारनी के भीतर की प्रेमिका को धकियाकर पतिव्रता पत्नी और ममतामयी मां आ बैठभ् है जो अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए अतीत के प्रेमी से जान की कुर्बानी लेने में भी नहीं चूकती। 'जान्ह्वी' कहानी में 'दो नैना मत खाइयो जिन पिया मिलन की आस' कहकर अपने प्रेम को महिमामंडित करती जान्ह्वी की पीड़ा जरूर है, लेकिन ऊपरी सतह खुरचते ही वहां पितृसत्तात्मक व्यवस्था की अहम्मन्यता के साथ.साथ स्त्री-पुरुष स्टीरियोटाइप्स यथावत बनाए रखने की सजग लेखकीय चेष्टाएं भी हैं। 'यही सच है' में दीपा का द्वंद्व नहीं, दो प्रेमियों में से किसी एक का चयन कर अपने भविष्य को सुरक्षित कर लेने की सजग भौतिक चिंताएं हैं तो 'तीसरी कसम' में प्रेम की नक्काशीदार कल्पना के सुख में स्त्री के सौंदर्य और यौवन का भोग करने की लोलुप प्रवंचनाएं हैं। मनोजकुमार पांडेय की कहानी 'और हंसो लड़की' में ऑनर किलिंग को वैध ठहराती सामाजिक दरिंदगियां हैं जो प्रेम कर सकने वाली स्त्री की स्वतंत्र निर्णय क्षमता से खौफ खा कर हत्या और आतंक को अपने वर्चस्व का पर्याय बनाती हैं। फिर वंदना राग की कहानी 'यूटोपिया'! यहां प्रेम वासना का रुप ही नहीं लेता, अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति अपने मन में पलती घृणा को घिनौने प्रतिशोध में बदल देता है। तो क्या प्रेम विडंबना का दूसरा नाम है?<br />
<br />
लेकिन 'कोसी का घटवार' के गुसाईं-लछमा और 'आषाढ़ का एक दिन' के विलोम की प्रिय के प्रति निष्कंप आस्था और अकुंठ समर्पण की भावना देख मैं अपने ही कथन को सुधारने लगती हूं कि प्रेम हर विडंबना का सहज स्वीकार है। प्रेम है, तभी तो विडंबनाओं के दुर्दांत हस्तक्षेप से अपने को बचाना आसान हो जाता है।<br />
<br />
प्रेम का दुर्भाग्य यह है कि इसके अखंड-समग्र रूप को जाना-पहचाना नहीं जा सका है। वह औदात्य की पराकाष्ठा या वर्जनाओं का घटाटोप अंधेरा बनाकर रूढ़ियों में बांध दिया जाता है। साहित्य की दुनिया से परे यथार्थ जगत के कस्बाई और ग्रामीण जीवन में यह 'उच्छृंखलता' या 'शर्म' के रूप में आता है तो महानगरीय संस्कृति में 'आधुनिकता' और 'स्टेटस सिंबल' बन कर। दावा किया जाता है कि प्रेम समय और मनुष्य का संस्कार करता है, लेकिन देखा यह गया है कि अपनी ही भौतिक लिप्साओं और संकीर्णताओं में खोया हुआ समाज प्रेम को लोभ, भोग और वासना में तब्दील करते.करते निजी जायदाद की जद में ले आता है। तब प्रेम में एक ही धरातल पर खड़ी दो संवेदनशील-विवेकशील मनुष्य अस्मिताएं अपना वजूद खोकर जेंडश्र में तब्दील होने लगती हैं, यही नहीं, नेपथ्य से निकलकर आती पितृसत्तात्मक व्यवस्था 'कांता सम्मत उपदेश' देते हुए स्त्रीसे एकनिष्ठ भाव से प्रेम, त्याग, समर्पण, नैतिकता, और मनुष्यता के उंचे-गहरे मूल्यों को संभाले रखने की अपेक्षा करने लगती है, और प्रेम (भोग) का चश्मा पहन कर पुरुष को इधर-उधर हर हरे भरे खेत में मुंह मारने का लाइसेंस दे देती है। प्रेम चूंकि हर तरह के द्वैत, विभाजन और विषमता को अस्वीकार करता है, इसलिए यह 'वसुधैव कुटुंबकम्' का कानफोड़ू नारा बन कर नहीं आता, किसी के अंधेरे कमरे में दीया जला कर अदृश्य हो जाने की साधना में ढल जाता है। अंदर की मनुष्यता का उत्खनन है प्रेम, और एक ऐसी शै जिसका उत्स, अस्तित्व और लक्ष्य सब एक है - प्रेम।<br />
<br />
प्रेम बुलबुले की तरह उग कर फूट पड़ने वाली क्षणिक स्थिति नहीं है। इसलिए असफल प्रेम की अभिव्यक्ति के नाम पर वह एसिड अटैक, बलात्कार या हत्याकी कायर साजिशों में उभर कर अपने को गिराता नहीं, आकर्षण को हार्दिकता और उत्तेजना को सृजन के आनंद में तब्दील कर 'चितकोबरा' उपन्यास के मनु-रिचर्ड और 'मढ़ी का दीवा' के जगसीर-भानी की तरह प्रेम की परिधि मे हर दबी-कुचली अस्मिता को ले आता है। आज यदि साहित्य में प्रेम 'वन नाइट स्टैंड' या दैहिक तृप्ति का एक माध्यम मात्र बन कर रह गया है तो समाज के विघटनशील चरित्र के साथ-साथ साहित्यकार की सृजनशीलता के क्रमश- क्षरित होते चले जाने का भी सूचक है।निजता की क्षुद्रताओं से खींच बाहर कर चिंतन की ऊर्ध्वगामी दिशाओं को मनुष्य, समाज और सृष्टि के साथ जोड़ देने पर उसमें दर्शन की जो गहराइयां आती हैं, दरअसल वहीं प्रेम का घर है। दो मनुष्यों के बीच आकर्षण की लुकाछिपी से शुरु हुआ प्रेम अपने भीतर के कल्मष को धोने की प्रक्रिया में इतना नि:संग और समर्पित, दृढ़ और लचीला, एकांतप्रेमी और सार्वजनीन बन जाता है कि वह अंततः अपना मूल रूप खोकर आत्मानुशासन में बंधी स्वाधीन प्रेरणा का प्रचारक बन जाता है।<br />
<br />
आज की उपभोक्ता संस्कृति के लिए प्रेम भीषण गर्मी में कुल्फी का लुत्फ उठाने की ऐयाशी भले हो, दरअसल यह कोमलता और संवेदना के सहारे सिरजी वैचारिक उदारता के साथ मनुष्यता के संरक्षण का पहला और आखरी कदम है। चूंकि साहित्य यथार्थ जगत की अपूर्णताओं की जीरॉक्स प्रति नहीं है और न उन से पलायन की युक्ति, इसलिए उसे ही हिंसा और उन्माद से संत्रस्त समाज को बताना होगा कि प्रेम विश्वास और सद्भाव की खोई हुई निधियों को पाकर भीतर तक समृद्ध हो जाने के ऐश्वर्य का दूसरा नाम है।<br />
<br />
-डॉ रोहिणी अग्रवाल<br />
डीन, मानविकी संकाय महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक<br />
9416053847<br />
<br />
(साभार जनसत्ता )shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-30817935287608903932016-10-04T15:17:00.001+05:302017-02-03T19:00:08.534+05:30कम से कम एक दरवाज़ा - शोभा मिश्रा <div align="center" style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; text-align: center;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg20NJ-VPodZ_wLyQf4pBDwlVunIF4JuPyplGMCrWagE5v_69g4Hze0NJWmCcYrr2BxYRXLAcf8aX5YWoVhmR6DzIlmTJ2NVQ3Ars3n-4Mq6MozO_viPIFh-_QjAgQrzOZG5LEkOmSwLCI/s1600/14492349_874685365996051_3009183282334773939_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg20NJ-VPodZ_wLyQf4pBDwlVunIF4JuPyplGMCrWagE5v_69g4Hze0NJWmCcYrr2BxYRXLAcf8aX5YWoVhmR6DzIlmTJ2NVQ3Ars3n-4Mq6MozO_viPIFh-_QjAgQrzOZG5LEkOmSwLCI/s400/14492349_874685365996051_3009183282334773939_n.jpg" width="230" /></a></div>
<b><i><u><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 13.0pt;"><br /><br />कम
से कम एक दरवाज़ा<br /><br /><br />( सुधा (अरोड़ा ) दीदी के कविता संग्रह "कम से कम एक दरवाज़ा " पर लिखने की कोशिश की है ! दीदी को जन्मदिन की अशेष शुभकामनाओं के साथ आप सभी से साझा कर रहीं हूँ )</span></u></i></b></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">संग्रह के शीर्षक का चयन ही ऐसा है मानो रुढ़िवादी परम्पराओं, पितृसत्तात्मक सोच रुपी दीवारों से बनी काल कोठरी में कैद औरतें गुहार लगा रहीं हो। “किस अपराध में उन्हें ये कैद मिली...?” .. आक्रोशित स्वर में मानो वे प्रश्न कर रही हों कि - मुक्त करो हमें इस अन्धकार से ... इस घुटन से। पीट रहीं हो खिड़की, दरवाजों रहित दीवारों को .. “कम से कम एक दरवाजा” .. तो हो हमारे लिए ..!! </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">इस संग्रह को आदरणीय समाजसेविका, लेखिका सुधा अरोड़ा जी ने प्रीती राठी, दामिनी और उन जैसी हज़ारों अनाम बेटियों के नाम समर्पित किया है जो इंसानी दरिंदगी का शिकार होकर महज एक आंकड़ा बनकर रह गयीं ..! किसने बनायी ये संकीर्ण, रुढ़िवादी परम्पराएँ जिनका अनुसरण करते हुए समाज स्त्रियों को आजीवन दूसरों के अधीन रहने के लिए विवश करता है खासतौर पर पिता, पति, पुत्र के रूप में पुरुष स्त्रियों को कभी पुत्री, कभी पत्नी, कभी माँ के रूप में उन्हें अपनी निजी संपत्ति समझता है और अधिकार पूर्वक उसके जीवन के अहम् फैसले स्वयं लेता है ... उनकी स्वतंत्रता, उनके विचारों पर अंकुश लगाता है ... विरोध या बगावत करने पर इतना हिंसक हो उठता है कि उनके प्राण तक लेने में भी नहीं हिचकता ! कितने प्रश्न उठतें हैं मन में कि आखिर स्त्री का अपराध क्या है .. अहंकारी पुरुष प्रधान विचारधारा की दृष्टि से समझने की कोशिश करें तो शायद स्त्री का स्त्री होना ही सबसे बड़ा अपराध है ! स्त्री की शारीरिक संरचना के आधार पर उसे सिर्फ देह में परिवर्तित किसने किया ..? और उस देह पर अधिकार समझने और उसकी रखवाली- निगरानी रखने वाली सोच का निर्माण कब हुआ ..? क्यों हुआ ..? असंख्य प्रश्नों के साथ एक मौन चीख उठती है अंतरात्मा से! एक पाठिका का आक्रोशित मन न जाने कितने प्रश्न कर उठता है ! इस संग्रह की हर कविता में एक आम स्त्री किसी न किसी रूप में अपने आपको पाएगी .. चाहे वो घर के भीतर की स्त्री की पीड़ा हो या घर के बाहर पुरुषवादी सोच से जूझती स्त्री की पीड़ा हो ! संग्रह की कविताओं को छः भागों में विभाजित करके शीर्षकबद्ध किया गया है ..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- नई परिभाषा गढ़ती औरत</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- साँकल, सपने और सवाल</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- छत, खिड़कियाँ और दरवाज़े</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- निर्भया और नयना साहनी</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- ताकि बची रहे प्रजाति</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- और अंत में..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">संग्रह की भूमिका में बहुत ही सहजता और ईमानदारी से लेखिका कविता लेखन के बारे में अपने विचार प्रकट करतीं हैं – </span><span style="font-size: large;"><b>“इन कविताओं के बारे में क्या लिखूं ! बस, जैसे नारीवादी होना मेरा चुनाव नहीं था , वैसे ही घोर कविताप्रेमी होने के बावजूद कविता विधा में घुसपैठ करने की मेरी मंशा कभी नहीं रही।"</b></span></div>
<span style="font-size: large;"> </span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">लेखिका कविताओं में कभी अपनी माँ की स्मृतियों को और बचपन की मीठी स्मृतियों को संजोतीं हैं तो कभी चारदीवारी के भीतर अकेली औरत के भिन्न- भिन्न रूपों, अवस्थाओं का वर्णन कुछ यूँ करती हैं मानों कविता में उपस्थित पीड़ित स्त्री को दिलासा और संबल रुपी कंधा देकर उनका अकेलापन दूर कर रहीं हों । दिल्ली के बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक दामिनी बलात्कार काण्ड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था । भय, शोक, आक्रोश, स्तब्धता की स्थिति में तो सभी स्त्रियाँ थीं लेकिन लेखन के माध्यम से कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने घावों पर मरहम रखने तथा समाज को एक सकारात्मक सन्देश देने वाली समाज सेवी लेखिका भी इस अपार दुःख की घड़ी में अपने आपको असमर्थ पा रहीं थीं इस त्रासदी पर लिखने में ! .. लेकिन कलम सहमती जरुर है मौन नहीं होती कभी ! मुखरता से प्रकट होती है अंततः ! निर्भया और नयना साहनी शीर्षकबद्ध कविता श्रृंखला उदाहरण हैं उस मुखरता का ..</span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
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<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-96cr8DB4GU9lPLvOIFNouoLkIYu8HEadjGwLXqaKGLjkj2JNuAE9nPOT7Qu5gfcSSoCRRhov06TwAB060VZSpgon2urOuLhm-U7tspF0P68ffw-lR3PDxfmsuKyUK1sv04mJIfU4f0Y/s1600/11392944_651220138342576_3556134888991576599_n.jpg"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-96cr8DB4GU9lPLvOIFNouoLkIYu8HEadjGwLXqaKGLjkj2JNuAE9nPOT7Qu5gfcSSoCRRhov06TwAB060VZSpgon2urOuLhm-U7tspF0P68ffw-lR3PDxfmsuKyUK1sv04mJIfU4f0Y/s320/11392944_651220138342576_3556134888991576599_n.jpg" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;">
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<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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</span>
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<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">“क्या इसलिए होती हैं मांएं धरती से बड़ी “ माँ की स्मृति में लिखी गयी संग्रह की पहली कविता में लेखिका कितने अबोध प्रश्न करतीं हैं माँ से ! स्त्री को जन्म देती स्त्री किस परंपरा का निर्वहन करती चली आ रही है ! स्त्रियों द्वारा एक दूसरे को रुढ़िवादी परम्परा स्थानांतरित की जाने की प्रक्रिया का उल्लेख करती हुई लेखिका दुनिया की पहली स्त्री का जिक्र करतीं हैं। इस कविता को पढ़ते हुए सोचने लगती हूँ – आखिर दुनिया की पहली स्त्री भी “परम्पराओं में गढ़ी स्त्री” रही होगी ..? क्या उसकी भी दुनिया सीमित होगी चारदीवारी तक ! उसके हिस्से के आसमान का निर्धारण क्या किसी दूसरे व्यक्ति ने किया होगा ! कविता की कुछ शुरूआती पंक्तियाँ -</span></div>
<span style="font-size: large;">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“आखिर मैं कब आई होऊँगी तुम्हारे भीतर</div>
<div style="text-align: justify;">
गर्भ में धरने से पहले</div>
<div style="text-align: justify;">
क्या तुमने धरा होगा अपनी आत्मा में मुझे</div>
<div style="text-align: justify;">
जैसे धरा होगा तुम्हारी माँ ने तुम्हें</div>
<div style="text-align: justify;">
और उनकी माँ ने उन्हें</div>
<div style="text-align: justify;">
और एक अटूट परंपरा स्त्रियों की</div>
<div style="text-align: justify;">
वहाँ तक जहां बनी होगी दुनिया की पहली स्त्री</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने मुझे क्यों जना माँ</div>
<div style="text-align: justify;">
क्या एक चली आ रही परंपरा का निर्वाह करना था तुम्हें</div>
<div style="text-align: justify;">
या फैलना था एक नए संसार तक</div>
<div style="text-align: justify;">
और फिर देखना था अपने आप को मुझमें</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“नई परिभाषा गढ़ती अकेली औरत” शीर्षक कविता श्रृंखला की कविताएँ स्त्री के उन भावों को दर्शातीं हैं जिनमें वो रोने, हंसने जैसी ख़ुशी और दुःख के क्षणों को भी अपने भीतर जब्त कर लेती है ! औरत की उन्मुक्त हँसी को लोग सहन नहीं करते हैं ! उन्मुक्त हँसी हँसती औरत के लिए ऐसी परिभाषाएं गढ़तें हैं कि जल्दी ही अपराधबोध में घिरकर वह बेबस और लाचार महसूस करने लगती है ! अहंकारी पुरुष असहाय, बेबस, लाचार, भावशून्य चेहरे वाली स्त्रियों से संतुष्ट रहतें हैं ! स्त्रियों को मानसिक रूप से अपाहिज बनाकर जीवनपर्यन्त उनकी वैसाखी बने रहना चाहतें हैं ..</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“उसके भीतर कई रातें बजतीं हैं !” कविता में पत्नी के रूप में स्त्री पति द्वारा अन्तरंग क्षणों में देह से बांटे जाने वाला प्रेम पाकर खुश है । समर्पित है उस प्रेम के प्रति जिसमें हर रात ठिठुरती है, सुबह अकड़ी हुई देह और एक तरफ झुके हुए कंधे की परवाह किये बिना ! लेकिन इसी कविता के मध्य तक आते- आते दांपत्य जीवन में पांच साल का अंतराल आता है जिसमें स्त्री परित्यक्ता है ! स्त्री को पति रुपी वैसाखी की आवश्यकता क्यों है ! क्यों समाज एक पति द्वारा त्यागी गई स्त्री को दूसरे विवाह का सुझाव देता है ! क्यों उपहास उडाता है समाज अकेली रह रही स्त्री का ! कविता में एक जगह यही भाव हैं – परित्यक्ता स्त्री को दूसरा विवाह करने की सलाह दी जाती है लेकिन औरत अपने भीतर बजतीं उन ठिठुरती रातों को याद करती है जब पति के नागपाश में जकड़ी उसकी उघारी देह बर्फ – सी जम जाती थी ! औरत दृढ निश्चय करती है -</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
उसे नहीं चाहिए एक और नागपाश</div>
<div style="text-align: justify;">
बर्फीली हवा में देह की ठिठुरन</div>
<div style="text-align: justify;">
अकड़ा हुआ एक कंधा</div>
<div style="text-align: justify;">
टांगों और बाहों में मजबूती से कैद</div>
<div style="text-align: justify;">
अपनी निर्वस्त्र देह ।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“सन्नाटे का संगीत” कविता में औरत अपने सपनों का आकाश पाने को व्याकुल एकांत में एक धुन हमेशा सुनती रहती है जिसमें उन्मुक्त पंछियों की तरह विचर सके ।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFmXrYKDN_Cw0gvVWHq2gX8uvVyNCUsPUQFa7bUZnCz5DscQl3pgQJBrVX9yrb1ElKWS6JaLJcDgeeSDsdF_flj_s1w3PJykL3ZcvzN2OZAJAMm3VO6G26Y8aObz8ZwBlT3RWnbwTzPKo/s1600/14479785_1179838955421319_151573560290156959_n.jpg"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFmXrYKDN_Cw0gvVWHq2gX8uvVyNCUsPUQFa7bUZnCz5DscQl3pgQJBrVX9yrb1ElKWS6JaLJcDgeeSDsdF_flj_s1w3PJykL3ZcvzN2OZAJAMm3VO6G26Y8aObz8ZwBlT3RWnbwTzPKo/s320/14479785_1179838955421319_151573560290156959_n.jpg" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“भरवां भिंडी और करेले” – उन हर घरेलू औरतों के बोन्साई सपनों की कहानी है जिन्होंने उसे कभी विस्तार ही नहीं दिया ! दूर रखा प्रकृति की उन किरणों, वायु और नमी से जिनसे उनकी ऊँची शाखाएं आकाश की ऊँचाइयों को छू सकतीं थीं ! अपने हिस्से की ज़मीन पर अपनी जड़ों को विस्तार दे सकतीं थीं ! .. लेकिन इसके विपरीत वे एक उम्र गुजार देतीं हैं चारदीवारी में अपनों को खुश रखने, उनके भविष्य को सँवारने में ! एक दिन उन्हीं “अपनों” द्वारा ठुकराए जाने पर पहचानतीं है अपने आपको और चारदीवारी में गमलों में सजाये हुए बोन्साई सपनों को खुले आसमान के नीचे उपजाऊ भूमि में रोप देतीं हैं ! खुली हवा में सांस लेतें हैं उनके सपने ! उन रंगों से रंगतीं हैं अपने सपनों को जिनकी अनदेखी करतीं थीं जिम्मेदारियों के बोझ तले ! आत्मविश्वास से भरी कविता की कुछ पंक्तियाँ - </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“घेर ली उसने आधी दुनिया</div>
<div style="text-align: justify;">
और पूरा आसमान</div>
<div style="text-align: justify;">
उसकी उँगलियों की करामात</div>
<div style="text-align: justify;">
पहुंची पेरिस, पहुंची जापान।</div>
<div style="text-align: justify;">
सराहना से अंटे अखबार</div>
<div style="text-align: justify;">
लद फंद गयी मैडल और ट्राफियों से</div>
<div style="text-align: justify;">
कमरे के रैक में भर गए</div>
<div style="text-align: justify;">
पुरस्कार और सम्मान ।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“छत, खिड़कियाँ और दरवाज़े” श्रृंखला की कविताओं में स्त्री- अधिकारों की नई परिभाषा गढ़ती कविताएँ हैं । संग्रह के शीर्षक वाली कविता “कम से कम एक दरवाजा” इसी श्रृंखला में हैं । हमारे समाज में घरवालों की रजामंदी के बगैर प्रेमी से विवाह करने वाली लड़कियों को “घर से भागी हुई लड़कियां“ कहा जाता है और ऐसी लड़कियों के लिए घर के सभी दरवाज़े बंद कर दिए जातें हैं ! चाहे लड़की के साथ दुर्व्यवहार हो, हिंसा हो ! बेटियों के प्रति ऐसी कठोर भावना रखने वाले अभिवावकों के लिए सीख है ये कविता -</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“जानतें हैं, तुमने गलत फैसला लिया</div>
<div style="text-align: justify;">
फिर भी हमारी यही दुआ है</div>
<div style="text-align: justify;">
खुश रहो उसके साथ</div>
<div style="text-align: justify;">
जिसे तुमने वरा है !</div>
<div style="text-align: justify;">
यह मत भूलना</div>
<div style="text-align: justify;">
कभी यह फैसला भारी पड़े</div>
<div style="text-align: justify;">
और पांव लौटने को मुड़ें</div>
<div style="text-align: justify;">
तो यह दरवाज़ा खुला है तुम्हारे लिए !”</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसी श्रृंखला की “राखी बांधकर लौटती हुई बहन“ कविता उस सामाजिक परंपरा पर गहरा कटाक्ष है जिसमें पिता की संपत्ति से बेटियों को वंचित रखा जाता है ! बेटियों को पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा मांगने पर भाई के नाराज़ होने का डर और वो मायका जहां उसका बचपन बीता – उस बचपन की निशानी को खोने का डर सताता है ! पिता की संपत्ति को त्यागकर राखी जैसे कुछ त्योहारों पर भाई से मिलकर, मायके से साड़ी- गहनों का उपहार पाकर खुश रहतीं हैं बेटियाँ ! कभी-कभी मायके के घर के आँगन में अपने बचपन को याद करके खुश रहतीं हैं बेटियाँ । कविता की भावुक करने वाली बेहद संवेदनशील पंक्तियाँ --</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“कितना अच्छा है राखी का त्यौहार !</div>
<div style="text-align: justify;">
बिछड़े भाई बहनों को मिला देता है</div>
<div style="text-align: justify;">
कोठी के एक हिस्से पर हक जताकर</div>
<div style="text-align: justify;">
क्या वह सुख मिलता</div>
<div style="text-align: justify;">
जो मिला है भाई की कलाई पर राखी बांधकर !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“निर्भया और नयना साहनी” शीर्षकबद्ध श्रृंखला की कविताएँ मन- मष्तिष्क को झकझोर देतीं हैं ! इस श्रृंखला की कविता “अब हम आँसुओं से नहीं, अपनी आँख ले लहू से बोलेंगें ....” के बहाने दामिनी-निर्भया को याद किया गया है ! श्रद्धांजलि देती कविता में मर्म है उन सभी लोगों का जो वीभत्स, अमानवीय कृत्य के बाद बारह दिनों तक अस्पताल में मृत्यु से संघर्ष करती दामिनी के जीवन के लिए प्रार्थना करते रहे ! अंततः मृत्यु जरुर जीती लेकिन दामिनी का बलिदान मिसाल बना ! कविता में दामिनी के बहाने उन तमाम लड़कियों- महिलाओं को याद किया गया है जो कभी दरिंदगी का शिकार हुईं थीं ! उनमें से कुछ को तो न्याय तक नहीं मिला ! “निर्भया और नयना साहनी” श्रृंखला की कविताएँ कविता न होकर मार्मिक कहानियाँ हैं जिसमें दामिनी, नयना साहनी और उन जैसी तमाम महिलाओं की आह है ... दर्दनाक चीखें हैं जिन्हें पढ़कर पाठक का अंतर्मन भी चीत्कार उठता है ..!</div>
<div style="text-align: justify;">
संग्रह की कविताओं को सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा बुरटे जी ने बहुत ही सुन्दर रेखांकनों से संवारा है |</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इस संग्रह में व्यथा है हमारे समाज की स्त्री की ... वो व्यथा जो हर दिन दोहराई जाती है अखबारों में .. हमारे आस-पड़ोस में... स्त्रियों के प्रति हो रहे अपराधों में ...लचर क़ानून व्यवस्था में ..! ये संग्रह माध्यम है हमारे समाज की स्त्री के ज्वलंत प्रश्नों का .. जिसका उत्तर अक्सर उसे नहीं मिलता है .. समाधान न सूझने पर वह कई बार हताश भी होती है ... अपने आपको अंधकारों में घिरा पाती है लेकिन अपनी कलम से हर बार लिख देती हैं उगता हुआ सूरज ... इस कलम रुपी सूरज की किरणें निश्चित रूप से भर देंगी उनका जीवन उजालों से ....... ये पंक्तियाँ उसी उजाले का संकेत हैं ---</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
“जब मेरी जान पर बन आई तब मैं चेती !</div>
<div style="text-align: justify;">
जब मुझे कुचलने की बेतरह कोशिश की गई</div>
<div style="text-align: justify;">
मेरे सामने दो ही रास्ते थे -</div>
<div style="text-align: justify;">
मैं आत्महत्या कर लेती या बगावत करती</div>
<div style="text-align: justify;">
मैंने दूसरा रास्ता चुना और देखा</div>
<div style="text-align: justify;">
लाल गोले सा उगता सूरज !”</div>
</span><br />
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<br />
- शोभा मिश्रा<br /><br />8750067070</div>
<div align="right" style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; text-align: right;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIoLbv0CXIkNGdWriRa9eidpjZsiND8WAhkVxfgTmG3a0BVSc1ukziXWqFRFDvZsMDJBUP7oq3B3ghIJF7WEdXpPI2P7JkbYfxwwa8AU-oItIS4ZDdAmuaQHNPltGQsizbWV2BeXiAU8E/s1600/10849818_569263026538288_5767108478802302262_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIoLbv0CXIkNGdWriRa9eidpjZsiND8WAhkVxfgTmG3a0BVSc1ukziXWqFRFDvZsMDJBUP7oq3B3ghIJF7WEdXpPI2P7JkbYfxwwa8AU-oItIS4ZDdAmuaQHNPltGQsizbWV2BeXiAU8E/s200/10849818_569263026538288_5767108478802302262_n.jpg" width="200" /><span style="font-family: "mangal" , serif; text-align: justify;">- शोभा मिश्रा</span></a></div>
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif;">
<br />
<br />
<br />
<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><br />
<!--[endif]--></span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><br />
<br />
<br />
<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><br />
<!--[endif]--><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-4186756509922633352016-10-01T14:40:00.001+05:302016-10-01T15:00:37.726+05:30सूखी जमीन पर जीवन के उल्लास की कहानी: 'पार्च्ड' - स्वाती <div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><i><u><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></u></i></b></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><i><u><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></u></i></b></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgosJv_27xwUIEyUkVOzWmunJTABdgjoH898jEshWfWKNWtI3OQzUEpouVnFPkIDQTLdkiYvE3KG3APq1CxLCX17J71a7LXB7IKOD24J7NIWGDd4gezJiDNx41gj-xXbsUjoGBrHs5Kmqw/s1600/parched+images.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="266" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgosJv_27xwUIEyUkVOzWmunJTABdgjoH898jEshWfWKNWtI3OQzUEpouVnFPkIDQTLdkiYvE3KG3APq1CxLCX17J71a7LXB7IKOD24J7NIWGDd4gezJiDNx41gj-xXbsUjoGBrHs5Kmqw/s400/parched+images.jpg" width="400" /></a></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><i><u><span lang="HI" style="background-color: #f4cccc; font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">सूखी
जमीन पर जीवन के उल्लास की कहानी: 'पार्च्ड'</span></u></i></b><b><i><u><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></u></i></b></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><i><u><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></u></i></b></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /> </span></span><br />
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></span>
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"> बीते
तकरीबन दस दिनों के भीतर दो बेहतरीन फिल्में देखना अपने आप में एक अच्छा अनुभव रहा..,
दोनों ही फिल्में स्त्री जीवन से जुड़ी हैं और मेरे दर्शक में भी मेरा स्त्री होना
शामिल है ही.. यहाँ </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">‘<span lang="HI">पिंक</span>’<span lang="HI"> और </span>‘<span lang="HI">पार्च्ड</span>’<span lang="HI"> की समानता की
कोई बात नहीं क्योंकि मुझे दोनों एक जैसी लगी भी नहीं, सिवाय इस बात के कि वहाँ
कहानी के केंद्र में तीन लड़कियाँ थीं, और यहाँ चार औरतें। बहरहाल 'पार्च्ड' का
परिवेश, कथानक, ट्रीटमेंट अलग है... क्या और कितना नया है, ये अलग बात है। सूख कर ऊसर बन चले मन की ज़मीन पर जब इच्छाओं की
बूंदें गिरती हैं, तो क्या अहसास होता होगा... </span>‘<span lang="HI">पार्च्ड</span>’<span lang="HI"> मुझे इसी अहसास की कहानी लगी। इस फिल्म के लेखन और निर्देशन के लिए यकीनन
लीना यादव बधाई की पात्र हैं, उस लेखन को ज़िन्दा करने वाले अभिनेता कलाकार काबिलेतारीफ
हैं। जानकी का चरित्र निभाने वाली सबसे छोटी अदाकार लहर खान के अभिनय में भी उतनी
ही गंभीरता है जितनी बाकी स्त्री चरित्रों के अभिनय में। दृश्यों को जीवंत बाने
वाली फिल्म की सिनेमैटोग्राफी कमाल की है। <br /><br /></span><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">स्त्रियों
की समस्याओं पर एक स्त्री के नज़रिए से बनाई गई इस फिल्म में अपनी समस्याओं से
जूझती खुदमुख्तार औरतें हैं। चार-औरतें, चार जीवन, पर यह फिल्म और इसकी कहानी
सिर्फ उन चार औरतों और उनके जीवन की कहानी नहीं है। यह कहानी दरअसल उन जीवनों के
मार्फत स्त्री इच्छाओं के अधूरेपन को खारिज़ कर खुले आकाश में अपने होने को महसूस
कर सकने की कहानी है, स्त्री का अपने शरीर पर अधिकार व उसके उत्सवधर्मिता की भी
कहानी कहती है यह फिल्म। ‘पिंक’ में शहरी परिवेश में कामकाजी लड़कियों के अपने शरीर
पर अधिकार पाने और किसी भी तरह की जबरदस्ती को ‘न’ कह सकने के हक़ की लड़ाई है तो 'पार्च्ड'
ग्रामीण परिवेश में रची एक ऐसी कहानी है, जहाँ मरुस्थल बन चुके स्त्री मन के भीतर
इच्छाओं की बूँदें गिरती हैं, जहाँ आकाश की ओर मुँह बाए हवा को भर लेने की ख्वाहिश
है और जहाँ अपनी इच्छाओं के अनुरूप जीने को लेकर कोई गिल्ट नहीं है। हमने यों तो
स्त्रियोन्मुखी बहुत सी फिल्में देखी हैं, बहुत से मजबूत स्त्री चरित्र भी देखे
हैं, पर उन मजबूती के पीछे, परिवार न बसा पाने का गिल्ट है कहीं तो कहीं अपनी यौन
इच्छाओं के बारे में सोच भर लेने से जन्मा गिल्ट भी दिखाई देता है.. यह गिल्ट
हमारे समाज की देन है, जिसने ‘यौन शुचिता’ का एक भयावह बोझ स्त्रियों पर डाल रखा
है, जो संबंधों को बचाने की सारी ज़िम्मेदारी स्त्रियों पर डाल पुरुषों को उनके
सपनों को जीने के लिए पूरा आकाश थमा देता है और जिसने स्त्रियों को इस ओर इतनी
बारीकी से अनुकूलित कर दिया है कि इसके बाहर सोचना तक गिल्ट में डाल देता है उन्हें...
बाँझपन, बाल-विवाह, वैधव्य और वैश्यावृत्ति से जूझती इन स्त्रियों के जीवन में
प्रेम का अभाव तो है, पर वे उस अभाव को अपने जीवन की नियति नहीं मानतीं, उनकी
ठिठोलियाँ इस अभाव के गाढ़ेपन में उम्मीद की रोशनी की तरह झिलमिलाती रहती हैं।
गालियों के पीछे की मर्दवादी मानसिकता पर करारा चोट करती हुई यह फिल्म स्त्री
उन्मुक्तता का उल्लास रचती है। कोई भी सोचने वाला इंसान इन गालियों के बनाए जाने
की मानसिकता को ज़रूर समझना चाहेगा और उसे वह दृश्य, जब बिजली अपनी दोस्तों रानी व
लाजो से इस बारे में बात करती है, इस ओर और सोचने के लिए बाध्य करेगा। सच कहूँ तो
यह फिल्म मुझे शुरू से लेकर आखिर तक उस तरह से फिल्म लगी नहीं, जिस तरह की फिल्में
बड़ी संख्या में बनाई व देखी जाती हैं। ऐसा कहते हुए मैं इस फिल्म को, उसकी
कलात्मकता को कतई कम करके नहीं देख रही.. ऐसी फिल्म जो शुरू से आखिर तक बिना किसी
चकाचौंध के आपको अपने साथ कर ले.. अपने हर दृश्य, हर संवाद, हर चरित्र के ज़रिए
किसी तरीके की भव्यता नहीं परोसे बल्कि अपनी कहानी के ज़रिए एक ऐसा जीवन आपके सामने
रखे, जिसे उसके दृश्य, संवाद, चरित्र ज़िन्दगी देते हों, तो क्या कहा जाए... यकीनन
यह फिल्म उन लोगों के लिए नहीं है जो फिल्म से एक खास तरह का मनोरंजन ढूँढ़ते हैं,
जो फिल्म की सुनी सुनाई खबर पर फिल्म में ‘मज़ा’ लेने जाएँ, पर वहीं मुझे यह भी
लगता है, उन्हें यह फिल्म फिर भी देखनी चाहिए, क्या पता अपने भीतर की मर्दवादी
मानसिकता को और अधिक पोसने की जगह उन्हें अपने भीतर के खोते इंसान को ज़िन्दा करने
का ख्याल हो आए...<br /><br /></span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">मैं
पहले भी कह चुकी हूँ कि फिल्में सब कुछ नहीं बदल सकतीं और हमें सारी ज़िम्मेदारी
सिनेमा पर डालनी भी नहीं चाहिए। रानी, लाजो, बिजली, जानकी- चार एकदम सहज़ और
सामान्य चरित्र जिनपर यकीन करना ज़रा भी मुश्किल नहीं.. पर जो चीज़ इन चार चरित्रों
को खास बनाती है वह है अपने होने का अहसास, और एक दूसरे से उनका कनेक्शन जो उस
बनाई गई धारणा को खारिज़ करता है कि स्त्रियाँ ही स्त्रियों की दुश्मन होती हैं। पितृसत्ता
में जीती ये चारों औरतें, जो वैधव्य, बाँझपन, बाल-विवाह, वैश्यावृत्ति जैसी चार
बड़ी सामाजिक समस्याओं से जूझ रही हैं, पर कितना जीवन बचा हुआ है इन चरित्रों में,
और ये जो जीवन है, वही इन्हें खूबसूरत बनाता है...सामाजिक रूढ़ियों में बंधी इन
औरतों का जीवन कहीं भी ठहरा हुआ नहीं है, वे काम करती हैं, कुछ हद तक जुल्म भी सहती
हैं, पर उसे अपनी नियति नहीं मानतीं.. तभी तो अंत में पूरा आकाश उन्हें अपना लगता
है..<br /><br /></span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">रोज़
रात में अपने पति के हाथों पिटती लाज़ो को देख जहाँ एक अजीब सा दर्द और क्रोध भी
पैदा होता है, वहीं आदिल हुसैन के साथ का वह प्रेम दृश्य मन को उतना ही खूबसूरत
लगता है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी फिल्म की कई सारी खासियतों में से एक है। यह
मानना और भी पुख्ता हुआ कि सिनेमैटोग्राफर का नज़रिया किसी दृश्य को एक बिलकुल अलग
आयाम दे सकता है... वह दृश्य और उसके तुरंत बाद का दृश्य इतनी खूबसूरती से फिल्माया
गया है कि वह खूबसूरती देखने वाले के भीतर उतर आती है और उसी वक़्त बजता 'माइ री'
गाना उस खूबसूरती के रंग को और गाढ़ा करता है। <br /><br /></span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">फिल्म
के संवाद हमारे सामाजिक ताने बाने को ही उकेरते हैं, "पढ़लिख कर किताबें सर चढ़
जाती हैं" यह संवाद सिर्फ एक फिल्म का डायलॉग नहीं है। हम जैसी बहुत सी
लड़कियों ने अपने जीवन में इस ताने को सुना ही होगा..</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">हंसी
हँसी में लाजो का यह संवाद कि "अगर दुनिया में मेरे जैसी बाँझ नहीं होती, तो
बच्चों का तो अब तक अलग देश बन गया होता" मन में चुभता है... बच्चे किसी भी
वज़ह से पैदा न कर सकने वाली स्त्रियों के जीवन को जिस किसी ने देखा होगा वह इस
चुभन को समझ सकेगा.. पता नहीं क्यों मुझे हमेशा ऐसा लगता है हम जब चीज़ों को
ग्लोरिफाइ करते हैं न तो उसके पीछे एक खास तरह की शोषण की मानसिकता काम करती है..
और इसलिए इस तरह के ग्लोरिफिकेशन से मुझे बेतरह खीझ होती है... एक औरत और उसके माँ
होने को हमारा समाज अपनी उसी मानसिकता से ग्लोरिफाइ करता रहा है पर फिल्म के एक
दूसरे दृश्य में बिजली के इस सवाल के जवाब में कि 'तू बच्चा क्यों चाहती है"
लाजो का यह कहना कि वह बच्चा खुद के लिए चाहती है, एक राहत भरा दृश्य है। <br /><br /></span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">इस
फिल्म की कलात्मकता इस बात में है कि यह चार औरतों के सहारे हमें ऐसे सफर पर ले
जाती है, जो हमें एक ओर हमारे समाज की मर्दवादी मानसिकता की क्रूरता को दिखाती है,
वहीं उस क्रूरता से जूझती औरतों के सहारे जीवन का उल्लास रचती हैं। अपने अपने जीवन
में, प्रेम रहित संबंधों में जीते हुए भी उनके अपने होने में कहीं भी प्रेम और
जीवन धुंधलाता नहीं है। उनकी खिलखिलाहट, उनके सपने, उनका प्रेम यही तो डराता रहा
है इस पितृसत्ता को जिसे वह गालियों व इस तरह के अन्य औजारों से नियंत्रित करता
रहा है पर इस फिल्म की स्त्रियाँ हर उन गालियों को धता बता अपने भीतर के उफान से
उस आकाश तक अपनी खिलखिलाहट पहुँचाती हैं। गाड़ी चलाती बिजली और उसपर सवार दुपट्टा
उड़ाती रानी, लाजो और जानकी अपनी खिलखिलाहट से उस आकाश को खूबसूरत रंग से रंग देती
हैं, जिसमें विचरने से उन्हें हमेशा
नियंत्रित किया गया... <br /><br /></span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;">अगर
अब तक आपने फिल्म नहीं देखी है तो ज़रूर जाइए और झरने सी बहती इन स्त्री चरित्रों
की उन्मुक्तता के उत्सव में शामिल होइए, आप खाली हाथ नहीं लौटेंगे। उन चरित्रों
से, उनकी कहानी से कुछ न कुछ लेकर ही आएँगे...<br /><br />- स्वाती</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , sans-serif; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<br /></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI17uZqldFWzR5BBYxvdR97MZEKJ9UIisxvYJos-fHXaI8Z2bu4Tq-Ioa6yxJzF3YJsdksL3IodXph7NV3TEwvAOeP8IA6anyPqxJjDdTeoLmwVoJypdu5MZkxfwkfOl5-XptiocoiVlk/s1600/14425469_1443466212348884_2747624520859998857_o.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI17uZqldFWzR5BBYxvdR97MZEKJ9UIisxvYJos-fHXaI8Z2bu4Tq-Ioa6yxJzF3YJsdksL3IodXph7NV3TEwvAOeP8IA6anyPqxJjDdTeoLmwVoJypdu5MZkxfwkfOl5-XptiocoiVlk/s200/14425469_1443466212348884_2747624520859998857_o.jpg" width="200" /></a></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-71023179883323201342016-09-20T17:11:00.000+05:302016-10-01T15:28:43.907+05:30और भी ज़्यादा प्यारा लगने लगा है 'पिंक'... स्वाती<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi86u4qweWYppCrVmrxOJMqntFas8Fxr5l_A_L9JKZP_ZPHrKLyTsrr31zZwXggjiSPmhvXH9xmfNnTkK_cdUC4Jc0l0ByCM3jgDqYpdSZ335gTTRnsZtNR4TLiTi4QzrhN2662hIu-ZBs/s1600/13653119_1399349500093889_6798919983474673408_o.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi86u4qweWYppCrVmrxOJMqntFas8Fxr5l_A_L9JKZP_ZPHrKLyTsrr31zZwXggjiSPmhvXH9xmfNnTkK_cdUC4Jc0l0ByCM3jgDqYpdSZ335gTTRnsZtNR4TLiTi4QzrhN2662hIu-ZBs/s200/13653119_1399349500093889_6798919983474673408_o.jpg" width="199" /></a></div>
<br />
<br />
<div style="text-align: justify;">
<b>जन्म से ही लड़कियों को ऐसे संस्कार, परम्पराओं में गढ़ा जाता है, जिसमें उन्हें कैसे चलना है, कैसे उठाना-बैठना है... कब, कहाँ, कैसे और कितना हँसना - बोलना है तथा घर से बाहर आने-जाने का समय क्या हो ये सब निर्धारित किया जाता है | इस गढ़न में कितनी घुटन है, कितना अपमान है, लड़कों से पीछे रखने का एक सुनियोजित षड़यंत्र है ... सब कुछ जानते-समझते हुए भी वे इन रुढ़िवादी सोच से अपने आपको कहाँ मुक्त कर पा रहीं हैं !! हालाकि बड़े शहरों में शिक्षित, कामकाजी महिलाओं के लिए 'पिंक' जैसी महत्वपूर्ण फिल्म आशा की एक किरण जरुर साबित हो रही है | इस फिल्म पर हिंदी विभाग की शोधार्थी, लेखिका, कवयित्री स्वाती ने बेबाकी से अपनी राय रखी है |</b></div>
<b></b><br />
<div style="text-align: justify;">
<b><b>एक लम्बे अंतराल के बाद फरगुदिया को इस महत्वपूर्ण लेख के माध्यम से अपडेट किया जा रहा है | स्वागत और बधाई स्वाती ....</b></b></div>
<b>
</b>
<br />
<span style="background-color: #f4cccc; font-size: large;">और भी ज़्यादा प्यारा लगने लगा है 'पिंक'...</span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><br /><br /></span><span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; line-height: 115%;"> जब
फिल्म थोड़ी देर से देखने जाओ तो फिल्म को लेकर बहुत सारे विचार सामने आ चुके होते
हैं। मैं उन विचारों को लेकर फिल्म देखने जाना चाहती तो नहीं थी, पर वे थे मेरे
साथ। पर फिल्म जब से शुरू हुई तब से आखिर तक सिर्फ एक कहानी थी मेरे सामने, जो सच्ची
थी, जहाँ कितने ही संवादों को तो एक्स्पीरिएंस भी किया ही होगा बहुत सारी लड़कियों
ने अपनी अपनी ज़िन्दगियों में, ऐसे में कहां गुंजाइश रहती है कि उसके अलावा और भी
कुछ साथ-साथ चले... फिल्म तो अभी यह लिखते वक़्त भी मेरे साथ है.. फिल्म देखने तो
मैं अकेले गयी थी, पर जब लौटी तो तीन दोस्तों (मीनल, फलक, और ऐंड्रियल) के साथ थी,
जो लंबे समय तक मेरे कदमों की ठिठकन को तोड़ने का हौसला देती रहेंगी.. मैं नहीं
जानती कोई फिल्म या कला का कोई रूप समाज को कितना बदल पाता है. मैं नहीं जानती कि
शुजित सरकार की यह फिल्म 'पिंक' कितना कुछ बदल पाएगी... पर ये जानती हूँ और भरोसा
भी करती हूँ कि सिनेमा या कोई भी कला रूप जीवन की बात करे तो सच्चा लगता है और
मेरा यह भरोसा है कि कुछों को तो यकीनन बदलता भी है। बदलना मतलब किसी के होने को
बदलना नहीं, किसी के सोचने को बदलना है। मेरे खुद के सोचने में बहुत सारे बदलाव आए
हैं, आसपास की घटनाओं को देखने समझने के नज़रिए में बदलाव आया है और मैं बढ़ा चढ़ा के
नहीं बोल रही पर इन बदलावों के पीछे साहित्य भी रहा और सिनेमा भी.. एक समय था जब
मैं लड़की की मजबूती के पीछे के कई आयामों को स्वीकार नहीं कर पाती थी। शायद समझ
नहीं पाती थी तब, इसीलिए परंपरा के नाम पर या फिर चले आ रहे अमानवीय व्यवहार के
महिमामंडन में, उसके सेलिब्रेशन में मैं भी शामिल हुआ करती थी। आज समझ पाती हूँ,
और उनपर सवाल करती हूँ। इस प्रक्रिया में ज़्यादातर अकेला पाती हूँ खुद को, कभी-कभी
डर का ख्याल भी आता है पर फिर सोचती हूँ कि कैसे मान लूँ कि सड़कें मेरी नहीं हैं,
कैसे मान लूँ कि रातें डरावनी होती हैं.. उन्होंने तो मुझे ये अहसास कभी नहीं
दिलाया, फिर क्यों मैं अपनी आवाज़ को धीमी कर दूँ, क्यों न रात में बिना किसी डर के
इन सड़कों पर खुल के गुनगुनाऊँ... </span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; line-height: 115%;">इतनी
सारी बातें हो चुकी हैं फिल्म पर, हर कोई अपने नज़रिए से फिल्मों को देखता है, सीखता
भी है... मुझे यह फिल्म ज़िन्दगी का हिस्सा लगी। लोग बेशक इसे अमिताभ की फिल्म
कहें, पर मुझे यह फिल्म उन तीनों लड़कियों की वज़ह से अधिक सच्ची लगी जिनका जीवन,
जिनकी समस्याएँ कुछ ऐसी थीं, जिनसे अमूमन हर लड़की जूझती है, कुछ उसे इग्नोर कर
देती हैं, कुछ डर जाती हैं पर कुछ ऐसी भी होती हैं जो लड़ती हैं.. शुरुआत के कुछ हिस्सों,
जहाँ अमिताभ के अभिनय में मुझे थोड़ा सा एक्सैगरेशन महसूस हुआ, को छोड़कर फिल्म का हर
कलाकार, अपनी अदाकारी से अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराता है और फिल्म को सच के
करीब रखने में कौंट्रीब्यूट करता है। चाहे वह दो सीन के लिए आया वह मकान-मालिक ही
क्यों न हो। तमाम बदलाव के बावज़ूद मैं जानती हूँ कि लिब्रल कह देने भर से कोई
लिब्रल नहीं हो जाता है। हम इस बात को गर मानेंगे तो शायद खुद को बेहतर इंसान बना
पाएँगे... और यह बात सिर्फ लड़कों के लिए नहीं है हम लड़कियों के लिए भी उतनी ही सच
है। हम सब एक ऐसे सेट-अप में बड़े हुए हैं जहाँ लड़कियों की 'वर्जिनिटी', 'चारित्रिक
शुद्धता' कुछ ऐसे टर्म्स हैं जो हमें हमेशा डराते रहते हैं, और हम डर-डर के सँभल
सँभल के जीना सीख जाते हैं। जो ये कहते हैं कि ऐसा नहीं होता उनसे मैं पूछना
चाहूँगी क्या वाकई सड़कें और रातें उनके घर की लड़कियों के लिए भी उतनी ही अपनी हैं,
जितना उनके घर के पुरुषों के लिए...? क्या आज भी उन्हें लड़कियों की उन्मुक्त हँसी
डरा नहीं देती और फिर अपने डर को कम करने के लिए वे हमारे सामने शुचिता का एक बड़ा
सा घेरा बना देते हैं जिसमें हम कई दफे फंस जाते हैं, डर जाते हैं क्योंकि हमें
कभी ये बताया ही नहीं गया कि सामान्य भावों को नियंत्रित करने की कोई ज़रूरत नहीं
है। हम कभी नहीं सिखाते अपनी लड़कियों को कि तुम्हारा जीवन तुम्हारा अपना है। हम तो
हमेशा ही अपनी लड़कियों पर घर की इज़्ज़त का भारी भरकम बोझ डालते हैं जो हर वक़्त आपको
अपने सामान्य मानवीय इच्छाओं को नियंत्रित करना सिखाता है.. आज जब लड़कियाँ पढ़ने,
नौकरी करने दूसरे शहर जाती हैं, तब आप प्रत्यक्षत: तो नहीं होते वहाँ पर वो इज़्ज़त
वाला बोझा वहाँ भी होता है जो हर वक़्त उन्हें नियंत्रित करता है, डराता है और
उन्हें जीने नहीं देता एक स्वाभाविक सी ज़िन्दगी, जिसकी वो हक़दार हैं... उन्हें
इतना सुनाया जाता है कि वह मान लेती हैं कि उनकी हँसी, उनकी उन्मुक्तता जो कि बेहद
सहज़ है, वह उनके लिए खतरा है। ‘सिंगल वर्किंग वुमेन’ के तीनों ही शब्द इस समाज को
बहुत परेशान कर देते हैं और वो लड़कियों के ‘सेल्फ’ को ‘इज्ज़त’ की उस खोखली पोटली
से ढक देना चाहते हैं। फिल्म में एक जगह पर एक पुरुष के रूप में अमिताभ का लड़की के
हुड को हटाना कहीं न कहीं उस पोटली को, सैकड़ों सालों की झिझक को हटाना है जिसने
स्त्री को ढक रखा है।</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; line-height: 115%;">‘पिंक’
नाम सुना तो बस एक रंग ज़ेहन में आया था, जो मुझे पसन्द भी है। हाँ मैंने ये नहीं
सोचा कि क्यों पसंद है यह रंग मुझे, पर ये ज़रूर सोचती रही कि लड़के क्यों गुलाबी रंग
से थोड़ा परहेज़ करते हैं जैसा कि शुजित ने अपने हाल के एक इंटरव्यू में कहा भी था..
पर फिल्म के पोस्टर में गुलाबी रंग के पीछे दो मज़बूत हाथ हैं.. हमें न गुलाबी रंग
से परहेज़ है, न किसी कोमलता से, हमें परहेज़ है इन विशेषताओं की आड़ में या कहूँ कि
कुछ रुमानी लालचों में हमें गूँगा बना दिए जाने से और यह फिल्म उस ऐतराज़ को ज़ाहिर
करती है। हम इस बात से नाराज़ नहीं हो सकते कि यह फिल्म एक महिला ने क्यों नहीं
बनाई या कि वकील के रूप में कोई महिला वहाँ क्यों नहीं, हालाँकि एक बार को यह
ख्याल आया था मेरे मन में भी पर तुरंत मुझे याद आया कि हमारी लड़ाई पुरुष बनाम
स्त्री की नहीं है। हमारी लड़ाई उस सोच से है, जो हमारी हँसी, हमारी उन्मुक्तता को
अपने लिए आमंत्रण समझता है और इसलिए हमेशा हमें नियंत्रित करना चाहता है। दारू
पीने की बात का वह दृश्य याद कीजिए और दो सेकण्ड ठहर कर ईमानदारी से खुद को
टटोलिए.. कैसे आप परेशान हो जाते हैं जब आप सड़कों पर बेपरवाह चलती लड़की को देखते
हैं.. सोचिएगा ज़रूर.. मैं भी सोच रही हूँ कि क्यों दूसरों की नज़रें मुझे एक पल को
असहज़ कर देती हैं, हालाँकि फिर हिम्मत बटोर कर मैं खुद को सहज करने की कोशिश ज़रूर
करती हूँ... हम और आप यदि सब सोचें अपने व्यवहारों को तो शायद कुछ बदले..</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; line-height: 115%;">मनोरंजन
के नाम पर कुछ भी परोस देने की होड़ में जहाँ हँसने हँसाने के लिए भी आपको स्त्री
के शरीर को इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है, जहाँ इंटरटेनमेंट के लिए आप स्त्री को
ऑब्जेक्टिफाइ करते हैं, कैमरे के ऐंगल से भी और भाषा के मामले में भी, वहाँ यह
फिल्म अपने ढाई घंटे में वास्तविक समस्याओं को संज़ीदगी से पेश करती है। हो सकता है
इस बात को और बेहतर तरीके से कहा जा सकता हो, कमियाँ हो सकती हैं, बेहतरी की
गुंजाइश भी हो सकती है, पर क्या हमें इस प्रयास की सराहना नहीं करनी चाहिए जो
स्त्री संबंधी बहस को शुचिता की बहस से बाहर ले जाता है, उसकी मर्जी, उसके ‘ना’ के
मायने समझाता है, जिस ओर हमारे समाज और सिनेमा ने भी ध्यान नहीं दिया.. क्या इस
फिल्म को इसलिए नहीं देखा और सराहा जाना चाहिए कि इसने मीनल, फलक और एंड्रिया जैसी
आज की दुनिया की ज़िंदा लड़कियों से हमारी दोस्ती कराई..</span><span style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<br />
<br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large; text-align: justify;">वह सोच जो हमारे कपड़ों, हमारी उन्मुक्त हँसी को हमारे व्यक्तित्व का पैमाना बना देती है.. वह समाज जो हमारी अपनी आकांक्षाओं बेशक वह यौन इच्छाएँ ही क्यों न हो, पर बात करना ही नहीं चाहता .. चाहे भी कैसे जब शादी के भीतर बलात्कार की बात करने पर उस संवेदनशील मसले पर सोचने की ज़गह अजीब सी घिन भरी नज़र हम पर फेंक दी जाती हो, जहाँ बड़ी बेशर्मी से आपकी वर्जिनिटी पूछी जाती है, को मानवीय तो नहीं कहा जा सकता। सारे सवाल हमारी ओर ही रहेंगे क्योंकि वो जो इज़्ज़त का बड़ा सा बस्ता है न वो बांध दिया गया है हमारे सर से पर हमें उस बोझ से खुद को बाहर करना होगा, उन सवालों से लड़ने की हिम्मत पैदा करनी होगी खुद के भीतर... घूरती नज़रों और गालियों ने हमें बहुत डराया है आज तक, हमारे कदमों को लगातार पीछे किया है इस झूठे इज़्ज़त के बस्ते ने... कभी मज़ाक के नाम पर कभी चीख कर, और कभी प्यार जैसे खूबसूरत भाव का आसरा ले हमें हमसे ही दूर किया गया है, फिल्मों, गानों ने भी मदद ही की है इसमें... जब आप तालियाँ बजाते हैं न औरतों के ऑब्जेक्टिफिकेशन पर, ठीक उसी वक़्त खुद को टटोलिएगा... स्त्री के शरीर को मज़ाक और हँसी के नाम पर या फिर गाली देने के लिए जब यूज़ करते हैं न तब भी थोड़ा सा ठहरिएगा और सोचिएगा कि आप स्त्री-पुरुष की दोस्ती के लिए कितने तैयार हैं... आप गर इतना कुछ सोच सकेंगे न तो उस पितृसत्ता को वाक़ई चुनौती देंगे। हमने तो चुनौती देना शुरू कर दिया है, आपकी घूरती नज़रें, आपकी गालियाँ और हर वह सोच जिनके सामने हम सहम कर, शर्मिंदा होकर आँखें झुका लेती थीं और रास्ते बदल लिया करती थीं, वही आज ठिठकते कदमों को आगे करने की ज़रूरत का अहसास कराती हैं... चुनौती देना शुरू कीजिएगा उस सोच को, जो स्त्री की आज़ादी से डरती है, मालिकाना हक़ से नहीं दोस्ताना रवैये से स्त्री को जानने की कोशिश करिएगा, आप यकीन मानिए यह आपके होने को कतई कम नहीं करेगा, आपको और बेहतर ही बनाएगा और हाँ ‘पिंक’ रंग आपको भी प्यारा लगने लगेगा...</span><br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="font-size: large; line-height: 115%;"><br />-- स्वाती</span></span></div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-72967488522237220952015-06-06T21:12:00.000+05:302015-06-06T21:12:12.731+05:30प्रकृति मेरे माता पिता के समान है - प्रगति मिश्रा <div style="text-align: justify;">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDqfrEhndzbNFgdHNV7xf1l6IhH7gNFT6vO5QlSiDxNwhO7_0a04AK0_2fdUP9RMYvtsZTy1SWx9u-z_KTqJyilANBGnrDtLtN_Y6fDMl8xChAhnGi4FzPsS7RuowKqkpITIJV1gvZvIo/s1600/11392982_653668781431045_6644204110860291596_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDqfrEhndzbNFgdHNV7xf1l6IhH7gNFT6vO5QlSiDxNwhO7_0a04AK0_2fdUP9RMYvtsZTy1SWx9u-z_KTqJyilANBGnrDtLtN_Y6fDMl8xChAhnGi4FzPsS7RuowKqkpITIJV1gvZvIo/s320/11392982_653668781431045_6644204110860291596_n.jpg" width="219" /></a></div>
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अपने जीवन के १८ साल मैं इस दुनिया में बिता चुकी हूँ. स्कूल में हर साल ५ जून को कोई न कोई कार्यक्रम हुआ करता था जिससे हम सब प्रकृति की तरफ अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक होते थे. स्कूल में चार्ट, पोस्टर, भाषण , नाटक के माध्यम से हमे समझाया जाता था कि हर साल हम अपने पर्यावरण को किस तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. इस्तेमाल कहना ठीक नहीं होगा, हम हर वर्ष अपने पर्यावरण को पहले से भी ज्यादा नुक्सान पहुंचाते हैं और फिर एक दिन उसे सुधारने की बातें करते हैं. स्कूल में कितना आसान लगता था इन सब विषयों के बारे में चर्चा करना लेकिन अब समझ आता है कि टीचर्स क्या कहा करती थी - जो तुमने १२ साल एक स्कूल में सीखा, वो यहाँ सीखना बहुत आसान है लेकिन तुम सब असल ज़िन्दगी में अपनी विद्या का कितना इस्तेमाल करोगे, वही बताएगा कि तुम सबने अपने विद्यालय से क्या सीखा. आज मैं कॉलेज में पढ़ती हूँ. और सच कहूँ तो हर कोई अपने भविष्य की बात करता है - कहाँ जॉब करेंगे, किस पैकेज में जायेंगे, और मैं भी कहीं न कहीं इन्ही बातों के बारे में सोचती हूँ. पर अगर अकेले में अपने आप से हम सब पूछें तो एक सवाल मन में आता है - जिस भविष्य की हम कल्पना कर रहे हैं वो तो तभी सुन्दर होगा जब हमारे आस - पास का पर्यावरण सुन्दर होगा. ज़ाहिर सी बात है इंसान की ज़रुरते कभी पूरी नहीं होती हैं. उसे कितना भी मिले, हमेशा उससे ज्यादा की ही चाह रहती है. आज से कुछ साल बाद हम में से अधिकतर लोगों के पास शायद पैसे की कमी नहीं होगी लेकिन जब हमें दूषित वातावरण में सांस लेने में बहुत तकलीफ होगी तब हम साफ़ - सुथरा पर्यावरण बहुत याद करेंगे लेकिन तब यह समझने में बहुत देर हो चुकी होगी कि पैसे से सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता है. </div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqSwzA_76O9KpsS6acfP7lMEbll0sodCPLHPVz_JWsNEMshtBF2E82SJnIMUgjuRhdBsx2UD-6QM1rmlCsmI6ApaRvKZx1MEpKrtS7FP_276dCAQHZe0k3ZhRXvRkubBsIuRAd9SjvO3g/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqSwzA_76O9KpsS6acfP7lMEbll0sodCPLHPVz_JWsNEMshtBF2E82SJnIMUgjuRhdBsx2UD-6QM1rmlCsmI6ApaRvKZx1MEpKrtS7FP_276dCAQHZe0k3ZhRXvRkubBsIuRAd9SjvO3g/s400/images.jpg" width="248" /></a></div>
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हम सब कारण जानते हैं कि हमारा पर्यावरण ऐसा क्यूँ होता जा रहा है. आपकी वजह से, मेरी वजह से यानी हम सबकी वजह से. हमे पता है कि हमारी कुछ आदतों को सुधारने से ही हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित कर सकते हैं. उसे बर्बाद होने से बचा सकते हैं. लेकिन कोई पहला कदम नहीं उठाना चाहता. दिमाग में एक तरह की धारणा है न - जब आज तक कुछ नहीं हुआ तो शायद आज से ४०-५० सालों में भी नहीं होगा और उससे ज्यादा तो हमारी ज़िन्दगी होगी भी नहीं, तो क्यूँ सोचें हम पर्यावरण के बारे में? <br />
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पांचवी क्लास में वैल्यू एजुकेशन की किताब में एक टॉपिक पढ़ा था: SUSTAINABLE DEVELPOMENT, मुझे इसके पीछे की वजह नहीं मालूम, पर जब भी कोई मुझसे कहता है कि हम पर्यावरण के बारे में क्यूँ सोचे तो मैं ये विषय समझाने लगती हूँ. इस सस्टेनेबल डेवलपमेंट के अनुसार हमे पर्यावरण को बचाना है क्यूंकि ये प्रकृति हमे आने वाली पीढ़ी से उधार मिली है और हमे इसे उन्हें सही सलामत सौंपना है. और जब हम उन्हें प्रकृति सौपेंगे तो इस बात का ध्यान रखना है कि हम उन्हें वैसा ही पर्यावरण दे जैसा हमसे हमारे बड़ों ने उधार पर लिया था. <br />
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<span style="font-size: large;"><b style="background-color: #93c47d;">The actual line quoted by native American Chief Seattle was : “ We have not inherited this earth from our ancestors, we have borrowed it from our children.” </b></span><br />
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हम २१वी सदी के लोगों में निस्वार्थ भावना का अभाव है. हमे लोगो को सही बात समझाने के लिए भी कहीं न कहीं विश्वास दिलाना पड़ता है कि इसमें आप की ही भलाई है और SUSTAINABLE DEVELOPMENT के अनुसार ये गलत भी नहीं है. आज के दिन अनेक लोग इस बात को कलम या भाषण के द्वारा ज़रूर दूसरों तक पहुचाएंगे कि - प्रकृति ने हमे बहुत कुछ दिया है. मैं कहती हूँ, प्रकृति मेरे माता पिता के समान है. जिस तरह आज से कुछ वर्ष बाद मैं अपने माता - पिता का दिया कुछ भी नहीं लौटा पाऊँगी उसी तरह प्रकृति ने मुझे १८ साल तक ऐसा वातावरण दिया जिसके कारण मैं स्वस्थ हूँ, सुखी हूँ. लोग अपना पर्यावरण दूषित न करे, आस पास सफाई रखें, अपने वाहनों का कम इस्तेमाल कर उन वाहनों का अधिक उपयोग करें जिससे प्रकृति को ज्यादा नुक्सान न हो. अब यहाँ सिर्फ प्रकृति को चोट न पहुंचाने के आलावा भी एक विषय है जिसके बारे में लिखना मैं जरुरी समझती हूँ. हम प्रकृति को दो चीजे ही दे सकते हैं: पहला, उन्हें कम से कम नुक्सान पहुंचाना. दूसरा, जो भी हमे प्रदान किया जा रहा है हम उसे सही तरीके से इस्तेमाल करे यानी उसे बरबाद न करे. कहा जाता है कि जब तक इंसान को उसके ‘कम्फर्ट जोन’ से न निकला जाये तब तक वो आसानी से मिल रही सुविधाओं का मोल नहीं समझता. लेकिन हम सब क्यों इंतज़ार करे कि प्रकृति हमसे यह सुविधाएं छीन ले? हम आज से, अभी से ये संकल्प लेते है कि प्रकृति से जुडी हर चीज़ हमारी ज़िम्मेदारी है और ये हमारा दायित्व बनता है कि हम आगे आयें और इन्हें बचाएं. अगर हम सभी गौर करें तो पायेंगें कि प्रकृति को इतना नुक्सान पहुँचाने के बाद भी वो कभी हमे कुछ भी देने से इनकार नहीं करती. परन्तु इसका मतलब ये नहीं है कि आज से कुछ वर्ष बाद भी वो आपकी हर ज़रूरत इसी प्रकार पूरी करती रहेंगी. हम सबकी माँ प्रकृति अपने उस चरण पर हैं जहाँ हमारे कारण वो बहुत बीमार हैं, और हमे ज़िम्मेदार संतानों की तरह उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना है. और इस बार अपने लिए नहीं, अपनी माँ के लिए.....</div>
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---- प्रगति मिश्रा</div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-31053652277313312792015-05-26T10:40:00.000+05:302015-05-27T18:44:28.005+05:30घुरिया - मीना धर <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikUDvv73072C4jZDoeP4TkhjG8njtwnnxniTTG0p0yzN_2WlMYlWoAn9B8Uo1h2hWc8qaBDzar4-XM4GQAopAhega0csY5XcEgyua6GZb9abGXkEr2O5nCwlccAO2fnTQZIEr1bzeK26k/s1600/10645052_649683381829585_5048000754380572544_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikUDvv73072C4jZDoeP4TkhjG8njtwnnxniTTG0p0yzN_2WlMYlWoAn9B8Uo1h2hWc8qaBDzar4-XM4GQAopAhega0csY5XcEgyua6GZb9abGXkEr2O5nCwlccAO2fnTQZIEr1bzeK26k/s400/10645052_649683381829585_5048000754380572544_n.jpg" width="211" /></a></div>
<span style="background-color: #fce5cd; font-size: large;">घुरिया </span><br />
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<span style="background-color: #ea9999;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span>
<span style="background-color: #ea9999;"><span style="font-size: large;">जन्मदिन की ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें दीदी !<br /><br />----------------------------------------------------------------</span></span><br />
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<b style="background-color: #d9ead3;"> "घुरिया" कहानी हमारे समाज के विकृत मानसिकता से ग्रस्त ऐसे तबके से परिचय करवाती है जिनकी संवेदनहीनता को पशुतुल्य कहने में तनिक भी संकोच नही होता ! कहानी पढ़ने के बाद कई प्रश्न मन में उठतें हैं ! एक लड़की जिसका ठीक से मानसिक विकास नही हो पाया है, जिसे पूरा गाँव पगली समझता है, पागल वह लड़की है या वह समाज जिसने उससे पशुओं जैसा व्यवहार किया ? <br />गाँव की पृष्ठभूमि पर आधारित तीन सखियों की बेहद मार्मिक और संवेदनशील कहानी लिखने के लिए मीना धर दीदी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ! लमही में प्रकाशित कहानी आप सब भी पढ़ें !</b><br />
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<span style="color: #666666; font-size: large;">बड़ी खुशनुमा दोपहरी है, खुशबू लिए हुए हवा के झोंके बसंती और फुलवा को सहला रही हैं, ऊपर आसमान में भूरे बादल उड़ रहे हैं, उनकी छाया जमीन पर दौड़ रही है, दुआर से थोड़ी दूर मैदान में घास के ऊपर बादलों की उड़ती हुई छाया रोमांच पैदा कर रही है | दूर कहीं बौछारें गिरी हैं जिसके कारण हवा से मिट्टी की सौंधी खुशबू आ रही है |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घर के सामने खुली जगह पर बसंती मिट्टी के घड़े के टूटे हुए एक टुकड़े से कुछ लकीरें खींच रही है और उसकी सखी फुलवा बड़े -बड़े फूलों वाली फ्राक पहने ओसारे की सीढियों पर बैठी लंगड़ी खेलने के इंतजार में उससे कुछ बाते करती जा रही है | बसंती की सफ़ेद फ्राक पर छोटे-छोटे फूल और तितलियाँ बनी हुई हैं और उसके बालों को दो हिस्से में बाँट कर दोनो कानों के ऊपर लाल रंग के रिबन से बांध कर सुन्दर से दो फूल बनाये गये हैं | बसंती ने एक आयताकार आकृति बना कर उसके अन्दर कई लकीरें खींच दी है अब दोनों में ये तय नही हो पा रहा है कि पहले कौन खेलेगा | दोनों पहले हम,पहले हम कर ही रहीं थीं कि इतने में पीछे से एक मोटी सी आवाज आई -- “ई का ?”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">दोनो ने आवाज की तरफ घूम कर देखा, घुरिया अपनी लहराती चाल से उन्ही की तरफ चली आ रही थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“देखु ना घुरिया हम एतना मेहनत से बनवली हँ, त पहिले हमही खेलब |” बसंती मचल कर बोली |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“हर बेर तूहीं पहिले खेलबू ?” खिसियाते हुए फुलवा बोली |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“काहें ? जब ओल्हापाती खेले के बेरिया हमहीं के हर बेर चोर बना देलू, तब हम त नाही रिसियानी |” दोनों हाथ कमर पर रख आँखे मटका कर बोली बसंती |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“हँ..त तूहीं हर बेर चोर छंटा जालू त हम का करीं |” बसंती भी अकड़ कर बोली |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घुरिया जो अभी तक इन दोनों की लड़ाई देख रही थी बसंती के हाथ से चप्पू (घड़े का गोल सा टुकड़ा) ले लेती है |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“ले आव द, हम पहिले खेलब” कह कर उस चप्पू को पहले खाने में ऐसे फैकती है कि वो खाने में ही गिरे ना तो दूसरे खाने में जाये ना ही पहले और दूसरे खाने की बीच की लकीर को स्पर्श करे चप्पू सही स्थान पर गिरता है और घुरिया अपना एक पैर उठा कर एक पैर से उस खाने में कूदते हुए जाती है और उस चप्पू को उसी पैर से मार कर बाहर ले आती है; अब तीनों मिल कर लंगड़ी के खेल का आनंद लेने लगतीं हैं |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">यू.पी. और बिहार को जोड़ता हुआ स्टेशन सिवान उससे कुछ दूर पर स्थित है पिपरौंसी गाँव जिसमे ज्यादातर भुमिहार ब्राह्मणों का परिवार है कुल तीन घर ब्राह्मणों का है, बाकी और कई जातियों के परिवार भी हैं; पर सबसे ज्यादा संपन्न और ठसकदार गाँव के भूमिहार हैं, वो कुछ भी करें, उनके खिलाफ़ बोलने की हिम्मत गाँव में किसी की भी नही है | गाँव में ब्राह्मणों का बहुत सम्मान होता है, सभी उनका आदर करते हैं, उन्ही में से एक परिवार किसन बाबा का है | किसन बाबा बाल-ब्रम्हचारी हैं उनका मन पूजा पाठ में ज्यादा लगता है, गाँव के कई लोगों ने उनसे गुरुदीक्षा ले रखी है; इसी लिए सभी उनको बाबा कह कर बुलाते हैं | अपने घर से भी उनको बहुत मान मिलता है और वो भी अपने घर वालों का बहुत ख्याल रखते हैं | बसंती किसन बाबा की १० साल की भतीजी है | उनके मझले भाई साहब कलकत्ते में नौकरी करते है; तो उनका परिवार ज्यादातर अपने गाँव पिपरौंसी में ही रहता है, बसंती उनकी एक ही बेटी है |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">फुलवा गाँव के एक संपन्न किसान नारायण राय की बेटी है और घुरिया दूसरे टोला की है, तीनो लगभग एक ही उम्र की हैं और उनमे खूब पटती भी है और लड़ाई भी खूब होती है | ओल्हापाती खेलना हो, लंगड़ी, पचीसी या गोटी, बिना लड़ाई के क्या मजाल की खेल पूरा हो जाय | कभी-कभी तो झोंटा-झुटउवल की नौबत आ जाती है,बाल बिखर जाते हैं रिबन का फूल बिगड़ जाता है, लड़ाई के बाद कट्टी हो जाती, ऐसा लगता कि अब ये तीनों एक दूसरे से कभी बात नही करेंगीं; पर अगले ही दिन फिर से खेलने की तैयारी हो जाती | बसंती की माँ हर बार उसे उन दोनों के साथ खेलने से रोकती पर वो माने तब ना ..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घुरिया दो भाइयों के बीच एक बहन है पर उसकी बदकिस्मती ये कि उम्र के हिसाब से उसकी बुद्धि बहुत कम थी | सांवला रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, कमर तक लंबे बाल और लहराती हुई चाल कुल मिला कर सुंदर थी, बस दिमाग ही भगवान ने थोड़ा और दे दिया होता तो क्या बात थी ! उसकी माँ उसका बहुत ख्याल रखती, उसके लंबे बाल हमेशा संवरे रहते, कपड़े साफ़-सुथरे और पाँवो में हमेशा चप्पल रहती, बस एक कमी थी उसमे, उसकी आवाज बहुत भारी थी; पर इससे उन तीनो की दोस्ती में कोई फर्क नही पड़ता था |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती अब बड़ी हो रही थी और उसकी माँ चाहती थी कि आगे की पढ़ाई उसकी कलकत्ते में हो इस लिए अपने पति को बार-बार चिट्ठी लिख रही थी आखिर कुछ दिनों बाद चिट्ठी आई कि “मै आ रहा हूँ तुम्हें लेने” और बसंती की माँ ने जैसे अपनी मन की मुराद पा ली हो, वो जाने की तैयारी में लग गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
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<span style="color: #666666; font-size: large;">गाँव से थोड़ी दूर बगीचे में एक तरफ़ गन्ने की पेराई हो रही थी वहीं थोड़ी दूर ईंट का गोलाकार बड़ा सा चूल्हा बना था, उसी पर एक बड़ा सा छिछला कड़ाहा चढ़ा था, जिसमे गन्ने के रस को एक सूती धोती से छान कर डाला जा रहा था, कड़ाहे के नीचे तेज आग जल रही थी और एक आदमी उसे चला रहा था, कुछ देर बाद ही गर्म गर्म गुड़ तैयार होने वाला था |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">वहीं थोड़ी दूर पर पकड़ी के पेड़ के नीचे तीनों सखियां उदास बैठीं थीं, आज से दसवें दिन बसंती को चले जाना था, इसी बात से वो तीनों बहुत उदास थीं | उन्हें गाँव में लगभग सभी जानते थे और बसंती तो सब की दुलारी थी तो उसे बहुत लाड मिलता था सबसे | उधर से निकलते हुए रामबचन ने उन तीनों को देख लिया |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“अरे !! ई तिकड़ी काहें मन गिरा के बैठी है भाई” रामबचन उन तीनों को उदास देख कर बोले |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">वो कुछ बोलतीं इससे पहले फिर बोल पड़े रामबचन “चला…तोहा लोगिन के हम रस पिआयीं |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“नाहीं चाचा, आज मन नईखे |” बसंती दबे स्वर में बोली</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“काहें बबुनिया ? आज ई चाँद जईसन मुखड़ा पर गरहन काहें लागल बा ?” रामबचन उनके पास बैठते हुए बोले | रामबचन का घर बसंती के घर के पास ही था |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“बिहान बसंती शहर चली जाई, एहीसे हमनीके नीक नइखे लागत |” बोलते हुए फुलवा की आँखे भर गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“अच्छा !!! ई त बहुते खुशी के बात बा, चला हम सबके मुंह मीठ कराई |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">रामबचन तीनो को ले गये जहाँ गन्ना पेरा जा रहा था पर रस किसी ने भी नही पिया तो महुआ के पत्ते पर गरम-गरम गुड़ ला कर रामवचन ने तीनो को दिया |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">वो खा ही रहीं थीं कि ओल्हापाती की पूरी टीम आ कर बसंती को घेर खड़ी हो गई | उन सब को पता चल गया था कि वो गाँव छोड़ कर जाने वाली है, सभी के लटके हुए चेहरे देख कर रामबचन बोले..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“बसंती के जाए में अबहिन कई दिन बा ना, त आज से काहें इतना उदासी ? जा..जा के खेला लोगिन बसंती के साथ |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">सभी बच्चे शोर करते हुए जामुन के पेड़ की तरफ़ बढ़ जाते हैं और शुरू हो जाता है ओल्हापाती का खेल |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती कलकत्ते माँ के साथ अपने पापा के पास चली गई, फुलवा गोरखपुर पढ़ने के लिए भेज दी गई; पर घुरिया गाँव में ही रह गई, बाकी सब भी अपनी-अपनी पढ़ाई में लग गये |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">दिन बीतने लगे सब का साथ छूट गया, बसंती अब शहर के वातावरण में घुल मिल गई थी | उसका पहनावा, बातचीत का तरीका, उठने बैठने का ढंग सब बदल गया था लेकिन वो फुलवा और घुरिया को भूल नही पायी थी, जब भी अकेली होती वही बगीचा, गर्म गुड़, महुआ, बादलों की परछाई को पकड़ने के लिए भागना उसे सब याद आता तब वो अपनी, फुलवा और घुरिया की फोटो निकाल कर देख लेती |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">उधर बसंती और फुलवा के चले जाने के बाद घुरिया अकेली हो गई | उसका घर से निकलना बंद कर दिया गया वो घर के अन्दर गुड्डे गुड़ियों से खेलती, अब वो पहले जैसे लंगड़ी, पचीसी और ओल्हापाती नही खेल पाती, बाहर न निकलने देने का एक कारण और भी था, अब वो शरीर से बड़ी हो रही थी; पर उसका मन अब भी बच्चों जैसा था | फुलवा और बसंती की बात और थी पर किसी दूसरे के साथ खेलने जाने की इजाजत नही थी उसे | उसकी माँ पल-पल उसका ख्याल रखती |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">समय का पहिया घूमता गया, कई बसंत खिले और चले गये, कई बार बादलों ने छुआ-छुऔवल खेला, कई बार बगीचे के पेडों ने अपने पुराने पत्ते गिरा कर नये पत्ते पहन लिए और कई बार बरखा की बूंदों ने धरा को सिंचित किया पर इस बार जो बसंत खिला तो बसंती और फुलवा की तरह घुरिया भी खिल उठी | साँवला रंग, बड़ी आँखे, लंबे बाल, इकहरा बदन और वही नागिन जैसी लहराती चाल | जब माँ तैयार कर देती तो घुरिया आकर्षक युवती दिखाई देती पर जैसे ही अपना मुंह खोलती, पता चल जाता कि वो एक सुन्दर सलोनी नवयुवती नही, अब भी पाँच – छ: साल की बच्ची ही है |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">अपनी छत पर खड़ी बसंती मौसम का लुत्फ़ उठा रही थी | मौसम बहुत सुहाना हो रहा था | ठंडी-ठंडी हवा जब शरीर को छू के गुजरती तो एक सुखद एहसास दे जाती आसमान पर भूरे बादल आने लगे और वही घूप-छाँव का खेल शुरू हो गया | कभी धूप आगे तो छाँव पीछे और कभी छाँव आगे तो धूप पीछे, सामने हरे भरे पार्क से जब छाँव गुजरती तब वहाँ की घाँस का रंग गहरे काही रंग का दिखाई देता पर वहीं से जब धूप गुजरती तब वही कही रंग धानी रंग में परिवर्तित हो जाता | प्रकृति का ये सुन्दर नजारा देख कर उसे अपना गाँव याद आ रहा था | जब वो, फुलवा और घुरिया ऐसे मौसम में खेलने निकल जाया करतीं थीं, कभी जामुन तोड़ती तो कभी टिकोरे तोड़ कर उसकी भुजुरी बना कर खाया करती थीं | भुजुरी बनने के लिए प्याज, नमक और छोटी सी चाकू घर से छुपा कर ले जाया करती थीं दोनों | सोचते हुए बसंती के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है | अचानक ही बरखा की कुछ बूँदें उसके चेहरे से टकराती हैं और उसके कानों से एक आवाज ..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">”वसूऊऊऊऊ |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">वो अपनी सोच से बहार आ गई | “आई माँ” कह कर वो सब कपड़े समेट कर सीढियों की तरफ बढ़ गई | अब वो बसंती से वसू हो गई थी, माँ उसे प्यार से वसू ही कहती थी | सौंधी मिट्टी की खुशबू अब भी उसके नथुनों मे समा रही थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“ना जाने फुलवा और घुरिया कैसी होंगी, क्या कर रहीं होंगी ?”कपड़े घरी करते हुए वो माँ से बोली |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“वो भी पढ़ लिख रहीं होंगी और क्या कर रहीं होंगी,,,अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो आखरी साल है, छुट्टियों में इस बार गाँव जाने के लिए तुम्हारे पापा कह रहे हैं |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“अच्छा” !!! चहकते हुए बसंती बोली, उसके चेहरे पर चमक आ गई गाँव जाने के नाम से |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घरी किये हुए कपड़े उठा कर उसने आलमारी में रख दिया और तरकारी काटती हुई माँ के गले से लग गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“ज्यादा खुश ना हो, अगर न० अच्छे नही आये तो तुम्हें नही ले जाऊँगी गाँव |” माँ ने तरकारी काटते हुए ही जवाब दिया | बसंती उठ कर अपने कमरे की ओर बढ़ गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घुरिया के लिए सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था अचानक उसकी माँ की तबियत बिगड़ी और बिगड़ती ही गई | उसके दूसरे भाई की शादी होने वाली थी घर में सभी भगवान से मना रहे थे कि कोई अनहोनी न हो | माँ की बीमारी के कारण उसकी बड़ी भाभी उसका पूरा ख्याल रखती | घुरिया की माँ उसे सीने से चिपकाये रहती |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">धीरे – धीरे घर में शादी की तैयारी होने लगी, सभी लोग अपने-अपने कामों में व्यस्त हो गये | इसी दौरान घुरिया धीरे-धीरे घर के बाहर खेलने जाने लगी | अब वो पहले जैसी साफ सुथरी नही रहती, बाल भी उलझने लगे | जहाँ घुरिया को रोज नहला कर साफ कपड़े पहनाए जाते थे, वहीं अब वो तीन-चार दिन में कपड़े बदलती | उसकी दोस्ती अब अपने टोला के बच्चों के साथ हो गई थी, उन्ही के साथ वो खेलती रहती जब कोई भाई उसे देखता, डांट कर अन्दर ले आता तब वो माँ से चिपट कर खूब रोती | माँ उसे बहुत ऊँच-नीच समझाती पर ये सब बातें उसे कहाँ समझ आती |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">भाई की शादी में घुरिया किसी अप्सरा से कम नही दिख रही थी, सरसों के फूल जैसे पीले रंग के फ्राक और चूड़ीदार सलवार में वो फूल जैसी खिली थी ऊपर से माथे पर छोटी सी बिंदी, होंठों पर हल्के लाल रंग की लिपस्टिक, लम्बी सी चोटी में पीले रंग की तितली वाली क्लिप, कलाइयों में मैचिंग की चुडीयाँ और पांवो में सुन्दर नग जड़े हुए चप्पल ..कुल मिला कर किसी परी जैसी दिख रही थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घुरिया के दुआर पर बैंड बाजा बज रहा था | एक नचनिया चमचम करती लाल साड़ी, लाली और नकली चोटी लगाए नाच रही थी | एक ट्रेक्टर-ट्राली पर बड़े-बड़े स्पीकर रख कर उसमे फ़िल्मी गीत बजाये जा रहे थे |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बारात में जाने के लिए घुरिया के भाइयों के मित्र भी आये थे उन्ही में एक मागेश जो कि गाँव के ही दबंग राघवेन्द्र राय का बेटा था; अचानक उसकी निगाह घुरिया पर पड़ी | मागेश उसे इस रूप में देख कर चौंक पड़ा, ऐसा नही था कि वो घुरिया को जानता नही था या पहले कभी देखा नही था; पर घुरिया ऐसी होगी उसने कभी सपने में भी नही सोचा था | घुरिया तो आसमान से उतरी हुई अप्सरा जैसी लग रही थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">परछावन के बाद बरात विदा हो गई, टोला के सारे मर्द बारात चले गये औरते भी थोड़ी देर गीत गा कर अपने-अपने घर चली गयीं | दूसरे दिन घुरिया की दूसरी भाभी घर आ गई पर कुछ दिनों बाद ही उसकी माँ स्वर्ग सिधार गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">माँ के गुजरने के बाद दिन गुजरने लगे | घुरिया की दशा दिन पर दिन खराब होने लगी, जो कभी अबोध बच्ची जैसी दिखती थी वही अब विक्षिप्त सी लगने लगी थी | बड़ी भाभी सोचती कि छोटी करे और छोटी भाभी सोचती कि बड़ी करे इसी सोच विचार में घुरिया पिसने लगी..कई-कई दिन बीत जाता न उसके बाल बंधते न उसके कपड़े बदलते | उसके सुन्दर लंबे केश आपस में उलझ कर चिपकने लगे, सिर में जूँ पड़ गये, उसके शरीर और कपड़ों से दुर्गन्ध आने लगी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">जिसे देख कर कभी लोग कहते थे कि भगवान ने सब कुछ दिया घुरिया को बस थोड़ा सा दिमाग ही देना भूल गये, वही लोग अब उसे पगली कह कर मुंह बिजका देते; पर वो अब भी पगली नही थी, मन से वो वही मासूम घुरिया थी | एक माँ के न होने से उसकी ये दशा हो गई थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">कच्चे ओसारे में एक खटिया पड़ी थी | घुरिया बैठे-बैठे सिर खुजा रही थी, कभी-कभी उसके नाखून में कोई मोटा सा जूँ फँस जाता तो उसे वो निकाल कर जमीन पर रख कर अपने अंगूठे के नाखून से मार देती, इतने में टोला के कुछ बच्चे आ गये... “घुरिया दीदी”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“का रे |” जूँ मारते हुए घुरिया बोली</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“चला गोली (कंचे) खेले |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">सुन् कर वो खुश हो गई</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“चला, बाकिर पहिले हमही खेलब |” घुरिया बोली</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“हाँ ठीक बा |” बच्चे राजी हो गये</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">सभी बच्चे घुरिया के साथ कंचे खेलने लगे, अचानक ही घुरिया के मुंह से चीख निकल गई, उसने घूम कर देखा तो उसकी भाभी थी, जो उसके बाल पकड़ कर उसे खींचते हुए घर की ओर ले जा रहीं थी और साथ-साथ बड़बड़ाती भी जा रही थी...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“आवे दा अपने भाई के, ई रोज-रोज के बवाल खतम कर देत हईं, तनिको लाज नईखे, जवान भयिली बाकिर टोला के लइकन के साथ गोली खेलल नाही छूटल |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घुरिया कराहते हुए उसके साथ खींचती जा रही थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">फाइनल इयर के एक्जाम खत्म हो चुके थे बसंती माँ के साथ घर जाने की तैयारी करने लगी | गाँव जाने की खुशी सबसे ज्यादा इसी बात से थी कि वो घुरिया और फुलवा से मिल सकेगी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">उधर फुलवा भी होस्टल से घर आ गई, वो तो हर साल छुट्टियों में घर आती थी और बसंती का इंतजार करती थी कि शायद इस साल बसंती गाँव आ जाये; पर बसंती गाँव छोड़ने के बाद गुलरी का फूल हो गई थी नही दिखी तो नहीं दिखी | इस साल भी फुलवा को उम्मीद नही थी कि बसंती गाँव आएगी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">ट्रेन को स्टेशन पर दो मिनट ही रुकना था, बसंती और उसकी माँ पहले से ही सारा सामान दरवाजे के पास रख कर खड़ी थी कि जैसे ही ट्रेन रुकेगी वो लोग तुरंत उतर जायेंगीं, उन्ही की तरह और भी लोग दरवाजे के पास भीड़ लगा कर खड़े थे | ट्रेन जैसे ही रुकी, किसी तरह धकिया- धुकिया के वो दोनों सामान सहित प्लेटफार्म पर उतर गईं | भीड़ छंटने के बाद उन दोनों ने इधर-उधर देखा तो किसन बाबा उन्हें ढूंडते हुए दिख गये, बसंती सामान उठा कर माँ के साथ उनकी तरफ चल दी तब तक उनकी नजर भी इन दोनों पर पड़ गई, उन्होंने लपक कर बड़ीकी भौजी के पाँव छूए और बसंती के हाथ से दोनों बैग ले लिया | अब किसन बाबा आगे और वो दोनों उनके पीछे-पीछे स्टेशन से बाहर आ कर अपनी जीप में बैठ गयीं |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">जीप कच्चे रास्ते पर धूल उड़ाती दौड़ती जा रही थी | कच्ची सड़क के दोनों तरफ खेत थे, किसी खेत में पकी हुई गेंहूँ की बालियाँ झूम रहीं थीं, किसी खेत में गेंहूँ के गट्ठर बना कर रखे थे तो किसी खेत में कम्बाइन से कटाई हो रही थी | ये सब देख कर बसंती सोच रही थी कि तब में और अब में कितना अंतर आ गया है गाँव में ! तब जोताई, बोआई, कटाई और ओसाई सब काम खेतिहर मजदूर किया करते थे और मजदूरी के रूप में अनाज लिया करते थे, जिससे उनकी घर गृहस्थी का काम चलता था; पर अब तो हर काम मशीन से हो रहा था जो सिर्फ पैसे वालों के पास था, मतलब भूमिहारों के पास, तो उन मजदूरों का घर कैसे चलता होगा ? बसंती अभी सोच ही रही थी कि उसकी नजर एक खेत से उठते हुए धुएं पर पड़ी उसने उत्सुकता वश चाचा से पूछा तो पता चला कि गेंहूँ की बालियों की कटाई के बाद जो बाकी का हिस्सा होता है वो वहीं खेत में ही जला दिया जाता है ये उसी का धुँआ था |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती आश्चर्य से बोली–“तो फिर भूसा कहाँ से आता है ? गाय-गोरू क्या खाते हैं ?”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“अब सबके घर गाय-गोरू नाहीं हैं और जिसके घर हैं वो अपने मतलब भर का भूसा बना कर बाकी का सब ऐसे ही जला देते हैं |” किसन बाबा ने जवाब दिया |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">जीप अब गाँव के करीब पहुँच रही थी, बसंती को वो बगीचा दिखने लगा जिसमे कभी वो अपनी दोनों सखियों के साथ खेला करती थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">पीपल के नीचे बरम बाबा का थान, नीम के नीचे कालीमाई का थान और पोखरा के किनारे-किनारे छठ माई का थान, सभी को प्रनाम करते हुए बसंती बगीचे में प्रवेश कर गई पर अब वो बगीचा भी पहले जैसा घना नही रह गया था, बहुत से पेड़ काट दिए गये थे | जिस बगीचे में सूर्य देव की किरणें पत्तों से छन-छन कर जमीन तक पहुंचती थीं, वो अब बेधड़क अपना साम्राज्य स्थापित किये हुए थीं | कुछ औरते उपले पाथते हुए दिखाई दीं, उनके पास से जैसे ही जीप निकली वो अपना काम रोक कर बसंती और उसकी माँ को पहचानने की कोशिश करने लगीं | दुआर पर पहुँच कर किसन बाबा ने जीप रोक दी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“भौजी आप बसंती के साथ भीतर जाईं हम सामान ले के अब्बे आवत हयीं |” बसंती की माँ से बोले किसन बाबा | दोनों भीतर चली गयीं और सबसे मिलने जुलने लगीं |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">धीरे-धीरे दिन चढ़ रहा था, वो बार-बार दुआर पर झाँक कर अन्दर आ जाती थी | अब वो पहले की तरह दुआर पर घंटों नही बैठ सकती थी | गाँव में अब भी बहू बेटियाँ दुआर पर नही बैठती थीं, उसे फुलवा और घुरिया से मिलने की व्याकुलता थी | आखिर उससे नही रहा गया तो उसने अपनी बड़की अम्मा से पूछा जो बैठ कर चावल पछोर रही थीं |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“अम्मा...ऊ फुलवा और घुरिया कहाँ हैं अब ?”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“अरे फुलवा त आईल बा एहू साल, ऊ हर साल आवेले, तोहके पूछेले, आ घुरिया त घूमत होई, रुका...अबे केहू से फुलवा के घरे खबर भेजवात हयीं |” कह कर बड़की अम्मा चावल थाली मे ले कर चुनने लगीं | धीरे-धीरे शाम होने को थी बसंती बेचैन थी, वो फिर से दुआर पर आई तो देखा कि किसन बाबा चले आ रहे थे |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">उसे देख कर बोले..“पंचानन मिलल रहलें त हम बतवली कि जा के फुलवा से बता दिहा कि बसंती आईल बा |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">ये सुन कर बसंती का चेहरा गुलाब की तरह खिल गया | अभी वो अन्दर जाने को मुड़ी ही थी कि एक आवाज सुन के वो चौंक गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“बसंतीईईईई”.............</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">मुड़कर देखा तो उसने एक सुंदर सी लड़की गुलाबी सूट में मुस्कुराती हुई उसकी तरफ चली आ रही थी | बसंती उसे देखते हुए मुस्कुरा दी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“फुलवा !!” उसे देख आश्चर्यचकित हो बोली बसंती और लिपट गई दोनों ....</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">जैसे दो लताएँ आपस में उलझ कर लिपट जाती हैं उसी तरह फुलवा बसंती एक दूसरे की बाहों में उलझ गई | प्रेम की अधिकता ने उनकी आँखे भिगो दी | आज बरसों बाद दो धारा एक साथ मिली थी तीसरी धारा कहीं अदृश्य थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती फुलवा को माँ के कमरे में ले गई | माँ और बड़की अम्मा भी उन दोनों को खुश देख कर बहुत खुश थीं | शिकवा, शिकायत, उन दोनों ने इन सालो में क्या-क्या किया, वो सब बतियाते-बतियाते कब अंधेरा हो गया उन्हें पता ही नही चला, बड़की अम्मा लालटेन जला कर ले आयीं | गाँव में अब भी बिजली व्यवस्था ठीक नही थी; कभी दिन तो कभी रात में आ जाती थी बिजली | बड़ी अम्मा के जाते ही फुलवा बोली-</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“अच्छा बसंती अब चलती हूँ…कल फिर से मिलते हैं |“ उसे जाते हुए देख कर बड़की अम्मा बोली</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“नाहीं बाबू अकेले मति जयिहा, बड़ा ज़माना खराब भईल बा |“</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">वो फुलवा और बसंती के साथ बाहर आयीं तो देखा कि किसन बाबा कुछ लोगों से बतिया रहे थे, उन्होंने किसन बाबा को बुला कर फुलवा को घर तक छोड़ने को कहा | वो चली गई पर बसंती को अब घुरिया से मिलने की जल्दी थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">दिवस संध्या से मिल कर कब का जा चुके थे | सभी पंक्षी अपने-अपने बसेरो में वापस आ गये थे, कीट पतंगे भी पत्तों की ओट में छुप गये, संध्या भी निशा की बाहों में समा गई थी | कभी-कभी कोई बगीचे से गुजरता तो सूखे पत्ते खड़क जाते फिर बगीचे में सन्नाटा पसर जाता, झींगुरो की आवाज आ रही थी, ऐसे में एक परछाई दूसरे का हाथ थामे बगीचे के भीतर समाती चली जा रही थी उस ओर जिस ओर बगीचा ज्यादा घना था | दोनों परछाइयाँ धीरे-धीरे घने अँधेरे में जा कर एक पेड़ के नीचे बैठ गयीं | गिरे हुए सूखे पत्ते खड़के फिर सन्नाटा हो गया |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“ई कहाँ ले आये हमके, कुच्छु दिखा नही रहा |” अँधेरे में उसका हाथ थामे हुए बोली वो | ये लड़की की आवाज थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“अरे !! देखु न तोरे लिए का लाये हम |“ ये एक मर्दानी आवाज थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“अच्छा !! त ले आवा दा |” बोली वो</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“ले खो |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">उसे लगा कि उसके होठों के पास कुछ है, उसने मुंह खोल कर खा लिया |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“अरे !! ई त बहुते निम्मन बा !” खुश होती हुई बोली वो |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“हाँ, त धीरे बोलु ना, केहू सुन ली त ऊहो मांगे लागी त देबे के पड़ी, ले ई चाकलेट अब अपनी हाथे से खो |” आदेशात्मक आवाज थी</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">अंघेरे में ही एक हाथ ने दूसरे हाथ में चाकलेट थमा दिया और वो बड़ी खुशी से खाने में लग गई, हाथ को मुंह तक जाने के लिए किसी रौशनी की जरुरत नहीं होती |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">अचानक ही कोई जानवर भागता हुआ उन दोनों के पास से निकल गया, जल्दी से एक मोटा हाथ लड़की के मुंह पर ढक्कन की तरह लग गया नही तो उसकी चीख बगीचे में गूंज जाती; शायद कोई कुत्ता या सियार था | वो फिर खाने में लग गई और वही हाथ उसके मुंह से हट कर उसके गर्दन, कंधे से होता हुआ उसकी पीठ पर कसता चला गया...वो कसमसाई ..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“छोड़ा खाए द हमके |” बोली वो</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">पर उसकी बात का कोई जवाब नही मिला | उस परछाई की सांसों की आवाज उसकी कानों तक आ रही थी, दो हाथ उसके पूरे जिस्म पर रेंग रहे थे, वो कसमसा तो रही थी; पर अपना चाकलेट छोड़ने को तैयार नही थी, वो खाती रही | इतने में उन दोनों हाथों ने उसे कंधे से पकड़ कड़ कर सूखे पत्तों पर गिरा दिया, वो कुछ बोलने को हुई तो धीरे से घुड़क कर बोला वो ..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“चुप रहु नाही त काल्हि से कुच्छु नाही देब ला के |“</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">उसका हाथ फिर से उसकी मुंह पर ढक्कन की तरह लग गया..सूखे पत्ते खड़क उठे कुछ टूट कर दो भागो में बंट गये तो कुछ पिस कर मिट्टी में मिल गये, पीड़ा, सिसकियाँ, कराह, कुछ घुटी हुई आवाजें, सब अंघेरे ने निगल लिया | आँखों के कोरों से निकला हुआ आँसू मिट्टी ने सोख लिया, चाकलेट हाथ से छूट कर गिर गया | गुलशन के एक कुम्हलाये हुए फूल को भी आवारा भँवरे ने नही छोड़ा, उसके डंक से घायल फूल की हर पंखुड़ी बिखर गई थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">पेड़ के नीचे हो रही हलचल से ऊपर बैठे पंक्षी जाग चुके थे और सहमे हुए उस बहेलिये को दरिंदगी से अपना शिकार करते देख रहे थे | थोड़ी देर बाद वो खड़ा हो गया; पर लड़की वहीं बेसुध पड़ी रही, जब वो खुद से नही उठी तब उसने झुक कर उसे सहारा दे कर उठाया और उसे ठीक किया फिर उसका हाथ थाम कर बगीचे के बाहर ला कर धमकी भरे लहजे में बोला..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">”तनिको केहू के आगे मुंह से निकल गईल ई सब त गटइया दबा देब जान लीहे |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">लड़की ने सहम कर ‘ना’ में सिर हिलाया और थके कदमों से लहराती हुई धीरे-धीरे गाँव में प्रवेश कर गई, दूसरी परछाई उसे वहीं छोड़ दूसरी ओर निकल गई ...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">सूरज सिर पर चमक रहा था, ऐसा लग रहा था कि अपने अन्दर के सारे अंगारे को आज ही धरती पर गिरा देगा | बगीचा अब भी कराह रहा था, पेड़ पौधे सिसक रहे थे, दिन की गर्मी से बेकल कई पंक्षी जोड़े पेड़ पर सहमे हुए बैठे थे, वो साक्षी थे उस चिड़िया की बर्बादी, उसकी दबी सिसकियों, उसकी बेबसी और बहेलिया के बर्बरता की |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">आज भी पूरा दिन निकलने को था, घुरिया का कहीं पता नही था बसंती उससे मिलने को बेचैन थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“जा चलि जा आज कहीं घूमि आवा |” बड़की अम्मा भूजा फटकते हुए बोलीं |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">गोंसारी से कई तरह का भूजा भुजा कर आया था, बड़की अम्मा उसी को फटक कर उसमे रह गये बालू के कण अलग कर रहीं थीं ताकि खाने में दाँतों के नीचे एक भी बालू के कण ना आ जायें |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“कहाँ जाऊं, ? मन नही है |” बसंती उदास हो कर बोली</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“का बात ह बबुनिया, काहे मन गिरल बा आजु ?” बड़की अम्मा उसे उदास देख कर बोलीं |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती जा कर बड़की अम्मा के पास खड़ी खटिया बिछा कर बैठ गई और बोली - “एक बात बताइये बड़की अम्मा ? घुरिया क्यों नही दिख रही है ? कैसी है वो, क्या उसकी शादी हो गई या अब वो इधर आती-जाती नही ?”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घुरिया का नाम सुनते ही बड़की अम्मा का हाथ रुक गया, हवा में उछला हुआ भूजा कुछ सूप में तो कुछ आस-पास गिर कर फ़ैल गया बड़की अम्मा के चेहरे पर भी उदासी फ़ैल गई वो बोलीं ..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">”बियाह कहाँ उनकी भाग में लिखल बा, के करी उनके साथे बियाह ? न कहीं ठौर न ठिकाना ! गाँव भर घूमेली..जहाँ जऊन पा जाली, ऊहे खा के पेट भर ले ली |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती को वो सारी बात बताती चली गयीं | दिल में दर्द और आँखों में आँसू लिए बसंती भौचक्की सी सब सुनती गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">छुट्टियाँ खत्म होने को थीं फुलवा का ब्याह तय हो गया था, बसंती को वापस कलकत्ते जाना था, पर वो अभी तक घुरिया से नही मिल पायी थी, कई बार किसन बाबा से कहा उसने पर हर बार किसन बाबा ने उसके घर जाने से सख्ती से मना कर दिया |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बोले “किसी दिन खुद ही वो घूमती-घामती आ जायेगी तभी मिल लेना |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती बहुत उदास थी उसका मन घुरिया को ले कर बहुत परेशान था | कल उसे वापस जाना था, सारी तैयारी हो गयी थी, वो कुछ भी नही कर पा रही थी उसके लिए | इससे अच्छा तो हम बचपन में ही थे, कोई भेद भाव नही था, वो तब भी बुद्धि की वैसी ही थी जैसी आज है; तो आज उसको उसके साथ उठने बैठने से क्यों रोका जा रहा है ? उसका दिल बैठा जा रहा था जैसे कि कुछ छूटा जा रहा है उससे | काश जाने से पहले एक बार देख पाती घुरिया को !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">शाम को ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही थी बसंती उदास ओसारे में बैठी थी इतने में फुलवा भी आ गई उसे पता था कि कल बसंती को जाना है | दोनों बैठी घुरिया के बारे में ही बतिया रहीं थी कि अचानक ही किसन बाबा उन दोनों के पास आ कर धीरे से बोले--</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“हऊ देखा लोगिन |”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">दोनों ने चौंक कर उधर देखा, एक लम्बी सी लड़की मैले कपड़े पहने लहराते हुए अपनी ही धुन में चली आ रही थी | फुलवा तो अक्सर ही उसे देख लेती थी क्यों कि वो गाँव आती रहती थी; पर उसे देख कर बसंती का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा जैसे-जैसे वो नजदीक आती जा रही थी, तस्वीर साफ होती जा रही थी, दुआर पर आते-आते उसे पहचान चुकी थी बसंती | फुलवा की तरफ़ देखते हुए बसंती के मुंह से निकला ---</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“घुरियाआआआ !!!!”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">फुलवा ने हाँ में सिर हिला दिया, बसंती का मुंह खुला का खुला रह गया |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“ए घुरिया” किसन बाबा ने आवाज दिया...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">सुन कर वो ठिठकी, उसने देखा किसन बाबा की तरफ़, उन्होंने इशारे से उसे आने को कहा | वो आ कर ओसारे की सीढियों पर बैठ गई, उसकी हालत देख कर बसंती की आँखे भीग गयीं | उसे वही बचपन वाली घुरिया याद आ रही थी, साफ़ सुथरी, लम्बी चोटी मोड़ कर दोनों कानों के ऊपर रिबन से फूल बने होते थे, सांवली सलोनी घुरिया अब कितनी मैली कुचैली दिख रही थी, बसंती आ कर घुरिया के पास ओसारे की सीढियों पर बैठ गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“चीन्हलू के ह ?” किसन बाबा बसंती की तरफ़ इशारा कर के घुरिया से बोले |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घुरिया ध्यान से बसंती को देख रही थी | चाहते हुए भी बसंती अपने आँसू नही रोक पायी | अचानक ही घुरिया अपनी मोटी आवाज में चीख पड़ी--</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“बसन्तीईईईईईईईईईई !!!!!!”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">अपनी बचपन की सखी को देख कर घुरिया का बाल मन स्नेह के लिए तड़प उठा, वो कुछ भी सोचे बिना बगल में बैठी बसंती का दोनों हाथ पकड़ कर अपने माथे तक ले गई और बिलख-बिलख कर रो पड़ी ..अब बसंती से भी नही रहा गया, अपना हाथ छुड़ा कर उसने उसे अपनी बाहों में भर लिया और दोनों सखियां गले मिल कर रो पड़ीं फुलवा की आँखों में भी आँसू आ गये, अन्दर से बड़की अम्मा, बसंती की माँ सभी बाहर आ गयीं, ये दृश्य देख कर सभी की आँखों में आँसू थे | फुलवा ने ही दोनों को अलग किया फिर दोनों ने सहारा देकर घुरिया को ओसारे में ला कर कुर्सी पर बैठा दिया |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">तीनों बड़ी देर तक बतियाती रहीं, सभी लोग अपने-अपने काम में लग गये | घुरिया कभी तो अच्छे से बात करती पर कभी-कभी उसकी बात उन दोनों को समझ नही आती, बसंती उसकी दशा देख कर आहत थी, वो कभी बचपन की बात याद कर चहक उठती तो कभी न जाने क्या सोच कर उदास हो जाती |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“बहुत दुखाता...मुड़ी में ढील हो गईल बा...ऊ भउजी नू...हमार झोंटा नोचेली...खाहू के नाही देली निम्मन....|” और भी न जाने क्या-क्या घुरिया खुद से ही बोले जा रही थी हाथ उसका सिर में ही था, जूँ की वजह से खुजला रही थी लगातार | इतना तो तय था कि उसकी दिमागी हालत धीरे-धीरे खराब होती जा रही थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">खाने का समय हो गया था | आज बसंती के कहने पर तीनों को केले के पत्ते पर एक साथ खाना परोसा गया क्यों कि वो दोनों थाली में और घुरिया अकेले केले के पत्ते पर खाना खाती ये बसंती को मंजूर नही था, हलाकि माँ और बड़की अम्मा दोनों ने मना किया पर बसंती नही मानी | घुरिया को पूछ-पूछ कर ठीक से खिलाया बसंती ने | ऐसा लग रहा था जैसे उसने जन्मों अच्छा खाना नही खाया था, खाने के बाद फुलवा को उसके घर छोड़वा दिया बड़की अम्मा ने | घुरिया फिर से जा कर ओसारे की सीढ़ी पर बैठ गई बसंती उसके पास ही बैठी थी, वो जो भी पूछती घुरिया उसका ठीक से जवाब नही दे पाती; वो अपने ही धुन में कुछ का कुछ कहती जा रही थी | बड़की अम्मा और माँ बार-बार उसे घुरिया से दूर बैठने को कह रहीं थीं पर बसंती का दिल उससे दूर रहने को नहीं कर रहा था, उसे लग रहा था कि घुरिया को वो कलकत्ता ले जाये और उसका दवा इलाज करा कर अपने साथ रखे; पर वो विवश थी जानती थी कि माँ कभी नही मानेगी | बहुत रात हो गई, किसन बाबा ने सब को भीतर जाने को कहाँ, सब चले गये पर बसंती वहीं बैठी रही तब किसन बाबा ने बसंती को डांट कर कहा ..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“चला तूहूँ भीतर जा...इनके रोज के काम ह, कहीं ढ़िमिला जयिहें, इनकी खातिर रतिया भर बाहरे बईठबू का ?”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती घुरिया को वहीं छोड़ कर भीतर चली गई | सुबह उठ कर बसंती जल्दी से बाहर आई, देखा तो सीढियां खाली थीं, कोई भी नही था घुरिया कहीं डगर गई थी, मायूस हो कर बसंती कलकत्ते जाने की तैयारी में लग गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">धीरे-धीरे समय गुजरने लगा बसंती को गाँव से आये हुए चार महीने हो गये इस बार वो फुलवा से उसका पता ले कर आई थी | उसकी चिठ्ठी गये हुए बहुत दिन बीत गये थे पर उधर से कोई जवाब नही आया | बसंती की शादी की बात-चीत माँ पापा में अब घर में होने लगी थी, कोई लड़का था जो इंजिनियर था और माँ बाप का इकलौता भी, वो घर में सभी को पसन्द था | गाँव में भी चिट्ठी भेज कर बड़की अम्मा और किसन बाबा से पूछ लिया गया था, सभी की रजामंदी हो गई थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">फुलवा का जवाब आ गया, उसकी शादी हो गई थी, वहीं गोरखपुर में ही | घुरिया के बारे में उसने लिखा था कि “अब वो बिमार सी रहने लगी है जैसे उसके पेट में कोई बिमारी लग गई हो, उसका पेट धीरे-धीरे फूलता जा रहा है; पर उसके भाई भौजाइयों को कोई फर्क नही है | वो सब उसे पीछा छुडाने के लिए किसी दूर की बस में बैठा कर छोड़ दिए थे कि कहीं मर-बिला जायेगी पर कोई भला मानुस उसे घर छोड़ गया था | अब फिर से पूरे गाँव में भटकती है रातोदिन | ना जाने कैसे पत्थर के इंसान हैं वो सब ! शरीर कमजोर होने से लाठी के सहारे चलती है अब |” चिठ्ठी पढ़ कर बसंती की आँखों में आँसू आ गये |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">दो महीने बाद ही वहीं कलकत्ते से ही बसंती की शादी हो गई, गाँव से सभी लोग आ गये थे | बसंती विदा हो कर अपने ससुराल चली गई और सब भूल कर घर गृहस्ती में लग गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">राघवेन्द्र राय गाँव के रईस थे, वैसे तो उनकी उम्र पचास से साठ के बीच थी पर जब वो अपनी बड़ी-बड़ी मूछों पर ताव दे कर सफारी सूट, आँखों पर काला चश्मा, गले में मोटी सी सोने की चैन, हाथ की उंगुलियों में अंगूठियां और कलाई पर सुनहरी घड़ी पहन कर निकलते तो देखने वाले उन्हें देखते ही रह जाते | उनके घर के भीतर के लिए नौकरानियाँ थीं और बाहर के लिए नौकर, जो गाय गोरु से ले कर बाहर की साफ़-सफाई का काम करते थे | राघवेद्र राय के दरवाजे पर एक बड़ा सा नीम का पेड़ था, उसी के नीचे कई लोग कुर्सी डाल कर बैठे थे | वैसे तो हमेशा ही उनके दरवाजे पर बैठकी होती थी; पर आज कल वो प्रधानी के लिए खड़े थे इसलिए और भी हुजूम रहता था उनके आस-पास |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">एक तरफ़ बड़ी सी घारी (जानवरों के रहने का स्थान ) थी | उसी के पास घुरिया बैठी अपने जूएँ निकाल-निकाल कर मार रही थी | रात में वो वहीं घारी में सो जाती और दिन भर बाहर बैठी रहती शायद शरीर की कमजोरी की वजह से वो अब ज्यादा इधर उधर घूम नही पाती थी | घर के नौकर ही उसे भी कुछ खाने को दे दिया करते थे और वो वहीं पड़ी रहती |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">कई रोज से राधवेन्द्र राय उसे घारी के पास बैठ कर जूँ मारते देख रहे थे, उस दिन उन्होंने एक नौकर को बुला कर हजाम को बुलवाया और घुरिया के सिर पर उस्तरा चलवा दिया फिर घर से दो नौकरानियों को बुला कर कहा कि वो घुरिया को नहला कर कोई साफ सुथरा कपड़ा पहना दें | मुंह बिचकाती हुई दोनों ने उसे सहारा दे कर खड़ा किया और भीतर हाते में ले जा कर हैण्डपम्प के नीचे बैठा दिया |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">थोड़ी देर बाद ही वही दोनों उसे फिर से ला कर वहीं बैठा गयीं | उन लोगों ने उसे किसी का पुराना सूट पहना दिया था | ये सब देख कर वहाँ बैठे सभी लोग राघवेन्द्र राय की सहृदयता की प्रशंसा किये बिना नही रह सके | कितना पुण्य का काम किया था उन्होंने ! थोड़ी सी छाया थी जहाँ, वहीं जा कर सो गई घुरिया, उसे भी बहुत सुकून मिला था अपने जूँओं से छुटकारा पा कर | राघवेन्द्र राय उसे बड़े गौर से निहार रहे थे |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">आज फिर अमावस की रात थी सभी लोग जा चुके थे | घर के लोग भी अब घरों में बंद होने लगे, दुआर पर जो लालटेन टंगा था वो भी ठण्डा (बुझा) कर दिया गया, थोड़ी देर में घुरिया की तरफ़ एक साया चला आ रहा था, उसने झुक कर उसके कान में कुछ कहा और चला गया घुरिया लाठी के सहारे उठी और घारी के भीतर चली गई | आज कल बारिश नही हो रही थी तो घर के सभी गाय-गोरू रात में बाहर नाँद पर ही बधें रहते थे |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">कुछ देर बाद ही घारी का दरवाजा अन्दर से बंद हो गया | फिर से रात सिसक उठी, धरती ने फिर से आँसू पी लिए, अंधेरो ने सब कुछ देख कर भी अपनी आँखे बंद कर ली, कुछ दबी घुटी कराह घारी की ईंट की दराजो में समा गई, थोड़ी देर बाद ही घारी का दरवाजा खुला और वो साया बाहर निकल कर एक तफर चला गया, घुरिया वहीं बेसुध पड़ी रही |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">कुछ दिनों के बाद ही जाड़े का आगमन होने वाला था | घुरिया का शरीर धीरे-धीरे सूखता जा रहा था; पर पेट ऊपर की ओर आ रहा था | कोई पथरी तो कोई हवा बयार बता रहा था, जितने मुंह उतनी बातें |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">कुछ दिनों बाद राघवेन्द्र राय ने गाँव के बाहर उसके लिए एक फूस की मड़इया छवा दी उसी में एक गगरी में पानी और एक चट्टाई बिछा दी गई, अब यही घुरिया का नया बसेरा था | उसे दोनों समय का खाना-पानी गाँव से कोई ना कोई दे जाता था | अब अक्सर रात में सियार के रोने की आवाज पूरे गाँव को सुनाई पड़ जाती थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">समय बीतने के साथ घुरिया जर्जर हो कर हड्डियों का ढांचा बन गयी थी; पर उसका पेट बाहर को आ गया था जो अब पूरे गाँव में चर्चा का विषय बन गया था | हर घर में उसी की चर्चा थी, सभी की हमदर्दी थी उसके साथ; पर ये सब किसने किया, कोई नही जानता था |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">जब भी कोई उसे खाना देने जाता वो उदास बैठी रहती थी, उसका हँसना बोलना सब बंद हो गया था | अब तो उसके आस-पास से ‘बास’ भी आने लगी थी, उसके पास जाने से हर कोई कतराने लगा था, उसके घर वाले और समाज के ठेकेदारों ने उसे उसके भाग्य पर छोड़ दिया था |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">दोपहर का समय था, बसंती सारा काम खत्म कर के अपने कमरे में आराम करने जा रही थी तब तक दरवाजे पर खट-खट की आवाज हुई | बसंती ने जा कर दरवाजा खोला तो डाकिये ने उसके हाथ में एक चिट्ठी पकड़ाई और चला गया | चिट्ठी पिपरौंसी से आई थी | बसंती का चेहरा खिल उठा, काफी दिनों से गाँव का कोई समाचार नही मिला था उसे | बड़ी खुशी–खुशी उसने अंतर्देशीय पत्र खोला और पढ़ने लगी | पढ़ते पढ़ते उसकी आँखों में आसूं आ गये, उसने जल्दी से जा कर अपनी सास को पूरी बात बताई | बड़की अम्मा की तबियत बहुत खराब थी, उसे देखने के लिए तुरंत बुलाया गया था |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">पति को छुट्टी न मिल पाने के कारण बसंती अपने मम्मी-पापा के साथ गाँव आ गई थी; पर उनके आने से पहले ही बड़की अम्मा स्वर्ग सिधार गई थीं | उनका अंतिम दर्शन भी नही कर सकी वो | बड़की अम्मा की तेरवीं तक घर रिश्तेदारों से भरा रहा उसे घुरिया की याद तो आई पर उसके बारे में किसी से पूछने का मौका नही मिला | तेरवीं में उसके पति भी आ गये थे, उन्ही के साथ उसे दो दिन बाद ही वापस लौटना था | धीरे-धीरे सभी रिश्तेदार जा चुके थे, बसंती ने भी अपना सामान समेटना शुरू कर दिया था |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">उस दिन जैसे ही वो ओसारे में आई तो देखा कि क्या स्त्री क्या पुरुष हर कोई बगीचे की तरफ भागा जा रहा है !!</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“इतनी सर्दी में ये लोग बगीचे की तरफ क्यों जा रहे हैं ?” भीतर आ कर उसने माँ से कहा |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">ये सुन कर माँ भी बाहर आ कर देखने लगीं, उसके पति भी उसके पास खड़े हो कर माजरा समझने की कोशिश कर रहे थे | बसंती से रहा न गया, उसने जाती हुई एक महिला को रोक कर पूछा--</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“का हुआ है ? काहें सब बगीचे की तरफ़ भागे जा रहे हैं ?”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“ऊ घुरिया के कुच्छु हो गईल बा बुझाता !! ईहे सुन के हमहूँ देखे जात हयीं |” महिला रुके बिना ही ये कहते हुए भागती चली गई |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">धुरिया का नाम सुन कर बसंती चौंक पड़ी | वो सोचने लगी “क्या हुआ घुरिया को ?” उसका दिल धक-धक करने लगा उसने पति की तरफ़ देखा और बोली--</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“चलिए हम भी देखते हैं कि क्या हुआ उसे |” वो दोनों भी धड़कते दिल के साथ बगीचे की तरफ़ बढ़ गये, उसने अपने पति को घुरिया के बारे में सब कुछ बताया था |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घुरिया की मड़इया के आस-पास बहुत भीड़ लगी थी | किसी तरह से बसंती भीड़ में घुस कर रास्ता बनाती हुई मड़इया तक पहुँच गई; फिर उसने जो दृश्य देखा !! उसकी चीख निकल गई, वो अपना मुंह दबा कर फूट-फूट कर रो पड़ी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">घुरिया अर्धनग्नावस्था में पड़ी थी, उसके दोनों पैरों के बीच में गर्भनाल में लिपटी हुई एक बच्ची खून और गंदगी से सनी हुई अपना हाथ पैर चला रही थी, शायद वो उस बन्धन और गंदगी से बाहर आना चाहती थी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">गाँव भर के लोग तमाशबीन खड़े थे | वो बच्ची कब से गंदगी में अपने हाथ पैर मार रही थी | बसंती के पति भी उस तक पहुँच गये थे, ये दृश्य देख कर वो भी सिहर गये; पर तुरंत ही संभल कर उन्होंने कुछ लोगों से बात की कि जो भी पास में कोई डा० मिले उसे तुरंत ही बुलाया जाय | अब कुछ लोग हरकत में आये और जल्दी से दूसरे गाँव डा० साहब को बुलाने के लिए एक आदमी को भेजा गया क्यों की पिपरौंसी में सरकारी प्राथमिक चिकित्सालय तो था; पर उसमे बारहों महीने कमर तक घास उगी रहती थी, डा० साहब भी नदारद रहते थे | सभी देख रहे थे पर आगे बढ़ने की हिम्मत कोई भी नही जुटा पा रहा था | गाँव की दाई भी आ गई थी, डा० साहब ने आ कर सबसे पहले बच्ची को गर्भनाल काट कर अलग किया, अब तक गाँव की कुछ औरतों को अपना फर्ज याद आ गया था, दौड़-दौड़ कर सबने सब सामान एकत्र कर लिया था | दाई ने बच्ची को गरम पानी से नहला दिया, अब बच्ची वो किसे दे ? उसने इधर-उधर देखा बसंती खड़ी-खड़ी सिसक रही थी, उसका अंतर्मन क्रोध से धधक रहा था, इतना ओछा काम किसने किया होगा ? उसने अपनी हवस पूरी करने के लिए घुरिया को भी नही बक्शा, जो कि दिमागी रूप से कमजोर थी, शरीर से मैली-कुचैली, बास आती देह से भी अपनी हवस बुझा लिया, इन हवस के भेड़ियों को मात्र एक मादा शरीर चाहिए नोचने के लिए भले ही वो एक लाश ही क्यूँ ना हो, घुरिया एक चलती-फिरती लाश ही तो थी !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">उसे अब भी भरोसा नही हो रहा था, जो कुछ भी वो देख रही थी उस पर | उसने दाई की मंशा भाप ली जल्दी से आगे बढ़ कर उसने बच्ची को अपने आँचल में ले लिया और अपनी शाल में ढक लिया | डा० ने घुरिया को मृत घोषित कर दिया | बगीचा में उसी जगह जहाँ घुरिया कई बार मर चुकी थी, उसकी चिता जला दी गई, उसकी मड़इया गिरा कर आग लगा दी गई, उसके अन्दर की सारी गंदगी जल कर स्वाहा हो गई, घुरिया का नामोनिशान मिट गया !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">*पच्चिस साल बाद ..........</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती ने अपने पति के सहयोग से अपनी सखी घुरिया की याद में ‘घूरी देवी’ के नाम से एक संस्था खोली थी जिसके माध्यम से दूर दराज के गाँवों की निरक्षर महिलाओं को साक्षर किया जाता था,उन्हें डलिया, खाँची, हाथ पंखा,चट्टायी आदि बनाना सिखा कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाता था और ऐसी बच्चियाँ जो दिमागी या शारीरिक रूप से विकलांग थी, जिनका कोई देखभाल करने वाला नही था, उन्हें ढूंड कर संस्था गोद लेती थी और उनका पालन-पोषण और उनकी शिक्षा का पूरा ख्याल रखा जाता था ताकि फिर से कोई परछाई रात के अंधेरे में उन्हें रौंद ना सके न ही फिर कोई घुरिया एड़ियाँ रगड़ कर इस दुनिया से विदा हो और न ही किसी करिश्मा का जन्म हो |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती ने संस्था के लिए दिन रात एक कर दिया | शुरुआत छोटे स्तर पर हुयी थी पर संस्था के कार्यों की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी जिससे संस्था को सहयोग भी मिलने लगा था | आज जिला मजिस्ट्रेट द्वारा ‘घूरी देवी संस्था’ को सम्मानित किया जाना था | बड़ा सा पंडाल लगा था, बड़े-बड़े गणमान्य बैठे थे | मंच से जब संस्था की अध्यक्षा का नाम पुकारा गया; तब बसंती के बगल में बैठी एक सुन्दर सी युवती, जिसकी उम्र कुछ चौबीस या पच्चीस की होगी, लाल रंग की बाडर वाली सफ़ेद साड़ी और बंद गले का लाल ब्लाउज, गले में सोने की पतली सी चैन, एक हाथ में घड़ी और दूसरे हाथ से अपना पल्लू संभालते स्टेज की तरफ़ बढ़ गई | पूरा पंडाल तालियों से गड़गड़ा उठा |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">शाम हो चुकी थी घर के बाहर गाड़ी रुकते ही करिश्मा की सहेलियों ने उसे घेर लिया और बधाइयों का सिलसिला शुरू हो गया | करिश्मा को छोड़ कर बसंती और उसके पति अन्दर आ गये | कमरे में वही बचपन की फोटो (जिसमे बसंती, घुरिया और फुलवा थी), टंगी हुयी थी | बसंती घुरिया को देख कर भावुक हो जाती है और अपने पति का हाथ पकड़ कर कहती है --</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“दस वर्ष पहले जो संस्था खोली थी, उम्मीद नही थी कि इस मुकाम पर पहुँचेगी, आप का सहयोग ना होता तो मैं कुछ भी ना कर पाती |” उसकी आँखों में आँसू थे |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“नहीं .. ये तुम्हारी मेहनत,लगन और अपनी सखी के प्रति तुम्हारे प्रेम का नतीजा है जो संस्था यहाँ तक पहुँची है, घुरिया का नाम कभी मिटने नही दिया तुमने, अब तुमने इसकी जिम्मेदारी करिश्मा को सौंप कर बहुत अच्छा किया |” पति ने बहुत ही प्रेम से उसके आँसू पोंछते हुए कहा और भीतर चले गये |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">बसंती सिसक पड़ी “घुरिया को मैं कैसे मरने देती, संस्था से उसका नाम और करिश्मा के रूप में वो खुद जीवित है, हर पल मेरे करीब है, मैंने कभी भी उसको खुद से दूर नही महसूस किया, वो तो मेरी साँसों में बसती है, बसंती मर जायेगी पर घुरिया कभी नही मर सकती..कभी नही”.......बुदबुदाते हुए बसंती फूट फूट कर रो पड़ी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">तब तक करिश्मा भी आ गई | बसंती को उन्ही तीन लड़कियों की फोटो के सामने यूँ बिलख कर रोते देख चौंक पड़ी |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“माँ...माँ....क्या हुआ ?” करिश्मा ने उसे पकड़ कर सोफे पर बैठा दिया और उसको चुप कराने लगी, तब तक उसके पापा भी आ गये, वो बसंती को समझाने लगे, करिश्मा दौड़ कर एक गिलास पानी ले आई और बसंती को पिलाया, जब वो थोड़ा सामान्य हुई तो करिश्मा बोली –</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“माँ..आपने कभी नही बताया कि ये कौन-कौन हैं ? मैंने जब भी पूछा आपने टाल दिया, आज आप को बताना ही होगा कि इनसे आप का क्या रिश्ता है ? आखिर कौन हैं ये ? जिनके लिए मैंने अक्सर आपको आँसू बहाते हुए देखा है और आज तो हद ही हो गई ! आप को अपनी सेहत का जरा भी ध्यान नही ?”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">“बस् इतना जान ले कि इसमें से एक तेरी माँ है बेटी, जिसकी वजह से संस्था का वजूद है; अगर वो ना होती तो तू या तेरी संस्था भी ना होती |” अपनी हिचकियों पर काबू पाते हुए बसंती बोली |</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #666666; font-size: large;">करिश्मा उसके गले से लग गई और बोली “ये तो मुझे भी पता है कि इनमे से एक मेरी प्यारी सी माँ है |” बसंती ने उसका माथा चूम लिया, करिश्मा उससे बेल की तरह लिपटी हुई थी ||</span></div>
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<div style="text-align: justify;">
साभार लमही</div>
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परिचय<br />
नाम- मीना पाठक<br />
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कार्य - गृहिणी , लेखिका<br />
शिक्षा- कानपुर यूनिवर्सिटी से स्नातक<br />
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'अंतर्मन ' ब्लॉग का सफल संचालन ,<br />
प्रकाशित कृति – (साझा संग्रह)-‘अपना-अपना आसमा’, ‘सारांश समय का’, ‘जीवन्त हस्ताक्षर"<br />
सम्मान - शोभना वेलफेयर सोसायटी द्वारा-शोभना ब्लॉग रत्न सम्मान 2012 व माण्डवी प्रकाशन द्वारा ‘साहित्यगरिमा’ सम्मान 2014 प्राप्त हुआ !!<br />
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फोन न०- 09838944718<br />
ई - मेल आईडी-- meenadhardwivedi1967@gmail.com<br />
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<br />shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-71440365854773354362015-05-19T12:05:00.001+05:302015-05-27T18:39:39.593+05:30प्रेक्षागृह में अकेले तुम - सुधा अरोड़ा <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUjgwrAE8xNQZIQDbCnfnRKsuwL5hAnrnMm05gTAYrf6MWQ3IKB3iaXBu3Nm295eg59VLX4W1NRCMxIj52ED2scBflNxPqjHE9FkUpKj1xwbpoP0Sfe5djVxdZxWMyX5iCor6ugTjVCSI/s1600/1012755_10204784778681080_9199668545932365900_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUjgwrAE8xNQZIQDbCnfnRKsuwL5hAnrnMm05gTAYrf6MWQ3IKB3iaXBu3Nm295eg59VLX4W1NRCMxIj52ED2scBflNxPqjHE9FkUpKj1xwbpoP0Sfe5djVxdZxWMyX5iCor6ugTjVCSI/s320/1012755_10204784778681080_9199668545932365900_n.jpg" width="203" /></a></div>
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<span style="background-color: #fff2cc; font-size: large;">प्रेक्षागृह में अकेले तुम ! </span><br />
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<b style="background-color: #ffe599;"><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: medium;">एक युवा महिला अपने बुज़ुर्ग पति के खिलाफ आवाज़ उठा पायी ! लेकिन समाज की रूढ़ियों , रीति रिवाज़ों , अपने अनंत दायित्वों और ज़िम्मेदारियों से घिरी एक आम गृहिणी क्या करे -- जो </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: medium;">समाज को बदलने का सपना</span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: medium;"> </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: medium;">दिखाने वाले अपने </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: medium;">नामचीन </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: medium;">पति जो </span><span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: medium;">सर्जक , रचनाकार, कलाकार हैं , से ताउम्र त्रस्त रहती है ! ऐसे पतियों के छिपे हुए मुखौटे को उतारने का साहस दिखाती है ये पंक्तियाँ ! </span><br />---- सुधा अरोड़ा<br /> </b><br />
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<div class="MsoNormal" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; margin-bottom: 12pt;">
<span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
<span style="font-family: 'Times New Roman'; font-size: small;"> </span><br />
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</span><span style="background-color: #fce5cd; font-size: large;"><span lang="HI" style="background: #FFF2CC; color: red; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 20.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">प्रेक्षागृह</span><span lang="HI" style="background: #FFF2CC; color: red; font-family: "Times New Roman","serif"; font-size: 20.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"> </span><span lang="HI" style="background: #FFF2CC; color: red; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 20.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">में</span><span lang="HI" style="background: #FFF2CC; color: red; font-family: "Times New Roman","serif"; font-size: 20.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"> </span><span lang="HI" style="background: #FFF2CC; color: red; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 20.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">अकेले</span><span lang="HI" style="background: #FFF2CC; color: red; font-family: "Times New Roman","serif"; font-size: 20.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"> </span><span lang="HI" style="background: #FFF2CC; color: red; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 20.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">तुम !</span></span><span lang="EN-IN" style="background: #FFF2CC; color: red; font-family: "Times New Roman","serif"; font-size: 20.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><br />
</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
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</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> -<br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">महान</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कलाकार</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रचनाकार</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सर्जक</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आम</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जन</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मसीहा</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भटके</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हुओं</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मार्गदर्शक</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दीन</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दुखियारों</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">त्राणदाता</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रभामण्डल</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चारों</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ओर</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ही</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कंधों</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समाज</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पूरा</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दारोमदार</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मंच</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">शाल</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">श्रीफल</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नवाजते</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हें</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मातहत</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चाटुकार</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपनी</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उस</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कलम</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नाज़</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हें</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जो</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पूजी</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जाती</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अखबारों</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जिनसे</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">गढ़ते</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सुंदर</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रचना</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आखिर</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कैसे</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भूल</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जाते</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">घर</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उस</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">औरत</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">को</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जिसने</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हें</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">गढ़ा</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ?<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हां</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वही</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारी</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मां</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पड़ी</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आलिशान</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बंगले</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कोने</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नौ</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">महीने</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हें</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कोख</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रखने</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वाली</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मां</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारी</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रोज</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">राह</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तकती</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कि</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आकर</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बैठोगे</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसके</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सिरहाने</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">,<br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दरवाजे</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">टकटकी</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लगाए</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देखा</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">करती</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आने</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">-</span><span lang="HI" style="background-color: white; font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बाने</span><span lang="EN-IN" style="background-color: white; font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ! </span><span lang="EN-IN" style="color: #500050; font-family: "Arial","sans-serif"; font-size: 5.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">राह</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तकते</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आंखें</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसकी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मुंद</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जाती</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दिन</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">झक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सफेद</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कुरता</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पहने</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चिता</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आग</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चले</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">फ्रेम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मढ़ी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तस्वीर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ताज़ा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">गमकते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">फूलों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">माला</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चढ़ा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">झोली</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">संवेदनाएं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बटोरते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मातहतों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मुरीदों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुमने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रचे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अनोखे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बिम्ब</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रचीं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उपमाएं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">गढ़े</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रतिमान</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बारीक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नज़र</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देखे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">धूल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कण</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लान</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लहलहाते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पौधों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उन</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पानी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">छिड़काव</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">करते</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">फूल</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">- </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पत्तियों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">को</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चमकाते</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">क्या</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुमने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कभी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देखा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कितनी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">धूल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चुकी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ही</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आंगन</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पचास</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">साल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पहले</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रोपे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">गए</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उस</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जीते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जागते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पौधे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मन</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जब</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">झक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सफेद</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लखनवी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कुरते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">को</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">इत्र</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">महकाते</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बाल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">संवारते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जाते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नये</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उपन्यास</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नयी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रेरणा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मिलने</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दोस्तों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सामने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्राणप्रिये</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बेगम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बुलाने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">स्वांग</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रचते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कैसी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हूक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उठती</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसके</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मन</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कि</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कभी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अकेले</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मुस्कुराकर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बात</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">करते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उससे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कभी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">धीमे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पुकारते</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसका</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वह</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नाम</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसके</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अम्मा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बापू</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दिया</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">था</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चंद</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अक्षरों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वह</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्यारा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नाम</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जिसे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पचास</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सालों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वह</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भूल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चली</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अब</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">इंद्रधनुष</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सातों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रंग</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दिख</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जाते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हें</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कोहरे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नहीं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दिखता</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">घर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दीवारों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कोने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दूसरे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कोने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तक</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">खिंचता</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वह</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">फीका</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">इंद्रधनुष</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जिसके</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रंग</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सोख</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लिए</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुमने</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रंगों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सपने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">संजोए</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आयी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">थी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देहरी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="EN-IN" style="color: #500050; font-family: "Arial","sans-serif"; font-size: 13.5pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">धीरे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">धीरे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुमने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रंगो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पहचान</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ही</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भुला</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बादलों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कोहरों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ढूंढते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रहे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मनभावन</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आकृतियां</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">घर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आकर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">गरजते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बरसते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रहे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बादलों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तरह</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आसमान</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बादल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">फटते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">खबर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आती</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अखबारों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कि</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कितना</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">विध्वंस</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हुआ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">धरती</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भीतर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बादल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बिला</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नागा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">फटता</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रहा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रोज़</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उस</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मासूम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अखबार</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तारीफ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कसीदे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पढ़ते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रहे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रशंसाओं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">झूठे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अंबार</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आंखें</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">गड़ाए</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कभी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देखा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ?<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जिसके</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सपनों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">खौफ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दिया</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुमने</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सख्त</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हाथों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मार</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">झेलकर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रसोई</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जाकर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देखती</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कि</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ही</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पसंद</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">खाना</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रोज़</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">न</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ज्यादा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तीखा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">न</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">फीका</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपनी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सर्जना</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">स्त्री</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बराबरी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समानता</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">झंडा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">गाड़ने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वाले</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जरा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सोचकर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बताना</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कैसा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लगता</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हें</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जब</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">घर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लौटकर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">झंडे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">डंडे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उस</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">स्त्री</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">को</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">धराशायी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">करते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अब</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लाल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पीले</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">होते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चेहरे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">खौफ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">खाते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हुई</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आंखों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नाज़ुक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उंगलियों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भूला</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हुआ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रूमाल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तहा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बाहर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">निकलते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वक्त</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हाथों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">थमा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देती</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपनी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">संवेदना</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">डंका</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पीटने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वाले</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">महान</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आत्मा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ही</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">घर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जीते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जागते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वाशिंदे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">संवेदना</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अछूते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">क्यों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रह</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जाते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !</span><span lang="EN-IN" style="color: #500050; font-family: "Arial","sans-serif"; font-size: 13.5pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 12pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 12pt;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सजाते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अकादमियों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पुरस्कार</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सम्मान</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपनी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">किताबों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वाले</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रैक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सम्मान</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पाए</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कभी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जिसने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बनाया</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">इन</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सम्मानों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हकदार</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हें</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ?<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">विचारमग्न</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मुद्रा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हाथ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कलम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देखते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ही</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दरवाज़ा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बंद</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देती</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हुड़क</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देती</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चहकते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बच्चों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">को</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कि</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपनी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चहक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बंद</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लें</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बच्चे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दरवाज़े</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ओट</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दुबक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जाते</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समाज</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बढ़ते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भ्रष्टाचार</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">को</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रोकने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रपंच</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रचते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कभी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">को</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आईने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देखना</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ऐ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सर्जक</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समाज</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">स्वयंभू</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नियन्ता</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कि</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जिस</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चेहरे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">को</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">साबुन</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">क्रीम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">महकाकर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जाते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भवनों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">संस्थानों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वक्तृत्व</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जादू</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बिखेरने</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उस</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चेहरे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पीछे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चेहरा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">क्या</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कहता</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देखो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कविराज</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कथाकार</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सर्जक</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कोमल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भावनाओं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चितेरे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देखो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">झांको</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कभी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भीतर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मत</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भरमाओ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अपने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">झूठे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">शब्दों</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उपमाओं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रतीकों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बिम्बों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">इतनी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बड़ी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जमात</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">को</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कि</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ‘‘ </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रेम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रेम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उम्र</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सीमाओं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नैतिक</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">-</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अनैतिक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मत</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बांधो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बहने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उसे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">निर्बाध</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> .....’’<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भवनों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">विद्यालयों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रांगण</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">इन्हीं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रवचनों</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">खड़ी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ली</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जमात</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जीती</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जागती</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रेरणाओं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कभी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नहीं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जागी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मुंदी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चेतना</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कि</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सब</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बाहरी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आवरण</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सब</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">खोखला</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नाटक</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ! </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अभिनय</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रेक्षागृह</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अकेले</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रेरणाओं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ताल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">थिरकते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हुए</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समझ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ही</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नहीं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पाए</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">इतना</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बड़ा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रवंचन</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !</span><span lang="EN-IN" style="color: #500050; font-family: "Arial","sans-serif"; font-size: 5.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; margin-bottom: 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आसमान</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कहां</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">टंगे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कविराज</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समाज</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अभियन्ता</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बहुत</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हुआ</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नीचे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उतरो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">शि</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रोमणि</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पैर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तले</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जमीन</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बाट</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जोह</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रही</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उस</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आसमान</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समाज</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नहीं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> , </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चांद</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">क्या</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कहा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ? </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वही</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सब</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ?<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">फिर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वहीं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">विराजो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कविराज</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चैन</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रहो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">उनमें</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लिप्त</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">धरती</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">पर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">बसे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समाज</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">की</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चिन्ता</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">से</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">करते</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम्हें</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">मुक्त</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हमारा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समाज</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">यह</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">खुद</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">निखारेंगे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">-</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">संभालेंगे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">इसे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">गढ़ेंगे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">-</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रचेंगे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> ,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दलदल</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">में</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नहीं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">धंसने</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">देंगे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आखिर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">यह</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">आम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जन</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समाज</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">है</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">विशिष्ठ</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वहीं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">विराजो</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">कविराज</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">गढ़</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">लेना</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वहां</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">भी</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">झूठी</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">प्रेरणाओं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">का</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">एक</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">समाज</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अब</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ऊपर</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">नहीं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">ताकेंगे</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">जहां</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">चांद</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">,<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">वहां</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">तुम</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">महफूज</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">रहो</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> !<br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">यहां</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">के</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सुख</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">-</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">दुख</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> , </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">राग</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;">-</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">विराग</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सब</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सिर्फ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">और</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सिर्फ</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हमारे</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">हैं</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">।</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"><br />
<br />
--- </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">सुधा</span><span lang="HI" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.5pt;">अरोड़ा</span><span lang="EN-IN" style="font-family: 'Times New Roman', serif; font-size: 13.5pt;"> </span><span lang="EN-IN" style="color: #500050; font-family: "Arial","sans-serif"; font-size: 5.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
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shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-78222319435795522772015-05-18T10:26:00.001+05:302015-05-18T11:09:05.602+05:30"खाली नारेबाजी जीवन नहीं है !" --अल्पना मिश्र जी से कल्पना पन्त की एक बातचीत<span style="background-color: #f9cb9c;"><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgirls8qMim8elNiS7hvTIFJoWIJlXcVERVLY1_PAdLz2bCn0zZYrReAcbd-WqxuC7HrMc1lVCSqb5TGIxCe8V9VT5n_3nbCHQmAoR-MF6BTwNtNYelbnxcFEFRMGWMpoDhYEM1NAJ2FCC_/s1600/%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BE+%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0+%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BE+%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%9A%E0%A4%95+%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BE+%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A5.jpg" imageanchor="1" style="color: #771100; margin-left: auto; margin-right: auto; text-decoration: none;"><img border="0" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgirls8qMim8elNiS7hvTIFJoWIJlXcVERVLY1_PAdLz2bCn0zZYrReAcbd-WqxuC7HrMc1lVCSqb5TGIxCe8V9VT5n_3nbCHQmAoR-MF6BTwNtNYelbnxcFEFRMGWMpoDhYEM1NAJ2FCC_/s400/%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BE+%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0+%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BE+%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%9A%E0%A4%95+%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BE+%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A5.jpg" style="border: none; position: relative;" width="400" /></a></span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; line-height: 17.9400005340576px; white-space: pre-wrap;"><span style="font-size: 13px;">
</span><b>चर्चित उपन्यास "अन्हियारे तलछट में चमका " में घर-परिवार में घुटती स्त्रियों के संघर्षमय जीवन की व्यथा का सजीव,मार्मिक चित्रण है ! बिना किसी शोर-शराबे, नारेवाजी के सही मायने में अपने लिए स्वतंत्रता का मार्ग चुनने वाली स्त्रियों के प्रतिकार का लेखिका ने उपन्यास में बहुत ही खूबसूरती से वर्णन किया है ! </b></span><span style="background-color: #f6f7f8; color: #373e4d; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; line-height: 15.3599996566772px; white-space: pre-wrap;"><b>सिर्फ स्त्री ही नहीं समाज की दिशाहीन युवा पीढ़ी और शिक्षा व्यवस्था की कमियों का भी उल्लेख किया है ! </b></span><b style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; line-height: 17.9400005340576px; white-space: pre-wrap;">हाल ही में युवा आलोचक कल्पना पन्त ने उपन्यास के भिन्न पहलुओं पर अल्पना मिश्र जी से बातचीत की ! </b><br />
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; line-height: 17.9400005340576px; white-space: pre-wrap;"><b>आज अल्पना मिश्र जी के जन्मदिन के शुभ अवसर पर प्रस्तुत है प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान से सम्मानित उनके उपन्यास "अन्हियारे तलछट में चमका" पर की गई सार्थक बातचीत ! जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें अल्पना जी ! </b></span><br />
<div>
<span style="background-color: #f9cb9c;"><br /><br />एक अंतराल के बाद, एक बार फिर प्रतिष्ठित कथाकार अल्पना मिश्र से बात करने का अवसर मिला। इस बीच उनका उपन्यास ‘अन्हियारे तलछट में चमका’ प्रकाशित हो कर प्रसिद्धि की बुलन्दियाॅ छूने लगा है। इस पर उन्हें वर्ष 2014 का प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान भी घोषित हुआ है। इस उपन्यास को भाषा के अलग अनूठे अंदाज और नये शिल्पगत प्रयोग के साथ साथ बदलते समय के प्रभावों के बीच निम्न मध्यवर्गीय जीवन की बहुत गहरी अन्तरकथा के लिए सराहा जा रहा है। प्रस्तुत है उनके उपन्यास पर उनसे बातचीत. - कल्पना पंत</span></div>
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<span style="font-size: large;">कल्पना पंत </span>- अन्हियारे तलछट में चमका उपन्यास का शिल्प अपने में नवीनता लिए हुए है। उपन्यास को कई उपशीर्षकों में बांटने की जरुरत आपको क्यों महसूस हुई ?<br />
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<span style="font-size: large;">अल्पना मिश्र </span>- बस, मेरी कोशिश इतनी थी कि जो बात कहना चाहती हॅू, उसे खूब अच्छी तरह कह पाउं। टेकनीक नई थी तो शायद इसी से शिल्प भी बदलता चला गया। कहानी कहने के लिए आत्मकथा की टेकनीक को भी इसमें मिला दिया। तमाम प्रविधियाॅ घुलमिल कर एक नई प्रविधि की तरफ लेती गईं। यह भी अनायास ही हुआ। बस, कहने के तरीके की खोज में यह तरीका बनता गया। दूसरे उपशीर्षक भी इसी तरह बने।<br />
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<span style="font-size: large;">कल्पना पंत </span>- उपन्यास में बिट्टो, सुमन, ननकी, बिट्टो की माँ, और मौसी जैसी स्त्री पात्रों के चरित्र की सूक्ष्म पड़ताल दिखाई पड़ती है। वास्तव में क्या ये स्त्री पात्र आपके जीवनानुभवों का हिस्सा रहे हैं ?<br />
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<span style="font-size: large;">अल्पना मिश्र -</span> कोई रचना लेखक के अनुभव, विचार और कल्पना से मिल कर ही बनती है। कई बार देखी सुनी जानी बात भी बहुत गहराई से व्यंजित होती है। ये पात्र तो हमारी इसी दुनिया के पात्र हैं। मैंने बहुत निकट से गाॅवों, कस्बों और नए बनते शहरों को जाना है। इसलिए कह सकती हॅू कि इन पात्रों को मैंने बहुत निकट से समझा है। ननकी जैसे ही एक पात्र की मृत्यु मैंने अपने बचपन में देखा था, तब से अब तक न जाने कितनी ननकी की हत्याएं सुनी, जानी तो हर बार उस बचपन में देखे दृश्य की याद आई। वही प्रश्न बार बार उठे, जो बचपन में उठे थे। अब जा कर उसे थोड़ा सा लिख पाई हूॅ। इन हत्याओं का सही रहस्य कोई नहीं कहता। इसीलिए यह उपन्यास में भी बहुत धीरे से कहा गया है। मुझे इस बात का बहुत सुकून है कि ये पात्र पाठकों को परिचित लग रहे हैं।<br />
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<span style="font-size: large;">कल्पना पंत </span>- बिट्टो का पति शचीन्द्र अपनी यौन अक्षमता को स्वीकार नहीं करता है और अपने पुरुषार्थ को साबित करने के लिए लगातार बिट्टो को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है। बिट्टो शचीन्द्र से अलग होने का निर्णय लेती तो है लेकिन काफी देर से। आज के आधुनिक समय में भी पढ़ी.लिखी और आत्मनिर्भर स्त्री द्वारा निर्णय लेने में आने वाली कठिनाइयों के पीछे आखिर कौन से मानदण्ड काम करते हैं ?<br />
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<span style="font-size: large;">अल्पना मिश्र -</span> बिट्टो का थोड़ी देर से निर्णय ले पाना यह बताता है कि खाली नारेबाजी जीवन नहीं है। नारेबाजी को तो स्त्री की ईमानदार अभिव्यक्तियों के खिलाफ जानबूझ कर स्थापित किया गया और उसे ही स्त्री लेखन का पैमाना बना दिया गया। जो देह विमर्श की पूरी राजनीति, पितृसत्तात्मक रणनीति के साथ की गई थी, उसने बहुत सी लेखिकाओं को भ्रमित किया। बहुत से लोग, जो गंभीर काम कर सकते थे, इसी की भेंट चढ़ गए। अपनी देह पर निर्णय का अधिकार एक बड़ा मुद्दा है, इसे इतना हल्का नहीं बनाया जा सकता। देह पर निणर्य का अधिकार आसानी से नहीं मिलता। बिना शिक्षा, बिना आर्थिक आत्मनिर्भरता के यह कितना संभव हो सकेगा! निर्णय की स्थिति तक आने में आत्मसंघर्ष से भी गुजरना होता है। प्रेम में जिम्मेदारी भी होती है और मनुष्य अपने प्रियजनों को इतनी जल्दी नहीं छोड़ना चाहता है। जल्दी हारना भी नहीं चाहता। सबसे पहले मनुष्य अपनी परिस्थिति को ठीक करना चाहता है। जब लगता है कि इसे ठीक नहीं किया जा सकता तभी दूसरे रास्ते की तरफ बढ़ता है। स्त्री भी इन्हीं स्थितियों से गुजरती है। मुख्य बात यह है कि इन स्थितियों से उसे कितनी देर जूझना चाहिए, तो जाहिर है कि अधिक देर नहीं करनी चाहिए। बिट्टो भी अधिक देर नहीं करती है। दूसरा रास्ता लेने की तरफ बढ़ती है। पढ़ी लिखी स्त्री का विवेक है यह। पिछली पीढि़यों की तरह पूरा जीवन इसकी भेंट नहीं चढ़ाया जा सकता है। बिट्टो की माॅ को देखिए, जीवन के आखिरी दौर में जा कर कहीं वह अपनी बेटी के साथ खड़े होने की हिम्मत जुटा पाती है। इसलिए मैंने इस विषय को गंभीरता से लिया है।<br />
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<span style="font-size: large;">कल्पना पंत -</span> वर्तमान समय में भी जीवनसाथी के चुनाव के सन्दर्भ में स्त्री की कोई निर्णायक भूमिका नहीं होती है। इन्ही प्रेम संबंध की दुखांत परिणति को ही दर्शाती है ननकी की कहानी। अधिकांशतः विद्रोह न कर पाने वाली स्त्रियाँ ननकी की तरह ही आत्महत्या का मार्ग चुन लेती हैं। आखिर समाज की इस प्रेम.विरोधी मानसिकता को किस प्रकार बदला जा सकता है ?<br />
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<span style="font-size: large;">अल्पना मिश्र -</span> आज भी हालात बहुत नहीं बदले हैं। बहुत कम लड़कियाॅ अपने जीवन साथी के चुनाव का फैसला कर पाने की स्थिति में पॅहुची हैं। लेकिन लड़कियाॅ लगातार प्रतिरोध की तरफ बढ़ती हुई दिख रही हैं। पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर होना और उसके साथ चेतना सम्पन्न भी होना होगा, तभी निर्णय लेने का पूरा अधिकार मिल सकेगा। ननकी की स्थिति अलग है। वह एक आम लड़की है। उसका चुनाव भले ही गलत साबित होता है पर उसने निर्णय तो लिया ही है और जब चेतना का पक्ष और मजबूत होता है तब वह फिर अपना अलग फैसला लेने की तरफ आती है। उसका फैसला हमारी सामाजिक पारिवारिक व्यवस्था को मंजूर नहीं हो सकता। वह आत्महत्या नहीं करती है बल्कि उसकी सुनियोजित हत्या का संकेत उपन्यास में आया है, जिसमें पितृसत्ता के मानसिक अनुकूलन का शिकार उसकी माॅ का मौन भी शामिल है। असल में प्रेम का स्वरूप ही व्यवस्था विरोधी है। व्यवस्था उसे अनुकूलित कर के ही अपने साथ आने देती है। प्रेम व्यवस्था में कहीं भी फिट नहीं बैठता। आप खुद ही देखिए हमारी व्यवस्था में प्रेम करने की आजादी स्त्री को कितनी है? प्रेम के जितने भी पूज्य रूप मिलते हैं, पुरूष सत्ता द्वारा अपनी कल्पना से बनाये गए हैं और जितने उदाहरण मिलते हैं, सब में दंड दिया गया है- सोहनी - महिवाल, लैला- मजनू आदि को याद करिए। अभी हाल फिलहाल दिल्ली के वेकटेश्वर काॅलेज में पढ़ने वाली लड़की के अन्तरजातीय विवाह करने पर घर वालों द्वारा की गई हत्या को देखिए। यह पढ़े लिखे समाज में भी हो रहा है। दिल्ली जैसे महानगरों में हो रहा है। स्त्री पर हिंसा लगातार बढ़ रही है। उस पर नियन्त्रण के तरीके बारीक और क्रूर हुए हैं। यह सब हमारे चारों तरफ चल रहा है। इस तरह की हत्याएं लगातार बढ़ रही हैं। यह दंड बताता है कि प्रेम व्यवस्था का प्रतिपक्ष है। इसे कहना तो पड़ेगा।<br />
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<span style="font-size: large;">कल्पना पंत -</span> सुमन और बिट्टो दोनों ही अंततः पितृसत्ता द्वारा स्त्री के लिए निर्धारित रूढ़ नैतिक मानदंडों को ठेंगा दिखाती हुई घर से निकल पड़ती हैं। इन दोनों द्वारा अपनी.अपनी कैद से मुक्त होने का निर्णय लेना क्या सम्पूर्ण स्त्री जाति के प्रति सकारात्मक ऊर्जा और संकेत का पर्याय है ? इस सन्दर्भ में आप क्या कहेंगी ?<br />
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<span style="font-size: large;">अल्पना मिश्र -</span> निश्चित ही सुमन और बिट्टो दोनों अपनी अलग राह बनाने निकल पड़ी हैं। इनकी तरह तमाम लड़कियाॅ आज अपनी अपनी राह खोज रही हैं। दोनों ने ही पितृसत्ता के नैतिक मानदंडों को नकार दिया है। तुम देखोगी कि दोनों ही प्रेम करती हैं और प्रेम के नाम पर सामंती रूपों की जकड़बंदी को दोनों ही ठुकरा देती हैं। प्रेम दरअसल व्यवस्था का बड़ा प्रतिरोध भी है। हमारी पूरी व्यवस्था में प्रेम के लिए कोई जगह ही नहीं है। वह प्रतिपक्ष है। ये दोनों पात्र प्रेम की तरफ जाते हैं, इसका मतलब ही है कि प्रतिरोध की तरफ जाते हैं।<br />
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<span style="font-size: large;">कल्पना पंत -</span> वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के पतनोन्मुख स्वरुप को भी उपन्यास में बखूबी उजागर किया गया है। आखिर शिक्षा व्यवस्था में आई इस गिरावट का मूल कारण आप क्या मानती हैं ?<br />
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<span style="font-size: large;">अल्पना मिश्र - </span>हाॅ, यह दिखाना जरूरी लगा। अगर सही शिक्षा नहीं मिलती है तो चेतना का विकास विस्तार संभव नहीं बन पाता है। आम आदमी के लिए जैसी शिक्षा उपलब्ध है, उसकी व्यवस्था कैसी है? कई तरह की शिक्षा हमारे देश में है। गरीबों के लिए अलग है, अमीरों के लिए अलग है, सरकारी अलग, प्राइवेट कांवेंट अलग। हर राज्य का अपना अलग अलग पाठ्यक्रम है। तो इन सब में देखने की बात है कि आम लोगों के हिस्से क्या आ रहा है? नकल है, भ्रष्टाचार है, पैसा ले कर काॅपी लिखी जा रही है, ऐसी शिक्षा प्राप्त लोगों से आप किस तरह की चेतना, किस तरह के व्यवहार की उम्मीद करेंगे? इसमें बुद्धिमान और प्रतिभासम्पन्न युवक क्या मुन्ना जी और कान्हा तिवारी वाला रास्ता पकड़ लेने की तरफ नहीं चले जाते? क्या यह त्रासद नहीं है? नए बनते समय में भी शिक्षा की ऐसी दशा, बेरोजगारी, दिशाहीनता...... फिर अपराध के रास्ते.... मैं यही सब दिखाना चाहती थी।<br />
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<span style="font-size: large;">कल्पना पंत - </span>नवजागरण के दौर से ही स्त्री शिक्षा की पुरजोर वकालत की जाती रही है किन्तु व्यवहारिक स्तर आज भी पढ़ी.लिखी स्त्रियाँ घर के भीतर चूल्हे.चौके तक ही सीमित रह जाती हैं। यदि आत्मनिर्भर होती भी हैं तो उनकी कमाई पर पहला हक़ उनके परिवार या पुरुष का होता है। जैसे बिट्टो की माँ। शिक्षित होने के बावजूद परनिर्भरता और आर्थिक परतंत्रता की बेड़ियों में लिपटी ये स्त्रियाँ ;बिट्टो की माँ अपनी बेटियों को पढ़ाना नहीं चाहती है। इसके पीछे पितृसत्ता किस रूप में काम करती है ?<br />
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<span style="font-size: large;">अल्पना मिश्र</span> - नवजागरण का समय स्त्री समस्याओं पर केन्द्रित था। क्योंकि यह स्त्री ही थी जो भव्य भारतीय संस्कृति के धवल माथे पर काले धब्बे की तरह थी, इसी जगह, ब्रिटिश सभ्यता के आगे करारी शिकस्त थी। इसीलिए अपनी अनपढ़, गंवार, असभ्य, स्त्रियों और इनके साथ जुड़ी भयानक क्रूरताओं पर बात करना जरूरी हो गया। सतीप्रथा, विधवा जीवन, बाल विवाह आदि के कारण अंग्रेजों के सामने सिर उठाना मुश्किल हो गया था। आप किस भारतीय संस्कृति पर गर्व की बात करेंगे, जहाॅ स्त्रियों के लिए ऐसी यंत्रणादायक नारकीय जीवन की व्यवस्था थी! इसलिए इन अनपढ़ स्त्रियों को शिक्षित करना जरूरी हुआ। लेकिन पितृसत्ता अपने नियन्त्रण को जरा भी ठीला करने को तैयार न थी। समस्या यहीं थी, इसलिए स्त्री शिक्षा को ले कर बड़ी भारी चिंताएं भी थीं। शुरू में पाठ्यक्रम भी ऐसा बनाया गया था, जिसमें होम साइंस अनिवार्य था। नैतिक शिक्षा, आदर्श स्त्री धर्म आदि अनिवार्य थे। धीरे धीरे सेवा क्षेत्र उनके लिए खोले गए। तकनीकी क्षेत्र, ज्ञान विज्ञान के अन्य क्षेत्र तो बहुत बाद में स्त्रियों के लिए खुले। लेकिन शिक्षा ऐसा हथियार है जिसे पकड़ाने के बाद आप उनके दिमाग को कब तक अनुकूलित किए रह सकते हैं, नतीजा प्रश्न उठने शुरू हुए। जीवन और समाज की समालोचना शुरू हुई। महादेवी वर्मा ने बहुत पहले ही इसे पहचाना था। जहाॅ तक बिट्टो की माॅ जैसी स्त्रियों का प्रश्न है तो वे पितृसत्तात्मक जकड़बंदी में अपने सारे प्रयासों को व्यर्थ पाती हैं और अपने सारे विरोध को भी। यह व्यर्थता बोध ही उन्हें इस तरह सोचने की तरफ ले जाता है। लेकिन आशा की एक चिंगारी भी उन्हें सोये से जगा सा देती है। और यही मुख्य बात है। बिट्टो पर माॅ का बढ़ा हुआ भरोसा न केवल बिट्टो के लिए बल्कि माॅ के लिए भी नया पथ बनाता है। मुक्तिकामी पथ की दिशा । अपने लिए सही जीवन की तलाश आखिर दोनों की ही है। संगठित हो कर कहीं अधिक मजबूत हो सकते हैं।<br />
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<span style="font-size: large;">कल्पना पंत -</span> उपन्यास में एक मुकम्मल शब्द ष्विकल्पष् प्रयुक्त हुआ है। सुमन सोचती है कि ष्नरक में चुपचाप सड़ते चले जाना कौन सी बहादुरी है घ् ष्विकल्पष् अच्छा शब्द हैए ढूँढना होगा हमें भी !ष् इस सन्दर्भ में आप क्या कहेंगी ?<br />
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<span style="font-size: large;">अल्पना मिश्र -</span> ‘विकल्प’ बड़ा शब्द है और जरूरी भी। सुमन, बिट्टो, ननकी जैसी तमाम लड़कियों को अपने जीवन के लिए विकल्प की तलाश है। यहाॅ तक कि बिट्टो की माॅ और मौसी जैसी स्त्रियों को भी विकल्प की तलाश है। नरक में चुपचाप सड़ते चले जाने की बजाय विकल्प की पहचान करनी चाहिए, अपना रास्ता तभी ढ़ूढ सकेंगे और तभी उस नए रास्ते पर चलने की कोशिश की जा सकेगी। कभी कभी जिसे व्यक्ति अपने लिए सही चुनाव मान कर चलता है, कुछ ही दूरी पर वह गलत चुनाव साबित हो जाता है, जैसा कि ननकी के साथ हुआ या जैसा कि बिट्टो के साथ हुआ। तब मैं कहूंगी कि फिर से विकल्प खोजो, जीवन कभी नहीं रूकता। कभी उसे खत्म नहीं मानना चाहिए। इसीलिए बिट्टो भी फिर से नई राह चुनने की दिशा लेती है और सुमन, जिसने कि प्रेम विवाह किया था, वह भी फिर से जीवन के लिए नए रास्ते की तलाश में निकलती है। स्त्रियों ने तो कदम बढ़ाएं हैं पर अच्छा होता कि पुरूष उनके इतने ही हमसफर बनते। कुछ पुरूषों ने अपने पितृसत्तात्मक अनुकूलन को पहचान कर उनसेे मुक्त होने की कोशिश की है, उनके ऐसे प्रयास और अधिक हों, ऐसी कामना है।<br />
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<span style="font-size: large;">कल्पना पंत </span>- प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान के लिए आपको बहुत.बहुत बधाई। पिछली बार पूछा था तब आप इस उपन्यास को पूरा कर रही थीं, आजकल आप क्या लिख रही हैं ?<br />
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<span style="font-size: large;">अल्पना मिश्र </span>- धन्यवाद कल्पना। जिसतरह पाठकों ने ‘अन्हियारे तलछट में चमका’ का स्वागत किया है, उससे मेरा उत्साह बढ़ा है। अब मैं अधिक व्यवस्थित तौर पर एक नए उपन्यास पर काम कर रही हॅू। इसकी टेकनीक पहले से अलग होगी। जैसे इस पहले उपन्यास में, मैंने नई टेकनीक का प्रयोग किया, वैसे ही कुछ एकदम अलग। बिलकुल नई होगी। मीरा पर जो लिख रही थी, वह भी पूरा होने की तरफ है। एक ब्लाॅग शुरू कर रही हूॅ और फील्ड वर्क को भी अधिक बढ़ाना है।<br />
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<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.8500003814697px; line-height: 20.7900009155273px;">
<span lang="HI" style="color: #002060; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">सम्पर्क-</span><span style="color: #002060; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.8500003814697px; line-height: 20.7900009155273px;">
<span lang="HI" style="color: #002060; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">अल्पना मिश्र</span><span style="color: #002060; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.8500003814697px; line-height: 20.7900009155273px;">
<span lang="HI" style="color: #002060; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">एसोसिएट प्रोफेसर</span><span style="color: #002060; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">, </span><span lang="HI" style="color: #002060; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">हिंदी विभाग</span><span style="color: #002060; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">, </span><span lang="HI" style="color: #002060; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">दिल्ली विश्वविद्यालय</span><span style="color: #002060; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">, </span><span lang="HI" style="color: #002060; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">दिल्ली-</span><span style="color: #002060; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">7</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.8500003814697px; line-height: 20.7900009155273px;">
<span lang="HI" style="color: #002060; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">मो.- </span><span style="color: #002060; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">09911378341</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.8500003814697px; line-height: 20.7900009155273px;">
<span lang="HI" style="color: #002060; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">ई मेल- <a href="mailto:alpana.mishra@yahoo.co.in" style="color: #771100; text-decoration: none;">alpana.mishra@yahoo.co.in</a> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;"> </span><span style="font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.8500003814697px; line-height: 20.7900009155273px;">
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<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.8500003814697px; line-height: 20.7900009155273px;">
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<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.8500003814697px; line-height: 20.7900009155273px;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">कल्पना पन्त</span><span style="font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.8500003814697px; line-height: 20.7900009155273px;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद</span><span style="font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14.8500003814697px; line-height: 20.7900009155273px;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4666652679443px;">आन्ध्र प्रदेश</span></div>
<br />shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-26139937218385363412015-05-15T10:08:00.001+05:302017-08-06T17:45:51.733+05:30हिंदी लेखन के माहौल में स्त्री - अनामिका <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhh8yWKBPbN1O7rAvKYvv5EbVzZ-zeBDD9IrA_kASvBHsC2q1rn2LrfAXC0dsfzNZFlZu9Pi1ULwJX-xJ9lQwNqV9JqF_0eTMtlnAbb6paPTHr0JtR98A_C1rSx01JUj95YXQDq9mzbQPw/s1600/anamika_01.png" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhh8yWKBPbN1O7rAvKYvv5EbVzZ-zeBDD9IrA_kASvBHsC2q1rn2LrfAXC0dsfzNZFlZu9Pi1ULwJX-xJ9lQwNqV9JqF_0eTMtlnAbb6paPTHr0JtR98A_C1rSx01JUj95YXQDq9mzbQPw/s1600/anamika_01.png" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><span style="background-color: #f4cccc;">हिंदी लेखन के माहौल में स्त्री होना।</span> </span><br />
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साहित्यिक पत्रिका युग परिबोध में प्रकाशित हिंदी लेखन के माहौल में स्त्री की स्थिति को दर्शाती बेहद महत्वपूर्ण बातचीत | <span style="font-size: large;"><br /></span><br />
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> <br /><br /><br /><br /><br />- <span style="background-color: #ffe599;">हिंदी लेखन के वर्तमान माहौल में स्त्रियाँ स्वयं को कमजोर एवं असहाय स्थिति में पाती है। कुछ पत्रिकाओ में रचनाये छपवा कर और एक-दो गोष्टियो में हिसा लेने के उपरांत प्रायः स्त्रियाँ गायब हो जाती है। जो टिकती है उनकी संख्या नगण्य कही जा सकती है। क्या उसके लिए हिंदी के प्रतिष्ठित लेखक और संपादक जिम्मेदार है, जिन्हे हम हिंदी के व्यापक सांस्कृतिक वातावरण का हिस्सा मान सकते है, या कोई अन्य कारण है ?</span></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"> यह बड़ा सवाल है ! स्त्री का शरीर उसके गले का ढोल तो है ही , उसके शोषण का प्राइम साइट भी है। फिर भी, सार्वजानिक क्षेत्र में स्त्रियाँ तीन स्तरों पर सक्रिय है : (1) लेखन, कला और संस्कृति के अनुष्ठानों में। (2) अध्ययन - अध्यापन और, (३) राजनीतिक <span id="7_TRN_12">उदबोधन</span>, सामाजिक जागरण के अभियानों में। फिर भी, प्रारंभ में हम अध्यापन में सक्रिय <span id="7_TRN_12">स्त्रियों </span> की बात करे, और साथ ही यह <span id="7_TRN_12">भी देखें कि </span>स्त्रियाँ भी वक्त के सामान्य नियमो <span id="7_TRN_12">द्वारा </span> परिचालित होती है। कल और आज में फर्क जरुरी है। मसलन, निर्मला जैन, उषा प्रियंवदा, मंजु जैन, मैथली कौल, इन्दु जैन, आदि सीधे -सीधे विचार या व्यापक समाज के क्षेत्र में नही आ गई - ऐसा होता तो हम इस सन्दर्भ को गौरव और प्रसन्नता से याद करते। इन स्त्रियों के पीछे या साथ बतौर संरक्षण पुरषो की भूमिका रही है। उनके पीछे पिता, भाई या मित्र या पति का संरक्षण था तो ये महिलाएँ वहाँ
पहुंची जहाँ हम उन्हें देखते है। इनके साथ आभिजात्य का एक घेरा भी बन गया। आप देखे तो यशपाल के उपन्यास 'झूठा सच' में भी जयदेव की स्थिति लगभग यही थी। लेकिन साठ के दशक में अभिजात्य का यह घेरा टूटा। </span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="background-color: #ffd966; font-size: x-large;"><br /></span></div>
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<span style="background-color: #ffd966; font-size: x-large;">- यह पुरानी बात हुई। आज क्या स्थिति है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">पहले जिन स्त्रियों की बात मैंने की है उनके पास चयन की सुविधा नही थी। परिणामस्वरूप यदि उनके संरक्षण <span id="7_TRN_12">प्रगतिशील हुएं </span>तो <span id="7_TRN_12">इसका </span>फायदा उन्हें मिलता था, अन्यथा वे घुटती रहती थी। परन्तु बाद में जैसे स्त्रियों ने पुरषो को अपनी रूचि अनुसार चुनना शुरू किया,स्थिति बदली। हलाकि स्थिति अब भी बहुत नही बदली है। आज जो लड़कियाँ लिखने पढ़ने से जुड़ती है, उनके लिए फ़िलहाल वातावरण बहुत अच्छा नही है। ऊपर मैने जिन- जिन <span id="7_TRN_12">संरक्षकों </span> की भूमिका के बारे में <span id="7_TRN_12">कहा </span>, वे अपने दौर के प्रगतिशील लोग थे। आज राज्याश्रय, <span id="7_TRN_12">धन्ना </span>सेठों का संरक्षण पाकर नए प्रभावी पुरुष साहित्य में महंत की भूमिका निभा रहे है। वे विभिन पत्रिकाओं <span id="7_TRN_12">के </span> वरिष्ठ संपादक हो गए है। हिंदी में जो <span id="7_TRN_12">आ</span>ए दिन ख़राब गोष्ठियाँ होती रहती है, वे <span id="7_TRN_12">इन्हीं </span> धन्ना सेठों और भ्रष्ट अफसरों के पैसों से होती <span id="7_TRN_12">हैं </span>। इस माहौल में <span id="7_TRN_12">नई </span>लेखिकाओं के <span id="7_TRN_12">प्रति </span> उनके <span id="7_TRN_12">उन्मुक्त </span> और उच्छृंखल <span id="7_TRN_12">व्यवहार </span> का अनुमान सहज लगाया जा सकता है। इस अर्थ में यह वास्तव में न सिर्फ उन नई लेखिकाओं को हतोत्साहित करना <span id="7_TRN_12">हुआ </span>, बल्कि एक <span id="7_TRN_12">तरह </span>से उन्हें खदेड़ना कहा <span id="7_TRN_12">जा </span>सकता है। थोड़ा बहुत लिखने के बाद अगर लडकिया गायब हो जाती है , भाग जाती है या लिखती <span id="7_TRN_12">हुई नही दिखतीं </span>तो इसका कारण यह है <span id="7_TRN_12">कि </span> इन्हे साहित्य के महंतो दवारा खदेड़ा गया है।<br /><br /> </span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- </span><span style="background-color: #ffd966; font-size: x-large;">क्या यह हिंदी की <span id="7_TRN_12">सामान्य </span> स्थिति है ? फिर, <span id="7_TRN_12">राज्याश्रय </span> या</span><span style="background-color: #ffd966; font-size: x-large;"> धन्ना सेठों से आपका तातपर्य क्या है।</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"> मै वर्ग शत्रु वाले विचार से बहुत सहमत नही <span id="7_TRN_12">हूँ </span>, क्योकि भारत की भिन्न वस्तुस्थिति है। हिंदी में भी हर स्थान पर एक तरह की हालत नही है, <span id="7_TRN_12">यद्यपि </span>समस्याऍ हर जगह बढ़ी है। दिल्ली की हालत तो और भी बुरी है। पटना इससे <span id="7_TRN_12"> बेहतर </span> है, <span id="7_TRN_12">वहाँ </span> महिला या लेखिकाओं का सम्मान दिल्ली से अधिक है |. <span id="7_TRN_12">संस्कृति </span> कर्म से जुड़ी महिलाओं के पार्टी पुरषो में एक आदर या सम्मान का भाव है वहाँ। इस अर्थ में पटना अधिक विकसित, अधिक प्रगतिशील है। <span id="7_TRN_12">लेकिन </span> दिल्ली एकदम अलग है। एक नई लेखिका के लिए तो यह जगह और भी कठिन है। आए दिन हम यह सुनते है <span id="7_TRN_12">कि </span> फलां लेखिका की जो महत्वपूर्ण कृति है उसके पुरष सहकर्मी ने लिखा है, या <span id="7_TRN_12">सहकर्मी द्वारा </span> न लिखी जाकर वह किसी प्रसिद्ध पुरष लेखक द्वारा लिखी गई है। ये भी कहा जाता है <span id="7_TRN_12">कि </span>कथित लेखिका इस प्रसिद्ध लेखक के शयनकक्ष से होकर आई है। ऐसी बाते पब्लिक स्पेस में खुले आम सुनने को मिलती है। कही कोई संकोच नही , कही कोई <span id="7_TRN_12">संवेदन</span>शीलता नही है। इस विकृत मानसिकता का क्या करे ?</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="background-color: #ffd966; font-size: x-large;">- क्या <span id="7_TRN_12"> इस </span>'विकृति मानसिकता' का विरोध नही किया जा सकता ? क्या इसकी आलोचना नही की जानी <span id="7_TRN_12">चाहिए ?</span></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"> स्त्रीवादी आंदोलन के आने से चीजे कुछ बदली है। इस <span id="7_TRN_12">तरह से व्यक्ति </span>के शोषण के खिलाफ नारीवादी सोच ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस आंदोलन ने यह बताया कि समाज में घटित उक्त लड़ाई <span id="7_TRN_12">पूरे </span> स्त्री समाज की सामूहिक लड़ाई है जिसमे सबकी साझेदारी <span id="7_TRN_12">होनी </span>चाहिए। संघ शक्ति का विकास नारीवादी आंदोलन ने किया है। संघ शक्ति बनाने की अवधारणा निश्चित रूप से मार्क्सवाद की ही अवधारणा है। फिर भी, स्त्रियों को एकजुट होकर संघर्ष करने की ये चेतना नारीवादी आंदोलन के कारण ही संभव हो सकी। इस <span id="7_TRN_12">अर्थ </span> ने स्त्री देह की अवधारणा <span id="7_TRN_12">भी </span> बदल दी है। जहाँ एक <span id="7_TRN_12">ओर</span> स्त्री की देह उसकी कमजोरी थी , <span id="7_TRN_12">वहाँ </span> अब इस आंदोलन ने इसका उसकी ताकत के रूप में प्रयोग सिखाया है। इस आंदोलन के माध्यम से स्त्रियों ने अपनी देह को एक पूँजी के रूप में देखना शरू किया है। यद्यपि मै मानती <span id="7_TRN_12">हूँ </span> कि यह भी एक किस्म का प्रतिक्रियावाद ही है, लेकिन प्रतिक्रिया व्यक्त करने की अपनी भूमिका होती है। जो स्वर पुरषो के <span id="7_TRN_12">व्यवहार </span> के विरुद्ध में उठ रहे है, उनका स्वागत होना चाहिए, <span id="7_TRN_12">उन्हें </span> प्रोत्साहन मिलना चाहिए।</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="background-color: #ffd966; font-size: x-large;"><span id="7_TRN_12">- स्त्रियों </span>के साथ होने वाले सुलूक को आपने <span id="7_TRN_12">स्वयं </span> देखा होगा। उसके आधार पर कुछ कहें।</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">लिखती हुई स्त्रियों को कई बार पुरषो <span id="7_TRN_12">द्वारा </span>शोषण के जाल में चालाकी से फंसाया जाता है। वे जिन वरिष्ठों का आदर करती है, जिन्हे पसंद करती है उन्ही की किसी <span id="7_TRN_12">व्यापक </span> योजना में फँस जाती है। पुरुष लेखक तमाम झांसे देकर स्त्री लेखको का शोषण करते है। मसलन, लेखक स्त्री रचनाकार को कहता है कि मेरे जीवन में बहुत परेशानियाँ है, मुझे आपकी हमदर्दी चाहिए। कोई <span id="7_TRN_12">कहता </span> है कि मेरा दांपत्य जीवन <span id="7_TRN_12">अव्यवस्थित </span> है। झूठ सच मिला कर जो तस्वीर <span id="7_TRN_12">पेश की</span> जाती है वह काफी दहलाने वाली होती है। अनुभव के अभाव में और सामाजिक परिवेश की जानकारी <span id="7_TRN_12">न </span> होने से स्त्रियां <span id="7_TRN_12">यकीन </span> कर लेती है और उलझ जाती है। यह एक किस्म का षड्यंत्र है जो निरंतर चलता है। इस संदर्भ में सबसे जयादा शोषण मध्यवर्ग की स्त्रीयो का होता है, क्योकि ख़ास अर्थ में वे सबसे अधिक दबी है। स्त्रियां इन पुरुषो के प्रति आकर्षित होती है और धीरे धीरे इस आकर्षण को प्रेम समझने लगती है। लेकिन वास्तव ने यह प्रेम नही है। विडम्बना यह है कि जब तक वे इस <span id="7_TRN_12">भ्रम </span> को पहचानती है तब तक उनका इस्तेमाल हो चुका होता है। इससे उनका रचनात्मक विकास बाधित होता है। अधिकांश लेखिकाएं इस प्रक्रिया में मोहभंग की स्थिति में आती है और कलम छोड़ कर घर बैठ जातीं है। अधिक मूलगामी और मुस्किल पक्ष यह है कि स्त्री और पुरुष के बीच नर मादा वाले रिश्ते के परे भी कोई बौद्धिक और आत्मिक संबंध संभव है, यह पुरुषो की समझ के <span id="7_TRN_12">परे</span> होता है। <span id="7_TRN_12">संभवतः </span> इसका संबंध पुरुष मानसिकता की संरचना से है। इस <span id="7_TRN_12">तरह </span>स्त्री लेखको के सामाजिक या सांस्कृतिक दायरे में कोई सुरक्षित कोना नही बचता। जो है, वह केवल दैहिक संबंध है। अंग्रेेजी में एक कथन चलता था : 'आल रोड्स लीड टू रोम ' . स्त्रियों के <span id="7_TRN_12">सन्दर्भ </span> ने इसे बदल कर कहा जा सकता है : ' आल रोड्स लीड टू रोम ' ! . यह स्थिति है, इससे कोई निस्तार नही है .!</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="background-color: #f1c232; font-size: x-large;">-ऐसा क्यों कहती है ? ' निस्तार नही है ' का क्या मतलब ?</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मतलब है। जितना दिखती है उनसे ज्यादा जटिल है चीजे। घर में रहे कर लिखने वाली स्त्रियों के पास अन्य दिक्क़ते भी है। जयादातर स्त्रियां नौकरी नही करती, करती भी है तो परिवार की बंदिशे उन पर हावी रहती है , जैसे उनके खिलाफ घेराबंदी की गई हो। उन्हें घर की पारम्परिक स्त्री-भूमिका के अतिरिकत भूमिकाए भी निभानी पड़ती है। उसके प्रति किसी की हमदर्दी नही रहती है। पुरुषो जैसे अधिकार, उनके जैसी सुविधाए पारम्परिक स्त्री को उपलब्ध नही है। उदाहरण के लिए, उन्हें अपने कागज छुपा कर संभाल कर रखने पड़ते है, ताकि उन्हें रद्दी के मोल बेच न दिया जाय। ट्रॉफिया बोरियो में या झोलों में छुपानी पड़ती है - माता, पिता या अन्य प्रियजनों की तस्वीरो के साथ। उन्हें कोई मिलने आया तो दिक्कत पैदा हो जाती है, घर का कामकाज रुकता है और माहौल अटपटा लगने लगता है। स्त्रीयों का अपना जीवन क्या हो सकता है, यह हमारा सामाज नही समझ पाता। कहाँ-कहाँ लिखती है स्त्रियां ! बाथरूम में, किचन में। बस, यह गनीमत है की कलम में घुंघुरू नही लगे होते, शोर नही होता लिखने का। फिर लिखे हुए को सुनाया किसे जाए ? पुरुष एक दूसरे से मिलते रहते है, एक दूसरे को राय से अवगत कराते रहते है। इस तरह पुरुषो का लेखकीय विकास होता है। स्त्रियां कहाँ, किसे सुनाए ? अब जाकर लेखिका संघ जैसी संस्थाए सुगबुगा रही है ?</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="background-color: #ffe599; font-size: x-large;">-यानी कोई समाधान नही है स्त्री होकर लिखने से जुडी समस्याओं का !</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">इसे सोचती हुँ तो लगता है की लेखिकाओं का एक कम्युनिटी सेंटर होना चाहिए, जहाँ वे बेधड़क जा सके, उठ बैठ सके, लिख सके, ताकि प्राइवेट स्फियर में जाकर यौन शोषण न झेलना पड़े उन्हें। पुरुषो का नजरिया दिमाग में रखे तो असल में, स्त्री का शरीर ही उसके शोषण की आधारभूमि है। स्त्री सम्बन्धी सारे अपराधो का निवेदन वही होता है - मारपीट, गाली -गलौच, यौन दोहन, ट्रैफिकिंग, वेश्यावृति , सती, पर्दा , डायन दहन , दहेज़ दहन , बलात्कार , संभोग प्रीतिहीन , भ्रूणहत्या , साफ सुथरे , सुरक्षित प्रसव का अभाव। … ! इससे औरतों की लड़ाई संघन हो जाती है। स्त्रीयो का संघर्ष पुरुषो से ही कमतर नही बल्कि अतिरिक्त ही है। भूमंडलीकरण के खिलाफ संघर्ष है, विपन्नता का संकट उन्हें नही है। बाजार का, वयवसाय का, रोजी रोटी का , परिवार चलाने आदि का दबाव उन पर उतना ही है जितना पुरुषो पर। इसके अतिरिक्त देह को लेकर एक अतिरिक्त संघर्ष उन्हें झेलना पड़ता है।</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: #ffd966; font-size: x-large;">-सामाजिक या परिवारगत हिंसा को आप क्या कहेंगी ?</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मसलन, दंगो का सन्दर्भ ले। यह वास्तव में पुरुषो के बरगलाने की वजह से हुआ। पुरुषो ने सामाजिक मिथक गढ़े और किन्ही हितो की पूर्ति के लिए धर्म , परम्परा , आदि अमानवीय और विकृत पक्षो का प्रचार किया। साथ ही पुरुषो ने झूठ की संस्कृति का बढ़ावा दिया। इसका शिकार औरतें हुई। दंगो के दौरान होने वाली हिंसा से औरतें अछूती कहाँ रहीं ? हलाकि बड़े पैमाने पर जो नृशंस हत्याए हुई, उनमे उनकी कोई भूमिका नही रही। इसकी तरफ सास की भूमिका को लेकर भी स्त्री पर आरोप लगते है। मेरी समझ से यह पितृसत्ता दवारा उत्पन असुरक्षा की वजह से है। जब तक यौवन है, औरत को तरजीह मिलती है। यौवन के ढ़लान पर असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है। समय की साथ और बढ़ते दबावों के प्रभाव में स्वयं औरत पारिवारिक हिंसा में शामिल हो जाती है। औरतों को , और खास तौर पर लेखिकाओं को इन प्रवर्तियों के मूल में जाना होगा और कारगर तत्वों की पड़ताल करनी होगी , ताकि पितृसत्ता का एजेंट न बनाई जाती रहे अशिक्षा/ कुशिक्षा की शिकार बुजुर्ग और अन्य स्त्रियां ।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: #93c47d; font-size: x-large;">-क्या विधाओं के चुनाव में स्त्री होने की भूमिका होती है ? मसलन , कुछ ऐसी चीजे है जहाँ स्त्रियां कलम चलाने से बचती है। कुछ ऐसी विधाएँ जिनसे बचा जाना आवश्यक लगता है। ऐसा है क्या ?</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">उपन्यास स्त्रियां कम लिखती है। वे प्राय : कविताए लिखती है | इसका बड़ा कारण कविता का फार्म है। कविता एक सांकेतिक या छोटी ,और किंचित अप्रत्यक्ष विधा है | अपने अनुभवों को बिंंबो और प्रतीकों के माध्यम से स्त्रियां व्यक्त कर लेती है। सीधे व्यक्त करना उतना आसान नही स्त्रियों के लिए। कविता एक फ़्लैश में आती है। दो और तीन बैठको में कविता पूरी हो जाती है। उंपन्यास लिखने की परिस्थितियां भिन्न है। वहाँ एक तरह की लगातार और लंबी कोशिश चाहिए। स्त्रियों के पास सामाजिक अनुभवों से रूबरू होने के अवसर कम नही है, लेकिन उनकी भौतिक परिस्थितियां एकदम अलग है। समय की मुश्किल तो है ही , अनुभवों को तरतीब देने वाले विचार साक्षात व्यक्त हो तो सेंसर की कैंची भी तेज चलती है - कही राजनितिक, पारिवारिक -सांस्कृतिक सेंसर रंग दिखाते है तो कही आत्मसेंसर का 'नेक लड़की सिन्ड्रोम ' हाथ रोक लेता है कि आपबीती जगजाहिर कैसे करे, अपनो की कलई कैसे खोले। 'दुश्मन ' के भी बाल-बच्चे है, उन पर क्या बीतेगी, आदि द्वंद उन्हें आत्मसंसेर का शिकार बनाते है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="background-color: #ffd966; font-size: x-large;">-और लंबी कविताएँ ?</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">लंबी कविताएँ भी स्त्रियां कम लिखती है। यहां भी उपन्यास जैसी दिक्कत है। लंबी कविताओं में मिथको का इस्तेमाल होता है। मिथको की नई व्याख्या होती है। व्याख्या का सीधा रिश्ता समकालीन समाज अथवा माहौल से होता है। इससे चीजें मूर्त होने लगती है और तरह तरह के द्वन्द होने लगते है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: #ffd966; font-size: x-large;">-स्त्रियों के लिए आलोचना में कितना हस्तक्षेप हो सकता है।?</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">एक तरह से कहे तो आलोचना के लिए व्यक्तित्व में जिस आत्मविश्वास की जरुरत होती है , उसका अभाव नारी लेखन में जरूर देखता है। बावजूद इसके मै यह नही मानती कि स्त्रियों में आलोचकीय मेधा नही है। निर्मला जैन, अर्चना वर्मा , मृणाल पांडे, क्षमा शर्मा , रोहिणी अग्रवाल और हेमदत्ता माहेश्वर के हस्तक्षेप से बहुत साकारात्मक उम्मीद बनी है। इस बात से जुड़ा एक दूसरा पहलु भी है। वह है संस्थानों के केन्द्रो में स्त्रियों का न होना। एक स्त्री संस्थान में पहुँचती भी है तो पुरुष लेखको की सामूहिक सक्रियता से सामने असहाय हो जाती है। वह इस या उस की पिछलग्गू बनने को मजबूर होती है। संस्थान में होने का अर्थ है पावर के निकट होना। स्त्रियों की ताकत पुरुषो के लिए चुनौती बन सकती है और उन्हें आतंकित करती है। सांस्थानिक ढांचा टूटे या कमजोर हो तो संभवतः औरतो में कुछ आत्मविश्वास पैदा हो | रचना की दुनिया में आलोचक लेखक का बड़ा भाई होता है। वह सही गलत का निर्णय करता है। और लेखक पर अधिकार जमता है। वर्तमान समय में सत्ता संस्थानों में सक्रिय लोगो को प्रामाणिक माना जा रहा है, यह दुर्भागयपूर्ण है। स्त्रियां इस क्षेत्र में पिछड़ रही है, यह सही है।</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: #ffe599; font-size: x-large;">- स्त्रियों से और विशेष रूप से युवा लेखिकाओं से बात करते समय पुरुष अनेक बार द्विअर्थी वाक्यो और संवादों का इस्तेमाल करते है। क्या आपको इसका अनुभव हुआ है?</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">निश्चित रूप से हुआ है। स्त्रियों की रचनात्मक प्रतिभा को गंभीरता से नही लेने का प्रचलन है। जब कोई स्त्री कविता पढ़ने के लिए खड़ी होती है तो उसकी कविता के विषय में बात होने की बजाय उसके दैहिक आकर्षण , उसकी चाल, उसकी आवाज की तारीफ होती है। क्या इन चीजो से कविता का कोई रिश्ता है ? मातृत्व से आपूर्ण बड़ी उम्र की स्त्रियों को जब यह सब सुनना पड़ता है तो नई लड़कियों की क्या स्थिति होगी , इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है | युवा लेखक तो फिर भी अदब और तमीज से पेश आते है, वरिष्ठों का व्यवहार तो महंतो जैसा होता है। वह कहते है -"अरे , तुम मिलती ही नही हो! इधर दिखाई नही देती?" क्यों मिले ? हमसे पहले जो मिली, उनका क्या हश्र हुआ , यह वे हमे अच्छी तरह बता -समझा चुकी है ! स्त्रियाँ यह भी समझती है कि इन बातों का असली अर्थ क्या है। स्त्रियों की छठी इंद्रिय बहुत सशक्त होती है। वे इन द्विअर्थी बातो की पेंच बहुत आसानी से समझ लेती हैं। </span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">मेरा तो मानना है कि साहित्य में 'तीखी आलोचना ' अगम्भीर या झूठमूठ की प्रशंसा से बेहतर है, क्योकि 'तीखी आलोचना ' में कम से कम विवेक तत्व का इस्तेमाल होता है, और एक निस्संगता होती है। पर आलोचना का आधार 'पाठ ' होना चाहिए। जो बात कही जा रही है - तर्कसम्मत ढंग से और परिष्कार की मंशा से की जानी चाहिए !</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="background-color: #f9cb9c; font-size: x-large;">-लेखिका के साथ-साथ आप अध्यापन भी करतीं है और गोष्ठियों -बहसों में भी आपकी प्रभावी शिरकत होती है। इस प्रक्रिया में कुछ ऐसा देखने को मिला है जिसे आप युग परिबोध के पाठको से साझा करना चाहे ?</span></div>
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<span style="background-color: #f9cb9c; font-size: x-large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मै कभी-कभी डायरी भी लिखती हूँ जहॉ विशेष घटनाएँ और अनुभव दर्ज कर लेती हूँ| जो संवाद या टिप्पणी सुनती हूँ इन्हे इनवर्टेड कोमाज में लिखती हूँ। एक दो बार जब मै किसी पुरुष लेखक के साथ गोष्ठी में पहुँची तो वहाँ एकत्र लेखकों ने इसे दिलचस्पी से नोट किया। एकाध ने बाद में कोशिश की कि मै उनके साथ भी गोष्ठियों में जाऊ। जब यह न हुआ तो उन्हें बुरा लगा। कुछ ने अपने असंतोष का कमोबेश इजहार नही किया। स्त्री के व्यवहार का एक मामूली पक्ष व्यापक साहित्यिक दुनिया की गैरमामूली चिंता का विषय बना। यह घटना आज के नारी-विरोधी रवैये को साफ़ तौर पर सामने लाती है। इकबाल ने जो बात मनुष्य मात्र से कही थी, स्त्रियाँ पुरुषो से कहना चाहती है : ' खुदी को कर बुलंद इतना की हर तकबीर से पहले/खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है ?" खुदा और बंदे का रिश्ता नही जानती औरत , मगर यौनेतर, निरपेक्ष दोस्ती का रिश्ता तो चाहती है। पहले इस लायक तो हो जाइए की स्त्री आपके साथ आश्वस्त और सुरक्षित महसूस करे , उसे ऐसा लगे की वह 'मनुष्य ' के साथ जा रही है, 'मर्द' के साथ नही जो कभी भी उस पर झपट सकता है या उसके साथ लटपट बतिया सकता है। धीरे - धीरे यह स्थिति भी आएगी की वह आपको खुद फ़ोन करे ले : "गोष्ठी में चले ?"</span></div>
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<span style="background-color: #ffd966; font-size: x-large;">-आज से लेखकीय और व्यापक सांस्कृतिक माहौल में लेखिकाएँ काफी कुछ सहने को बाध्य है। इससे उनकी रचना किस तरफ प्रभावित होती है।</span></div>
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<span style="font-size: large;">मुझे लगता है की सहिष्णुता लड़ाई का पहला चरण है। जब कोई सह रहा होता है तो वह बह रहा होता है | तरह -तरह के भावो-विचारो में जब्त कर रहा होता है बाते, रणनीतियाँ गढ़ रहा होता है, प्रतिकार -शक्ति का संचयन कर रहा होता है। सहना लड़ाई का हिस्सा है। कलम दुनिया का सबसे पैना हथियार है | शब्दों के सहारे, शब्दों के माध्यम से माहौल में सक्रिय विचारो और मूल्यों पर टिप्पणी करना रचना का आवश्यक कर्म है। स्त्रीयों का लिखना वास्तव में इसी लड़ाई का, इसी कर्म का जरुरी हिस्सा है। आप देखिए कि स्त्रियों का जो लेखन है वह 'सवांदपरक' है। वहाँ परस्पर बहस और सवांद की बहुत संभावनाएं है। यह एक मनोवैज्ञानिक लड़ाई है तो पुरुषों और पुरुषविशेष के विरुद्ध न समझ कर पितृसत्ता के खिलाफ समझना चाहिए।</span></div>
<br />
<br />
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<br />
साभार युगपरिबोध पत्रिका<br />
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<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><i>परिचय<br /><br />----------------<br /><br />१७ अगस्त १९६१, मुजफ्फरपुर (बिहार)</i></span><br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><i>दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए, पी.एचडी.</i></span><br />
<b>कविता संग्रह </b>: गलत पते की चिट्ठी, बीजाक्षर, अनुष्टुप, समय के शहर में, खुरदुरी हथेलियाँ,डूब धान .<br />
<b>आलोचना :</b> पोस्ट -एलियट पोएट्री, स्त्रीत्व का मानचित्र , तिरियाचरित्रम, उत्तरकाण्ड, मन मांजने की जरुरत, पानी जो पत्थर पीता है .<br />
<b>शहरगाथा: </b>एक ठो शहर, एक गो लड़की<br />
<b>कहानी संग्रह: </b>प्रतिनायक<br />
<b>उपन्यास</b> :अवांतरकथा, पर कौन सुनेगा, दस द्वारे का पिंजरा, तिनका तिनके पास<br />
<b>अनुवाद:</b> नागमंडल (<i>गिरीश कर्नाड</i>), रिल्के की कवितायेँ , एफ्रो- इंग्लिश पोएम्स, अटलांट के आर-पार (<i>समकालीन अंग्रेजी कविता</i>), कहती हैं औरतें ( <i>विश्व साहित्य की स्त्रीवादी कविताएँ</i> )<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglam5W9jfHctxyUGTT5xXvUVavBQf_N-8fO0YZMf95kegdnF9ePgb5ansnAhIKVJpnrxpho1bZjgwynCR07JE56xAzbQ4UpbYliPArw9xDgdwhNJexepv00-aB23XfQws6sQNJaNSgF8U/s1600/anamika_01.png" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglam5W9jfHctxyUGTT5xXvUVavBQf_N-8fO0YZMf95kegdnF9ePgb5ansnAhIKVJpnrxpho1bZjgwynCR07JE56xAzbQ4UpbYliPArw9xDgdwhNJexepv00-aB23XfQws6sQNJaNSgF8U/s1600/anamika_01.png" /></a><b>सम्मान:</b> भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, राष्ट्रभाषा परिषद् पुरस्कार , गिरिजाकुमार माथुर पुरस्कार,<br />
ऋतुराज सम्मान और साहित्यकार सम्मान<br />
<b>सम्प्रति:</b> अंग्रेजी विभाग, सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय</div>
shobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-41352453715323657912015-05-10T11:52:00.000+05:302015-05-10T12:27:51.122+05:30माँ की दुनिया की कहानियाँ- संतोष दीक्षित <br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjT_34GAyrf4012TRyQUDiD3XAN9UFZZuDqc4Dauw-leW3iR8vNBVUVePoRVvxIvmnowdz90quAX62070ZIKl_IiDnS6MWYeWCDJN6NDkDvnjUFo62vu9_hho5D-Gxhi1etFV1BzKl4Vcc/s1600/amma-225x300.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjT_34GAyrf4012TRyQUDiD3XAN9UFZZuDqc4Dauw-leW3iR8vNBVUVePoRVvxIvmnowdz90quAX62070ZIKl_IiDnS6MWYeWCDJN6NDkDvnjUFo62vu9_hho5D-Gxhi1etFV1BzKl4Vcc/s640/amma-225x300.jpg" width="480" /></a></div>
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<span style="background-color: #fce5cd; font-size: large;">माँ की दुनिया की कहानियाँ<br /><br />------------------------------------</span><br />
<span style="font-size: large;">एक: पहला चाँटा</span><br />
<span style="font-size: large;">-------------------</span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>चार वर्ष का होने तक मैं माँ का दूध पीता रहा था। जैसी कि उन दिनों घर की हालत थी, माँ भी ठीक वैसी ही थी। यानी कि दुबली पतली और पीली सी। पेट भर अनाज भी नसीब नहीं होता था उसे हर दिन। दूध, मलाई की जगह दूध वाली चाय पी लेती थी सुबह शाम, सबके साथ। फिर भी माँ हमेशा हँसती रहती। ‘‘अरे मेरे लाल ऽ... मेरा बच्चा ऽऽ ...’’ कहकर सदैव पुचकारती रहती। मेरे ज्यादा रोने या जिद करने पर पाँच मिनट सुस्ताने के नाम पर बाहर बारामदे में बैठ जाती और मुझे छाती से चिपका लेती। तीन चार मिनट बीतते न बीतते माँ की छातियों से दूध रिसना बन्द हो जाता। लेकिन मैं भी इतना सीधा सादा और संतोषी था कि दुबारा दूध रिसने के इन्तजार में माँ के स्तन से ही खेलने लगता। तभी तो माँ ने बहुत सोच विचारकर ‘धीरज’ नाम रखा था मेरा।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मैं माँ के स्तन पर मुँह से बुदबुदाती ध्वनि निकालते हुए ऊंगलियों से बना स्कूटर दौड़ता तो कभी मोटरकार। हवाई जहाज तक उड़ाने और उतारने का मजा ले लेता मैं यूंही खेलते हुए। माँ को फुर्सत में बैठी देख अबतक दो एक पड़ोसिनें बारामदे में जम ही जातीं। तब तो मेरी चाँदी हो जाती। इधर मैं अपने खेल की विधिवता में निमग्न हो जाता उधर माँ बतकही और निन्दा रस मंे आकंठ डूब जाती। कुछ धूल उड़ती रहती, कुछ कारवां बढ़ता रहता।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लेकिन बीच-बीच में मुझे ऐसा लगता जैसे माँ थोड़ी असहज हो जाती हो। उसकी आरामदायक स्थिति में थोड़ा विध्न पड़ता और तब वह मुझे झकझोरकर मेरी यथास्थिति से बाहर ढ़केल देती। फिर सबकुछ सामान्य हो जाता।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>इसी क्रम में एक दिन जाने क्या हुआ कि माँ ने मुझे अकस्मात एक चांटा जड़ दिया। नहीं ... चांटा जड़ने से पहले उई माँऽ ... की हल्की चीख भी निकली थी माँ के कंठ से। चांटा जड़ने के बाद एकदम से बड़बड़ाते हुए मुझे अपनी गोद से परे जमीन पर लुढ़का दिया और मेरे लिए कुछ कठोर शब्दों की वर्षा करने लगी। यह सब कुछ अकस्मात ही घटित हुआ। मैं अचानक हुए इस आघात से हतप्रभ तो था ही माँ द्वारा यूं कठोरता बरतने पर और भी विचलित हो उठा और लगा पैर पटक-पटक कर रोने और चीखने चिल्लाने।<br />
मेरे इस कृत्य से माँ का गुस्सा और भी भड़का दिया और उसने ‘‘यह ले ... और ले ... शैतान... हरामी कहीं काऽ...’’ की क्रुद्ध वाणी के साथ दो चार हाथ मेरी पीठ और कमर पर भी जड़ दिये।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लेकिन उन दिनों मैं धीरज कुमार के साथ-साथ जिद्दी कुमार भी था। ‘‘दुध्धु उ ...<br />
दुध्धु उ उ ...’’ की रट तब भी लगातार लगाए जा रहा था। हाथ पैर पटकना भी बदस्तूर जारी था। थक हारकर उस दिन माँ ने पुनः मुझे अपनी छाती से सटा लिया।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>इसके अगली बार से माँ ने पता नहीं क्या किया कि मैं मुँह लगाता नहीं कि फौरन हटा लेता। इतना कडु़वा और कसैला। अमृत की जगह विष। नहीं, विष नहीं, मुसब्बर! माँ अपनी एक पड़ोसन की सलाह पर मुसब्बर का इस्तेमाल करने लगी। इसके बाद तो मैं भी पीतल की छोटी गिलसिया से दूध पीना सीखकर माँ का राजा बेटा बन गया।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आप सोचते होंगे, इतना सब मुझे याद कैसे है ? ... इतनी कम उम्र की बातें !<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>दरअसल यह सारी राम कहानी स्वयं माँ ने ही सुनायी थी मुझे और सुनकर मेरा सारा गुस्सा और तनाव एक क्षण में काफूर हो गया था। दरअसल उस दिन खेलकर लौटने में थोड़ी देर हो जाने के कारण बाबूजी ने गाल पर तमाचा जड़ दिया था क्योंकि मेरी सालाना परीक्षा सर पर थी। इसके चलते मैं बहुत क्रोध और तनाव में था कारण कि मेरा रिजल्ट अब तक कभी खराब नहीं हुआ था।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आज यह सब याद करते हुए तब से ये यही सोच रहा हूँ कि आखिर कितनी समृद्ध थी माँ कि उसके पास हर बुरे और खुरदरे वक्त के लिए गहरी आत्मीयता से भरा एक कोमल सा किस्सा होता था।<br />
<br />
<br />
<br />
<span style="background-color: #f9cb9c; font-size: large;">दो: पहला प्यार<br />------------------</span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पता नहीं माँ का स्वभाव ऐसा क्यों था ? वह बाबूजी से अपने लिए कभी कुछ नही मांगती। बाबूजी को कभी-कभी क्रोध भी आ जाता इस बात पर-’’साड़ी में चार जगह पैबन्द लगाकर पहन लेगी, मगर होंठ से दो बोल नहीं निकालेगी हरमजादी ...।’’<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लेकिन हम बच्चों की किसी वाजिब जरूरत पर माँ क्रुद्ध शेरनी की तरह भिड़ जाती थी बाबूजी से और अपनी बात मनवा कर ही दम लेती। ऐसे ड्रामें का अंत यही होता कि बाबूजी जेब से रूपये निकाल फर्श पर फेंक देते और फर्श पर गिरे इन्हीं रूपयों के बीच माँ की क्षत-विक्षत देह भी भू लुंठित पड़ी मिलती।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>ऐसी ही एक शाम जब मैं खेल के मैदान से घर पहुँचा, माँ फर्श पर लुढ़की पुढ़की पड़ी मिली। उसकी कलाइयों से खून रिस रहा था और फर्श पर रूपयों के साथ-साथ माँ की चूडि़यों को टुकड़े भी छितराए पड़े थे।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मैंने बड़ी मुश्किल से माँ को उठाकर चैकी पर बिठाया। फिर उसकी कलाई पर रूई के फाहे से डेटाॅल लगाया। माँ की चोट अंदरूनी थी। मारे दर्द के वह बोल तक नहीं पा रही थी।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मैंनेझट स्टोव जलाकर चाय का पानी चढ़ाया। फिर दौड़कर बगल की मौलवी की दुकान से दो डंडा बिस्कुट और वेदना निग्रह रस की एक पुडि़या ले आया।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>स्कूल जाने के रास्ते में जगह-जगह दिवारों पर लिखा पढ़ता जाता था-वेदना निग्रह रस, दर्द से फौरन निजात पाने के लिए।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>चाय के साथ वेदना निग्रह रस की पुडि़या, डंडा बिस्कुट और एक गिलास ठंडा पानी भी।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>माँ के लिए आज अभी मैंने वही सब कुछ बिल्कुल उसी तरह किया था, जैसे औरों के लिए रोज रोज कई कई दफे करती थी मां। सिर्फ वेदना निग्रह रस की पुडि़या एक अतिरिक्त प्रयास था मेरी ओर से।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>चाय के साथ डंडा बिस्कुट और दवा लेने के कोई पन्द्रह मिनट बाद माँ के बोल फूट सके-‘‘तुझे कैसे मालूम इस दवा के बारे में ?’’-माँ के चेहरे पर एक सुखद आश्चर्य का भाव था।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>‘‘पढ़ के जानाऽ ... और कैसे जानता ?... जगह-जगह दिवालों पर लिखा रहता है इसके बारे में।’’ मैंने पूरी सावधानी से यह वाक्य पूरा किया नहीं कि माँ ने एकदम फौरन से पेश्तर ‘‘हाय रे मेरा पढ़ा लिखा लाल...’’ कहकर मुझे अपनी छाती से भींच लिया।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सच कहता हूँ, जो स्थिति थी माँ की, घर की, मैं प्यार पाकर उतना खुश नहीं था, जितना कि प्यार लुटाकर माँ खुश और संतुष्ट नजर आ रही थी।<br />
<br />
<span style="background-color: #f9cb9c;"><br /></span>
<span style="background-color: #f9cb9c;"><span style="font-size: large;">तीन : पहला पाठ </span></span><span style="background-color: #f9cb9c;"><span style="font-size: large;"><br />--------------------</span></span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उस मोहल्ले में माँ बहुत लोकप्रिय थी, जहाँ वह किरायेकी एक कोठरी लेकर बाबूजी के संग रहती थी। पास-पड़ोस की तमाम नववधुएँ एवं उनकी ननदें, सब दोपहर के बाद माँ के इर्द-गिर्द ही जमी रहतीं। पाक कला, सिलाई, कढ़ाई से लेकर बोलने का सउर तक, सबकुछ सिखलाती उन्हें माँ हँसते बोलते और बतकही के रस में डूबते उतराते।<br />
लेकिन एकदम अकेले में अजीब तरह की ठंडी सांसे छोड़ते हुए, कलपते देखा है कइ्र्र कई बार माँ को। खीरी लखीमपुर, लखनऊ और कानपुर जैसे शहरों के लिए ... जहाँ बचपन से लेकर युवा होने तक का समय गुजारा था माँ ने। हरदोई से लेकर बनारस के बीच के सारे शहर उसे मुंहजबानी याद थे। हर शहर में कोई न कोई रिश्तेदार और उनके यहाँ अवसर विशेष पर माँ के जाने और चन्द दिन गुजारने के वो तमाम खुशगवार पल। इन तमाम स्मृतियों को अपने आँचल की खूंट में बांधकर लायी थी माँ अपने मायके से। यही उसका स्त्री धन था ... उसके अतीत का चलचित्र ...।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>माँ के पास इन तमाम शहरों से जुड़े इतने दिलचस्प यात्रा स्ंस्मरण थे कि इन्हें बीसियों दफा सुनते सुनते ये तमाम शहर मेरी स्मृतियों में किसी धरोहर की तरह बस चुके थे। इनमें से अधिकांश शहरांे में मैं कभी नहीं गया, लेकिन जानता हूँ स्टेशन से बाहर का नजारा कैसा होगा, क्या सब मिलेगा देखने को और एक खास मोहल्ले में जाने का रास्ता क्या होगा ... इसके बीच क्या क्या पड़ेगा ... वगैरह ... वगैरह।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>माँ जिस दिन भी अपनी इन सघन स्मृतियों की छांह में विचरती रहती हम सभी भाई बहन कहते रहते-‘‘माँ आज यूपिआई हुई हैं।’’<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लेकिन याद है एक घटना कानपुर की। माँ अपने मायके आयी हुई और अपने भाइयो, बहनों और सहेलियों के साथ सारे दिन मगन रहती थी। तरह-तरह के किस्से, हंसी मजाक, खाना-पीना ... बस यही दिनचर्या थी माँ की। इन सबों के बीच मैं अपनी बोली बानी के साथ ‘बिहारी राजा’ का खिताब पता और अगल-बगल के जिस घर में भी जाता, ‘आ गवा बिहारी’ कहकर मेरा जोरदार स्वागत होता। माँ को यह अच्छा नहीं लगता फिर भी मुस्कुराती। लेकिन सच तो यह है कि विशेष तवज्जो दिये जाने के कारण मैं भीतर से फ£ महूसस करता।<br />
ऐसे ही सौहाद्रपूर्ण पारिवारिक माहौल के बीच एक दोपहर यूपी और बिहार को लेकर थोड़ी छींटाकशी हो गई। थोड़ी कहासुनी बढ़ी और देखते ही देखते यह एक तीखी बहस में बदल गई।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>और उस दिन मैंने आश्चर्य और श्रद्धा के साथ माँ का एक नया रूप देखा। अपने तमाम ठोस तर्कों के साथ विपक्षियों को तुर्की ब तुर्की जवाब देती बिहार की यह बहू खड़ी थी बिहार के पक्ष में। बिहार राज्य के बारें में इनती ढेर सारी सूचनाएँ और पटना शहर के बारें में इतनी ठोस जानकारियाँ ... मैं सचमुच दंग था माँ की ऐसी प्रतिभा देखकर।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उस दिन तमाम उपस्थित लोगों नेे अंत में एक ही वाक्य कहा-‘‘बिटिया अब परायी हो चुकी हैं।’’<br />
मैंने आश्चर्य से गर्दन घुमाकर माँ की ओर देखा। वह ऐसा ताना सुनने के बाद भी खुश थीं।<br />
<br />
<span style="background-color: #f9cb9c; font-size: large;">चार: माँ के साथ खेल<br />-----------------------</span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जब मैं छोटा था तभी से माँ मुझे दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत लगती थी। जब किशोर वय का हुआ, तब भी मेरे खयालात कुछ कुछ ऐसे ही थे। बल्कि कहूँ कि थोड़े विशिष्ट संस्कार ले चुके थे। जैसे कि मेरी माँ की नाक मुझे बहुत लुभाती। लेकिन सबसे ज्यादा आकर्षित माँ के पैरों की पूरी बनावट करती। खासकर पर्व त्योहार के दिन जब माँ अपने इन गोरे सुडौल पैरों का बिछिया आलता और पायल के साथ श्रृंगार करती। तब मैं अक्सर माँ को उलाहना देता-‘‘एक तेरा पैर है ... इतना सुडौल ... एक मेरा है।’’<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>तब माँ ध्यान से मेरे पैरों को देखती जिसकी कई कई ऊंगलियाँ ठेस लगते रहने से थोड़ी विकृत और खुरदरी थीं। बायें पैरे के अंगूठे का नाखून तो और भी भद्दा था।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>‘‘तेरे पैर सच में मर्द के पैर है।’’ <span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>माँ तारीफ करती तो मैं उसे मुंह चिढ़ाकर भाग जाता-‘‘नहीं ... मर्द नहीं बनना है मुझे ... खबरदार जो मर्द कहा मुझे ...!’’<br />
जब मैं काॅलेज आने जाने लगा, किसी खूबसूरत लड़की पर नजर पड़ती नहीं कि फिसलकर फौरन उसके पैरों पर चली जाती। पैर अगर माँ के पैरों की बनावट के कहीं आस पास भी टिकते, तभी दुबारा उसका चेहरा देखता अन्यथा सर झुकाकर आगे बढ़ जाता।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अपने ट्यूशन की पहली आमदनी से मैं माँ के लिए एक खूबसूरत सैंडिल खरीद लाया। माँ कैसी तो बेढं़गी किस्म की चप्पलें पहना करती थी जिससे मुझे काफी खीझ होती थी। सैंडिल देखकर माँ बहुत खुश हुई। बोली कि रख लेती हूँ इसे बहुरिया के लिए। आएगी तो दाद देगी तुम्हारे पसंद की।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>‘‘यह तुम्हारे लिए है य’’-मैंने ... दृढ़ शब्दों में कहा।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>‘‘अरे मैं कहाँ ... इसके लायक सूट भी तो चाहिए या कोई अच्छी साड़ी।’’<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अगले महीने मैं सूट का कपड़ा ले आया। फिर मेरी नौकरी हो गयी। मैं माँ से दूर चला गया, दूसरे शहर। फिर मेरी शादी की बात चलने लगी लेकिन इसके पहले ही माँ अचानक चल बसी। चल बसी तो क्या ? कोई दूर थोड़े न चली गयी थी। और करीब आ गया था उसका गोल सा चेहरा और खड़ी नाक। और उसके वह पैर ... जिनपर अपना सर टिकाकर मैंने उसे अंतिम विदाई थी, उसकी वह<br />
लम्बी पतली ऊँगलियाँ और उनकी बगल में थोड़ा मोटा और नाटा सा, किसी सेठ की कोठी के बाहर खड़े गोरखा पहरेदार सा वह अंगूठा ... यह सब मेरी जेहन में ज्यों के त्यों सुरक्षित पड़़े थे।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मेरी शादी के लिए रिश्ते लगातार आ रहे थे। तस्वीर देखकर मैं किसी लड़की को पसंद कर लेता। लकिन जब प्रत्यक्ष देखता तो ...! तीन सुन्दर लड़कियाँ मैंने केवल इसलिए छाँट दी, क्योंकि मुझे उनके पैर जरा भी नहीं जँचे। फिर मैंने एक लड़की पसंद कर ली। उसके पैर माँ के पैरों से भी ज्यादा गोरे, सुडौल और आकर्षक थे। उसके दाहिने पैर के अंगूठे के नीचे काजल के टीके की तरह एक काला दाग था। जैसे प्रकृति ने ही बुरी नज़र से बचने को उपाय रच दिया हो। मैं मुग्ध भाव से सर झुकाए इन पैरों को निहारता ही रहागयाथा ...। मैं इतराता और मटकता फिर रहा था अपनी इस पसंद पर।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बहू के घर आने पर महिलाओं के बीच चल रही बतकट्टी के कुछ अंश मेरे कानों तक भी पहुँचे। मेरी मौसी मेरी बुआ से कह रही थी-‘‘अभी कमला (मेरी माँ) रहती तो क्या ऐसी ही<br />
बहुरिया इस घर में आती ? बेचारा टूअर ... जाने क्या देखा इसमें जो सीधेे हाथ पकड़ घर ले आया।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अचानक मेरी नजर कमरे की दिवाल पर अंटक गई। वहाँ माँ की तस्वीर थी ‘‘उसकी जवानी का मुस्कुराता खिलखिलाता चित्र। मुझे लगा उस चित्र में मौजूद मेरी माँ मुझे जीभ बिराकर चिढ़ा रही है। ठीक वैसे ही जैसे बचपन में गर्मियों की लम्बी दोपहर मंे लूडो के खेल में मेरे हार जाने पर माँ मुझे जीभ बिराकर चिढ़ाती थी। और तब मैं दांत पर दांत चढ़ाकर किटकिटाते हुए चैलेंज करता कि अच्छा अबकी बार जीतकर दिखलाओ तो जानूं। ओर इस तरह यह खेल वर्षो चालू रहा। कभी माँ मुझे चिढ़ाती कभी मैं।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>‘‘ठीक है कहने दो लोगों को कुछ भी लेकिन उसके पैर तुम्हारे पैरों से ज्यादा खूबसूरत हैं ... समझी।’’ उस एकांत कमरे में माँ को सम्बोधित करते हुए मैंने भी उसे जीभ बिराकर चिढ़ाया।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>माँ के साथ खेल का अंत यहीं पर हो गया।<br />
<br />
<span style="background-color: #fce5cd; font-size: large;">पाँच: माँ के रूप हजार<br />-----------------------------</span><br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>माँ का यह रूप मेरे लिए सर्वथा अकल्पनीय था।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पूरे सात वर्ष गुजर चुका था माँ के साथ।उसके तमाम दब्बूपन और आज्ञाकारिता का मैं सबसे बड़ा गवाह था। गवाह था उसके पिटकर रोने और फिर आँसू पोंछ झटपट रसोई घर में सक्रिय हो जाने का।<br />
लेकिन आज उसी माँ के इस नए संस्करण को देख मैं भांैचक था।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>‘‘नया नहीं है ये बुद्धू ... यही पुराना है। पुराना और स्वाभाविक रूप। दरअसल यही और ऐसी ही एक मुक्कमल लड़की थी मैं जो तुम्हारे पिता के घर एक पत्नी, बहू और जाने क्या क्या बन कर कई कई टुकड़ों में बँट गई हूँ।’’<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>यह माँ ने उस रात बताया था। अपने पिता के घर में। मैं नानी की गोद में बैठा था। नानी स्नेह और लाड़ मिश्रित स्वर में माँ को बुरा भला कहती हुई मेरी कमर में सरसों तेल की मालिश भी करती जा रही थी।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>माँ दिन भर साइकिल के आगे के डंडे पर मुझे बिठाकर जाने किन-किन सहेलियों के घर घुमाती रही थीं। हर जगह भरपूर प्यार, दुलार और टाॅफी मिठाई। सारे दिन मस्ती करता रहा मैं। लेकिन रात में मामूली से कमर दर्द की शिकायत पर माँ का पुरा कुनबा जुट गया था मेरी तीमारदारी में।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>और माँ ... वह बगल में बैठे भाई बहनों से गप्पें लड़ाने में मशगूल थीं। बीच बीच में नकली गुस्सा भी करतीं मुझपर-‘‘एक नम्बर का पाजी है यह और अव्वल बहाने बाज भी। इतनी सेवा हो तो किसकी कमर में दर्द न उठे भला .......... ? अब कल से बैठना तुम घर में ही, नानी माँ के पास ...मैं नहीं लेकर जानेवाली तुमको कहीं।’’<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>‘‘दस वर्ष की उम्र से ही निगोड़ी सायकिल चलाने लगी थी। डी.ए.वी. स्कूल में जब नाम लिखाया गया इसका तो यही शत्र्त थी इसकी कि एक सायकिल भी मिलनी चाहिए। तब से जो पाँव में पहिए लगेइसके ... अब भी छूटी नहीं है आदत।’’<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>नानी माँ यह सब बखान रही थी और मैं अपने शहर के बारे में सोच रहा था, जहाँ आज भी कोई छोटी या बड़ी लड़की सायकिल चलाते हुए नहीं दिखती। दिखती क्या दरअसल वह ऐसा सोच भी नहीं सकती। इस लिहाज से माँ का यह रूप मेरे भीतर माँ के प्रति एक अतिरिक्त सम्मान जगा रहा था।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>जबकि माँ थी कि हंस हंसकर बताए जा रही थी कि कैसे वह कांग्रेस के जुलूस, सत्याग्रह, पिकेटिंग आदि में स्कूल से भागकर अपनी सायकिल से फौरन पहुँच जाती। उस दिनों कानपुर की डाॅ0 लक्षमी सहगल माँ की आदर्श थी। वह उनसे कई-कई बार मिली थी और उन जैसी ही बनना चाहती थी। माँ के पैरों पर अंग्रेजों की लाठी के दाग भी थे।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
आज माँ नहीं है। उसकी पूरी जिंदगी मर्दों की इस दुनिया में एक औरत के टूटकर बिखर जाने की उसी पुरानी कहानी की तरह है। लेकिन माँ से जुड़ी यह छोटी छोटी कहानियाँ किसी अनमोल विरासत की तरह दफन थी मेरे जेहन में। आज यह तमाम कहानियाँ खुद ब खुद बाहर निकलकर पूरी सृष्टि में छा जाना चाहती हैं। कारण है मेरे शहर का बदलता परिवेश। आज मेरे शहर की हजारों-हजार स्कूली बच्चियां सायकिल की पैंडल मारते हुए जीवन पथ पर रफ्तार से उड़ी जा रही हैं। इन्हें देखते ही बरबस माँ की याद हो आती हैं। लगता है माँ हजारो-हजार रूपों में एक बार फिर से जिंदा होकर मुझे गहरे सुकून और आनन्द से भर रही हैं।<br />
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<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>माँ की दुनिया की यह कहानी इन बच्चियों की दुनिया की कहानी बनने जा रही है।<br />
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तुम्हें शत-शत प्रणाम मेरी हजारो-हज़ार नन्ही मुन्नी माताओं !<br />
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संतोष दीक्षित<br />
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