tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post8290032811747489563..comments2023-10-09T16:45:57.355+05:30Comments on फरगुदिया : "फर्गुदिया के नाम - एक शाम " कार्यक्रम में विपिन चौधरी द्वारा सुनाई गयी दो कविताएँshobha mishrahttp://www.blogger.com/profile/17523944890996754964noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8170812756091380286.post-26572770026246512322012-06-18T17:32:42.449+05:302012-06-18T17:32:42.449+05:30"खुदा, खुद
औरत की जुर्रत से भय खाता था
सो औरत..."खुदा, खुद<br />औरत की जुर्रत से भय खाता था<br />सो औरत को औरत ही बनाए रखने की यह जुगत उसकी थी..." <br />...<br />"चन्द्रो हारी-बीमारी में भी <br />अपने कामचोर पति के हिस्से की मेहनत कर <br />डटी रही हर चौमासे की सीली रातों में <br />अपने दोनो बच्चों को छाती से सटाए..." औरत की नियति का खास अंदाज़ में प्रतिवाद.मोहन श्रोत्रियhttps://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.com