Wednesday, October 16, 2013

हां ,कुछ अलग तो मैं हूँ ही -

  "कवयित्री ,गृहिणी विजय पुष्पम जी ने Maya Angelou की कविता 'Phenomenal Woman ' और फरजाना खोजंदी की कविता A Nightingale In The Cage of My Breast  का बहुत सुन्दर और आत्मीय शब्दों में सार्थक अनुवाद किया है . .. विजय जी का फरगुदिया पर पुनः स्वागत " - Shobha Mishra 

"माया अन्गेलो एक बहुआयामी प्रतिभा की धनी अमेरिकन कवियित्री और लेखिका हैं .एक बेहतरीन और मन से समृद्ध व्यक्तित्व .माया के शब्द एक मायावी संसार रच देते हैं ,मन प्राण ,आत्मा को झकझोर देते हैं .शरीर के तारों को झनझना देते हैं और दृष्टिकोण को और विस्तृत कर देते हैं और 
मरहम  से लग जाते हैं घावों पर ." 

"फरजाना खोजंदी मूलतः ताजिकिस्तान की कवियित्री हैं .उनका लेखन ताजिक और फ़ारसी में है .फरजाना अपने देश के साथ ही ईरान और अफगानिस्तान में भी अपनी रचनाओं के लिए मकबूल हैं .उनकी रचनाएँ पर्सियन साहित्य की समृद्ध परंपरा की पोषक हैं . मूल से अंग्रेजी अनुवाद नर्गिस फर्जाद और जो शैप कोट द्वारा किया गया है ." - 
विजय पुष्पम 



Phenomenal Woman
-----------------------------

सुंदरियां आश्चर्य चकित रह जाती हैं मुझे देखकर
कि कहाँ छुपा है मेरा रहस्य
ना ही मैं बहुत आकर्षक हूँ
ना ही मेरा शारीरिक सौष्ठव किसी फैशन मॉडल सा
लेकिन जब मैं बताना शुरू करती हूँ
उन्हें लगता है कि झूठ बोल रही हूँ मैं
मैं कहती हूँ
....अरे ,ये तो मेरी बाँहों के दायरे में है
मेरे नितंबों के परिधि में है
मेरे क़दमों की चाल
मेरे अधरोष्ठों की वक्रता में है .....
हां ,कुछ अलग तो मैं हूँ ही
कुछ तो असाधारणता मुझ में है
हां ,वह मैं ही तो हूँ ...........
मेरी चहल कदमी करती हूँ जिस भी जगह
उतनी ही शांति से जितनी तुम्हे
या किसी भी पुरुष को भा जाये ,
जो मेरे सामने खड़ा हो या
अपने घुटनों पर झुक जाये मेरे सामने
या मधुमक्खियों कि तरह मेरे चारों ओर मंडराए
मैं कहती हूँ कि
..ये मेरी आँखों से निकलती आग की लपटें हैं
या मेरे दांतों की दामिनी सी दमक
मेरी कमर की लचक
या मेरे पावों की थिरकन
मैं कुछ अलग सी हूँ
एक असाधारण औरत
वही तो हूँ मैं .....
पुरुष तो वैसे ही चकित रह जाते हैं


कि क्या दीखता है उन्हें मुझमे
भरसक प्रयास करने पर भी
मेरे अंतर्मन के रहस्यों तक नहीं पहुँच पाते वो
जब मैं अपने रहस्य खोलना भी चाहती हूँ
वो तब भी यही कहते हैं कि
नहीं समझ सकते उस रहस्य को
मैं कहती हूँ ...
..ये तो मेरी रीढ़ की हड्डी का मेहराबदार होना है
मेरी मुस्कुराहटों का सूरज है
मेरे वक्षस्थल का उभार है
मेरी अदाओं का नाजुकपना है
मैं कुछ अलग सी औरत हूँ
असाधारण औरत
वही तो हूँ मैं .....
अब तुम समझ रहे हो ना
कि मेरा सर कभी झुकता क्यों नहीं
मैं चीखती चिल्लाती नहीं
कूदती -फांदती नहीं
ना ही तेज आवाज में बोलती
जब तुम देखते हो मुझे चलते हुए
तुम्हे गर्व होता है मुझपर
मैं कहती हूँ ...
ये तो मेरी हील वाली सैंडलों की टिक टोक में है
मेरे बालों की लहर में है
मेरी हथेलियों में है
जिसकी तुम परवाह करते हो
क्योंकि ..
मैं कुछ अलग सी औरत हूँ
एक असाधारण औरत ...
हां ,कहा ना .वही तो हूँ मैं ......

_______________________

A Nightingale In The Cage of My Breast 
--------------------------------------------------------

इस गझिन छाँव वाली बगिया में
रहती है एक बुलबुल
बुलबुल ,जिसका गान अरुणोदय सा
ले जाता है प्रकाश की ओर
फरहाद के उस तारीखी पहाड़ तक
और उस जगह तक
जहां मजनू बातें किया करता था कौव्वों से
ओह ,अप्रतिम ,अपरूप !!उस भाग्यवान खोह तक
जहाँ सन्नाटा सोने की भांति चमकता दमकता है
और उस जन्नत तक
जहां आदम और हव्वा
ताकते हैं गेहूं के एक दाने की ओर ....
इसे चखूँ या नहीं !!अगर मैं हव्वा होती तो
शायद कभी नहीं चखती ..
शुक्रिया मौला !!मैं हव्वा नहीं ..
कोई आदमजात मुझे यह पाप ना करने पर माफ ना करता
ओ छोटे अद्भुत दाने !
ओ आश्चर्य चकित करनेवाले फल (सेब )
मेरे अस्तित्व के होने का साधारण आरम्भ
एक बुलबुल है जो मेरे विचारों को गुनगुनाती है ,
मेरी स्मृतियों के आरम्भ से गाती है
एक बुलबुल है जो मेरे सीने के पिंजरे से बाहर उड़ जाती है
और सुबह के छज्जे पर बैठकर गाती है
,,,,,मैं तुम्हे छोड़कर जा रही हूँ मेरी सखी ...
तुम्हे रखने हैं अपने कदम जीवन पथ पर
फैलाना है अपने अस्तित्व को
शीघ्रता करो ...
और हां ,
फरहाद की कहानी में अवश्य ले आना ,
उसकी महबूबा शीरीं के बारे में अच्छी खबर
और प्रवेश करना ना भूल जाना जोरास्टर की गुफा में
चखना ज़रूर प्रकाश को और जन्नत के गेहूं को भी
अब मैं लेती हूँ विदा
मेरी सखी ,
अपना दिल मेरे लिए खुला रखना ....


.फरजाना खोजंदी की कविता A Nightingale In The Cage of My Breast !!!
विजय पुष्पम पाठक 

कवयित्री , गृहिणी
कथादेश व विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई है 

3 comments:

  1. इस पोस्ट की चर्चा, शुक्रवार, दिनांक :-18/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -27 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....नीरज पाल।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर आत्म अभिव्यक्ति |
    latest post महिषासुर बध (भाग २ )

    ReplyDelete
  3. प्रिय शोभा ,आज यह पोस्ट फिर से स्मृतियों में दिख रही है ।बहुत आभार इस मंच पर स्थान देने के लिए����

    ReplyDelete

फेसबुक पर LIKE करें-